Reti Ke Phool (Nibandh Sangrah) : Ramdhari Singh Dinkar

रेती के फूल (निबन्ध संग्रह) : रामधारी सिंह 'दिनकर'

हम रेती के फूल, कहो, कैसे जीते हैं?
जड़ में है जो धूल,
आग है, चिनगारी है।
सूख रहा है मूल,
ताप रवि का भारी है।
सिकताओं का देश,
चमकता जो, मृगजल है।
नहीं मृत्ति का लेश, कहो, कैसे जीते हैं?

दो शब्द

‘रेती के फूल’ में मेरे हाल के कुछ निबन्ध संगृहीत हैं। दो–एक ऐसे भी हैं जो पहले के संग्रहों में निकल चुके थे। किन्तु इन सभी निबन्धों का धरातल और स्वभाव, प्राय:, एक–सा है, इसलिए उन्हें एक संग्रह में निकाल देना अच्छा जान पड़ा। इन निबन्धों में कलाकारिता चाहे जैसी भी हो, किन्तु कुछ विचार हैं जिन्हें मैं अपने पाठकों, विशेषत:, नवयुवक पाठकों के सामने रखना चाहता हूँ। आशा है, मेरी शंकाएँ और मेरे विचार पाठकों के हृदय–मस्तिष्क के सामने पहुँच सकेंगे। इति।
—दिनकर
1954 ई. ।