स्वल्प जाँच (कहानी) : गुरुदत्त

Swalp Jaanch (Hindi Story) : Gurudutt

न्यायिक स्वल्प जाँच की सुविधा का अभिप्राय है कि न्यायालयिक कार्यों की शीघ्र संपन्नता । किंतु शीघ्रता में कभी न्याय की अपेक्षा अन्याय भी हो जाता है । इसका यहाँ एक रोचक उदाहरण, जो मेरे मित्र ने मुझे सुनाया था , पाठकों के मनोरंजन के लिए दिया जा रहा है । विवरण इस प्रकार है

एक दिन मैं अपने चिकित्सालय में बैठा हुआ था कि मेरा मित्र श्रीनाथ आया और कहने लगा, " वैद्यजी, न्याय की वेदी पर पचास रुपए और दो दिन का समय व्यर्थ गँवाकर आ रहा हूँ । "

" क्यों , क्या हुआ? मैंने साश्चर्य पूछा, “ लगभग दो सप्ताह हुए, मैं अपने प्रातःकालीन भ्रमण से वापस आ रहा था । जब मैं अपने कूचे के मोड़ पर पहुँचा, तो मैंने देखा कि एक ट्रैफिक कांस्टेबल मेरे एक मित्र पुरुषोत्तम को पकड़े हुए है । अपनी साइकिल थामे पुरुषोत्तम कांस्टेबल की बगल में खड़ा था । उसको इस प्रकार कठिनाई में पड़ा देख मैं उसके पास गया और उससे इसके विषय में पूछने लगा ।

" कांस्टेबल कहने लगा, ट्रैफिक के नियमों का उल्लंघन करने के अपराध में मैंने इनका चालान किया है । यदि यह कोई अपना जमानती प्रस्तुत नहीं कर पाएँगे , तो मैं इनको कोतवाली ले जाऊँगा ।

" मैंने इसके लिए स्वयं को प्रस्तुत किया , तो पुरुषोत्तम के साथ उस कांस्टेबल ने मेरा नाम भी अपनी डायरी में लिख लिया, फिर उसने हम दोनों से हस्ताक्षर कराए और तब वह पुरुषोत्तम से कहने लगा, अगले शुक्रवार को 11 बजे कचहरी में उपस्थित हो जाना । इस प्रकार पुरुषोत्तम को उससे मुक्ति मिली ।

" निश्चित तिथि को मैंने पुरुषोत्तम को कचहरी में उपस्थित होने के विषय में स्मरण कराया । उसने बताया, मुझको स्मरण है और जैसा कि चालान के केसों में होता है, तदनुसार वह जुरमाना देने के लिए कुछ रुपए भी साथ ले जा रहा है ।

" लगभग 12 बजे मैं भी उस दिन कचहरी जा पहुँचा । मैं निश्चित रूपेण जानना चाहता था कि वह कचहरी गया है अथवा नहीं । आवागमन के नियमों का उल्लंघन करनेवाले सब लोगों को भीतर बुलाकर उन पर जुरमाना किया गया, किंतु पुरुषोत्तम का नाम ही नहीं पुकारा गया । भ्रम निवारण के लिए मैंने जब कोर्ट -क्लर्क से पूछा कि पुरुषोत्तम को कितना जुरमाना हुआ है, तो उसने सूची देखकर बताया , यहाँ पुरुषोत्तम नाम के किसी व्यक्ति का नाम नहीं है, जिस पर जुरमाना किया गया हो । मैंने सोचा कि कांस्टेबल नाम लिखना भूल गया होगा , अतः इस मामले को समाप्त समझ हम दोनों लौट आए ।

" हम दोनों अपने मन में यह संतोष करते हुए लौटे कि कम - से- कम वे दो रुपए तो बचाए हैं , जो उन दिनों इन चालानों में सामान्यतया जुरमाने के देने होते थे।

" इसके एक सप्ताह बाद मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि कोई पुलिस का सिपाही मेरा दरवाजा खटखटा रहा है । मैंने बाहर आकर इसका कारण जानना चाहा । उसने कहा, आपके गिरफ्तारी के वारंट हैं । मैंने इसका कारण पूछा, तो उसने बताया कि आवागमन के नियमों का उल्लंघन करने के अपराध में आपका चालान किया गया था , किंतु निश्चित तिथि को आप न्यायालय में उपस्थित नहीं हुए । यह सुनकर तो मैं आश्चर्यचकित रह गया । मैंने कांस्टेबल से कहा कि कहीं तुम भूल तो नहीं कर रहे । उसने वारंट दिखा दिया, जिस पर स्पष्ट मेरा नाम और पता लिखा हुआ था । मेरे लिए इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं रह गया था कि मैं अपने किसी पड़ोसी को बुलाकर जमानत दिलवाऊँ । जमानत के बाद मैंने वारंट पर हस्ताक्षर किए और वारंट को अपना मान रख लिया । " निश्चित तिथि पर मैं सिटी मजिस्ट्रेट की कचहरी में उपस्थित हो गया । कोर्ट - क्लर्क से मैंने अपने गिरफ्तारी के वारंट के विषय में जानना चाहा । उसने मुझे उस दिन के केसों की सूची दिखा दी । उसमें पुरुषोत्तम का नाम साक्षी के रूप में था । मेरा नाम उसमें अपराधी के स्थान पर था । मैं तुरंत स्थिति समझ गया कि उस दिन केस के लिए सिपाही ने गलत रिपोर्ट कर दी होगी । अभियुक्त के स्थान पर पुरुषोत्तम के नाम की अपेक्षा मेरा नाम रख दिया है और मेरा नाम पुकारे जाने पर मेरी अनुपस्थिति में मेरे वारंट निकाले गए हैं ।

" मजिस्ट्रेट के आने पर जब मेरा नाम पुकारा गया तो मैं सामने खड़ा हो गया ।
मजिस्ट्रेट बोला, "मिस्टर नाथ! "
मैंने कहा , जी हुजूर !
"फिर मेरे खिलाफ लगाए गए आरोपों को पढ़कर उसने मुझसे पूछा, आप उस दिन कचहरी में उपस्थित क्यों नहीं हुए ?
" क्योंकि मैं अभियुक्त नहीं था , मेरा नाम गलती से अभियोग - सूची में रखा गया था ।
" नहीं, ऐसा नहीं हो सकता । बिना किसी बात के आपका चालान करने में सिपाही का क्या उद्देश्य हो सकता है ?
" जनाब...

" मैं कहना चाहता था कि पुलिसमैन ने क्या भूल की है, किंतु मजिस्ट्रेट बीच में ही बोल पड़ा, आप उस दिन कोर्ट में हाजिर नहीं हुए, इस कारण आपको 50 रुपए और आवागमन के नियमों का उल्लंघन करने के 2 रुपए जुरमाना किया जाता है ।

"मैंने प्रतिरोध किया, लेकिन हुजूर !...
" मजिस्ट्रेट ने मुझे फिर बीच में टोककर गुस्से में कहा , जाओ, जुरमाना जमा करो, नहीं तो चालान का जुरमाना बढ़ाकर 50 रुपए कर दूंगा ।
" इतना कहकर वह तुरंत दूसरा अभियोग चालू करने के लिए अपने क्लर्क की ओर मुड़ा ।
" क्लर्क ने जोर से पुकारा, ‘ रहीमख्श ताँगावाला ।
" सो वैद्यजी! हमारे ट्रायल की बलिवेदी पर पचास रुपए और जीवन के दो दिन स्वाहा कर आया हूँ । "