उ क्सेव : मेघालय की लोक-कथा

U Ksew : Lok-Katha (Meghalaya)

खासी में क्सेव का अर्थ 'कुत्ता' होता है। बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल में सभी जानवर आपस में मिल-जुलकर शांतिपूर्वक निवास करते थे। उस जंगल में जानवरों का एक बाजार नियमित लगता था, जिसमें सभी जानवर अपनी किसी ने किसी चीज को लेकर उसे बेचने के लिए उपस्थित होते थे। इस बाजार को 'लुरी-लुरा' कहते थे। इस बाजार में जंगल में सभी जानवरों को आना आवश्यक होता था और सभी को अपने साथ कुछ-न-कुछ सामान बिक्री के लिए ले आना होता था। मनुष्यों को इस बाजार में शामिल होने की मनाही थी।

एक दिन एक कुत्ता खाने की खोज में इधर-उधर घूम रहा था। उसके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था, क्योंकि वह बहुत आलसी और कामचोर था। इधर-उधर से उसे जो कुछ मिल जाता, उसी से वह अपना काम चला लेता था। एक दिन जब वह भूख से व्याकुल होकर इधर-उधर घूम रहा था, अचानक वह कुछ मनुष्यों के घर के पास से गुजरा। उस घर से खाने की सुगंध आ रही थी। भूख से व्याकुल वह कुत्ता उस घर के पास गया और लालसा भरी निगाह से घर की ओर देखने लगा। दोपहर का समय था और घर के लोग खाना खा चुके थे, जब उन्होंने कुत्ते को भूखा और लालसा भरी निगाह से उनकी ओर ताकते देखा तो परिवार के लोगों को कुत्ते पर दया आ गई और उन्होंने अपना बचा हुआ खाना उसे खाने के लिए दे दिया।

कुत्ते ने भरपूर भरपेट खाना खाया। उस खाने का स्वाद उसे बहुत अच्छा लगा। उसके खाने के बाद भी ढेर सारा खाना बचा रह गया था। कुत्ते ने सोचा कि क्यों न इस बचे हुए खाने को ले जाकर वह लुरी-लुरा बाजार में बेच दे। उसने मिट्टी का एक बरतन लिया और उसमें बचा हुआ खाना भरकर बाजार की ओर चल पड़ा।

रास्ते में वह अपने खाने के बारे में लगातार प्रशंसापूर्ण बातें करता चल रहा था, जब वह बाजार में पहुँचा तो अपना खाना लोगों के सामने रखकर आवाज लगाने लगा कि आओ यह बेहतरीन खाना है, जिसे चाहिए, इसे खरीद लो, लेकिन जब उसने अपने खाने का बरतन खोला तो उसमें से अजीब बदबू निकल रही थी, तब एकत्र जानवरों ने उसे भला-बुरा कहना शुरू कर दिया। जानवरों के इस व्यवहार से कुत्ते को बहुत अपमान महसूस हुआ और वह बाजार के प्रमुख के यहाँ इसकी शिकायत करने पहुँचा, परंतु उसने भी कुत्ते की बात पर ध्यान नहीं दिया और उस का मजाक उड़ाने लगा। यह देखकर कुत्ता गुस्से में बाजार छोड़कर निकल गया। निकलते-निकलते उसने गुस्से में भरकर चिल्लाते हुआ कहा कि एक दिन वह अपने इस अपमान का बदला जरूर लेगा, परंतु उसकी बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया, बल्कि सबने उसके जाते ही उसके खाने के बरतन को जमीन पर उलटकर अपने पैरों से कुचल-कुचलकर सारा खाना नष्ट कर दिया।

अपमानित कुत्ता वहाँ से निकलकर सीधे मनुष्य के पास पहुँचा। उसने मनुष्य से अपने साथ हुए व्यवहार की शिकायत की और कहा कि वही उसे न्याय दिला सकते हैं, क्योंकि पशुओं ने अपने यहाँ उसे बहुत अपमानित किया है। उसने मनुष्य से प्रार्थना की कि उसे अपने पास रहने के लिए कुछ जमीन दे। वह अब वापस उन जानवरों के बीच नहीं जाना चाहता, क्योंकि वे अत्यंत क्रूर और स्वार्थी हैं। बदले में वह मनुष्यों की रखवाली तथा घर की देखभाल करेगा। मनुष्य ने उसकी विनती सुनकर घर के बाहर उसे रहने की अनुमति दे दी, तभी से कुत्ता जंगल में न रहकर मनुष्यों के घर के पास रहने लगा।

अपने कहे के अनुसार कुत्ता आज भी जब किसी जानवर को देखता है तो उसका पीछा करता है। जानवरों के पैरों में लगी खाने की गंध से आज भी कुत्ता जानवरों को आसानी से दूर से ही सूंघ लेता है और उन्हें मनुष्य के आसपास फटकने भी नहीं देता।

(साभार : माधवेंद्र/श्रुति)

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