तानेबाज भाभी : पंजाबी लोक-कथा

Taanebaj Bhabhi : Punjabi Lok-Katha

एक समय की बात है एक राजा था। उसके दो पुत्र थे। उसकी रानी जब बीमार हुई तो उसने राजा से कहा, “यदि मेरी मृत्यु हो जाए, तो तुम दूसरा विवाह मत करवाना।" राजा ने कहा, "अच्छा।” राजा ने दूसरा विवाह न करवाने का रानी को वचन दे दिया। कुछ दिनों के ही बाद रानी की मृत्यु हो गई। उसके क्रियाक्रम के बाद राजा अकेले ही रहने लगा, उसने दूसरा विवाह नहीं करवाया।

राजा का बड़ा पुत्र जब यौवनावस्था में आया, तो राजा ने उसका विवाह कर दिया। अब राजा का छोटा पुत्र रह गया, जिसका विवाह होना अभी बाकी था। पहले तो उसकी भाभी उससे बहुत स्नेह करती थी, वह उसके खाने-पीने का पूरा-पूरा ध्यान रखा करती थी, परन्तु धीरे-धीरे वह उससे चिढ़ने लग गई।

एक दिन बात है कि राजा के छोटे पुत्र ने कहा, “भाभी ! मुझे खाना दो।" यह सुनकर रानी ने कहा, "रोज ही खाना। आज तो मैं तुझे खाना दे रही हूँ। किन्तु अब जल्द-से-जल्द किसी-न-किसी लड़की से शादी कर लो जो तेरे खाने-पाने का ध्यान रखे। वैसे भी तुझे कौन-सी नूरां परी मिलेगी किसी सीधी-सादी लड़की से शादी कर लो।" उसके देवर ने कहा, "अच्छा।" और यह कहकर वह अपनी भाभी से नाराज़ होकर घर से चल पड़ा।

मार्ग में एक गाँव आया। उसे बहुत भूख लगी थी। वह गाँव के एक दरवाज़े के पास से गुजरा। दरवाज़े पर एक वृद्ध व्यक्ति बैठा हुआ था। उसके पास ही उसके पोते खेल रहे थे। राजकुमार ने उस बाबा के पास जाकर उनको प्रणाम किया और कहा, “बाबाजी ! मुझे बहुत भूख लगी हुई है। कृपा करके दो रोटी और एक गिलास लस्सी का दे दो।" उसने उसी पल अपने पोते को बुलाया और कहा, “जाओ, दो रोटियाँ और एक गिलास लस्सी का लेकर आओ।" वह रोटी खाकर वहाँ से चल पड़ा।

पीछे से आवाज लगाकर उस वृद्ध ने राजकुमार से पूछा, "तुम कहाँ जा रहे हो?" उसने कहा, "सोते हुए मशीदो को जगाने के लिए जा रहा हूँ।" उस वृद्ध ने कहा, "तुम मेरा भी एक सन्देश ले जाओ और उसका उत्तर वापस आते हुए लेते आना।" राजकुमार ने कहा, "बाबाजी ! बताओ, आपका क्या सन्देश है ?" उस वृद्ध ने कहा, "जब हमारे गाँव में तीजों का मेला लगता है, तो आग क्यों लगती है ?" राजकुमार कहने लगा, “अच्छा बाबाजी ! मैं आपका यह संदेश मशीदो को दे दूंगा।" राजकुमार वृद्ध को प्रणाम करके चला गया।

वह राजकुमार चलता गया, चलते-चलते जब वह समुद्र के पास पहुँचा, तो उसको एक बधियाड़ मिला। उसने कहा, “यार, कहाँ जा रहे हो ?" राजकुमार कहने लगा, “यार क्या पूछते हो? मैं तो सोते हुए मशीदो को जगाने के लिए जा रहा हूँ।” उस बघियाड़ ने कहा, “मेरा भी एक सन्देश लेते जाओ।” राजकुमार ने कहा, "तुम्हारा सन्देश तो ले जाऊँगा, परन्तु यदि तुम मुझे यहाँ से पार कराओगे।” बधियाड़ ने उसे समुद्र पार करा दिया तो कहा, "लो, तुम समुद्र तो पार कर गये, अब मेरी ओर से तुम मशीदो से पूछकर आना कि मेरी मृत्यु कब होगी?

यह सन्देश लेकर राजकुमार आगे चल पड़ा। चलते-चलते जब वह बहुत दूर चला गया तो उसे एक दैत्य मिला। उसने कहा, “हे मानव ! तुम कहाँ जा रहे हो ?” राजकुमार ने बड़े रौब और समझदारी से कहा, 'मैं सोते हुए मशीदो को जगाने जा रहा हूँ। दैत्य ने उससे कहा, "मेरा भी एक सन्देश ले जाओ। उस राजकुमार ने कहा, "तुम्हारा सन्देश मैं तब लेकर जाऊँगा, जब तुम मुझे यह नदी पार करवाओगे। उस दैत्य ने उसे नदी पार करवा दी, तो राजकुमार ने कहा, "अब बताओ, तुम्हारा क्या सन्देश है ?" दैत्य ने कहा, "यह पता लगाकर आना कि मेरी मृत्यु कब होगी?" उसके पश्चात् राजकुमार आगे ही चलता गया।

आगे चलकर उसे एक मशीद मिल गया। वहाँ जाकर उसने मशीदो के चबूतरे को दूध से धोया और अच्छी प्रकार से साफ़ करके उस पर धूपबत्ती की। मशीद उठ गया। जागते ही उन्होंने राजकुमार की तरफ देखकर पूछा, “ऐ सुन्दर युवक ! तुम यहाँ कैसे आ गए ?" उसने सारी कहानी सुनाई। मशीद ने कहा, “माँगो, क्या माँगते हो ?” राजकुमार ने कहा, "आप का दिया हुआ सब कुछ है।" उन्होंने अन्त में तीसरा वचन कहा और पूछा, “तीसरा वचन है। माँगो, क्या चाहते हो? यह वचन ख़ाली न जाए। राजकुमार ने कहा, "चाहिए तो कुछ नहीं, परन्तु मेरे पास कुछ सन्देश हैं, उनके उत्तर दे दीजिए। मैं वापस चला जाऊँगा। मुझे उन सन्देशों का उत्तर लेकर जाना है। यदि दे दो तो आपकी बड़ी कृपा होगी। मैं यही समझूँगा कि आपने सब कुछ दे दिया।" मशीद ने पूछा, “तुम्हारे पास कौन-से सन्देश हैं। उनके उत्तर साथ ही लेते जाना।"

राजकुमार ने कहा, “एक तो यह है कि घोड़ी खेतों में ऐसे ही चर रही थी। उसने कहा हे भाई ! मशीद से पता लेकर आना कि मुझको कोई क्यों नहीं पकड़ता। कोई मेरी सवारी नहीं करता। ऐसी क्या बात है ?"

मशीद ने कहा, “वह इसलिए कि जो भी वहाँ से गुजरता है, वह यही सोचता है कि यह किसी की होगी और यहीं कोई बैठ कर इसे चरा रहा होगा। इसलिए उस पर कोई सवार नहीं होता।"

फिर मशीद ने कहा, "अब दूसरा सन्देश बताओ।” राजकुमार ने कहा, "मुझे एक दैत्य मिला। वह पूछता था कि उसकी मृत्यु कब होगी ?" यह सुनकर मशीद ने उत्तर दिया, “उसकी मृत्यु तब होगी, जब उसका धन जोकि एक बरोटे के वृक्ष के नीचे दबा हुआ है, उसमें से आधा वह किसी और को देगा, नहीं तो वह इसी प्रकार तड़पता और दुःखी रहेगा।

फिर राजकुमार ने तीसरा सन्देश बताया और पूछा कि उसको एक बघियाड़ मिला था। वह पूछता था, उसकी मृत्यु कब होगी ?” मशीद ने बड़े प्यार से कहा, “तुम तो सभी मृत्यु के बारे में ही पूछ रहे हो। फिर राजकुमार ने कहा, “जी, मुझे तो यही सन्देश दिये हैं।"

मशीद ने कहा, 'सुनो ! वह बघियाड़ पहले एक ब्राह्मण हुआ करता था। वह बड़ा होनहार दयालू और महापुरुष था, परन्तु वह किसी को अपनी विद्या नहीं देता था। अब यदि वह किसी को अपनी आधी विद्या दे दे तो ही उसकी मृत्यु होगी और वह इस संसाररूपी जंजाल से सदा के लिए मुक्त हो जाएगा।

मशीद ने फिर राजकुमार को कहा, "और बताओ, यदि कोई सन्देश और हो तो वह भी पूछो।"

राजकुमार ने कहा, “महाराज ! एक सन्देश और भी है। वह यह कि एक गाँव में, मुझे एक वृद्ध मिला था। उसने मुझे रोटी और लस्सी का एक गिलास भी दिया था, ताकि मैं अपने पेट की अग्नि शांत कर सकूँ। वह कहता था कि जब गाँव में तीज का त्यौहार आता है, उस अवसर पर एक बड़ा भारी मेला लगता है, तो उस गाँव में उसी समय आग क्यों लगती है ?"

फिर मशीद ने कहा, "ब्राह्मणों की एक कुँवारी कन्या उस गाँव में है। जब वह तीज लगती है, तब लड़कियाँ नए वस्त्र और आभूषण पहन कर जाती है। वह भी कहती है कि यदि मेरे भी माता-पिता या कोई भाई होता तो मैं भी इसी प्रकार वस्त्र और आभूषण पहन कर तीज के मेले में जाती। यह बात वह आह भरकर मन-ही-मन सोचती है। जब वह आह लेती है, तब वहाँ आग लग जाती है।"

फिर राजकुमार ने पूछा, "बस, यह चार ही सन्देश थे जो मैंने आपको बताए और आपने उनका भी उपाय बता दिया। अब मुझे जाने की आज्ञा है ?"

मशीद ने आशीर्वाद दिया और कहा, “जाओ, अब जाकर अपने घर में बसो। राजकुमार मशीद को प्रणाम करके वापस चल पड़ा। जब वह आगे आया, तो उसने देखा कि घोड़ी उसी प्रकार चर रही थी। उसको उसने पूछा, “हे भाई ! क्या आप मेरा सन्देश ले आए ? राजकुमार ने कहा, "हाँ, मैं ले आया।" घोड़ी ने पूछा, "बताओ, आप क्या उत्तर लेकर आए हो?" राजकुमार ने कहा, "तुम इसलिए चरती-फिरती हो, कि तुम्हारा दाना ही यहाँ का था और तुम्हें कोई इसलिए नहीं पकड़ता, क्योंकि शायद तुम किसी की होगी और प्रत्येक यहाँ से गुजरने वाला यही सोचता है कि वृक्ष के नीचे बैठा कोई तुम्हारी रखवाली कर रहा होगा। इसलिए तुम पर कोई सवार भी नहीं होता।" यह सुनकर घोड़ी ने कहा, "फिर भाई ! तुम ही सवार हो जाओ और तो किसी ने सवार होना ही नहीं।"

राजकुमार यह सुनकर शीघ्रता से घोड़ी की पीठ पर बैठ गया और धीरे से इशारा करके कहा, “चलो ! मेरी मंजिल भी इधर ही है। इसलिए इधर को ही चलो।"

राजकुमार घोड़ी पर चढ़कर उत्तर की ओर जा रहा था कि उसको दैत्य मिल गया और पूछने लगा, “क्यों भाई ! मेरा सन्देश का उत्तर ले आए ?" यह सुनकर राजकुमार ने कहा, "हाँ ! भाई, मैं आपके सन्देश का उत्तर ले आया हूँ।" दैत्य ने पूछा, “क्या ? जल्दी बताओ।" राजकुमार ने कहा, "आपके बरोटे के वृक्ष के नीचे जो धन दबा हुआ है, यदि आप उसमें से आधा धन किसी और को दे दो, तो आपकी मृत्यु हो जाएगी। इस बार आपको इस संसार के जंजाल में नहीं पड़ना पड़ेगा, बल्कि सदा के लिए मुक्ति मिल जाएगी।

दैत्य ने कहा, "जो आधा धन मैं किसी और को दूंगा, वह आधा आप ही मुझसे ले जाओ।" राजकुमार ने उसी पल दैत्य से आधा धन ले लिया और अपना रथ भर लिया। दैत्य ने कहा, "भाई ! मैंने तो अभी मर जाना है यदि आपको और धन की कभी आवश्यकता पड़े तो यहाँ से ले लेना।" जब राजकुमार अपना रथ लेकर चल पड़ा तो उस दैत्य की मृत्यु हो गई।

इसी प्रकार धीरे-धीरे आगे चलते हुए उसे गाँव वाला वृद्ध मिल गया। अब वहाँ उसे (राजकुमार को) फिर से भूख लगने लगी। उस वृद्ध के पास पहले की तरह उसके पोते खेल रहे थे। उसने घोड़ी से उतरकर उनसे कहा, "बाबा ! मुझे दो रोटी और एक गिलास लस्सी का दे दो।" बाबा ने अपने पोते से कहा, "जाओ ! इसको एक लस्सी का गिलास और दो रोटियाँ लाकर दे दो।" जब वे रोटी लेने चले गए तो उस वृद्ध ने राजकुमार से पूछा, "क्यों भाई ! मेरा सन्देश का कोई उत्तर लाए अथवा नहीं ?" राजकुमार ने कहा, "आपके गाँव में ब्राह्मणों की एक कुंवारी कन्या रहती है। जिसका विवाह नहीं होता। जब तीज का मेला लगता है, तो सभी लड़कियाँ सुन्दर वस्त्र और आभूषण पहनकर मेला देखने के लिए जाती हैं। वह आह भरती है कि यदि उसका भी कोई माता-पिता या भाई ही होता तो वह भी अच्छे वस्त्र और आभूषण पहनकर मेला देखने जा पाती। बस जब वह आह भरती है, तो उसकी आवाज़ दरगाह तक जाती है और आग लग जाती है।"

वृद्ध ने कहा, "और तो किसी ने उससे विवाह करना नहीं, तुम्हीं उससे विवाह कर लो। इतने में उस वृद्ध के पोते दो रोटियाँ और एक गिलास लस्सी का लेकर आ गए। राजकुमार ने रोटियाँ खाकर लस्सी का गिलास पिया और उधर उस वृद्ध ने अपने गाँव के सभी लोगों को इकट्ठा करके ब्राह्मणों की उस लड़की का विवाह इस राजकुमार से करवा दिया तो वह उसे लेकर आगे बढ़ा।

अब मार्ग में उस राजकुमार को वही बघियाड़ मिल गया, उसे भी राजकुमार ने उसका सन्देश प्रदान किया, “आपने अपनी विद्या किसी सुपात्र को ही प्रदान करनी है।" यह सुनकर उस बघियाड़ ने कहा, "और किसी को विद्या क्या देनी है, तुम ही ले लो।" राजकुमार ने बघियाड़ से आधी विद्या ले ली और बघियाड़ की मृत्यु हो गई।

अब दैत्य का आधा धन, बघियाड़ से आधी विद्या लेकर और ब्राह्मणों की लड़की लेकर वह राजकुमार अपने घर को चल पड़ा। जब वह घर पहुँचा तो उसकी भाभी यह सब देखकर हैरान हो गई।

राजकुमार ने अपनी भाभी से कहा, “देखा भाभी ! मैं तो नूराँ परी को लेकर आया हूँ और साथ ही मैं विद्या में भी निपुण हो गया हूँ और इतना सारा धन, जो हमारी सात पुश्तों तक समाप्त नहीं होगा। इतना ही नहीं, यदि और धन की आवश्यकता उत्पन्न होगी, तो और ले आऊँगा। देखा, साथ ही यह घोड़ी कितनी सुन्दर है ! अब राजकुमार ने अपना सारा घर धन से भर लिया और अपने लिए अच्छा-खासा महल भी बनवा लिया।

फिर उसकी भाभी कहने लगी, 'न देवर जी ! अब अलग मत होवो।" वह कहने लगा, "अब मुझे तुम्हारी क्या आवश्यकता है ? अब तुम्हें देवर से क्या मतलब है ?" फिर वह अलग हो गया और प्रसन्नतापूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगा।

साभार : डॉ. सुखविन्दर कौर बाठ

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