परिवर्तन : सिक्किम की लोक-कथा

Parivartan : Lok-Katha (Sikkim)

पहाड़ के पास एक घर था, वहाँ तक जाने के लिए कोई ढंग का रास्ता नहीं था। उस समय बिजली भी पहाड़ पर नहीं आई थी। उसी पहाड़ के किनारे अक्ल का घर था। उस घर में तीन सदस्य थे, पर अन्य प्राणियों की संख्या बहुत थी। जिनमें कुत्ता, बिल्ली, बकरियाँ, गाय, बैल आदि बड़ी संख्या में थे। अक्ल सिंह की पत्नी का नाम था सूर्यमुखी और उनकी इकलौती संतान का नाम चंद्रमुखी। अक्ल सिंह जैसे-तैसे अपना जीवन गुजार रहा था। उसको एक बात की चिंता लगातार सता रही थी, उसकी बेटी अब जवान हो रही थी और उसका ब्याह करना था, जबकि उससे कोई लड़का ब्याह करने को तैयार नहीं हो रहा था। कई लड़के उसके घर लड़की देखने आ चुके थे। उनका स्वागत-सत्कार होता। भव्य भोजन की व्यवस्था की जाती, पर अंत में लड़केवाले इनकार करके चले जाते। चंद्रमुखी के आलसी प्रवृत्ति से अब उनका मन खिन्न होने लगा था।

एक दिन उस पहाड़ के एक गाँव से अक्ल सिंह के घर एक युवक का आगमन हुआ, औरों की भाँति उसकी भी खूब खातिरदारी हुई। मान-सम्मान हुआ। स्वादिष्ट भोजन दिया गया। अंत में रात्रि विश्राम के लिए बिछौना बिछाया गया। अक्ल सिंह जाकर मेहमान से बातचीत करने लगा और वहीं वह बताने लगा, "बेटा, देखने को इस घर में तीन सदस्य हैं, परंतु सारा काम मेरे ही कंधों पर है। बहुत मुश्किल से घर सँभाल पा रहा हूँ।"

उस युवक ने अक्ल सिंह से पूछा, “आपकी पत्नी और आपकी बेटी आपके काम में सहयोग नहीं करते?"

"वे सहयोग करते हैं, पर माता को कुछ काम करवाने से पहले दस बार कहना पड़ता है, तब जाकर एक काम करने को वह राजी होती है। वहीं बेटी की स्थिति इससे भी भयंकर है। उससे काम निकलवाना हो तो उसे बीस बार कहने के बाद ही मानती है। एक काम के लिए बीस बार कहने से अच्छा है, मैं स्वयं काम कर लेता हूँ।"

उस युवक ने पूछा, “ऐसा कब से चल रहा है ?"

"पहले से ऐसे ही चल रहा था। हम बूढ़े-बूढ़ी का तो चल गया, पर बेटी के साथ ऐसा कब तक चलेगा?" अक्ल सिंह ने जवाब दिया, "कोई उससे ब्याह करने को तैयार नहीं हो रहा है। कोई आता भी है, देखकर चला जाता है। जवाब आता है, उन्हें उससे ब्याह नहीं करना है। यही बात सदैव मेरी चिंता का कारण होती है। बेटी बड़ी हो चुकी है, आज या कल तो मुझे उसका ब्याह करना ही है। उसे ऐसे कब तक घर बिठाए रख सकता हूँ? मुझे समझ नहीं आता क्या करूँ?"

उस युवक को अक्ल सिंह की चिंता वाजिब लगी। उसने कहा, "देखिए, मैं भला गाँव का लड़का, मेरे माता-पिता भी नहीं हैं। आज तक मेरा ब्याह भी नहीं हुआ है। खेत-खलिहान करके जीवन चलता है। माँगकर खाने की स्थिति नहीं आती है। मैं आपकी बेटी से ब्याह करने को तैयार हूँ, पर मेरी एक शर्त है।"

"बाबू, ब्याह करने को तैयार हो तो तुम्हारी हर शर्त मुझे मंजूर है।" अक्ल सिंह ने कहा।

"अगर ऐसा है तो मुझे कल ही अपनी बेटी दीजिए, उसके साथ मुझे बिल्ली, कुत्ते और बकरे का बच्चा दीजिएगा। मेरी यही शर्त है कि आपकी बेटी के संग मुझे जानवर के बच्चे भी चाहिए।" प्रसन्न होकर अक्ल सिंह ने रात में ही सारी तैयारी कर सबेरे दोनों का ब्याह कर उन्हें विदा कर दिया।

साँझ होने से पूर्व युवक दुल्हन को लिये अपने घर पहुँच गया। घर पहुँचकर युवक ने गाय-बैलों के लिए घास की व्यवस्था की। भोजन तैयार किया। सबके लिए खाना परोसा, यहाँ तक कि कुत्ते, बिल्ली और बकरे को भी। अपनी पत्नी को भोजन दिया, उसके बाद बरतन माँजकर रात को सो गया। सवेरे उठकर चाय बनाई। पत्नी को दी, खुद चाय पीकर अपने दैनिक कार्य को निपटाया, उसके बाद भोजन तैयार कर सबको परोसा। बरतन-घर साफ कर खेतों की ओर जाने को तैयार हुआ। जाते-जाते उसने कुत्ते के पिल्ले से कहा, "मैं खेतों की ओर जा रहा हूँ। तुम मेरे पीछे से घर का कामकाज देखना। भोजन तैयार करना। बैलों और गायों के लिए घास काटना। घर का सारा काम अच्छे से करना।" यह कहकर वह खेत पर चला गया।

शाम को थका-हारा जब घर लौटा, तो उसने पिल्ले से पानी की माँग की। कोई उत्तर नहीं आया। खाने के बारे में पूछा तो कुछ तैयार नहीं था। उसने गुस्से में आकर पिल्ले को बुलाया और छुरी से उसका गला रेत दिया और उसके बाद सारा कामकाज निपटाया। अंत में खाना बनाकर सबको परोसा। साफ-सफाई की और सो गया। अगले रोज भी उठकर उसने घर का सारा काम किया और खेत जाने से पहले फिर बिल्ली से घर का कामकाज सँभालने को कहकर चला गया। आज भी कोई काम नहीं हुआ, शाम आकर गुस्से में बिल्ली के बच्चे को भी मार गिराया। फिर स्वयं ही घर का सारा काम करने लगा। उसके अगले रोज बकरे की बारी आई, उसे भी घर के कार्यों के संबंध में कई हिदायत देकर वह खेतखलिहान चला गया।

यह सारा दृश्य उसकी पत्नी चुपचाप देखती रही पर कहा कुछ भी नहीं। आज भी कोई कार्य न होते देखकर उसने एक ही झटके में बकरे का गला शरीर से अलग कर दिया। अगली सुबह सारा काम निपटाकर घर से निकलते हुए उसने पत्नी से कहा, "देखो, मैं खेतों की ओर जा रहा हूँ। घर का कामकाज देख लेना। गायों को चारा दे देना। उनके लिए घास काटकर तैयार रखना। घर की साफसफाई कर लेना और सबके लिए भोजन तैयार करना। तुमने देखा, अन्यों ने अपना काम नहीं किया तो उनका क्या हश्र हुआ, इसलिए तुम समय पर अपना काम निपटा लेना।" शाम को जब घर लौटा और पानी के लिए पुकारा तो पत्नी डरते हुए तुरंत पानी ले आई। युवक ने घर और बाहर झाँककर देखा तो सारा काम ठीक था। दोनों ने भोजन किया और सो गए। अब धीरे-धीरे युवक के बिना कहे ही उसकी पत्नी को काम करने की आदत पड़ती गई। पति बाहर का कामकाज सँभालता और पत्नी अंदर का। सबकुछ ठीक चल रहा था।

शादी के बाद बेटी की कोई खोज-खबर नहीं मिली, यह सोचकर एक रोज अक्ल सिंह दामाद के घर आए। अपने ससुर को देखते ही उसने पत्नी से कहा, "पिताजी के लिए जमीन पर दरी बिछा दो। उनके लिए चाय और खाने की कोई सामग्री ले आओ।" बेटी सारा काम कर रही थी। अक्ल सिंह अपनी बेटी में आए परिवर्तन को देखकर बड़े आश्चर्य में था। उन्होंने दामाद से कई बार जानना चाहा और पूछा, "अगर इतनी जल्दी और आसानी से तुमने अपनी पत्नी को बदल लिया तो मुझे भी वह उपाय बताओ, ताकि तुम्हारी सासू माँ भी एक ही वचन में सारा काम कर जाए तो कितना अच्छा होगा!" दामाद ने ससुरजी से कहा, "कल सवेरे आपको वह नुस्खा बताया जाएगा, जिसके बलबूते पर मेरी पत्नी में परिवर्तन आया। अब रात काफी हो चुकी है, आप निश्चिंत होकर सो जाइए।" इतना कहकर दोनों सो गए।

सबेरे युवक ने मिट्टी के फूटे बरतन को इकट्ठा कर उसको तोड़कर धूल बनाया, वहीं दूसरी ओर कुछ गीली मिट्टी ले आया। तत्पश्चात् उसने अपने ससुर को बुलाया और कहा, “आप उस फूटे हुए मटके की मिट्टी से घड़ा या कुछ भी बनाइए, मैं इस गीली मिट्टी से कुछ बनाता हूँ।" युवक ने उस गीली मिट्टी से कई आकार के बरतन बना डाले, जबकि ससुरजी उस पकी मिट्टी के चूरे से कोशिश करके भी कुछ बना नहीं पाए। अंत में अपनी असफलता स्वीकार करने पर युवक ने कहा, “एक बार जो मिट्टी पक चुकी है, उसे बदलना या उससे अन्य निर्माण कार्य होना आसान नहीं है, जबकि किसी भी गीली और कच्ची अवस्था में हम उसे बदलकर आसानी से कोई भी आकार दे सकते हैं।" ऐसा कहकर युवक ने अपने ससुर से कहा, "अब सासू माँ के जीवन में परिवर्तन की उम्मीद करना बेकार है, क्योंकि अब उसमें इतनी नरमी होती ही नहीं कि कोई परिवर्तन लाया जा सके।"

(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)

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