सौदागर की बेटी : लोक-कथा (बंगाल)

Saudagar Ki Beti : Lok-Katha (Bangla/Bengal)

बहुत दिनों पहले की बात है। एक शहर में एक सौदागर रहता था। उसकी तीन पुत्रियाँ थीं। तीनों देखने में अति सुंदरी। एकदम राजकन्या की तरह। सौदागर अपनी बेटियों को बहुत प्यार करते थे। लेकिन छोटी बेटी से उन्हें विशेष प्रेम था।

एक बार सौदागर व्यापार के सिलसिले में विदेश जाने लगे तो तीनों बेटियों से पूछा कि वे उनके लिए क्या लाएँ?

बड़ी बेटी ने कहा, "मुझे चाहिए एक सोने की थाली।"

मझली बेटी ने कहा, "मुझे चाहिए एक सोने का पंखा।"

छोटी बेटी बोली, “मुझे एक सोने का सेब चाहिए।" ।

व्यापार कार्य करने के बाद सौदागर जब लौटने लगे, तब बड़ी बेटी के लिए सोने की थाली, मझली बेटी के लिए सोने का पंखा लेकर आए, पर उन्हें कहीं भी सोने का सेब नहीं मिला। दोनों बेटी अपनी इच्छित वस्तु पाकर बहुत खुश हुईं। सोने का सेब नहीं मिल पाने के कारण छोटी बेटी लेकिन दुःखी नहीं हुई। उसने पिता से कहा, "आप तो अकसर विदेश जाते हैं। यदि कहीं कभी भी सोने का सेब मिले तो मेरे लिए ले आइएगा।"

इधर एक राजकुमार घोड़े पर चढ़कर एक राज्य से दूसरे राज्य का भ्रमण करते हुए एक दिन सौदागर के शहर में आ उपस्थित हुआ। रास्ते में चलते-चलते सौदागर के घर के पास जब वह पहुँचा तब उसने उसकी छोटी बेटी को देखा। उसे बहुत अच्छा लगा। उसे लगा कि वही उसकी रानी होने के योग्य है।

वह सौदागर के पास पहुँचा। सब सुनकर सौदागर ने कहा, "तुम्हारी बात सुनकर मुझे खुशी हुई। परंतु मैं राजी नहीं हो पा रहा हूँ। बड़ी लड़की की शादी किए बिना छोटी बेटी के साथ तुम्हारी शादी कैसे कर दूँ? यदि तुम राजी हो जाओ, तो बड़ी बेटी के साथ शादी करवा सकता हँ।"

सौदागर की बड़ी बेटी भी अत्यंत सुंदर थी। वह भी रानी होने के योग्य थी। राजपुत्र ने कहा, "मैं आपकी बात पर राजी हूँ। माँ-पिता को दिखाने के लिए उसे अपने साथ लेकर जाना चाहता हूँ। दो दिनों के अंदर वापस ले आऊँगा।"

सौदागर की बेटी को लेकर राजकुमार रवाना हुआ। थोड़ी दूर जाने पर राजकुमार ने अपने घोड़े से कहा, "ओ मेरे पवन घोड़े! हमें मेरे जादूघर में ले चलो।"

देखते-ही-देखते अनेक राज्य, नदी-नद को पीछे छोड़ घोड़ा पवन गति से उड़ा। कुछ देर बाद घोड़ा जंगल के भीतर एक छोटे से घर के दरवाजे के समीप रुका। घोड़े की पीठ से उतरकर राजकुमार लड़की को लेकर घर के अंदर गया। घर के अंदर के कमरे अत्यंत सुसज्जित थे। एक कमरे में एक आसन पर उसे बैठने को कहा। एक सुंदर एवं नरम आसन पर जब सौदागर की बेटी बैठी, तब एक दासी उसके लिए शरबत का गिलास लेकर आई। राजकुमार के अनुरोध पर सौदागर की बेटी ने शरबत पी लिया।

राजकुमार ने पूछा, "इतने नरम आसन में वह कभी बैठी थी और इतना बढ़िया शरबत कभी पीया था?"

सौदागर की बेटी बोली, "इतने नरम आसन में कभी नहीं बैठी और इतना सुस्वादु शरबत कभी भी नहीं पीया।"

राजकुमार ने कहा, "मेरे प्रश्न का उत्तर में तुमने जो कहा है, उस तरह का उत्तर रानी होने योग्य लड़की के मुख से कभी नहीं निकलेगा। तुम रानी होने के योग्य नहीं हो। चलो, तुम्हें तुम्हारे पिता के घर छोड़ देता हूँ।"

राजकुमार सौदागर की बड़ी बेटी को लेकर सौदागर के घर की ओर चला। इसके बाद सौदागर की मझली बेटी को लेकर राजकुमार अपने उसी घर में पहुँचा। उसी तरह की घटनाएँ घटीं। नरम आसन में बिठाने एवं शरबत पिलाने के बाद राजकुमार ने उससे भी वे ही सवाल किए। मझली बेटी ने भी कहा कि इतने नरम आसन में वह कभी नहीं बैठी और इतना बढ़िया शरबत उसने कभी नहीं पीया।

उत्तर सुनने के बाद राजकुमार ने कहा, "तुम रानी होने के योग्य नहीं हो।"

वह उसे उसके पिता के घर वापस ले गया। अंत में छोटी बेटी की बारी आई। अन्य दो बहनों की तरह उसे भी नरम आसन पर बैठाया गया एवं पीने के लिए शरबत दिया गया। उसके बाद राजकुमार ने उससे पूछा, "इससे भी नरम आसन पर तुम कभी बैठी थी? इससे भी बढ़िया शरबत तुमने कभी पीया है ?"

सौदागर की बेटी हँसकर बोली, “माँ की गोद इससे बहुत अधिक नरम है और माँ का दूध इस शरबत से भी अधिक मीठा है।"

अत्यंत प्रसन्न होकर राजकुमार ने कहा, "तुम्हारी जैसी लड़की ही मेरी रानी होने के योग्य है।"

राजकुमार ने सौदागर की छोटी बेटी को उसके घर पहुंचा दिया। सौदागर सारी बातें सुनकर बहुत खुश हुआ। उसके बाद एक दिन उसने अपनी छोटी बेटी के साथ राजकुमार का विवाह करवा दिया।

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