आतिशबाजी का सामान (कहानी) : गोनू झा

Aatishbaji Ka Saamaan (Maithili Story in Hindi) : Gonu Jha

मिथिला नरेश का दरबार लगा हुआ था । सभा में गोनू झा भी उपस्थित थे। एक व्यक्ति एक छोटे संदूक के साथ दरबार में आया तथा उसने महाराज से बताया कि वह एक व्यापारी है ।

महाराज ने पूछा कि वह क्या बेचने आया है तब उस व्यापारी ने बड़े नाटकीय ढंग से कहा:

" दूर देश से आया हूँ
लेकर अद्भूत उपहार
बिना जड़ का पेड़ उगा दूँ
दंग हो जाए संसार
आग फूलों सा खिले,
ऐसा कर सकता हूँ चमत्कार !"

महाराज सहित सभी सभासद उसके इन दावों से प्रभावित हुए । व्यापारी ने उसी नाटकीयता से कहा -” यदि दरबार में बैठा कोई भी आदमी यह बता दे कि वह महाराज के लिए अपनी संदूकची में क्या उपहार लाया है तो वह उस व्यक्ति की गुलामी करने को तैयार है और यदि सभा का कोई भी व्यक्ति अनुमान लगाने में सफल होता है तो वह महाराज के ईनाम पाने का हकदार होगा।"

सभा में सन्नाटा छा गया ! महाराज भी नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर इस संदूकची में ऐसा क्या है जो यह व्यापारी ऐसे दावे कर रहा है। दरबारियों में भी खुसर-पुसुर होने लगा-आग का फूल और बिना 'जड़ का पेड़' न किसी ने देखा था, न सोचा था ।

गोनू झा थोड़ी देर तक अपने आसन पर मौन बैठे रहे मगर जब महाराज ने उन्हें आशा भरी नजरों से देखा तो वे अपने आसन से उठे और बोले" महाराज! मैं बिना संदकची खोले यह बता सकता हूँ, इसमें आपके लिए क्या उपहार लाया गया है । लेकिन मेरी एक शर्त व्यापारी महोदय को माननी होगी। शर्त यह है कि आज रात वे संदूकची के साथ मेरे आवास पर मेरा आतिथ्य स्वीकारें । यदि मैंने कल सुबह उनको सही उत्तर दे दिया तो वे अपने देश जाकर मिथिलावासियों की प्रज्ञाशीलता की चर्चा करेंगे, उन्हें मेरी गुलामी नहीं करनी होगी । मैं विश्वास दिलाता हूँ कि 'सन्दूकची' के साथ कोई छेड़-छाड़ नहीं होगी। आप चाहें तो चार प्रहरी तैनात करवा दें और उनकी निगरानी में संदूकची रखवा दें ।

व्यापारी गोनू झा की शर्त मान गया और गोनू झा के साथ उनके आवास पर रात्रि विश्राम के लिए आ गया ।

गोनू झा ने व्यापारी की खूब खातिरदारी की । तरह-तरह के पकवान खिलाए ।

रात्रि-भोजन के बाद गोनू झा व्यापारी के साथ टहलने निकले। संदूकची प्रहरियों की सुरक्षा में थी । टहलते-टहलते गोनू झा ने व्यापारी के साथ इधर-उधर की बातें छेड़ दीं । बातें करते-करते गोनू झा ने व्यापारी से पूछा -" आप जो बिना जड़ के पेड़ उगाते हैं उसमें पानी भी पटाते हैं ?"

व्यापारी तरंग में था, बहुत अभिमान से बोला-“पानी नहीं, आग!"

"दिन में ही इस पेड़ में फूल लगते हैं या रात में भी ?" गोनू झा ने पूछा।

" रात में तो उस पेड़ और उसके फूलों का आकर्षण हजार गुना बढ़ जाता है । “शेखी बघारते हुए व्यापारी बोला ।

बातचीत करते हुए गोनू झा घर की ओर लौट पड़े । अपने कक्ष में ही उन्होंने व्यापारी के सोने का प्रबन्ध कराया था तथा बाहर के ओसारे पर प्रहरियों की निगरानी में संदूकची रखी गई थी ।

गोनू झा खाट पर जाते ही चैन की नींद सो गए मगर व्यापारी जागता रहा कि कहीं गोनू झा उठकर संदूकची का रहस्य जानने की कोशिश न करें ।

दूसरे दिन दरबार में पहुँचने पर महाराज ने गोनू झा से पूछा -" क्यों पंडित जी, संदूकची में क्या है- बताएँगे आप?"

गोनू झा अपने आसन से उठकर सभी दरबारियों को बारी -बारी से देखने लगे। दरबारियों को लगा कि गोनू झा फँस चुके हैं और उनको कोई उत्तर नहीं सूझ रहा है । दरबार में फुसफुसाहटें शुरू हुईं कि गोनू झा ने ऊँचे स्वर में कहा -”महाराज, व्यापारी महोदय आपके लिए आतिशबाजी का सामान उपहारस्वरूप लेकर आए हैं । अनार, फुलझडियों और आसमान में जाकर फटने वाली आतिशबाजियों से इनकी संदूकची भरी हुई है।"

महाराज ने व्यापारी से पूछा” क्या गोनू झा ठीक कह रहे हैं ?"

व्यापारी, जो आश्चर्य से गोनू झा को देख रहा था, बोला -" जी हाँ, महाराज ! गोनू झा ने ठीक कहा है।"

महाराज ने गोनू झा को उपहार दिए और व्यापारी को नसीहत दी कि अभिमान करना ठीक नहीं होता है ।

व्यापारी लज्जित हुआ और गोनू झा के पास आकर बैठ गया । सभा विसर्जित होने के बाद वह गोनू झा के साथ ही दरबार से बाहर आया । उसने साथ चलते हुए गोनू झा से पूछा -" आपने कैसे जाना कि संदूकची में आतिशबाजी का सामान ही है ?”

गोनू झा मुस्कुराते हुए बोले -" रात में भोजन के बाद जब आपने बताया कि पेड़ सींचने के लिए पानी नहीं, आग का उपयोग करते हैं आप और जो पेड़ आप उगाते हैं उसके फूलों की खूबसूरती रात को हजार गुना बढ़ जाती है, तो मेरे लिए यह समझना आसान हो गया कि संदूकची में आतिशबाजी की चीजें ही रखी हुई हैं ।"

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