तीन अन्धे : कश्मीरी लोक-कथा

Teen Andhe : Lok-Katha (Kashmir)

एक बार की बात है कि एक ब्राह्मण बाजार से हो कर जा रहा था कि वह बोला — “हे नारायण मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि तू मुझे सौ रुपये दे दे तो मैं उनमें से दस रुपये तेरे नाम के गरीबों को दे दूँगा।” क्योंकि उसके पास तो अपने अगले खाने के लिये भी पैसे नहीं थे।

नारायण को उस पर दया आ गयी और उन्होंने उसकी प्राथना सुन ली। ब्राह्मण को तुरन्त ही पैसे मिल गये जिसमें से दस रुपये उसने अपने दूसरे हाथ में रूमाल में बाँध कर निकाल कर रख लिये ताकि जैसे ही उसको कोई गरीब आदमी मिले तो वह उनको उन्हें दे सके।

तभी उसके सामने एक अन्धा आदमी भीख माँगता हुआ आया तो जैसा कि उसने अपनी प्रार्थना में कहा था उसने उसको दस रुपये दान में दे दिये। उस अन्धे को विश्वास ही नहीं हुआ सो उसने पूछा — “आपने मुझे ये पैसे क्यों दिये?”

ब्राह्मण बोला — “नारायण ने मुझे अभी अभी सौ रुपये इस शर्त पर भेजे हैं कि मैं उनमें से दस रुपये उसके नाम पर किसी गरीब आदमी को दे दूँ।”

अन्धा बोला — “भगवान आपको सुखी रखे। मेहरबानी करके मुझे अपना सारा पैसा दिखाइये। मैंने अपनी सारी ज़िन्दगी में सौ रुपये कभी एक साथ नहीं देखे। मुझे उन्हें कम से कम महसूस तो करने दीजिये।”

ब्राह्मण को इसमें उसकी कोई चालाकी नहीं लगी सो उसने अपना रूमाल उस भिखारी के हाथ में रख दिया। बेवकूफ आदमी, वह कुछ ज़रा ज़्यादा ही सीधा रहा होगा। पैसों का रूमाल लेते ही भिखारी ने दिखाया कि वह उसका ही पैसा है सो ब्राह्मण उसके ऊपर चिल्लाया और उससे अपना रूमाल छीन लिया तो भिखारी ने ज़ोर ज़ोर से शोर मचाना शुरू कर दिया — “बचाओ बचाओ यह आदमी चोर है। यह मेरा सब कुछ छीनना चाहता है। ए लोगों, इसको पकड़ लो। अब इससे और लड़ने की ताकत मेरे अन्दर नहीं है।”

आस पास चलते लोग चिल्लाये — “क्या बात है क्या किया है इसने?”

भिखारी बोला — “यह मेरे पैसे छीनना चाहता है। देखो इसके हाथ में मेरे सारे पैसे हैं – नब्बे रुपये। चाहो तो गिन लो मैं सच बोल रहा हूँ।”

लोगों ने ब्राह्मण को पकड़ लिया और उसके रूमाल के पैसे गिने तो वे तो वाकई नब्बे रुपये थे। उन्होंने भिखारी का विश्वास कर लिया और उसका पैसा उसको वापस कर दिया।

ब्राह्मण ने इसका बहुत विरोध किया पर सब बेकार। लोग उसका विश्वास ही नहीं कर रहे थे। उसने उनको अपनी कहानी भी सुनायी पर वह भी उनकी कुछ समझ में नहीं आयी कि ऐसा कैसे हो सकता था। सो वह अपने घर की तरफ जितनी जल्दी हो सकता था चला गया।

जब वह घर पहुँचा तो उसने यह किस्सा अपनी पत्नी को बताया तो उसकी पत्नी ने कहा — “तुम भी कितने बेवकूफ थे कि तुमने उस भिखारी को अपने पैसे दिखा दिये। तुमको अभी भी इस अन्धे भिखारी की चाल समझ में नहीं आयी और तुम यहाँ लौट कर चले आये। जाओ और जा कर उसका पीछा करो और देखो कि वह ये पैसे कहाँ रखता है।”

ब्राह्मण तुरन्त ही बाजार वापस गया। वहाँ उसको वह अन्धा भिखारी मिल गया। वह धीरे धीरे एक मस्जिद की तरफ जा रहा था। मस्जिद के अन्दर पहुँच कर वह वहाँ एक जगह पर बैठ गया।

कुछ देर बाद उसने चारों तरफ देख कर कहा — “यहाँ तो कोई नहीं है।” फिर भी यह यकीन करने के लिये कि वहाँ कोई नहीं था उसने अपनी डंडी को अपने चारों तरफ मारा और फिर बोला — “हाँ यहाँ कोई नहीं है। यह जगह सुरक्षित है।”

फिर वह मस्जिद के एक कोने में गया। वहाँ पहुँच कर उसने फर्श से थोड़ी से मिट्टी हटायी और ब्राह्मण से लिये हुए सौ रुपये नीचे रखे एक मिट्टी के बरतन में रख दिये जो उसने वहाँ छिपा रखा था। फिर वह बोला — “अल्लाह का लाख लाख शुक्र है। सुबह मेरे पास केवल एक हजार रुपये ही थे पर अब मेरे पास ग्यारह सौ रुपये हैं। अल्लाह का बहुत बहुत शुक्रिया।” जब ब्राह्मण ने भिखारी के ये शब्द सुने तो वह बहुत खुश हुआ।

यह करके भिखारी मस्जिद के बाहर निकल आया। जैसे ही वह मस्जिद के बाहर निकला तो ब्राह्मण मस्जिद के अन्दर गया वहाँ से वह मिट्टी का बरतन निकाला और उसे अपने घर ले गया। जब वह घर पहुँचा तो उसकी पत्नी ने उसकी बहुत तारीफ की और उसको फिर से उस अन्धे भिखारी के पीछे पीछे जाने के लिये कहा कि जाओ और देख कर आओ कि वह अब आगे क्या करता है।

ब्राह्मण फिर चला गया। अगले दिन सारा दिन वह उस भिखारी के पीछे पीछे घूमता रहा। उस दिन भी शाम को उसने अपने आपको एक मस्जिद में पाया। वह भिखारी उस दिन की तरह से आज भी कुछ पैसे जो उसने उस दिन कमाये थे वहाँ जमा करने गया था।

जब उस अन्धे आदमी को उसके पैसे वाला मिट्टी का बरतन धरती में गड़ा नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हुआ। वह बेचारा अपना चेहरा और छाती पीट पीट कर रोने लगा। इस सबसे उसने इतना शोर मचाया कि उस मस्जिद का मुल्ला उसको देखने पहुँचा कि यह कौन क्यों रो रहा है। इत्तफाक से यह मुल्ला भी अन्धा था और बहुत चालाक था।

मुल्ला ने भिखारी से पूछा — “यहाँ तुम यह क्या कर रहे हो? सबको परेशान कर रहे हो और मस्जिद की जमीन भी खराब कर रहे हो। चले जाओ यहाँ से। तुम हमारे और हमारी मस्जिद के ऊपर पाप चढ़ाने वाले हो। यहाँ से तुम तुरन्त चले जाओ वरना मैं अभी लोगों को बुला लूँगा और तुमको अपने इस व्यवहार पर पछताना पड़ेगा।”

भिखारी बोला — “जनाब मेरे पास जो कुछ भी था मेरा वह सब डाकू लूट कर ले गये हैं। यहाँ कोई चोर आया और वह मेरा सारा पैसा निकाल कर ले गया। मैं क्या करूँ मैं क्या करूँ?”

मुल्ला बोला — “तुम तो बहुत ही बड़े बेवकूफ हो। यह रोना धोना बन्द करो और इस घटना से अपने अच्छे भविष्य के बारे में सीखो। किसी ने कभी क्या यह भी सुना है कि कोई अपने ग्यारह सौ रुपये एक मिट्टी के बरतन में रख कर इस मस्जिद जैसी आम जगह पर रख दे जहाँ सारे दिन लोग आते जाते रहते हों। अगर तुमने ऐसा ही किया होता जैसा कि मैंने किया तो तुम्हारे साथ यह न हुआ होता।”

गरीब भिखारी ने पूछा — “तुम कैसे करते हो?”

मुल्ला बोला — “मेरे पास एक बहुत बड़ी खोखली डंडी है मैं अपना सारा पैसा उसी डंडी में रखता हूँ और वह डंडी मैं हमेशा अपने पास रखता हूँ। देखो यह यहाँ है।” कह कर उसने अपनी डंडी उसके पैर पर मारी।

फिर बोला — “जाओ तुम एक और डंडी ले लो और फिर अपने पैसे के बारे में निश्चिन्त हो जाओ।”

यह सुन कर ब्राह्मण ने अन्धे मुल्ला की तरफ इस तरह से ध्यान से देखा जैसे वह उसका पैसा भी ले लेगा। सो उसने एक बड़ी डंडी ली उसको खोखला किया और उसको मुल्ला की डंडी जैसा बना दिया। जैसे ही उसने यह कर लिया और फिर जैसे ही उसको मौका मिला उसने मुल्ला की डंडी से अपनी डंडी बदल ली।

मुल्ला जब भी प्रार्थना करता था तो अपनी डंडी जमीन में रख देता था। और क्योंकि वह अपनी प्रार्थना दिन में कई बार करता था इसलिये ब्राह्मण को यह मौका ढूँढने में बहुत देर इन्तजार नहीं करना पड़ा।

ब्राह्मण की पत्नी ने जब यह सुना और बहुत सारे पैसे देखे तो वह तो बहुत खुश हुई। उसने अपने पति से कहा — “अब तुम फिर जाओ और देखो कि यह मुल्ला अब क्या करता है। हो सकता है तुम्हें उसका कुछ और खजाना हाथ लग जाये।”

ब्राह्मण ने उसका कहना माना और वह फिर से उसी मुल्ला की तरफ चल दिया। वहाँ जा कर वह क्या देखता है कि उसके पास एक और मुल्ला बैठा हुआ है। इत्तफाक से यह दूसरा मुल्ला भी अन्धा था।

पहला वाला मुल्ला अपने पैसे खो जाने पर दूसरे मुल्ला के सामने रो रहा था। तो दूसरे अन्धे मुल्ला ने उससे कहा — “तुम्हारी बेवकूफी के लिये अल्लाह का तुम पर कुफ्र पड़े। अब तुम मेरी बात सुनो कि मैं अपने पैसे का क्या करता हूँ।

मैं अपना सारा पैसा अपने कपड़ों में सिल कर रखता हूँ। वहाँ से मेरा पैसा कौन ले सकता है। मेरी सलाह मानो तो तुम भी ऐसा ही कर लो।”

जब ब्राह्मण ने दूसरे मुल्ला के ये शब्द सुने तो वह तुरन्त ही वहाँ से भाग गया और मधुमक्खियों से भरा एक छत्ता खरीद लाया और उसको उसने एक मिट्टी के बरतन की तली में लगा दिया। छत्ते के ऊपर उसने काफी सारा शहद रख दिया। इतना करके वह हँसा और बोला “हा हा हा उसको डराने के लिये इतना काफी है।”

फिर उसने एक मुसलमान का वेश बनाया और दूसरे मुल्ला को वह मिट्टी का शहद भरा बरतन देने के लिये उसके घर की तरफ चल दिया। उसके घर जा कर उसने उसको वह बरतन भेंट में दे दिया।

मुल्ला शहद से भरा बरतन पा कर बहुत खुश हुआ। उसने उसको आशीर्वाद दिया। बरतन दे कर ब्राह्मण चला आया। पर वह अपने घर नहीं गया। वह उसके घर से थोड़ी दूर जा कर इन्तजार करने लगा कि कब वह अपना शहद खत्म करता है।

जैसे ही ब्राह्मण उसके घर से गया मुल्ला ने शहद निकालने के लिये बरतन में हाथ डाला कि वह उसको बड़े बरतन में से निकाल कर छोटे छोटे बरतनों में रख दे। क्योंकि वह यह नहीं चाहता था कि कोई दूसरा उसकी इतनी सारी चीज़ को उसके पास एक ही बार में देख ले।

उसने शहद से एक दो छोटे बरतन भरे ही थे कि अब उसका हाथ शहद की बजाय मधुमक्खियों के छत्ते से जा लगा।

मधुमक्खियों को उसका यह बुरा व्यवहार बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। वे बरतन में से बाहर उड़ीं और उसको चारों तरफ से काटने लगीं। वह अपना शरीर पीटता पीटता घर के बाहर की तरफ भागा पर मधुमक्खियाँ भी अपने इरादे की पक्की थीं। वे भी उसको छोड़ नहीं रही थीं।

ऐसे समय में कोई उसकी सहायता भी नहीं कर पा रहा था। सो उस अन्धे मुल्ला को अपने कपड़े उतार कर एक तरफ को फेंकने ही पड़े और घर के अन्दर जाना पड़ा।

मधुमक्खियाँ भी उसके पीछे पीछे भागीं। वह बेचारा तो उनके काटने से मर ही जाता अगर उसकी पत्नी एक शहतूत की मोटी सी शाख लिये वहाँ नहीं आ गयी होती और उसने उससे उनको नहीं मार भगाया होता। इस बीच ब्राह्मण ने मुल्ला के कपड़े उठाये और अपने घर भाग गया। उसकी पत्नी उसको देख कर बहुत खुश हुई। वह बोली — “हम लोग तो अब बहुत अमीर हो गये। अब हमें अपनी बाकी ज़िन्दगी के लिये कुछ नहीं चाहिये।”

जैसे ही मुल्ला को मधुमक्खियों के काटने से थोड़ा सा होश आया तो उसने देखा कि उसके तो कपड़े ही गायब हैं। यह देख कर उसको बहुत परेशानी हुई।

वह तुरन्त है पहले वाले अन्धे मुल्ला के पास गया और उससे अपना सारा हाल कहा। दोनों ने आपस में मिल कर कुछ सलाह की सो वे दोनों मिलकर अन्धे भिखारी के पास गये और उसे जा कर अपनी अपनी कहानियाँ बतायीं।

तीनों ने मिल कर प्लान बनाया कि राजा के पास चला जाये और उससे प्रार्थना की जाये कि वह इस चोर की ठीक से खोज करे। ऐसा ही किया गया।

राजा ने उन तीनों की बात ठीक से सुनी और उन तीनों की कहानियों में रुचि लेने लगा। वह खुद भी यह जानने की कोशिश में लग गया कि ऐसा कौन सा आदमी था जिसने इन तीन होशियार और चतुर लोगों को धोखा दिया।

उसने सारे शहर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि जिसने भी यह सब किया है आ कर स्वीकार करे तो राजा उसको माफ भी कर देगा और साथ में उसको अच्छा इनाम भी देगा।

यह सुन कर ब्राह्मण राजा के पास गया और उसको सारी कहानी सुनायी। राजा बोला — “शाबाश। पर यह तो बताओ कि यह सब तुमने अकेले ने किया या फिर किसी और ने भी तुमको इस बारे में सलाह दी।”

ब्राह्मण बोला — “मेरी पत्नी ने मुझे यह सब करने के लिये मुझे उकसाया हुजूर और मैंने यह सब किया।”

राजा बोला “बहुत अच्छे।” उसने उसको बहुत सारी भेंटें दीं और फिर उसको वहाँ से भेज दिया।

(सुषमा गुप्ता)

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