Ramgopal Bhavuk Ki Kahaniyan : Bajrang Bihari Tiwari

रामगोपाल भावुक की कहानियाँ : बजरंग बिहारी तिवारी

कहानी स्मृति की पोटली होती है| जो कुछ घट चुका है उसमें से काम की बातें छाँटने का सिलसिला कहानीकार के मन में निरंतर चलता रहता है| सार-तत्व को ग्रहण कर और थोथे को उड़ाते हुए सजग कहानीकार अपनी स्मृतियों को अद्यतन करता रहता है, प्रासंगिक बनाता रहता है| इन संचित स्मृतियों का उपयोग कहानी में कच्चे माल की तरह किया जाता है| स्मृति का बड़ा हिस्सा स्वानुभव से बनता है| देखकर, सुनकर, जानकर भी स्मृति का गोदाम भरा जाता है| यह सब कहानी लिखते समय यथावसर इस्तेमाल होता है| लेकिन, कहानी मात्र स्मृतियों का पुनर्लेखन नहीं है| कहानीकार की आकांक्षा ही कहानी को आकार देती है| आकांक्षा बनती है वर्तमान की समझ से| वर्तमान की जितनी गहरी समझ कहानीकार को होगी वह व्यवस्था की विसंगति को उतने सटीक तरीके से पकड़ सकेगा| भविष्य का खाका ही दूसरे शब्दों में आकांक्षा है| स्मृति और आकांक्षा मिलकर कहानी की इमारत खड़ी करते हैं|

राम गोपाल भावुक ने समाज को अपने तरीके से समझा है| वे अपने आसपास पसरे यथार्थ को अपनी कहानियों के लिए चुनते हैं| समाज व्यवस्था, राज व्यवस्था और अर्थव्यवस्था की विद्रूपताओं को सामने लाने में भावुक सन्नद्ध होते हैं| उनके चरित्र हमारे लिए जाने-पहचाने हैं| ये चरित्र शासनतंत्र से असंतुष्ट हैं और संघर्षशील हैं| उन्हें पता है कि लड़ाई बड़ी कठिन है| एक तरफ पूरी सत्ता है और दूसरी तरफ एकल व्यक्ति| भावुक की कहानियों के ये पात्र समर्पण का रास्ता न चुनकर, संघर्ष का मार्ग चुनते हैं| ‘ठसक’ कहानी की नीलम, ‘विजया’ कहानी की विजया और ‘मिश्री धोबी फागों में’ का मिश्री ऐसे ही न झुकने वाले कर्मठ चरित्र हैं| भावुक ने दलित और स्त्री चरित्रों की मजबूती को ख़ास तौर पर रेखांकित किया है|

कर्मठ चरित्र महत्त्वाकांक्षी भी हों, यह जरूरी नहीं है| महत्वाकांक्षी चरित्र येनकेन प्रकारेण आगे बढ़ना चाहते हैं| कभी उनका आगे बढ़ना सार्वजनिक कल्याण से प्रेरित नज़र आता है और कभी नितांत वैयक्तिक प्रगति के रूप में होता है| इन दोनों का मिला-जुला रूप ‘आदमी की नब्ज’ कहानी की चमेली उर्फ़ अमृता देवी में दिखाई देता है| ‘बेहतर उम्मीद में स्त्री’ की केन्द्रीय चरित्र विजया समाज में नई बनती स्त्री है| यह पाती है कि जो पुरुष उसकी दुनिया में हैं वे बेहतर मनुष्य नहीं हैं| उनका प्रेम बराबरी पर टिका नहीं है| वह अपने आकांक्षित पुरुष की उम्मीद में अपना प्रेम स्थगित करती जाती है|

राम गोपाल भावुक की विचार-दृष्टि मानवतावादी है| यह विज्ञान के पक्ष में झुकी विचार-दृष्टि है| इस दृष्टि को परंपरा का स्वीकार वहीं तक है जहां तक वह बोझ न बने, प्रगति में बाधा की तरह न आए| विज्ञानसम्मत होने से उनकी दृष्टि में साम्प्रदायिकता की जगह नहीं है| ‘आँगन की दीवार’ कहानी में उन्होंने गैरसाम्प्रदायिक कथानक प्रस्तुत किया है|

ग्वालियर के पास डबरा नामक क्षेत्र भावुक की कर्मभूमि हैं| उनकी कहानियों में इस क्षेत्र की झलकियाँ मिलती हैं| एकाधिक कहानियों में डबरा अपने नाम के साथ आया है| नकली देशप्रेम और सतही स्थानीयता के दौर में भावुक का मातृभूमि के प्रति ईमानदार लगाव कहानी ‘चायना बैंक’ में प्रेरणादायी प्रसंग है|

अपने कथाकार की सीमाओं की खुद ही पहचान करते हुए भावुक लेखनकार्य में निरंतर लगे रहें, हमारी यही कामना है|