मूर्ख महतो : मुंडारी/झारखण्ड लोक-कथा

Moorakh Mahto : Lok-Katha (Mundari/Jharkhand)

सिंहभूमि जिले की पहाड़ियों में 'पहाड़ी खड़िया' जनजाति रहती है। इसी जाति का एक युवक था 'महतो।

महतो जंगल से खाने-पीने का सामान बटोरकर अपना पेट भरता था। उसका घर पहाड़ की एक चोटी पर था। महतो हर काम में जल्दबाजी करता था। कई बार उसे अपनी गलतियों की सजा भी भुगतनी पड़ती थी, किंतु उसके कान पर जूं तक न रेंगती थी।

एक बार वह रात को झरने के पास बैठा बाँसुरी बजा रहा था। तभी उसकी नजर एक सुंदर हाथी पर पड़ी। हाथी के शरीर पर बहुमूल्य आभूषण थे। उसके देखते ही देखते वह हाथी आकाश में उड़ गया। तब महतो की समझ में आया कि वह तो इंद्र का हाथी 'ऐरावत' था।

अगली रात महतो फिर उसी स्थान पर आकर बैठ गया। उसने हाथी को घूमते देखा तो मन ही मन कुछ निश्चय कर लिया। जैसे ही ऐरावत उड़ने लगा तो वह उसकी पूँछ पकड़कर लटक गया। हाथी उसे स्वर्गलोक में ले गया।

स्वर्ग की जगमगाहट देखकर महतो हैरान रह गया। वहाँ वृक्ष फलों से लदे थे। दूध की नदियाँ बह रही थीं। चारों तरफ फूलों की खुशबू ही खुशबू थी। पकवानों से थाल भरे थे। महतो को वहाँ किसी ने नहीं देखा। वह जी भरकर घूमा। उसने पेट भरकर खाना खाया और पेड़ की छाँह में सो गया।

ज्यादा देर रुकने पर पकड़े जाने का भय था। इसलिए वह उसी रात हाथी की पूँछ से लटककर धरती पर आ गया। महतो ने घर आकर माँ को सारी बात बताई तो उसने विश्वास नहीं किया, जब महतो ने अपनी कसम देकर कहा तो माँ मान गई और बेटे को चेतावनी दी।

'महतो, किसी से यह बात मत कहना वरना लोग पागल समझेंगे।' महतो ने भला माँ की बात कब सुनी थी? उसके लिए बात हजम करना भारी हो गया। उसने गाँव के मुखिया से जाकर कहा-

'वाह भई! स्वर्ग के तो क्या कहने? हरियाली देखकर आँखें शीतल हो गईं।'

मुखिया बोला, 'कैसी मूर्खों-सी बातें करते हो। तुमने जीते जी स्वर्ग कहाँ से देख लिया? लगता है। कोई सपना देखा है।'

'नहीं' मुखिया जी! मैं तो सचमुच स्वर्ग गया था। ऐरावत की पूँछ पकड़कर लटक गया और उसी तरह वापिस भी आ गया। कहो तो आपको भी ले चलूँ।

मुखिया ने सोचा कि चलो इस बहाने पता भी चल जाएगा कि कहीं महतो गप्प तो नहीं मार रहा है। मुखिया अपनी पत्नी को बताने गया तो वह पीछे पड़ गई। वह भी साथ जाना चाहती थी। इसी तरह मुखिया की माँ, बाप, बच्चे व बुआ आदि साथ जाने की जिद पर अड़ गए।

महतो की माँ ने उसे लाख समझाया कि वह किसी को भी साथ न ले जाए पर उसने एक न सुनी। अगली रात ऐरावत हाथी पृथ्वी पर उतरा। जब वह घूमकर जाने लगा तो महतो ने उसकी पूंछ पकड़ ली। मुखिया ने महतो को कमर से पकड़ लिया। इसी तरह उसकी पत्नी, माँ, बुआ और बाप आदि ने एक-दूसरे को कसकर थाम लिया। जब ऐरावत आकाश में उड़ा तो ऐसा लग रहा था मानो उसकी दुम के साथ पुच्छल तारा बँधा हुआ हो।

मुखिया बेचारा घबराया हुआ था। अपनी घबराहट छिपाने के लिए उसने महतो से पूछा, 'क्या स्वर्गलोक बहुत बड़ा है?'

महतो बोला, 'हाँ, सचमुच बहुत बड़ा है।' मुखिया ने पूछा, 'क्या हमारी पृथ्वी से भी बड़ा है?'

महतो ने बात करते-करते अचानक दोनों हाथ फैलाकर कहा, 'हमारी पृथ्वी से तो इतना बड़ा है।'

उसके हाथ छोड़ते ही सभी पृथ्वी की ओर गिरने लगे। ऐरावत तो स्वर्ग पहुँच गया, किंतु वे सभी गिरकर मर गए।

सच ही तो है मूर्ख व्यक्ति का साथ कभी न दें। नहीं तो वही हाल होगा, जो मुखिया के परिवार का हुआ।

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