पुनर्जन्म : कश्मीरी लोक-कथा

Punarjanm : Lok-Katha (Kashmir)

एक बार की बात है कि एक नौजवान अपना घर और देश छोड़ कर एक अकेली जगह जंगल में ध्यान करने चला गया। वहाँ उसने 12 साल लगाये जिनमें उसने न तो कुछ खाया और न ही कुछ पिया।

जब उसको लगा कि उसने अपना ध्यान पूरा कर लिया तो उसकी इच्छा हुई कि वह एक शहर जाये जो वहाँ से पाँच मील की दूरी पर था।

ऐसा सोच कर वह उस शहर की तरफ चल दिया। रास्ते में वह थकान की वजह से एक पेड़ के नीचे बैठ कर सुस्ताने लगा। जब वह वहाँ बैठ कर सुस्ता रहा था तो वहाँ एक कौआ आया और उसके ऊपर वाली शाख पर आ कर बैठ गया। वहाँ से उसने कुछ नींबू उसके सिर पर गिरा दिये।

यह देख कर वह नौजवान बहुत नाराज हुआ। नाराजी से उसने कौए की तरफ देखा तो वह कौआ मर गया। जब उसने ठीक से आराम कर लिया तो वह वहाँ से उठा और फिर से शहर की तरफ चल दिया।

शहर पहुँच कर वह एक आदमी के घर के आँगन में गया और घर की मालकिन से कुछ खाने की माँग की। एक स्त्री ने एक खिड़की से झाँक कर उसको अन्दर आने के लिये कहा और तब तक उसको इन्तजार करने के लिये कहा जब तक उसके पति घर आते हैं तभी वह उसको खाना दे पायेगी।

वह नौजवान उसका यह जवाब सुन कर बहुत नाराज हुआ। वह उसको उसके इस जवाब पर शाप देने वाला था कि तभी वह स्त्री बोल पड़ी — “ओ नौजवान, मैं कोई कौआ नहीं हूँ जो तुम्हारी गुस्से से भरी नजर पड़ते ही मर जाऊँगी। अच्छा हो अगर तुम अन्दर आ जाओ और मेरे पति के आने तक इन्तजार करो।”

उस आदमी ने वैसा ही किया। वह अन्दर चला गया और उसके पति का इन्तजार करता हुआ वहाँ बैठ गया पर वह यह सोचता रहा कि उस स्त्री को कौए की घटना का पता कैसे चला। कुछ ही देर में घर का मालिक आ गया तो वह स्त्री उसके पैर धोने के लिये गरम पानी ले आयी। गरम पानी से उसने अपने पति के पैर धोये फिर उनको खाना खिलाया।

उसके बाद उसने मेहमान को खाना दिया जब उसने पेट भर कर खाना खा लिया तब उसने अपना खाना खाया। उसके बाद उसने अपने पति का बिस्तर लगाया। फिर जब वह अपने बिस्तर पर लेट रहा था तब उसने उसके पैर धोये।

सचमुच में वह एक आदर्श पत्नी थी। ऐसा उस साधु को लगा जो अब तक यह सब देख रहा था पर बोला कुछ नहीं था।

जब वह अपने पति के पैर धो रही थी तो उसने अपने पति से कहा — “मुझे कोई कहानी सुनाओ।” आदमी राजी हो गया और उसने एक कहानी सुनानी शुरू की —

“बहुत पुराने समय की बात है कि एक समय में एक ब्राह्मण रहता था। वह बहुत साल तक मरे हुओं की बाद की दशा जानने की इच्छा में प्रार्थना करता रहा।

आखिर देवता उसकी प्रार्थना से खुश हुए और एक दिन जब वह सुबह का अपना नहाना धोना कर रहा था कि उसकी आत्मा उसका शरीर छोड़ कर एक बच्चे में चली गयी जो एक चमार का बच्चा था।

बच्चा बड़ा होता गया। उसने अपने पिता का काम धन्धा सीख लिया। फिर उसकी शादी हो गयी और उसके कई बच्चे हो गये। तभी अचानक उसको अपनी ऊँची जाति की याद आयी तो वह सब कुछ छोड़ कर किसी दूसरे देश चला गया।

जैसे ही वह वहाँ पहुँचा तो उस देश का राजा मर गया। वहाँ उस राजा का कोई और वारिस नहीं था जिसको वे लोग राजा की गद्दी पर बिठा सकते तो जैसा कि वहाँ का रिवाज था कि ऐसी दशा में वारिस का चुनाव करने के लिये वज़ीर लोग एक हाथी और एक बाज़ पक्षी को बाहर भेज देते थे।

जिस किसी को भी हाथी और बाज़ राजा बना देते वहाँ की जनता भी उसी को अपना राजा स्वीकार कर लेती। इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं था। यह बड़े आश्चर्य की बात थी कि हाथी और बाज़ ने इस आदमी को अपना नया राजा चुन लिया। हाथी ने उसके सामने सिर झुकाया और बाज़ उसके दाँये कन्धे पर बैठ गया और इस तरह से उसको राजा घोषित कर दिया गया।

कुछ साल में उसकी पत्नी को उसका पता चला कि वह कहाँ है सो वह उससे मिलने गयी। उस समय लोगों को यह पता चला कि वह तो एक चमार है और उसकी पत्नी भी एक नीची जाति की है। यह जान कर लोग चिन्ता में पड़ गये। उनमें से कुछ तो वहाँ से भाग गये कुछ भारी तप करने चले गये कुछ लोग जल कर मर गये कि कहीं ऐसा न हो कि उन्हें अपने धर्म की पूजा न करने दी जाये। जब राजा ने यह सुना कि उसके राज्य में यह सब हो रहा है तो उसने भी अपने आपको जला लिया।

इसके बाद उसकी आत्मा ब्राह्मण के उसी शरीर में पहुँच गयी जो नदी के किनारे पड़ा हुआ था। आत्मा के अन्दर पहुँचते ही वह शरीर उठ खड़ा हुआ और अपने घर चला गया।

पत्नी ने उसको आता देख कर उससे पूछा — “अरे आज आप अपनी सुबह की पूजा बड़ी जल्दी कर आये।” पर ब्राह्मण ने उसे इस बात का कोई जवाब नहीं दिया। उसके चेहरे पर बस आश्चर्य की एक झलक थी।

उसने सोचा कि क्या यह उसका पुनर्जन्म था? क्या उसने वह सब कुछ सचमुच देखा था और या फिर वह केवल उसका एक सपना ही था?

इस घटना के करीब एक हफ्ते बाद एक आदमी इस ब्राह्मण के आँगन में आया और बोला कि वह बहुत भूखा है उसको कुछ खाना दे दिया जाये क्योंकि वह पाँच दिन से भूखा है। इतने दिन से उसने कुछ भी नहीं खाया है क्योंकि वह अपने देश से निकल कर भागा फिर रहा है क्योंकि एक चमार उसके राज्य का राजा बना दिया गया था।

उसने आगे बताया कि वहाँ के सारे लोग इधर उधर भाग रहे हैं या फिर इस बुराई के परिणामों से बचने के लिये अपने आपको जला रहे हैं।

ब्राह्मण को उस पर दया आ गयी उसने उसको कुछ खाना दे दिया पर कहा कुछ नहीं।

वह सोचता रहा “मैं तो बहुत दिनों से चमार ही रहा हूँ। मैंने कई साल तक राजा बन कर राज भी किया है। और यह आदमी मेरे विचारों की ही पुष्टि कर रहा है तो भी मेरी पत्नी यह कहती है कि मैं किसी असाधारण समय के लिये घर से गायब नहीं रहा हूँ। और मैं उसकी बात पर विश्वास करता हूँ क्योंकि वह भी और ज़्यादा बूढ़ी नहीं दिखायी देती है और न यह जगह ही कुछ भी बदली हुई दिखायी देती है।”

वह आदमी अपनी पत्नी से बोला — “यहीं मेरी कहानी खत्म होती है जिसका मतलब यह है कि किसी आदमी के विचारों शब्दों और कर्मों के अनुसार ही उसकी आत्मा कई स्तरों से गुजरती है। यहाँ के बाद एक दिन एक युग के बराबर होता है।”

कहानी खत्म हो जाने के बाद पत्नी सोने जाने के इरादे से उस अजनबी की तरफ घूमी और उससे पूछा कि उसको किसी और चीज़ की जरूरत तो नहीं थी।

नौजवान बोला — “केवल खुशी की।”

स्त्री बोली — “तो जाओ और उसे घर में जा कर ढूँढो। अपने माता पिता के पास वापस जाओ जो तुम्हारी वजह से रोते रोते अन्धे हो गये हैं। तुम जा कर उनकी आँखों पर अपने हाथ रखो और उनसे कहो कि “आपका बेटा घर वापस आ गया है।” तब तुम खुश होगे।

खुशी हमेशा कर्तव्य के रास्ते पर ही मिलती है। उन्हीं की आज्ञा पालन में मिलती है जिनको भगवान ने हमारे ऊपर रखा है। यह एक पत्नी का कर्तव्य है कि वह अपने पति का कहना माने और उसकी खुशी चाहे।

यह बच्चे का कर्तव्य है कि वह अपने माता पिता का कहना माने और उनकी खुशी के मुताबिक चले। यह जनता का कर्तव्य है कि वह अपने राजा के अनुकूल रहे। और यह हम सबका कर्तव्य है कि हम भगवान को खुश रखें।

सो अब तुम घर जाओ और अपने माता पिता की सेवा करके खुश रहो।”

(सुषमा गुप्ता)

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