सोने की चिड़िया : परी कहानी

Sone Ki Chidiya : Fairy Tale

बहुत पुराने ज़माने की बात है एक राजा था। उसके महल में एक बहुस सुन्दर बाग था। बाग में तरह-तरह के फूलों के पौधे और अनेक प्रकार के मीठे फलों के पेड़ थे। लेकिन इस बाग में सबसे आश्चर्यजनक चीज़ थी एक सेब का पेड़ था, जिसमें सोने के सेब लगते थे।
राजा ने इस पेड़ की देख-भाल का खास इंतजाम कर रखा था। जब इसके फल पकते थे तो चौकीदार रात-दिन पेड़ का पहरा दिया करते थे, ताकि कोई सोने का सेब चुराकर न ले जाए।
लेकिन एक दिन की बात है कि बाग के माली ने जब सोने के सेबों को गिना तो उसमें से एक सेब गायब था। उसने दौड़कर राजा को खबर दी। राजा फौरन बाग में पहुंचा। उसे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि देख-भाल का इतना पक्का इंतज़ाम होने पर भी एक सेब किसी ने चुरा लिया। उसने ऐलान किया कि कोई सोने के सेब को चुराने वाले चोर का पता देगा, उसे इनाम दिया जाएगा।

सबसे बड़े राजकुमार ने राजा से कहा कि रात में वह पहरा देगा और चोर को पकड़ने की कोशिश करेगा। राजा ने उसको इसकी इजाज़त दे दी। बड़ा राजकुमार रात में पहरा देने लगा, लेकिन दो घंटे बाद ही उसे नींद आ गई और वह सो गया।
सुबह उठकर जब उसने सेबों को गिना तो वह देखकर चकित रह गया कि रात-भर में एक और सेब गायब हो गया था। इसके बाद दूसरी रात को मंझले राजकुमार ने पहरा देने का काम संभाला, उसे भी नींद आ गई और तीसरा सेब चोरी हो गया।
राजा बहुत चिन्तित था। दरबारियों की भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए ! सब लोग उदास बैठे थे कि इतने में सबसे छोटा राजकुमार आया और उसने कहा कि आज की रात मैं पहरा दूंगा और चोर को पकड़ूंगा। राजा इस राजकुमार से खुश नहीं रहता था। वह उसे मूर्ख भी मानता था। उसने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘तुम क्या समझते हो, क्या तुम्हें इसमें सफलता मिलेगी ? तुमसे बड़े और तुमसे ज़्यादा समझदार दोनों राजकुमार इस काम में असफल हो चुके हैं। तुम जाओ अपना काम करो।’’
लेकिन छोटा राजकुमार नहीं माना। उसने राजा से प्रार्थना की कि उसे एक मौका ज़रूर दिया जाए। अन्त में राजा राज़ी हो गया।

राजकुमार रात में पहरा देने लगा। उसने तय किया कि वह किसी भी हालत में नहीं सोएगा और चोर को ज़रूर पकड़ेगा। जब आधी रात हुई और बारह बजे का आखिरी घंटा बजा तो राजकुमार ने देखा कि एक सुन्दर सोने की चिड़िया कहीं से उड़ती हुई आई और सेब के पेड़ पर बैठ गई। उसने देखते-देखते सोने का एक सेब तोड़कर अपनी चोंच में पकड़ लिया।
राजकुमार ने फौरन निशाना साधकर तीर चला दिया। लेकिन तीर चिड़िया को नहीं लगा और वह पंख फड़फड़ाकर उड़ गई। हां, इतना अवश्य हुआ कि उसका एक सुनहरा पंख टूटकर ज़मीन पर आ गिरा। दूसरे दिन सुबह राजकुमार ने राजा को सारी बात, बता दी और वह सोने का पंख उनके सामने रख दिया। पंख इतना सुंदर और इतना कीमती था कि राजा उसे देखता ही रह गया उसने कहा, ‘‘अगर उस चिड़िया का एक पंख इतना सुन्दर है तो वह पूरी चिड़िया किनती सुन्दर होगी ! मैं चाहता हूं कि उस चिड़िया को कोई पकड़ लाए।’’
सबसे पहले बड़ा राजकुमार इस काम के लिए रवाना हुआ। चलते-चलते वह एक जंगल में पहुंचा। वहां उसने एक लोमड़ी को एक पेड़ के नीचे आराम करते हुए देखा। राजकुमार ने मौका देखकर तीर अपने धनुष पर चढ़ा लिया । वह तीर छोड़ने ही जा रहा था कि लोमड़ी ने चिल्लाकर कहा, ‘‘राजकुमार, मुझे मत मारो। मुझे पता है कि तुम सोने की चिड़िया की खोज में निकले हो। तुम मेरी राय मानो तो तुम्हारा काम जल्दी ही पूरा हो जाएगा। तुम इसी रास्ते से सीधे चले जाओ। शाम होने पर तुम एक गांव में पहुंचोगे। वहां तुम्हें आमने-सामने दो सरायें मिलेंगी। एक सराय खूब सजी-सजाई और सुन्दर-सी होगी लेकिन तुम उसमें मत ठहरना। तुम उसके सामने वाली दूसरी सराय में ठहरना, जो बहुत मामूली और देखने में भी भद्दी-सी होगी। ऐसा करने पर तुम्हारा काम आसानी से पूरा हो जाएगा।’’

लोमड़ी का बात सुनकर राजकुमार को हंसी आ गई। उसने डांटकर कहा, ‘‘भाग जा यहां से ! मुझे तुम्हारी सलाह की ज़रूरत नहीं है।’’ यह कह कर उसने तीर छोड़ दिया। लेकिन लोमड़ी बहुत चालाक थी। वह बचकर निकल भागी।
राजकुमार आगे चलता गया। शाम को जब वह एक गांव में पहुंचा तो उसने देखा कि वहां सड़क के किनारे सचमुच दो सरायें थीं। उनमें से एक सराय खूब सजी-सजायी थी और उसके अन्दर से लोगों के नाचने-गाने की आवाज़ें आ रही थीं। दूसरी सराय भद्दी-सी थी और वहां अंधेरा घिरा हुआ था। राजकुमार सजी-सजायी सराय में ठहर गया। थोड़ी देर में वह भूल गया कि वह असल में सोने की चिड़िया की खोज में निकला था।
उधर जब काफी समय बीत गया और बड़ा राजकुमार नहीं लौटा तो मंझला राजकुमार सोने की चिड़िया की खोज में चल पड़ा। वह भी उसी तरह चलते-चलते जंगल में पहुंचा तो वही लोमड़ी उसे भी मिली। इस राजकुमार ने भी लोमड़ी की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। जब वह शाम को उस गांव में पहुंचा तो बड़े राजकुमार की तरह सजी-सजायी सराय में ठहरा। वहां के नाच-रंग में मस्त होकर वह भी अपना काम भूल गया। यहां तक कि उसे घर लौटने की भी सुध न रही।
अन्त में सबसे छोटे राजकुमार ने राजा से कहा कि मैं सोने की चिड़िया की खोज में जाऊंगा। राजा को विश्वास था कि जब उससे बड़े दोनों राजकुमार इस काम में सफल नहीं हुए तो इसे और भी सफलता नहीं मिलेगी। लेकिन उसके ज़िद करने पर राजा ने उसे इजाज़त दे दी।

छोटा राजकुमार तैयार होकर सोने की चिड़िया की खोज में निकला। जंगल में उसे भी लोमड़ी मिली। राजकुमार ने लोमड़ी की बात को ध्यान से सुना और लोमड़ी से कहा, ‘‘ठीक है, तुम जैसे कह रही हो, मैं वैसा ही करूंगा। अब तुम जाओ। मैं तुम्हें नहीं मारूंगा।’’
इस पर लोमड़ी खुश होकर बोली, ‘‘तुम सबसे अच्छे लड़के मालूम होते हो। तुमने मेरी बात बात का मज़ाक नहीं उड़ाया और मुझ पर तीर नहीं चलाया। मैं तुमसे खुश हूं और तुम्हारी मदद करूंगी। आओ, तुम मेरी पूंछ पर बैठ जाओ। मैं तुम्हें उस सराय तक पहुंचा देती हूं।’’
देखते-देखते लोमड़ी की पूंछ काफी बड़ी हो गई और राजकुमार उस पर बैठ गया। उसके बैठते ही लोमड़ी हवा में उड़ने लगी और थोड़ी ही देर में मैदानों और पहाड़ों को पार करके उसी गांव में जा पहुंची। राजकुमार ने उसकी सलाह को मानकर छोटी और पुरानी सराय में ही डेरा डाल दिया। वह दूसरी सजी-सजायी सराय से दूर ही रहा।

दूसरे दिन सुबह उठकर जब वह आगे बढ़ा तो कुछ दूर चलने पर उसे वह लोमड़ी फिर से रास्ते में मिल गई। लोमड़ी ने उससे कहा, ‘‘अब मैं तुम्हें बताती हूं कि आगे तुम्हें क्या करना चाहिए। तुम सीधे चलो। आगे चलने पर तुम्हें एक बहुत बड़ा किला मिलेगा, जिस पर सिपाही लोग पहरा दे रहे होंगे। तुम सिपाहियों से डरना मत और सीधे अन्दर चले जाना, क्योंकि वे इस समय सो रहे होंगे। तुम बेधड़क होकर किले में घुसते चले जाना और उनके कमरों को पार करते हुए उस जगह पहुंच जाना, जहां लकड़ी के एक मामूली से पिंजरे में सोने की चिड़िया बन्द है। तुम चिड़िया को पिंजरे सहित उठाकर किले से बाहर ले आना। लेकिन एक बात याद रखना—चिड़िया के पिंजरे के पास ही एक बहुत सुन्दर सा सोने का पिंजरा भी रखा होगा। तुम भूलकर भी चिड़िया को उस पिंजरे में मत रखना। मगर तुम उसे लकड़ी के पिंजरे में से निकालकर सोने के पिंजरे में रखने की कोशिश करोगे तो बाद में पछताओगे।’’ यह कहकर लोमड़ी ने राजकुमार को फिर से अपनी पूंछ पर बिठाया और थोड़ी ही देर में उसको किले के पास पहुंचा दिया।

राजकुमार ने किले का पास जाकर देखा कि सचमुच उसके पहरेदार सो रहे थे। वह बिना डरे सीधा महल में घुस गया और थेड़ी ही देर बाद वह उस कमरे में जा पहुंचा, जहां सोने की चिड़िया एक पिंजरे में बैठी हुई थी। पिंजरे के पास ही सोने के तीन सेब पड़े हुए थे। इन सेबों को देखकर राजकुमार ने फौरन पहचान लिया कि ये सेब उसके पिता के बाग के ही थे। सोने की चिड़िया इतनी सुन्दर थी कि राजकुमार उसको देखता ही रह गया। वह उसको उठाकर लाने ही वाला था कि उसकी नज़र पास ही पड़े एक सुन्दर से पिंजड़े पर पर पड़ी। वह पिंजड़ा बहुत सुन्दर था और उसमें तरह-तरह के कीमती पत्थर जड़े हुए थे। सोने की चिड़िया के लिए वही पिंजरा ठीक मालूम पड़ता था।
राजकुमार लोमड़ी की बात को भूल गया और उसने सोने की चिड़िया को लकड़ी के पिंजरे से निकालकर सोने के पिंजरे में बन्द कर दिया। लेकिन नये पिंजरे में आते ही चिड़िया ने खूब ज़ोर-ज़ोर से शोर मचाना शुरू कर दिया। राजकुमार पिंजरे को उठाकर कमरे से बाहर भी नहीं निकल पाया था कि बहुत से सिपाही कमरे में घुस आए और उन्होंने राजकुमार को पकड़ लिया। अब राजकुमार को अपनी भूल का पता चला। उसे याद आया कि लोमड़ी ने उससे क्या कहा था। लेकिन अब क्या हो सकता था ! सिपाही उसे खींचते हुए राजा के दरबार में ले गए। राजा के पूछने पर राजकुमार ने सारी बात कह सुनाई।

राजा बोला, ‘‘तुम मेरे महल में चोरी करने के लिए घुसे थे। मैं तुमको माफ नहीं कर सकता। तुम्हें फांसी की सज़ा दी जाएगी। लेकिन मैं तुम्हें एक मौका देता हूं। अगर तुम मेरे लिए सोने का घोड़ा ला दो तो मैं न सिर्फ तुम्हें छोड़ दूंगा बल्कि सोने की चिड़िया भी तुमको दे दूंगा।’’
राजकुमार को अपनी जान बचाने के लिए राजा की शर्त माननी पड़ी। अब वह सोने के घोड़े की तलाश में निकला। किले के बाहर जाने पर उसने देखा कि लोमड़ी का उसका इन्तज़ार कर रही है। उसने लोमड़ी को सारी बातें बताईं।
लोमड़ी ने निराश होते हुए कहा, ‘‘मैं अब तुम्हारी कोई मदद नहीं करूंगी। तुमने मेरे कहने के अनुसार नहीं किया। मैंने जिस तरह से कहा था, अगर तुम उस तरह से काम करते तो इस मुसीबत में नहीं फंसते और सोने की चिड़िया तुम्हें मिल जाती।’’
राजकुमार बोला, ‘‘इस बार मुझे माफ कर दो ! मुझसे गलती हो गई। मेरा काम तुम्हारी सहायता के बिना नहीं चलेगा। मुझे राजा ने सोने का घोड़ा लाने के लिए कहा है, वरना वह मुझे फांसी पर चढ़ा देगा।’’

लोमड़ी ने कहा, ‘‘खैर, मैं तुम्हें माफ करती हूं। अब तुम ऐसा करो कि मेरी पूंछ पर बैठकर सीधे चले चलो। कुछ दूर जाने पर तुम्हें एक दूसरा किला मिलेगा। उसी किले की घुड़साल में तुम्हें सोने का घोड़ा बंधा हुआ मिलेगा। महल के नौकर-चाकर सब सो रहे होंगे। तुम चुपचाप जाना और घोड़े को खोल लेना। लेकिन एक बात याद रखना—वहां घोड़े के पास ही घोड़े पर कसने के लिए दो जीनें रखी होंगी। उसमें से एक तो पुरानी चमड़े की जीन होगी और दूसरी सोने की जीन होगी। तुम सोने की जीन को छूना भी मत और उस घोड़े पर पुरानी चमड़े की जीन को कसकर सवार हो जाना और उसे दौड़ते हुए किले से बाहर चले आना।’’
राजकुमार ने वादा किया कि वह ठीक-ठीक वैसा ही करेगा। लोमड़ी ने उसको अपनी पूंछ पर बैठाया और कुछ ही देर में वह उसे ले किले के पास जा पहुंची। किले के पास पहुंचते ही लोमड़ी ने उसे नीचे उतारा और फिर वहां से चली गई।
राजकुमार सीधा फाटक से किले में घुस गया। अन्दर जाकर उसने देखा कि वहां के सभी नौकर-चाकर सोए हुए थे। थोड़ी ही देर में वह किले की घुड़साल में जा पहुंचा। वहां एक बहुत सुंदर सुनहरा घोड़ा बंधा हुआ था। राजकुमार ने पास जाकर देखा कि वह घोड़ा सचमुच सोने का था। ऐसा सुन्दर घोड़ा उसने सपने में भी नहीं देखा था। उसने आगे बढ़कर घोड़े को खोल लिया। जब वह बाहर निकलने लगा तो उसकी नज़र एक कोने में पड़ी हुई सोने की जीन पर गई। यह जीन बहुत सुंदर थी और इसमें हीरे-मोती जड़े हुए थे। उसके पास ही एक फटी-पुरानी चमड़े की जीन पड़ी हुई थी। इतने सुंदर घोड़े पर पुराने चमड़े की जीन कसना राजकुमार को अच्छा नहीं लगा। उसने सोने की जीन उठा ली और घोड़े पर कसना शुरू किया। इतने में घोड़ा जोर से हिनहिना उठा। किले के नौकर-चाकर जाग गए। थोड़ी ही देर में राजकुमार पकड़ लिया गया।

राजकुमार को सिपाहियों ने हाथ बांधकर अपने राजा के सामने पेश किया। राजा ने सारी बातें सुनकर कहा, ‘‘तुमने मेरे घोड़े को चुराने की कोशिश की है, इसलिए तुम्हें फांसी की सजा दी जाएगी। लेकिन अगर तुम मेरा एक काम कर दो तो मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं। यहां से कुछ ही दूर एक सोने का महल है और उसमें बहुत सुन्दर राजकुमारी रहती है। अगर तुम अपनी जान बचाना चाहते हो तो उस राजकुमारी को मेरे पास ले आओ। तुम्हें इनाम में यह सोने का घोड़ा दे दूंगा’’।
बेचारा राजकुमार ! वह फिर से एक नई मुसीबत में फंस गया। उसे मजबूर होकर राजा की शर्त माननी पड़ी। अब वह सोने के महल की खोज में निकला। कुछ दूर चलने पर फिर उसे वह लोमड़ी मिली।

पता नहीं कैसे लोमड़ी को सारी बातें मालूम हो गई थीं। वह बोली, ‘‘देखो, तुमने इस बार भी मेरी बात नहीं मानी। मेरी बात मान जाते तो यह नई मुसीबत तुम्हारे गले नहीं पड़ती। खैर, मुझे तुम पर दया आ रही है। मैं तुम्हारी मदद करूंगी। चलो, मैं तुमको सोने के महल के पास पहुंचाए देती हूं। तुम महल के बाहर ही कहीं पीछे छिपे रहना। जब उसमें से शाम को राजकुमारी तालाब में नहाने के लिए बाहर आए तो तुम आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लेना। जैसे ही तुम उसको छुओगे, राजकुमारी तुम्हारे साथ आने के लिए राज़ी हो जाएगी। लेकिन एक बात याद रखना—तुम उसको वहां से अपने साथ ले आना। उसे वापस महल में मत जाने देना। वह तुमसे कहेगी कि मैं अभी अपने माता-पिता से मिलकर आती हूं। लेकिन तुम उसकी बातों में मत आना, वरना फिर मुसीबत में फंस जाओगे।’’
यह कहकर लोमड़ी ने फिर से अपनी पूंछ फैला दी और राजकुमार उस पर बैठ गया। देखते-देखते लोमड़ी हवा में उड़ती हुई कुछ देर बाद सोने के महल के पास जा पहुंची।

महल के पास पहुंचते ही राजकुमार एक पेड़ की आड़ में छिपकर बैठ गया। शाम को जब राजकुमारी नहाने के लिए किले से बाहर आई तो राजकुमार ने हिम्मत करके आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिया। उसके छूते ही राजकुमारी उसके साथ चलने के लिए तैयार हो गई। वह बोली, ‘‘राजकुमार, तुम मुझे जहां भी ले जाना चाहोगे मैं तुम्हारे साथ चलूंगी, लेकिन मुझे थोड़ी देर के लिए अपने माता पिता से मिल आने दो।’’
राजकुमार ने कहा, ‘‘नहीं, यह नहीं होगा। तुम्हें तुरन्त मेरे साथ चलना पड़ेगा।’’ लेकिन राजकुमारी रोने लगी। इतनी सुन्दर राजकुमारी को रोते देखकर राजकुमार का मन पिघल गया। अन्त में वह राज़ी हो गया और बोला, ‘‘जाओ, थोड़ी देर के लिए माता-पिता से मिल आओ, लेकिन फिर तुरन्त बाहर चली आना।’’
लेकिन राजकुमारी ने जैसे ही किले में पैर रखा, किले के पहरेदार जाग गए और उन्होंने राजकुमार को पकड़ लिया। राजकुमार बहुत पछताया, लेकिन अब क्या हो सकता था ! सिपाहियों ने उसे अपने राजा के सामने पेश किया। राजा बहुत निराश था। उसने उसी वक्त हुक्म दिया इस राजकुमार को फौरन फांसी पर चढ़ा दिया जाए।

यह सुनकर राजकुमार रोने-गिड़गिड़ाने लगा। इस पर राजा ने थोड़ी देर विचार करने के बाद कहा, ‘‘मैं अपनी आज्ञा वापस नहीं ले सकता, लेकिन अगर तुम मेरा एक काम कर दो तो तुम्हारी जान बच सकती है। हमारे किले के ठीक सामने यह जो बड़ा पहाड़ है, इसके कारण हमारे किले की सुन्दरता नष्ट होती है। अगर तुम आठ दिन में इस पहाड़ को खोदकर साफ कर दो तो हम तुम्हें क्षमा कर देंगे और राजकुमारी का विवाह तुम्हारे साथ कर देंगे।’’
राजकुमार किले के बाहर आकर पहाड़ को देखने लगा। उसके हाथ में एक छोटी-सी कुदाली थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इतना बड़ा पहाड़ आठ दिन में वह कैसे खोद सकेगा। फिर भी उसे अपनी जान तो बचानी ही थी। इसलिए वह पहाड़ खोदने लगा। धीरे-धीरे सात दिन बीत गए। इतने दिन तक लगातार खोदने पर भी पहाड़ का सिर्फ एक कोना ही खोद सका। वह दुखी होकर बैठ गया। उसे अब अपने पर बहुत अधिक क्रोध आ रहा था। वह मन में कहने लगा कि अगर मैंने लोमड़ी की बात मान ली होती तो कितना अच्छा होता ! लोमड़ी ने मुझको हर बार ठीक सलाह दी और मैं हर बार उसका कहना न मानकर नई से नई मुसीबत में फंस जाता हूं।

राजकुमार इस तरह सिर झुकाए बैठा था कि अचानक उसे अपने पैरों के पास लोमड़ी की पूंछ हिलती दिखाई दी। उसने नज़र उठाकर देखा—सचमुच वही लोमड़ी खड़ी थी ! लोमड़ी ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘क्यों, क्या हाल है ! इस बार तो तुम्हारी मदद करने की मेरी ज़रा भी इच्छा नहीं थी। लेकिन मैं सात दिन से तुमको पहाड़ खोदते हुए देख रही हूं। मुझे दया आ गई और मैं तुम्हारी मदद के लिए चली आई। जाओ, तुम बहुत थक गए हो। सो जाओ। मैं थोड़ी ही देर में तुम्हारा काम पूरा कर दूंगी।’’
इस बार राजकुमार ने तय कर लिया था कि अब वह लोमड़ी जिस तरह कहेगी, वह उसी तरह करेगा। वह चुपचाप उठकर एक तरफ सोने चला गया। थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गई। सुबह जब वह सोकर उठा तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। वहां कहीं भी पहाड़ का नाम नहीं था और महल का सुन्दर दृश्य दिखाई दे रहा था। राजकुमार सीधा राजा के पास पहुंचा। राजा उसके काम पर बहुत खुश था। उसने तुरन्त अपने वादे के अनुसार राजकुमारी के साथ उसका विवाह कर दिया। जब राजकुमार उस सुन्दर राजकुमारी के साथ कुछ दूर चला तो उसे रास्ते में फिर वही लोमड़ी मिली। लोमड़ी बोली, ‘‘बधाई हो, राजकुमार ! राजकुमारी के साथ तुम्हें देखकर मुझे बड़ी खुशी हो रही है। लेकिन अब तुम्हें सोने का घोड़ा और सोने की चिड़िया भी प्राप्त करनी चाहिए। क्योंकि वे दोनों चीज़ें तुम्हारे ही लायक हैं और तुम उन्हें आसानी से प्राप्त कर सकते हो।’’

राजकुमार बोला, "लेकिन भला मुझे सोने का घोड़ा और सोने की चिड़िया कैसे मिल सकती है ? मैं तो इस राजकुमारी को भी उस राजा के लिए ले जा रहा हूं।"

लोमड़ी ने कहा, "नहीं, तुम ऐसा काम कभी मत करना । इस राजकुमारी के साथ तुम्हारा विवाह हुआ है और यह अब तुम्हारी ही है । अगर तुम मेरे कहने के अनुसार काम करो तो तुम्हें सोने का घोड़ा और सोने की चिड़िया भी मिल सकती है। तुम पहले इस राजकुमारी को लेकर सोने के घोड़े वाले राजा के पास जाओ । राजा खुश होकर तुमको सोने का घोड़ा दे देगा। तुम घोड़े पर सवार हो जाना और सवार होकर सबसे विदा लेना। राजकुमारी से तुम सबसे बाद में विदा लेना। जैसे ही तुम राजकुमारी के पास पहुंचो, तुम उसे हाथ से पकड़कर घोड़े के ऊपर खींच लेना और घोड़े को दौड़ा देना । सोने का घोड़ा इतना तेज़ दौड़ता है कि दुनिया का तेज़ से तेज़ घोड़ा भी उसकी बराबरी नहीं कर सकता । जाओ, तुम पहले इतना काम पूरा करो । इसके बाद आगे का काम मैं तुम्हें बाद में बताऊंगी। मैं तुम्हें वहां रास्ते में मिलूंगी।"

राजकुमार ने ठीक वैसा ही किया, जैसा लोमड़ी ने उससे कहा था। जब सोने के घोड़े वाले राजा ने खुश होकर उसे इनाम में सोने का घोड़ा दिया तो राजकुमार उस पर सवार हो गया और उससे विदा लेने लगा। अन्त में वह राजकुमारी को उठाकर घोडे को तेजी से दौड़ाता हुआ किले से बहुत दूर निकल आया।

रास्ते में एक पेड़ के नीचे लोमड़ी उसका इन्तजार कर रही थी। उसे देखकर लोमड़ी बोली, "शाबाश! अब तुम सोने की चिड़िया भी प्राप्त कर लो। जब तुम सोने की चिड़िया वाले राजा के पास पहुंचोगे तो वह इस घोड़े को देखकर बहुत खुश होगा। तुम उससे कहना कि पहले सोने की चिड़िया का पिंजरा मेरे हाथ में दे दो, तब मैं यह घोड़ा तुमको दूंगा । जब वह पिंजरा तुम्हारे पास लाए तो तुम पिंजरा उसके हाथ से छीन लेना और घोड़े को दौड़ा देना। बस, ऐसे चिड़िया तुमको मिल जाएगी और कोई तुम्हें पकड़ भी नहीं सकेगा।"

इस बार भी राजकुमार ने ठीक वैसा ही किया । वह राजकुमारी के साथ ही घोड़े पर बैठा रहा और जब राजा ने उसके हाथ में सोने की चिड़िया का पिंजरा दिया तो उसने देखते-देखते एड़ मार दी और सोने का घोड़ा हवा से बातें करने लगा।

कुछ दूर चलने पर लोमड़ी उसे मिली। राजकूमार ने उससे कहा, "तुमने मेरी बड़ी मदद की है। तुम्हारी वजह से मुझे न सिर्फ सोने की चिड़िया मिली, बल्कि सोने का घोड़ा और इतन सुन्दर राजकुमारी भी मिल गई। बताओ, मैं तुमको क्या इनाम दूं? मैं तुमको कुछ न कुछ ज़रूर देना चाहता हूं।"

लोमड़ी ने कहा, “अगर तुम खुश हो तो मेरा एक काम कर दो। तुम एक तीर चलाकर मुझे मार दो। इस समय तुम यही सबसे बड़ा काम मेरे लिए कर सकते हो।"

राजकुमार ने कहा, "भला यह कैसे हो सकता है ! तुमने मेरी इतनी मदद की, और मैं बदले में तुम्हें मार दूं ? मुझसे यह नहीं होगा।"

यह सुनकर लोमड़ी बड़ी दुःखी हुई और बोली, "अगर तुम मेरा यह काम नहीं कर सकते तो फिर ठीक है, जाओ। लेकिन मैं तुम्हारी भलाई के लिए ही कह रही हूं कि तुम दो बातें जरूर याद रखना-एक तो तुम किसी कुएं की दीवार पर मत बैठना और दूसरे तुम ऐसे लोगों के लिए धन मत खर्च करना, जिन्हें फांसी मिलने वाली हो।"

राजकुमार बोला, “भई, तुम भी अजीब हो? तुम्हारी बातें मेरी समझ में ही नहीं आतीं। भला मैं कभी कुएं की दीवार पर क्यों बैठूँगा और ऐसे आदमियों पर धन क्यों खर्च करूंगा, जिनको फांसी दी जाने वाली हो।"

लेकिन लोमड़ी ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और 'अलविदा' कहकर वहां से चली गई।

राजकुमार सोने का घोड़ा दौड़ता हुआ आगे बढ़ा । राजकुमारी उसके साथ ही बैठी हुई थी और सोने की चिड़िया का पिंजरा उसके हाथ में था। कुछ ही देर में राजकुमार उस छोटे गांव में जा पहुंचा, जिसमें वे दोनों सरायें थीं। गांव के लोग और खास तौर से बच्चे उसको देखने के लिए बाहर निकल आए। सोने के घोड़े पर इतने संदर राजकुमार के साथ बैठी एक राजकुमारी को देखकर सभी लोग चकित थे। इतने में राजकुमार ने देखा कि गांव के बगीचे में एक जगह बहत-से लोग जमा हैं और कुछ शोर हो रहा है। राजकुमार के पूछने पर लोगों ने बताया कि वहां दो आदमियों को फांसी देने की तैयारी हो रही है । राजकुमार उधर ही चल पड़ा।

वहां पहुंचने पर उसने पहचान लिया कि जिन आदमियों को फांसी दी जाने वाली थी वे और कोई नहीं, बल्कि उसके ही भाई थे। वे लोग तब से उसी सजी-सजाई सराय में रह रहे थे और तरह-तरह के बुरे काम करते थे। वे जुआ भी खेलते थे और जुए में बहुत-सा धन हार चुके थे। उन्होंने लोगों से बहुत-सा रुपया भी उधार लिया था। इन्हीं सब बातों से चिढ़कर अब गांववाले उन्हें फांसी पर चढ़ाने जा रहे थे।

राजकुमार भला यह कैसे होने देता ! उसने लोगों से कहा कि मुझसे रुपया ले लो और इन लोगों को छोड़ दो। उसके बहुत कहने-सुनने पर लोग राजी हो गए और उन्होंने उन दोनों आदमियों को रिहा कर दिया। राजकुमार अपने भाइयों को छुड़ाकर आगे चला । कुछ दूर चलने पर जंगल में उन्हें एक कुआं दिखाई दिया। इस पर राजकुमार के कुछ देर कुएं के पास आराम करते हैं । वहां ठंडा पानी पीने के बाद हम लोग आगे चलेंगे।"

राजकुमार राजी हो गया। अब तक वह यह भी भूल चुका था कि लोमड़ी ने विदा होते समय उससे क्या कहा था। वह घोड़े से उतरकर कुएं की दीवार पर बैठ गया और आराम करने लगा। उसके दोनों भाइयों ने मौका देखकर उसे कुएं में धकेल दिया। इसके बाद उन्होंने घोड़े पर राजकुमारी को डाला और सोने की चिडिया का पिंजरा उठाया और वहां से चलते बने।

कुछ ही देर में वे लोग अपने राज्य में लौट आए। घर लौटकर उन्होंने राजा से कहा, "हम लोग सोने की चिड़िया को पकड लाए हैं। इसी चिड़िया ने हमारे बाग में से सोने के सेब चुराए थे। इसके साथ ही हम एक यह सोने का घोड़ा और राजकुमारी भी लाए है।" राजा बहुत खुश हुआ। सारे राज्य के लोग खुशियां मनाने लगे।

लेकिन राजकुमारी खुश नहीं थी। वह बराबर रोती रहती थी। उसने खाना-पीना छोड़ दिया। यहीं नहीं, घोड़े ने भी दाना पानी बन्द कर दिया और सोने की चिड़िया भी उदास रहने लगी। राजा ने बहुत कोशिश की लेकिन न तो वह राजकूमारी खुश हई और न सोने के घोड़े और सोने की चिड़िया ने दाना खाना शुरू किया।

उधर छोटा राजकुमार कुएं में गिर गया था लेकिन वह मरा नहीं । कुआं बहुत गहरा था लेकिन उसमें पानी बहुत थोड़ा था। वह कुएं में बैठा-बैठा अपने भाग्य को कोसता रहा । अब उसे फिर उसी लोमड़ी की याद आई और वह पछताने लगा कि अगर मैंने उसका कहना मान लिया होता तो मैं मुसीबत में न फंसता। राजकूमार ने जैसे ही लोमड़ी को याद किया, लोमड़ी न मालूम कैसे कुएं के मुंह पर आ पहुंची और बोली, "देखो राजकुमार, मैंने पहले ही तुम्हें समझाया था, कि किसी कुएं की दीवार पर मत बैठना और ऐसे आदमियों की मदद मत करना, जिन्हें फांसी दी जाने वाली हो। लेकिन तुम नहीं माने । खैर, चलो अब आखिरी बार मैं फिर तुम्हारी मदद किए देती हूं। लो मेरी पूंछ पकड़कर कुएं से बाहर निकल जाओ।"

यह कहकर लोमड़ी ने अपनी पूंछ कुएं में लटका दी। देखते-देखते पूंछ इतनी लम्बी हो गई कि कुएं के पेंदे में पड़े राजकुमार के पास तक जा पहुंची। राजकुमार उसे पकड़कर कुएं से बाहर निकल आया। लोमड़ी ने उससे कहा, "जाओ, अब तुम अपने घर जाओ। लेकिन ज़रा होशियार रहना । तुम्हारे भाई तुम्हारी जान के दुश्मन हैं । वे लोग ज़रूर तुमको ढूंढ़ रहे होंगे।"

राजकुमार घर की ओर चल पड़ा। अपने राज में पहुंचने पर उसे एक भिखारी मिला । भिखारी को उसने अपने सुन्दर कपड़े दान में दे दिए और उनके भद्दे पुराने कपड़े पहन लिए। इस तरह भेस बदलकर वह अपने किले में पहुंचा । वहां उसके पहुंचने पर एक बड़ी आश्चर्यजनक बात हई। सोने का घोड़ा खुशी से हिन हिनाने लगा और दाना खाने लगा। सोने की चिड़िया भी अपने पिंजरे में खुशी से फुदकने लगी और गाना गाने लगी। राज कुमारी ने अपने आंसू पोंछ डाले और वह भी खुश दिखाई देने लगी।

लेकिन राजा की समझ में कुछ नहीं आया। उसने राजकुमारी से इसका कारण पूछा तो वह बोली, "मैंने तो पहले ही आपको सारी कहानी बता दी थी। आपके बड़े और मंझले राजकुमार ने छोटे राजकुमार के साथ धोखा किया है। इन्होंने आपको भी धोखा दिया है । लेकिन अब आपका छोटा राजकुमार यहां पर आ पहुंचा है। इसीलिए मुझे बहत खुशी हो रही है। उसी के साथ मेरी शादी हुई है और मैं उसके साथ ही सुखी रह सकती हूं।"

फिर उसने मैले-कुचैले कपड़े पहने एक आदमी की ओर इशारा करते हुए कहा, "वह रहा आपका छोटा राजकुमार।"

राजा ने भी अपने छोटे लड़के को पहचान लिया। अब राजा ने अपने छोटे बेटे के बारे में अपने विचार बदल दिए। अब वह उसको बहुत समझदार और बहादुर मानने लगा और उससे बहुत अधिक प्यार करने लगा। उसने उसको राजगद्दी पर बिठाने का निश्चय किया। बडे और मंझले राजकुमार ने अपने छोटे भाई को ही धोखा नहीं दिया था बल्कि राजा को भी धोखा दिया था। इससे राजा उनसे बहुत नाराज़ था। उसने उन दोनों को अपने राज्य से निकलवा दिया। इसके बाद बड़ी धूमधाम के साथ राजकुमारी के साथ राजकुमार का विवाह हुआ और दोनों सुख से रहने लगे।

लेकिन राजकुमार उस लोमड़ी को नहीं भूला था, जिसने उसकी सहायता की थी। एक दिन समय निकालकर वह जंगल में उस लोमडी की खोज में निकला। बहुत ढूंढने के बाद एक पेड़ के खोखले भाग में उसने उस लोमड़ी को चुपचाप बैठे हए देखा।

लोमड़ी बहुत उदास थी और पहले से बहुत ज्यादा दुबली भी हो गई थी। राजकुमार को देखते ही लोमड़ी ने उसे पहचान लिया और कहा, "आह, कहो राजकूमार आज इधर कैसे भूल पड़े।" राजकुमार ने कहा, "मैं आज तुम्हें ही ढूंढ़ने के लिए आया हूं । चलो, मेरे बाग में आराम से रहना । वहां तुम्हें किसी तरह की तकलीफ नहीं होगी। यहां तो जंगल में तुम्हें खाने-पीने की तकलीफ होती होगी और जंगली जानवरों और शिकारियों का डर बना रहता होगा !"

लोमड़ी ने कहा, "नहीं राजकुमार, मैं यहां ठीक हूं, और भला अब तुम्हें मेरे दुःख से क्या लेना-देना? तुम्हारा काम निकल गया। अब तुम सुख से अपने राज में रहो।"

राजकुमार बोला, “नहीं, तुमने मेरा बड़ा उपकार किया है। मैं तुम्हें इनाम देना चाहता हूं और अपने साथ ही रखना चाहता हूं। राजकुमारी भी बहुत खुश होगी । वह भी तुमसे मिलना चाहती है।"

लोमड़ी बोली, “अगर तुम सचमुच मुझे इनाम देना चाहते हो तो मेरा एक काम कर दो। मैंने तुमसे पहले भी कहा था कि तुम तीर चलाकर मुझे मार दो। इसी से मेरा लाभ होगा। असल में, एक जादूगर ने मुझ पर जादू कर रखा है। मैं लोमड़ी नहीं हूं। मुझे उसके जादू के प्रभाव से लोमड़ी के रूप में रहना पड़ रहा है । मैं तो उसी देश का राजकुमार हूं, जहां की राजकुमारी से तुम्हारा विवाह हुआ है । असल में वह राजकुमारी मेरी छोटी बहन है । अगर तुम तीर चलाकर मुझे मार दोगे तो इस जादू से मुझे मुक्ति मिल जाएगी और मैं फिर अपने देश लौट सकूँगा।"

राजकुमार को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने फौरन अपने धनुष पर तीर चढ़ाया और लोमड़ी की ओर छोड़ दिया। तीर के लगते ही लोमड़ी मर गई और उसमें से एक सुन्दर-सा राजकुमार निकल आया। फिर दोनों राजकुमार आपस में गले मिले । इसके बाद दोनों राजकुमार वापस महल में लौट आए। वहां राजकूमारी अपने भाई से मिलकर बहुत खुश हुई ।

(ग्रिम्स फेयरी टेल्स में से : अनुवादक - श्रीकान्त व्यास)