प्लेग (फ्रेंच उपन्यास) : अल्बैर कामू; अनवादक : शिवदान सिंह चौहान, विजय चौहान

The Plague (French Novel in Hindi) : Albert Camus

प्रमुख पात्र

डॉक्टर बर्नाद रियो : उपन्यास की कथा बयान करने वाला। नास्तिक, मानवतावादी और कर्तव्यनिष्ठ। ओरान शहर में प्लेग फैलने के बाद तमाम जोखिम उठाते हुए लोगों का उपचार करता है।

जीन तारो : अपनी डायरी में ओरान में प्लेग का ब्योरा लिखनेवाला नौजवान। हालाँकि वह ओरान का निवासी नहीं था। डॉक्टर रियो के समान सामाजिक और व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी महसूस करनेवाला।

जोजेफ़ ग्रान्द : ओरान म्युनिसिपैलिटी का अधेड़ क्लर्क। अलग हो चुकी पत्नी को पत्र लिखने की वर्षों तक कोशिश करता रहता है पर इसके लिए उचित शब्द नहीं खोज पाता। वह एक किताब भी लिखना चाहता है, पर ऐसा भी नहीं कर पाता।

रेमन्द रेम्बर्त : ओरान की अरब आबादी में स्वच्छता स्थितियों पर शोध करने आया पेरिस का पत्रकार। प्लेग फैलने के बाद ओरान से वापस पेरिस पहुँचने के लिए तमाम जुगत लगाता है।

कोतार्द : संदिग्ध, उन्माद से पीड़ित और अस्थिर। अपने एक अपराध के लिए पकड़े जाने को लेकर भयभीत। प्लेग के कारण मची अफरा-तफरी में वह भयमुक्त होकर तस्करी में शामिल हो जाता है।

फ़ादर पैनेलो : विद्वान जेसुइट पादरी। प्लेग को मनुष्य के पापों का ईश्वरीय दंड बताता है। हालांकि बाद में उसने प्लेग को आस्था की सर्वोच्च परीक्षा के रूप में देखा।

मोशिए ओथों : ओरान का मजिस्ट्रेट। रूढ़िवादी। जीन तारो की नज़रों में जनता का अव्वल दुश्मन।

जेकस ओथों : मोशिए ओथों का छोटा बेटा। प्लेग से संक्रमित होने के बाद डॉक्टर कास्तेल द्वारा निर्मित प्लेग सीरम का टीका लेने वाला पहला व्यक्ति।

डॉक्टर कास्तेल : ओरान में फैली महामारी को प्लेग बताने वाला पहला व्यक्ति।

दमे का मरीज : डॉक्टर रियो से उपचार कराने वाले इस व्यक्ति के ज़रिए महामारी के दौरान ओरान के समाज के बदलते मिजाज का पता चलता है।

डॉक्टर रिचर्ड : ओरान में मेडिकल एसोसिएशन का अध्यक्ष। शहर में फैली महामारी को प्लेग मानने और बचाव के लिए तत्काल कदम उठाने के लिए राजी नहीं होता।

प्रीफेक्ट : प्लेग की रोकथाम के लिए स्वच्छता अभियान चलाने के अनुरोध पर पैर पीछे खींचने वाला।

माइकेल : उस मकान का चौकीदार जिसमें डॉक्टर रियो काम करता था। उपन्यास में प्लेग से पीड़ित होने वाला पहला किरदार।

मर्सियर : म्युनिसिपैलिटी दफ्तर में चूहे मारने वाले महकमे का इंचार्ज।

पहला भाग : 1

इस वृत्तान्त में जिन अनोखी घटनाओं का ज़िक्र किया गया है, वे सन् 194- में, ओरान में हुई थीं। इन घटनाओं की असाधारणता को देखते हुए सभी लोग इस बात से सहमत थे कि उनके लिए ओरान उपयुक्त स्थान नहीं था, क्योंकि ओरान एक मामूली शहर है, जिसकी खूबी सिर्फ यह है कि वह अल्जीरियाई तट पर मौजूद एक बड़ा फ्रेंच बन्दरगाह है और वहाँ एक फ्रेंच 'विभाग' के प्रीफ़ेक्ट का हेडक्वार्टर है।

हमें यह क़बूल कर लेना चाहिए कि यह शहर अपने आप में निहायत बदसूरत है। यहाँ का वातावरण इतना शान्त और आत्म-सीमित है कि आपको यह पता लगाने में कुछ समय लगेगा कि आखिर वह कौन-सी बात है जिसके कारण यह शहर दुनिया के दूसरे व्यापारिक केन्द्रों से अलग है! मिसाल के लिए आप एक ऐसे शहर की कल्पना कैसे करेंगे, जिसमें कबूतर न हों, पेड़-पौधे और बाग न हों, जहाँ न तो कभी पंखों की फड़फड़ाहट सुनाई देती है न पत्तियों की सरसराहट, यानी जो पूरी तरह से एक नकारात्मक जगह हो! यहाँ पर मौसमों का फ़र्क सिर्फ आसमान में नज़र आता है। वसन्त के आगमन की सूचना आपको सिर्फ हवा के स्पर्श से मिलती है या पड़ोस की बस्तियों से फेरीवालों दवारा लाई गई फूलों की टोकरियों से। इस वसन्त की आवाजें बाज़ारों में ही लगाई जाती हैं। गर्मियों के मौसम में सूरज मकानों को सुखा देता है, हमारी दीवारों पर सलेटी रंग की धूल का छिड़काव कर देता है और आपके सामने इसके सिवा और कोई चारा नहीं रह जाता कि आप बन्द दरवाज़ों के भीतर जलने वाली आग में दिन काटकर किसी तरह जीते रहें। लेकिन पतझड़ के दिनों में हमारा शहर दलदल से आप्लावित हो जाता है। सिर्फ सर्दियाँ वास्तव में सुहाना मौसम लाती हैं।

किसी शहर से परिचित होने का शायद सबसे आसान तरीक़ा यह है कि यह जानने की कोशिश की जाए कि उसमें रहने वाले लोग काम किस तरह करते हैं, प्यार और मुहब्बत किस तरह करते हैं और मरते किस तरह हैं। हमारे इस छोटे-से शहर में (क्या मालूम यह भी यहाँ की जलवायु का ही असर हो!) ये तीनों बातें बहुत-कुछ एक ही ढंग से की जाती हैं, उसी उत्तेजनापूर्ण, किन्तु आकस्मिक ढंग से। सच तो यह है कि यहाँ हर आदमी ज़िन्दगी से ऊबा हुआ है और अच्छी आदतें डालने की कोशिश में लगा रहता है। हमारे नागरिक कठोर परिश्रम करते हैं, लेकिन उनका एकमात्र उद्देश्य धनवान बनना होता है। उनकी मुख्य दिलचस्पी व्यापार में है और जीवन में उनका मुख्य उद्देश्य, उनके ही शब्दों में कारोबार करना' है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि वे लोग इश्क़-मुहब्बत करने, समुद्र में नहाने या सिनेमा देखने-जैसे सीधे-सादे मनोरंजनों से अपने को वंचित नहीं रखते। लेकिन बड़ी बुद्धिमानी से उन्होंने इन मनोविनोदों के लिए शनिवार की शाम और रविवार के दिन रिज़र्व कर रखे हैं, और सप्ताह के बाक़ी दिन वे ज़्यादा-सेज़्यादा पैसा कमाने में इस्तेमाल करते हैं। शाम के वक़्त दफ़्तरों से निकलकर वे एक नियत समय पर रोज़ शहर के जलपान-गृहों में जमा होते हैं, एक ही बुलेवा1 पर चहलकदमी करते हैं, या अपनी-अपनी बालकनी में बैठकर हवा खाते हैं। नौजवानों में मुहब्बत का जोश तो बहुत ज़ोर से उमड़ता है, लेकिन वह क्षणस्थायी ही होता है। बुजुर्गों के गुनाह गेंद के खेलों, दावतों और महफ़िलों में शामिल होने या क्लबों में ताश खेलने तक ही सीमित हैं, जहाँ हर बाज़ी के ख़त्म होने पर बड़ी-बड़ी रकमों की अदला-बदली होती है।

इसमें शक नहीं कि लोग कहेंगे कि ये आदतें सिर्फ हमारे शहर की ही विशेषता नहीं हैं। दरअसल हमारे सभी शहरों में समकालीन स्थिति बहुतकुछ ऐसी ही है। निश्चय ही आजकल सबसे साधारण बात जो हमें देखने को मिलती है वह यह कि लोग सुबह से लेकर शाम तक काम करते हैं और फिर ज़िन्दा रहने के लिए उनके पास जो समय बच रहता है, उसको बरबाद करने के लिए ताश खेलने की मेज़ों, जलपान-गृहों या गप्पबाजी के ठिकानों की ओर चल पड़ते हैं। इसके बावजूद, कुछेक शहर और देश आज भी ऐसे हैं, जहाँ के लोगों को कभी-कभी इससे भिन्न ज़िन्दगी का आभास मिल जाता है। आमतौर पर इससे उनकी ज़िन्दगी का ढर्रा नहीं बदलता, लेकिन उनको कुछ नया एहसास तो हो ही जाता है, और उनके लिए इतना ही काफ़ी है। खैर, ओरान एक ऐसा शहर है जिसको कभी कोई नया एहसास नहीं होता, दूसरे शब्दों में वह पूरी तरह आधुनिक है। इसलिए हमारे नगर में प्यार मुहब्बत कैसे की जाती है, इसका वर्णन करने की ज़रूरत मुझे नहीं दिखाई देती। जिसे 'प्रेम-क्रीड़ा' कहा जाता है, उसमें हमारे यहाँ के लोग या तो एकदूसरे का बहुत तेज़ी से भक्षण कर लेते हैं या फिर दाम्पत्य-सम्बन्ध की हलकी-फुलकी आदत डालकर ज़िन्दगी बसर करने लगते हैं। इन अतिवादों के बीच का जीवन हमें यहाँ अक्सर देखने को नहीं मिलता। यह भी ख़ास नहीं है। बाक़ी शहरों की तरह ओरान में भी, समय और चिन्तन की कमी के कारण लोगों को एक-दूसरे से मुहब्बत करनी पड़ती है, बिना यह जाने हुए कि मुहब्बत होती क्या है।

हमारे शहर की अगर कोई विशेषता है तो वह यह कि यहाँ आदमी को मरने में कठिनाई का अनुभव करना पड़ता है। 'कठिनाई' शायद पूरी तरह उपयुक्त शब्द नहीं है, 'परेशानी' ज़्यादा सही है। बीमार होना कभी रुचिकर नहीं होता, लेकिन कुछ शहर ऐसे होते हैं जो आपके बीमार पड़ जाने पर मानो आपसे हमदर्दी दिखाते हैं, जहाँ आप अपने प्रति लापरवाह हो सकते हैं। मरीज़ को बस मामूली देखभाल की ज़रूरत रहती है। वह चाहता है कि किसी पर भरोसा कर सके और यह बिलकुल स्वाभाविक है। लेकिन ओरान में तापमान के हिंसक अतिवाद, व्यापार-धन्धे की तात्कालिक ज़रूरतें और मन को प्रेरणा और स्फूर्ति न देने वाला वातावरण, एकाएक आ जाने वाली रातें और उनके बँधे-बँधाए मनोरंजन इस बात की माँग करते हैं कि आदमी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा हो। मरीज़ यहाँ अपने को बेगाना महसूस करता है। ज़रा सोचिए तो कि एक मरणासन्न व्यक्ति को यहाँ कैसा लगेगा, जो गरमी से तपती हुई हज़ारों दीवारों के बीच आ फँसा हो, जबकि शहर के सारे बाशिन्दे जलपान-गृहों में बैठे हों या टेलीफ़ोन से कान लगाए सामान से लदे जहाज़ों के आने, सामान उतरवाई की उजरत और अपने कमीशनों की बहस में लगे हों। तब पता चलेगा कि मृत्यु के साथ, हर आधुनिक मृत्यु के साथ कितनी परेशानी जुड़ी हुई है जब वह एक खुश्क जगह की इन परिस्थितियों में आपको पछाड़ कर रख देती है।

इन कुछ उलटे-सीधे विचारों से शायद आप अनुमान लगा सकें कि हमारा शहर कैसा है। जो भी हो, हमें अतिरंजना से काम नहीं लेना चाहिए। दरअसल, आपको यह आभास करा देना ही हमारा उददेश्य था कि इस शहर का बाहरी रूप और इसके अन्दर की ज़िन्दगी कितनी क्षुद्र है! लेकिन अगर आपको आदत पड़ जाए तो आप यहाँ बिना किसी दिक़्क़त के अपने दिन काट सकते हैं। और चूँकि हमारे शहर आदतों को ही प्रोत्साहन देते हैं, इसलिए समझ लीजिए कि यह सब कुछ अच्छे के लिए है। इस दृष्टिकोण से देखें तो इसकी ज़िन्दगी विशेष आकर्षक नहीं है, यह मानना ही पड़ेगा। लेकिन, कम-से-कम, हमारे यहाँ सामाजिक असन्तोष-जैसी चीज़ एकदम अज्ञात है। और हमारे स्पष्टवादी, स्नेहपूर्ण और परिश्रमी नागरिक बाहर से आए आगन्तुकों के दिलों में हमेशा से उचित सम्मान का भाव जगाते आए हैं। वृक्षरहित, आकर्षणरहित, आत्मारहित ओरान शहर अन्त में शान्तिपूर्ण दिखाई देने लगता है और कुछ दिन में ही आप यहाँ निश्चिन्त भाव से गाढ़ी नींद में सोने लगते हैं।

यहाँ पर इतना और कह देना उचित होगा कि ओरान को एक अनोखी पृष्ठभूमि में स्थापित किया गया है-एक नंगे पठार के केन्द्र में, जिसके तीन ओर चमकती हुई पहाड़ियों का घेरा है और उत्तर की दिशा में खाड़ी, जिसकी आकृति अपने आप में पूर्ण है। हमें अगर किसी बात का अफ़सोस हो सकता है तो सिर्फ इसका कि यह शहर कुछ इस तरह बसाया गया है कि इसने खाड़ी की ओर अपनी पीठ कर ली है, जिससे समुद्र को देख पाना असम्भव हो गया है। समुद्र देखने के लिए आपको उस तक चलकर जाना पड़ता है।

ओरान की साधारण ज़िन्दगी चूँकि ऐसी थी, इसलिए उस साल के वसन्त में जो घटनाएँ हुईं, उनकी आशंका हमारे नागरिक क्यों नहीं कर पाए, यह बात आसानी से समझ में आ सकती है। ये घटनाएँ (जैसा कि हमने बाद में महसूस किया) उन गम्भीर और दुखदायी घटनाओं की पूर्वसूचनाएँ थीं, जिनका विवरण हम यहाँ पेश करेंगे। कुछ लोगों को ये घटनाएँ बिलकुल स्वाभाविक लगेंगी, लेकिन दूसरों को एकदम अविश्वसनीय। लेकिन स्पष्ट है कि कहानी कहने वाला लोगों के नज़रियों की इन भिन्नताओं को महत्त्व नहीं दे सकता। उसका काम तो सिर्फ यह बताना है कि “जो हुआ वह यह था," क्योंकि वह जानता है कि वास्तव में हुआ भी तो यही था, कि इसने शहर के सारे निवासियों की ज़िन्दगी को निकट से प्रभावित किया था और यह कि यहाँ के हज़ारों व्यक्तिइसके गवाह हैं जिन्होंने इन घटनाओं को अपनी आँखों से देखा था, और वे अपने दिलों में इस बात की दाद दे सकते हैं कि कहानी कहने वाला जो लिख रहा है, वह सच ही है।

जो भी हो, कहानी कहने वाला (जिसका नाम आपको वक़्त आने पर बता दिया जाएगा) इस कार्य के लिए उपयुक्त व्यक्ति न होता, अगर घटनाओं ने उसे तथ्य एकत्र करने की स्थिति में न डाल दिया होता, और अगर परिस्थितिवश वह उन सब घटनाओं में निकट से भाग लेने के लिए मजबूर न होता, जिनका वर्णन वह करना चाहता है। एक इतिहासकार की भूमिका अदा करने का उसके पास सिर्फ यही एक औचित्य है। ज़ाहिर है कि एक इतिहासकार के पास, चाहे वह इस काम को शौकिया ही क्यों न करता हो, हमेशा कुछ तथ्य होते हैं व्यक्तिगत अनुभव से हासिल या दूसरों के बताए, जो उसका पथ-प्रदर्शन करते हैं। इस कहानी को कहने वाले के पास तीन प्रकार के तथ्य हैं-सबसे पहले, जो उसने खुद अपनी आँखों से देखा; दूसरे, उन अनेक लोगों के बयान, जिन्होंने अपनी आँखों से देखा (उसने जो भूमिका निभाई थी उसकी वजह से वह उन तमाम लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों को जान सका था, जिनका इस वृत्तान्त में ज़िक्र हुआ है); और अन्त में उसे उन दस्तावेज़ों से मदद मिली, जो बाद में उसके हाथ लगे। उसका इरादा है कि वह जहाँ भी मुनासिब समझेगा उनका सहारा लेगा और अपने मन के मुताबिक़ उनका इस्तेमाल करेगा। उसका यह भी इरादा है कि...

लेकिन शायद अब समय आ गया है कि वृत्तान्त की भूमिका और आगाह करने वाली टिप्पणियों को छोड़कर सीधा वृत्तान्त को शुरू किया जाए। शुरू के कुछ दिनों की घटनाओं को विस्तारपूर्वक बताने की ज़रूरत है।

(1. बुलेवा=चौड़ी सड़क, जिसके दोनों ओर वृक्षों की पंक्तियाँ होती हैं।)

पहला भाग : 2

16 अप्रैल की सुबह जब डॉक्टर रियो अपने ऑपरेशन-रूम से निकला तो उसे अपने पैरों के नीचे कोई नरम चीज़ महसूस हुई। जीने के बीचो-बीच एक मरा हुआ चूहा पड़ा था। डॉक्टर ने तत्काल पैर से ठोकर मारकर चूहे को एक तरफ़ हटा दिया और उसके बारे में और अधिक सोचे बगैर जीने से नीचे उतरता चला गया। लेकिन सड़क पर जाने से पहले उसे ख़याल आया कि आखिर उसके जीने पर मरा हुआ चूहा क्यों पड़ा रहे, इसलिए उसने मकान के चौकीदार को बुलाकर चूहा हटाने का आदेश दिया। इस ख़बर की बूढ़े माइकेल पर जो प्रतिक्रिया हुई, उससे डॉक्टर को एहसास हुआ कि बात इतनी मामूली नहीं है। खुद तो उसने यही सोचा था कि मरे हुए चूहे का होना एक अजीब बात ज़रूर है, पर इससे ज़्यादा कुछ नहीं। लेकिन चौकीदार सचमुच बेहद परेशान हो उठा था। एक बात के बारे में उसका दावा बिलकुल पक्का था, "इस इमारत में चूहे नहीं थे।" डॉक्टर उसे बेकार ही समझाता रहा कि एक चूहा तो था ही और वह अब शायद जीने की सीढ़ी पर मरा पड़ा है। लेकिन माइकेल अपने विश्वास पर अडिग बना रहा। "इस इमारत में चूहे थे ही नहीं,” उसने अपनी बात दुहराई, इसलिए इस चूहे को कोई बाहर से लाया होगा। शायद कोई बच्चा शरारत करने की ख़ातिर डाल गया होगा।

उस दिन शाम को, जब डॉक्टर रियो अपने फ़्लैट के जीने पर चढ़ने से पहले दरवाज़े के पास खड़े होकर जेब में चाबी टटोल रहा था कि उसने बरामदे के अँधेरे कोने की तरफ़ से एक मोटा चूहा अपनी ओर आते हुए देखा। चूहा डगमगाता हुआ चल रहा था और उसकी बालदार खाल भीगी हुई थी। उसने रुककर खुद को गिरने से बचाने की कोशिश की, डॉक्टर की ओर आगे बढ़ा, फिर रुका और एक चीख़ के साथ कलाबाजी-सी खाकर बग़ल की ओर उलट गया। चूहे का मुँह थोड़ा-सा खुला हुआ था और उसमें से खून की धार निकल रही थी। उसकी ओर एक क्षण गौर से देखने के बाद डॉक्टर जीने से ऊपर चला गया।

वह चूहे के बारे में नहीं सोच रहा था। खून की उस धार ने उसका ध्यान उस चीज़ की ओर खींचा जो सारे दिन उसके दिमाग पर हावी रही थी। उसकी पत्नी, जो एक साल से बीमार थी, अगले दिन पहाड़ के एक सेनेटोरियम में भरती होने के लिए जाने वाली थी। उसने अपनी पत्नी को सोने के कमरे में लेटकर आराम करते हुए पाया। इतनी लम्बी और कठिन यात्रा से पहले ऐसा करने की वह उसे ताकीद कर गया था। पत्नी ने उसकी ओर देखकर मुस्करा दिया।

"जानते हो, मैं आज बेहतर महसूस कर रही हूँ!"

"डॉक्टर ने उस चेहरे को गौर से देखा जो सिरहाने के लैम्प की रोशनी में उसकी ओर मुखातिब था। उसकी पत्नी की उम्र तीस बरस की थी, और इस लम्बी बीमारी ने उसके चेहरे पर अपनी छाप छोड़ दी थी। फिर भी, उसे देखकर, डॉक्टर रियो के मन में यह विचार उठा कि वह कितनी छोटी दिखाई देती है, बिलकुल एक लड़की-जैसी! लेकिन उसे ऐसा शायद उस मुस्कान के कारण लगा, जो बीमारी के सारे चिह्नों को मिटा देती थी।

“अब सोने की कोशिश करो," उसने सलाह दी। "नर्स ग्यारह बजे आएगी और तुम्हें दोपहर की ट्रेन पकड़नी है।"

उसने पत्नी का पसीने से तर माथा चूमा। पत्नी की मुस्कराहट ने दरवाजे तक डॉक्टर का साथ दिया।

अगले दिन, 17 अप्रैल के आठ बजे जब डॉक्टर बाहर जा रहा था तब पोर्टर ने उसे रोककर बताया कि कुछ निकम्मे बदमाश छोकरे हॉल में तीन मरे हुए चूहे पटक गए हैं। साफ़ ज़ाहिर है कि उन चूहों को बड़े मज़बूत स्प्रिंग वाले शिंकजे में पकड़ा गया था, क्योंकि उनमें से खून की धार बह रही थी। पोर्टर बहुत देर तक चूहों को टाँगों से पकड़कर दरवाज़े में खड़ा, सड़क से गुज़रने वाले लोगों को गौर से देखता रहा था। उसका ख़याल था कि शायद शरारती छोकरे खीसें निपोरेंगे या मज़ाक करेंगे, जिससे उनकी पोल खुल जाएगी। लेकिन उसकी यह कोशिश बेकार गई।

"लेकिन मैं उनको पकड़कर ही दम लूँगा,” माइकेल ने आशापूर्वक कहा।

इस घटना से हैरान रियो ने उस दिन पहले शहर के छोर की बस्तियों का मुआयना करने का फैसला किया, जहाँ उसके गरीब मरीज़ रहते थे। इन मोहल्लों में कूड़े-कचरे की सफ़ाई काफ़ी दिन चढ़े होती थी, और जब वह अपनी मोटर ड्राइव करते हुए सीधी, धूल-भरी सड़कों से गुज़रा तो उसने सड़क के दोनों ओर फुटपाथ के किनारे रखे कूड़े के कनस्तरों पर नज़र डाली। एक सड़क पर ही डॉक्टर ने गिना कि सब्जियों के छिलकों और दूसरे कचरे से भरे कनस्तरों के ऊपर एक दर्जन से भी ज़्यादा मरे चूहे पड़े थे।

उसे अपना पहला मरीज़, जो अर्से से दमे से पीड़ित था, सड़क की जानिब वाले उस कमरे के भीतर बिस्तर में मिला, जो डाइनिंग-रूम और बेडरूम दोनों का काम देता था। यह मरीज़ कठोर और खुरदरे चेहरे वाला एक बूढ़ा स्पेनवासी था। उसके सामने चादर पर सूखी मटर से भरे दो पतीले रखे हुए थे। जब डॉक्टर कमरे में दाख़िल हुआ उस वक़्त वह बूढ़ा बिस्तर में बैठा, अपनी गरदन को पीछे की ओर मोड़कर साँस लेने की कोशिश में हाँफते हुए हवा सुड़क रहा था। उसकी पत्नी पानी का एक कटोरा लेकर आई।

इंजेक्शन लगते वक़्त वह बोला, “हाँ तो डॉक्टर, वे अब बड़ी तादाद में निकलकर बाहर आने लगे हैं, क्या आपने भी देखा है?"

"इसका मतलब चूहों से है," उसकी पत्नी ने बताया, “पड़ोसी को अपनी दहलीज़ पर तीन चूहे मिले।"

“अरे, वे अब निकलकर बाहर आ रहे हैं, आप कड़े के कनस्तरों में उनको दर्जनों की तादाद में पड़े हुए देख सकते हैं। यह भूख है, बस भूख, जिसने उन्हें बाहर निकलने के लिए मजबूर कर दिया है।"

रियो को जल्द ही पता चल गया कि शहर के उस हिस्से में चूहे बातचीत का सबसे बड़ा विषय बन चुके थे। मरीज़ों के घरों का राउंड करने के बाद डॉक्टर मोटर में बैठकर घर आ गया।

“सर, आपका एक तार आया है, जो ऊपर रखा है," माइकेल ने उसे ख़बर दी।

डॉक्टर ने उससे पूछा कि उसे और चूहे तो नहीं दिखाई पड़े।

"नहीं, और नहीं दिखाई दिए। मैं बड़ी मुस्तैदी से निगरानी कर रहा हूँ। मेरे यहाँ रहते उन छोकरों को शरारत करने की जुर्रत नहीं होगी।" पोर्टर ने जवाब दिया।

तार में रियो की माँ ने ख़बर दी थी कि वह कल आ रही है। वह उसकी पत्नी की गैर-मौजूदगी में उसका घर सँभालेगी। अपने फ़्लैट पर पहँचकर डॉक्टर ने देखा कि नर्स पहले ही आ चुकी है। उसने अपनी पत्नी की ओर देखा। वह दरजी का सिला हुआ सूट पहने थी और उसने अपने चेहरे पर मेकअप भी किया था। डॉक्टर उसकी ओर देखकर मुस्कराया।

"बहुत खूब, तुम बड़ी अच्छी लग रही हो!" उसने कहा।

कुछ ही देर बाद वह अपनी पत्नी को ट्रेन की 'स्लीपिंग कार' में बिठा रहा था। पत्नी ने डिब्बे में चारों ओर नज़र दौड़ाकर देखा।

“यह सचमुच हमारे लिए बहुत महँगा है, है न?"

"इसकी फ़िक्र मत करो,” रियो ने उत्तर दिया, “यह तो करना ही था।"

"सुनो, यह चूहों का क्या क़िस्सा है, जिसकी हर जगह चर्चा है?"

“मैं इसकी वजह नहीं बता सकता। बड़ी अजीब-सी बात है, इसमें शक नहीं। लेकिन यह क़िस्सा जल्द ही ख़त्म हो जाएगा।"

फिर उसने बड़ी जल्दी में अपनी पत्नी से माफ़ी माँगी। उसने कहा कि उसे उसकी और अच्छी तरह देखभाल करनी चाहिए थी। वह इस बारे में बहुत लापरवाह रहा था। लेकिन जब उसकी पत्नी ने अपना सिर हिलाकर उसे ऐसा न कहने से रोकना चाहा तो वह बोला, “खैर, अब तुम जब लौटकर आओगी तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। हम नए सिरे से ज़िन्दगी शुरू करेंगे, तुम और मैं, डियर!"

"बिलकुल ठीक!" पत्नी की आँखें चमक रही थीं। “आओ, हम लोग नए सिरे से ज़िन्दगी शुरू करें।"

लेकिन फिर उसने अपना मुँह दूसरी ओर फेर लिया और ऐसा लगा जैसे डिब्बे की खिड़की बाहर प्लेटफार्म पर जल्दी और घबराहट में एक-दूसरे से टकराते हुए लोगों को देख रही हो। इंजन की आवाज़ उनके कानों तक पहुँची। उसने प्यार से अपनी पत्नी को उसका पहला नाम लेकर पुकारा। जब उसने डॉक्टर की ओर मुँह फेरा तो डॉक्टर ने देखा कि उसका चेहरा आँसुओं से तर था।

“नहीं, रोओ नहीं,” वह बुदबुदाया। आँसुओं के पीछे मुस्कान लौट आई, किंचित कसी हुई-सी। फिर उसने एक गहरी साँस ली।

“अच्छा, अब तुम जाओ! सब ठीक हो जाएगा।"

रियो ने उसे अपनी बाँहों में भर लिया, फिर वह उतरकर प्लेटफार्म पर आ गया। अब वह उसकी मुस्कान को खिड़की से ही देख सकता था।

"प्लीज़ डियर, अपनी खूब देखभाल करना,” वह बोला।

लेकिन वह उसकी बात न सुन सकी।

प्लेटफार्म से बाहर निकलते वक़्त फाटक के पास पुलिस मजिस्ट्रेट मोशिए ओथों से उसकी मुलाक़ात हो गई, जो इस वक़्त अपने छोटे बच्चे का हाथ पकड़े खड़ा था। डॉक्टर ने पूछा कि क्या वह भी वापस जा रहा है?

लम्बे, कद्दावर और साँवले मोशिए ओथों के व्यक्तित्व में एक 'दुनियादार' और किराये के मातमी की-सी झलक मिलती थी।

"नहीं,” मजिस्ट्रेट ने उत्तर दिया, “मैं मदाम ओथों को लेने आया है, जो मेरे परिवार से मिलने गई थीं।"

इंजन ने सीटी दी।

"ये चूहे, अब..." मजिस्ट्रेट ने कहना शुरू किया।

रियो एकाएक ट्रेन की तरफ़ लपका, लेकिन फिर मुड़कर फाटक की ओर चल पड़ा।

“क्या, चूहे?" वह बोला, “यह मामूली-सी बात है।"

बाद में उसे इस क्षण के बारे में इतना ही याद रहा कि रेलवे का एक कर्मचारी मरे हुए चूहों से भरा एक डब्बा बग़ल में दबाए वहाँ से गुज़र रहा था।

उसी दिन तीसरे पहर जब मरीज़ों का आना शुरू हुआ तो एक नौजवान रियो से मिलने आया। डॉक्टर को पता चला कि वह नौजवान पेशे से पत्रकार था और सुबह भी एक बार वहाँ आ चुका था। उसका नाम रेमन्द रेम्बर्त था। उसका क़द नाटा था और कन्धे चौकोर थे। उसके चेहरे से दृढ़ता का आभास मिलता था और उसकी पैनी आँखों से अक्लमन्दी ज़ाहिर होती थी। उसके समूचे व्यक्तित्व से ऐसा लगता था कि वह बुरी-से-बुरी परिस्थितियों में अपना सन्तुलन कायम रख सकता है। उसने खिलाड़ियों-जैसी पोशाक पहनी हुई थी। आते ही उसने काम की बात शुरू कर दी। उसके अख़बार ने, जो पेरिस के अग्रणी दैनिक अखबारों में एक था, उसे फ्रांस में रहने वाले अरब लोगों के रहन-सहन की परिस्थितियों, विशेषकर सफ़ाई, के विषय पर एक रिपोर्ट लिखने के लिए तैनात किया था।

रियो ने जवाब दिया कि जिन परिस्थितियों में अरब लोग रह रहे हैं वे अच्छी नहीं हैं, लेकिन रियो कुछ और कहने से पहले यह जानना चाहता था कि उस पत्रकार को सच्ची बात कहने की इजाज़त मिलेगी भी या नहीं।

“ज़रूर मिलेगी," रेम्बर्त ने जवाब दिया।

"मेरा मतलब है कि क्या तुम्हें मौजूदा परिस्थितियों की सरासर भर्त्सना करने की इजाज़त मिल सकेगी?" डॉक्टर ने समझाया।

“सरासर! सच पूछिए तो इस हद तक मैं नहीं जा पाऊँगा। लेकिन क्या परिस्थितियाँ इतनी बुरी हैं?"

"नहीं," रियो ने शान्तिपूर्वक कहा। परिस्थितियाँ इतनी बुरी नहीं थीं, लेकिन उसने सिर्फ यह जानने के लिए रेम्बर्त से सवाल पूछा था कि क्या रेम्बर्त सचाई से विश्वासघात किए बगैर तथ्यों को पेश कर सकेगा या नहीं।

"मुझे ऐसे बयानों में क़तई दिलचस्पी नहीं है, जिनमें किसी पहल को छिपाकर रखा जाता है। इसलिए मैं तुम्हारी रिपोर्ट के लिए कोई सूचना नहीं दूंगा।" रियो ने कहा।

पत्रकार मुस्कराया। “आप तो बिलकुल न्याय-मूर्ति की भाषा बोल रहे हैं।"

रियो ने बिना उत्तेजित हुए बताया कि वह न्याय-मूर्ति है, यह तो वह नहीं जानता। यह एक ऐसे व्यक्ति की भाषा है जो दुनिया से तंग आ चुका है, हालाँकि उसे मानव-जाति से बहुत लगाव है। उसने फैसला कर रखा है कि जहाँ तक उसका सवाल है वह बेइंसाफ़ी से कोई ताल्लुक़ नहीं रखेगा और सचाई में किसी तरह की मिलावट नहीं बर्दाश्त करेगा।

रेम्बर्त ने कन्धे सिकोड़ लिए और कुछ क्षण तक ख़ामोशी से डॉक्टर की तरफ़ देखता रहा। फिर वह कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और बोला, “मैं आपकी बात समझ गया।" डॉक्टर उसे दरवाज़े तक छोड़ने आया, “मुझे खुशी है कि तुमने मेरी बात को अन्यथा नहीं लिया," डॉक्टर ने कहा। "हाँ-हाँ, मैं समझ गया," रेम्बर्त ने दहराया, लेकिन उसकी आवाज़ में बेसब्री की झलक थी। “मुझे अफ़सोस है कि मैंने आपको परेशान किया।" हाथ मिलाते वक़्त रियो ने सुझाया कि वह अगर अपने अखबार के लिए कुछ अजीबोगरीब ‘कहानियों की तलाश में हो तो उसे चाहिए कि वह मरे हुए चूहों की उस असाधारण संख्या के बारे में लिखे जो इन दिनों शहर में हर जगह मिल रहे हैं। “आह!" रेम्बर्त ने उत्साहपूर्वक कहा, "मैं इस बात में ज़रूर दिलचस्पी ले सकता हूँ।"

अपने मरीजों को देखने के लिए डॉक्टर पाँच बजे शाम को जब दुबारा घर से निकला तो जीने पर डॉक्टर को भारी-भरकम शरीर, झुर्रियों से भरे विशाल चेहरे और घनी भौंहों वाला एक नौजवान मिला। वह उसे पहले दोएक बार सबसे ऊपर वाली मंज़िल में मिला था, जहाँ कुछ स्पेनिश नृत्यकार रहते थे। सिगरेट से कश खींचते हुए जीन तारो अपने सामने की सीढ़ी पर एक दम तोड़ते चूहे की छटपटाहट का निरीक्षण कर रहा था। उसने सिर उठाकर ऊपर की ओर देखा और कुछ देर तक उसकी नज़र डॉक्टर के ऊपर टिकी रही। फिर उसने डॉक्टर का अभिवादन करके कहा कि यह कुछ अजीब-सी बात है कि ये सब चूहे मरने के लिए अपने बिलों से निकलकर बाहर आ रहे हैं।

"बड़ी अजीब बात है,” रियो ने सहमति प्रकट की, “और इन्हें देखकर हरेक को कोफ़्त होती है।"

“एक मायने में ही डॉक्टर, एक मायने में ही। हमने पहले कभी ऐसा होते नहीं देखा, बस इसीलिए। खुद मुझे तो यह बात काफ़ी दिलचस्प लगती है, सचमुच बहुत दिलचस्प।"

तारो ने अपने माथे से लट हटाने के लिए बालों में उँगलियाँ फेरी और फिर एक बार चूहे की ओर देखा जिसकी हरकत बन्द हो रही थी। फिर वह रियो की ओर देखकर मुस्कराया।

"लेकिन डॉक्टर, दरअसल तो यह पोर्टर की जिम्मेवारी है न? क्यों?"

और संयोग से रियो को फ़ौरन पोर्टर नज़र आ गया। वह सड़क के दरवाजे के पास दीवार से पीठ सटाकर बैठा था। वह थका दिखाई दे रहा था और उसका चेहरा, जो आमतौर पर लाल रहता था, इस वक़्त पीला पड़ा हुआ था।

“हाँ, मैं जानता हूँ।" बूढ़े ने कहा। रियो ने उसे एक और चूहे के मरने की ख़बर भी दे दी थी। "मुझे एक साथ दो-दो तीन-तीन मरे चूहे मिल जाते हैं। लेकिन हमारी सड़क के बाक़ी मकानों में भी यही कुछ हो रहा है।"

पोर्टर उदास और परेशान दिखाई दे रहा था और खोया-खोया-सा अपनी गरदन खुजला रहा था। रियो ने पूछा कि उसकी तबीयत कैसी है। पोर्टर ने कहा कि वह बीमार तो नहीं है, फिर भी उसकी सेहत अच्छी नहीं है। उसके ख़याल में इसकी वजह परेशानी थी। इन कमबख्त चूहों ने उसे 'सदमा-सा' पहँचाया था। जब चूहे बिलों से निकलकर सारी इमारत में मरना बन्द कर देंगे तब जाकर कहीं उसे चैन आएगा।

अगले दिन, 18 अप्रैल की सुबह जब डॉक्टर स्टेशन से अपनी माँ को लेकर लौट रहा था तो उसने देखा कि माइकेल पहले से भी ज्यादा परेशान है। तहखाने से लेकर बरसाती तक जीने में एक दर्जन के क़रीब मरे चूहे पड़े थे। सड़क के सब मकानों के कड़े के कनस्तर चूहों से भरे थे।

डॉक्टर की माँ को इस बात से ज़रा भी परेशानी नहीं हुई।

"कभी-कभी ऐसा ही होता है।" माँ ने सन्दिग्ध स्वर में कहा। वह नाटे क़द और चाँदी जैसे सफ़ेद बालों वाली महिला थी जिसकी काली आँखों से कोमलता टपकती थी। उसने कहा, “मुझे फिर तुमसे मिलकर बेहद खुशी हुई है बर्नार्द! खैर जो भी हो, चूहे इस खुशी को नहीं बदल सकते।"

डॉक्टर ने सिर हिलाकर रज़ामन्दी ज़ाहिर की। दरअसल माँ की मौजूदगी में डॉक्टर को हर चीज़ आसान लगने लगती थी।

फिर भी उसने म्यूनिसिपैलिटी के दफ्तर में टेलीफ़ोन किया। वह चूहे मारने वाले उस महकमे के इंचार्ज से अच्छी तरह वाकिफ़ था। उसने पूछा, क्या म्यूनिसिपैलिटी को इस बात की खबर है कि चूहे बिलों से निकलनिकल कर मर रहे हैं? हाँ, मर्सियर ने जवाब दिया कि उसे मालूम है। म्यूनिसिपैलिटी के दफ्तरों में, जो बन्दरगाह के नज़दीक हैं, पचास मरे हुए चूहे पाए गए थे। दरअसल मर्सियर बहुत परेशान था। क्या डॉक्टर की राय में यह संजीदा बात थी? रियो ने कहा कि वह निश्चित रूप से तो कुछ नहीं कह सकता, लेकिन उसका ख़याल है कि सफ़ाई के महकमे को ज़रूर कोई क़दम उठाना चाहिए।

मर्सियर की भी यही राय थी। उसने कहा, “अगर तुम्हारा ख़याल है कि कुछ करना चाहिए तो मैं एक ऑर्डर जारी करवा दूंगा।"

“ज़रूर कुछ करना चाहिए।" रियो ने जवाब दिया।

डॉक्टर के घर सफ़ाई करने वाली नौकरानी ने उसे अभी बताया था कि जिस फैक्टरी में उसका पति काम करता है वहाँ सैकड़ों मरे चूहे इकट्ठे किए गए हैं।

इस वक़्त तक हमारे शहर के लोगों में घबराहट के लक्षण दिखाई देने लगे थे, क्योंकि 18 अप्रैल के बाद से फैक्टरियों और गोदामों में ढेरों मरे या मरणासन्न चूहे पाए गए थे। कई जगह तो चूहों को यंत्रणा से बचाने के लिए उन्हें जान-बूझकर मार दिया गया था। शहर के बाहर की बस्तियों से लेकर शहर के केन्द्रीय हिस्से तक तमाम उन गलियों में, जहाँ डॉक्टर अपने मरीज़ों को देखने गया था, हर सड़क पर कूड़े के कनस्तर मरे हुए चूहों से भरे थे। नालियों में भी मरे हुए चूहों की कतारें लगी थीं। उस दिन सांध्यकालीन अख़बारों ने यह समस्या उठाई और पूछा कि म्यूनिसिपैलिटी के मेम्बर कोई क़दम उठाने जा रहे हैं या नहीं, जनता को इन घृणित चूहों से जो परेशानी हो रही है उस संकटकालीन स्थिति का सामना करने के लिए कौन-से क़दम सोचे जा रहे हैं? दरअसल म्यूनिसिपैलिटी ने कुछ भी नहीं सोचा था। लेकिन अब स्थिति पर विचार करने के लिए एक मीटिंग बुलाई गई। सफ़ाई के महकमे को ऑर्डर भिजवाया गया कि हर रोज़ सुबह वे मरे हुए चूहों को जमा करा लिया करें और उन चूहों को म्यूनिसिपैलिटी की दो गाड़ियों में भरकर शहर की भट्ठी में जलाने के लिए भेज दिया जाए।

लेकिन कुछ दिनों में स्थिति और भी बिगड़ गई। सड़कों पर मरे हुए चूहों की तादाद बढ़ती गई और हर रोज़ सुबह भंगियों को पहले से भी ज्यादा गाड़ियाँ मरे हुए चूहों से भरनी पड़ती थीं। चौथे दिन चूहों ने फिर बिलों से निकलकर एक साथ मरना शुरू कर दिया। तहखानों, निचली मंज़िलों और नालियों से वे लड़खड़ाती हुई क़तारों में निकलकर दिन की रोशनी में आते, बेबस छटपटाते और फिर पैरों की उँगलियाँ सिकोड़कर सूत कातने-जैसी हरकत करके घबराए हुए दर्शकों के क़दमों पर पछाड़ खाकर मर जाते। रात के वक़्त गलियों और बरामदों में मरते समय की उनकी हलकी चीखें साफ़ सुनाई देती थीं। हर रोज़ सुबह मरे हुए चूहों की कतारें पड़ी हुई मिलती। हर चूहे की थूथनी पर लाल फूल की तरह की खून की एक गाँठ-सी जमी रहती। कुछ चूहों के फूले हुए शरीर सड़ने लग जाते थे। कुछ के शरीर अकड़े हुए होते और उनकी पूँछे सीधी खड़ी होती, यहाँ तक कि शहर के व्यस्त भागों में भी सीढ़ियों के आगे और पिछवाड़े के आँगनों में उनके छोटे-छोटे ढेर लगे रहते। कुछ चूहे अकेले में मरने के लिए दफ्तरों के कमरों, खेलने के मैदानों और जलपान-गृहों के बारजों के बीचोबीच जा पहुँचते थे। हमारे नगरवासी यह देखकर हैरान रह जाते कि प्लेस द आर्स, बलेवार और स्टैंड जैसी चहलपहल वाली जगहों पर भी मरे चूहों की वीभत्स लाशें जगह-जगह छितरी हुई हैं। सुबह सूरज निकलने के समय शहर में जो झाड़-सफ़ाई होती थी, उसके बाद कुछ देर तक तो शान्ति रहती, लेकिन फिर धीरे-धीरे चूहों का निकलना शुरू हो जाता और सारे दिन उनकी संख्या बढ़ती जाती। रात को अक्सर लोगों के पाँव के नीचे अभी ताज़े मरे हुए चूहों के गोल और गरम शरीर आ जाते। लगता था जैसे कि जिस ज़मीन पर हमारे मकान खड़े थे, उसके पेट में से बहुत दिन के जमा विषैले रस खारिज हो रहे हों और उसकी आँतों में जो घाव और पीप के फोड़े बन गए थे वे बाहर निकल आए हों। अब आप अनुमान लगा सकते हैं कि इससे हमारे छोटे-से शहर में कैसा आतंक छा गया होगा, जहाँ की ज़िन्दगी अब तक इतनी शान्तिपूर्ण थी, लेकिन जिसे एकाएक इन घटनाओं ने इतने ज़ोर से झकझोर दिया था, जैसे एक तन्दुरुस्त आदमी को एकाएक तेज़ बुखार चढ़ जाए और उसे महसूस हो कि उसके खून में आग लग गई है और दावानल की तरह उसकी लपटें उसकी रक्त-शिराओं में दौड़ रही हैं।

हालत यहाँ तक बिगड़ गई कि रेसदाक सूचना-विभाग ने (जो हर विषय पर पूछे गए प्रश्नों का तुरन्त और सही-सही उत्तर देता था और जो प्रचार के रूप में रेडियो से मुफ्त इन्फॉर्मेशन सर्विस चलाता था) 25 अप्रैल को अपनी वार्ता इस घोषणा से शुरू की कि अकेले उसी दिन 6231 मरे चूहे जमा करके जलाए गए थे। हमारी आँखों के आगे कई दिन से जो हो रहा था, उसकी सम्पूर्ण और सही तस्वीर पेश करके इस संख्या ने जैसे हमारी जनता की हिम्मत को एक ज़बरदस्त धक्का दिया। अब तक लोग एक वीभत्स दृश्य से किंचित परेशान थे और आपस में बड़बड़ाते रहते थे, लेकिन अब उन्होंने महसूस किया कि इस विचित्र घटना में, जिसका विस्तार नापना सम्भव नहीं था और जिसके मूल-स्रोत का पता नहीं लगाया जा सकता था, शायद भयानक और ख़तरनाक सम्भावनाएँ छिपी हुई हैं। सिर्फ वह बूढ़ा स्पैनिश ही, जिसके दमे का इलाज डॉक्टर रियो कर रहा था, अपने हाथ मल-मलकर इससे प्रसन्न था, “अब वे बाहर आ रहे हैं! अब वे बाहर आ रहे हैं!"

28 अप्रैल को जब रेसदाक ब्यूरो ने घोषणा की कि आज आठ हज़ार चूहे जमा किए गए हैं तो सारे शहर में डर और घबराहट की लहर-सी फैल गई। लोगों ने अधिक कारगर कदम उठाने की माँग की, अधिकारियों पर लापरवाही दिखाने का आरोप लगाया और जिन लोगों के घर समुद्रतट पर थे, उन्होंने वहाँ चले जाने की धमकी दी, यद्यपि अभी साल शुरू ही हुआ था। लेकिन अगले दिन ब्यूरो ने सूचना दी कि यह घटना एकाएक ही बन्द हो गई है और सफ़ाई-विभाग ने आज सिर्फ थोड़े-से ही मरे चूहे जमा किए हैं। इससे सब लोगों ने चैन की साँस ली।

लेकिन इसी दिन के दोपहर की बात है कि डॉक्टर रियो ने लौटकर जब अपने फ़्लैट की इमारत के सामने कार खड़ी की तो चौकीदार माइकेल को गली के सिरे से अपनी ओर आते देखा। वह अपने को घसीटते हुए चल रहा था, उसका सिर झुका हुआ था और बाँहें और टाँगें अजब ढंग से फैली हुई थीं और वह इस तरह झटके दे-देकर चल रहा था जैसे यंत्र-चालित गुड़िया हो। बूढ़ा माइकेल एक पादरी की बाँह का सहारा लेकर चल रहा था, जिसे रियो पहचानता था। वह फ़ादर पैनेलो था, विदवान और जोशीला जेसुइट पादरी, जिससे वह कई बार मिल चुका था और जिसके बारे में लोगों की बड़ी ऊँची धारणा थी-उन लोगों की भी जो धर्म के प्रति उदासीन थे। रियो कार में बैठा उनके पास आने की प्रतीक्षा करता रहा। उसने देखा कि माइकेल की आँखें बुखार से चमक रही हैं और वह बड़ी मुश्किल से साँस ले रहा है। बूढ़े ने बताया कि कुछ 'बेचैनी-सी' महसूस करने पर वह खुली हवा में साँस लेने के लिए बाहर चला गया था। लेकिन वहाँ जाकर उसे अपने शरीर में हर जगह दर्द महसूस होने लगा-गरदन में, बगलों में और जाँघों के बीच में। इसलिए मजबूर होकर वह लौट आया और उसे फ़ादर से अपनी बाँह का सहारा देने के लिए कहना पड़ा।

“इन जगहों पर सिर्फ सूजन आ गई है, लेकिन उनमें दर्द बहुत तीखा है,” उसने कहा। “ज़रूर मैंने अपने को थका लिया होगा।"

कार में से बाहर की ओर झुककर डॉक्टर ने माइकेल की गरदन पर हाथ फेरा! एक सख़्त लकड़ी की गाँठ-जैसी गिल्टी वहाँ उभर आई थी।

“फ़ौरन जाकर बिस्तर में लेट जाओ और अपना टेम्प्रेचर लो। मैं तीसरे पहर तुम्हें देखने आऊँगा।"

बूढ़े के जाने के बाद डॉक्टर रियो ने फ़ादर पैनेलो से पूछा कि चूहों की इस विचित्र घटना के बारे में उसका क्या ख़याल है?

“ओह, मेरा ख़याल है कि उनमें कोई महामारी फैल गई है।" गोल और बड़े चश्मे के पीछे से पादरी की आँखें मुस्करा रही थीं।

रियो जिस वक्त अपनी पत्नी के तार को दोबारा पढ़ रहा था, जिसमें उसने सैनेटोरियम में अपने पहँचने की सूचना दी थी कि टेलीफ़ोन की घंटी बज उठी। यह उसके एक पुराने मरीज़ का टेलीफ़ोन था, जो म्यूनिसिपैलिटी के दफ्तर में क्लर्क था। वह बहुत दिन से हृदय की रक्तनली में सिकुड़न आ जाने के रोग से पीड़ित था और चूँकि वह गरीब था, इसलिए डॉक्टर रियो ने उससे फ़ीस नहीं ली थी।

"शुक्रिया डॉक्टर कि आप मुझको भूले नहीं हैं। लेकिन मैं इस वक़्त किसी और के लिए आपको तकलीफ़ दे रहा है। हमारे बगल के मकान में जो आदमी रहता है, वह एक दुर्घटना का शिकार हो गया है। मेहरबानी करके फ़ौरन आइए; सख़्त ज़रूरत है।" उसकी आवाज़ से लगता था जैसे उसकी साँस फूल रही हो।

रियो ने तेज़ी से सोचा। ठीक है, वह चौकीदार को बाद में देख लेगा। कुछ मिनट के बाद ही उसने शहर के किनारे के मोहल्ले रू फ़ेदर्ब के एक छोटे-से मकान में प्रवेश किया। टूटे-फूटे और बदबूदार जीने के बीच में ही म्यूनिसिपल क्लर्क जोजेफ़ ग्रान्द से उसकी मुलाकात हो गई। वह करीब पचास की उम्र का आदमी था; लम्बा और झुकी कमर, दुर्बल कन्धों, पतले अंगों और पीली-सी मूंछों वाला आदमी।

“अब उसकी हालत पहले से बेहतर है," उसने डॉक्टर को बताया, "लेकिन तब मुझे लगा था कि सचमुच उसका वक़्त क़रीब आ गया है।" फिर उसने ज़ोर से अपनी नाक साफ़ की।

दूसरी मंज़िल में एक दरवाज़े पर बाईं ओर डॉक्टर ने लाल रंग की खड़िया मिट्टी से कुछ लिखा हुआ देखा-अन्दर आ जाओ। मैंने अपने आपको फाँसी दे ली है।

दोनों कमरे में दाखिल हुए। एक लैम्प के कंडे से बँधी रस्सी नीचे लटक रही थी। पास में एक कुर्सी पड़ी थी। खाने की मेज़ को सरकाकर कोने में कर दिया गया था। लेकिन रस्सी ख़ाली लटक रही थी।

“मैं ऐन वक्त पर पहँचा था।" लगता था जैसे ग्रान्द को बोलने से पहले शब्द तलाश करने पड़ते हों, हालाँकि वह अपनी बात हमेशा सीधे-सादे शब्दों में ही कहता था। “मैं घर से बाहर जा रहा था कि मुझे कुछ आवाज़ सुनाई दी। मैंने जब दरवाज़े पर लिखी वह इबारत पढ़ी तो मुझे लगा जैसे यह...मज़ाक़ हो। तभी मुझे एक अजीब किस्म की कराह सुनाई दी। मेरा खून एकदम ठंडा पड़ गया।" उसने अपना सिर खुजलाया और फिर बोला, “मेरे ख़याल में खुदकुशी करने का... यह बहुत तकलीफ़देह तरीक़ा है। सो मैं अन्दर घुस गया।"

ग्रान्द ने एक दरवाज़ा खोला और वे लोग एक साफ़-सुथरे, लेकिन मामूली तौर पर सजे हुए कमरे में दाखिल हुए। दीवार के सहारे एक पीतल के फ्रेम का पलंग रखा था, जिस पर एक छोटे क़द का गोलमटोल आदमी लेटा ज़ोर-ज़ोर से साँस ले रहा था। उसने आगन्तुकों की ओर लाल आँखों से घूरकर देखा। एकाएक रियो जहाँ-का-तहाँ खड़ा रह गया। उस आदमी की साँसों के बीच उसे चूहों की हल्की-सी चीखें सुनाई दीं। लेकिन उसे कमरे के कोनों में कोई चीज़ रेंगती हुई नहीं दिखाई दी। फिर वह पलंग के पास गया। साफ़ ज़ाहिर था कि वह आदमी ज़्यादा ऊँचाई से या तेज़ी से नीचे नहीं गिरा था, क्योंकि उसके कन्धे की हड्डियाँ टूटी नहीं थीं। दम घुटना तो खैर स्वाभाविक ही था। एक्स-रे फोटोग्राफ़ की ज़रूरत पड़ेगी। तब तक के लिए डॉक्टर ने उसे कपूर का एक इंजेक्शन दिया और उसे इत्मीनान दिलाया कि वह कुछ ही दिनों में बिलकुल ठीक हो जाएगा।

"शुक्रिया, डॉक्टर!" वह आदमी बड़बड़ाया।

रियो ने जब ग्रान्द से पूछा कि क्या उसने पुलिस को सूचना दे दी है, तो उसने अपना सिर झुका लिया।

“जी, सच तो यह है कि मैंने पुलिस को इत्तिला नहीं की। मैंने सोचा कि सबसे पहले मुझे चाहिए कि..."

"निस्सन्देह", रियो बीच में ही बोला, “मैं इसको देखता हूँ।"

लेकिन वह बीमार आदमी घबराकर बिस्तर पर बैठ गया और बोला कि अब वह बिलकुल ठीक है। दरअसल इसमें परेशान होने की तो कोई बात ही नहीं है।

"डरो नहीं," रियो ने कहा, “यह सिर्फ एक जाब्ते की कार्यवाही है। इससे अधिक नहीं। तो भी, मेरे सामने और कोई चारा नहीं। मुझे तो पुलिस को सूचना देनी ही पड़ेगी।"

"ओह!" वह आदमी फिर बिस्तर पर लुढ़क गया और धीरे-धीरे सुबकने लगा।

ग्रान्द, जो दोनों की बातचीत के बीच अपनी मूंछे ऐंठता रहा था, पलंग के पास गया।

"बस, बस, मोशिए कोतार्द! ज़रा मामले को समझने की कोशिश करो। तुम्हारे दिमाग में ऐसा करने का फितूर फिर सवार हुआ तो लोग डॉक्टर को दोषी ठहराएँगे कि उन्होंने पुलिस को इत्तिला क्यों नहीं दी।"

कोतार्द ने आँसू-भरी आँखों से उसको आश्वासन दिलाया कि अब ऐसा करने की रत्ती-भर आशंका नहीं है। उसे पागलपन का दौरा-सा आया था, लेकिन वह दौरा अब ख़त्म हो गया है और अब उसकी इच्छा है कि उसे तंग न किया जाए। रियो दवाई का नुस्खा लिख रहा था।

"बहुत अच्छा," वह बोला, "हम फ़िलहाल इस बारे में ख़ामोश रहेंगे। एक या दो दिन बाद मैं फिर आकर तुम्हें देख जाऊँगा। लेकिन याद रखना, फिर ऐसी पागलपन की हरकत न करना।"

जीने से उतरते वक्त उसने ग्रान्द को बताया कि वह पुलिस को इस मामले की सूचना देने के लिए मजबूर है, लेकिन वह पुलिस-इंस्पेक्टर से कहेगा कि वह अभी दो-तीन दिन तक इसकी जाँच-पड़ताल न करे।

"लेकिन किसी को रात के वक़्त कोतार्द पर नज़र रखनी चाहिए,” वह बोला, “क्या उसका कोई रिश्तेदार यहाँ है?"

"मेरी जानकारी में कोई नहीं है। लेकिन मैं खुद उसके पास रात को रह सकता हूँ। मैं यह तो नहीं कह सकता कि मैं उसको बखूबी जानता हूँ, लेकिन पड़ोसी की मदद तो करनी ही चाहिए, है न?"

जीने से उतरते वक़्त रियो की नज़र बरबस अँधेरे कोनों में जा पड़ती थी। उसने ग्रान्द से पूछा कि क्या शहर के इस हिस्से से चूहे एकदम गायब हो गए हैं?

ग्रान्द को इसका कुछ भी अन्दाज़ नहीं था। यह सच है कि उसने चूहों के बारे में कुछ चर्चा सुनी थी, लेकिन वह ऐसी अफ़वाहों पर ध्यान देने का आदी नहीं था। “मुझे और बातों पर सोचने से ही छुट्टी नहीं मिलती," वह बोला।

रियो जाने की जल्दी में था, इसलिए उसने फ़ौरन हाथ मिलाया और चल पड़ा। उसे अपनी पत्नी को पत्र लिखना था और सबसे पहले वह चौकीदार को देखना चाहता था।

अख़बार बेचने वाले सबसे ताज़ा ख़बर चिल्ला-चिल्लाकर सुना रहे थेचूहे एकदम गायब हो गए हैं। लेकिन रियो ने अपने मरीज़ को पलंग की पट्टी पर झुका हुआ पाया। वह एक हाथ से अपने पेट को और दूसरे हाथ से गरदन को दबा रहा था, और चिलमची में गुलाबी रंग के पित्त की उल्टी कर रहा था। कुछ देर तक उल्टी करने के बाद माइकेल बिस्तर पर लेट गया। उसका दम घुट रहा था। उसे 103 डिग्री बुख़ार था, गले, बग़ल और जाँघों की गिल्टियाँ सूज रही थी और उसकी जाँघों में दो काले धब्बे उभरने लगे थे। अब वह अन्दरूनी दर्दो की शिकायत करने लगा था।

"लगता है मेरे भीतर आग जल रही है," वह पिनपिनाया, “यह हरामज़ादी मुझे भीतर से जला रही है।"

बुखार से पपड़ी पड़े होंठों के बीच से बोलने में उसको कठिनाई हो रही थी और वह सिरदर्द और आँसुओं से बाहर को निकल आई आँखों से डॉक्टर को टकटकी बाँधकर देखने लगा। उसकी पत्नी ने चिन्तापूर्वक डॉक्टर रियो की ओर देखा, जो अभी तक चुप था।

"प्लीज़ डॉक्टर, इसे क्या हुआ है?"

“यह कुछ भी हो सकता है। अभी निश्चित रूप से इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। इसे हल्का खाना देना और खूब पानी पिलाना।"

मरीज़ न बुझने वाली प्यास की शिकायत करता रहा था।

अपने फ़्लैट में लौटकर रियो ने अपने सहयोगी रिचर्ड को टेलीफ़ोन किया, जो शहर का प्रमुख डॉक्टर था।

"नहीं, मैंने अभी तक कोई असाधारण बात नहीं देखी है," रिचर्ड ने कहा।

"क्या कोई बुखार का मामला नहीं देखा, साथ में गिल्टियाँ भी हों?"

“ज़रा ठहरो! हाँ, मेरे पास सूजी हुई गिल्टियों वाले दो मामले हैं।"

"गिल्टियाँ क्या असाधारण रूप से सूजी हुई हैं?"

“खैर, इसका फ़ैसला तो इस बात पर निर्भर करता है कि तुम ‘साधारण' का क्या मतलब लगाते हो,” रिचर्ड ने उत्तर दिया।

जो भी हो, उस रात चौकीदार का बुख़ार 104 डिग्री तक चढ़ गया और वह सरसाम में लगातार 'ये चूहे,' 'ये चूहे' की ही रट लगाए रहा। रियो ने गिल्टी का मुँह बन्द करने की कोशिश की। माइकेल को जब तारपीन की चुभन महसूस हुई तो वह चिल्लाया, “हरामज़ादे!"

गिल्टियाँ और भी सूज गई थीं और लगता था जैसे गोश्त में ठोस गाँठेंसी गड़ी हुई हों। माइकेल की पत्नी एकदम थकान से चूर हो गई थी।

“उसके साथ बैठो, और अगर ज़रूरत पड़े तो मुझे बुला लेना," डॉक्टर ने कहा।

अगले दिन 30 अप्रैल को आसमान नीला था और उस पर कोहरे की झीनी-सी चादर बिछी थी। गरम और कोमल बयार बह रही थी और शहर से बाहर की बस्तियों से फूलों की भीनी सुगन्ध ला रही थी। सड़कों पर प्रात:कालीन कलरव बाक़ी दिनों की अपेक्षा अधिक उल्लासपूर्ण और ऊँचा सुनाई दे रहा था, क्योंकि आज का दिन हमारे शहर के हर निवासी के लिए ज़िन्दगी का एक नया पैगाम लेकर आया था। एक हफ्ते से डर और आतंक का जो बादल छाया हुआ था, वह छितरा गया था। रियो भी जब चौकीदार को देखने गया, तब ऐसे ही आशावादी मूड में था। पहली डाक से उसे अपनी पत्नी का जो पत्र मिला था, उसने भी उसके हृदय में प्रसन्नता भर दी थी।

बूढ़े माइकेल का टेम्प्रेचर उतरकर 99 डिग्री पर आ गया था और यद्यपि वह बहुत कमज़ोर दिखाई दे रहा था, फिर भी वह मुस्करा रहा था।

"इसकी हालत पहले से बेहतर है, है न डॉक्टर?" उसकी पत्नी ने पूछा।

“हाँ, लेकिन अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।"

दोपहर के समय बीमार माइकेल का टेम्प्रेचर एकाएक फिर 104 डिग्री तक चढ़ गया। अब वह लगातार सरसाम की अवस्था में था और फिर उल्टियाँ करने लगा था। गरदन की गिल्टियाँ छूने से भी दर्द करने लगी और लगता था जैसे वह दोनों हाथों से सिर पकड़कर उसे अपने शरीर से दूर रखने के लिए दमतोड़ कोशिश कर रहा हो। उसकी पत्नी मुलायम हाथों से उसके पाँव पकड़े बैठी थी। उसने याचनापूर्ण नेत्रों से रियो की ओर देखा।

"सुनो,” रियो ने कहा, "हमें इसको अस्पताल ले जाना होगा। वहाँ हम इसे एक नई दवा देकर देखेंगे। मैं एम्बुलेंस गाड़ी के लिए टेलीफ़ोन किए देता हूँ।"

" दो घंटे बाद रियो और मदाम माइकेल एम्बुलेंस गाड़ी में बैठे चिन्तापूर्वक मरीज़ की ओर देख रहे थे। माइकेल के खुले गन्दगी से भरे हुए मुँह से रह रहकर कुछ शब्द निकल रहे थे। वह बार-बार दुहरा रहा था, “ये चूहे! ये हरामज़ादे चूहे!" उसका चेहरा बेजान और सलेटी हरे रंग का हो गया था। उसके रक्तहीन होंठ सफ़ेद पड़ गए थे और हठात झटकों के साथ उसकी साँस चल रही थी। रक्त की शिराओं में गाँठें पड़ जाने से उसके हाथ-पैर फैले हुए थे। वह एम्बुलेंस की बर्थ में इस तरह घुसकर पड़ा था जैसे वह उसमें ही अपने-आपको दफ़न कर रहा हो या जैसे जमीन की गहराइयों से कोई आवाज़ उसे नीचे की ओर बुला रही हो। लगता था जैसे बेचारे का किसी अनदेखे दबाव से दम घुट रहा था। उसकी पत्नी सुबक-सुबककर रो रही थी...

"डॉक्टर, क्या कोई उम्मीद बाक़ी नहीं रही?"

“वह मर चुका है।”

पहला भाग : 3

माइकेल की मौत के साथ, कह सकते हैं कि हैरतअंगेज़ अपशकुनों का पहला दौर खत्म हुआ और दूसरा दौर शुरू हुआ, जो पहले के मुकाबले कहीं ज़्यादा मुश्किल था, क्योंकि उसमें शुरुआत के दिनों की परेशानी धीरे-धीरे भयानक डर के रूप में बदल गई। बाद की घटनाओं की रोशनी में पहले दौर का जायजा लेते समय हमारे नगरवासियों ने महसूस किया कि उन्होंने स्वप्न में भी कभी इस बात की कल्पना नहीं की थी कि दिन-दहाड़े सारे-के-सारे चूहों की मौत या अजब क़िस्म की बीमारियों से चौकीदार की मौत-जैसी वीभत्स घटनाओं के लिए हमारा शहर ही चुना जाएगा। इस बारे में उनका विचार गलत था और ज़ाहिर है कि उसको बदलने की ज़रूरत थी। फिर भी, अगर मामला यहीं पर ख़त्म हो जाता और आगे न बढ़ता तो आदतन सोचने का यह ढंग ही बना रहता। लेकिन हमारे समाज के और सदस्यों को भी,जो सिर्फ नौकर-चाकर वर्ग के या गरीब ही नहीं थे, उस रास्ते से ही जाना पड़ गया, जिस रास्ते से माइकेल मौत के मुँह में गया था। जब ऐसा हुआ तब भय और भय के साथ गम्भीर चिन्ता का दौर शुरू हुआ।

खैर, अगले दौर की घटनाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करने से पहले कथाकार गुज़रे हुए दौर के बारे में एक और गवाह की राय पेश करना चाहता है। जीन तारो, जिससे इस कथा के आरम्भ में ही हम परिचित हो चुके हैं, कुछ सप्ताह पहले ओरान आया था और शहर के बीच में स्थित एक बड़े होटल में ठहरा हुआ था। ज़ाहिर है कि उसके पास अपनी दौलत थी और वह किसी व्यापार में नहीं लगा था। हालाँकि वह धीरे-धीरे हमारे बीच एक परिचित व्यक्ति बन गया था, फिर भी किसी को यह नहीं मालूम था कि वह कहाँ से और क्यों ओरान आया है। वह अक्सर सार्वजनिक स्थानों पर दिखाई दे जाता था और जब से बहार का मौसम आया था, वह अक्सर किसी-नकिसी समुद्र-तट पर मौजूद रहता था। निश्चय ही उसे तैरने का शौक़ था। खुश-मिज़ाज, हमेशा मुस्कराता हुआ चेहरा लगता था जैसे वह ज़िन्दगी के सभी सामान्य सुखों का भोग करने का आदी था, लेकिन उनका गुलाम नहीं था। दरअसल लोग उसकी सिर्फ एक ही आदत के बारे में जानते थे। वह यह कि वह उन स्पैनिश नृत्यकारों और संगीतकारों की सोसाइटी से ताल्लुक पैदा करने में लगा रहता था जिनकी तादाद हमारे शहर में बेशुमार थी।

उसकी डायरियाँ शुरू के उन अजीबोगरीब दिनों का एक तरह से आँखों देखा विवरण हैं, जिनके बीच से हम सब गुज़रे थे। लेकिन यह विवरण सामान्य क़िस्म का नहीं है, क्योंकि उसको पढ़ने से लगता है जैसे लेखक जान-बूझकर बड़ी बात को भी छोटा करके देखता है, जिससे हमें पहले तो यह अनुमान होता है कि तारो में घटनाओं और लोगों को जैसे दूरबीन के उलटे छोर से देखने की आदत थी। उन अराजकतापूर्ण दिनों में उसने उन घटनाओं का इतिहास दर्ज करने का बीड़ा उठाया, जिन्हें साधारण इतिहासकार नज़रअन्दाज़ कर जाता है। स्पष्ट है कि उसके स्वभाव के इस विचित्र असन्तुलन पर हमें अफ़सोस हो सकता है और हम शक कर सकते हैं कि शायद उसमें सही भावनाओं की कमी थी। फिर भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह व्याख्यात्मक-सी डायरी उस दौर का विवरण प्रस्तुत करती है जिसमें ऐसे अनेक तुच्छ लगने वाले ब्योरे दिये गए हैं जिनका आज भी महत्त्व है और जिनकी विचित्रता से ही पाठक को यह एहसास हो जाएगा कि उस विलक्षण आदमी के बारे में झटपट कोई राय कायम कर लेना उचित नहीं है।

जीन तारो ने अपनी डायरी तभी लिखनी शुरू कर दी थी जब वह ओरान आया था। शुरू से ही डायरी के पन्नों में ओरान-जैसे बदसूरत शहर पर सन्तोष प्रकट किया गया है जिसमें विरोधाभास की झलक मिलती है। इसमें टाउन हॉल के ऊपर बनी शेरों की दो कांस्य-मूर्तियों का बारीकी से बयान किया गया है। वृक्षों की कमी पर, मकानों की बदसूरती और शहर के बेढंगे डिजाइन पर भी टीका-टिप्पणी की गई है। ट्रामों और सड़कों पर उसने जो बातचीत सुनी थी, बीच-बीच में उसके भी कुछ अंश हैं। उन पर लेखक ने अपनी तरफ से कोई टिप्पणी नहीं की है, सिवाय इस प्रसंग के जो डायरी के आख़िरी हिस्से में आता है। एक बातचीत की इस रिपोर्ट में कैम्प्स नामक एक व्यक्ति को लेकर चिन्ता जताई गई है। दो ट्राम कंडक्टर आपस में बातें कर रहे थे।

"तुम तो कैम्प्स को जानते थे न?" एक ने पूछा।

“कैम्प्स? वही लम्बा आदमी जिसकी काली मूंछे थीं?"

“हाँ, वही! जो रेल का काँटा बदलता था।"

"अरे हाँ, मुझे अब याद आया।"

“तो सुनो! वह मर गया है।"

"ओह! कब मरा?"

"चूहों के उसी क़िस्से के बाद!"

"क्या कह रहे हो! क्या बीमारी थी उसे?"

“यह तो मैं ठीक से नहीं बता सकता। कोई बुखार-खार था। वैसे तो उसमें सेहत नाम की कोई चीज़ थी ही नहीं। उसकी बग़लों के नीचे फोड़े निकल आए थे, मालूम होता है उसी से वह ख़त्म हो गया।"

"लेकिन देखने में तो वह बाक़ी सब लोगों जैसा ही था?"

"मेरे ख़याल में ऐसा नहीं था। उसके फेफड़े कमज़ोर थे और वह शहर के बैंड में तुरही बजाया करता था। तुरही बजाने का फेफड़ों पर बुरा असर पड़ता है।"

“हाँ, अगर आदमी के फेफड़े कमज़ोर हों तो ऐसे बाजे बजाना ठीक नहीं।"

इस बातचीत को नोट करने के बाद तारो ने यह अनुमान लगाने की कोशिश की है कि जब तुरही बजाना कैम्प्स के लिए इतना ख़तरनाक था, तब भी वह क्यों बैंड का सदस्य बना! किस अज्ञात प्रेरणा से उसने इतवार की सभाओं में सड़कों पर कवायद करने के लिए अपनी जान खतरे में डाली!

डायरी से पता चलता है कि तारो की खिड़की के सामने वाले घर की बालकनी पर हर रोज़ जो दृश्य दिखाई देता था, उससे तारो बहुत प्रभावित हुआ था। होटल में उसके कमरे का रुख एक छोटी-सी गली की तरफ़ था जहाँ दीवारों के साये में हर वक़्त बहुत-सी बिल्लियाँ सोई रहती थीं। हर रोज़ लंच के बाद, जब अधिकांश लोग अपने कमरों में थोड़ी देर सोते थे, एक नाटे क़द का फुर्तीला बूढ़ा, सामने की बालकनी पर आ जाता था। उसकी चाल-ढाल फ़ौजियों-जैसी थी। वह तनकर खड़ा होता था और पोशाक भी फ़ौजी ढंग की पहनता था। उसके बरफ़-जैसे सफ़ेद बाल हमेशा कायदे से सँवरे रहते थे। बालकनी से झुककर वह आवाज़ देता था, “पूसी! पूसी!" यह आवाज़ रोबीली होने के साथ-साथ स्नेहपूर्ण भी थी। बिल्लियाँ उसकी ओर उनींदी पीली आँखें झपकाकर देखतीं, लेकिन कोई हरकत न करतीं। वह इसके बाद काग़ज़ के कुछ टुकड़े फाड़ता और नीचे सड़क पर गिरा देता। सफ़ेद तितलियों की फड़फड़ाती बारिश होते देखकर बिल्लियों की दिलचस्पी एकदम जाग उठती और वे आगे बढ़कर कागज़ के आख़िरी टुकड़ों को पकड़ने के लिए अपने पंजे आगे बढ़ातीं। इस पर वह बूढ़ा ध्यान से निशाना साधकर उन बिल्लियों पर ज़ोर से थूकना शुरू करता और जैसे ही उसकी तरल गोलियाँ ठीक निशाने पर बैठतीं, उसकी आँखें खुशी से चमक उठतीं।

अन्त में, मालूम होता है कि तारो को हमारे शहर का व्यवसायी मिजाज भी बहुत आकर्षक लगा था, जिसकी शक्ल-सूरत, काम-धन्धे, यहाँ तक कि जिसके आमोद-प्रमोद भी व्यवसाय की दृष्टि से निर्धारित होते थे। यह विलक्षणता डायरी में उसने इसी शब्द का प्रयोग किया था तारो को बेहद पसन्द थी। दरअसल हमारे नगर की इस विलक्षणता की प्रशंसा में लिखे गए वाक्य को उसने विस्मयबोधक चिह्न के साथ इस प्रकार समाप्त किया था, "आख़िरकार!"

ये ही कुछ वाक्य हैं जिनमें हमारे यात्री ने उस दौर में अपनी व्यक्तिगत भावनाओं को व्यक्त किया है। इन भावनाओं का महत्त्व और उनके पीछे छिपी ईमानदारी शायद पाठकों को तत्काल स्पष्ट न हो। मिसाल के लिए, इस बात का वर्णन करने के बाद कि एक मरे चूहे का पता चलने के फलस्वरूप होटल के कैशियर ने उसका बिल किस तरह गलत बना दिया, उसने लिखा, “प्रश्न : अपना वक़्त बरबाद न करने की क्या तरकीब है? उत्तर : हर समय इसके बारे में सचेत रहना। यह कैसे किया जा सकता है, इसके तरीके दाँतों के डॉक्टर के वेटिंग-रूम में एक तकलीफ़देह कुर्सी पर बैठकर अपने दिन गुज़ार कर; इतवार की पूरी शाम अपनी बालकनी में खड़े रहकर; ऐसी भाषा में व्याख्यान सुनकर जो आती न हो; ट्रेन में सबसे लम्बे और सबसे कम आरामदेह रास्तों से सफ़र करके, जिनमें रास्ते-भर खड़े रहना पड़े; थियेटरों के टिकटघरों के आगे लगी कतार में खड़े रहें और फिर टिकट न लें, वगैरह-वगैरह।"

विचारों और शैली की इस विलक्षणता के बाद हम उस प्रसंग पर पहँचते हैं जिसमें शहर की ट्राम-सर्विस का, ट्रामकारों के ढाँचों का, उनके सन्दिग्ध रंगों का और सब ट्रामों में पाई जाने वाली गन्दगी का ज़िक्र था। अन्त में उसने लिखा था, “कैसी विलक्षण बात है!" इस टिप्पणी से कुछ समझ में नहीं आता।

'चूहों की घटना' पर तारो की टिप्पणियों की यह भूमिका है।

“सामने की बालकनी का बूढ़ा आज बहुत दुखी है। आज गली में कोई बिल्ली दिखाई नहीं देती। सड़क पर बिखरी हुई चूहों की लाशों को देखकर हो सकता है उनकी शिकार करने की प्रवृत्ति जाग उठी हो। खैर जो भी हो, सारी बिल्लियाँ गायब हो गई हैं। मेरे ख़याल में उनके लिए मरे हुए चूहे खाने का तो सवाल ही नहीं उठता। मुझे याद है कि मेरी बिल्ली मरी हुई चीज़ों को देखकर नाक-भौं सिकोड़ लेती थी। हो सकता है वे तहख़ानों में शिकार कर रही हों। इसीलिए बूढ़ा इतना परेशान था। आज उसके बाल भी पहले की तरह सँवरे हुए नहीं हैं और उसकी सतर्कता और फ़ौजीपन भी कम हो गया है। साफ़ ज़ाहिर है कि वह परेशान है। कुछ देर के बाद वह कमरे में वापस चला गया, लेकिन जाने से पहले उसने एक बार थूका खालीपन पर।

“आज शहर में एक ट्राम रुक गई, क्योंकि उसमें एक मरा हुआ चूहा पाया गया था। (सवाल : चूहा वहाँ कैसे पहुँचा?) दो या तीन औरतें फ़ौरन ट्राम से नीचे उतर गईं। चूहे को बाहर फेंक दिया गया और ट्राम चल पड़ी।

“होटल में रात की ड्यूटी के पोर्टर ने, जो ठंडे, समझदार दिमाग का आदमी है, मुझे बताया कि ये चूहे किसी भावी विपदा के सूचक हैं। आपको एक कहावत मालूम है जनाब? कहते हैं कि जब किसी जहाज़ को छोड़कर चूहे भाग जाएँ...' मैंने जवाब दिया कि यह कहावत जहाज़ों के बारे में है, लेकिन यह शहरों पर भी लागू होती है इसका सबूत अभी तक नहीं मिला। वह अपनी बात पर अड़ा रहा। मैंने उससे पूछा कि आख़िर शहर पर कौन-सी 'विपदा' आ सकती है? उसने कहा, वह तो मैं नहीं बता सकता। मुसीबतें हमेशा अचानक आती हैं। हो सकता है ज़मीन के भीतर भूचाल की तैयारियाँ हो रही हों। मैंने कहा, हो सकता है। उसने पूछा, क्या मुझे डर नहीं लगता?

“मैंने उसे बताया, 'मुझे सिर्फ एक ही चीज़ में दिलचस्पी है। वह है मानसिक शान्ति।'

"वह मेरे मन की बात समझ गया।

"इस होटल में एक परिवार खाना खाने आता है जो मुझे बहुत दिलचस्प मालूम हुआ। पिता एक लम्बा-दुबला आदमी है जो हमेशा काले रंग की पोशाक पहनता है, जिसकी कमीज़ के कॉलर हमेशा कलफ़दार होते हैं। उसकी खोपड़ी बीच से गंजी है, आसपास सफ़ेद बालों के दो गुच्छे हैं। उसकी छोटी चमकदार आँखों, तने हुए सख़्त चेहरे से मालूम होता है कि वह एक सुसंस्कृत उल्लू है। वह सबसे पहले रेस्तराँ में आता है और एक तरफ़ खड़ा हो जाता है ताकि उसकी पत्नी, जो काले चूहे की तरह है, भीतर जा सके। फिर वह एक छोटे लड़के और लड़की को साथ लेकर आता है जो सरकस के झबरे कुत्तों-जैसी पोशाकें पहनते हैं। जब वे खाने के लिए बैठते हैं तो वह तब तक खड़ा रहता है, जब तक कि उसकी पत्नी और 'झबरे' कुर्सियों पर नहीं बैठ जाते। वह अपने परिवार के सदस्यों से स्नेहपूर्ण शब्दों में बातें नहीं करता। पत्नी पर नम्र और द्वेषपूर्ण टिप्पणियाँ करता है और बच्चों के बारे में अपनी राय मुँहफट ढंग से व्यक्त करता है।

" 'निकोल, तुम बड़ा शर्मनाक व्यवहार कर रहे हो।'

"नन्ही लड़की रुआंसी हो उठी है, जैसा कि होना चाहिए।

“आज सुबह नन्हा लड़का चूहों की ख़बर से बहुत उत्तेजित दीख रहा था और उसने इस बारे में कुछ कहना चाहा।

“ 'फ़िलिप, खाने की मेज़ पर बैठकर चूहों की बातें नहीं करनी चाहिए। ख़बरदार जो कभी मैंने तुम्हारे मुँह से यह लफ़्ज़ सुना। समझ गए!'

“'तुम्हारे पिता ठीक कहते हैं।' चुहिया बोली।

“दोनों झबरों ने प्लेटों में मुँह डाल दिए और उल्लू ने गुस्ताखी से सिर को झटका देकर कृतज्ञता प्रकट की।

“इस शानदार मिसाल के बावजूद, शहर में हर शख़्स चूहों की चर्चा कर रहा है, और अब यहाँ के अख़बारों में भी यह चर्चा शुरू हो गई है। 'नगर-चर्चा' के कॉलम में पहले हर तरह के विषयों की चर्चा रहती थी, लेकिन अब उसमें सिर्फ स्थानीय अधिकारियों के ख़िलाफ़ ज़हर उगला जाता है। क्या हमारे नगर-पिताओं को पता है कि इन चूहों की सड़ी लाशों से शहर के निवासियों की ज़िन्दगी को ज़बरदस्त ख़तरा पैदा हो गया है?' होटल का मैनेजर भी अब सिर्फ इसी विषय की रट लगाए रहता है। लेकिन उसकी शिकायत का एक व्यक्तिगत पहलू भी है; उसके तीन सितारों वाले होटल की लिफ्ट में मुर्दा चूहों का मिलना उसके लिए जैसे कयामत आ जाने के बराबर है। उसका मन रखने के लिए मैंने कहा, 'लेकिन, आप तो जानते ही हैं कि इस वक़्त सब लोग एक ही नाव पर सवार हैं।'

“ 'यही तो बात है,' उसने जवाब दिया, 'अब हम भी हर किसी की तरह के हो गए।'

“उसने ही सबसे पहले मुझे इस किस्म के बुख़ार के फैलने की ख़बर दी थी, जिसने शहर में आतंक फैला रखा है। उसकी एक चेम्बर मेड को यह बुखार चढ़ा है।

“ 'लेकिन मुझे विश्वास है कि यह छूत का बुख़ार नहीं है,' उसने जल्दी से मुझे आश्वस्त करना चाहा। मैंने उससे कहा कि मेरे लिए सब बराबर हैं।

'आह, मैं जनाब को समझ गया! आप भी मेरे-जैसे ही हैं, आप भाग्यवादी हैं।'

“मैंने उससे ऐसी कोई बात नहीं कही थी, और फिर मैं भाग्यवादी क़तई नहीं है। मैंने उसे यह बात साफ़ कह दी..."

इसके बाद तारो की डायरी में विस्तार से उस विचित्र बुख़ार का ज़िक्र किया गया है जिसने आम जनता में इतनी परेशानी फैला रखी थी। यह सूचना देने के बाद कि अब चूंकि चूहों ने निकलना बन्द कर दिया था, जिससे उस छोटे क़द के आदमी ने फिर अपनी चाँदमारी के लिए बिल्लियाँ जमा कर ली थीं और वह अपनी निशानेबाज़ी को और भी अचूक बनाने में जुट गया था, तारो ने लिखा कि जहाँ तक मालूम है, इस बुखार के एक दर्जन से ऊपर मामले हो चुके हैं और उनमें से ज़्यादातर मरीज़ मर गए हैं।

आगे की कहानी पर रोशनी डालने के लिए यह ज़रूरी है कि डायरी का वह अंश यहीं पर जोड़ दिया जाए, जिसमें तारो ने डॉक्टर रियो का वर्णन किया है। कथाकार की दृष्टि में यह वर्णन काफ़ी दुरुस्त और वाजिब है।

“देखने से पैंतीस बरस की उम्र का आदमी लगता है। क़द मामूली है। कन्धे चौड़े हैं। चेहरा बिलकुल समकोण है। आँखें काली और सधी हुई हैं, लेकिन जबड़ा उभरा हुआ है। नाक कुछ बड़ी, लेकिन खूबसूरत है। काले बाल महीन कटे हुए हैं। खमदार मुँह । मोटे होंठ अक्सर भींचकर बन्द किए रहने की आदत। धूप में रंग। हाथ और बाँहें साँवली। उसे हमेशा गहरे नीले और काले रंग के, लेकिन खुब फबने वाले सूट में देखकर सिसली के किसानों का स्मरण हो आता है।

“उसकी चाल तेज़ है। सड़क पार करते वक़्त वह अपनी रफ़्तार बदले बगैर ही फुटपाथ से नीचे उतर पड़ता है। लेकिन दूसरे पार के फुटपाथ पर चढ़ने के लिए एक बार हल्के से उचकता है। लगता है कि वह बड़ा भुलक्कड़ है क्योंकि मोड़ से गुज़र जाने के बाद भी वह अपनी कार के साइड सिगनलों को नीचे नहीं गिराता। हमेशा नंगे सिर रहता है। मालूम होता है कि समझदार और ज्ञानी है।"

पहला भाग : 4

तारो के आँकड़े सही थे। स्थिति ने कितना गम्भीर मोड़ ले लिया था, इसका डॉक्टर रियो को पूरा एहसास था। चौकीदार की लाश को अलग रखवाने के बाद उसने रिचर्ड को टेलीफ़ोन करके पूछा कि गिल्टियों वाले बुखार के इन मामलों के बारे में उसकी क्या राय थी।

“मैं उनके बारे में कोई राय क़ायम नहीं कर सका,” रिचर्ड ने स्वीकारा। "मेरे दो मरीज़ों की मौत हो चुकी है—एक अड़तालीस घंटों में मरा और दूसरा तीन दिन के भीतर। और दूसरे मरीज़ में तो जब मैं उसे अगले दिन देखने गया, तब बुखार से अच्छा होने के लक्षण दिखाई दे रहे थे।"

“अच्छा, अगर तुम्हारे पास और मामले आएँ तो मेहरबानी करके मुझे इत्तिला देना,” रियो ने कहा।

उसने अपने कुछ और साथी डॉक्टरों को टेलीफ़ोन किया। इस पूछताछ के फलस्वरूप उसे पता चला कि पिछले कुछ दिनों में इसी क़िस्म के क़रीब बीस मामले हो चुके थे। और ये सभी घातक साबित हुए थे। इस पर उसने रिचर्ड को, जो स्थानीय मेडिकल एसोसिएशन का चेयरमैन था, सलाह दी कि अब जो नए मामले आएँ उन्हें छूत वाले वार्ड में रखा जाए।

"अफ़सोस है कि मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकता," रिचर्ड ने उत्तर दिया, "इस तरह का आदेश तो प्रीफ़ेक्ट ही जारी कर सकता है। खैर जो भी हो, तुम किस आधार पर अनुमान कर रहे हो कि इससे छूत का ख़तरा है?"

"आधार तो कोई ख़ास नहीं है। लेकिन रोग के लक्षण ज़रूर डरावने हैं।"

रिचर्ड ने फिर भी यह बात दुहराई कि “इस तरह की कार्यवाही उसकी अधिकार-सीमा में नहीं आती।" वह अधिक-से-अधिक इतना ही कर सकता था कि प्रीफ़ेक्ट के आगे यह मामला पेश कर दे।

लेकिन अभी ये बातें चल ही रही थीं कि मौसम खराब हो गया। माडकेल की मृत्यु के अगले दिन आसमान में बादल छा गए और रह-रहकर मूसलाधार बारिश होने लगी। इन बारिशों के बीच के घंटों में बेहद उमस भरी गरमी हो जाती थी। समुद्र का रंग भी बदल गया था। बादलों से भरे आसमान ने उसकी गहरी नीली पारदर्शिता मिटा दी थी और अब उसके रंग में इस्पाती या रुपहली चमक आ गई थी जो आँखों को चुभती थी। वसन्त की उमस और गरमी से तंग आकर सब लोग ग्रीष्म की आने वाली खुश्क गरमी की कामना करने लगे थे। शहर में, जो पठार पर केंचुओं की तरह फैला हुआ था और हर तरफ़ से समुद्र से ओझल था, गम्भीर बेचैनी का मूड छा गया। सफ़ेदी की हुई दीवारों की कतारों के बीच घिरकर या धूल-भरी दुकानों के बीच से गुज़रते हुए, या गन्दी पीली ट्रामों में सफर करते हुए महसूस होता था, मानो वहाँ की आबोहवा ने आपको अपने शिकंजे में जकड़ लिया हो। लेकिन रियो के बूढ़े स्पैनिश मरीज़ के मन की अवस्था ऐसी नहीं थी। उसने इस मौसम का बड़े उत्साह से स्वागत किया।

“यह मौसम आपको भून देता है,” वह बोला, “दमा के मरीज़ को तो यही चाहिए।"

इसमें शक नहीं कि यह मौसम आपको भून देता' था, लेकिन बिलकुल बुखार की तरह। दरअसल, पूरे शहर को बुखार चढ़ गया था; कम-से-कम डॉक्टर रियो की यही मानसिक प्रतिक्रिया थी, जब वह कोतार्द की खुदकुशी की कोशिश की जाँच-पड़ताल के बारे में रू फ़ेदर्ब की ओर मोटर में जा रहा था। वह जानता था कि उसके मन की यह प्रतिक्रिया सही नहीं है, और उसने सोचा कि थकान और परेशानी के कारण ही उसे ऐसा महसूस हो रहा है। सचमुच इस वक़्त उसके पल्ले में चिन्ताओं का काफ़ी बड़ा भाग था। दरअसल, समय आ गया था जब वह अपनी परेशानियों को और न बढ़ाकर अपने मन को स्थिर करने की कोशिश करे।

कोतार्द के घर पहुँचकर उसे मालूम हुआ कि पुलिस इंस्पेक्टर अभी तक वहाँ नहीं आया। ग्रान्द ने, जो उससे सीढ़ियों पर मिला था, सुझाया कि दरवाज़ा खुला छोड़कर उसके घर में बैठा जाए और इंस्पेक्टर का इन्तज़ार किया जाए। म्यूनिसिपैलिटी के क्लर्क के पास दो कमरे थे, जिनमें बहुत थोड़ा फ़र्नीचर और सामान था। ध्यान आकर्षित करने वाली सिर्फ दो ही चीजें थीं एक किताबों की रैक, जिस पर दो-तीन डिक्शनरियाँ पड़ी थीं; और एक छोटा-सा ब्लैक-बोर्ड जिस पर अध-मिटाए दो शब्द अभी भी पढ़े जा सकते थे। ये शब्द थे–'कुसुमित सड़कें'।

ग्रान्द ने बताया कि कोतार्द ने अच्छी तरह रात बिताई थी। लेकिन सुबह उठने पर उसके सिर में दर्द हो रहा था और तबीयत बहुत भारी-सी थी। ग्रान्द स्वयं काफ़ी थका और उत्तेजित दीख रहा था। वह लगातार कमरे में इधर-सेउधर टहलता रहा और मेज़ पर रखे, लूंस-ठूसकर पांडुलिपियों के पन्नों से भरे पोर्टफोलियो को बार-बार खोलता और बन्द करता रहा।

फिर भी, इस बीच उसने डॉक्टर को यह सूचना दे दी कि वह कोतार्द के बारे में सचमुच बहुत कम जानता है, लेकिन उसका ख़याल है कि उसके पास अपनी छोटी-सी पूँजी ज़रूर है। कोतार्द 'रम पियक्कड़' था। काफ़ी अरसे तक उन दोनों की जान-पहचान सिर्फ यहीं तक सीमित थी कि जीने पर भेंट हो जाने पर दोनों एक-दूसरे को दुआ-सलाम कर लेते थे।

“अब तक उससे मेरी सिर्फ दो बार बातचीत हुई है। कुछ दिन पहले मैं रंगीन चॉक का एक डिब्बा लेकर घर लौट रहा था। वह डिब्बा मेरे हाथ से छूटकर गिर पड़ा। उसमें नीले और लाल रंग की चॉकें थीं। उसी वक़्त कोतार्द अपने कमरे से निकला और उसने मुझे चॉकों को बीनने में मदद दी। उसने मुझसे पूछा कि मुझे रंगीन चॉकों की क्या ज़रूरत है?"

इस पर ग्रान्द ने उसे बताया था कि वह अपनी लैटिन भाषा की जानकारी को ताज़ा करने की कोशिश कर रहा है। उसने स्कूल में लैटिन सीखी थी, लेकिन अब उसकी याददाश्त धुंधली पड़ गई है।

“देखिए न डॉक्टर, मुझे बताया गया है कि लैटिन का ज्ञान फ्रेंच शब्दों का अर्थ समझने में सहायता देता है।"

इसलिए वह अपने ब्लैक-बोर्ड पर लैटिन के शब्द लिखता था और हर शब्द के उस हिस्से को, जो संयुक्त करने से या कारक बदलने से बदल जाता था, नीली चॉक से लिखता था और जो हिस्सा कभी नहीं बदलता था उसे लाल चॉक से लिखता था।

“मुझे विश्वास नहीं कि कोतार्द को मेरी यह बात साफ़ समझ में आ गई हो, लेकिन मुझे लगा कि इसमें वह दिलचस्पी ले रहा है। उसने मुझसे एक लाल चॉक माँगी। इससे मुझे ताज्जुब हुआ, लेकिन आख़िरकार भला मैं उस वक़्त अनुमान कर भी कैसे सकता था कि वह उस चॉक का क्या इस्तेमाल करेगा!"

रियो ने पूछा कि उनकी दूसरी बातचीत का क्या विषय था? लेकिन इसी वक़्त इंस्पेक्टर आ गया। उसके साथ एक क्लर्क था। उसने कहा कि वह सबसे पहले ग्रान्द का बयान सुनना चाहता है। डॉक्टर ने देखा कि कोतार्द के बारे में बात करते समय ग्रान्द हमेशा उसे 'अभागा आदमी' कहकर पुकारता है और एक बार तो उसने उसके कठोर निश्चय' का भी जिक्र किया।

कोतार्द ने किस मुमकिन इरादे से खुदकुशी करने की कोशिश की, इसकी बहस के वक़्त ग्रान्द ने अपने शब्दों के चुनाव में बड़ी सावधानी बरती। अन्त में उसने अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए जिन शब्दों को चुना, वे थे 'कोई पोशीदा गम'। इंस्पेक्टर ने पूछा कि क्या उसने कोतार्द के व्यवहार में कोई ऐसी बात देखी थी जिससे ज़ाहिर होता हो कि उसका इरादा ख़ुदकुशी करने का है?

“कल उसने मेरे दरवाजे पर दस्तक दी," ग्रान्द ने बताया, “और मुझसे माचिस माँगी। मैंने उसे एक डिब्बी पकड़ा दी। उसने कहा कि मेरे काम में हर्ज़ करने के लिए उसे अफ़सोस है, लेकिन चूंकि हम पड़ोसी हैं, इसलिए उसे उम्मीद है कि मैं बुरा नहीं मानूँगा। उसने मुझे इत्मीनान दिलाया कि वह मेरी डिब्बी वापस कर देगा, लेकिन मैंने कहा कि अपने पास ही रखे।"

इंस्पेक्टर ने ग्रान्द से पूछा कि क्या उसने कोतार्द के व्यवहार में कोई अजीब बात देखी थी?

“मुझे उसके व्यवहार में सिर्फ यही बात अजीब लगती थी कि वह हमेशा मुझसे बातचीत का सिलसिला शुरू करने के लिए उत्सुक दिखाई देता था। लेकिन उसे कम-से-कम इतना तो दिखाई देना ही चाहिए था कि मैं अपने काम में व्यस्त रहता हूँ।” फिर ग्रान्द ने रियो की ओर मुँह करके शरमीले अन्दाज़ में कहा, “मैं अपने एक निजी काम में व्यस्त रहता हूँ।"

इस पर इंस्पेक्टर ने मरीज़ को देखने और उसकी बात सुनने की इच्छा प्रकट की। रियो ने सोचा कि कोतार्द को पहले से इस भेंट के बारे में तैयार कर देना उचित होगा। वह जब बेड-रूम में दाखिल हुआ तो उसने देखा कि कोतार्द ग्रे फलालेन की नाइट-शर्ट पहने आतंकित भाव से दरवाज़े की ओर टकटकी बाँधे अपने बिस्तर में बैठा है।

"पुलिस आई है, है न?"

“हाँ, लेकिन घबराओ नहीं,” रियो ने दिलासा दी, “कुछ जाब्ते की कार्यवाही पूरी करने के बाद पुलिस चली जाएगी और तुम्हें शान्तिपूर्वक अकेला छोड़ दिया जाएगा।"

कोतार्द ने उत्तर दिया कि उसकी नज़र में यह सारी कार्यवाही बेकार थी और जो भी हो वह पुलिस को पसन्द नहीं करता।

रियो चिढ़ गया।

“मैं भी पुलिस से प्यार नहीं करता। सिर्फ कुछ सवालों का संक्षिप्त और सही जवाब देने-भर की बात है, उसके बाद तुम्हें पुलिस से छुट्टी मिल जाएगी।"

कोतार्द ने इस पर कुछ नहीं कहा और रियो दरवाज़े की ओर जाने को हुआ। अभी उसने एक ही क़दम उठाया होगा कि उस छोटे क़द के आदमी ने उसे वापस बुला लिया। रियो जब पलंग के पास पहुँचा तो कोतार्द ने ज़ोर से उसके हाथ थाम लिये।

“ये लोग एक बीमार के साथ सख्ती तो नहीं करेंगे ऐसे आदमी के साथ जिसने अपने को फाँसी दे ली थी, क्यों डॉक्टर?"

रियो ने एक क्षण उसकी ओर देखकर आश्वासन दिया कि इसका कोई सवाल ही नहीं उठता और अगर कुछ हो भी तो अपने मरीज़ की रक्षा करने के लिए वह मौजूद रहेगा। कोतार्द को इससे कुछ सांत्वना मिली और रियो इंस्पेक्टर को लाने के लिए बाहर चला गया।

ग्रान्द का बयान पढ़कर सुनाने के बाद इंस्पेक्टर ने कोतार्द से खुदकुशी करने का सही-सही कारण पूछा। उसने पुलिस अफ़सर को बिना देखे सिर्फ यही जवाब दिया कि 'कोई पोशीदा गम' उस कारण को सही-सही बयान कर देता है। तब इंस्पेक्टर ने कठोर स्वर में पूछा कि क्या उसका इरादा 'फिर एक बार आज़माइश करके' देखने का है? इस बार आवेशपूर्वक उसने जवाब दिया, "हरगिज़ नहीं।" उसकी सिर्फ एक ही ख़्वाहिश थी कि उसे शान्तिपूर्वक अकेला छोड़ दिया जाए।

"भले आदमी, मुझे कहना चाहिए कि इस वक़्त तो तुम्हीं ने दूसरों की शान्ति में खलल डाल रखा है," इंस्पेक्टर ने किचित चिढ़कर जवाब दिया। रियो ने उसको इशारे से और कुछ न कहने के लिए मना किया और इंस्पेक्टर चुप हो गया।

“एक अच्छा-खासा घंटा बेकार बरबाद हो गया," दरवाज़े से बाहर निकलते ही इंस्पेक्टर ने आह भरकर कहा। “आप तो अन्दाज़ कर ही सकते हैं कि हमारे पास सोचने के लिए इस वक़्त और कई मसले हैं, जैसे यह बुखार, जिसकी हर शख़्स चर्चा कर रहा है।"

फिर उसने डॉक्टर से पूछा कि क्या शहर को इससे गम्भीर खतरा पैदा हो गया है? रियो ने जवाब दिया कि वह अभी कुछ नहीं कह सकता।

“यह सब मौसम की वजह से है," पुलिस अफसर ने फैसला सुनाया, "बस यही बात है।"

इसमें शक नहीं कि मौसम ख़राब था। दिन चढ़ने के साथ-साथ हर चीज़ चिपचिपी होती गई और हर विजिट के बाद डॉक्टर रियो की चिन्ता बढ़ती गई। उस रात किनारे की बस्ती में रहने वाले उसके एक मरीज़ के पड़ोसी ने अपने पेट के निचले हिस्से को हाथों से दबाते हुए उल्टियाँ करनी शुरू कर दीं। साथ में तेज़ बुखार और सरसाम भी था। उसकी गिल्टियाँ माइकेल की गिल्टियों से कहीं ज्यादा बड़ी थीं। उनमें एक गिल्टी फूटने वाली थी और कुछ ही देर में अत्यधिक पके फल की तरह उसका मुँह फट गया। अपने फ़्लैट में लौटकर रियो ने जिले के मेडिकल स्टोर डिपो को टेलीफ़ोन किया। अपनी मेडिकल डायरी में उसने आज के दिन सिर्फ एक बात दर्ज की थी, 'नकारात्मक उत्तर'। उसे शहर के विभिन्न भागों से ऐसे ही मामलों के लिए बुलावे आने लगे। ज़ाहिर है कि घाव को तो हर शर्त में चीरना ही पड़ता था। एक चीरा इधर से और दूसरा उधर से और गिल्टी एक अंजुली भरकर खून और मवाद उगल देती। मरीज़ों के हाथ-पाँव, जितनी दूर तक सम्भव था, अकड़कर फैल जाते और खून का बहना जारी रहता। उनकी टाँगों और पेटों पर काले धब्बे उछल आते। कभी-कभी कोई गिल्टी बैठ जाती, लेकिन फिर एकाएक फूलने लगती। अक्सर मरीज़ बदबूदार सड़ान्ध के बीच दम तोड़ देते।

स्थानीय अख़बार, जो चूहों के बारे में इतनी बड़ी-बड़ी सुर्खियाँ देकर ख़बरें छापते थे, अब बिलकुल ख़ामोश हो गए थे, क्योंकि चूहे सड़कों पर मरते हैं और आदमी अपने घरों में। और अख़बार सिर्फ सड़कों में ही दिलचस्पी रखते हैं। सरकारी और म्यूनिसिपैलिटी के अफ़सर आपस में मशविरा कर रहे थे। जब तक कि एक-एक डॉक्टर के पास दो या तीन मामले ही पहुँचे थे, तब तक किसी ने इस बारे में कोई कदम उठाने की बात ही नहीं सोची। यह सिर्फ संख्याओं को जोड़ने का सवाल था, लेकिन जब ऐसा किया गया तो कुल संख्या हैरतअंगेज़ निकली। कुछ ही दिनों में मरीजों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी की रफ़्तार से बढ़ गई और इस विचित्र बीमारी के दर्शकों को इसमें ज़रा भी सन्देह न रहा कि ज़रूर कोई महामारी फैल गई है। स्थिति इस हद तक पहँच चुकी थी, जब रियो का एक सहयोगी डॉक्टर कास्तेल, जो उससे उम्र में काफ़ी बड़ा था, एक दिन उससे मिलने आया।

“ज़ाहिर है कि तुम तो जानते ही होगे कि यह कौन-सी बीमारी है," उसने रियो से कहा।

“मैं अभी तक पोस्टमार्टम के नतीजे का इन्तज़ार कर रहा हूँ।"

“खैर, मैं जानता हूँ। और मुझे पोस्टमार्टम के नतीजों की कोई ज़रूरत नहीं है। मैंने अपनी काफ़ी ज़िन्दगी चीन में गुज़ारी है, और बीस साल पहले पेरिस में भी मैंने इसी तरह के कुछ मामले देखे थे। हुआ यह कि उस वक़्त किसी को इस बीमारी का सही नाम लेने की जुर्रत नहीं हुई। हमने एक प्रतिबन्ध लगा रखा है कि लोगों को सही नाम बताकर दहशत न पैदा कर दें। लेकिन इस तरह काम नहीं चलेगा। इसके अलावा हमारे बीच एक अन्धविश्वास भी फैला हुआ है, जैसा कि मेरे एक साथी डॉक्टर के इस कथन से ज़ाहिर है। उसने कहा, 'यह अकल्पनीय है। हर शख्स जानता है कि यह महामारी अब पश्चिमी यूरोप के देशों से गायब हो चुकी है।' हाँ, यह ठीक है कि हर शख़्स इस बात को जानता है सिवाय उन अभागों के जो इसकी वजह से मौत के घाट उतर चुके हैं। रियो, बहानेबाज़ी छोड़ो। तुम भी उतना ही अच्छी तरह जानते हो जितना मैं कि यह बीमारी क्या है।"

रियो सोचने लगा। वह अपने ऑपरेशन-रूम की खिड़की से पहाड़ी की उस चोटी की ओर देख रहा था जो क्षितिज पर स्थित खाड़ी के आधे वृत्त को ढंक लेती थी। नीले आसमान में एक धुंधली-सी आभा थी, जो दिन ढलने के साथ उसकी नीलिमा को और मुलायम बनाती जा रही थी।

“हाँ कास्तेल! इस बात पर यकीन करना मुश्किल है। लेकिन बीमारी के सारे लक्षण इसी ओर इशारा करते हैं कि यह प्लेग है," रियो ने उत्तर दिया।

कास्तेल उठकर दरवाज़े की ओर चल पड़ा।

“तो फिर तुम यह भी जानते हो,” बूढ़े डॉक्टर ने रुककर कहा “कि वे हमसे क्या कहेंगे? यही कि यह बीमारी बीच की जलवायु वाले मुल्कों से कभी की गायब हो चुकी है।"

“गायब हो चुकी है? आख़िर इन लफ़्ज़ों का ठीक मतलब क्या है?" रियो ने अपने कन्धे हिलाए।

“हाँ। और यह भी मत भूलना कि ठीक बीस साल पहले पेरिस में भी..." ।

"अच्छा। खैर हमें उम्मीद करनी चाहिए कि इस बार उतनी तबाही नहीं फैलेगी। फिर भी इस बात पर... यक़ीन नहीं होता।"

प्लेग (उपन्यास) अध्याय 5-8 : अल्बैर कामू