Til : Asghar Wajahat

तिल : असग़र वजाहत

एक समय ऐसा आया कि तिल में से तेल निकालना बन्द हो गया। तेली बड़ा परेशान हुआ । उसने सोचा अगर ऐसा ही होता रहा तो उसका कारोबार चल चुका। वह किसान के पास गया। उसने कहा, ‘‘कुछ करो, तिल में से तेल नहीं निकलता।’’

किसान बोला, ‘‘कहां से तेल निकलेगा। हद होती है। सैकड़ों सालों से तेल निकाल रहे हो।’’
तेली ने कहा, ‘‘यह तो अपना धंधा है।’’
किसान ने कहा, ‘‘तिल होशियार हो गये हैं।’’
तेली बोला, ‘‘होशियार नहीं, तुम न तो खेत में खाद डालते हो, न ठीक से पानी लगाते हो। मैं चाहे जितना जोर क्यों न लगाऊं, तेल ही नहीं निकलता।’’
किसान ने कहा, ‘‘न हल है, न बैल, न खाद है, न पानी। तिल पैदा हो जाते हैं, यही बहुत है।’’

यह सुनकर तेली निराश नहीं हुआ। वह घर आया। तिल का बोरा खोला और उसे धूप में डाल दिया। फिर उन्हें कढ़ाव में डालकर खूब गरम करने लगा। उसने तिलों से कहा मैं तुम्हें जलाकर कोयला कर दूंगा।’’ लेकिन फिर तुरंत उसने तिलों को आग पर से उतार लिया और उन पर ठंडे पानी के छींटे मारे। फिर कोल्हू में डालकर पेरना शुरू किया और फिर तेल निकलने लगा।