Naya Ganit : Asghar Wajahat

नया गणित : असग़र वजाहत

चुनाव से चंद महीने पहले मंत्री महोदय अपने चुनाव क्षेत्र में इस तरह आये जैसे मस्त और घबराया भैंसा लगातार खेदे जाने के बाद बाड़े में घुसता है, यानी बाड़े में तूफान आ गया, छोटे-मोटे जानवर तो इधर-उधर दुबक गये कि मस्त और पागल भैसें की नजर उन पर न पड़ जाये, कुछ जानवर किनारे हो गये कि करने दो साले को जो करता है।

मंत्रीजी पूरे चार साल सात महीने सोते रहे थे, फिर उनकी नींद हाईकमान की डांट से खुली तो आंखें मलते-मलते चुनाव क्षेत्र में पहुंच गये थे। अकेले नहीं आते थे, क्योंकि वे जानते थे अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता। उनकी अमरीकी पत्नी साथ थी, दोनों बच्चे साथ थे, भोलू रसोइया सहित तीन नौकर थे। दो कुत्ते थे और मंत्रीजी के अपने कार्यालय के लोग तो थे ही थे। इतनी तैयारियों से आने का मतलब ही था वे चुनाव सिर्फ जीतने आये हैं।

छोटे-से शहर के छोटे-से वीरान स्टेशन पर जब वातानुकूलित प्रथम श्रेणी डिब्बे में मंत्री महोदय निकले तो बाहर भीड़ जमा थी। जिले के कुल सरकार अधिकारी थे, कुल जमा छः फैक्टरियों के मालिक और उनका अम्ला था। पुलिस थी, और कुछ साधारण राह चलते थे। बाकी सब तो मंत्री की लल्लो-चप्पो में लग गये थे लेकिन जनता मंत्री महोदय की पत्नी तथा कुत्तों में रुचि ले रही थी। मंत्रीजी ने जनता की नजरों को ताड़ लिया, इसलिए सीधे सिंचाई विभाग के विश्राम-गृह की ओर प्रस्थान कर गये। सिंचाई विभाग का विश्राम-गृह पहले से ही तैयार था, वहां रहने वाले चौकन्ना थे, मंत्रीजी के स्टाफ ने उन्हें और चौकन्ना कर दिया। केयर टेकर को ड्यूटी कुत्तों पर लगा दी गयी, चौकीदारों को साग-सब्जी खरीदने पर लगाया गया।

नहा-धोकर चाय-वाय पीने के बाद मंत्री महोदय उस हाल में आ गये जहां जिलाधिकारी बैठे दो घंटे से उनकी प्रतीक्षा में हनुमान चालीसा पढ़ रहे थे। मंत्री जी आते ही बोले, ‘‘हमने कहा था जिले के अधिकारियों की सूची हम देखना चााहते हैं, वो बना लाये हो’

जिलाधिकारी ने ‘यस सर’ कहने से पहले ही सूची उनके हाथ में पकड़ा दी। उन्होंने सूची पर निगाह डालते हुए हाथ जिलाधिकारी की तरफ बढ़ाया। जिलाधिकारी समझ गये कि वे पेन मांग रहे हैं, जिलाधिकारी ने फौरन पेन उनके हाथ में दे दिया। मंत्री महोदय ने हर नाम को पढ़ना शुरू किया, और फिर किसी नाम के आगे उन्होंने टी. लिखा, किसी ने आगे वी. किसी के आगे पी. किसी के आगे एम. और किसी के आगे के. और किसी के आगे एस.टी. आदि लिखते चले गये। जिलाधिकारी शुरू में तो यह रहस्य समझ नहीं पाये, पर जब स्वयं उनके नाम के आगे मंत्री महोदय ने टी, लिखा तो बात उनकी समझ में आ गयी। कुछ क्षण तक गिनती करने के बाद मंत्री महोदय बोले, ‘‘क्या ये चीफ सेक्रेटरी चाहते हैं, हम चुनाव हार जायें’
‘‘जी सर’
‘‘जिले के सोलह अधिकारियों में ‘हमारे’ कितने आदमी है’
‘‘जी सर’
‘‘क्या जी सर, जी सर कर रहे हो...हमें चुनाव के लिए यहां अपनी विरादरी के अधिकारी चाहिए होंगे...समझे...’
‘‘जी सर...’’
‘‘यहां हाल ये है कि जिले के सोलह अधिकारियों में केवल तीन ही ब्राह्मण हैं...चीफ सेक्रेटरी को फोन मिलाओ’’

दूसरी जाति-बिरादरी के अधिकारी धक्के मारकर बाहर कर दिये और मंत्री महोदय ने ‘अपने’ लोगों को बुलवा लिया। जिलाधिकारी भी चलता किये गये और एस.पी. भी बदल गये। यह काम इतनी तेजी से हुआ कि पूरे जिले में कभी इतनी तेजी से कुछ न हुआ था।

शतरंज की ये चाल चलने के बाद मंत्री महोदय ने बड़े स्तर पर जनसम्पर्क बनाने की योजना बनायी। उन्होंने हर अफसर को यह मौखिक आदेश दिया कि उनके दौरों में हर अफसर अपनी गाड़ी लेकर उनके साथ रहेगा। इसके अलावा उन्होंने छः फैक्टरियों के मालिकों से कहा कि हर फैक्टरी से कम-से-कम दो-दो गाड़ियां हर दौरे में उनके साथ जायेंगी पुलिस ने कहा किकम-से-कम चार जीपें उनके साथ चला करेंगी मतलब यह कि अब छोटे-से शहर की पतली-पतली सड़कों से मंत्री महोदय की सवारी गुजरती थी तो तीस-चालीस मोटरों और जीपों की आवाज से ही लोग सहम जाते थे। जिस गांव में इतनी गाड़ियां और लोग पहुंच जाते वहां मंत्री महोदय का ऐसा आतंक जमता कि मजा आ जाता, और फिर मंत्री महोदय खुलकर मदद करते। जिन कामों को पिछले साढ़े चार सालों से इसी दिन के लिए रोका गया था, वो तत्काल हो जाते और मंत्री महोदय की जय-जयकार होने लगती।

सबसे अधिक सम्मानित और उपयोगी नागरिकों से जनसम्पर्क स्थापित करने के लिए उन्होंने पुलिस का सहारा लिया। यह पुलिस का अधिकार क्षेत्र था इस कारण यह कार्य किसी और विभाग को नहीं सौपा जा सकता था। पुलिस रात में बारह बजे के बाद विश्राम-गृह के पिछले गेट से अति विशिष्ट नागरिकों को अन्दर लाती थी, मंत्रीजी भेंट होती थी, शिकवे-गिले किये जाते थे, आश्वासन लिये जाते थे, गले-मिललव्वल होती और रात ही रात अति विशिष्ट नागरिक बीहड़ों, जिलों या दीगर अड्डों तक पहुंच जाते थे।

शहर के सामान्य नागरिकों को उन तक लाने के लिए भी उनके एजेंट छुटे हुए थे, कुछ औरतें छुटी हुई थीं, जो मंत्री महोदय को विदेशी पत्नी ‘मारग्रेट भारती’ का प्रचार कर रही थीं। कुछ बच्चे छुटे हुए थे जो मंत्रीजी के बच्चों, अखिल भारती और अनूषा भारती का प्रचार कर रहे थे। कुछ ड्राइवरऔर रसोइये और नौकर छुटे हुए थे जो मंत्रीजी के ड्राइवरों, रसाइयों और नौकरों का प्रचार कर रहे थे।

वैसे अब शहर के अधिकारियों में सब ही मंत्री जी की जाति के अफसर थे लेकिन एक-दो किन्हीं मजबूरियों की वजह से रुके रह गये थे। उनमें एक वन अधिकारी गोपालसिंह भी थे। गोपालसिंह या उनके जैसे एक-दो अन्य अधिकारियों को मंत्री महोदय ने कुछ उदाहरण पेश करने के लिए रख छोड़ा था। ‘इन’ एक-दो अधिकारियों का अपमान करके मंत्री महोदय अन्य अधिकारियों तथा नागरिकों में अपना आतंक जमाये रखते थे। उदाहरण के लिए एक दिन लगभग बीस-पच्चीस सम्मानित नागरिकों तथा आठ दस अफसरों के सामने वन अधिकारी गोपालसिंह और मंत्री के बीच ऐसे संवाद हुए-

मंत्रीः तुम बरेठा वाली मीटिंग में क्यों नहीं आये
गोपालसिंह : सर, मैं पहुंचा था, पर तब तक आपकी मीटिंग खत्म होचुकी थी।
मंत्रीः क्या तुम वहां दरी उठाने पहुंचे थे
गोपालसिंह : जी, मेरी जीप खराब हो गयी थी।
मंत्रीः अब कभी मेरी मीटिंग में आ रहे हो और जीप खराब हो जाये तो जीप सिर पर उठाकर दौड़ते हुए समय से मीटिंग में पहुंचना।
गोपालसिंह : यस सर।
मंत्रीः बाबरपुर में प्लान्टेशन तो हुआ नहीं, तुमने झूठी रिपोर्ट दी है।
गोपालसिंह : नही सर हुआ है।
मंत्रीः तुम्हें वन अधिकारी किसने बना दिया है। तुम तो क्लर्क बनने लायक भी नहीं...तुम्हारे ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप हैं।
गोपालसिंह : सर!
मंत्रीः क्यों मेरा सिर खाये जा रहे हो...जिले में नहीं रहना चाहते क्या
गोपालसिंह : सर!
मंत्रीः जाओ...मैंने किसी भी मीटिंग में तुम्हें ने देखा तो अरुणाचल प्रदेश में नजर आओगे...समझे।
गोपालसिंह : यह सर।
मंत्रीः गेट आउट।

मंत्री महोदय को विदेशी पत्नी ‘मारग्रेट भारती’ ने शहर की सम्मानित महिलाओं को चाय पर बुलाया। निमंत्रण-पत्र दिल्ली से छपकर गये थे। एक ओर अंग्रेजी में, दूसरी ओर हिंदी में, नीचे ‘मारग्रेट भारती’ का नाम लिखा था। निमन्त्रण-पत्र देखकर छोटे शहर के अफसरों की बीवियों की आंखें फैल गयीं। लड़कियों के स्कूलों-कालिजों की प्राध्यापिकाओं के मुंह खुले-के-खुले रह गये। व्यापारियों और बनियों की महिलाओं पर अपने सम्मानित होने का दौरा पड़ गये। सभा-सोसाइटी तथा क्लब आदि में जानेवाली महिलाओं की बोलती बंद हो गयी। शहर की दो-चार लेडी डॉक्टरों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी।

ये सब चल ही रहा था कि मंत्री महोदय के मुंह लगे रसोइये भोलू ने छोटे शहर को चमत्कृत कर दिया। यानी अच्छे-अच्छों की हवा निकाल दी। हुआ यह कि शहर के छोटे-मोटे नेताओं को मंत्री महोदय से मिलने का जुगाड़ भिड़ाने में रसोइये भोलू की सेवा-टहल करनी पड़ती थी। यह तो खैर एक साधारण बात थी। लेकिन एक दिन एक औसत दर्जे के छुटभइया नेता रसोई में भोलू से बातें कर रहे थे। बात करते-करते कहने लगे, ‘‘भोलू भाई, मंत्रीजी इस चुनाव में जीतने के बाद आपको दिल्ली के किसी फाइव स्टार होटल में ‘हैड कुक’ तो बना ही देंगे।’’ राटी डालते-डालते भोलू रुक गया, उसने आंखें तरेरकर छुटभइया नेता की तरफ देखा और तड़पकर बोला, ‘‘आप क्या समझते हैं हम रसोइया हैं’

इस सवाल का छुटभइया नेता क्या जवाब देते, चुप-से रहे। उत्तर में भोलू ने कहा, ‘‘सात साल से एम.एल.ए. का टिकट पाने के लिए रोटियां डाल रहा हूं...अबकी पक्का है।’’

इतना सुनना था कि छुटभइया नेता बेहोश हो गये, उन्हें लाद-लूदकर घर ले जाया गया। जब वे होश में आये तो उन्होंने शहर के दो-चार छोटे और मझोले नेताओं के सामने पूरा किस्सा बयान किया। सबने दांतों तले हाथ दबा लिये। एक मझोले नेता ने कहा, ‘‘भइया हमारी गणित तो फेल हो गयी।’’

चतुर नेता बोले, ‘‘भइया, अब की राजनीति में दो और दो चार नहीं होते...बाईस होते हैं।’’
तीसरे नेता ने कहा,‘‘यही ‘मार्डन मैथेमेटिक्स’ कहलाती है। हम लोग इससे पार न पा सकेंगे।’’
उन सबने ठंडी सांसे भरीं। उधर भोलू के फुल्कों से गरम-गरम भाप निकल रही थी।