लघुकथाएँ (भाग-5) : ख़लील जिब्रान-अनुवाद: सुकेश साहनी

Laghukathayen (Part-5) : Khalil Gibran

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एक आदमी के बाग में अनार के बहुत से पेड़ थे। फल उतरते ही वह उन्हें चांदी के थालों में सजाकर घर के बाहर रख देता था और पास ही रखे साइन बोर्ड पर उसने लिखा था, "एक सेब मुफ्त में लें। आपका स्वागत है।"
लोग गुज़रते रहते थे, पर कोई भी फलों की ओर आकर्षित नहीं होता था।
वह इस विषय में गंभीरता से सोचने लगा। अगली फसल के उतरने पर उसने एक भी अनार चांदी के थालों में घर के बाहर नहीं रखा बल्कि एक बड़ा बोर्ड बाहर लगा दिया, जिस पर लिखा था, "देश के सबसे अच्छे अनार। इसलिए हमें कीमत अद्दिक रखनी पड़ रही है।"
साइन बोर्ड पढ़ने के बाद पास-पड़ोस के सभी स्त्री पुरूष अनार खरीदने के लिए टूट पड़े।

संसर्ग

पेड़ की डाल ने अपने पड़ोस की टहनी से कहा, "आज का दिन कितना नीरस और खाली-खाली है!"
टहनी ने उत्तर दिया, "मुझे भी ऐसा ही महसूस हो रहा है।"
उसी समय उस टहनी पर एक चिड़ा आ बैठा और फिर उसके पास ही एक और चिड़ा।
उनमें से एक बोला, "मेरी प्रेयसी मुझे छोड़ कर चली गई."
दूसरा चिड़ा बोला, "मेरी घरवाली भी चली गई है, अब वह कभी वापस नहीं आएगी। यहाँ भी किसको परवाह है।"
दोनों चीं-चीं करते हुए एक दूसरे को कोसने लगे, फिर देखते ही देखते शोर मचाते हुए आपस में लड़ पड़े। तभी दो और चिड़ियाँ उड़ती हुई आईं और उन दोनों लड़ते हुए चिरौटों के पास बैठ गई. वे दोनों एकदम शान्त हो गए और वहाँ शान्ति छा गई.
अगले ही क्षण वे चारों अपने जोड़े बनाकर उड़ गए.
डाल ने टहनी से कहा, "कितना जबरदस्त शोर था।"
टहनी बोली, "कुछ भी कहो, अब तो सब कुछ शान्त है और खुला-खुला भी। यदि ऊपरी वायुमंडल शान्त हो तो नीचे रहने वाले भी शान्ति बनाए रख सकते हैे। क्या तुम हवा से झूमते हुए मेरे करीब नहीं आओगे?"
तब डाल ने तेज हवा के साथ झूलकर टहनी को अपने आलिंगन में बाँध लिया।

सावन के अंधे

एक दिन एक बुद्धिमान कुत्ता बिल्लियों के झुण्ड के पास से गुज़रा। उसने देखा, बिल्लियाँ उसकी उपस्थिति से बेखबर आपस में मस्त हैं। वह उनके नज़दीक रुक गया।
झुण्ड से एक बड़ी और भारी बिल्ली उठी और साथी बिल्लियों पर निगाह डालती बोली, "बहनो, प्रार्थना करो। बार-बार पूजा करो। निःसंदेह आकाश से चूहों की वर्षा होगी।"
जब कुत्ते ने यह बात सुनी तो मन ही मन हंसा और उनसे मुँह मोड़कर जाते हुए बोला, "ओ अन्धी और मूर्ख बिल्लियो! क्या यह किताबों में नहीं लिखा और बाप-दादाओं ने नहीं बताया कि श्रद्धापूर्वक प्रार्थना करने से जब वर्षा होती है तो चूहे नहीं, हड्डियाँ बरसती हैं।"

बाजार

कल मैंने दार्शनिकों को बाज़ार में खड़े देखा, वे अपने सिरों को टोकरियों में लिए चिल्ला रहे थे, "अक्ल! अक्ल ले लो ...अक्ल!"
बेचारे दार्शनिक! उन्हें अपने दिलों के तर्पण के लिए अपने सिरों को बेचना ही पड़ता है।

भ्रम

एक दिन आँख ने कहा, "देखो, इन घाटियों के पार नीली धुंध से ढ़के पहाड़ कितने सुन्दर हैं!"
कान ने ध्यान से सुना और कहा, "कहाँ हैं पहाड़? मुझे तो सुनाई नहीं देते।"
हाथ ने कहा, "मेरा इसे छूकर महसूस करने का प्रयास व्यर्थ जा रहा है। मुझे तो केाई पहाड़ मालूम नहीं होता।"
नाक ने कहा, "कोई पहाड़ नहीं है, मुझे इसकी गंध ही महसूस नहीं हो रही है।"
तभी आँख दूसरी ओर देखने लगी। वे सब आँख के इस अनोखे भ्रम के बारे में आपस में चर्चा करने लगे। उन्होंने कहा, "आँख के साथ ज़रूर कुछ गड़बड़ है।"

मंदिर की सीढ़ियों पर

कल शाम मैंने मंदिर की संगमरमरी सीढ़ियों पर दो आदमियों के बीच एक औरत को बैठे देखा। उस औरत का एक गाल निस्तेज था जबकि दूसरे गाल पर लाली दौड़ रही थी।

नया रास्ता

पिछली रात मुझे एक नए तरह का सुख पाने का रास्ता सूझा। मैं इस पर अमल करने की सोच ही रहा था कि एक राक्षस और एक फरिश्ता मेरे घर की ओर दौड़ते हुए आए. वे दोनों दरवाजे़ पर मेरी नये सुख की सूझ को लेकर आपस में झगड़ने लगे।
एक चिल्ला रहा था, "यह पाप है!"
दूसरा कह रहा था, "यह पुण्य है!"

यथार्थ

मेज पर रखे शराब-भरे प्याले के चारों ओर चार कवि बैठे थे।
पहले कवि ने कहा, "अपनी तीसरी आँख से देखते हुए मुझे लगता है-इस शराब की खुशबू पूरे आकाश पर उसी तरह मंडरा रही है जैसे पक्षियों का बादल मंत्र-मुग्ध जंगल पर।"
दूसरे कवि ने सिर उठाकर कहा, "अपने भीतरी कान से मैं उन पक्षियों के गीत सुन सकता हूँ। उनका मधुर संगीत मेरे दिल को उसी तरह बांध लेता है जैसे सफेद गुलाब मधुमक्खी को अपनी पंखुड़ियों में कैद कर लेता है।"
तीसरे कवि ने अपनी आँखें बंद कर लीं और ऊपर की ओर हाथ फैलाते हुए कहा, "मैं उन्हें हाथ से छू सकता हूँ, उनके पंख-अंगुलियों पर ऐसे महसूस होते हैं जैसे किसी सोती हुई अप्सरा की साँसें।"
तभी चैथे कवि ने आगे बढ़कर प्याला उठा लिया और बोला, "बस करो-मित्रो! मैं इन बातों से ऊब गया हूँ। मुझे शराब की सुगन्ध दिखाई नहीं देती, न ही इसका संगीत सुनाई देता है और न ही इसके पंखों की थिरकन महसूस होती है। मुझे तो सिर्फ़ शराब दिखाई दे रही है। अतः मुझे इसे पी लेना चाहिए ताकि मेरी इंद्रियाँ भी पैनी हो जाएँ और मैं भी आप लोगों जितनी आनन्दमयी ऊँचाइयों तक उठ सकूँ।"
उसने प्याला होठों से लगाया और शराब की आखिरी बूँद तक पी गया।
दोनों कवि भौंचक्के हो उसे देखे जा रहे थे। उनकी आँखों में उसकी सोच को लेकर गहरी शत्रुता वाले भाव थे।

दार्शनिक

"तुम इस सुनसान खेत में खड़े-खड़े थक गए होगे।" एक बार मैंने एक बिजूखे से कहा।
"दूसरों को डराने से मिलने वाली खुशी इतनी गहरी और स्थायी होती है कि मैं कभी थकान महसूस नहीं करता।" उसने कहा।
"यह सच है," मैंने कुछ सोचते हुए कहा, "क्योंकि मुझे भी इस तरह की खुशी के बारे में पता है।"
"हाँ, जिसके भीतर घास-फूस भरा हो, वही इस खुशी को जान सकता है।"
मैं उसके पास से चला आया, मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि उसने मेरी तारीफ की है कि अपमान किया है।
एक वर्ष बीत गया। जब मैं दोबारा उसके पास से गुज़रा तो मैंने देखा, उसकी टोपी के नीचे दो कौवे घोंसला बना रहे थे।

बदलते संदर्भ

तीन कुत्ते धूप सेंकते हुए आपस में बातचीत कर रहे थे।
पहला कुत्ता अधमुंदी आँखों से देखते हुए बोला, "इस कुत्ताराज में जन्म लेना सचमुच सुखमय है। अब हम मोटरकारों, जहाजों में बैठकर कितने आराम से धरती, आकाश और समुद्र की यात्राएँ करते हैं। ज़रा उन आविष्कारों के बारे में तो सोचो, जो कुत्तों के ऐशोआराम के लिए हुए हैं।"
दूसरे कुत्ते ने कहा, "अब हम लोगों की चालों से चैकस रहना जान गए हैं। चाँद को देखकर हम अपने पूर्वजों की तुलना में कहीं अद्दिक लयबद्ध तरीके से भौंकते हैं। जब हम पानी में ताकते हैं तो अपने नैन-नक्श को पहले से ही अधिक निखरा हुआ पाते हैं।"
तब तीसरे कुत्ते ने कहा, "मैं तो कुत्ताराज में आपसी तालमेल देखकर दंग हूँ।"
ठीक उसी समय उन्होंने देखा, कुत्ते पकड़ने वाला उनकी ओर आ रहा था।
तीनों कुत्ते अपनी जगह से उछले और गली की ओर दौड़ पड़े। भागते हुए तीसरे कुत्ते ने कहा, "जान बचाओ... भागो! सभ्यता हमारा पीछा कर रही है!"

सुखी जीवन

एक शाम कवि और किसान की मुलाकात हो गई. कवि कुछ रुखा था और किसान संकोची, फिर भी वे आपस में बातचीत करने लगे।
किसान ने कहा, "मैं तुम्हें एक छोटी-सी कहानी सुनाता हूँ जिसे मैंने अभी कुछ दिन पहले ही सुना है-एक चूहा पिंजरे में पड़े पनीर के टुकड़े को मजे से खा रहा था, तो एक बिल्ली भी पास में खड़ी थी। चूहा एक क्षण के लिए काँपा, पर वह जानता था कि पिंजरे में वह पूर्णतया सुरक्षित है।"
बिल्ली ने कहा, "तुम अपने जीवन का आखिरी भोजन कर रहे हो।"
चूहे ने उत्तर दिया, "ठीक कहती हो, मुझे तो एक ही जीवन मिला है इसलिए मरना भी एक ही बार पड़ेगा। अपनी बात करो। सुना है तुम्हें नौ जीवन प्राप्त हैं। इसका मतलब यही तो हुआ कि तुम्हें नौ बार मरना भी पड़ेगा।"
किसान ने कहानी खत्म करके कवि की ओर देखा और पूछा, "कितनी विचित्र कहानी है?"
कवि ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह मन ही मन बुदबुदा रहा था, "हमें नौ जीवन प्राप्त हैं, निःसंदेह नौ जीवन। हम नौ बार मरेंगे-पूरे नौ बार। इससे अच्छा तो एक ही जीवन है-पिंजरे में कैद...उस किसान का-सा जीवन...हाथ में आखिरी कौर लिए. क्या हम नौ जीवन जीते हुए जंगलों और वीरानों में रहने वाले शेरों के सगे सम्बंधी नहीं हैं?"

कूप मण्डूक

धूप में सो रहे एक आदमी की नाक पर तीन चींटियाँ आपस में मिलीं। अपने रिवाज के अनुसार उन्होंने एक दूसरे का अभिवादन किया और खड़ी-खड़ी बतियाने लगीं।
पहली चींटी ने कहा, "ये धरती और पहाड़ बिल्कुल बंजर है। पूरा दिन बीत गया तलाशते हुए, एक दाना भी हाथ नहीं आया।"
दूसरी चींटी बोली, "मैंने भी यहाँ का चप्पा-चप्पा छान मारा है, पर कुछ नहीं मिला। मुझे लगता है यह वही मुलायम, अस्थिर एवं बंजर भूमि है जिसके बारे में लोग बातें करते रहते हैं।"
तब तीसरी चींटी ने सिर उठाकर कहा, "बहनों! हम किसी बहुत बड़ी चींटी की नाक पर बैठे हैं, इसका शरीर इतना विशाल है कि हम इसे देख नहीं सकते, इसकी छाया इतनी विस्तृत है कि हम अनुमान भी नहीं लगा सकते, इसकी आवाज़ इतनी तेज है कि हम सुन नहीं सकते और वह हर जगह है।"
उसकी बात सुन्दर दूसरी चींटियाँ एक दूसरे की ओर देखकर हँसने लगीं।
उसी समय सो रहे आदमी ने नींद में ही अपनी नाक खुजलाई, तीनों चींटियाँ मसल कर रह गई.

ज्ञाता

पहाड़ी प्रदेश में रहने वाले एक व्यक्ति के पास पुराने ज़माने के एक मूर्तिकार द्वारा गढ़ी गई एक मूर्ति थी। यह प्रतिमा उसके घर की दहलीज पर औंधे मुंह पड़ी रहती थी और वह इस ओर कभी ध्यान भी नहीं देता था।
एक दिन एक नगरवासी उसके घर के सामने से गुज़रा। मूर्ति पर नज़र पड़ते ही उसने मालिक से उस मूर्ति को बेचने के बारे में पूछा।
वह आदमी हंसकर बोला, "भला इस भद्दे और गन्दे पत्थर को कौन खरीदेगा?"
नगरवासी ने कहा, "मैं तुम्हें इस मूर्ति के बदले एक सिक्का दूँगा।"
उस आदमी को हैरत भी हुई और खुशी भी।
उस मूर्ति को हाथी की मदद से शहर पहुँचाया गया। बहुत दिनों बाद उस पहाड़ी आदमी का शहर जाना हुआ। उसने एक दुकान के बाहर बहुत भीड़ देखी, एक आदमी ऊँची आवाज़ में चिल्ला रहा था, "आइए संसार की सबसे सुन्दर एवं अनोखी मूर्ति देखिए. मात्र दो सिक्कों में एक कलाकार की कला का उत्कृष्ट नमूना।"
दो सिक्के देकर उस पहाड़ी ने उस प्रतिमा को देखा, जिसे उसने खुद ही एक सिक्के में बेचा था।

तीन उपहार

बहुत पहले बुखारा शहर में एक दयालु राजा रहता था, जिसे लोग बहुत प्यार करते थे। वहीं एक बेहद गरीब आदमी राजा के प्रति बहुत कटु था और लगातार उसके खिलाफ ज़हर उगलता रहता था। राजा इस विषय में सब कुछ जानते हुए भी चुप रहता था। अंत में उसने इस बारे में कुछ करने का निश्चय किया।
एक सर्द रात में राजा का नौकर एक बोरी आटा, एक थैली साबुन एवं चीनी लेकर उस आदमी के घर पहुंचा।
"राजा ने आपको यादगार के तौर पर ये उपहार भेजे हैं।" नौकर ने उस आदमी से कहा।
वह आदमी फूलकर कुप्पा हो गया। उसने सोचा, राजा ने ये उपहार उसके सम्मान में भेजे हैं। गर्व में चूर वह बिशप के पास जाकर डींग हांकने लगा, "देखो...राजा भी मुझसे मित्रता करने को लालायित है!"
"वाह!" बिशप ने कहा, "राजा कितना बुद्धिमान है! तुम कुछ भी नहीं समझे, राजा ने इशारे से तुम्हें समझाया है-आटा तुम्हारे खाली पेट के लिए, साबुन तुम्हारे बदबूदार विचारों को द्दोने के लिए और चीनी तुम्हारी कड़वी जबान को मीठा बनाने के लिए भेजे गए हैं।"
उस दिन से उस आदमी की नफरत राजा के प्रति और बढ़ गई. सबसे अधिक नफरत वह बिशप से करने लगा, जिसे उपहारों का मतलब उसे समझाया था, पर...अब... वह चुप रहने लगा था।

प्रेम गीत

एक बार एक कवि ने बहुत उत्कृष्ट प्रेम गीत लिखा। उसने अपने गीत की अनेक प्रतियाँ निकलवाई और अपने सभी परिचितों को भेज दीं। इनमें पहाड़ों के उस पार रहने वाली एक खूबसूरत लड़की भी थी। जिससे वह केवल एक बार मिला था।
दो दिन बाद उस लड़की की तरफ से संदेशवाहक एक पत्र लेकर आया। पत्र में उसने लिखा था, "विश्वास करो, तुम्हारा मेरे लिए लिखा गया गीत मेरे दिल की गहराइयों में उतर गया है, तुम अब यहाँ आ जाओ और मेरे माता पिता से बात कर लो ताकि हम शादी कर सकें।"
कवि ने पत्र का उत्तर देते हुए लिखा, "दोस्त, तुम्हें भेजा गया प्रेमगीत किसी भी कवि के हृदय से जन्मा 'प्यार का गीत' है जिसे संसार का प्रत्येक पुरुष प्रत्येक स्त्री के लिए गा सकता है।"
लड़की ने फिर लिखा, "झूठे! पाखंडी! मैं मृत्युपर्यन्त सभी कवियों से नफरत करती रहूंगी...सिर्फ तुम्हारी वजह से।"

शरीर और आत्मा

वे दोनों बालकनी में बनी खिड़की में एक दूसरे से सट कर बैठे हुए थे। लड़की ने कहा, "आइ लव यू! यू आर हैंडसम, तुम्हारे पहनावे पर कौन न मर मिटे, फिर तुम्हें किस बात की कमी है।"
लड़के ने कहा, "मैं भी तुम्हें प्यार करता हूँ, तुम किसी खूबसूरत विचार की तरह हो, जो हाथ से नहीं पकड़ा जा सकता। तुम मेरे स्वप्नों में तैरते गीत जैसी हो।"
लड़की झटके से अलग हो गई और तुनककर बोली "रहने दो। मैं न तो कोई विचार हूँ और न ही तुम्हारे सपनों में घूमने वाली चीज। मैं एक लड़की हूँ। मैं समझती थी कि तुम मुझे अपनी पत्नी और अपने होने वाले बच्चों की माँ के रूप में चाहते हो।"
दोनों अलग हो गए.
लड़के ने मन ही मन कहा, 'एक और सुन्दर सपना गहरी धुंध में बदलकर रह गया।'
लड़की कह रही थी, 'अच्छा हुआ, ऐसे आदमी का क्या भरोसा जो मुझे विचार और गीत के रूप में देखता हो।'

लोग

तीन आदमियों की नज़र हरी-भरी पहाड़ी पर बने एक सफेद घर पर पड़ी।
उनमें से एक ने कहा, "यही रूथ नामक औरत का घर है, वह एक बूढ़ी डाइन है।"
दूसरे आदमी ने कहा, "गलत! लेडी रूथ एक बहुत खूबसूरत औरत है।"
तीसरे आदमी ने कहा, "तुम दोनों को पता नहीं है! रूथ तो इस राज्य की मालकिन और अपने गुलाम किसानों का खून चूसती है।"
वे लेडी रूथ के बारे में बातें करते हुए चैराहे पर आ गए. वहाँ एक बूढ़े से भेंट होने पर एक ने उससे पूछा, "कृपया हमें रूथ नामक महिला के बारे में कुछ बताएँ जो पहाड़ी स्थित सफेद मकान में रहती है।"
बूढ़े आदमी ने उनकी ओर मुस्कुराकर देखा और कहा, "मैं नब्बे वर्ष का हूँ और जब मैं निरा बालक था तब भी रूथ के बारे में सुना करता था। वैसे रूथ नामक महिला को मरे अस्सी वर्ष हो गए हैं।"

कल-आज और कल

मैंने अपने दोस्त से कहा, "देखो, वह किस तरह उस आदमी की बाहों पर झुकी हुई है। कल वह इसी तरह मुझ पर झुकी हुई थी।"
मित्र ने कहा, "कल वह मुझ पर झुकेगी।"
मैंने कहा, "देखो, किस तरह सटकर बैठी है। कल ही की तो बात है वह इसी तरह मेरे पास बैठती थी।"
मित्र ने कहा, "कल वह मेरे साथ इसी तरह बैठेगी।"
मैंने कहा, "देखो, वह उसके प्याले से शराब पी रही है जबकि कल तक मैं उसे पिलाता रहा था।"
मेरा मित्र बोला, "कल वह मेरे प्याले में पिएगी।"
तब मैंने कहा, "कितने प्यार से वह उस आदमी को देख रही है। कल इसी तरह मेरी ओर देख रही थी।"
मेरे मित्र ने कहा, "कल वह इसी तरह मुझे देखेगी।"
मैंने कहा, "सुनो, वह अपने प्रेमी के कान में कैसे प्रेम भरे गीत गुनगुना रही है। कल वे गीत उसने मुझे सुनाए थे।"
और मेरे मित्र ने जवाब दिया, "कल ये गीत वह मुझे सुनाएगी।"
मैंने कहा, "देखो, कैसे आलिगंन में ले रही है। कल तक मैं उसके साथ था।"
मेरे मित्र ने कहा, "कल यही आलिंगन मेरे लिए होगा।"
तब मैंने कहा, "कैसी विचित्र औरत है!"
उसने उत्तर दिया, "वह जीवन की तरह सबकी सांझी है, मृत्यु की तरह सबके लिए अनिवार्य है और अनन्तकाल की तरह सभी को अपने गर्भ में समेट लेती है।"

ठहरे हुए लोग

जिंदगी कभी न खत्म होने वाली समूह-यात्रा है। धीमी चाल वाले व्यक्ति को इसकी गति बहुत तेज मालूम देती है, वह इसकी संगति नहीं कर पाता और इससे बाहर आ खड़ा होता है और तेज चाल वाले को इसकी गति बहुुत धीमी मालूम देती है, वह इससे मेल नहीं बिठा पाता और वह भी इसे छोड़कर बाहर आ खड़ा होता है।

लीडर

पवित्र नगर की तलाश में जाते हुए मेरी मुलाकात एक दूसरे यात्री से हुई, मैंने उससे पूछ लिया, "पवित्र नगर पहुंचने का सही रास्ता यही है क्या?"
उसने कहा, "मेरे पीछे-पीछे चले आओ, चैबीस घंटों के भीतर तुम पवित्र नगर पहुँच जाओगे।"
मैं उसके पीछे चल पड़ा। हम दिन-रात चलते रहे, कई दिन बीत गए, पर हम पवित्र नगर नहीं पहुंचे।
तभी अप्रत्याशित बात हुई, वह मुझपर बरस पड़ा क्योंकि मैं जान गया था कि उसे पवित्र नगर के रास्ते के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

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