मौन लोग (फ्रेंच कहानी) : अल्बैर कामू

Maun Log (French Story in Hindi) : Albert Camus

(अल्बेयर कामू की कहानी ‘The Silent Men’ (French: Les muets) उनके कहानी-संग्रह- ‘Exile and the Kingdom’ (French: L'exil et le royaume) जिसका प्रकाशन 1957 में हुआ था, में संकलित है। उन्हें 1957 में ही साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। सुशांत सुप्रिय का यह अनुवाद इसके अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित है। कामू दार्शनिक रचनाकार हैं। अस्तित्ववाद (Existentialism) और असंगतता (Absurdism) के सिद्धांतों के पुरोधा के रूप में जाने जाते हैं। यह कहानी कामगारों के असफल हड़ताल के बाद, उनके अंदर अवसाद और विरक्ति और फिर घटित बदलावों को दिखाती है। सुशांत सुप्रिय चूंकि ख़ुद कहानीकार हैं इसलिए अनुवाद में भी रवानी बचाए रखते हैं। कहानी प्रस्तुत है:-)

वह कड़कड़ाती ठंड का समय था, लेकिन पहले ही सक्रिय हो चुके शहर पर कांतिमय धूप फैली हुई थी। घाट के अंत में समुद्र और आकाश चौंधिया देने वाले प्रकाश में मिल गए थे। किंतु यवेर्स यह सब नहीं देख रहा था। वह बंदरगाह के ऊपरी मार्ग पर धीमी गति से साइकिल चला रहा था। उसके साइकिल के स्थिर पैडल पर उसकी तनी हुई अशक्त टाँग आराम कर रही थी, जबकि दूसरी टाँग उस फिसलन भरे खड़ंजे पर पकड़ बनाने के लिए संघर्ष कर रही थी, जो रात की बारिश की वजह से गीला था। वह साइकिल की गद्दी पर सवार एक पतली-दुबली आकृति-सा लग रहा था। अपने सिर को ऊपर उठाए बिना उसने बहुत पहले ट्राम के लिए बिछाई गई पुरानी पटरियों से ख़ुद को बचाया, साइकिल के हैंडल को थोड़ा-सा मोड़ कर गाड़ियों को बग़ल से गुज़रने दिया और समय-समय पर अपनी कोहनी से अपने उस थैले को साइकिल पर सही ढंग से टिकाता रहा जिसमें उसकी पत्नी फ़रनांदे ने उसका दोपहर का भोजन रख दिया था। ऐसे पलों में वह थैले में मौजूद सामान के बारे में कटुता से सोचता था। उसे स्पेन में बनाया जाने वाला ऑमलेट या तला हुआ गोमांस-टिक्का पसंद था जबकि यहाँ उसे रूखे ब्रेड के दो टुकड़ों के साथ केवल पनीर दिया गया था। दुकान तक की दूरी उसे इतनी लम्बी कभी नहीं लगी थी। निश्चित ही, उसकी उम्र ढल रही थी। हालाँकि चालीस की उम्र में भी उसकी देह किसी लता की तरह दुबली-पतली थी, पर आदमी की माँसपेशियों में इतनी जल्दी गर्माहट नहीं आती। कभी-कभी जब वह खेलों से सम्बन्धित वर्णन पढ़ रहा होता, तो किसी तीस वर्षीय खिलाड़ी के लिए ‘सेवानिवृत्त’ शब्द पढ़ने पर वह उपेक्षा से अपने कंधे उचका देता। “यदि वह ‘सेवानिवृत्त’ है,” वह फ़रनांदे से कहता, “तो मैं तो व्यावहारिक रूप से अति वृद्ध लोगों की पहियादार कुर्सी पर बैठा हुआ हूँ“ किंतु वह जानता था कि सम्वाददाता पूरी तरह से ग़लत नहीं था। तीस वर्ष का होते-होते आदमी अपनी ऊर्जा खोने लगता है, हालाँकि उसे यह बात पता नहीं चलती। चालीस की उम्र में वह अभी बुज़ुर्गों की पहियादार कुर्सी पर तो नहीं होता लेकिन वह निश्चित रूप से उसी दिशा में जा रहा होता है। क्या यही कारण नहीं था जिसकी वजह से वह शहर के दूसरे कोने में स्थित कूपर की दुकान की ओर जाते हुए समुद्र की ओर देखने से कतराता रहा।

जब वह बीस वर्ष का था तब वह कभी भी समुद्र को देखते हुए थकता नहीं था क्योंकि इससे समुद्र-तट पर एक ख़ुशनुमा सप्ताहांत की उसकी उम्मीद बनी रहती थी। अपने लंगड़ेपन के बावजूद उसे हमेशा ही तैरना पसंद था। उसके बाद वर्ष बीतते चले गए। उसके लड़के का जन्म हुआ था और उसे अपना ख़र्च पूरा करने के लिए शनिवार के दिन दुकान में ज़्यादा देर तक काम करना पड़ता था। रविवार के दिन भी वह कई प्रकार के फुटकर काम करके पैसे कमाता था। धीरे-धीरे उसने अपने हिंसक दिनों की आदतें छोड़ दी थीं जो कभी उसे परितृप्त कर देती थीं। गहरा, निर्मल जल, गरम सूरज, लड़कियाँ और भौतिक जीवन— इस देश में प्रसन्नता का कोई और रूप नहीं था। और वह प्रसन्नता यौवन के जाने के साथ ही जाती रही। यवेर्स समुद्र से प्रेम करता रहा, किंतु केवल दिन के ढल जाने के समय, जब समुद्र का जल थोड़ा अंधकारपूर्ण हो जाता था। उसके घर की खुली छत पर वे पल ख़ुशनुमा होते थे जहाँ वह दिन भर के काम के बाद आराम करने के लिए बैठता था।

फ़रनांदे उसकी साफ़-सुथरी क़मीज़ को बहुत अच्छे ढंग से इस्त्री कर देती थी और उसके हाथ में शराब की ठंडी बोतल होती थी। वह इन दोनों चीज़ों के लिए फ़रनांदे का अहसानमंद था। शाम हो जाया करती और आकाश बेहद मुलायम और स्निग्ध लगने लगता। ऐसे में यवेर्स से बातें करने वाले पड़ोसी अपनी आवाज़ें धीमी कर लेते। ऐसे समय में उसे यह पता नहीं चलता कि वह ख़ुशी महसूस कर रहा होता या उसका रोने का मन कर रहा होता। कम-से-कम ऐसे पलों में वह एक सामंजस्य महसूस करने लगता। शांतिपूर्वक प्रतीक्षा करने के अलावा उसके पास और कोई काम नहीं होता, लेकिन उसे यह नहीं पता होता कि उसे किस चीज़ की प्रतीक्षा करनी है।

सुबह जब वह वापस काम पर जा रहा था तो उसे समुद्र को देखना अच्छा नहीं लगा। हालाँकि उसका स्वागत करने के लिए समुद्र हमेशा वहीं मौजूद था, वह शाम होने से पहले उसे नहीं देखना चाहता था। आज सुबह जब वह अपना सिर झुकाए साइकिल चला रहा था, उसे और दिनों की अपेक्षा अधिक भारीपन महसूस हो रहा था। उसके हृदय पर भी जैसे कोई भार पड़ा हुआ था। पिछली रात बैठक के बाद जब उसने वापस आ कर यह घोषणा की थी कि वे काम पर लौट रहे हैं तो फ़रनांदे ने प्रसन्नचित हो कर कहा था, “ क्या मालिक आप सब का वेतन बढ़ा रहे हैं ?” लेकिन मालिक किसी का वेतन नहीं बढ़ा रहे थे। हड़ताल विफल रही थी। वे सही ढंग से चीज़ों का प्रबंधन नहीं कर पाए थे, यह माना जा सकता था। हड़ताल का फ़ैसला जल्दबाज़ी में लिया गया था। इसलिए संघ ने इसका साथ अधूरे मन से देकर ठीक ही किया था। कुछ भी हो, केवल पंद्रह कामगारों के हड़ताल करने से कुछ नहीं होना था।

संघ को कूपर की अन्य दुकानों के बारे में भी सोचना था जिनके कामगार हड़ताल पर नहीं गए थे। हाँ, मैं संघ पर दोष नहीं लगा सकता था। टैंकरों और टैंकर-ट्रकों को बनाने वालों की धमकियों की वजह से पीपा बनाने वालों का काम फल-फूल नहीं रहा था। अब बेहद कम बड़े पीपे बनाए जा रहे थे। अब केवल पहले से मौजूद पीपों की मरम्मत का काम ही बचा हुआ था। मालिकों का व्यापार भी संकट में था, पर इसके बावजूद वे चाहते थे कि उनका व्यापार फ़ायदे में रहे। इसलिए सबसे आसान यह था कि वे महँगाई के बावजूद मज़दूरों का वेतन रोक लें। पीपा बनाने वाले तब क्या कर सकते थे जब उन्हें वेतन ही नहीं मिलता ? जब आपने मेहनत से कोई काम करना सीखा हो तो आप बीच में ही अपना पेशा नहीं बदल सकते।

यह एक मुश्किल से सीखा हुआ काम था और इसके लिए लम्बी अवधि तक प्रशिक्षु बने रहने की आवश्यकता होती थी। एक अच्छा पीपा बनाने वाला कारीगर विरला था— एक ऐसा कारीगर जो अपने मुड़े हुए तख़्तों को लोहे के छल्लों से आग में लगभग वायुरुद्ध तरीक़े से कसता था। वह ताड़पत्र के रेशे और पुराने सन के साथ नाल का इस्तेमाल किए बिना अपना काम करता था। यवेर्स यह बात जानता था और उसे इस पर गर्व था। हालाँकि पेशा बदलना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन जो करना आप जानते हैं, उसे छोड़ देना, कारीगरी में अपनी प्रवीणता को त्याग देना आसान नहीं था। यदि आपको पूरा वेतन ही नहीं मिले तो बढ़िया कारीगरी के बावजूद आप फँस जाएंगे। आप बेहाल हो जाएंगे। आपकी मुसीबत बढ़ जाएगी। और यह सब आसान नहीं होगा। तब अपना मुंह बंद रख पाना भी मुश्किल होगा। क्या आप इसके बारे में किसी से चर्चा भी नहीं करेंगे ? तब उसी सड़क पर हर सुबह चल कर नौकरी पर जाना बेहद थकाऊँ होगा, जब आपको यह पता हो कि हर हफ़्ते के अंत में आपको अपने निश्चित वेतन का केवल उतना ही अंश मिलेगा जितना वे देना चाहेंगे , और वह भी उत्तरोत्तर इतना कम हो जाएगा कि पर्याप्त नहीं होगा।

इसलिए वे सब ग़ुस्से में थे। शुरू में उनमें से दो-तीन कारीगर हिचक रहे थे पर मालिक से पहली बार बातचीत करने के बाद वे भी आक्रोश में आ गए। दरअसल मालिक ने उन्हें साफ़ कह दिया कि या तो उनके वेतन का जितना अंश वे दे रहे हैं, कारीगर चुपचाप ले लें या फिर वे नौकरी छोड़ कर चले जाएँ। यह तो बात करने का कोई तरीक़ा नहीं है। “वह हमसे क्या उम्मीद करता है ?

‘ एस्पोजीतो ने कहा था।” क्या यह कि हम उकड़ूँ हो कर बैठ जाएंगे और अपने पिछवाड़े में लात खाने की प्रतीक्षा करेंगे ? मालिक वैसे तो बुरा आदमी नहीं था। यह दुकान उसे अपने पिता से विरासत में मिली थी। वह इसी दुकान में बड़ा हुआ था, और वह लगभग सभी कारीगरों को बरसों से जानता था। कभी-कभार वह उन सब को अपने साथ नाश्ता करने के लिए आमंत्रित भी करता था। तब वे छीलनों और चैली को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करके आग पर मछली या मांस पकाते थे। और शराब पीते हुए मालिक का कारीगरों के प्रति व्यवहार वाक़ई अच्छा होता। नव-वर्ष के अवसर पर वह हर कारीगर को बढ़िया शराब की पाँच बोतलें तोहफ़े में देता था। अकसर जब कोई कारीगर बीमार होता, या उसके विवाह या प्रभु-भोज जैसा कोई अवसर होता तो मालिक उसे रुपयों का तोहफ़ा भी देता। उसकी बेटी के जन्म के अवसर पर उसने सभी कारीगरों में मीठे बादाम वितरित किए थे। दो या तीन बार तो उसने यवेर्स को अपनी तटीय जायदाद वाले इलाक़े में अपने साथ शिकार पर जाने के लिए आमंत्रित भी किया था।

बेशक, मालिक को अपने कारीगर अच्छे लगते थे और वह अक्सर इस बात को याद किया करता था कि उसके पिता ने भी एक प्रशिक्षु के रूप में अपने काम की शुरुआत की थी। लेकिन मालिक कभी अपने कारीगरों के घर नहीं गया था, इसलिए उसे उनके बारे में और जानकारी नहीं थी। वह केवल अपने बारे में ही सोचता था क्योंकि वह अपने अलावा किसी और को नहीं जानता था। और अब उसने अपना फ़ैसला सुना दिया था— वे सब वेतन का जो थोड़ा-बहुत अंश मिल रहा था, उसे चुपचाप ले सकते थे या फिर अपनी नौकरी छोड़ कर जा सकते थे। दूसरे शब्दों में कहें तो वह बेहद ज़िद्दी हो गया था। लेकिन मालिक होने की वजह से वह ऐसा कर सकने में समर्थ था।

मालिक ने मज़दूर संघ को विवश कर दिया था और दुकान के दरवाज़े बंद हो गए थे। “यहाँ धरना देने की कोशिश बेकार होगी। दुकान के बंद रहने से मेरे ही पैसे बचेंगे।“ मालिक ने कहा था। यह बात सच तो नहीं थी पर इससे कोई बात नहीं बनी क्योंकि मालिक ने कारीगरों को उनके सामने कह दिया कि दरअसल उसने कारीगरों को नौकरी दे कर उन पर अहसान किया था। एस्पोज़ीतो ग़ुस्से से आग-बबूला हो गया और उसने मालिक से कहा कि उसमें इंसानियत नहीं बची थी। मालिक को भी जल्दी ग़ुस्सा आ जाता था और विस्फोटक स्थिति की वजह से उन दोनों को अलग करना पड़ा। किंतु इस घटना ने कारीगरों पर प्रभाव डाला था। हड़ताल करते हुए उन्हें बीस दिन हो गए थे। उनकी पत्नियाँ घरों में उदास बैठी थीं। दो-तीन कारीगर तो हतोत्साहित हो चुके थे। अंत में मज़दूर संघ ने कारीगरों को सलाह दी थी कि यदि वे हड़ताल ख़त्म कर दें तो संघ मध्यस्थता करके मज़दूरों को नष्ट हो गए समय के पैसे अधिसमय के रूप में दिलवा देगा। इसलिए कारीगरों ने हड़ताल ख़त्म करके वापस काम पर जाने का फ़ैसला किया था। हालाँकि वे सब शेखी बघारते रहे और आपस में यह कहते रहे कि मामला अभी ख़त्म नहीं हुआ था, और मालिक को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना होगा। पर इस सुबह जब वे हार से मिलती-जुलती थकान लिए हुए काम पर लौटे तो भ्रम को बनाए रखना संभव नहीं था। यह ऐसा था जैसे उन्हें मांस देने का आश्वासन देने के बाद अंत में पनीर दे दिया गया हो।

सूर्य चाहे किसी भी तरह चमक रहा हो, समुद्र अब उतना आश्वस्त करने वाला नहीं लग रहा था। यवेर्स अपनी साइकिल चलाते हुए सोच रहा था कि अब उसकी उम्र पहले से कुछ ज़्यादा ढल गई थी। दुकान, अपने सहकर्मियों और मालिक के बारे में सोचने पर उसे ऐसा लगा जैसे उसकी छाती भारी हो गई हो। फ़रनांदे चिंतित हो गयी थी, “ अब तुम लोग मालिक से क्या कहोगे ?” “ कुछ नहीं। “ यवेर्स ने अपना सिर हिलाया था और अपनी टाँगें फैला कर वह साइकिल पर बैठ गया था। उसने अपने दाँत भींच लिए थे और उसका छोटा-सा, काला, कोमल-सुकुमार नाक-नक़्श वाला चेहरा कठोर हो गया था। “हम सब वापस काम पर जा रहे हैं। यह काफ़ी है।“ अब वह साइकिल चला रहा था, किंतु उसके दाँत अभी भी भिंचे हुए थे और उसके चेहरे पर एक ऐसा उदास, सूखा ग़ुस्सा था जो मानो आकाश को भी काला बना रहा था।

उसने मुख्य पथ और समुद्र-तट वाले मार्ग को छोड़ दिया ताकि वह स्पेनी मूल के बसे लोगों वाली बस्ती की गीली गलियों में से होकर गुज़र सके। वह रास्ता उसे ऐसी जगह ले गया जहाँ केवल छप्पर, कूड़े-करकट के ढेर और गराज थे। वहीं नीचे की ओर झुके छप्पर जैसी दुकान थी जिसमें आधी दूरी तक पत्थर लगे हुए थे और उसके ऊपर काँच लगा था। उसकी छत धातु की लहरदार चादर से बनी थी। इस दुकान का अगला हिस्सा पीपे बनाने वाली जगह की ओर था। यहाँ एक आँगन था जो चारों ओर से ढँके हुए छप्पर से घिरा हुआ था। व्यवसाय के बढ़ जाने पर इस इलाक़े को त्याग दिया गया था और अब यह घिसी-पिटी मशीनों और पुराने पीपों को रखने की जगह मात्र बन कर रह गया था। आँगन के आगे मालिक का बग़ीचा शुरू होता था, लेकिन खपरैल से बना एक रास्ता दोनों को अलग करता था। बग़ीचे के आगे मालिक का मकान था। वह एक बड़ा और भद्दा मकान था, किंतु फिर भी वह प्रभावित करने वाला लगता था क्योंकि उसकी बाहरी सीढ़ियाँ छितराई हुई बेलों और फूलों की लताओं से घिरी हुई थीं।

तभी यवेर्स ने देखा कि सामने दुकान के दरवाज़े बंद थे। दुकान के बाहर कारीगरों का एक झुंड चुपचाप खड़ा था। जब से वह यहाँ काम कर रहा था, तब से यह पहली बार था कि उसने दुकान के दरवाज़ों को बंद पाया। मालिक यह बात बल देकर बताना चाहता था कि इस खींचा-तानी में उसका पलड़ा भारी था। यवेर्स बाईं ओर मुड़ा और उसने अपनी साइकिल छज्जे के अंतिम किनारे के नीचे खड़ी कर दी , और वह दरवाज़े की ओर चल पड़ा। कुछ दूरी से उसने एस्पोज़ीतो को पहचान लिया जो उसके साथ काम करता था। वह एक लम्बा, साँवला कारीगर था जिसकी त्वचा पर बहुत सारे बाल थे। दुकान के कारीगरों में एकमात्र अरब सैय्यद चलता हुआ वहाँ आ रहा था। बाक़ी लोग चुपचाप उसे अपनी ओर आते हुए देखते रहे। लेकिन इससे पहले कि वह उनके पास पहुँचता, अचानक वे सभी दुकान के दरवाज़ों की ओर देखने लगे, जोकि ठीक उसी समय खुल रहे थे। वहाँ फ़ोरमैन बैलेस्टर नज़र आया। उसने दुकान के एक भारी दरवाज़े को खोला और वहाँ मौजूद कारीगरों की ओर अपनी पीठ करते हुए उसने उस दरवाज़े को उसके लोहे की पटरी पर धकेला।

बैलेस्टर उन सब में सबसे पुराना कारीगर था और वह कामगारों के हड़ताल पर जाने का विरोधी था। एस्पोज़ीतो ने उससे कहा था कि वह मालिक के हितों का संरक्षण कर रहा था। अब वह गहरे नीले रंग की जर्सी पहन कर नंगे पाँव दरवाज़े के पास खड़ा था (सैय्यद के अलावा केवल वही एकमात्र कारीगर था जो नंगे पाँव काम करता था )। उसने उन सभी कारीगरों को एक-एक करके दुकान के अंदर जाते हुए देखा। उसकी आँखें इतनी फीकी थीं कि वे अत्यधिक धूप-सेवन की वजह से भूरे हो गए उसके बूढ़े चेहरे पर निस्तेज लग रही थीं। मोटी और नीचे झुकी मूँछों वाला उसका पूरा चेहरा बेहद उदास लग रहा था। वे सभी चुप थे। वे हार कर लौटने की वजह से अपमानित महसूस कर रहे थे। अपनी चुप्पी की वजह से वे कुपित थे, किंतु उनकी चुप्पी जितनी ज़्यादा देर तक बरक़रार थी, वे उसे तोड़ पाने में उतना ही अधिक असमर्थ थे। वे सभी बैलेस्टर की ओर देखे बिना दुकान के अंदर चले गए क्योंकि वे जानते थे कि उन्हें इस तरह भीतर लाने के पीछे मालिक का आदेश था जिस का वह पालन कर रहा था। उसका दुखद और उदास चेहरा उन्हें यह बता रहा था कि वह इस समय क्या सोच रहा था। लेकिन यवेर्स ने बैलेस्टर की ओर देखा। बैलेस्टर उसे चाहता था और उसने उसे देखकर बिना कुछ कहे केवल अपना सिर हिलाया।

अब वे सब प्रवेश-द्वार के दाईं ओर मौजूद संदूकों वाले कमरे में थे। बिना रंगे हुए लकड़ी के तख़्ते खुले आसनों को अलग कर रहे थे। उन तख़्तों के दोनों ओर अलमारियाँ थीं जिनमें ताले लगे हुए थे। जो आसन प्रवेश-द्वार से सबसे दूर था, उससे ज़रा हट कर छज्जे की दीवार पर ऊपर एक फुहारा लगा हुआ था। वहीं नीचे मिट्टी के फ़र्श पर एक नाली बना दी गई थी। दुकान के बीचोबीच कई चरणों में पड़ा अधूरा काम दिख रहा था। वहाँ लगभग पूरे बन चुके पीपे पड़े हुए थे जिनके बड़े छल्लों को आग में पकाया जाना बाक़ी था। वहाँ एक ओर बैठकर काम करने वाले कुछ तख़्ते भी पड़े हुए थे, और दूसरी ओर बुझी हुई राख के अवशेष और राख पड़ी हुई थी। प्रवेश-द्वार की बाईं ओर की दीवार के साथ भी बैठ कर काम करने वाले ऐसे कई तख़्ते क़तार में पड़े हुए थे। उनके सामने लकड़ी के पटरों के ढेर पड़े थे , जिन्हें रन्दा फेरकर चिकना बनाया जाना था। दाईं ओर की दीवार के पास बिजली से चलने वाली दो दमदार आरा मशीनें पड़ी थीं जो तेल से सनी होने की वजह से खामोश चमक रही थीं।

कुछ समय पहले यह कारख़ाने जैसी दुकान वहाँ काम कर रहे थोड़े-से कारीगरों के लिए बहुत बड़ी लगने लगी थी। गर्मी के मौसम में इससे फ़ायदा था, लेकिन सर्दियों में इससे नुक़सान था। लेकिन आज इस बहुत बड़ी जगह में हर ओर अधूरा काम पड़ा हुआ दिख रहा था। पीपों को कोनों में छोड़ दिया गया था और एकमात्र चक्करदार पट्टी तख़्तों के बुनियाद को पकड़े हुई थी। ऊपर से वे लकड़ी के खुरदरे फूलों जैसे लग रहे थे। बैठने वाली जगहों पर बुरादा पड़ा हुआ था। औज़ारों के बक्से और मशीनें— सभी दुकान में उपेक्षित-सी पड़ी थीं। कारीगरों ने उन सब चीज़ों की ओर देखा। उन्होंने काम करते समय पहनने वाले अपने घिसे-पुराने वस्त्र पहन रखे थे, और वे हिचक रहे थे। बैलेस्टर उन सबको देख रहा था। “तो, अब हम काम शुरू करें ?” उसने पूछा। एक-एक करके सभी कारीगर बिना एक भी शब्द बोले अपनी-अपनी काम करने वाली जगहों पर चले गए। बैलेस्टर एक-एक करके सब के पास जा कर उन्हें काम शुरू करने या ख़त्म करने के बारे में बताता रहा। किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।

जल्दी ही पहले हथौड़े की आवाज़ सुनाई दी। लोहे की फ़ानी पर पड़ा हथौड़ा पीपे के उत्तल भाग पर छल्ले को घुसा रहा था। रन्दा एक गाँठ से टकरा कर कराहने लगा और एस्पोज़ीतो द्वारा चलाए गए आरे का धारदार फलक ज़ोरदार खरखराहट के साथ शुरू हो गया। सैय्यद अनुरोध करने पर तख़्ते ला-ला कर कारीगरों को दे रहा था या जहाँ ज़रूरत थी, वहाँ छीलन की आग जला दे रहा था। आग पर लोहे के छल्लों से जकड़े पीपे रखे गए थे ताकि वे फूल जाएँ और छल्ले उन्हें अच्छी तरह से जकड़ लें। जब सैय्यद को मदद के लिए कोई कारीगर आवाज़ नहीं दे रहा होता, तो वह काम करने वाले तख़्ते पर खड़ा हो कर ज़ंग लगे बड़े-बड़े छल्लों को हथौड़े के भारी प्रहार से जकड़ने का काम करने लगता। जलते हुए छीलन की गंध दुकान में भरने लगी थी। यवेर्स रंदा चला रहा था और एस्पोज़ीतो द्वारा काटे गए तख़्तों को सही जगह पर लगा रहा था। उसने वह परिचित, पुरानी गंध पहचान ली और उसका हृदय थोड़ा नरम पड़ गया। सभी कारीगर चुपचाप अपना-अपना काम कर रहे थे, लेकिन दुकान में सरगर्मी और स्फूर्ति का माहौल लौटने लगा था। चौड़ी खिड़कियों में से होकर साफ़-सुथरी, ताज़ा रोशनी दुकान में भरने लगी थी। सुनहली धूप में नीले रंग का धुआँ उठ रहा था। यवेर्स ने अपने आस-पास किसी कीड़े के भिनभिनाने की आवाज़ भी सुनी।

उसी समय दीवार के अंत में स्थित दुकान का दरवाज़ा खुला और मालिक श्री लस्साले दहलीज़ पर रुके हुए नज़र आए। वे पतले-दुबले और साँवले रंग के थे। उनकी उम्र तीस वर्ष से अधिक नहीं थी। मालिक ने बढ़िया भूरा सूट पहन रखा था और उनके चेहरे का भाव बेहद सहज था। हालाँकि देखने पर ऐसा लगता था जैसे उनके चेहरे की हड्डी कुल्हाड़ी से तराशी गई हो, लेकिन उन्हें देख कर अक्सर लोगों में सकारात्मक भाव उत्पन्न होता था। जिनके चेहरे से ओजस्विता झरती है, उनके साथ अक्सर ऐसा ही होता है। किंतु दरवाज़े से भीतर आते हुए श्री लस्साले थोड़ा लज्जित लग रहे थे.. उनके अभिवादन का स्वर पहले की अपेक्षा कम प्रभावशाली लगा। कुछ भी हो, सब मौन रहे। किसी कारीगर ने उस अभिवादन का जवाब नहीं दिया। हथौड़ों की आवाज़ें थोड़ा रुकीं, फिर और ज़ोर से दोबारा शुरू हो गईं। श्री लस्साले ने कुछ अनिश्चित क़दम आगे बढ़ाए, फिर वे वैलेरी की ओर मुड़ गए जो बाक़ी कारीगरों के साथ यहाँ पिछले केवल एक वर्ष से ही काम कर रहा था। वैलेरी यवेर्स से कुछ फ़ीट दूर बिजली से चलने वाले आरे के पास अपने काम में व्यस्त था। वह बिना कुछ कहे अपना काम करता रहा। “और भाई,” क्या हाल हैँ ?” युवक अचानक अपनी गतिविधि में बेढंगा हो गया। उसने अपने पास खड़े एस्पोज़ीतो की ओर देखा। एस्पोज़ीतो यवेर्स के पास ले जाने के लिए अपने लम्बे हाथों में तख़्तों का ढेर उठाए हुए था। एस्पोज़ीतो ने भी अपना काम करते हुए बैलेरी की ओर देखा। वैलेरी मालिक के प्रश्न का जवाब दिए बिना पीपे में झाँकता रहा।

उलझन में पड़े श्री लस्साले एक पल के लिए युवक के सामने ही रुके रहे। फिर उन्होंने अपने कंधे उचकाए और मार्को की ओर मुड़े। मार्को अपने तख़्ते पर टाँगें फैला कर बैठा था वह एक पेंदे को धीरे-धीरे, ध्यान से अंतिम रूप दे रहा था। “हल , मार्को , “ श्री लस्साले ने लगभग ख़ुशामद करने वाले स्वर में कहा। मार्को अपनी लकड़ी की बेहद पतली खुरचन निकालने के काम में व्यस्त था, और उसने मालिक के अभिवादन का कोई उत्तर नहीं दिया। “तुम सब लोगों को क्या हो गया है ?” श्री लस्साले ने सभी कारीगरों की ओर मुड़कर ऊँची आवाज़ में पूछा। “ठीक है, हम सहमत नहीं हुए थे। लेकिन यह हमें साथ काम करने से रोक तो नहीं रहा। फिर तुम लोगों के ऐसे व्यवहार का क्या फ़ायदा ?” मार्को ने उठकर पेंदे वाले टुकड़े को खड़ा किया। अपनी हथेली से उसने उस गोल टुकड़े के तीखे किनारे को जाँचा। फिर अपनी झपकती , थकी हुई आँखों में संतोष की झलक दिखलाते हुए वह चुपचाप एक और कारीगर की ओर बढ़ गया , जो टुकड़ों को जोड़ कर पीपा बना रहा था। पूरी दुकान में केवल हथौड़ों और बिजली से चलने वाले आरे के काम करने की आवाज़ गूँज रही थी। “ ठीक है, “ श्री लस्साले ने कहा। “जब तुम सब इस मिज़ाज से बाहर आ जाओ तब बैलेस्टर के माध्यम से मुझे बता देना। “ यह कहकर वे शांतिपूर्वक दुकान से बाहर निकल गए।

इसके लगभग ठीक बाद दुकान के शोर को बेधती हुई एक घंटी दो बार बजी। बैलेस्टर अपनी सिगरेट सुलगाने के लिए अभी बैठा ही था। घंटी की आवाज़ सुनकर वह धीरे से उठा और दुकान के अंत में स्थित दरवाज़े की ओर गया। उसके जाने के बाद हथौड़ों के मार की गूँजने की आवाज़ धीमी हो गई। एक कारीगर ने तो काम करना बंद ही कर दिया था। तभी बैलेस्टर लौट आया। दरवाज़े के पास खड़े हो कर उसने केवल इतना कहा, “ मार्को और यवेर्स , मालिक तुम दोनों को बुला रहे हैं। “यवेर्स की पहली इच्छा तो इससे पीछा छुड़ाने की हुई, लेकिन मार्को ने जाते-जाते उसे बाज़ू से पकड़ लिया और यवेर्स लंगड़ाते हुए उसके पीछे चल पड़ा।

बाहर आँगन में रोशनी इतनी साफ़ थी, इतनी स्वच्छ थी कि यवेर्स ने उसे अपनी अनावृत्त बाँह और चेहरे पर महसूस किया। फूलों के बड़े पौधे के नीचे से होते हुए वे बाहरी सीढ़ियों तक गए। फिर उन्होंने एक गलियारे में प्रवेश किया जिसकी दीवारों पर उपाधि-पत्र टँगे हुए थे। एक बच्चे के रोने की आवाज़ आई। साथ ही श्री लस्साले की आवाज़ सुनाई दी , “ दोपहर के भोजन के बाद इसे सुला दो। यदि इसकी तबीयत फिर भी ठीक नहीं हुई तो हम डॉक्टर को बुला लेंगे।“ फिर मालिक अचानक गलियारे में नज़र आए और वे उन दोनों कारीगरों को मेज़-कुर्सियों वाले उस कमरे में ले गए जिससे वे पूर्व-परिचित थे। उस कमरे की दीवारें खेल-कूद की ट्रॉफ़ियों से सजी हुई थीं। उन्हें ‘ बैठो ‘ कहते हुए श्री लस्साले अपनी कुर्सी पर बैठ गए। पर दोनों कारीगर खड़े रहे।

“मैंने तुम दोनों को यहाँ इसलिए बुलाया है क्योंकि तुम प्रतिनिधि हो, मार्को। और यवेर्स, तुम बैलेस्टर के बाद मेरे सबसे पुराने कर्मचारी हो। मैं पहले हो चुकी चर्चा और वाद-विवाद की बात दोबारा नहीं करना चाहता हूँ। वह बात अब ख़त्म हो चुकी है। जो तुम लोग चाहते हो, वह मैं तुम्हें क़तई नहीं दे सकता।

वह मामला अब निपटाया जा चुका है, और हम सब इस नतीजे पर पहुँच गए हैं कि काम दोबारा शुरू किया जाना है। मैं देख सकता हूँ कि तुम सब मुझसे नाराज़ हो, और मुझे इस बात का दुख है। मैं जैसा महसूस करता हूँ, वैसा ही तुम्हें बता रहा हूँ। लेकिन मैं केवल एक बात और कहना चाहता हूँ : जो मैं तुम सब के लिए आज नहीं कर सकता , वह मैं शायद तब कर पाऊँ जब यह व्यवसाय मुझे मुनाफ़ा देने लगेगा। यदि मैं कुछ कर सका तो तुम्हारे माँगने से पहले कर दूँगा। तब तक हम सब को मिल-जुल कर काम करने की कोशिश करनी चाहिए। “श्री लस्साले ने बोलना बंद किया और वह अपनी ही कही बात पर विचार करते प्रतीत हुए। फिर उन्होंने उन दोनों कारीगरों की ओर देखते हुए पूछा, “ क्या कहते हो ? “ मार्को खिड़की से बाहर देख रहा था। अपने दाँत भींचते हुए यवेर्स कुछ बोलना चाहता था, पर वह कुछ भी नहीं बोल पाया।

“सुनो, “ श्री लस्साले ने कहा, “ मुझे लग रहा है , तुम लोगों ने अपने दिमाग़ के दरवाज़े बंद कर लिए हैं। तुम सब इससे उबर जाओगे। लेकिन जब तुम लोग दोबारा मेरी बात सुनने को तैयार हो जाओ तो मेरी वह बात याद रखना जो मैंने अभी कुछ देर पहले तुम दोनों से कही थी। “वे उठे और मार्को की ओर बढ़ते हुए उन्होंने अपना हाथ आगे बढ़ाया। अचानक मार्को का रंग पीला पड़ गया और एक पल के लिए उसके चेहरे पर कमीनेपन का भाव आ गया। फिर अचानक वह मुड़ा और कमरे से बाहर चला गया। यवेर्स का चेहरा भी पीला पड़ चुका था। उसने मालिक का आगे बढ़ा हुआ हाथ देखा, पर अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाया।

“भाड़ में जाओ !“ वह चिल्लाया।

जब वे दोनों वापस दुकान में लौटे तो बाक़ी के कारीगर दोपहर का भोजन कर रहे थे। बैलेस्टर बाहर जा चुका था। मार्को ने केवल यह कहा , “ लगे रहो, “ और वह अपनी बैठने की जगह पर चला गया। एस्पोज़ीतो ने खाना खाना बंद कर दिया और उनसे पूछा कि उन्होंने मालिक से क्या बातचीत की थी। यवेर्स ने उत्तर दिया कि उन्होंने मालिक की किसी भी बात का कोई जवाब नहीं दिया था। फिर वह अपना थैला लेने के लिए गया और वापस अपने काम करने वाली जगह पर लौट आया। वह अपना खाना खाना शुरू कर ही रहा था जब उसने अपने से कुछ ही दूरी पर सैय्यद को छीलन की ढेर के बीच पीठ के बल लेटा हुआ पाया। उसकी आँखें अनिश्चितता से खिड़कियों की ओर देख रही थीं, जिनकी काँच में आकाश का फीका नीलापन प्रतिबिम्बित हो रहा था। यवेर्स ने उससे पूछा कि क्या उसने अपना भोजन कर लिया है। सैय्यद ने कहा कि उसने अपने अंजीर खा लिए हैं। यवेर्स खाते-खाते रुक गया। श्री लस्साले से होने वाली मुलाक़ात के समय से ही जो बेचैनी उसमें व्याप्त थी , वह अचानक ही जाती रही और उसने उसके बदले एक सुखद उत्साह महसूस किया। उसने अपनी सैंडविच के दो टुकड़े किए और अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ। पर सैय्यद ने सैंडविच लेने से इंकार कर दिया। इस पर यवेर्स ने उससे कहा कि अगले हफ़्ते तक सब बेहतर हो जाएगा। “तब हम सब को खिलाने-पिलाने की बारी तुम्हारी होगी, “उसने कहा। सैय्यद मुस्कुराया। अब उसने यवेर्स से सैंडविच का टुकड़ा ले कर खाया, किंतु संकोच से, जैसे उसे अभी भूख नहीं लगी हो।

एस्पोज़ीतो ने एक पुराना बर्तन लिया और छीलन और लकड़ी के टुकड़ों की मदद से आग जला ली। उसने बोतल में लाई हुई कॉफ़ी आग पर गरम की। उसने बताया कि उसके पंसारी ने उनकी दुकान के लिए खुद बना कर यह तोहफ़ा भेजा , जब उसे हड़ताल के विफल होने का पता चला। वह बोतल एक हाथ से दूसरे हाथ में दी जाती रही। हर बार उसमें से चीनी मिली कॉफ़ी उड़ेली जाती। सैय्यद को खाना खाते समय उतना आनंद नहीं आया था , जितना कॉफ़ी पीते समय आ रहा था। एस्पोज़ीतो ने बाकी बची कॉफ़ी सीधे उस गरम बर्तन में से ही पी ली। वह कॉफ़ी सुड़कने की आवाज़ निकालता रहा और गालियाँ बकता रहा। तभी बैलेस्टर वहाँ आ पहुँचा ताकि वह सभी कारीगरों को वापस काम पर जाने का इशारा कर सके।

जब वे उठ कर अपने बर्तन आदि इकट्ठा करके अपने थैलों में डाल रहे थे, बैलेस्टर आ कर उनके बीच में खड़ा हो गया। उसने अचानक कहा कि यह सब के लिए मुश्किल की घड़ी थी, और उसका भी यही हाल था। किंतु केवल इसीलिए वे सब बच्चों जैसा व्यवहार नहीं कर सकते थे, और नाराज़ हो कर खीझने से कोई फ़ायदा नहीं होने वाला था। हाथ में बर्तन पकड़े हुए एस्पोज़ीतो उसकी ओर मुड़ा। उसका लम्बा , खुरदरा चेहरा अचानक उत्तेजना से लाल हो गया था। यवेर्स समझ गया कि वह क्या कहने वाला था और सभी कारीगर एक ही समय में क्या सोच रहे थे। वे सब नाराज़ हो कर खीझ नहीं रहे थे। उनके मुँह बंद थे। उनके पास और कोई विकल्प नहीं था। कई बार ग़ुस्से और असहायता का भाव इतनी पीड़ा देता है कि आप रो भी नहीं पाते हैं। आख़िरकार वे सभी मर्द थे और ऐसी हालत में वे सभी मुस्कुराने और खीसें निपोरने वाले नहीं थे। लेकिन एस्पोज़ीतो ने इनमें से कुछ भी नहीं कहा। अंतत: उसका चेहरा नरम पड़ गया और उसने बैलेस्टर के कंधे पर धीरे से थपकी दी, जबकि बाक़ी कारीगर अपना काम करने के लिए अपनी-अपनी जगहों पर चले गए।

हथौड़ों के चलने की आवाज़ दोबारा आने लगी। दुकान का बड़ा अहाता चिर-परिचित शोर से भर गया। वहाँ छीलन और पसीने से गीले हो गए कपड़ों की मिली-जुली गंध मौजूद थी। जब एस्पोजीतो ने बिजली से चलने वाले आरे के चीख़ने की आवाज़ सुनाई दी समझ गया कि वह क्या कहने वाला था, और सभी कारीगर एक ही समय में क्या सोच रहे थे। वे सब नाराज़ हो कर खीझ नहीं रहे थे। उनके मुँह बंद थे। उनके पास कोई विकल्प नहीं था। कई बार ग़ुस्से और असहायता का भाव इतनी पीड़ा देता है कि आप रो भी नहीं पाते हैं। अंतत: उसका चेहरा नरम पड़ गया और उसने बैलेस्टर के कंधे पर धीरे से थपकी दी, जबकि बाक़ी कारीगर अपना काम करने के लिए अपनी-अपनी जगह पर चले गए। दोबारा हथौड़ों के चलने की आवाज़ आने लगी। दुकान का बड़ा अहाता चिर-परिचित शोर से भर गया। वहाँ छीलन और पसीने से गीले हो गए पुराने कपड़ों की मिली-जुली गंध मौजूद थी। बिजली से चलने वाले आरे की आवाज़ तब सुनाई दी जब एस्पोज़ीतो ने लकड़ी के तख़्ते को धीरे-धीरे आरे के मुँह में धकेला। जहाँ आरे ने उस तख़्ते को काटा , वहाँ से गीला बुरादा बाहर आया। ऐसा लगा जैसे एस्पोज़ीतो के बालों भरे बड़े हाथ ब्रेड के बारीक टुकड़ों से भर गए हों। उन हाथों ने लकड़ी को कराहते आरे की धारदार फलक के दोनों ओर मज़बूती से पकड़ रखा था। जब तख़्ता कट गया तो केवल आरे के मोटर के चलने की आवाज आती रही।

जब यवेर्स रंदा फेरने के लिए झुका तो उसने अपनी पीठ में तनाव महसूस किया। आम तौर पर थकान बहुत बाद में होती थी। यह स्पष्ट था कि निष्क्रियता वाले इन हफ़्तों की वजह से उससे काम करने का अभ्यास छूट गया था। लेकिन उसे अपनी उम्र का भी ख़्याल आया, जो शारीरिक श्रम को तब मुश्किल बना देती है जब वह कोई सूक्ष्म काम नहीं होता। यह खिंचाव वृद्धावस्था का पूर्वाभास होता है। जहाँ कहीं भी मांसपेशियाँ काम में आती हैं, अंतत: कार्य घृणित हो जाता है। यह मृत्यु से पूर्व की स्थिति होती है, और जिस शाम अत्यधिक शारीरिक श्रम करना पड़ता है, नींद भी मृत्यु की तरह लगती है। लड़का तो विद्यालय में पढ़ाने वाला शिक्षक बनना चाहता था। वह सही था। जो शारीरिक श्रम के बारे में ग़ैर-ज़रूरी घिसे-पिटे विचार व्यक्त करते हैं , उन्हें खुद पता नहीं होता कि वे क्या कह रहे हैं।

जब यवेर्स राहत पाने और इन विचारों से मुक्ति पाने के लिए सीधा हुआ , तो घंटी फिर से बज उठी। वह अजीब ढंग से लगातार बजती रही। कभी वह रुक जाती, कभी उद्धत ढंग से फिर बज उठती। घंटी के इस तरह बजने की आवाज़ सुन कर कारीगरों ने अपना काम रोक दिया। बैलेस्टर पहले हैरान हो कर घंटी के बजने की आवाज़ सुनता रहा। फिर उसने अपना मन बनाया और दरवाज़े की ओर बढ़ा। उसे गए हुए कई पल हो गए थे , तब जा कर अंतत: घंटी के बजने की आवाज़ बंद हुई। कारीगरों ने अपना काम दोबारा शुरू कर दिया। किंतु दरवाज़ा एक बार फिर फटाक्-से खुला और बैलेस्टर सामान रखने वाले कमरे की ओर भागा। वह बाहर पहने जाने वाले जूते पहन कर कमरे से निकला और अपना जैकेट पहनते हुए उसने यवेर्स से कहा, “बच्ची को दौरा पड़ा है। मैं डॉ। जर्मेन को लेने जा रहा हूँ।“ यह कह कर वह दौड़ कर मुख्य दरवाज़े की ओर चला गया।

डॉ। जर्मेन दुकान के कारीगरों की सेहत का ध्यान रखते थे। वे बाहर की ओर स्थित मकान में रहते थे। यवेर्स ने यह ख़बर बिना किसी टीका-टिप्पणी के सबको सुनाई। वे सब उलझन में एक-दूसरे की ओर देखते हुए उसके चारों ओर इकट्ठा हो गए। बिजली से चलने वाले आरे के मोटर के चलने की आवाज़ के अलावा और कुछ भी नहीं सुनाई दे रहा था। “शायद यह कोई बड़ी बात नहीं,” कारीगरों में से एक ने कहा। वे सब वापस अपनी-अपनी जगह पर चले गए। दुकान में दोबारा उनके आपस में बातचीत करने की आवाज़ आने लगी। लेकिन अब वे धीमी गति से काम कर रहे थे, जैसे वे किसी चीज़ की प्रतीक्षा कर रहे हों।

पंद्रह मिनट के बाद बैलेस्टर दोबारा दुकान में आया। उसने अपना जैकेट दीवार पर लगी खूँटी पर टाँग दिया और बिना एक भी शब्द कहे वह छोटे दरवाज़े से हो कर बाहर चला गया। खिड़कियों से आने वाली रोशनी कम होती जा रही थी। कुछ देर बाद जब बीच के समय में बिजली से चलने वाला आरा लकड़ी को नहीं काट रहा था , किसी एम्बुलेंस के सायरन की आवाज़ सुनाई देने लगी। यह आवाज़ पहले दूर से आ रही थी, फिर पास आती गई और अंत में दुकान के ठीक बाहर से सुनाई देने लगी। फिर चारों ओर चुप्पी छा गई। एक पल के बाद बैलेस्टर वापस आ गया और सभी कारीगर उसके पास चले आए। एस्पोज़ीतो ने बिजली से चलने वाले आरे का मोटर बंद कर दिया था। बैलेस्टर ने कहा कि अपने कमरे में कपड़े बदलते समय बच्ची अचानक पलट कर गिर गई थी जैसे उसे रौंद दिया गया हो। “क्या तुमने कभी ऐसी कोई बात सुनी है ? “मार्को ने कहा। बैलेस्टर ने ‘ना‘ में अपना सिर हिलाया और अनिश्चित रूप से दुकान की ओर इशारा किया। पर उसे देखकर ऐसा लगा जैसे इस सारे घटना-क्रम की वजह से वह ‘हिल’ गया था। एम्बुलेंस के सायरन की आवाज़ दोबारा सुनाई दी। वे सब वहीं थे। दुकान में सन्नाटा था। खिड़कियों के शीशों में से होकर पीली रोशनी दुकान के भीतर आ रही थी। कारीगरों के खुरदरे , बेकार हाथ बुरादे लगी उनकी पुरानी पतलूनों के बग़ल में लटके हुए थे।

ढलती दुपहरी में बाक़ी बचा समय भी घिसटता रहा। यवेर्स अब केवल थकान और अपनी छाती पर एक भारीपन को महसूस कर रहा था। वह बातचीत करना चाहता था। लेकिन उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं था। दूसरे कारीगरों का भी यही हाल था। उनके असंचारी चेहरों पर केवल वेदना और हठ जैसा भाव मौजूद था। कभी-कभी ‘ आपदा ‘ शब्द यवेर्स में आकार लेता प्रतीत होता था। लेकिन यह भाव क्षणिक ही था क्योंकि यह तत्काल ग़ायब हो जाता था। यह ऐसा था जैसे कोई बुलबुला आकार लेते ही फूट जाता है। वह घर जाना चाहता था। फिर से फ़रनांदे के पास रहना चाहता था। वह अपनी पत्नी के साथ खुली छत पर समय बिताना चाहता था।

जैसा कि होना ही था, बैलेस्टर ने दुकान बंद करने का समय हो जाने की घोषणा कर दी। सारी मशीनों का चलना रोक दिया गया। बिना किसी जल्दबाज़ी के सारे कारीगर जगह-जगह जल रही आग को बुझाने लगे, और अपने काम करने की जगह पर चीज़ों को व्यवस्थित करने लगे। फिर सभी कारीगर एक-एक करके सामान रखने वाले बंद कमरे में गए, जिसके दूसरे कोने में खुला स्नान-कक्ष था। सैय्यद सबसे पीछे रह गया। दुकान को साफ़ करने और धूल-मिट्टी वाली ज़मीन पर पानी छिड़कने की ज़िम्मेदारी उसकी थी।

जब यवेर्स सामान रखने वाले बंद कमरे में पहुँचा तो उसने पाया कि बालों से भरी देह वाला विशालकाय एस्पोज़ीतो स्नान-कक्ष में नहा रहा था। उसके तौलिये से अपनी देह को रगड़ने की आवाज़ दूर तक आ रही थी। आम तौर पर बाक़ी कारीगर उसे उसके शर्माने की वजह से छेड़ते थे। भालू जैसा विशालकाय और ज़िद्दी एस्पोज़ीतो वाक़ई अपने गुप्तांगों को नहाते समय भी छिपाए रखता था। लेकिन आज इस अवसर पर किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। स्नान करने के बाद अपनी कमर में तौलिया लपेटे एस्पोज़ीतो सबके बीच बाहर आ गया। फिर एक-एक करके सभी कारीगर नहाने लगे। मार्को नहाते समय शोर मचा रहा था। तभी सभी कारीगरों ने पहिये वाले मुख्य द्वार के घर्षण के साथ धीरे-धीरे खुलने की आवाज़ सुनी। श्री लस्साले भीतर आ गए।

उन्होंने वही कपड़े पहने हुए थे जो उन्होंने यहाँ पिछली बार आते समय पहन रखे थे। लेकिन उनके बाल बेहद छितराए हुए थे। वे चौखट पर रुके और उन्होंने उस बड़ी ख़ाली दुकान की ओर देखा। उन्होंने कुछ क़दम बढ़ाए। फिर वे रुके और उन्होंने सामान रखने वाले कमरे और स्नान-कक्ष की ओर देखा। कमर में तौलिया लपेटे एस्पोज़ीतो उनकी ओर मुड़ा। अर्द्ध-नग्न अवस्था में और उलझन में वह कभी एक पैर पर, कभी दूसरे पैर पर अपनी देह का भार डाल रहा था। यवेर्स ने सोचा कि मार्को को कुछ कहना चाहिए। लेकिन मार्को तो नहाने में व्यस्त था। जब एस्पोज़ीतो ने एक क़मीज़ उठाई और उसे फ़ुर्ती से पहनने लगा तभी श्री लस्साले ने सपाट आवाज़ में सबसे ‘शुभ-रात्रि’ कहा और फिर वे छोटे दरवाज़े की ओर चल दिए। जब तक यवेर्स यह सोच पाता कि किसी को उन्हें वापस बुलाना चाहिए, तब तक दरवाज़ा बंद हो चुका था।

यवेर्स ने नहाए बिना अपने कपड़े बदले और सबसे हृदय से ‘शुभ-रात्रि’ कहा। सब ने उसी गर्मजोशी से जवाब दिया। वह तेज़ी से बाहर निकला और उसने अपनी साइकिल उठाई। जब उसने साइकिल चलानी शुरू की तो उसे अपनी पीठ में फिर से खिंचाव महसूस हुआ। ढलती दुपहरी में अब वह सड़क की व्यस्त सड़क पर साइकिल चला रहा था। वह तेज़ी से साइकिल चला रहा था क्योंकि वह जल्दी से अपनी खुली छत वाले घर पर पहुँचना चाहता था। वहाँ वह स्नान करके खुली छत से समुद्र का दृश्य देखना चाहता था , हालाँकि इस यात्रा में समुद्र उसके बग़ल में ही मौजूद था। सायादार चौड़े मार्ग की मुँडेर के उस पार समुद्र अब सुबह जैसा रोशन नहीं था बल्कि काला लग रहा था। लेकिन वह बीमार हो गई उस छोटी बच्ची का ख़्याल अपने ज़हन से नहीं निकाल सका, और रास्ते में वह उसी के बारे में सोचता रहा।

घर पहुँचने पर उसने पाया कि उसका लड़का स्कूल से लौट आया था और वह कोई किताब पढ़ रहा था। उसकी पत्नी फ़रनांदे ने उससे पूछा कि क्या सब कुछ ठीक-ठाक रहा। उसने कोई जवाब नहीं दिया और स्नान करने चला गया। फिर वह खुली छत की छोटी-सी दीवार के किनारे कुर्सी डाल कर बैठ गया। उसके सिर के ऊपर अलगनी पर धुले हुए कपड़े सूख रहे थे और आकाश इस समय पारदर्शी हुआ जा रहा था। दीवार के उस पार कोमल समुद्र पसरा हुआ था। फ़रनांदे पीने का सामान, दो गिलास और जग में ठंडा पानी ले आई। वह अपने पति के बग़ल में बैठ गई। यवेर्स ने उसे पूरी बात बताई। उसने अपनी पत्नी का हाथ अपने हाथों में इस तरह ले रखा था जैसे वे अपनी शादी के शुरुआती दिनों में किया करते थे। अपनी बात ख़त्म करने के बाद भी वह अपनी जगह से नहीं हिला बल्कि वह समुद्र की ओर देखता रहा, जहाँ एक ओर से दूसरी ओर तक गहरी होती शाम का धुँधलका फैलता जा रहा था। रात वहाँ दस्तक दे रही थी। “ओह, यह उसकी अपनी ग़लती है,” उसने कहा। काश, वह फिर से युवा होता और फ़रनांदे भी युवा होती तो वे समुद्र के उस पार दूर कहीं चले जाते।

(अनुवाद - सुशांत-सुप्रिय)
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