पारूल प्रसंग (कहानी) : बनफूल

Parul Prasang (Bangla Story in Hindi) : Banaphool

‘‘वह क्या तुम्हारी तरह कमा कर खाएगी?’’

‘‘कमाकर न खाए- मतलब, मछली-दूध चोरी कर के खाना-’’

‘‘अपने हिस्से की मछली-दूध मैं उसे खिलाऊँगी।’’

‘‘सो तो तुम खिलाती ही हो- इसके अलावे जो वह चोरी करती है। इस तरह रोज-रोज-’’

‘‘बढ़ा-चढ़ा कर बोलना तो तुम्हारी आदत है। वह रोज चोरी करके खाती है?’’

‘‘जो भी हो, मैं बिल्ली को मछली-दूध नही खिला सकता। पैसे मेरे पास कोई फालतू नहीं हैं।’’

इतना कहकर क्रुद्ध विनोद ने पास खड़ी बिल्ली मेनी पर चप्पल खींचकर मारी।

एक छोटी उछाल से वार बचाकर मेनी बाहर चली गयी। इसी के साथ ही पत्नी पारूललता भी आँखों को आँचल से ढाँपते हुए उठ खडी हुयी। विनोद कुछ देर गुम-सुम बैठा रहा। आखिर कब तक? अन्त में वह भी उठा। आकर देखा, पश्चिम ओर के बरामदे पर चटाई बिछाकर अभिमान मे पारूललता ने भूमि-शैया ग्रहण कर रखा है।

बात को हल्का बनाने के ख्याल से विनोद ने हँसकर कहा, ‘‘क्या बचपना कर रही हो? मैं क्या सचमुच तुम्हारी बिल्ली को भगाये दे रहा हूँ?’’

पारूल ने कोई उत्तर नहीं दिया।

विनोद ने फिर कहा, ‘‘चलो-चलो, तुम्हारी बिल्ली को मछली-दूध ही खिलाया जाय।’’

पारूल ने कहा, ‘‘हाँ, वह तुम्हारी मछली-दूध खाने के लिए बैठी हुई है न? भगाना ही था, तो इस अँधेरी रात में भगाना जरूरी था?’’

‘‘अच्छा, मैं उसे ढूँढ़ कर लाता हूँ- आखिर जाएगी कहाँ?’’

विनोद लालटेन लेकर बाहर आया। इघर-उघर, गली-कूचों में, बाग में, चारों तरफ उसने ढूँढ़ा, लेकिन मेनी नहीं मिली। निराश हो, लौट के आकर उसने देखा, पारूल उसी तरह सोयी हुई थी।

‘‘कहाँ, वह तो नजर नहीं आई बाहर। वह खुद ही लौट आएगी। चलो, खाना खाते हैं।’’

‘‘चलो तुम्हें खाना दे देती हूँ, मुझे भूख नहीं है आज।’’

‘‘हंगर-स्ट्राईक का इरादा है क्या?’’

पारूल ने रसोईघर में आकर जो देखा, वह संक्षेप में इस तरह था- देगची में एक बूँद भी दूध नहीं था, भुनी हुई मछली गायब थी और दाल की कटोरी औंधी पड़ी थी।

यह विचित्र मामला देखकर पारूल चकित रह गयी।

इस सम्बन्ध में और बात करना खतरे से खाली नहीं- सोचकर विनोद जो सामने आया, वही खाने बैठ गया।

पारूललता ने भी कुछ खाया।

दोनों जब सोने के लिए गए, तो देखा, मेनी कुण्डली मारकर आराम से उनके बिस्तर पर सो रही थी।

(अनुवाद : जयदीप शेखर)

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