रस्सी का टुकड़ा (कहानी) : गाय दी मोपासां

The Piece of String (French Story) : Guy de Maupassant

बाजार का दिन था । गोदरविल के आसपास की तमाम सड़कों पर किसान अपनी पत्नियों के संग कसबे की तरफ चले आ रहे थे। पुरुष धीमे- धीमे कदम रखते हुए आगे बढ़ रहे थे। उनका पूरा शरीर उनकी लंबी मुड़ी हुई टाँगों की गति पर आगे को झुक जाता था । कड़ी मेहनत करने से उनकी टाँगें बेडौल हो गई थीं और लगातार बोझ डालने से उनका बायाँ कंधा ऊपर को उठ जाता था और उनकी देह घूम जाती थी । उनकी टाँगें बेडौल हुई थीं गेहूँ की कटाई से , जिसके लिए उन्हें मजबूत पकड़ बनाने के लिए अपने घुटनों को फैलाना पड़ता था । उनकी टाँगें बेडौल हुई थीं देहात के उन तमाम मेहनत वाले कामों से, जो धीरे - धीरे किए जाते थे और जो कष्टपूर्ण भी थे। उनकी नीली , कलफ लगी कड़क कुरतियाँ ऐसे चमक रही थीं मानो उन पर वार्निश की गई हो । उनके गले और कफ पर छोटी सी सफेद डिजाइन बनी थी और उनके दुबले- पतले शरीर पर फूली हुई वे ऐसी दिख रही थीं , जैसे गुब्बारे हों , जो उन्हें अभी उड़ा ले जाएँगे । उनकी हरेक कुरती में से एक सिर , दो हाथ और दो पैर बाहर को निकले हुए थे।

उनमें से कुछ किसान गाय या फिर बछड़े को रस्सी से बाँधे ले जा रहे थे और उनकी पत्नियाँ उस जानवर के पीछे चल रही थीं । उसकी चाल तेज करने के इरादे से वे जानवर की पिछाड़ी पर एक पत्तेदार डंडी फटकारती जा रही थीं । उनके हाथों में बड़ी सी टोकरियाँ थमी थीं , जिनमें से मुर्गियाँ या बतखें अपनी मुंडियाँ बाहर निकाले हुए थीं । वे अपने आदमियों से ज्यादा तेजी और फुरती से कदम बढ़ा रही थीं । उनके तने शरीर एक हलकी , छोटी सी शॉल में लिपटे थे, जो उनके चपटे सीनों पर पिन से बँधी हुई थी । उनके बाल एक सफेद कपड़े से ढके थे, जो उनके बालों से चिपका हुआ और उसके ऊपर टोपी थी । तभी एक छकड़ा बड़े अजीब ढंग से धड़धड़ाता हुआ वहाँ से गुजरा, जिसमें दो आदमी अगल - बगल बैठे थे । नीचे बैठी एक औरत जोरदार झटकों से बचने के लिए दोनों तरफ से पकड़े हुए थी ।

गोदरविल के सार्वजनिक चौक पर भीड़ थी । यह इनसानों और जानवरों का मिला - जुला जमघट था । मवेशियों के सींग , अमीर किसानों के लंबे रोएँदार ऊँचेटोप और किसान औरतों की टोपियाँ झुंड से ऊपर दिखाई दे रही थीं । वहाँ तेज , कर्कश, चीखती आवाजों से लगातार और भीषण शोर हो रहा था , जिसे कभी- कभी किसी देहाती के दमदार फेफड़ों से निकलती हँसी या किसी मकान की दीवार से बँधी किसी गाय के रँभाने की लंबी आवाज पछाड़ देती थी ।

उस सब में अस्तबल, डेरी और गंदगी के ढेर , भूसे और पसीने का आभास था , जिसमें से अरुचिकर इनसानी और पाशविक गंध उठ रही थी , जो खेतिहर लोगों के लिए जानी -पहचानी थी ।

ब्रोत का मेत्र होशेकोम अभी- अभी गोदरविल में पहुँचा था, वह अभी सार्वजनिक चौक की तरफ कदम बढ़ा ही रहा था कि उसे जमीन पर रस्सी का एक छोटा सा टुकड़ा दिखाई दिया । वह एक सच्चे नॉर्मन की तरह चीजों के बेकार हो जाने को पसंद नहीं करता था । उसने सोचा कि काम की कोई भी चीज हो , उसे उठा लेना चाहिए । सो वह झुका, हालाँकि ऐसा करने में उसे दर्द हुआ, क्योंकि वह गठिया का मरीज था । उसने पतली रस्सी के उस टुकड़े को जमीन से उठा लिया और उसे सावधानी से लपेटने लगा । तभी उसकी नजर काठी आदि साज बनाने वाले मेत्र मलांदै पर पड़ी, जो अपनी चौखट से उसी को देख रहा था । अभी तक वे दोनों मिलकर साज का कारोबार किया करते थे, लेकिन अब दोनों में खटपट हो चुकी थी, क्योंकि दोनों ही नफरत करने में कम न थे। मेत्र होशेकोम को शर्म सी महसूस हुई कि उसके दुश्मन ने उसे इस तरह गंदगी में से रस्सी का टुकड़ा उठाते देख लिया है । उसने अपनी पाई हुई चीज को जल्दी से अपनी कुरती के नीचे और फिर अपनी पैंट की जेब में रख लिया ; फिर वह इस तरह से दिखावा करने लगा जैसे अभी भी जमीन पर किसी चीज को ढूँढ़ रहा हो , जो उसे नहीं मिली, फिर वह सिर झुकाए बाजार की ओर चला गया । वह दर्द के मारे दोहरा हो रहा था ।

जल्दी ही वह शोरगुल करती और धीमे - धीमे आगे बढ़ती भीड़ में गुम हो गया, जो लगातार सौदेबाजी करने में व्यस्त थी । किसान दूध दुह रहे थे, आ - जा रहे थे। वे परेशान थे। उन्हें हमेशा इस बात का डर बना रहता था कि उनके साथ धोखा न हो जाए, उनमें निर्णय करने की हिम्मत नहीं हो रही थी । वे दूध बेचनेवाले की नजर को देख रहे थे, उनकी कोशिश हमेशा यह थी कि उस आदमी की चालबाजी और उस जानवर की खामी को पकड़ लें ।

औरतों ने अपनी बड़ी- बड़ी टोकरियाँ अपने पैरों के पास रख ली थीं और अपनी मुर्गियाँ व बतखें बाहर निकाल ली थीं , जो जमीन पर पड़ी थीं । उनके पाँव बँधे हुए थे, उनकी आँखों में दहशत थी, उनकी कलगियाँ सुर्ख लाल थीं ।

वे लोगों के बताए दामों को बेरुखी से सुनतीं , और भावहीन चेहरा बनाकर अपने दाम बताती थीं , कभी अचानक कुछ रियायत का फैसला करके धीरे - धीरे आगे जाते ग्राहक से चिल्लाकर कहती थीं, ठीक है, मेत्र ओतीर्न, मैं इतने में दे दूंगी ।

धीरे - धीरे करके चौक खाली हो गया, फिर जब दोपहर की प्रार्थना की घंटी बजी, तो जो लोग वहाँ कुछ ज्यादा ही देर टिक गए थे, वे अपनी - अपनी दुकानों पर चले गए ।

जुर्दे की सराय का बड़ा सा कमरा लोगों से भरा हुआ था । वे खा - पी रहे थे, क्योंकि बड़ा सा दालान तमाम तरह की गाडियों से भरा था । वहाँ बोझा -गड़ियाँ थीं , टमटमें थीं , छकड़े थे, कूड़ा गड़ियाँ थीं । वे धूल से सनी होने के कारण पीली पड़ गई थीं । उनकी मरम्मत की हुई थी , जिससे उनमें पैबंद लगे थे। उनकी बल्लियाँ दो हाथों की तरह आसमान की ओर उठी हुई थीं या शायद वे जमीन पर टिकी थीं , उनके पिछले हिस्से हवा में उठे थे।

खाने की मेज पर बैठे लोगों के ठीक सामने चमकीली लपटों से भरा आतिशदान था , जिसकी सुखद गरमाहट दाहिनी ओर की कतार में बैठे लोगों की पीठ पर लग रही थी । तीन सीखें घूम रही थीं , जिन पर मुर्गियाँ, कबूतर और बकरे की टाँगें लगी थीं । भट्ठी में भुने बीफ और अच्छी तरह से सिककर सुर्ख भूरी हुई चमड़ी पर टपकते शोरबे की भूख जगाने वाली महक भट्ठी से उठ रही थी , जिससे माहौल और भी खुशगवार हो रहा था और सबके मुँह में पानी आ रहा था ।

सारे कुलीन किसान मेत्र जुर्दे की उस दुकान में ठहरे थे। उनमें सराय चलानेवाला और घोड़ों का सौदागर जूर्दे एक पाजी था , जिसके पास दौलत थी । एक के बाद एक चली खाने की तश्तरियाँ खाली होती गई और यही हश्र सेब की पीली शराब का भी हुआ। हर कोई अपने - अपने बारे में , अपनी खरीद और बिक्रियों के बारे में बताने लगा । सभी लोग फसलों के बारे में चर्चा करने लगे । मौसम हरी चीजों के लिए तो अनुकूल था, लेकिन गेहूँ के लिए नहीं ।

अचानक मकान के सामने दालान में ढोल बजने की आवाज सुनाई पड़ी । कुछ उदासीन लोगों को छोड़, बाकी सब उठ खड़े हुए और दरवाजे या खिड़कियों की ओर दौड़ पड़े । उनके मुँह खाने से अब भी भरे हुए थे और उनके हाथों में रुमाल थे।

मुनादी जब ढोल पीट चुका तो उसने उखड़ती आवाज में कहना शुरू किया-

" गोदरविल के बाशिंदों को , और आम तौर पर बाजार में मौजूद सभी लोगों को यह इत्तिला दी जाती है कि आज सुबह नौ और दस बजे के बीच, बेंजविल जाने वाली सड़क पर काले चमड़े का एक बटुआ खो गया है , जिसमें पाँच सौ फ्रैंक और कुछ कारोबारी कागज थे। जिस किसी को भी मिला हो, उससे दरख्वास्त की जाती है कि वह जल्दी- से- जल्दी उसे मेयर के दफ्तर में या मानविल के मेत्र फॉर्च्न हूलब्रेक को लौटा दे, उसे बीस फ्रैंक इनाम में दिए जाएंगे । "

फिर वह आदमी चला गया । ढोल पीटने की भारी ढमढम और मुनादी की आवाज थोड़ी दूरी पर फिर सुनाई दी । फिर वे इस घटना के बारे में बातें करने लगे कि मेत्र हूलब्रेक को उसका बटुआ मिलने की कितनी संभावनाएँ हैं या नहीं ।

अब वे खाना खा चुके थे । वे अपनी कॉफी खत्म करने जा ही रहे थे कि दहलीज पर एक पुलिसवाला दिखाई दिया । उसने पूछा — " ब्रोत का मेत्र होशेकोम यहाँ है क्या ? "

मेज के दूसरे सिरे पर बैठे मेत्र होशेकोम ने जवाब दिया - मैं यहाँ हूँ । "

अधिकारी ने कहा , " मेत्र होशेकोम, क्या तुम मेहरबानी करके मेरे साथ मेयर के दफ्तर चलोगे ? मेयर तुमसे बात करना चाहते हैं । "

चकित और परेशान किसान ने ब्रांडी के अपने छोटे गिलास से एक घुट भरा और उठ खड़ा हुआ । सुबह की अपेक्षा अधिक झुके हुए , मुश्किल से कदम बढ़ाते हुए वह उसके साथ चल पड़ा। वह बार - बार कहता जा रहा था — यह रहा मैं , यह रहा मैं ।

मेयर एक हत्थे वाली कुरसी पर बैठे उसका इंतजार कर रहे थे। वह उस इलाके के नोटरी थे। वह तगड़े थे, गंभीर थे और बातचीत में लच्छेदार जुमलों का इस्तेमाल करते थे ।

" मेत्र होशेकोम ! " उन्होंने कहा, " तुम्हें आज सुबह बेंजविल जानेवाली सड़क पर खोए मानविल के मेत्र हूलब्रेक के बटुए को उठाते देखा गया था । "

यह सुनकर वह देहाती स्तब्ध रह गया । उसने मेयर को देखा । वह पहले ही दहशत में था कि उस पर शक किया जा रहा था , जबकि उसे खुद उसका कारण पता नहीं था ।

" मैंने! मैंने! मैंने बटुआ उठाया ? "

" हाँ - हाँ , तुम्हीं ने । "

" कसम से, मैंने तो इसके बारे में कभी सुना भी नहीं । "

" लेकिन तुम्हें देखा गया । "

" मुझे देखा गया , मुझे? किसने कहा कि उसने मुझे देखा है? "

" साज बनानेवाले मलांदै महाशय ने। "

उस बुजुर्ग को याद आ गया, समझ में आ गया और वह गुस्से से लाल हो गया ।

" ओह, तो उसने मुझे देखा था , उस मिट्टी के लोंदे ने मुझे यह रस्सी उठाते देखा था , मेयर साहब! " और अपनी जेब से टटोलकर उसने रस्सी का वह छोटा टुकड़ा निकाला ।

लेकिन मेयर ने अविश्वास जताते हुए सिर हिला दिया ।

" तुम मुझे यह विश्वास नहीं करा सकते, मेत्र होशेकोम कि मलांदै महाशय ने, जो विश्वास के योग्य है, उसने इस रस्सी को गलती से बटुआ समझ लिया । "

किसान ने गुस्से में अपना हाथ ऊपर किया , अपनी इज्जत की पुष्टि के लिए एक तरफ को थूका, और फिर वही कहा, " फिर भी ईश्वर की कसम, सच्चाई यही है, पवित्र सच्चाई, मेयर साहब! मैं अपनी आत्मा और अपने मोक्ष की कसम खाकर फिर से कहता हूँ । "

मेयर ने आगे कहा , " उस चीज को उठाने के बाद, तुम एक लट्टे की तरह खड़े रहे और देर तक मिट्टी में देखते रहे थे कि कहीं कोई पैसा गिर तो नहीं गया। "

वह भलमानस बुजुर्ग कोप और भय से अवाक रह गया ।

" कोई कैसे बोल सकता है ? कोई कैसे बोल सकता है? कैसे बोल सकता है कोई, ऐसा झूठ किसी ईमानदार आदमी की इज्जत बिगाड़ने को ! कोई कैसे ? "

उसके विरोध करने का कोई फायदा नहीं था , किसी ने उस पर विश्वास नहीं किया । उसका सामना महाशय मलांदै से कराया गया, जिसने अपनी बात को ही दोहराया और उसी की पुष्टि की । वे एक घंटे तक एक - दूसरे को बुरा - भला कहते रहे । मेत्र होशेकोम के अनुरोध पर खुद उसकी तलाशी ली गई और उसके पास कुछ भी नहीं निकला।

अंत में बेहद परेशान मेयर ने उसे यह कहकर छोड़ दिया कि आगे के आदेश के लिए उसे सरकारी अभियोजक से संपर्क करना होगा ।

यह खबर चारों ओर फैल चुकी थी । वह बुजुर्ग जब मेयर के दफ्तर से निकला तो लोगों ने उसे घेर लिया और गंभीरता से या मजाक से उत्सुकता में उस पर सवालों की झड़ी लगा दी , जिसमें कोई कोप नहीं था । वह रस्सी की कहानी सुनाने लगा, लेकिन किसी ने उस पर विश्वास नहीं किया । वे उस पर हँसने लगे ।

वह चलता गया । वह अपने दोस्तों को रोकता और शुरू कर देता अपनी बातों और विरोधों का अंतहीन सिलसिला । वह अपनी जेबें उलटकर दिखाता , यह साबित करने के लिए कि उसके पास कुछ भी तो नहीं है ।

वे कहते — “ बूढ़े पाजी, निकल जा! "

इस पर वह गुस्सा हो जाता, खीझ जाता और परेशान हो जाता कि उस पर विश्वास नहीं किया जा रहा है । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे ? वह बार- बार अपनी बात दोहराए जा रहा था ।

रात हो गई । अब उसे वहाँ से चल ही देना चाहिए । उसने तीन पड़ोसियों के साथ अपना रास्ता पकड़ा । उसने उन्हें वह जगह दिखाई , जहाँ से उसने रस्सी का वह टुकड़ा उठाया था ; सारे रास्ते वह उस अनहोनी के बारे में बोलता रहा ।

शाम को वह ब्रोत गाँव की ओर मुड़ा, ताकि सबको इस बारे में बता सके , लेकिन किसी ने उस पर विश्वास ही नहीं किया । इससे रात में उसकी तबीयत खराब हो गई ।

अगले दिन दोपहर लगभग एक बजे ईमैनविल के किसान मेत्र ब्रेटन के पास भाड़े पर काम करनेवाले मार्युस पामेल ने मानविल के मेत्र हुलब्रेक का बटुआ और उसमें रखी चीजें लौटा दीं ।

उसने बताया कि यह सड़क पर मिला था; लेकिन क्योंकि उसे पढ़ना नहीं आता था तो उसने इसे ले जाकर अपने मालिक को दे दिया था ।

यह खबर पूरे आस -पड़ोस में फैल गई । मेत्र होशेकोम को इस बारे में बताया गया। वह फौरन उठा और उसने घूम- घूमकर अपनी कहानी दोहरानी शुरू कर दी, जिसका अंत सुखद था । वह जीत की मुद्रा में था ।

मुझे इस बात से इतना दुख नहीं हो रहा है, जितना कि झूठ बोले जाने से । इससे शर्मनाक बात कोई और नहीं हो सकती कि आपको एक झूठ की वजह से शक के घेरे में रखा जाए ।

सारा दिन वह अपने साथ हुई उस अनहोनी की बातें करता रहा । उसने बड़ी सड़क पर उन लोगों को बताया, जो वहाँ से गुजर रहे थे। उसने शराब की दुकान पर उन लोगों को बताया , जो वहाँ पी रहे थे और अगले इतवार उसने उन लोगों को बताया, जो चर्च से बाहर आ रहे थे। उसने अजनबी लोगों को रोक - रोककर इस बारे में बताया । अब वह शांत था , फिर भी कोई बात थी जो उसे परेशान कर रही थी , लेकिन उसे ठीक -ठीक पता नहीं था कि वह क्या बात थी । लोग सुनते और उसे मजाक में लेते थे । उन्हें उसकी बात पर विश्वास नहीं होता था । उसे शायद लग गया था कि उसकी पीठ पीछे बातें बनाई जा रही हैं ।

अगले सप्ताह मंगलवार को वह यह सोचकर गोदरविल के बाजार में गया कि उसे इस विषय में बात जरूर करनी चाहिए ।

मलांदै अपने दरवाजे पर खड़ा था । वह उसे वहाँ से जाते देख हँसने लगा । क्यों ?

वह क्रेकेतो से आए एक किसान के पास गया और उसे अपनी कहानी सुनाने लगा, लेकिन उस किसान ने उसे

अपनी बात भी पूरी नहीं करने दी और उसके पेट पर हाथ मारकर उसके मुँह पर ही कह दिया -

" बड़े पाजी हो तुम ! "

और उसकी तरफ पीठ फेर ली ।

मेत्र होशेकोम चकरा गया । उसे बड़ा पाजी क्यों कहा जा रहा है ?

अब वह जुर्दे की सराय में मेज पर बैठ गया तो उसने उस मामले पर सफाई देनी शुरू की , तभी मोनविलियर्स से आए घोड़े के एक सौदागर ने उसे पुकारकर कहा, " चलो- चलो, बूढ़े ठग, यह पुरानी चाल है; मुझे तुम्हारे रस्सी के टुकड़े के बारे में सब पता है । "

होशेकोम की जबान लड़खड़ा गई । उसने हकलाते हुए कहा, " लेकिन वह बटुआ तो मिल गया। "

लेकिन उस आदमी ने जवाब दिया, " चुप हो जाओ, एक वह है जिसे मिलता है और एक वह है जो बताता है । जो भी हो इसमें तुम शामिल तो हो ही । "

किसान अवाक् खड़ा रह गया । उसकी समझ में आ गया । वे उस पर यह दोष लगा रहे थे कि उसने अपने गुनाह के साथी , गुनाह के साझीदार से वह बटुआ वापस करवाया था । उसने विरोध करने की कोशिश की । मेज पर बैठे सभी लोग हँसने लगे । वह अपना खाना भी खत्म नहीं कर पाया और लोगों के तानों के बीच वहाँ से चला गया ।

वह शर्म और कोप की स्थिति में घर पहुँचा । वह क्रोध और भ्रम से अवाक् था , उसका गला रुंध रहा था । वह और भी निराश था कि उस पर जो दोष लगाया गया था , उसकी नॉर्मन चतुराई उसमें समर्थ थी । उसके लिए, उसी भ्रमित स्थिति में अपनी निर्दोषता साबित करना असंभव था , क्योंकि उसका छल उजागर हो गया था । शक की इस नाइनसाफी से उसके दिल को धक्का लगा ।

उसने उस अनहोनी के बारे में फिर से बताना शुरू कर दिया । हर दिन उसका इतिहास और लंबा हो जाता । हर बार उसमें वह नए कारण और अधिक जोश भरे विरोध, और अधिक गंभीर कसमें जोड़ता गया, जिन्हें उसने अपने एकांत के क्षणों में सोचा और तैयार किया था । उसका पूरा दिमाग ही रस्सी की कहानी में रम गया था । अब उस पर और भी कम विश्वास किया जाता था , क्योंकि उसका बचाव और अधिक पेचीदा था और उसका तर्क और अधिक सूक्ष्म था ।

ये सब झूठे बहाने हैं ! लोग उसकी पीठ पीछे कहते थे।

उसे यह सब बुरा लगा, अंदर- ही - अंदर वह इसे लेकर घुलता रहा और बेकार की कोशिशों में उसने अपने आपको गला लिया । लोगों के देखते - ही - देखते वह क्षीणकाय हो गया ।

दिल्लगीबाज अब मजे लेने के लिए उससे रस्सी के बारे में बताने को कहते , जैसे वे किसी मुहिम से लौटे सिपाही से उसकी लड़ाइयों के बारे में बताने को कहते हैं । उसके दिमाग पर इसका गहरा असर हुआ और वह कमजोर होने लगा ।

दिसंबर खत्म होते- होते वह बिस्तर से लग गया ।

जनवरी की शुरुआत में उसकी मौत हो गई और मौत से जूझते हुए, उन्माद की हालत में वह अपने निर्दोष होने का दावा करता रहा, वह बार- बार यही कहता रहा -

रस्सी का टुकड़ा, रस्सी का टुकड़ा, देखिए यह रहा, मेयर साहब!