साही और हिरन की कहानी : असमिया लोक-कथा

Saahi Aur Hiran Ki Kahani : Lok-Katha (Assam)

बहुत दिन पहले की बात है कि एक दिन एक साही और एक हिरन दोनों अपना अपना झूम यानी खेत बनाने के लिये एक पेड़ की जड़ें काट रहे थे।

साही उस पेड़ की जड़ को बड़ी सँभाल कर धीरे धीरे अपने दाँतों से काट रहा था और हिरन उसको अपने अगले पैरों के नीचे के हिस्से से काट रहा था।

फिर उन्होंने अपने अपने खेत जला कर तैयार कर लिये तो साही का खेत तो बहुत अच्छा जल गया क्योंकि उसने बड़ी मेहनत से अपना खेत काटा था पर हिरन का खेत उतना अच्छा नहीं जला क्योंकि वह बहुत आलसी और लापरवाह था।

जब चावल बोने का समय आया तो हिरन ने साही के खेत में अपने चावल बो दिये। यह देख कर साही बोला — “तुमने मेरे खेत में अपने चावल क्यों बोये?”

इस पर हिरन बोला — “मैंने अपना बीज अपने खेत में बोया है तुम्हारा खेत में नहीं। तुम्हारा खेत ठीक नहीं है।” वे दोनों इसी बात पर काफी देर तक बहस करते रहे कि कौन सा खेत किसका है।

अन्त में हिरन ने कहा इस प्रकार लड़ने से कोई फायदा नहीं है इससे अच्छा है कि कुश्ती लड़ते हैं और जो भी कुश्ती में जीतेगा अच्छा वाला खेत उसी का होगा। साही यह सोच कर राजी हो गया कि यद्यपि वह साइज़ में छोटा था फिर भी वह जीत जायेगा और अच्छा वाला खेत उसे मिल ही जायेगा।

सो दोनों की कुश्ती शुरू हुई और साही जीत गया। इस पर हिरन दुखी आवाज में बोला कि पहली कुश्ती में उसकी हड्डियाँ दर्द कर रही थीं इसलिये वह पहली बार की कुश्ती ठीक से नहीं लड़ पाया इसलिये अब वह दोबारा कुश्ती लड़ना चाहता है।

साही राजी हो गया। हिरन ने अपनी हड्डी पर एक कपड़ा लपेट लिया और दोबारा कुश्ती लड़ा पर इस बार भी साही जीत गया।

हिरन बोला कि दूसरी कुश्ती लड़ते समय क्योंकि उसकी गरदन में दर्द था इसलिये वह यह दूसरी कुश्ती हार गया था इसलिये अब तीसरी बार कुश्ती होनी चाहिये तब फैसला होगा। साही तीसरी बार के लिये भी तैयार हो गया पर इत्तफाक से साही तीसरी बार भी जीत गया।

यह देख कर हिरन को थोड़ा दुख तो हुआ पर वह अभी भी हार मानने के लिये तैयार नहीं था सो उसने एक और सलाह दी। वह बोला — “ऐसा करते हैं कि अबकी बार हम अपने अपने दोस्तों को बुला लेते हैं और फिर लड़ाई लड़ें और फिर जो जीते अच्छा वाला खेत उसका।” साही इस पर भी राजी हो गया।

हिरन ने तो अपने बहुत सारे दोस्तों को बुला लिया पर साही का कोई दोस्त न था। इस प्रकार हिरन की तरफ तो बहुत सारे जानवर थे मगर साही की तरफ कोई भी नहीं था सो उसने किसी तरह मधुमक्खियों को अपनी तरफ कर लिया।

उसने उन मधुमक्खियों को बीयर के कुछ बरतनों में बन्द कर दिया और उन बरतनों को एक अलमारी के ऊपर रख दिया। थोड़ी देर में हिरन का भेजा एक बन्दर आया और उसने साही से पूछा कि क्या वह हिरन को उसका खेत देने के लिये तैयार है? साही ने हिरन को खेत देने से तो साफ इनकार कर दिया पर उसने बन्दर को एक प्याला बहुत बढ़िया शहद पीने के लिये दिया। शहद पी कर तो बन्दर बहुत ही खुश हुआ और उसने साही से वायदा किया कि वह उन दोनों के बीच सुलह और शान्ति करवाने की कोशिश करेगा।

बन्दर शहद पी कर वापस चला गया और हिरन को अपनी साही से मुलाकात की कहानी सुनायी। यह कहानी सुन कर हिरन ने तुरन्त ही अपना एक और दूत साही के पास इस सन्देश के साथ भेजा कि वह आखिरी बार उससे पूछ रहा है कि साही अपना खेत छोड़ने के लिये राजी था कि नहीं?

इस बार साही ने सारे जानवरों को अपने आपसे लड़ने की चुनौती दी पर उसने साथ में यह भी कहा कि वह सारे जानवरों को अपने आपसे लड़ने से पहले अपने घर में बीयर12 पिलायेगा। सारे जानवर यह सुन कर बहुत खुश हुए और उसके घर में बीयर पीने आये तो उसने सबको अपने घर में अन्दर बुलाया और जब वे सब अन्दर आ गये तो उसने घर का दरवाजा बन्द कर दिया।

फिर वह बन्दर से बोला — “तुम सबसे पहले हिरन के दूत बन कर आये थे इसलिये सबसे पहले मैं बीयर तुम्हें ही दूँगा। जाओ और जा कर बीयर का एक बरतन खोलो और उसमें अपना सिर डाल कर उसमें से बीयर की पहली खुशबू सूँघो कहीं ऐसा न हो कि वह निकल जाये।”

ऐसा कह कर वह खुद अलमारी के ऊपर चढ़ गया। बन्दर ने खुशी खुशी बीयर का एक बरतन खोला और बीयर सूँघने के लिये उसमें अपना सिर डाला ही था कि उसमें से बहुत सारी मधुमक्खियाँ निकल पड़ीं। उन्होंने उसके सारे शरीर पर काट लिया और वह तुरन्त ही मर गया।

साही यह देख कर अपने उस छेद से घर के बाहर भाग गया जो उसने अपने घर की छत में पहले से ही बना रखा था। फिर वे मधुमक्खियाँ सारे कमरे में फैल गयीं और उन्होंने दूसरे जानवरों को भी काटना शुरू कर दिया। यह देख कर वे जानवर पागल से हो गये और इधर उधर भागने लगे। पर क्योंकि साही के घर का दरवाजा बन्द था इसलिये कोई जानवर वहाँ से बाहर नहीं भाग पाया।

इधर उधर भागने के चक्कर में वे आलमारी से टकरा गये और अलमारी पर रखे बीयर के दूसरे बरतन भी खुल गये। उनमें से भी बहुत सारी मधुमक्खियाँ निकल पड़ीं और जानवरों को काटने लगीं। इस तरह उनमें से बहुत सारे जानवर बहुत जल्दी ही मर गये।

जब साही ने देखा कि सारे जानवर मर गये सिवाय एक कछुए के तो वह घर के अन्दर आ गया और उसने उस कछुए की पीठ को जानवरों का माँस काटने के लिये मेज की तरह इस्तेमाल किया। माँस काटने के बाद वह उससे बोला — “ओ कछुए, मैं तुमको अपना एक पुराना वाला काँटा दूँगा और फिर तुम अपने घर चले जाना।”

साही ने कछुए को अपना एक पुराना काँटा दिया, कछुए ने उसे अपने बालों में रख लिया और अपने घर चला गया।

जब वह अपने घर जा रहा था तो एक चीते और एक भालू के घर के पास उसने एक पेड़ के खोखले तने से एक आवाज निकाली। उस आवाज को सुन कर चीते की पत्नी और भालू की पत्नी अपने अपने घरों से बाहर आ गयीं।

चीते की पत्नी और भालू की पत्नी ने कछुए से पूछा — “कछुए भाई , हमारे पति कहाँ हैं? वे तुम्हारे साथ क्यों नहीं आये?”

कछुआ बोला — “वे सब मर गये। यहाँ तक कि साही भी मर गया। मैं अकेला ही बचा हूँ। देखो, निशानी के तौर पर मैं साही का एक काँटा भी लाया हूँ।”

पर चीते और भालू दोनों की पत्नियों को उस पर विश्वास ही नहीं हुआ कि साही मर सकता है सो वे दोनों साही के पास दौड़ी गयीं। वहाँ जा कर उन्होंने साही से पूछा — “क्या कछुए ने तुम्हें मार डाला?”

साही बड़ी ज़ोर से हँसा और हँस कर बोला — “अरे अगर मैं मर गया होता तो क्या तुम्हारे सामने ऐसे खड़ा होता? नहीं नहीं मैं मरा नहीं हूँ, देखो, मैं तो ज़िन्दा हूँ।”

“तो फिर उसके पास तुम्हारा काँटा कहाँ से आया?”

साही बोला — “वह काँटा तो मैंने उसे अपने आप ही दिया था न कि उसने मुझसे लिया था। उसको वह अपने बालों में लगा कर ले गया।

और उसकी पीठ पर रख कर तो मैंने माँस काटा था। अगर तुम लोग ठीक से देखोगी तो तुम्हें उसकी पीठ पर मेरे माँस काटने के निशान भी दिखायी दे जायेंगे।”

चीते की पत्नी और भालू की पत्नी दोनों तुरन्त ही अपने घर वापस आयीं और उन्होंने कछुए की पीठ देखी तो सचमुच ही उस की पीठ पर जानवरों के माँस काटने के निशान थे।

वे दोनों कछुए से बहुत नाराज हुईं और बोलीं — “तुमने हम को धोखा दिया है।” और यह कह कर उसको पकड़ कर एक पेड़ में रख दिया।

इससे कछुए को बड़ा दर्द हुआ। वह बोला — “मुझे यहाँ बड़ा दर्द हो रहा है। तुम मेरी पूँछ पर ज़ोर से मारो और जब मेरा सिर बाहर आ जाये तो तुम मुझे खा जाना ताकि मैं मर जाऊँ।” चीते की पत्नी और भालू की पत्नी ने ऐसा ही किया। इस तरह कछुआ तो मर गया पर आज तक कछुए की पीठ पर साही के माँस काटे के निशान पाये जाते हैं।

(सुषमा गुप्ता)

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