बिल्ला और मुर्ग़ा : यूक्रेन लोक-कथा

Billa Aur Murga : Lok-Katha (Ukraine)

किसी ज़माने में बिल्ला और मुर्ग़ा एक ही घर में साथ-साथ रहते थे । वे दोनों गहरे दोस्त थे। एक दूसरे को बहुत चाहते थे और इस तरह सुख-चैन की ज़िन्दगी बिता रहे थे । एक दिन बिल्ला लकड़ी लाने के लिए जंगल जाने लगा । घर से जाते समय उसने मुर्ग़े से कहा :

"देखो, भाई, अलावघर के ऊपर बैठना, रोटी खाना और घर में किसी को आने न देना । कोई भी दरवाजा खटखटाए, तुम्हें बुलाए, लेकिन तुम बाहर मत निकलना | मुझे जंगल जाकर अलावघर के लिए लकड़ी लानी है ।"

"ठीक है," मुर्ग़े ने कहा । जैसे ही बिल्ला घर से बाहर निकला, मुर्ग़े ने दरवाजा बन्द कर दिया ।

इस बीच एक लोमड़ी वहां आ पहुंची। मुर्ग़े-मुर्ग़ियां उसे बेहद पसंद हैं ! वह मुर्ग़े को पुकारने लगी :

"मुर्ग़े मुर्ग़े बाहर आ
मुझसे कभी न तू घबरा !
दाना-पानी लाई साथ,
तुझे चुगाने आई आज !
सुन, जल्दी दरवाजा खोल,
नहीं तो खिड़की दूंगी तोड़ !"

मुर्ग़े ने लोमड़ी को यह उत्तर दिया :

"बिल्ला भाई दूर गया है, कुकडूं-कूं,
नहीं खोलता मैं दरवाजा, कुकडूं-कूं ।"

यह सुनते ही लोमड़ी ने घर की खिड़की तोड़ डाली, मुर्ग़े की गर्दन दबोची और अपने घर की राह चल दी। मुर्ग़ा अपने दोस्त बिल्ले को आवाजें देने लगा, दुखी होकर यह गाने लगा :

"बिल्ले भाई, मुझे बचाओ,
लोमड़ी के पंजे से छुड़ाओ !
लिए जा रही जंगल पार,
हरी घाटियों के उस पार
ऊंचे-ऊंचे पर्वत पार,
चंचल लहरों के उस पार,
बिल्ले भाई, आओ, आओ,
आकर मेरी जान बचाओ !"

बिल्ले ने मित्र की आवाज सुनी, भागता चला आया, लोमड़ी के पंजे से उसे छुड़ा लिया। घर लाकर उसे फिर से आदेश दिया :

"देखो, अगर लोमड़ी आए तो चुप रहना, जवाब मत देना । इस बार मैं दूर जा रहा हूं ।"

फिर बिल्ला वहां से चला गया ।

उधर लोमड़ी इसी ताक में बैठी थी कि कब बिल्ला घर से जाए और वह मौक़ा पाए । लोमड़ी भागती हुई खिड़की के पास आई और मीठे-मीठे लहजे में मुर्ग़े को फुसलाते हुए बोली :

"मुर्ग़े मुर्ग़े बाहर आ
मुझसे कभी न तू घबरा !
दाना-पानी लाई साथ,
तुझे चुगाने आई आज !
सुन, जल्दी दरवाजा खोल,
नहीं तो खिड़की दूंगी तोड़ !"

लेकिन मुर्ग़े को धैर्य कहां था कि वह चुप रहता ! उसने फिर वही जवाब दिया :

"बिल्ला भाई दूर गया है, कुकहूं-कूं,
नहीं खोलता मैं दरवाजा, कुकडूं-कूं !"

लोमड़ी ने आव देखा न ताव खिड़की से छलांग लगाकर घर के अन्दर जा पहुंची । वहां शोरबा और दलिया बना रखा था । उसे झटपट खा गई। फिर उसने मुर्ग़े की गर्दन पकड़ी और चल दी। मुर्ग़ा फिर दर्द भरी आवाज़ में अपने दोस्त बिल्ले को बुलाने लगा :

"बिल्ले भाई, मुझे बचाओ,
लोमड़ी के पंजे से छुड़ाओ !
लिए जा रही जंगल पार,
हरी घाटियों के उस पार
ऊंचे-ऊंचे पर्वत पार,
चंचल लहरों के उस पार,
बिल्ले भाई, आओ, आओ,
आकर मेरी जान बचाओ !"

उसने एक बार गाया – कोई असर न हुआ । दुबारा गाया - बिल्ला दोस्त भागता चला आया। उसने लोमड़ी के पंजे से अपने दोस्त को छुड़ाया। उसे घर तक सकुशल पहुंचाकर सख्ती से आदेश दिया :

"देखो, मुर्ग़े, अलावघर पर चुपचाप बैठे रहना, भूख लगे तो रोटी खाना और जैसे ही लोमड़ी आकर तुम्हें पुकारे, बस चुप्पी साधे बैठे रहना। बोलना नहीं । मुझे बहुत दूर जाना है, बहुत दूर, और तब तुम चिल्लाओ या न चिल्लाओ मुझ तक तुम्हारी आवाज न पहुंच पाएगी !"

इधर बिल्ला घर से चला और उधर लोमड़ी ने दरवाजे पर दस्तक दी। उसने फिर वही राग छेड़ दिया :

"मुर्ग़े मुर्ग़े बाहर आ
मुझसे कभी न तू घबरा !
दाना-पानी लाई साथ,
तुझे चुगाने आई आज !
सुन, जल्दी दरवाजा खोल,
नहीं तो खिड़की दूंगी तोड़ !"

मुर्ग़ा भला कहां चुप रहनेवाला था ! उसने भी जवाब दिया :

"बिल्ला भाई दूर गया है, कुकडूं-कूं,
नहीं खोलता मैं दरवाज्जा, कुकडूं-कूं !"

लोमड़ी ने फिर खिड़की से छलांग लगाई। शोरबा और दलिया खा-पी डाला । और फिर मुर्ग़े की गर्दन दबोचकर चल दी। मुर्ग़ा एक बार चिल्लाया, दो बार चिल्लाया, तीसरी बार भी चीखा - चिल्लाया... पर बिल्ला तो कहीं दूर ही निकल गया था और इस बार मुर्ग़े की पुकार उस तक न पहुंच पाई।

उधर लोमड़ी झटपट मुर्ग़े को उठाकर अपने घर पहुंच गई ।

बिल्ला जंगल से जब घर वापस आया तो मुर्ग़ा घर से गायब था । उसे बड़ा अफ़सोस हुआ। तुरन्त तरकीब सोचने लगा, देर तक सोचता रहा कि अचानक उसे रास्ता सूझा : उसने अपना बाजा संभाला, रंग-बिरंगे चित्रोंवाला थैला गले में लटकाया और लोमड़ी के घर की ओर चल दिया ।

लोमड़ी घर पर नहीं थी । वह शिकार की तलाश में कहीं गई थी। घर पर उसकी चार बेटियां और बेटा फ़िलिपोक ही थे ।

बिल्ला खिड़की के पास अपना बाजा बजाकर यह गीत गाने लगा :

"लोमड़ी रानी का नया-नया घर,
खेलें चार बेटियां सुंदर,
बेटा उसका फ़िलिपोक,
नहीं रहा कभी डरपोक !
आओ, प्यारे बच्चो, आओ,
तान छेड़ दी है, सुन जाओ !
सुन करके फिर मुझे बताओ,
अपने दादा से मिल जाओ !
वाह वाह तो करते जाओ ! "

लोमड़ी की बड़ी लड़की से रहा नहीं गया, उसने अपनी छोटी बहनों से कहा :

"तुम यहीं पर बैठी रहना और मैं जरा देखकर आती हूं कि इतना सुरीला गीत कौन गा रहा है। "

जैसे हो लोमड़ी की बड़ी लड़की दरवाजा खोलकर बाहर निकली, बिल्ले ने उसके सिर पर डंडा मारा और उसे अपने थैले में डाल लिया । और फिर वही गीत गाने लगा :

"लोमड़ी रानी का नया-नया घर,
खेलें जहां चार बेटियां सुंदर .... "

दूसरी लड़की से भी न रहा गया, वह भी घर से बाहर निकल आई और बिल्ले ने झट से उसके सिर पर डंडा मारा और उसे भी अपने थैले में डाल लिया । फिर वही गीत गाने लगा :

"लोमड़ी रानी का नया-नया घर,
खेलें जहां चार बेटियां सुंदर ..."

तीसरी बेटी बाहर निकली, उसे भी बिल्ले ने थैले में डाल लिया, फिर चौथी बाहर निकली तो उसे भी । अब लोमड़ी का बेटा फ़िलिपोक भी उसी तरह बाहर निकलकर आया । बिल्ले ने उसका भी वही हाल किया । अब लोमड़ी के पांचों के पांचों बच्चे रंग-बिरंगे चित्रोंवाले थैले में सहमे-सहमे बैठे थे ।

बिल्ले ने थैले का मुंह रस्सी से बांध दिया और लोमड़ी के घर में आ पहुंचा । देखा कि उसका मित्र मुर्ग़ा अन्तिम सांसें गिन रहा है। उसके पंख इधर-उधर छितरे पड़े हैं। एक टांग काट दी गई है। चूल्हे पर एक बर्तन में पानी गरमाया जा रहा है - मुर्ग़े को पकाया जाएगा ।

बिल्ले ने मुर्ग़े की दुम पकड़कर कहा :

"मुर्ग़े भाई, होश में आओ,
फड़को फड़को चाल दिखाओ !"

मुर्ग़ा झट से फड़क उठा, अपनी एक टांग पर खड़े होकर बांग देना चाहता था । पर वह बेचारा कुकडूं-कूं बोलता भी तो कैसे ? उसकी एक टांग ही नहीं थी । तब बिल्ले ने किसी तरह मुर्ग़े की टांग पहलेवाली जगह पर जोड़ दी, उसके कुछ पंख चिपका दिए बस जैसे-तैसे उसे ठीक कर दिया ।

तब उन दोनों ने मिलकर लोमड़ी के घर में जो कुछ खाने-पीने का सामान था उसे खा डाला और बर्तन - वर्तन तोड़ डाले। बिल्ले ने थैले में दुबके बैठे लोमड़ी के बच्चों को छोड़ दिया । और वे दोनों खुशी-खुशी घर चले आए।

बस तब से वे हंसी-खुशी जिन्दगी के दिन बिता रहे हैं। वैसे ही रोटियां खाते हैं, चारा चुगते हैं। मुर्ग़ा अब बिल्ले का कहना मानता है । मुसीबत ने उसे सबक़ सिखा दिया, अक्लमन्द बना दिया ।

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