Sargam Cola : Asghar Wajahat

सरगम-कोला : असग़र वजाहत

जैसे कुत्तों के लिए कातिक का मौसम होता है वैसे ही कला और संस्कृति के लिए जाड़े का मौसम होता है दिल्ली में, गोरी चमड़ी वाले पर्यटक भरे रहते हैं खलखलाते, उबलते, चहकते, रिझाते, लबालब हमारी संस्कृति से सबसे बड़े खरीदार और इसीलिए पारखी। बड़े घरों की महिलाएं लिपी-पुती कलैंडर आर्ट जिससे घृणा करने का कोई कारण नहीं है, जाड़े की शामें किसी आर्ट गैलरी और नाटक देखने में गुजारना पसंद करती हैं। जाड़ा कला और संस्कृति का मौसम है।


सूरज जल्दी डूब जाता है और नर्म मुलायम गर्म कपड़ों से टकराती ताजगी देने वाली हवा आर्ट गैलरियों और आडीटोरियमों के आसपास महक जाती है? ऐसी सुगंध जो नामर्द को मर्द बना दे और मर्द को नामर्द। लोग कला और संस्कृति में डूब जाते हैं। कला और संस्कृति लोगों में डूब जाती है।

म्यूज़िक कांफ्रेंस के गेट पर चार सिपाही खड़े थे। ऊबे, उकताये डंडे लिये। उनके पीछे दो इंस्पेक्टर खड़े थे, गर्दन अकड़ाये क्योंकि उनके सामने चार सिपाही खड़े थे। फिर दो सूटधरी थे। सूटधरियों के सूट एक से थे। बनवाये गये होंगे। सूटधरी काफी मिलती-जुलती शक्ल के थे। काफी मुश्किल से खोजे गये होंगे।

गेट के सामने बजरी पड़ा रास्ता था। बजरी भी डाली गयी होगी। फलों के गमले जमीन के अंदर गाड़ दिये गये थे। न जानने वालों को अचंभा होता था कि ऊसर में फल उग आये हैं। उपर कागज के सफेद फलों की चादर-सी तानी गयी थी जो कुछ साल पहले तक-कागज के फलों की नहीं, असली फलों की, पीरों, फकीरों की मज़ारों पर तानी जाती थी। फिर शादी विवाह में लगायी जाने लगी। दोनों तरफ गिलाफ चढ़े बांस के खंभे थे। इन गिलाफ चढ़े बांसों पर ट्यूब लाइटें लगीं थीं। इसी रास्तें से अंदर जाने वाले जा रहे थे। दासगुप्ता को गेट के बिलकुल सामने खड़े होने पर केवल इतना ही दिखाई दे रहा था। जाने वाले दिखाई दे रहे थे, जो ऊंचे-ऊंचे जूतों पर अपने कद को और ऊंचा दिखाने की नाकाम कोशिश में इस तरह लापरवाही से टहलते अंदर जा रहे थे जैसे पूरा आयोजन उन्हीं के लिए किया गया हो। अधेड़ उम्र की औरतें थीं जिनकी शक्लें विलायती कास्मेटिक्स ने वीभत्स बना दी थीं। लाल साड़ी, लाल आई शैडो, नीली साड़ी, नीली आई शैडो, काली के साथ काला. . .पीली के साथ पीला। जापानी साड़ियों के पल्लू को लपेटने की कोशिश में और अपने अधखुले सीने दिखाती, कश्मीरी शालों को लटकने से बचाती या सिर्फ सामने देखती. . .या जीन्स और जैकेट में खट-खट खट-खट। सम्पन्नता की यही निशानियां हैं। दासगुप्ता ने मन-ही-मन सोचा। गंभीर, भयानक रूप से गंभीर चेहरे, आत्म संतोष से तमतमाये. . .गर्व से तेजवान्, धन, ख्याति, सम्मान से संतुष्ट. . .दुराश से मुक्त। 'साला कौन आदमी इस कंट्री में इतना कान्फीडेंस डिजर्व करता है?' दासगुप्ता अपनी डिजर्व करने वाली फिलासफी बुदबुदाने लगे। सामने से भीड़ गुजरती रही। हिप्पी लड़कियां. . .अजीब-अजीब तरह के बाल. . .घिसी हुई जीन्स. . .मर्दमार लड़कियां। उनको सूंघते हुए कुत्ते. . .कुत्ते-ही-कुत्ते. . .डागी. . .डागीज. . .स्वीट डागीज।

प्रोग्राम शुरू हो गया। भीमसेन जोशी का गायन शुरू हो चुका था, लेकिन दासगुप्ता का कोई जुगाड़ नहीं लग पाया था, बिना टिकट अंदर जाने का जुगाड़।

गेट, बजरी पड़े रास्ते, सूटधारी स्वागतकर्ताओं, पुलिस इंस्पेक्टरों और सिपाहियों से दूर बाहर सड़क पर दाहिनी तरफ़ एक घने पेड़ के नीचे अजब सिंह अपना पान-सिगरेट को खोखा रखे बैठा था। ताज्जुब की बात है, मगर सच है कि इतने बड़े शहर में दासगुप्ता और अजबसिंह एक-दूसरे को जानते हैं। दासगुप्ता गेट के सामने से हटकर अजबसिंह के खोखे के पास आकर खड़े हो गये। सर्दी बढ़ गयी थी और अजब सिंह ने तसले में आग सुलगा रखी थी।

'दस बीड़ी।'
'तीस हो गयीं दादा।'
'हां, तीस हो गया। हम कब बोला तीस नहीं हुआ।. . .हम तुमको पैसा देगा।' दासगुप्ता ने बीड़ी ले ली। ऐ बीड़ी तसले में जलती आग से सुलगायी। और खूब लंबा कश खींचा।


'जोगाड़ नहीं लगा दादा?'
'लगेगा, लगेगा।'
'अब घर जाओ। ग्यारा बजने का हैं।'
'क्यों शाला घर जाये। हमको भीमसेन जोशी को सुनने का है. . .।'
'दो सादे बनारसी।'

उस्ताद भीमसेन जोशी की आवाज़ का एक टुकड़ा बाहर आ गया।
'विल्स।'
'किंग साइज, ये नहीं।'


दासगुप्ता खोखे के पास से हट आये। अब आवाज़ साफ सुनायी देगी।. . लेकिन आवाज़ बंद हो गयी।. . .एक आइडिया आया। पंडाल के अंदर पीछे से घुसा जाये। बीड़ी के लंबे-लंबे कश लगाते वे घूमकर पंडाल के पीछे पहुंच गये। अंधेरा। पेड़। वे लपकते हुए आगे बढ़े। टॉर्च की रोशनी।

'कौन है बे?' पुलिस के सिपाही के अलावा ऐसे कौन बोलेगा।
दासगुप्ता जल्दी-जल्दी पैंट के बटन खोलने लगे 'पिशाब करना है जी पिशाब।' टॉर्च की रोशनी बुझ गयी। दासगुप्ता का जी चाहा इन सिपाहियों पर मूत दें। साले यहां भी डियूटी बजा रहे हैं।. . .पिशाब की धर सिपाहियों पर पड़ी। पंडाल पर गिरी। चूतिये निकल-निकलकर भागने लगे।. . .दासगुप्ता हंसने लगे।

वे लौटकर फिर खोखे के पास आ गये। पास ही में एक छोटे-से पंडाल के नीचे कैन्टीन बनायी गयी थी। दो मेज़ों का काउंटर। काफी प्लांट। उपर दो सौ वाट का बल्ब। हाट डॉग, हैम्बर्गर, पॉपकार्न, काफी की प्यालियां। दासगुप्ता ने कान फिर अंदर से आने वाली आवाज़ की तरफ़ लगा दिये. . .सब अंदर वालों के लिए है। जो साला म्यूजिक सुनने को बाहर खड़ा है, चूतिया है। लाउडस्पीकर भी साला ने ऐसा लगाया है कि बाहर तक आवाज़ नहीं आता। और अंदर चूतिये भरे पड़े हैं। भीमसेन जोशी को समझते हैं? उस्ताद की तानें इनज्वाय कर सकते हैं? इनसे अगर यह कह दो कि उस्ताद जोशी तानों में मंद सप्तक से मध्य और मध्यम सप्तक से तार सप्तक तक स्वरों का पुल-सा बना देते हैं, तो ये साले घबराकर भाग जायेंगे. . .ये बात भीमसेन जोशी को नहीं मालूम होगा? होगा, जरूर होगा। साले संगीत सुनने आते हैं। अभी दस मिनट में उठकर चले जायेंगे. . .डकार कर खायेंगे और गधे की तरह पकड़कर सो जायेंगे।

'दादा सर्दी है,' अजब सिंह की उंगलियां पान लगाते-लगाते ऐंठ रही थीं।
'शर्दी क्यों नहीं होगा। दिशम्बर है, दिशम्बर।'
'ईंटा ले लो दादा, ईंटा।' अजब सिंह ने दासगुप्ता के पीछे एक ईंटा रख दिया और वे उस पर बैठ गये।

जैसे-जैसे सन्नाटा बढ़ रहा था अंदर से आवाज़ कुछ साफ आ रही थी। उस्ताद बड़ा ख्याल शुरू कर रहे हैं। दासगुप्ता ईंटें पर संभलकर बैठ गये।. . .पग लगाने दे. . .घिं-घिं. . .धगे तिरकिट तू ना क त्ता धगे. . .तिरकिट धी ना. . .ये तबले पर संगत कर रहा है? दासगुप्ता ने अपने-आपसे पूछा। वाह क्या जोड़ हे।



'ये तबले पर कौन है?' उन्होंने अजब सिंह से पूछा।
'क्या मालूम कौन है दादा।'
कितनी गरिमा और गंभीरता है। अंदर तक आवाज़ उतरती चली जाती है।. . .तू ना क त्ता. . .।

'तुम्हारे पास कैम्पा हैय?' तीन लड़कियां थीं और चार लड़के। दो लड़कियों ने जींस पहन रखी थीं और उनके बाल इतने लंबे थे कि कमर पर लटक रहे थे। तीसरी के बाल इतने छोटे थे कि कानों तक से दूर थे। एक लड़के ने चमड़े का कोट पहन रखा था और बाकी दो असमी जैकेट पहने थे। तीसरे ने एक काला कम्बल लपेट रखा था। एक की पैंट इतनी तंग थी कि उसकी पतली-पतली टांगे फैली हुई और अजीब-सी लग रही थीं। लंबे बालों वाली लड़कियों में से एक लगातार अपने बाल पीछे किये जा रही थी, जबकि उसकी कोई जरूरत नहीं थी। तीसरी लड़की ने अपनी नाक की कील पर हाथ फेरा।

'तुम्हारे पास कैम्पा हैय?' लंबी और पतली टांगों वाले लड़के ने कैंटीन के बैरे से पूछा। उसका ऐक्सेंट बिलकुल अंग्रेजी था। वह 'त` को 'ट` और 'ह` को 'य` के साथ मिलाकर बोल रहा था। 'ए` को कुछ यादा लंबा खींच रहा था।

'नहीं जी अभी खतम हो गया. . .'
'ओ हाऊ सिली,' छोटे बालों वाली लड़की ठुनकी।
'हाऊ स्टूपिड कैन्टीन दे हैव।'
'वी मस्ट कम्पलेन्ट।'
'लेट्स हैव काफी स्वीटीज,' लंबी टांगों वाले ने अदा से कहा।
'बट आइ कान्ट हैव काफी हियर,' जो लड़की अपनी नाक की कील छूए जा रही थी और शायद इन तीनों में सबसे ज्यादा खूबसूरत थी, बोली।

'वाये माई डियर,' लंबी टांगों वाला उसके सामने कुछ झुकता हुआ बोला और वह बात बाकी दो लड़कियों को कुछ बुरी लगी।
'आई आलवेज हैव काफी इन माई हाउस ऑर इन ओबरॉयज।'
'फाइन लेट्स गो टु द ओबरॉय देन,' लंबी टांगों वाला नारा लगाने के से अंदाज़ में चीखा।

'सर. . .सर कैम्पा आ गया,' कैन्टीन के बैरे ने सामने इशारा किया। एक मजदूर अपने सिर पर कैंपा का क्रेट रखे चला आ रहा था।
'ओ, कैम्पा हेज कम,' दूसरी दो लड़कियों ने कोरस जैसा गाया। अंदर से भीमसेनी जोशी की आवाज़ का टुकड़ा बाहर आ गया।

'ओ कैम्पा {{{{ हैज कम,' सब सुर में गाने लगे, 'के ए ए ए म पा {{{{. . . .पार करो अरज सुनो ओ. . .ओ. . .पा {{{{. . .कैम्पा {{{ पार करो. . .पा {{{{ र. . .कैम्पा {{{{. . .'
'बट नाउ आई वांट टु हैव काफी इन ओबरॉय,' खूबसूरत चेहरे वाली लड़की ठुनकी।
'बट वी केम हियर टु लिसन भीमसेनी जोशी।'

'ओ, डोन्ट बी सिली. . .ही विल सिंग फॉर द होल नाइट. . .हैव कॉफी इन ओबरॉय देन वी कैन कम बैक. . .इविन वी कैन हैव स्लीप एण्ड कम बैक. . .' लंबी टांगों वाला चाबियों का गुच्छा हिलाता आगे बढ़ा. . .भीमसेन जोशी की दर्दनाक आवाज़ बाहर तक आने लगी थी. . .आत्मनिवेदन की, दुखों और कष्टों से भरी स्तुति. . .अरज सुनो {{{{. . . .मो{{{{. . .खचाक. . .खचाक. . .कार के दरवाजे एक साथ बंद हुए और क्रिर्रर क्रिर्ररर क्रिर्र. . .भर्र{{{{ भर्र {{{{. . .।'


बारह बज चुका था। सड़क पर सन्नाटा था। सड़क के किनारों पर दूर-दर तक मोटरों की लाइनें थीं। लोग बाहर निकलने लगे थे। ज्यादातर अधेड़ उम्र और गंभीर चेहरे वाले- उकताये और आत्मलिप्त. . .मोटी औरतें. . .कमर पर लटकता हुआ गोश्त. . .जमहाइयां आ रही हैं। साले, नींद आने लगी. . .टिकट बर्बाद कर दिया। अरे उस्ताद तो दो बजे के बाद मूड़ में आयेंगे। बस टिकट लिया. . .मंगवा लिया ड्राइवर से। घंटे-दो घंटे बैठे। पब्लिक रिलेशन. . .ये टिकट ही नहीं डिजर्व करते. . .पैसा वेस्ट कर दिया. . .उस्ताद को भी वेस्ट कर दिया. . .ऐसी रद्दी आडियन्स। जो लोग जा रहे हैं उनकी जगह खाली. . .उसमें शाला हमको नहीं बैठा देता. . .बोलो, पैशा तो तुमको पूरा मिल गया है। अब क्यों नहीं बैठायेगा।


दासगुप्ता को सर्दी लगने लगी और उन्होंने एयरफोर्स के पुराने ओवरसाइज कोट की जेबों में हाथ डाल दिये। अजब सिंह कुछ सूखी पत्ती उठा लाया। तसले की आग दहक उठी।. . .ये साला निकल रहा है 'आर्ट सेंटर` का डायरेक्टर। पेंटिंग बेच-बेचकर कोठियां खड़ी कर लीं। अब सेनीटरी फिटिंग का कारोबार डाल रखा है। यही साले आर्ट कल्चर करते हैं। क्योंकि इनको पब्लिक रिलेशन का काम सबसे अच्छा आता है। पार्टियां देते हैं। एक हाथ से लगाते हैं, दूसरे से कमाते हैं। अपनी वाइफ के नाम पर इंटीरियर डेकोरेशन का ठेका लेता है। अमित से काम कराता है। उसे पकड़ा देता है हज़ार दो हज़ार. . .लड़की सप्लाई करने से वोट खरीदने तक के धंधे जानता है. . .देखो म्युजिक कान्फ्रेंस की आर्गनाइजर कैसे इसकी कार का दरवाजा खोल रही है. . .ब्रोशर में दिया होगा एक हजार का विज्ञापन। जैसे सुअर गू पर चलता है और उसे खा भी जाता है वही ये आर्ट-कल्चर के साथ करते हैं। फैक्ट्री न डाली 'कला केन्द्र` खोल लिया।. . .विदेशी कार का दरवाजा सभ्य आवाज़ के साथ बंद हो गया। कुसुम गुप्ता. . .साली न मिस है, न मिसेज़ है. . .दासगुप्ता सोचने लगे। क्यों न इससे बात की जाये। वह तेजी से गेट की तरफ बढ़ रही थी। इससे
अंग्रेजी ही में बात की जाये।

'कैन यू प्लीज. . .'

उसने बात पूरी नहीं सुनी। मतलब समझ गयी। गंधे उचकाये।
'नो आइ एम सॉरी. . .वी हैव स्पेंट थर्टी थाउजेंड टू अरैंज दिस. . .' आगे बढ़ती चली गयी।
थर्टी थाउजेंड, फिफ्टी थाउजेंड, वन लैख. . .फायदे, मुनाफे के अलावा वह कुछ सोच ही नहीं सकती। वे आकर ईंट पर बैठ गये।
'विल्स।'
'मीठा पान।'
'नब्बे नंबर डाल, नब्बे. . .'

'ओ हाउ मीन यू आर।' औरतनुमा लड़की को कमसिन लड़का अपना हैम्बर्गर नहीं दे रहा था। औरतनुमा लड़की ने अपना हाथ फिर बढ़ाया और कमसिन लड़के ने अपना हाथ पीछे कर लिया। उनके साथ की दूसरी दो लड़कियां हंसे जा रही थीं।
'मीन,' लड़की अदा से बोली।

मीन? मीन का मतलब तो नीच होता है। लेकिन ये साले ऐसे बोलते हैं जैसे स्वीट। और स्वीट का मतलब मीन होगा।

कमसिन लड़का और औरतनुमा लड़की एक ही हैम्बर्गर खाने लगे। उनके साथ वाली लड़कियां ऐसे हंसने लगीं जैसे वे दोनों उनके सामने संभोग कर रहे हों।
'डिड यू अटेंड दैट चावलाज पार्टी?'
'ओ नो, आई वानटेड टु गो बट. . .'

'मेहराज गिव नाइस पार्टी।'
'हाय बॉबी!'
'हाय लिटी!'
'हाय जॉन!'
'हाय किटी!'

'यस मेहराज गिव नाइस पार्टीज. . .बिकाज दे हैव नाइस लॉन. . .लास्ट टाइम देयर पार्टी वाज टिर्रेफिक. . .देयर वाज टू मच टू ईट एंड ड्रिंक. . .वी केम बैक टू थर्टी इन द मॉर्निंग. . .यू नो वी हैड टू कम बैक सो सून? माई मदर इनला वाज देयर इन अवर हाउस. . . डिड यू मीट हर? सो चार्मिंग लेडी दैड द एज आफ सेवेन्टी थ्री. . .सो एट्ट्रेक्टिव आइ कांट टेल यू।'

'डिड यू लाइक द प्रोग्राम?'
'ओ ही इस सो हैंडसम।'
'डिड यू नोटिस द रिंग ही इज वियरिंग?'
'ओ यस, यस. . .ब्यूटीफुल।'
'मस्ट बी वेरी एक्सपेन्सिव।'
'ओ श्योर।'

'माइ मदर्स अंकल गाट द सेम रिंग।'
'दैट इज प्लैटिनम।'
'हैय वेटर, टू काफी।'

सुनने नहीं देते साले। अब अंदर से थोड़ी-बहुत आवाज़ आ रही थी। दासगुप्ता ने ईंट खिसका ली और अंगीठी के पास खिसक आये।

'ही हैज जस्ट कम बैक फ्राम योरोप।'
'ही हैज ए हाउस इन लण्डन।'
'मस्ट बी वेरी रिच।'
'नेचुरली ही टेस्ट टेन थाउजेंड फार ए नाइट।'

'देन आइ विल काल हिम टु सिंग इन अवर मैरिज।' कम उम्र लड़के ने औरतनुमा लड़की की कमर में हाथ डाल दिया।

साले के हाथ देखो। कलाइयां देखो। दासगुप्ता ने सोचा। अपने बल पर साला एक पैसा नहीं कमा सकता। बाप की दौलत के बलबूते पर उस्ताद को शादी में गाने बुलायेगा।
अजब सिंह ने फिर अंगीठी में सूखे पत्ते डाल दिये। बीड़ी पीता हुआ एक ड्राइवर आया और आग के पास बैठ गया। उसने खाकी वर्दी पहन रखी थी।
'सर्दी है जी, सर्दी।' उसने हाथ आग पर फैला दिये। कोई कुछ नहीं बोला।

'देखो जी कब तक चलता है ये चुतियापा। डेढ़ सौ किलोमीटर गाड़ी चलाते-चलाते हवा पतली हो गयी। अब साले को मुजरा सुनने की सूझी है। दो बजने. . .' 'सुबह छ: बजे तक चलेगा।'
'तब तो फंस गये जी।'
'प्राजी कोई पास तो नहीं है?' अजब सिंह ने ड्राइवर से पूछा।
'पास? अंदर जाना है?'
'हां जी अपने दादा को जाना है,' अजब सिंह ने दासगुप्ता की तरफ इशारा किया।
'देखो जी देखते हैं।'

ड्राइवर उठा तेजी से गेट की तरफ बढ़ा। लंबा तडंग़ा। हरियाणा का जाट। गेट पर खड़े सिपाहियों से उसने कुछ कहा और सिपाही स्वागतकर्ता को बुला लाया।
ड्राइवर जोर-जोर से बोल रहा था, 'पुलिस ले आया हूं जी। एस.पी. क्राइम ब्रांच, नार्थ डिस्ट्रिक्ट का ड्राइवर हूं जी। डी.वाई.एस.पी. क्राइम ब्रांच और डी.डी.एस.पी. ट्रैफिक की फैमिली ने पास मंगाया है जी,' वह लापरवाही से एक सांस में सब बोल गया।

सूटधारी स्वागतकर्ता ने सूट की जेब से पास निकालकर ड्राइवर की तरफ बढ़ा दिये। वह लंबे-लंबे डग भरता आ गया।

'सर्दी है जी, सदी है।' हाथ आगे बढ़ाया 'ये लो जी पास।'
'ये तो चार पास हैं।'
'ले लो जी अब, नहीं तो क्या इनका अचार डालना है।'
दासगुप्ता ने एक पास ले लिया, 'हम चार पास का क्या करेगा?'

हरियाणा का जाट को काफी ऊब चुका था, इस सवाल का कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करना चाहता था। उसने बचे हुए तीन पास तसले में जलती आग में डाल दिये। ड्राइवर और अजबसिंह ने तसले पर ठंडे हाथ फैला दिये। दासगुप्ता गेट की तरफ लपके। अंदर से साफ आवाज़ आ रही थी. . .जा{ गो{. . .उस्ताद अलाप लेकर भैरवी शुरू करने वाले हैं. . .जा{ गो{ मो{ ह न प्या{{{{रे {{. . .ध धिं धिं ध ध तिं तिं ता. . .जा{ गो{ मो{ ह{ न प्या{ {{ {{ {{ रे {{ {{{. . .