विधु मास्टर (बांग्ला कहानी) : विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय

Vidhu Master (Bangla Story) : Bibhutibhushan Bandyopadhyay

विधु मास्टर की बात में कभी भूल नहीं सकता। उनकी स्मृति को संभवतः जीवन भर वहन करना पड़ेगा। कुछ महीनों के लिए वे मेरे निकट आये थे, फिर चले गए। सिर्फ उनसे मेरा वह क्षणिक परिचय अमर होकर रह गया।

मुझे अच्छी तरह याद है, उस दिन रविवार था। मैं सुबह व्याकरण कंठस्थ कर रहा था। इसी समय बाहर से किसी ने आवाज लगाई, 'हारान बाबू घर में हैं? हारान बाबू?'

मैंने खिड़की से सिर निकाल कर पूछा, 'किसको बुला रहे हैं? -'यहाँ हारान बाबू नाम के कोई रहते हैं? ।'
-'हाँ, रहते हैं। वे मेरे चाचा लगते हैं।
-'उन्हें एक बार बुला दो तो, भाई!'
-'क्या काम है? - 'उनको क्या एक गृह शिक्षक की आवश्यकता है?'

अब मुझे याद आया कि चाचा ने हमारे लिए प्राइवेट ट्यूटर के लिए अखबार में विज्ञापन दिया था। मैंने पूछा, 'आप क्या उस विज्ञापन को देखकर ही आ रहे हैं?'
-'हाँ ।'
- 'अच्छा, तो भीतर आइए। मैं चाचाजी को बुला देता हूँ।'

दुबला-पतला वह व्यक्ति अत्यन्त दुविधा से हमारे बैठक-घर में दाखिल हुआ। मैंने कहा, 'आप बैठिए।'
मेरी बात को सुनकर वे मानो भयभीत से होकर कोने की एक बेंच पर बैठ गए। इस अनाड़ी को देखकर शिक्षक के प्रति मेरी सारी श्रद्धा तिरोहित हो गई। मैंने फिर कहा, 'इस कुर्सी पर बैठिए न!'

उन्होंने पहले तो कहा, 'ठीक है। फिर उठकर एक कुर्सी पर जाकर बैठ गए। मैंने बिजली का पंखा चला दिया और धीरे-धीरे ऊपर चाचाजी को बुलाने चला गया।

चाचाजी नीचे आए। मैं भी उनके पीछे-पीछे आया, और आए झंटू , मिंटू , चंदू, और रेवा। चाचाजी ज्यों ही बैठक-घर में पहुँचे उन्होंने कुर्सी से उठकर, हाथ जोड़कर, नमस्कार किया। चाचाजी ने पूछा, 'आज आप सुबह के अखबार में ही विज्ञापन देखकर आ रहे हैं न?'
उन्होंने कहा, 'हाँ ।'

चाचाजी ने फिर कहा, 'इन पाँच बच्चों को पढ़ाना होगा। रोज रात को तीन घंटे, वेतन तो सात रुपए लिख ही दिया है। गैरहाजिरी नहीं चलेगी।'
उन्होंने कहा, 'नहीं, गैरहाजिरी क्यों करूँगा?'
चाचा जी ने पूछा, 'यहाँ आप रहते कहाँ हैं?'
-'श्रीनाथ दास लेन में।'
-'आपका शुभ नाम?'
-'विधुभूषण चट्टोपाध्याय।'
-'कितना पढ़े-लिखे हैं?'
- 'मैट्रिक पास हूँ।'

यह सुनकर चाचाजी सोच में पड़ गए। थोड़ी देर बाद पूछा, 'आप सातवीं श्रेणी के लड़के को पढ़ा सकते हैं?'
उस बार सातवीं श्रेणी में केवल मैं पढ़ता था। उम्र में भी मैं ही सबसे बड़ा था। गर्व से मेरी छाती फूल गई।
विधु मास्टर ने कहा, 'जी हाँ। सातवीं श्रेणी के छात्र को मैं पढ़ा सकता हूँ।'

चाचाजी ने कहा, 'तो ठीक है। सोमवार से लग जाइए। संध्या के ठीक छः बजे से आइएगा। फिर हम लोगों से कहा, 'ये तुम लोगों के नए मास्टर जी हैं। इनके पास मन लगाकर पढ़ना। समझे?'
सोमवार को विघु मास्टर ठीक छः बजे आ गए। पहले दिन उन्होंने हम लोगों के नाम पूछे और किताबें देखीं।
मेरी अंग्रेजी की किताब को उन्होंने बहुत देर तक देखा। फिर बोले, 'तुम लोगों को बहुत कड़ी अंग्रेजी पढ़ाई जाती है।'

उनकी बात सुनकर मुझे अपार आनन्द हुआ! मैंने कहा, 'हमें अंग्रेजी में ही फिजिक्स, कैमिस्ट्री पढ़ाई जाती है।'
उन्होंने आश्चर्यचकित होकर पूछा, 'सच?'

मैंने अपनी साइंस की किताब उन्हें दिखाते हुए कहा, 'आजकल हम प्रापर्टीज ऑफ एयर तथा बैरोमीटर के बारे में पढ़ रहे हैं।'
मुझे लगा मेरी ये बातें सुनकर वे चौंक उठे थे। अपनी इस स्थिति को हम लोगों से छिपाने के लिए उन्होंने रेवा से पूछा, 'बच्ची, तुम्हारा क्या नाम है?'
रेवा लज्जा से मुँह नीचा किए हुए थी। नए व्यक्ति को देखकर उसे बहुत लज्जा आती थी। मैंने कहा, 'बता न रे, अपना नाम!'
उन्होंने बड़े स्नेह से रेवा के सिर पर हाथ फेरा। रेवा ने भी धीरे से कहा, 'लेबा।

विधु मास्टर को जिस दिन तनख्वाह मिलती थी, हमें मलाई बरफ खिलाया करते थे। इसलिए सभी उन्हें बहुत मानते थे। केवल मुझे जाने क्यों वे ठीक नहीं लगते थे। फिर भी चाचाजी के डर से अनिच्छा होते हुए भी उनके पास पढ़ने बैठ जाता था। चाचाजी का शासन पिताजी से भी अधिक था। इसलिए मैं मास्टर जी की गलतियाँ ढूँढने लगा ताकि जल्दी से उनकी नौकरी चली जाय और मुझे उनके हाथ से छूट मिले। मैंने एक दिन पूछा,
'मास्टर साहब, पहाड़ की हाइट मापने में बैरोमीटर क्यों लगता है?'
उन्होंने कहा, 'लगता है क्या? किसने कहा?'
-'स्कूल के मास्टर जी ने।'
-'तो हो सकता है। कहाँ लिखा हुआ है, बताओ तो?'
-'साइंस की किताब में।'
-'देखूं, साइंस की किताब लाना।'

मैंने किताब लाकर उनके हाथ में दे दी। लेकिन वे कुछ नहीं समझे।
उन्होंने कहा, 'अच्छा समझा देता हूँ।'

लेकिन मुझे समझाना तो दूर रहा, वे खुद ही सम्भवतः उस अंग्रेजी का अर्थ समझ नहीं पा रहे थे। अन्त में उन्होंने तर्जमा कर दिया। फिर पूछा, 'समझे?'
मैंने कहा, 'कुछ नहीं।'

उन्होंने कहा, 'मैं तुम्हारी यह किताब घर ले जाता हूँ, एक बार पढ़ कर समझा दूंगा।'
वे उस दिन मेरी किताब लेकर चले गए और दूसरे दिन यथा-समय लौटा भी दी। लेकिन उस विषय पर मेरे किसी भी प्रश्न का यथार्थ उत्तर नहीं दे सके। यह बात जब मैंने चाचाजी से कही तो बोले, 'अच्छा मैं देखता हैं, वे कैसा पढ़ाते हैं?'

दूसरे दिन से चाचाजी हम लोगों के साथ बैठकर मास्टर जी का पढ़ाना देखने लगे। मास्टर जी की बहुत सी गलतियाँ चाचाजी ने पकड़ीं। एक बार उन्होंने 'लूसी ग्रे' की कविता का अन्तिम अंश मुझे समझाने के लिए मास्टर जी से कहा। उन्होंने कहा, 'वही कविता-

O' er rough and smooth she trips along
And never looks behind,
And sing a solitary song
That whistles in the wind.
'इसका भावार्थ अच्छी तरह समझाना चाहिए। समझे न?'

इन सब बातों में मास्टर जी कुछ नहीं कहते थे। वे चाचाजी को बहुत मानते थे और कभी सिर उठाकर उनसे नहीं बोलते थे।
हिसाब में भी बड़ा और पेचीदा सवाल मास्टर जी नहीं कर सकते थे। एक दिन चाचाजी के सामने वे एक सवाल का हल निकाल रहे थे। चाचाजी ने कहा, 'यह सवाल तो बीजगणित के नियम के अनुसार आप हल नहीं कर सकते।'

जो भी हो, उस दिन किसी भी तरह वे हिसाब समझा नहीं सके। उनके जाने के बाद चाचाजी ने हम लोगों से कहा, 'तुम्हारा मास्टर ठीक नहीं है।'

इसी समय विश्वकर्मा की पूजा आई। हम लोगों ने कहा, 'मास्टर जी, हमें पतंग और लट्टू खरीद दीजिए। मास्टर साहब को हाल ही में वेतन मिला था इसलिए राजी हो गए। लेकिन उनकी एक शर्त थी कि वे जो भी खरीद कर देते थे उसके बारे में कभी भी किसी से कहना मना था अर्थात् वे सबसे छिपाकर हमें चीजें खरीद कर देते थे।

विश्वकर्मा पूजा के चार दिन बाद एक दिन अचानक श्रीनाथदास लेन में मास्टर साहब से भेंट हो गई। मैंने नमस्कार किया।
उन्होंने कहा, 'अरे पिन्टू! कहाँ जा रहे हो?'
मैंने कहा, 'आप कहाँ रहते हैं, मास्टर जी?'
उन्होंने कहा, 'यहीं, इसी गली में।'
- 'चलिए न, आपका घर देखूँगा ।'

मुझे न जाने क्या हो गया था, मैं मास्टर साहब का घर देखने के लिए अत्यन्त उतावला होने लगा। मेरे आग्रह को देखकर वे मुझे दुविधा के साथ अपने अपूर्व घर में ले गए। टीन की छत वाले एक बहुत पुराने मकान के दुतल्ले में मास्टर साहब रहते थे। उस मकान की सीढ़ी इतनी तंग और कमजोर थी कि मुझे वहाँ डर लगने लगा। मास्टर साहब ने अपने कमरे का ताला खोला और मुझे भीतर ले गए। उनका वह कमरा बहुत ही गंदा और टूटा-फूटा था। दीवार पर कुछ कैलेण्डर झूल रहे थे। एक स्थान पर विवेकानन्द की फोटो लगी हुई थी। फर्श पर एक खटिया पड़ी थी। उस पर एक मैला-सा तकिया पड़ा था। मास्टर साहब 'मैं आता हूँ,' कहकर जाने कहाँ चले गए। मैं घूमकर उनका कमरा देखने लगा। मुझे उनकी दरिद्र अवस्था को देखकर बहुत ही कष्ट हुआ। कमरे में एक भी कपड़ा नहीं दिखाई पड़ा। मेरे मन में उनके प्रति बहुत अनुकंपा जाग गई। उन्हें मैं जो घृणा किया करता था, वह भूल गया। सहसा मानो मुझमें एक परिवर्तन आ गया।

इसी समय हाथ में खाने की चीजों का एक डोंगा लिए मास्टर साहब लौट आए। मैंने व्यथित स्वर में कहा, 'यह सब क्यों लाए हैं, मास्टर साहब?'
वे मेरी बात सुनकर मानो आश्चर्य में हो गए। बोले, 'नहीं, यह सामान थोड़ा-सा है?'

मैं समझ गया कि उनकी कड़ी मेहनत का परिश्रम इस तरह ग्रहण करना, उनके देह का रक्त ग्रहण करना होगा। इसलिए मैंने तीव्र प्रतिवाद के स्वर में कहा, 'नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता।'
मेरी दृढ़ प्रतिज्ञा देखकर उनका मुँह लटक गया। बोले, 'क्यों पिन्टू, क्या बात है?'

और कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई। उस दिन घर लौटते वक्त मैंने प्रण कर लिया कि अपने लिए मास्टर साहब को पैसे खर्च नहीं करने दूंगा। चाहे जो हो, इसी नौकरी पर भरोसा करके वे कलकत्ते में रह रहे हैं।

लेकिन मैं अपनी प्रतिज्ञा को निभा सकूँ, इसके पहले ही एक बहुत बुरी बात हो गई। चाचाजी एक दिन मेरी ट्रान्सलेशन की कापी लेकर देखने लगे। मास्टर साहब सामने ही बैठे हुए थे। सहसा चाचाजी ने कहा, 'यह क्या, मास्टर साहब! आप तो बिल्कुल अंगरेजी नहीं जानते हैं! I live in a boarding इस सेन्टेन्स में in को गलत बताकर आपने उसे काटकर at लिखा है। यह कौन सी Grammar के नियमानुसार आपने किया है?'

लज्जा से मास्टर साहब ने सिर नीचा कर लिया। और मैं? मैं भावी आशंका से काँप रहा था। चाचाजी ने एकाएक मुझसे कहा, 'पिन्टू, अपनी हाफ़ इयरली प्रोग्रेस रिपोर्ट लाना तो!'

मैंने डरते-डरते प्रोग्रेस् रिपोर्ट लाकर दे दी। चाचाजी ने कहा, 'देखिए! कितना खराब रिजल्ट आया है। अंग्रेज़ी में ही फेल है! दूसरे विषयों में भी किसी तरह पास हुआ है। अब मैं आपको कैसे रखूँ ? हम लोग दूसरा मास्टर देख लेंगे। आप अपना बाकी वेतन दो तारीख को आकर ले जाइएगा।'

चाचाजी के अभियोग का मास्टर साहब ने प्रतिवाद तक नहीं किया। वे धीरे-धीरे चले गए। मैं उनके मुँह की ओर देखने का साहस भी नहीं कर सका। कारण, इस घटना के लिए मैं ही तो दोषी था। मैंने ही मास्टर साहब की गलतियों चाचाजी से कही थीं। मैं सिर नीचा किए अपराधी की तरह बैठा रहा।

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