सात टाँगों वाला जानवर : कश्मीरी लोक-कथा

Saat Taangon Wala Janwar : Lok-Katha (Kashmir)

एक बार की बात है कि एक राजा था जिसको अपनी सेना पर बहुत गर्व था। वह अपने सिपाहियों पर पैसा भी बहुत खर्च करता था। सो एक बार उसको यह जानने की इच्छा हुई कि उसके सैनिक वास्तव में कितने बहादुर थे।

उसने अपने आदमियों को हुकुम दिया कि वे शहर के बाहर एक मैदान में एक लड़ाई का इन्तजाम करें। तुरन्त ही उसके हुकुम का पालन हुआ।

लड़ाई वाले दिन राजा साहब अपने वज़ीर और दीवानों के साथ मैदान में आ पहुँचे। जब वे उनकी लड़ाइयाँ देख रहे थे तो एक जंगली जानवर जिसके सात टाँगें थी वहाँ आया और उनके पास आ कर गुर्राने लगा। राजा तो उसको देख कर बहुत ही आश्चर्य में पड़ गया। उसने उसको मारना चाहा पर वह वहाँ से भाग गया।

राजा अपने तेज़ घोड़े पर सवार हो कर अपना बड़ा वाला चाकू ले कर उसके पीछे भागा। दो मील भागने के बाद वह जानवर रुक गया। वहाँ पहुँच कर उसने अपने आपको एक ज़ोर का झटका दिया और वह एक जिन्न में बदल गया। वह राजा की तरफ पलटा और उसको खा गया।

वज़ीर ने बड़ी वफादारी और लगन से राजा की आठ दिन तक खोज की पर उसकी कोई खबर नहीं मिली। सो उन्होंने उसके बेटे को बुलाया और उसकी जगह उसके बेटे को वहाँ का राजा बना दिया।

एक दिन राजा के बेटे को यह जानने की बहुत ज़ोर की इच्छा हुई कि उसके पिता की मौत कैसे हुई थी। उसने यह बात अपने वज़ीर से पूछी। वज़ीर ने उसको सब बातें बता दीं तो उससे सारा हाल सुनने के बाद उसने भी उसी जगह एक दूसरा शानदार लड़ाई का मुकाबला रखा जहाँ उसके पिता ने रखा था।

नियत समय पर वह और उसके दरबार के सभी लोग वहाँ इकट्ठा हुए। उन लोगों को वहाँ पर आये अभी बहुत देर नहीं हुई थी कि वही सात टाँगों वाला जंगली जानवर वहाँ आ गया और उन सब पर भयानक रूप से गुराता हुआ वहाँ से चला गया।

जब राजा के प्रधान मन्त्री ने यह देखा तो वह बहुत ज़ोर से हँस पड़ा। राजा ने उससे पूछा कि वह क्यों हँसा। तो वज़ीर ने कहा — “हुजूर मैं इसलिये हँसा कि यह वही जानवर है जिसने आपके पिता को हमारे बीच से उठाया था।”

“अच्छा ऐसा है क्या। तब तो मैं उसको जरूर मारूँगा क्योंकि मुझे तब तक शान्ति नहीं मिलेगी जब तक मैं अपने दुश्मन को मार नहीं लूँ।”

ऐसा कह कर वह भी अपने घोड़े पर सवार हुआ और उस जानवर के पीछे भाग लिया। वह जानवर उसको कुछ दूर तक उसी तरह भगा कर ले गया जैसे कि वह उसके पिता को ले गया था। वहाँ जा कर वह रुक गया अपने आपको झंझोड़ा और अपने असली रूप में आ कर राजा के ऊपर उछला।

राजा यह देख कर डर गया और दिल से उसने भगवान से प्रार्थना की कि वह उसको उससे बचाये। भगवान ने उसकी प्राथना सुन ली और अपने एक देवदूत6 को उसके पास भेजा जो उसको यह बताये कि उसको इस जिन्न से कैसे बचना है।

देवदूत ने राजा कहा — “यह जिन्न सबसे ज़्यादा ताकतवर जिन्न है। अगर इसके शरीर के खून की एक भी बूँद जमीन पर गिर गयी और तब तक यह ज़िन्दा है तो उससे तुरन्त ही एक और ऐसा ही जिन्न पैदा हो जायेगा।

फिर वह उछल कर तुम्हारे ऊपर कूद पड़ेगा और तुम्हारे शरीर के टुकड़े टुकड़े कर देगा। मगर तुम डरो नहीं। लो तुम यह दो फल वाला तीर लो और इससे इस जिन्न की दोनों आँखें फोड़ दो। इससे यह नीचे गिर जायेगा और मर जायेगा।” इस तरह से वह देवदूत उसको वह दो फल वाला तीर दे कर वहाँ से गायब हो गया।

तीर से लैस हो कर राजा आगे बढ़ा। वह उस जिन्न से करीब 40 मिनट तक लड़ा। आखीर में उसने अपना वह दोहरे फल का तीर उसकी आखों में मार दिया जिससे वह मर गया।

जब राजा ने पक्का कर लिया कि उसका दुश्मन मर गया है तो उसने अपनी तलवार निकाली और उसका सिर काट लिया। उसको उसने अपने एक तीर की नोक पर रखा और वापस महल की तरफ चल दिया।

वहाँ जा कर उसने उसको अपने महल के 12 हजार कमरों में से एक कमरे में रख दिया। उसने उस कमरे का ताला लगाया और उस कमरे की चाभी अपनी माँ को दे कर उससे कहा कि वह उस कमरे का दरवाजा किसी भी हालत में न खोले।

पर क्योंकि उसने अपनी माँ को यह नहीं बताया कि उसने उस कमरे में इतनी सावधानी से क्या चीज़ बन्द कर रखी थी उसकी माँ ने सोचा कि शायद उस कमरे में कोई खास खजाना बन्द होगा। यह सोच कर उसके मन में उसको देखने की इच्छा हो आयी। सो एक दिन वह उस कमरे की तरफ गयी और उसने उसका दरवाजा खोल दिया।

उसको उस कमरे में कुछ दिखायी नहीं दिया क्योंकि उसके बेटे ने उस जिन्न का सिर एक कोने में फेंक दिया था हाँ उसको एक हँसी की आवाज जरूर सुनायी दी।

और फिर ये शब्द — “तेरा बेटा एक जिन्न है। उससे बच कर रहना। वह एक जिन्न है। किसी समय वह तुझे भी मार देगा जैसे उसने मुझे यानी तेरे पति को मारा है। अगर तू ज़िन्दा रहना चाहती है तो तू उसको महल के बाहर निकाल दे।”

राजा की माँ ने पूछा — “अरे यह आवाज कहाँ से आ रही है? और यह तुम क्या कह रहे हो?”

वही आवाज फिर बोली — “तू झूठमूठ बीमार बनने का बहाना कर और अपने ठीक होने के लिये उससे मादा चीते का दूध मँगवा। उससे कह कि वह यह काम करने के लिये खुद वहाँ जाये और उसको ले कर आये।”

अगली सुबह भारी और दुखी दिल से राजा एक जंगल की तरफ जाता देखा गया जहाँ चीते और दूसरे जंगली जानवर घूमते हुए देखे जाते थे। जल्दी ही उसको एक मादा चीता दिखायी दे गयी जो अपने दो बच्चों के साथ धूप में बैठी हुई थी।

उसको वहाँ देख कर वह एक पेड़ पर चढ़ गया और वहीं से उसके एक थन में तीर मारा। इत्तफाक से उसके उस थन में कई दिनों से बहुत दर्द हो रहा था क्योंकि उसके पास ही उसके एक फोड़ा हो रहा था। राजा का तीर उस फोड़े में जा लगा जिससे वह फोड़ा फूट गया और मादा चीते को बहुत आराम मिला।

मादा चीता इस आराम के लिये उसकी बहुत कॄतज्ञ हुई। उसने ऊपर की तरफ देखा और उससे नीचे उतरने की प्रार्थना की। उसने उससे पूछा कि इसके बदले में उसको क्या चाहिये।

राजा ने उससे कहा कि उसको कुछ नहीं चाहिये सिवाय उसके थोड़े से दूध के जो उसे उसकी बीमार माँ के लिये चाहिये था। मादा चीते ने तुरन्त ही उसकी बोतल अपने दूध से भर कर उसको दे दी जो वह अपने साथ ले कर आया था।

फिर उसने उसको अपने कुछ बाल दिये और उससे कहा — “जब भी कभी तुम किसी मुश्किल में हो तो इन बालों को सूरज को दिखा देना मैं तुम्हारी सहायता के लिये तुरन्त ही आ जाऊँगी।”

राजा ने उसका वह दूध और उसके बाल लिये और घर आ गया। जब रानी माँ ने उसको मादा चीते का दूध लाता देखा तो उसे लगा कि शायद वह वाकई कोई जिन्न था। उसने अपने दिल में उसको मारने का पक्का इरादा कर लिया।

वह फिर उस कमरे में गयी जिसमें वह सिर रखा था और उसे अपना पूरा हाल बताया। तो उस बोलने वाले ने उससे कहा — “इस बात से यह पता चलता है कि वह वाकई में एक जिन्न है। एक जिन्न के अलावा कोई और किसी मादा चीते का दूध ला ही नहीं सकता। तू जल्दी से जल्दी उसे मारने का इन्तजाम कर।”

रानी माँ बोली — “पर मैं उससे कैसे छुटकारा पाऊँ?”

आवाज फिर बोली — “इस बार जब वह तुझसे दोबारा मिलने आये और तेरा हाल पूछे तो तू इससे कहना कि तू अभी भी बहुत कमजोर और बीमार महसूस कर रही है। मादा चीते के दूध ने तेरे ऊपर कुछ ज़्यादा असर नहीं किया।

पर सुना है एक राजकुमारी है जो फलाँ फलाँ ऊँची पहाड़ी पर एक किले में अकेली रहती है। अगर वह तेरे पास आ जाये और तुझे छू ले तो उसके छूने से ही तू ठीक हो जायेगी। यह सुन कर तेरा बेटा उस भयानक किले में जायेगा तो निश्चित रूप से रास्ते में ही मारा जायेगा।”

अगले दिन शाम को जब राजा अपनी माँ को देखने गया और उससे पूछा — “माँ अब तुम कैसी हो? क्या अब तुम पहले से कुछ अच्छी हो?”

रानी माँ रोती हुई सी बोली — “कहाँ बेटा। इस मादा चीते के दूध ने तो मुझे बिल्कुल भी फायदा नहीं किया। पर कल मैंने एक सपना देखा कि एक राजकुमारी है जो फलाँ फलाँ ऊँची पहाड़ी पर एक किले में अकेली रहती है। अगर वह मेरे पास आ जाये और मुझे छू ले तो उसके छूने से ही मैं बिल्कुल ठीक हो जाऊँगी। जब तक वह यहाँ नहीं आती और मुझे नहीं छू लेती मैं ठीक नहीं हो सकती।

राजा बोला — “माँ थोड़ा धीरज रखो। मैं उस राजकुमारी को तुम्हारे पास जरूर ले कर आऊँगा। अगर नहीं ला सका तो राज्य छोड़ दूँगा।”

सो अगली सुबह राजा ने अपना सबसे तेज़ भागने वाला घोड़ा उठाया और उस पर बैठ कर अपनी उस खतरनाक यात्रा पर चल दिया। वह मादा चीते के दिये हुए जादू को बालों को साथ ले जाना नहीं भूला था।

जैसे ही सूरज निकला उसने वे बाल सूरज को दिखाये। तुरन्त ही मादा चीता और उसके दोनों बच्चे वहाँ आ गये। मादा चीते ने पूछा — “क्या बात है?”

राजा बोला — “फलाँ फलाँ जगह एक राजकुमारी अकेली रहती है।”

“और तुम्हें उसको लाना है? यह तुम नहीं कर सकते। कई लोगों ने उसको वहाँ से लाने की कोशिश की है क्योंकि राजकुमारी बहुत सुन्दर है पर कोई भी अब तक उसके पास भी नहीं पहुँच सका है।”

राजा बोला — “मैं कोशिश करूँगा चाहे इस कोशिश में मेरी जान ही क्यों न चली जाये।” यह कहते हुए राजा वहाँ से चल दिया।

मादा चीता अपना भला करने वाले को इस तरह अपने को छोड़ कर जाते हुए नहीं देख सकती थी सो वह अपने दोनों बच्चों के साथ उसके पीछे पीछे दौड़ी और उससे अपने ऊपर चढ़ जाने को कहा। राजा उसके ऊपर बैठ गया और वे सब कुछ ही देर में उस किले के पास पहुँच गये।

वहाँ पहुँच कर मादा चीता राजा से बोली — “देखो यहाँ पर इस किले के तीन दरवाजे हैं। राजकुमारी के पास पहुँचने से पहले उन तीनों दरवाजों से हो कर गुजरना जरूरी है।

पहले दरवाजे के पास एक बहुत बड़ा लोहे का टुकड़ा रखा है जिसको एक लकड़ी की कुल्हाड़ी से तोड़ना जरूरी है नहीं तो दरवाजा नहीं खुलेगा।

दूसरे दरवाजे के पास एक नकली गाय खड़ी है जिसके चारों तरफ असली जिन्न खड़े हैं। अगर कोई भी भी आदमी उस गाय को दुह सकता है तो वह उस दरवाजे में से हो कर जा सकता है। और अगर नहीं दुह पाता तो वे जिन्न लोग उसको मार देते हैं। तीसरे दरवाजे के पास राजकुमारी खुद बैठती है। अगर वह तुमसे खुश है तो वह तुम्हारा स्वागत करेगी और अगर खुश नहीं है तो वह तुमको मार डालेगी।”

यह सब सुन कर तो राजा बहुत ही डर गया। उसने मादा चीते से उसकी सहायता की प्रार्थना की।

मादा चीता बोली — “ठीक है मैं तुम्हारी सहायता करूँगी। मेरे पास एक जादू है जिसकी सहायता से मैं उस लोहे के टुकड़े में घुस जाऊँगी। और जब तुम उसको अपनी लकड़ी की कुल्हाड़ी से तोड़ोगे तो मैं उसको दो टुकड़ों में तोड़ दूँगी।

चौकीदार सोचेगा कि तुमने वह लोहे का टुकड़ा तोड़ा है और वह तुमको पहले दरवाजे से अन्दर जाने देगा।”

तभी मादा चीते के दोनों बच्चों में से एक बच्चा बोला — “और मैं उस गाय की मूर्ति में घुस जाऊँगा और उसको दूध देने पर मजबूर कर दूँगा। और उसके पास खड़े जिन्नों को जब तुम दूध दुह रहे होगे तो उनको तुमसे दूर रखने में सहायता करूँगा। इस तरह से तुम दूसरे दरवाजे से हो कर निकल जाओगे।”

इसके बाद मादा चीते के दूसरे बच्चे ने कहा — “और मैं राजकुमारी की आँखों में अपना जादू डाल दूँगा जिससे जब वह तुम्हारी तरफ देखेगी तो तुम उसको सूरज की तरह से चमकीला पायेगी। सो वह तुमको देखते ही अपना तीसरा दरवाजा खोल देगी और फिर जो तुम कहोगे वह वही करेगी।”

सो उन तीनों ने अपने अपने वायदे वफादारी से निभाये। इस तरह से राजा तीसरे दरवाजे के पार पहुँच गया। राजकुमारी ने जैसे ही उसको देखा तो उसकी बहादुरी और सुन्दरता से बहुत प्रभावित हुई । उसने राजा से अपने साथ शादी करने के लिये कहा। मादा चीता और उसके दोनों बच्चे अपनी माँद में लौट गये।

कुछ दिन बाद ही राजा राजकुमारी को ले कर राजमहल पहुँचा और जा कर माँ से बोला — “माँ उस जगह को जाने वाला रास्ता बहुत खतरनाक था। मैं तो रास्ते ही में मर जाता अगर मादा चीता और उसके दो बच्चों ने मेरी सहायता न की होती। भगवान को धन्यवाद दो कि मैं सही सलामत वापस लौट आया।”

कुछ देर और बात करने के बाद उसने माँ को जिन्न के सिर के बारे में बताया कि वह उसके सामने सबसे पहले कैसे एक सात टाँगों वाले जानवर के रूप में प्रगट हुआ था। फिर कैसे वह उसको एक जगह भगा कर ले गया था।

जहाँ जा कर वह अपने असली रूप में बदल गया – एक बहुत बड़े भयानक जिन्न के रूप में। वह उस पर कूदने को ही था उसको मार कर खाने वाला ही था जैसे कि उसने उसके पिता के साथ किया था कि तभी भगवान के भेजे हुए दूत ने उसको बचा लिया।

उसकी माँ तो यह सुन कर ताज्जुब में पड़ गयी। वह बोली — “बेटे, तब तो मुझे धोखा दिया गया था। उस दिन की शाम को जब तुमने मुझसे महल की चाभियाँ माँगी थीं तब मैं उसके कई कमरों को देखने गयी।

तब मैं एक ऐसे कमरे के दरवाजे पर आयी जिसमें से मुझे हँसी की आवाज सुनायी दी। मैंने सोचा कि देखूँ तो इसमें कौन हँस रहा है सो मैंने उसका ताला खोला और अन्दर गयी तो मुझे एक आवाज आयी — “ध्यान दे कर सुन। तेरा बेटा एक जिन्न है जो तुझको खा जाना चाहता है। मैं तेरे पति का सिर हूँ। उसने मुझे मारा तो तू उसे मार दे नहीं तो वह तुझे भी मार देगा।”

मेरे बेटे मैंने उसकी बातों पर विश्वास कर लिया और उसी की सलाह पर मैंने इस आशा में तुझे मादा चीते का दूध लाने भेजा कि वह तुझे मार देगी। पर जब तू मादा चीते से बच कर आ गया तो फिर मैंने उसी सिर की सलाह पर राजकुमारी को लाने भेजा। मैं जानती थी कि वहाँ का रास्ता खतरों से भरा है फिर भी। पर भगवान तेरे साथ था। उसी ने तुझे अपना देवदूत तेरे पास भेज कर तुझे रास्ता दिखाया और उसी ने मादा चीते के रूप में तेरी सहायता की। उस भगवान को लाख लाख धन्यवाद।”

कह कर उसने अपने बेटे को गले लगा लिया और बहुत ज़ोर से रो पड़ी।

इन घटनाओं के कुछ दिन बाद ही राजा और राजकुमारी की शादी हो गयी और सब लोग शान्ति से बहुत दिनों तक खुशहाली में रहे।

(सुषमा गुप्ता)

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