माजई का उपहार : ओ. हेनरी

The Gift of the Magi : O. Henry

(सुप्रसिद्ध अमेरिकी लेखक ओ. हेनरी की एक लोकप्रिय कहानी का भावानुवाद)

एक डॉलर और सतासी सेंट। बस ! इनमें से भी साठ सेंट के पैनी। पैनी, जो कभी किराने वाले, कभी सब्जी वाले तो कभी दूध वाले के साथ बड़ी होशियारी बरतकर बचाए गए थे, जिनसे सौदा करने में कंजूस होने का मूक आरोप सहते सहते शर्म से गाल लाल हो जाते थे। दैला ने तीन बार गिना। एक डॉलर और सतासी सेंट ! और दूसरे ही दिन था क्रिसमस !

ऐसी परिस्थिति में अपने गंदे, छोटे से पलंग पर गिरकर सुबकने के अलावा और चारा ही क्या था ? तो दैला ने वही किया। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि ज़िन्दगी आहों, उसांसों और मुस्कानों का नाम है, जिसमें उसांसों की प्रधानता है।

आइये, जब तक यह गृहणी दुःख की एक सीमा से दूसरी में जा रही है, हम उसके मकान पर एक नजर डाल लें। आठ डॉलर प्रति सप्ताह का सजा हुआ फ्लैट, जिसका वर्णन तो क्या किया जाय, इतना ही कहना काफी होगा कि कम आमदनी वाले लोग ऐसे ही मकान ढूँढा करते हैं।

नीचे दरवाजे पर एक लैटरबॉक्स, जिसमें कभी कोई पत्र नहीं आता, और एक बिजली का बटन, जिसे दबाकर कोई भी घंटी की आवाज नहीं निकाल सकता। उसी के बराबर लगी हुई एक तख्ती पर लिखा है - "मि। जेम्स दिलिंघम यंग"।

'दिलिंघम' शब्द उस समय जोड़ा गया था जब पहले कभी उनके पास समृद्धि हुआ करती थी और जब उन्हें हर हफ्ते तीस डॉलर मिला करते थे। अब, जब आमदनी घटकर बीस डॉलर हो गई है, 'दिलिंघम' के अक्षर धुंधले से दिखाई देते हैं जैसे कि वे अपने प्रथम अक्षर 'दि' में ही सिकुड़कर मिल जाने की आकांक्षा रखते हों।

जब कभी भी 'मि। जेम्स दिलिंघम यंग' घर लौटते और ऊपर अपने फ्लैट में पहुँचते, उन्हें 'जिम' नाम से पुकारा जाता और श्रीमती जेम्स दिलिंघम यंग, जिनसे हम दैला के नाम से परिचित हो चुके हैं, उन्हें आलिंगन में कस लेतीं।

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दैला ने रोना बंद किया और पाउडर लगाने का कपडा अपने गालों पर फिराने लगी। वह खिड़की के पास खड़ी हो गई और मकान के पिछवाड़े, अहाते में घूमती हुई सफ़ेद बिल्ली को यूँ ही देखती रही। कल क्रिसमस का दिन है और उसके पास केवल एक डॉलर और सतासी सेंट हैं, जिनसे वह जिम के लिए उपहार खरीद सके। कितने महीनों से वह एक एक पैनी करके पैसे बचा रही है और उसका यह नतीजा ! एक हफ्ते में बीस डॉलर से होता ही क्या है ? खर्चा उसके अंदाज़ से कुछ ज्यादा ही हो गया था। ऐसा हमेशा ही होता आया है।

जिम के लिए उपहार खरीदने को केवल एक डॉलर सतासी सेंट। उसका प्यारा जिम ! उसके लिए कोई बढ़िया उपहार लाने की योजना बनाने में उसने कितनी सुखद घड़ियाँ बिता दीं थीं। कोई बढ़िया। अनूठी और कीमती चीज़ - कुछ ऐसी जो जिम के पास जो जिम के पास रहने का सौभाग्य पाने की योग्यता रखती हो।

कमरे की दो खिडकियों के बीच बड़ा सा दर्पण था। शायद आपने आठ डॉलर वाले कमरे में कभी बड़ा दर्पण देखा हो। कोई बहुत दुबला और चपल व्यक्ति ही उन लम्बी धज्जियों में छाया देखकर अपनी छवि का सही अनुमान लगा सकता था। दैला भी दुबली होने के कारण इस कला में निपुण थी।

एकाएक खिड़की से घूमकर वह दर्पण के सामने जा खड़ी हुई। उसकी आँखें चमक रहीं थीं लेकिन उसके चेहरे से बीस सेकंड में ही रंग उड़ चला। उसने शीघ्रता से अपने केशों को खोल लिया और अपनी पूरी लम्बाई तक उन्हें नीचे लटकने दिया।

तो, जेम्स दिलिंघम यंग के स्वत्वाधिकार में दो वस्तुएं थीं, जिन पर दोनों को बहुत गर्व था। एक थी जिम की सोने की घड़ी, जो कभी उसके पिता और दादा के पास भी रह चुकी थी। दूसरे थे दैला के केश। अगर सड़क के उस पार वाले फ्लैट में स्वयं शैबा की रानी भी रहती तो उसके हीरे, जवाहरातों और उपहारों को नीचा दिखाने के लिए दैला अपने केशों को सुखाने के बहाने किसी दिन खिड़की से बाहर जरूर लटकाए रखती। और, अगर बादशाह सालोमन भी वहां अपने खजाने का ढेर लगाकर द्वारपाल की तरह खड़े होते तो सिर्फ ईर्ष्यावश उनका दाढ़ी नोंचना देखने के लिए, जितनी बार जिम उधर से निकलता, अपनी घड़ी निकालकर समय जरूर देखता।

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अब दैला के खूबसूरत केश भूरे पानी के झरने की तरह चमकते हुए लहरा कर लटक रहे थे। वे उसके घुटनों से भी नीचे पहुँचते थे और किसी हद तक उसके लिए पोशाक का काम दे रहे थे। और, तब उसने निराशा से शीघ्र ही उन्हें वापस बाँध लिया। एक क्षण के लिए वह सिहर उठी, फिर चुपचाप खड़ी रही और उसकी आँख से एक या दो बूँद आँसू फटी-पुरानी लाल दरी पर बिखर गए।

उसने अपना पुराना लाल जैकेट पहना और उसी रंग का हैट लगाया। अपनी स्कर्ट को एक घुमाव देकर, आँखों में अभी तक वही तेज चमक लिए, वह शीघ्रता से दरवाजे से बाहर निकली और सीढियां उतर कर बाहर सड़क पर आ गई।

जहाँ वह पहुंची, वहाँ लिखा था - "मैडम सोफ्रोनी - सभी प्रकार के केश प्रसाधनों की विक्रेता"। दैला लपककर एक मंजिल जीना चढ़ गई और हाँफते हुए अपने-आपको संभालने लगी। दुकान मालकिन एक बहुत गोरी और मोटी महिला थी।

दैला ने पूछा - "क्या आप मेरे बाल खरीद सकती हैं ?"

महिला ने कहा - "क्यों नहीं, यही तो हमारा धंधा है। जरा अपना हैट हटाकर मुझे आपके बालों पर एक नजर डालने दीजिये।"

दैला ने हैट हटाया तो भूरे केशों का झरना उमड़ पड़ा।

अपने अभ्यस्त हाथों में केशराशि को उठाते हुए महिला बोली - "बीस डॉलर।"

"ठीक है। जल्दी कीजिये," दैला बोली।

और इसके बाद अगले दो घंटे तो मानों सुनहरे पंखों पर उड़ गए। इस दरम्यान वह जिम के लिए उपहार खोजती हुई दुकान-दुकान छान रही थी।

आखिरकार उसे एक चीज़ मिल ही गई। एक ऐसी चीज़ - जो सिर्फ जिम के लिए ही बनी थी, और किसी के लिए नहीं। उसके समान और कोई चीज़ कहीं किसी दुकान में नहीं दिखी थी। वह चीज़ थी - एक साफ़ और सादी, प्लैटिनम की बनी हुई जेबी चेन, जिसकी वास्तविक कीमत बाहरी टीमटाम में न होकर उसकी धातु में थी - जैसी कि हर अच्छी चीज़ की होती है।

वह जिम की घड़ी के योग्य थी। उसे देखते ही उसे लगा, जैसे वह जिम के लिए ही थी। वह बिलकुल जिम के जैसी ही थी। सादी और मूल्यवान ! ये दोनों ही गुण उसमें निहित थे।

उसके इक्कीस डॉलर चुकाकर बाकी बचे सतासी सेंट लिए वह घर लौट आई। घड़ी के साथ वह चेन होने पर जिम जरूर ही अपने साथियों के बीच समय देखने की उत्कंठा रख सकता था। इतनी शानदार घड़ी के साथ चेन की जगह चमड़े का पट्टा होने के कारण वह अक्सर लोगों से छिपाकर ही समय देख पाता था।

घर पहुँचने पर तर्क और विवेक के सामने दैला का नशा जरा सा उतरा। उसने अपने केशों में लगे हुए छल्ले निकाल लिए और गैस का स्टोव जलाकर कुछ काम करने लगी, जिससे उदार प्रेम के आवेश में हुई इस तबाही की पीड़ा कुछ कम हो सके। यह सचमुच एक भयंकर काम है, और बड़ा भी।

कोई चालीस मिनट में ही उसका सिर छोटे-छोटे पास पास जुड़े हुए घुंघराले बालों से ढँक गया जिससे वह स्कूल से मुँह चुराने वाले किसी लड़के की तरह दिखने लगी। उसने दर्पण में अपनी प्रतिच्छाया को बहुत देर तक सावधानी और आलोचनात्मक दृष्टि से देखा।

वह अपने आप से बोली - "अगर मुझे दुबारा देखे बिना ही कहीं जिम ने मार नहीं डाला तो वह जरूर कहेगा कि मैं कोनी द्वीप की किसी नटनी सी लगती हूँ। उफ़ ! पर मैं क्या करती, एक डॉलर और सतासी सेंट में मैं कर भी क्या सकती थी ?"

सात बजे तक कॉफ़ी बन चुकी थी और मांस के टुकड़े तलने के लिए स्टोव पर कड़ाही गरम हो चुकी थी।

जिम को कभी देरी नहीं होती। दैला अपने हाथ में उस चेन को समेटकर मेज के एक कोने पर, दरवाजे के पास बैठ गई, जिसमें होकर जिम रोज अन्दर आता था। तभी उसने नीचे सीढ़ियों पर उसकी पदचाप सुनी और एक क्षण के लिए उसके चेहरे का रंग उड़ गया। रोजमर्रा की साधारण बातों के लिए भगवान से प्रार्थना करना उसकी आदत थी; और तभी उसके होंठों से निकला - "भगवान ! उसे ऐसी मति देना कि वह अब भी मुझे सुन्दर समझे !"

दरवाजा खुला और जिम ने अन्दर आकर उसे बंद कर दिया। वह दुबला और गंभीर दिख रहा था। बेचारा अभी सिर्फ बाईस ही वर्ष का था, ऊपर से यह गृहस्थी का बोझ ! उसे नए ओवरकोट की जरूरत थी और उसके पास दस्ताने भी नहीं थे।

दरवाजे के भीतर आकर जिम थम गया। बिलकुल वैसे ही जैसे बटेर की खुशबू पाकर शिकारी कुत्ता निश्चल हो जाता है। उसकी दृष्टि दैला पर टिकी थी और उसमें एक ऐसी व्यंजना थी जो उससे पढ़ी नहीं जा रही थी, और इस कारण वह एकदम से डर गई।

वह अभिव्यंजना न क्रोध की थी, न आश्चर्य की, न अस्वीकृति की, न आतंक की। न ही वह ऐसी कोई अनुभूति थी जिसे सहन करने के लिए दैला तैयार हो चुकी थी। अपने चेहरे पर वह विशेष भाव लिए वह दैला की ओर सहज घूरता रहा।

दैला छटपटाकर मेज से उतरी और उसके पास गई। रुआँसी होकर कहने लगी - "मेरे प्यारे जिम, मेरी तरफ इस तरह मत देखो। मुझे अपने बाल बेच देने पड़े क्योंकि तुम्हें उपहार दिए बिना मैं यह क्रिसमस काट नहीं सकती थी। बालों का क्या - यह तो घर की खेती है, फिर उग आयेंगे। तुम बिलकुल चिंता मत करो जिम ! मेरे बाल बहुत तेजी से बढ़ते हैं। क्रिसमस मुबारक जिम ! हमें खुश होना चाहिए। तुम्हें पता नहीं, मैं तुम्हारे लिए कितनी अच्छी, कितनी सुन्दर भेंट लाई हूँ !"

"क्या तुमने अपने बाल कटवा लिए ?" जिम ने काफी प्रयत्न करते हुए पूछा; जैसे बहुत विचारने के बाद भी वह उस प्रत्यक्ष सत्य तक न पहुँच पाया हो।

"हाँ, कटवाए भी और बेच भी दिए।" दैला ने कहा - "क्या तुम मुझे पहले की तरह नहीं चाहते ? बालों के बिना भी मैं तो वही हूँ - क्यों ?"

जिम ने जिज्ञासाभरी दृष्टि से कमरे में चारों ओर देखा, फिर मूर्खों की तरह बोला - "तुम कहती हो तुम्हारे बाल चले गए ?"

दैला बोली - "तुम उन्हें मत ढूँढो। उन्हें बेच दिया - बेच दिया और चले भी गए ! क्रिसमस की शाम है जिम, मुझे माफ़ कर दो, क्योंकि मैंने उन्हें तुम्हारे लिए ही बेचा है !" फिर एकाएक गंभीर स्वर में मिठास भर कर वह कहने लगी - "शायद मेरे सिर के बाल गिनती के थे किन्तु तुम्हारे प्रति मेरे प्यार का कोई अंदाजा नहीं लगा सकता। क्या मैं तुम्हारे लिए पकौड़ियाँ बनाऊँ जिम ?"

जिम जैसे बेहोशी से जागता हुआ सा लगा। उसने दैला को छाती से लगा लिया।

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अपने ओवरकोट की जेब से जिम ने एक पैकेट निकाला और उसे मेज पर फेंक दिया। बोला - "मुझे गलत मत समझना दैला ! दुनिया की कोई भी चीज़, चाहे वह बाल कटाना हो या और कुछ, तुम्हारे प्रति मेरे प्यार को कम नहीं कर सकती। लेकिन अगर तुम इस पैकेट को खोलोगी तो तुम्हें मालूम होगा कि पहले तुम्हें देखकर मैं क्यों स्तब्ध रह गया था !"

उसकी सफ़ेद अँगुलियों ने चपलता से उस कागज़ और डोरी को तोडा। पैकेट खुलते ही उसके मुँह से एक उल्लास भरी चीख निकली ! किन्तु अगले ही क्षण ! ये क्या हुआ ?

सहसा सबकुछ नारीसुलभ सिसकियों और आंसुओं के सैलाब में तब्दील हो गया, जिसे रोकने में गृहस्वामी को अपनी सारी तरकीबें काम में लानी पड़ीं।

क्योंकि, मेज पर बिखरा था कंघे-कंघियों का एक संग्रह - मांग में लगाने के और पीछे लगाने के ! जिन्हें बाज़ार में बड़ी दुकान की खिडकियों से देखकर पाने के लिए दैला ने कई दिनों तक भगवान से प्रार्थना की थी। सुन्दर सुन्दर कंघे, खालिस कछुए की हड्डी के, जिनके गोल किनारों पर जड़े हुए नग, उन विलीन हो चुके केशों के रंग पर फबते थे। वह जानती थी कि वे बहुत कीमती थे और उसका निराश ह्रदय केवल उनकी चाहना भर कर सकता था। और अब, अब वे उसके थे ; किन्तु वे घुंघराले बाल, जो उनसे सजने की आकांक्षा रखते थे, अब जा चुके थे।

दैला ने उन कंघों को छाती से चिपका लिया और धीरे से अपनी डबडबाई आँखों को ऊपर उठाकर, मुस्कुराते हुए बोली - "जिम, मेरे बाल बहुत जल्दी बढ़ते हैं।"

जिम ने अभी तक उसके उपहार को देखा नहीं था। उसने उत्सुकता से अपनी खुली हथेली पर रखकर उसे जिम के सामने बढ़ा दिया। उस अमूल्य, जड़ धातु में जैसे उसकी उज्जवलता और उत्कट चेतना चमक रही थी।

"बढ़िया है कि नहीं, जिम ! मैंने इसके लिए सारा शहर छान मारा। अब तुम दिन में सौ बार घड़ी देखा करोगे। जरा अपनी घड़ी तो देना - देखूँ तो यह उस पर कैसी लगती है ?"

किन्तु घड़ी निकाल कर देने के बजाय जिम बिस्तर पर लुढ़क गया और दोनों हाथों पर सिर को टिकाकर मुस्कुराने लगा।

जिम बोला - "दैला, इन क्रिसमस उपहारों को अभी अलग रख दो। अभी ये हमारे काम आने के लिए कुछ ज्यादा ही अच्छे हैं। तुम्हारे कंघे खरीदने के लिए पैसों का इंतजाम करने की खातिर मैंने घड़ी बेच दी है.... अब तुम अगर पकौड़ियाँ बनाओ तो कैसा रहे ?"

(अनुवाद : स. क. शर्मा)

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