वाणी की शुचता (कहानी) : गुरुदत्त

Vaani Ki Shuchta (Hindi Story) : Gurudutt

: 1 :
सरदार सोहन सिंह जपुजी साहब का पाठ कर रहा था -

असंख कूड़िआर कूड़े फिराहि ॥
असंख मलेछ मलु भखि खाहि ॥
असंख निंदक सिरि करहि भारु ॥
नानकु नीचु कहै वीचारु ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुधु भावै साई भली कार ॥
तू सदा सलामति निरंकार ॥१८॥

इस समय साथ के कमरे से जोर - जोर से रेडियो बजने का शब्द आने लगा । सोहन सिंह का ध्यान भंग हुआ । उसके मुख में था जो तुधु भावै साई भली कार और उसके कानों में गूंजने लगा -

अकाशी घुम्मण तारे ।
ते बाबे दी नूं घुंड बिच अखियाँ मारे ।
ओ घुंड बिच अखियाँ मारे ते धुंड बिच अखियाँ मारे ॥

बहुत से लोग मिलकर गा रहे थे। कदाचित् भंगड़ा नाच किया जा रहा था । सोहन सिंह ने मन कड़ा कर एक बार पुनः पाठ में ध्यान लगाने का यत्न किया और उसने पढ़ा

असंख नाव असंख थाव ॥
अगम अगम असंख लोअ ॥

परंतु रेडियो कूक रहा था

हथ बिच कंगन छनके
ते बाबे दी नूं दियाँ उँगला करन इशारे ॥
ओ उँगला करन इशारे ओ उँगला करन इशारे ॥
ते घुंड बिच अखियाँ मारे ॥

सोहन सिंह ने पाठ छोड़ दिया और उठकर कमरे से निकल आया । सोहन सिंह का लड़का विचित्र सिंह कोठी के बरामदे में सो रहा था । आठ बज रहे थे। सूर्य सिर पर आ गया था । रेडियो की कूक उसकी नींद खराब कर रही थी । उसने करवट ली और तकिए को सिर के नीचे से निकाल कानों पर रख रेडियो के शोर को नींद खराब करने से रोकना चाहा , परंतु रेडियो पूरे जोर से बज रहा था ।

आखिर विचित्र सिंह से नहीं रहा गया । उसने लेटे- लेटे ही आवाज दे दी, " ओ, बदमाश दे बच्चे! बंद कर ! " रेडियो बजा रहा था विचित्र सिंह का लड़का सुरजीत । वह छह वर्ष की आयु का बालक था । लड़के ने पिता की डाँट नहीं सुनी । वह गाना सुनने में लीन था । लड़के के पास खड़ी उसकी बहिन मोहिनी सुर- ताल - लय के साथ नाच रही थी ।

सुरजीत का बाबा सोहन सिंह अपने लड़के की परेशानी पर मुसकरा रहा था । धूप विचित्र सिंह के मुख पर पड़ रही थी , परंतु वह अभी और सोने की इच्छा कर रहा था ।

इस समय विचित्र सिंह की पत्नी हाथ में एक प्याला चाय लिये हुए वहाँ आ पहुँची । यह उसके पति की बेड टी थी । विचित्र ने मुख मोड़कर अपनी पत्नी से कह दिया, " ओ सूर दे पुत्तर नू कौ , बंद कर दे। "

सोहन सिंह की हँसी निकल गई । हँसते हुए उसने अपनी पतोहू से कहा, " यह तो अभी नहीं पिएगा । मुझको दे दो । जरा भीतर जाकर सुनो तो , सूअर का बच्चा क्या सुन रहा है । "

सोहनी ने प्याला सोहन सिंह के हाथ पकड़ा दिया और गाने की तरफ ध्यान कर सुनने लगी । रेडियो गा रहा था

बाबे दी नूं घुंड बिच अँखियाँ मारे ।

सोहनी के मुख पर लज्जा की लाली दौड़ गई । वह आँखें नीचेकिए रसोईघर से चाय का एक और प्याला लेने चली गई ।

: 2 :
" बेटा सुरजीत, " सोहन सिंह ने दोपहर के भोजन के समय अपने पोते से पूछ लिया, " रेडियो क्या गा रहा था ? "

रविवार का दिन था । विचित्र सिंह दफ्तर नहीं गया था । सोहन सिंह तो रिटायर्ड सैनिक था । वह घर ही रहता था । भोजन की मेज पर पिता , पुत्र, पौत्र और बच्चों की माँ बैठे थे । बाबा के प्रश्न का उतर पोती मोहिनी ने दे दिया । वह चार वर्ष की बालिका अभी तोतली भाषा में ही बात करती थी । उसने प्रसन्न वदन बाबा को बताया, " धुंद वित अखाँ मारे । "

सब हँसने लगे । सोहनी की आँखें अपनी प्लेट की ओर झुकी ही रह गई और उसके गाल आँखों तक लाल हो रहे थे ।
" अखाँ किस तराँ मारदे ने? विचित्र ने बच्ची से लाड़ के साथ पूछ लिया ।
" ऐस तरौं। मोहिनी ने तोतली भाषा में कहते हुए एक आँख मींचकर दिखा दिया ।
सोहन सिंह ने एक दीर्घनिश्श्वास छोड़ा और कह दिया , " जमाना बहुत तेजी से बदल रहा है, विचित्र । "
" हाँ , भापा , अब स्पूतनिक चाँद और मंगल तक जाने लगे हैं । " ।
" और यह हमारी बच्ची तो इस छोटी सी उम्र में ही शनि तक पहुँच गई । "
विचित्र इस व्यंग्य को समझ नहीं सका और हँसने लगा । हँसकर कहने लगा , " भापा, बहुत प्यारी लगती है । "
"विचित्र ! तुम अपनी माँ को इससे भी प्यारे लगते थे, परंतु अब वह बेचारी स्वर्ग में बैठी तुमको आठ बजे तक बिस्तर में करवटें लेते देख रोती होगी । "
" क्यों ? "
"विचार करती होगी कि वह गुलाब के फूल सा सुकुमार विचित्र , जिसको वह चूमती - चूमती थकती नहीं थी , अब उसको कभी याद भी नहीं करता । "
" भापा , वह जानती है कि मैं उसको रोज याद करता हूँ । "
" अच्छा, भला, कैसे याद करते हो ? "
" सोहनी जैसी सुंदर पत्नी ले देने के लिए । जब - जब मैं उसकी ओर देखता हूँ, मेरा हृदय माँ के प्रति कृतज्ञता से भर जाता है । "
" इससे वह प्रसन्न नहीं हो सकती । मैं समझता हूँ कि वह रोती होगी यह देख - देखकर कि विचित्र, जो पैदा होने पर तो मानव था , भगवान् का रूप था , अब संसार रूपी कीचड़ में लोट- पोट होनेवाला सूअर ही निकला है । "
" भापा, मैं सूअर नहीं हूँ । " विचित्र ने तमककर कहा ।

" बेटा , मेरी तो आँखें दुर्बल पड़ गई हैं । मुझको तो मनुष्य और सूअर में अंतर दिखाई पड़ता नहीं । इस पर भी कोई कह रहा था कि विचित्र सूअर की भाँति पूँ - करता हुआ सोहनी के पलंग के चारों ओर चक्कर काटा करता है और सुबह आठ बजे तक नींद में खरमस्त पड़ा रहता है ।

" भगवान् भला करे सरकार का । दफ्तरों में बाबुओं की संख्या बहुत अधिक हो गई है । दफ्तरों में चपरासी दस बजे पहुँचते हैं और बाबू ग्यारह बजे । विचित्र जैसे सूअरों को भी वहाँ कुरसी मिलती है और वह पूँ - करता हुआ अफसरों के गुणगान करता है । "
" भापा, यह तो मेरा बहुत अपमान किया जा रहा है ? "
" तो उससे पूछो, जिसने कहा । मैं तो सुननेवाला हूँ । "

: 3 :
" समझे हैं , भापाजी क्या कह रहे थे? " सोहनी ने एकांत में अपने पति से पूछ ही लिया ।
" क्या करूँ , हैं पिताजी । कोई और होता तो लात मारकर घर से निकाल देता । "
" क्यों ? "
" मुझको सूअर जो कहा है । "
" जी नहीं, उन्होंने नहीं कहा । उन्होंने तो किसी को कहते सुना है । "
" कौन बदमाश का बच्चा कहता है यह ? "

सोहनी ने पति के मुख पर हाथ रखते हुए उसको चुप कराते हुए कहा , " आप बात - बात पर गाली देते हैं । यही तो भापाजी कह रहे थे। देखो जी , आज सुबह आप सुरजीत को गाली दे रहे थे, सूअर का बच्चा । बच्चा वह आपका है । आपने अपने को स्वयं ही सूअर कहा था । "
" ओह, तो यह बात है । "
" और अब आप, आपको सूअर कहनेवाले की अर्थात् अपने आपको बदमाश का बच्चा कहने लगे । मतलब यह है कि भापाजी को बदमाश कह रहे हैं ।
" पर मैंने सुरजीत को सूअर का बच्चा कहा था क्या ? "

" हाँ , नींद में , मगर अब अपने को बदमाश का बच्चा तो जागते हुए ही कह रहे हैं । नींद में तो अंतरात्मा बोलती है , तो इसका अभिप्राय यह हुआ कि आपकी अंतरात्मा आपको सूअर कहती है । "
" तो तुम भी मुझको गाली देने लगी हो ? "
" जी नहीं, मैं तो आपकी अंतरात्मा की बात कह रही हूँ । "

: 4 :
विचित्र सिंह घबराया हुआ पिताजी के कमरे में जा उनके चरण पकड़ बैठा । सोहन सिंह ने पूछा, " क्या है ? विचित्र , क्या हो गया है? "
" भापा, सोहनी ने मुझको समझा दिया है कि मैं ही वह गधे का बच्चा हूँ , जो अपने पुत्र को सूअर का बच्चा कह रहा था ? "

सोहन सिंह हँस पड़ा और बोला, " तुमने अब ठीक बात कही है । तुम्हारे गधे बाप ने तुमको कुछ भी अक्ल की बात नहीं सिखाई । तुमको सोहनी से यह भी पूछना चाहिए था कि सुरजीत रेडियो में क्या सुन रहा था ? "
" क्या सुन रहा था , भापा ? "

रेडियो गा रहा था , बाबे दी नूं धुंड बिच अखियाँ मारे । सोहनी को पूछना, कितना मजा आया था उसको सुनकर । "
" भापा, यह रेडियोवालों का दोष नहीं । यह तो लोकगीत है । "

" खाक है । कोई बदमाश , गँवार, अनपढ़ कहीं अपने विकृत मन की व्याख्या गाता होगा और रेडियोवालों ने उसको संतवाणी समझ कूकना आरंभ कर दिया । "

" देखो विचित्र, सुबह उठ सुखमनी का पाठ किया करो, जपुजी का जाप करो । तब तुम्हारी समझ में आएगा, यह लोकगीत नहीं, बदमाशों का गीत है । अधिकांश लोग ऐसा नहीं गाते । "
" पर भापा, इन रेडियोवालों को कौन समझाएगा ? "

समझाने की जरूरत नहीं । तुमको अपनी बुद्धि ठीक करने की जरूरत है । बुद्धि ठीक होगी , तो न तो रेडियो बजेगा , न ही गधे का बच्चा अपने पुत्र को सूअर का बच्चा कहेगा । "