मोती गज : विद्रोही : रुडयार्ड किपलिंग

Moti Guj : Vidrohi : Rudyard Kipling

एक बार की बात है, भारत में एक कॉफी बागान मालिक हुआ करता था, जो कॉफी की खेती के लिए जंगल की कुछ जमीन साफ करना चाहता था। जब उसने सारे पेड़ काट दिए और झाड़ियों को जला दिया, किंतु ह्ठ फिर भी बचे रह गए। डायनामाइट महँगा होता है और आग अपेक्षाकृत धीमी होती है। ऐसे में ठूँठों को हटाने का सहज माध्यम सभी जानवरों का राजा हाथी ही होता है। वह ठूँठ को या तो अपने दाँतों से उखाड़ देगा-अगर उसके दाँत हुए तो-या उसे रस्सियों से बाँधने पर खींचकर जमीन से बाहर निकाल देगा। इसलिए उस बागान मालिक ने एक-एक, दो-दो एवं तीन-तीन के हिसाब से हाथी मँगवाए और काम पर लगा दिया। उनमें सबसे अच्छे हाथी का महावत सबसे खराब था और उस श्रेष्ठ हाथी का नाम मोती गज था। वह अपने महावत की पूरी मिल्कियत था, जो देसी राज में कभी संभव न होता; क्योंकि मोती गज जैसे जीव के लिए राजा लोग लालायित होते और उसके नाम का मतलब थामुक्ता हाथी। देश में चूँकि अंग्रेजी हुकूमत थी, इसलिए महावत दीसा अपनी इस संपत्ति का उपयोग बिना किसी दखल के कर सकता था। वह आरामपरस्त इनसान था। जब वह अपने हाथी के द्वारा काफी पैसा कमा लेता तो बहुत ज्यादा पीता और मोती गज के आगे के पैरों के कोमल नाखूनों को तंबू के खूटे से पीटता था। ऐसे मौकों पर मोती गज ने कभी दीसा को कुचलकर मारा नहीं, क्योंकि वह जानता था कि पिटाई के बाद दीसा उसके सूंड से लिपट जाएगा, रोएगा और उसे अपना प्यार तथा अपनी जिंदगी एवं अपने जिगर का टुकड़ा कहेगा और उसे शराब पिलाएगा।

मोती गज शराब का बहुत शौकीन था। उसकी पसंद ठर्रा शराब थी, मगर और कुछ बेहतर न मिले तो वह ताड़ी भी पी लेता था। तब दीसा उस मोती गज के अगले पैरों के बीच सो जाता था और दीसा अकसर ही आम रास्तों के बीचोबीच अपने लिए जगह चुनता था; क्योंकि मोती गज उसकी पहरेदारी करता था और किसी घोड़े या गाड़ी को वहाँ से निकलने नहीं देता था। इस तरह वहाँ तब तक भारी जाम लगा रहता था, जब तक दीसा को यह माकूल नहीं लगता कि उसे जाग जाना चाहिए।

बागान मालिक की जंगलवाली साफ की जा रही जमीन पर दिन के समय बिल्कुल भी सोना नहीं हो पाता था; पगार इतनी ज्यादा थी कि उसे खतरे में भी नहीं डाला जा सकता था। अतः दीसा वहाँ मोती गज की गरदन पर बैठ जाता और उसे हुक्म देता था, जब मोती गज ठूँठ उखाड़ता रहता था, क्योंकि उसके दो शानदार दाँत थे; या रस्सी के छोर पर जोर लगाता था, क्योंकि उसके दो शानदार कंधे थे। जबकि दीसा उसके कानों के पीछे पैर मारता और कहता था, "तुम हाथियों के राजा हो!" शाम के समय मोती गज अपना तीन सौ पौंड चारा चौथाई गैलन दारू के साथ गटक जाता था और दीसा एक हिस्सा लेकर मोती गज के पैरों के बीच गाते-गाते सो जाता था। दीसा हफ्ते में एक बार मोती गज को नदी पर ले जाता था और मोती गज वहाँ छिछले तट पर बड़े मजे में करवट से लेट जाता था; जबकि दीसा जूट के पुचारे और ईट से रगड़-रगड़कर उसे नहलाता था। मोती गज ईट की रगड़ और पुचारे के थपेड़े के फर्क को समझने में कभी गलती नहीं करता था, जो इस बात का इशारा होता था कि अब उसे उठकर दूसरी करवट लेटना है। फिर दीसा उसके पैरों को देखता और उसकी आँखों की जाँच करता तथा उसके कानों के सिरों को पलटकर देखता था कि उनमें कहीं कोई जख्म तो नहीं या आँखों में कोई परेशानी तो नहीं होने वाली। जाँच हो जाने के बाद दोनों सागर से आनेवाला गीत छेड़ देते थे। मोती गज का बदन स्याह काला व चमकदार था और वह बारह फीट लंबी पेड़ की डाली को अपनी सूंड़ में लहराता था तथा दीसा अपने लंबे गीले बालों में गाँठ बाँध लेता था।

यह एक शांतिपूर्ण और अच्छी पगारवाली नौकरी थी। अब फिर दीसा को खूब पीने की हुड़क उठी। उसे मस्ती करने की इच्छा हुई। शराब के इन छोटे-छोटे छूटों से कुछ भी नहीं होता था और ये तो उससे उसकी मर्दानगी छीन रहे थे।

वह बागान मालिक के पास गया और रोते-रोते उससे बोला, "मेरी माँ मर गई है।"

"वह तो दो महीने पहले पिछली बागबानी में ही मर गई थी; और वह एक बार पहले भी मरी थी, जब तुम पिछले साल मेरे यहाँ काम कर रहे थे।" बागान मालिक ने कहा। उसे देहाती लोगों के ऐसे तौरतरीकों की थोड़ी जानकारी तो थी ही।

"तो फिर मेरी काकी मर गई है और वह मेरे लिए माँ जैसी ही थी।" दीसा ने और भी जोर से रोते हुए कहा, "वह अठारह छोटे-छोटे बच्चे छोड़ गई है, जिनके पास खाने को रोटी नहीं है और मुझे ही उनके छोटे-छोटे पेट भरने होंगे।" दीसा ने फर्श पर अपना सिर पटकते हुए कहा।

"यह खबर कौन लाया?" बागान मालिक ने पूछा।

"डाक..." दीसा ने कहा।

"पिछले हफ्ते से यहाँ कोई डाक ही नहीं आई। वापस अपने डेरे पर जाओ।"

"मेरे गाँव में एक भयंकर बीमारी फैल गई है और मेरी सारी बीवियाँ मर रही हैं।" दीसा चिल्लाया। इस बार उसकी आँखों में सचमुच आँसू थे।

"दीसा के गाँव के चिहुन को बुलाओ।" बागान मालिक ने कहा, "चिहुन, इस आदमी की कोई बीवी है?"

"इसकी...!" चिहुन ने कहा, "नहीं। हमारे गाँव की तो कोई औरत इसे देखने वाली भी नहीं। उससे पहले तो वे हाथी से शादी कर लेंगी।" चिहुन ने गुस्से में कहा।

दीसा रोता और बिलखता रहा।

"तुम अभी किसी मुश्किल में पड़ जाओगे।" बागान मालिक ने कहा, "जाओ, जाकर अपना काम करो।"

"अब मैं भगवान् कसम सच कहूँगा।" दीसा ने कहा, "मैंने दो महीनों से पी नहीं है। मैं यहाँ से जाना चाहता हूँ, ताकि इस पाक बागान से दूर कहीं जाकर ढंग से पी सकूँ। इस तरह मैं आपके लिए कोई परेशानी खड़ी नहीं कर पाऊँगा।"

बागान मालिक के चेहरे पर एक मुसकान तैर गई।

"दीसा!" उसने कहा, "तुमने सच कहा है और अगर तुम अपनी गैर-हाजिरी के लिए मोती गज का कोई इंतजाम कर सको तो मैं तुम्हें अभी-के-अभी छुट्टी दे दूँगा। तुम जानते हो, वह तुम्हारे अलावा किसी का हुक्म नहीं मानेगा।"

"जुग-जुग जिएँ! मैं बस दस ही दिन के लिए गैर-हाजिर रहूँगा। उसके बाद मैं सच में लौट आऊँगा। जहाँ तक इस छुट्टी के समय का सवाल है, तो क्या हुजूर, मुझे मोती गज को बुलाने की इजाजत देंगे?"

इजाजत दे दी गई और दीसा की तेज व तीखी पुकार पर वह भव्य हाथी पेड़ों के झुरमुट की छाया से निकलकर झूमता हुआ बाहर आया, जहाँ वह अपने मालिक के आने के इंतजार में अपने बदन पर धूल का छिड़काव कर रहा था।

"मेरे दिल के चिराग, पियक्कड़ के बचावनहार, ताकत के पहाड़, मेरी तरफ कान दो!" दीसा ने उसके सामने खड़े होकर कहा।

मोती गज ने उसकी तरफ कान दिया और अपनी सूँड़ से सलाम किया।

"मैं जा रहा हूँ!" दीसा ने कहा।

मोती गज की आँखों में चमक आ गई। उसे सैर-सपाटे भी अच्छे लगते थे और अपना मालिक भी। उस दौरान सड़क किनारे से तमाम तरह की बढ़िया चीजें चखी जा सकती थीं।

"मगर तुमको यहीं रुककर काम करना होगा।"

मालिक का यह आदेश सुनकर मोती गज की आँखों की चमक मर गई। उसे ठूँठ उखाड़ने से चिढ़ थी। इससे उसके दाँत दुख जाते थे।

"मैं दस दिन के लिए जा रहा हूँ, हे सुखदायक! अपना पासवाला अगला पैर ऊपर करो, ताकि मैं इस बात को उस पर जमा
, सूखे गँदले पोखर के मस्सों से भरे टोड।" दीसा ने तंबू का एक खूटा लिया और मोती गज के नाखूनों पर दस बार मारा।

मोती गज कराहा और एक से दूसरे पैर पर मचलता रहा।

"दस दिन," दीसा ने कहा, "तुम्हें काम करना होगा और पेड़ों को हटाना और उखाड़ना होगा, जैसा भी यहाँ यह चिहुन तुमसे करने को कहेगा। चिहुन को उठाकर अपनी गरदन पर बिठाओ।" मोती गज ने अपनी सूंड के सिरे को मोड़ा, चिहुन ने वहाँ अपना पैर रखा और मोती गज ने उसे उठाकर अपनी गरदन पर बिठा लिया। दीसा ने लोहे का भारी अंकुश चिहुन को थमा दिया।

चिहुन ने मोती गज के गंजे सिर को इस तरह थपथपाया जैसे कोई खड्जा तैयार करनेवाला पत्थर को थपथपाता है।

मोती गज ने एक चिंघाड़ मारी।

"शांत हो जाओ, जंगल के राजा। चिहुन दस दिन के लिए तुम्हारा महावत है। और अब मुझे विदा दो, मेरे जिगरी दोस्त! हे मेरे प्रभु, मेरे राजा! सभी हाथियों के रत्न, अपने झुंड के कमल! अपनी सेहत का खयाल रखना और हाँ, शराफत से रहना। विदा!"

मोती गज ने दीसा को अपनी सूंड़ में लपेटा और दो बार हवा में झुलाया। दीसा को विदाई देने का यह उसका अपना तरीका था।

"अब यह आपका काम करेगा।" दीसा ने बागान मालिक से कहा, "अब तो मुझे जाने की इजाजत है?"

बागान मालिक ने 'हाँ' में सिर हिला दिया और दीसा जंगल में घुस गया। मोती गज वापस ठूँठ उखाड़ने चला गया।

चिहुन उसके साथ बहुत दयालुता का बरताव करता था, मगर वह फिर भी दुखी और खोया-खोया-सा महसूस करता था। चिहुन उसे मसालेदार लड्डू देता तथा उसे गरदन के नीचे सहलाता था। चिहुन का नन्हा बच्चा काम खत्म होने पर उससे मीठी-मीठी बोली में बोलता था और चिहुन की बीवी उसे प्यार से बुलाती थी; मगर मोती गज दीसा की तरह फितरत से कुँवारा ही था। वह घरेलू जज्बात को नहीं समझता था। वह तो अपनी दुनिया के चिराग को वापस अपने पास चाहता था—वही पीना और पीकर सोना, वहशी पिटाई और वहशी सहलाहटें।

फिर भी, उसने अच्छे ढंग से काम किया और बागान मालिक उसके काम से चकित होता रहा। दीसा सड़कों पर आवारागर्दी करता रहा, फिर उसे अपनी जाति की एक बारात मिल गई और पीते, नाचते व धुत होते उसे समय बीतने का ध्यान नहीं रहा।

ग्यारहवाँ दिन आ पहुँचा और दीसा नहीं आया। मोती गज की रस्सियाँ खोल दी गई कि वह अपना रोज का काम करे। वह रस्सियों से आजाद हो गया। उसने इधर-उधर देखा, अपने कंधे सिकोड़े और वहाँ से इस तरह जाने लगा, मानो उसे कहीं और काम हो।

"हे! ओ! वापस आओ!" चिहुन चिल्लाया, "वापस आओ और मुझे अपने ऊपर बिठाओ, कुजन्मे पहाड़! वापस आओ, अरे पहाड़ी ढालों की शान! पूरे भारत की शान, चलो, नहीं तो मैं तुम्हारे मोटे अगले पैर के सारे नाखून बजा दूंगा।"

मोती गज ने हल्के से गड़गड़ाहट की आवाज निकाली, मगर उसने चिहुन का कहना नहीं माना। चिहुन एक रस्सी लेकर उसके पीछे दौड़ा और उसने उसे जा पकड़ा। मोती गज ने अपने कान आगे कर लिये, जिसका मतलब चिहुन को पता था; हालाँकि उसने ऊँचे स्वर में बोलते हुए उसे ले जाने की कोशिश की।

"मेरे साथ तुम्हारी कोई बेवकूफी नहीं चलेगी।" उसने कहा, "अपने ठिकाने पर चलो, शैतान की औलाद!"

"गर्रऽऽऽ!" मोती ने बस इतना कहा और उसने अपने कान आगे कर लिये।

मोती गज ने जेबों में हाथ डाले, एक डाल से अपने दाँत कुरेदे और जंगल के उस साफ हिस्से पर अभी-अभी काम पर लगे दूसरे हाथियों का मजाक उड़ाता हुआ टहलने लगा।

चिहुन ने बागान मालिक को इस बारे में बताया तो वह एक कोड़ा लेकर बाहर आया और उसे गुस्से से फटकारने लगा। मोती गज ने अभिवादन में उस गोरे को उस साफ हिस्से पर चौथाई मील दौड़ा लिया और 'गर्रर्रऽऽऽ' के साथ उसे बरामदे में खदेड़ दिया। फिर वह मकान के बाहर खड़ा होकर मन-ही-मन हँसने लगा और एक हाथी की तरह ही मजा लेने में उसका पूरा शरीर हिलने लगा।

"हम इसकी धुनाई करेंगे।" बागान मालिक ने कहा, "इसकी ऐसी धुनाई होगी जैसी कभी किसी हाथी की नहीं हुई होगी। काला नाग और नाजिम को बारह फीट की एक-एक जंजीर दो और उनसे कहो कि इसे बीस बार मारें।"

काला नाग और नाजिम वहाँ के दो सबसे बड़े हाथी थे और उनका एक काम दूसरे हाथियों को भारी सजाएँ देना भी था; क्योंकि कोई भी इनसान किसी हाथी को ठीक से पीट नहीं सकता।

दोनों ने अपनी सूँड़ में उन जंजीरों को पकड़ा और उन्हें बजाते हुए मोती गज की ओर बढ़े। वे उसे अपने बीच में धकियाना चाहते थे। मोती गज ने अपनी उनतालीस साल की जिंदगी में कभी कोड़े नहीं खाए थे। वह नए-नए अनुभव नहीं करना चाहता था। इसलिए वह इंतजार करने लगा। अपने सिर को दाएँ-बाएँ झुलाता रहा और काला नाग की मोटी बगल से ठीक उस जगह की पैमाइश करता रहा, जहाँ एक भोथरा दाँत सबसे गहरा घुस सकता था। काला नाग के दाँत नहीं थे, जंजीर ही उसकी ताकत थी; मगर उसने सही अंदाजा लगाते हुए आखिरी मिनट में झूमकर मोती गज से बहुत दूर हो जाने का फैसला किया और ऐसा जताया कि वह जंजीर तो वह मनोरंजन के लिए लाया था। नाजिम पीछे घूमकर जल्दी अपने बाड़े में चला गया। उस सुबह वह खुद को लड़ने में असमर्थ पा रहा था और इस तरह मोती गज वहाँ अकेला खड़ा रह गया। अब उसके कान खड़े हो गए थे।

इससे बागान मालिक ने भी आगे कोई बहस न करने का फैसला कर लिया और मोती गज अपनी मस्त चाल में जंगल की उस साफ जगह का मुआयना करने चल दिया। जो हाथी काम न करे और जो बँधा न हो, उसे सँभालना उससे भी मुश्किल है, जितना समुद्री रास्ते पर खुली इक्यासी टन की तोप को सँभालना।

उसने अपने पुराने दोस्तों की पीठ थपथपाई और उनसे पूछा, "क्या ठूँठ आसानी से उखड़ रहे थे?"

उसने मजदूरी और हाथियों के दोपहर के लंबे आराम के मूल अधिकारों के बारे में बेकार की बातें कीं और इधर-उधर घूमते हुए उसने बाग का मनोबल चूर कर दिया। यह सिलसिला सूरज डूबने तक चला और फिर वह खाने के लिए अपने ठिकाने पर लौट आया।

"अगर तुम काम नहीं करोगे तो खाओगे भी नहीं।" चिहुन ने गुस्से में कहा, "तुम एक जंगली हाथी हो, कोई सिखाए-पढ़ाए जानवर नहीं। अपने जंगल में वापस चले जाओ।"

झोंपड़ी के फर्श पर लोटते चिहुन के नन्हे साँवले बच्चे ने दरवाजे के रास्ते में खड़े विशाल साये की ओर अपनी मोटी बाँहें फैलाई। मोती गज को अच्छी तरह से पता था कि चिहुन के लिए यह दुनिया की सबसे प्यारी चीज थी। उसने अपनी सूंड़ के सिरे का एक मोहक फंदा बनाया। वह साँवला बच्चा चिल्लाता हुआ इस पर आ गिरा। मोती गज ने फुरती करते हुए उसे खींचा और उसे अपने बाप के सिर के बारह फीट ऊपर लहरा दिया।

"महा सरदार!" चिहुन ने कहा, "सबसे बढ़िया आटे की दो फीट बड़ी बारह रोटियाँ रम में भिगोई हुई अभी-अभी तुम्हारे लिए हाजिर होंगी और उसके साथ ताजे कटे दो सौ पौंड गन्ने भी। बस, उस नादान छोकरे को सही-सलामत नीचे उतार दो, वह मेरे लिये मेरा दिल और मेरी जिंदगी भी है।"

मोती गज ने उस साँवले बच्चे को अपने आगे के पैरों के बीच में आराम से सँभाल लिया, जो कि चिहुन की पूरी झोंपड़ी को तहस-नहस कर सकता था। वह अपने खाने का इंतजार करने लगा। उसने खाना खाया और वह साँवला बच्चा रेंगता हुआ वहाँ से चला गया। मोती गज ऊँघने लगा और दीसा के बारे में सोचने लगा। हाथी के साथ जुड़े अनेक रहस्यों में एक यह भी है कि उसकी विशाल काया को और किसी भी प्राणी से कम नींद चाहिए होती है। रात में चार या पाँच घंटे काफी होते हैं—दो आधी रात से ठीक पहले, एक करवट पर लेटे हुए; दो घंटे एक बजे के ठीक बाद में, दूसरी करवट पर लेटे हुए। बाकी के खामोश घंटे खाने, चुलबुलाने और काफी देर तक अपने आप में बुड़बुड़ाने से भरे होते हैं।

इसलिए, आधी रात को मोती गज अपने ठिकाने से निकल आया, क्योंकि उसके मन में यह विचार आया था कि शायद दीसा अँधेरे जंगल में कहीं पड़ा होगा और वहाँ उसकी देखभाल करनेवाला कोई नहीं होगा। इसलिए उस पूरी रात वह झाड़ियों में चीखता-चिंघाड़ता और अपने कान फड़फड़ाता घूमता रहा। वहीं स्थित नदी पर भी गया और उस छिछली जगह में जाकर चिल्लाया, जहाँ दीसा उसे नहलाया करता था; मगर उसे कोई जवाब नहीं मिला। उसे दीसा नहीं मिल पाया, मगर उसने ठिकाने के सारे हाथियों को परेशान जरूर कर दिया और जंगल में मौजूद कुछ खानाबदोशों को मौत की हद तक डरा दिया।

तड़के ही दीसा बागान में लौट आया। वह सचमुच बहुत पिए हुए था। वह अपेक्षा कर रहा था कि छुट्टी की सीमा से ज्यादा रुक जाने के लिए वह परेशानी में पड़ जाएगा। जब उसने देखा कि बँगला और बागान को अभी भी कोई नुकसान नहीं पहुँचा है तो उसने एक लंबी साँस ली; क्योंकि उसे मोती गज के तेवरों की कुछ तो जानकारी थी। उसने कितने ही झूठे बहाने बनाकर और सलाम ठोकते हुए साथ अपने आने की इत्तिला दी। मोती गज अपने ठिकाने पर नाश्ते के लिए गया हुआ था। उसकी रात की कवायद से उसे भूख लग आई थी।

"अपने जानवर को बुलाओ!" बागान मालिक ने कहा।

दीसा हाथियों की उस रहस्यमयी भाषा में चिल्लाया, जिसके बारे में कुछ महावतों का मानना है कि वह दुनिया के जन्म के समय चीन से आई थी, जब इनसान नहीं, हाथी मालिक थे। मोती गज उस आवाज को सुनकर वहाँ पहुँच गया। हाथी चौकड़ी नहीं भरते। वे अलग-अलग रफ्तार से अपने स्थानों से चलते हैं। अगर कभी हाथी कोई एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ना चाहे, तो वह चौकड़ी नहीं भर सकता, मगर वह ट्रेन पकड़ सकता है। इस तरह इससे पहले कि चिहुन गौर कर पाता कि मोती गज अपने ठिकाने से चल पड़ा, मोती गज बागान मालिक के दरवाजे पर था। वह खुशी से चिंघाड़ते हुए दीसा की बाँहों में आ गया। इनसान और जानवर एक-दूसरे पर रोने-दुलारने लगे तथा एक-दूसरे को सिर से पाँवों तक देखने लगे कि कहीं कोई चोट तो नहीं लगी।

"अब हम काम पर लगेंगे," दीसा ने कहा, "मुझे उठाओ, मेरे बेटे और मेरे आनंद!"

मोती गज ने उसे उठा लिया और दोनों ठूँठों की तलाश में कॉफी बागान की साफ की जा रही जमीन पर चले गए।

बागान मालिक इतना ज्यादा चकित था कि वह चाहते हुए भी बहुत गुस्सा नहीं हो पाया।

  • मुख्य पृष्ठ : रुडयार्ड किपलिंग की कहानियाँ हिन्दी में
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां