ममता की चोरी (नाटक) : सआदत हसन मंटो

Mamta Ki Chori (Play) : Saadat Hasan Manto

पात्र/अफ़राद
मिस्टर भाटिया:
मिसिज़ भाटिया:
गोपाल (गोपू): मिस्टर और मिसिज़ भाटिया का कमसिन लड़का
चपला: गोपाल की उसतानी
डाक्टर:

(पानी में हाथ धोने की आवाज़)
डाक्टर: बच्चे को ज़बरदस्त इनफ़ैकशन हो गई है अगर उस की अच्छी तरह तीमारदारी और ख़बर-गीरी ना की गई तो मुझे अंदेशा है।
चपला: नहीं नहीं। किसी बात का अंदेशा नहीं है। आप मुतमइन रहें डाक्टर साहिब उस की अच्छी तरह तीमारदारी की जाएगी। ये लीजिए तौलिया!
(बच्चा बुख़ार में हूँ हूँ करता है)
चपला: गोपू!गोपू! मैं तेरी उसतानी हूँ बेटा। क्या तू आज सबक़ नहीं पड़ेगा मुझसे और सैर के लिए भी तो जाना है हमें, नहीं नहीं कल चलेंगे। कल तू बिलकुल ठीक हो जाएगा।
डाक्टर: बातें करने से बच्चे को तकलीफ़ होगी।
चपला: बहुत अच्छा डाक्टर साहिब। मैं बातें नहीं करूँगी। पर मैं इस के पास बैठ तो सकती हूँ। ये ख़ुद चाहता है कि मैं इस के पास बैठी रहूं।
डाक्टर: तो भाटिया साहिब जो हिदायात मैं दे चुका हूँ उन पर ज़रूर अमल किया जाये ।
भाटिया: बहुत बेहतर डाक्टर साहिब!
(चलने की आवाज़। फिर दरवाज़ा खुलता है)
मिसिज़ भाटिया: डाक्टर साहिब बताईए। मेरे बच्चे का क्या हाल है। बच जाएगा ख़तरे की कोई बात नहीं? और!ओह!लेकिन ये क्या ज़ुलम है कि मुझे उस के पास जाने से मना किया जाता है (जज़बात की रूह में बह कर) क्या मैं उस की माँ नहीं। क्या वो मेरा बेटा नहीं। वो औरत क़ाएदे के चंद हुरूफ़ पढ़ा कर उस की माँ बन गई है। चंद रोज़ बाग़ में ले जा कर क्या इस औरत के दिल में मामता पैदा हो गई है? मेरी औलाद पर उसे क्या हक़ है। कब तक वो मेरे ही घर में मेरी चीज़ों पर क़ाबिज़ रहेगी। मैं कब तक ये अज़िय्यत बर्दाश्त करती रहूंगी।
डाक्टर: (संजीदगी के साथ) बच्चे की हालत नाज़ुक नहीं है लेकिन वो ख़तरे से बाहर भी नहीं। बहुत एहतियात की ज़रूरत है। हाँ तो भाटिया साहिब मैं अब इजाज़त चाहता हूँ।
मिसिज़ भाटिया: और ये सब एहतियात सिर्फ वही औरत कर सकती है। मैं बिलकुल नाकारा हूँ। महिज़ इत्तिफ़ाक़ है कि मैं उस की माँ हूँ। वर्ना वही औरत उस की सब कुछ है (सिसकियाँ) मैं कितनी दुखी हूँ)
भाटिया: डाक्टर साहिब आपका बहुत बहुत शुक्रिया। उम्मीद है शाम को आप ज़रूर तशरीफ़ लाएँगे।
डाक्टर: एक एक घंटे के बाद दवा देना ना भूलीएगा और वो भाप भी।
भाटिया: आप मुतमइन रहें गोपाल की उसतानी होशयार है उसे सब कुछ याद रहेगा।
(दरवाज़ा खोलने और बंद करने की आवाज़। डाक्टर चला जाता है)
मिसिज़ भाटिया: तुम ये झगड़ा ही ख़त्म क्यों नहीं कर देते। ये नई बिल्ला जो तुमने पाली है इसी के हो रहो और मुझे ज़हर देकर हलाक कर दो। ये रोज़ रोज़ की दाँत कलकल तो ख़त्म हो। मेरा तो इस घर में होना ना होना बराबर है। ये चपला जब से आई है ऐसा जादू उसने तुम पर किया है कि मैं क्या कहूं। अब तो घर में इसी का राज है मैं कौन। तीन में ना तेरह में तसल्ली की गिरह में। तुम तो ख़ैर उस के हो ही गए थे। पर इस मोई ने तो मेरे बच्चे पर भी क़बज़ा जमा लिया है।
अब बताओ, मैं कहाँ जाऊं?
भाटिया: (बड़ी मितानत और ठंडे दिल से) मैं तुमसे बार-बार कह चुका हूँ और अब फिर कहता हूँ कि तुम बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी में मुबतला हो। ये घर-बार सब तुम्हारा है बच्चा भी तुम्हारा है जिस औरत का तुम बार-बार ज़िक्र करती हो वो तुम्हारी नौकर है।
तुम्हारे बच्चे को उसने दिनों में सुधार दिया। अब बीमारी में वो उस की ख़बरगीरी कर रही है इस के लिए तुम्हें उस का शुक्रगुज़ार होना चाहीए।
मिसिज़ भाटिया: तुम उस की वकालत क्यों करते हो? तुम क्यों उस की असल ख़्वाहिशों पर पर्दा डालते हो। क्या ये झूट नहीं कि जब से वो इस घर में दाख़िल हुई है तुम मुझसे बिलकुल बे परवाह हो गए हो। तुम अब मुझसे बात करने के भी रवादार नहीं। और क्या ये झूट है कि बच्चे को लेकर कई कई घंटे तुम इस हिराफ़ा के साथ बाग़ में टहलते रहते हो?। जब वो बच्चे को सबक़ पढ़ाती है तो घंटों तुम उस के पास बैठे रहते हो क्या ये ग़लत है?। क्या ये सब इस चुड़ैल की कारस्तानी नहीं। इस ज़लील औरत को जो फ़ाहिशा से भी बदतर है।
मिसिज़ भाटिया: पारबती। बंद करो इस बकवास को (ग़ुस्से को दबा कर ) तुम! अब मैं तुमसे क्या कहूं। मेरी ज़िंदगी तुमने अजीरन कर दी है।
मिसिज़ भाटिया: (तान आमेज़ लहजे में) मैं तो बहुत सुखी हूँ। मेरी ज़िंदगी तो बड़े आनंद में गुज़र रही है।
भाटिया: भगवान के लिए अब ये मोनहा ठीठी बंद करो।
मिसिज़ भाटिया: ज़ोर सिर्फ़ मुझ पर चलता है लेकिन सुन लो जब तक ये औरत घर में मौजूद है मेरी ज़बान चलती रहेगी। मुझे दुख देने के लिए जब तुम ये औरत यहां ले आए हो तो मैं तुम्हें एक लम्हे के लिए चैन ना लेने दूंगी। और इस औरत। और इस औरत को परमात्मा सज़ा देगा जिसने मेरे बसे बसाए घर को बर्बाद किया है जिसने मेरा पती दिन-दहाड़े मुझसे छीन लिया है।
भाटिया: मैं अब दफ़्तर जा रहा हूँ ज़्यादा बातें करने के लिए मेरे पास वक़्त नहीं तुम चाहो तो दूसरे कमरे में अपने लड़के के पास जा सकती हो।
मिसिज़ भाटिया: मैं नहीं जाऊँगी।
भाटिया: ये और भी अच्छा है।
(दरवाज़ा खोलने और बंद करने की आवाज़। भाटिया चला जाता है मिसिज़ भाटिया चंद लमहात तक इज़तिराब की हालत में टहलती है)
मिसिज़ भाटिया: चपला ! चपला !
(दरवाज़ा खोलने की आवाज़)
चपला: मैंने आपकी आवाज़ सुन ली थी। आपने दूसरी मर्तबा ज़ोर से पुकारा।
गोपू जाग पड़ा।
मिसिज़ भाटिया: फिर सो जाएगा। कोई हर्ज नहीं!
चपला: बड़ी मुश्किल से बेचारे की आँख लगी थी।
मिसिज़ भाटिया: गोपू से तुम्हें बहुत प्यार है?
चपला: जी हाँ!
मिसिज़ भाटिया: क्यों?
चपला: मुझे इस से प्यार है। मैं दिल से इसे चाहती हूँ। क्यों?
इस का मैं आपको क्या जवाब दूं।
मिसिज़ भाटिया: क्या मुझे इस से मुहब्बत नहीं?
चपला: आपको मुझसे ज़्यादा उस का इलम होना चाहीए!
मिसिज़ भाटिया: क्या मैं इस की माँ नहीं?
चपला: आप यक़ीनन इस की माँ हैं।
मिसिज़ भाटिया: तुम उस की क्या होती हो?
चपला: उसतानी जिसको आपने मुक़र्रर किया है।
मिसिज़ भाटिया: मैंने तुम्हें मुक़र्रर नहीं किया। मेरे पति ने तुझे नौकर रखा है ।
चपला: मैं भाटिया साहिब और आप में कोई फ़र्क़ नहीं समझती । मैं आपकी भाटिया साहिब और गोपो तीनों की ख़िदमत-गार हूँ। मेरा काम ख़िदमत करना है।
मिसिज़ भाटिया: जैसी ख़िदमत तुम मेरे पति की कर रही हो। इस से पता चलता है कि तुम अपने फ़न में ज़रूरत से ज़्यादा महारत रखती हो?
चपला: मैं आपका मतलब नहीं समझी।
मिसिज़ भाटिया: मेरे मुँह में भाटिया साहिब की ज़बान होती तो मेरा मतलब फ़ौरन तुम्हारी समझ में आ जाता । तुम!
चपला: फ़रमाईए!
मिसिज़ भाटिया: (लहजा बदल कर) देखो चपला। मैं औरत हूँ । तुम भी औरत हो।
आओ खुल कर बातें करें वो पर्दा उठाएँ जो हमारे दरमियाँ हाइल है।
चपला: आक़ा और नौकर के दरमयान पर्दा ही क्या हो सकता है।
मिसिज़ भाटिया: अंजान बनने की कोशिश ना करो। मैं तुमसे एक इल्तिजा करना चाहती हूँ। मैं तुमसे कुछ माँगना चाहती हूँ। मुझे मांगने दो। इल्तिजा करने दो। देखो जब से तुम इस घर में आई हो मेरी ज़िंदगी बिलकुल अजीरन हो गई है। मेरा पति मुझसे छिन गया। मीर अब बच्चा भी मेरा बच्चा ना रहा। ये सब कुछ तुमने ले लिया। वो तमाम चीज़ें जिनकी मिल्कियत से औरत बीवी बनती है। एक एक करके तुम मुझसे छीन चुकी हो इस घर में जो कभी मेरा था मैं अजनबी मेहमानों की सी ज़िंदगी बसर कर रही हूँ। देखो तुम औरत हो। एक मज़लूम औरत तुमसे भीक माँगती है इस को वो तमाम चीज़ें बख़श दो जो इत्तिफ़ाक़ से तुम्हारे हाथ आ गई हैं।
चपला: (जज़बात पर क़ाबू पा कर) आप!अब मैं आपसे क्या कहूं आप एक शरीफ़ औरत को बदनाम कर रही हैं।
मिसिज़ भाटिया: (चढ़कर) शरीफ़ औरत! आह तुम्हारी शराफ़त। तुम औरत नहीं डायन हो लेकिन मैं पूछती हूँ कब तक तुम इन चीज़ों को अपनी मिल्कियत बनाए रखोगी। जिन पर तुम्हारा कोई हक़ नहीं। कब तक तुम इस घर में फ़साद बरपा किए रखोगी। कब तक!कब तक! कब तक! तुम इन बिजलीयों से बची रहोगी जो आकाश में तुम जैसी ना पाक औरत पर गिरने के लिए तड़पती रहती हैं।
चपला: (कोई फ़ैसला करने के अंदाज़ में) आप क्या चाहती हैं?
मिसिज़ भाटिया: मैं तुम्हारे मुँह पर थूकना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि ये दुनिया तुम्हारे वजूद से पाक हो जाये। मैं चाहती हूँ कि जो दुख तुमने मुझे दिए हैं तुम्हारे हलक़ में हिचकी बन कर अटक जाएं। मैं बहुत कुछ चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि गोपाल मुझे माँ कहे। मेरी बेचारगी देखो कि मैं क्या चाहती हूँ?
चपला: गोपाल की माँ आपके सिवा कौन हो सकती है?
मिसिज़ भाटिया: तुम !तुम! जिसने मेरी मामता पर भी क़बज़ा जमा लिया।
चपला: (मानी-ख़ेज़ लहजे में) मामता चुराई नहीं जा सकती। आपने ख़ुद कहीं खो दी है।
मिसिज़ भाटिया: मैं तुमसे बहस करना नहीं चाहती। एक सौदा करना चाहती हूँ। मुझसे कुछ जे़वरात ले लो और यहां से चली जाओ। उनसे कह देना। मैं अपनी मर्ज़ी से जा रही हूँ।
चपला: क्या इस से आपका इतमीनान हो जाएगा।
मिसिज़ भाटिया: (ख़ुश हो कर) तो मैं तुम्हें ज़ेवर और रुपये ला दूं।
चपला: जी नहीं मुझे उनकी ज़रूरत नहीं। आपने मुझे नौकर रखा और अब निकाल दिया इस में सौदा करने की नौबत ही कहाँ आती है, मैं आज ही चली जाऊँगी और ये अफ़सोस साथ लेती जाऊँगी कि आपने मुझे शक की नज़रों से देखा। गोपाल आप ही का है। परमात्मा करे कि वो तंदरुस्त हो जाये और आपकी गोद हरी रहे।
(क्लाक छः बजाता है)


मिसिज़ भाटिया: (अपनी बीवी को आवाज़ देता है) पारबती!पारबती!
मिसिज़ भाटिया: (रूखेपन से) क्या है?
मिसिज़ भाटिया: चपला कहाँ है। बच्चे को उसने दवा क्यों नहीं पिलाई?
मिसिज़ भाटिया: मुझे क्या मालूम । अपने कमरे में होगी
मिसिज़ भाटिया: क्या कर रही है?
मिसिज़ भाटिया: अंदर जा के देख लो।
मिसिज़ भाटिया: देखता हूँ।
(चलता है और दर्वाज़ह खोल कर दूसरे कमरे में जाता है)
भाटिया: चपला ये तुम क्या कर रही हो। ये अस्बाब वग़ैरा तुमने क्यों बाँधा है?
चपला: मैं जा रही हूँ।
भाटिया: कहाँ?
चपला: जहां से आई थी।
भाटिया: कोइटे में भूचाल के बाद तुम्हारा कौन बाक़ी रहा है।
चपला: कहीं और चली जाऊँगी।
भाटिया: तुमने तो वाअदा किया था कि गोपाल को छोड़कर कभी ना जाऊँगी। जानती हो। वो तुम्हें कितना चाहता है।
चपला: ये उस की ग़लती है। उस को अपनी माँ से मुहब्बत करनी चाहीए।
भाटिया: (थोड़ी देर ख़ामोश रह कर) मालूम होता है उस की माँ से तुम्हारी गुफ़्तगु हुई है लेकिन उस से तुमने ये कहा होता कि माँ को भी अपने बच्चे से मुहब्बत करनी चाहीए।। तुमने उस से ये पूछा होता कि माँ बनने का ख़्याल अब इक्का अक्की उस के दिल में क्यों पैदा हो गया है।
चपला: मैं नौकर हूँ भाटिया साहिब। ऐसे गुस्ताख़ाना सवाल मेरी ज़बान पर कभी नहीं आ सकते।
भाटिया: लेकिन वो औरत!आह! इस औरत ने मुझे कितना तंग किया है। जब तुम यहां नहीं थीं तो वो समझती थी कि मैंने बाहर ही बाहर कई औरतों से ताल्लुक़ात क़ायम कर रखे हैं। अब तुम यहां हो तो अब मैं तुमसे क्या कहूं कि वो क्या समझती है। मैं बहुत शर्मिंदा हूँ चपला कि मेरे घर में तुम्हें एक बेवक़ूफ़ औरत के हाथों दुख पहुंचा है।
चपला: उन्हें शक है!
भाटिया: हर चीज़ को शक की नज़रों से देख देखकर अब वो नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त हद तक शक्की हो गई है। इस की हालत काबिल-ए-रहम है। वो मरीज़ है। वहम उस को मर्ज़ बन के चिमट गया है वो ला-इलाज है। शादी के बाद दूसरे ही हफ़्ते उसने मेहंदी लगे हाथों से मेरा मुँह नोचना शुरू कर दिया था। मैं एक मसरूफ़ आदमी हूँ सारा दिन दफ़्तर में सर खपाता रहता हूँ यक़ीन मानो तुम्हारे यहां आने से पहले मैं घर आते वक़्त डरता था बहुत ख़ौफ़ खाता था। उस की दीवानगी का असर अगर सिर्फ मेरी ज़ात ही पर ख़त्म हो जाता तो शायद मैं बर्दाश्त कर लेता मगर उस की बे वक़ूफ़ियों ने मेरे बच्चे का भी सत्यानास कर दिया। उस की आदात ख़राब हो गईं। मैंने परमात्मा का लाख लाख शुक्र अदा किया कि उसने तुम जैसी देवी को मेरे घर भेज दिया। तुम्हारे आने से मेरी बहुत सी परेशानियाँ दूर हो गईं बच्चे को तुमने सँभाल लिया उस को प्यार मुहब्बत की ज़रूरत थी पर तुम ने दिनों ही में अपना गरवीदा बना लिया। मगर अब तुम जा रही हो।
चपला: जी हाँ। जा रही हूँ!
भाटिया: ठीक है मगर मेरे बच्चे का क्या होगा। वो औरत तो मुझे और उसे दोनों को अपनी हमाक़तों से हलाक कर देगी (वक़फ़ा) तुम नहीं जाओगी। तुम यहीं रहोगी। आख़िर इस घर पर मेरा भी तो कुछ हक़ है मेरे मुँह में भी तो ज़बान है अब तक मैंने अपने इख़तियार से काम नहीं लिया। लेकिन अब मुझे लेना पड़ेगा।
चपला: भाटिया साहिब! आप इस झगड़े को तूल ना दीजिए। मैं नहीं चाहती कि आप में और उनमें मेरी वजह से कशीदगी पैदा हो।
भाटिया: ये कशीदगी अब पैदा नहीं हुई तुम्हारे आने से पहले ही इस घर में मौजूद थी। मैं तुमसे दरख़ास्त करता हूँ कि अभी कुछ देर ठहर जाओ गोपू अच्छा हो जाये तो क्या पता है कि उस की माँ भी समझ जाये। मैं जानता हूँ कि उस की बातों से तुम्हें बहुत दुख पहुंचा होगा और । और तुमको ज़बरदस्ती यहां ठहराने का मतलब ये है कि मज़ीद तौहीन बर्दाश्त करने के लिए तुम्हें मजबूर किया जाये। मगर नहीं चपला। तुम नहीं जाओगी। तुम्हारे इनकार से मुझे सदमा होगा। खोल दो अपना अस्बाब।
(दरवाज़ा खोल कर दूसरे कमरे में चला जाता है)
भाटिया: पारबती तुम्हें ये सुन कर ख़ुशी होगी कि चपला अब नहीं जाएगी। उसने अपना इरादा तर्क कर दिया है।
मिसिज़ भाटिया: (तंज़ भरे लहजे में) मुझे बहुत ख़ुशी हुई है।
भाटिया: और देखो। अगर तुमने उस की तौहीन की या उसे अपनी वहम पसंद तबीयत का निशाना बना ने।
मिसिज़ भाटिया: (तेज़ी से) तो । तो क्या होगा। तुम मुझे धमकाते क्या हो क्या करोगे तुम। मुझे धक्के मारकर बाहर निकाल दोगे। मुझे मार डालोगे क्या करोगे?
भाटिया: मैं एक-बार फिर तुम्हारे लिए दुआ करूँगा।
मिसिज़ भाटिया: मगर तुम इस औरत को नहीं छोड़ोगे उस को हमेशा अपने साथ रखोगे। जो तुम्हारा दिल ना जाने किन अदाओं से मोह चुकी है जो कोटे में भूंचाल ला कर अब इस घर में ज़लज़ला बरपा कर रही है। मगर याद रखो।
भाटिया: बुलंद आवाज़ में ग़ुस्से के साथ) पारबती। इस लिए। बेहूदा बकवास को बंद करो मैं । मैं। कुछ नहीं परमात्मा तुम्हारी हालत पर रहम करे।
(फ़र्श पर इज़तिराब के साथ टहलने की आवाज़)
भाटिया: अब ख़ुश हो गईं। कलेजा ठंडा हो गया। वो औरत जिसने तुम्हारे ख़्याल के मुताबिक़ ना जाने किन अदाओं से मेरा दिल मोह लिया है तुम्हारे बच्चे पर अपनी जान क़रीब क़रीब फ़ना कर चुकी है। उस की ज़िंदगी और मौत में इतना वक़्त भी बाक़ी नहीं कि वो तुम्हारे ज़ुल्मोसितम के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद कर सके। तुम्हें कोई बददुआ ही दे सके।
मिसिज़ भाटिया: मेरा क्या क़सूर है?
भाटिया: तुमने हरवक़त उस की तौहीन की। उस की हर नेकी हर अच्छाई को तुमने अपनी लानती नज़रों से देखा। उफ़ जब मैं इस का तसव्वुर करता हूँ कि तुमने एक पाक और मासूम औरत पर कीचड़ उछाली है तो मेरी आत्मा काँप काँप उठती है। मगर तुम्हारी आत्मा कहाँ है?। तुम्हारा ज़मीर कहाँ है। जाओ जाओ मेरी आँखों से दूर हो जाओ। तुम क़ातिल हो। तुम्हारे हाथ मुझे इस बेगुनाह औरत के ख़ून में आलूदा नज़र आते हैं।
मिसिज़ भाटिया: क्या पता है बच जाये।
भाटिया: अब वो क्या बचेगी। डाक्टर जवाब दे चुका है। अब कुछ नहीं हो सकता। काश ! मैंने उसे उसी रोज़ जाने दिया होता। मेरा इस पर कोई ज़ोर तो था ही नहीं मगर वो मेरे कहने पर रज़ामंद हो गई इस लिए कि गोपू से उसे प्यार था। वो प्यार जो तुम्हारे में होना था। उसे आ गया।
गोपाल: ( रोता हुआ आता है) पिता जी पिता जी। उस्तानी जी कहाँ हैं?
भाटिया: गोपाल जाओ। तुम बाहर खेलो। तुम्हारी उस्तानी बीमार है।
गोपाल: मैं बीमार था तो मेरे पास बैठी रहती थीं। अब मैं उनके पास बैठूँगा। पिता जी!
भाटिया: हाँ हाँ। लेकिन तुम अब बाहर जाओ।
(गोपाल चला जाता है। कुछ वक़फ़े के बाद)
मिसिज़ भाटिया: मुझे इजाज़त हो तो मैं चपला को देखना चाहती हूँ।
भाटिया: इस इजाज़त को ज़रूरत तुम्हें क्यों महसूस हुई। जाओ। देख आओ
मगर तुम्हारे देखे से किया उस का दिल तुम्हारी तरफ़ से साफ़ हो जाएगा। वो ख़राशें जो तुम उस के दिलोदिमाग पर पैदा कर चुकी हो। यूं एक-बार देखने से मिट तो नहीं जाएँगी। जाओ मुम्किन है वो तुम्हें माफ़ कर दे। तुमने उसे बहुत दुख पहुंचाया है मैं तो ख़ैर तुम्हारी हमाक़तों का आदी हो चुका था। मगर एक आफ़त-रसीदा औरत के लिए जो अच्छे दिन देख चुकी हो तुम्हारे हिसटीरिया के दौरे नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त थे।
(वक़फ़े के बाद दरवाज़ा खोलने की आवाज़। मिसिज़ भाटिया)
दूसरे कमरे में जाती है
मिसिज़ भाटिया: चपला !चपला! मैं आई हूँ।
चपला: ( मुरदा आवाज़ में) आईए। आईए। मगर यहां आप किस जगह पर बैठेंगी।
मिसिज़ भाटिया: मैं यहां तुम्हारी चारपाई पर बैठ जाऊँगी। तुम उठने की कोशिश ना करो। लेटी रहो।
चपला: मगर!नहीं!आपको मेरे पास नहीं बैठना चाहीए ये बीमारी बड़ी छूत है। नहीं नहीं आप दूर ही खड़ी रहें और जल्दी बाहर चली जाएं।
मिसिज़ भाटिया: मुझे कुछ नहीं होगा। अगर कुछ हो भी गया तो मुझे अफ़सोस ना होगा। मैं तुमसे माफ़ी मांगने आई हूँ।
चपला: माफ़ी? कैसी माफ़ी। आप मुझे शर्मिंदा कर रही हैं।
मिसिज़ भाटिया: मैंने ग़लतफ़हमी मैं तुमसे कई बार ऐसी बातें की हैं जिनसे यक़ीनन तुम्हें बहुत दुख पहुंचा है। अब सोचती हूँ अगर मैं तुम्हारी जगह पर होती तो मेरे दिल की क्या हालत होती।
चपला: मेरी जगह पर आप होतीं तो। तो ये हालात ना होते। लेकिन आप मेरी जगह पर क्यों होतीं? हर एक आदमी के लिए एक जगह मुक़र्रर है। मेरे लिए यही जगह मुक़र्रर थी जहां आकर मुझे अपनी ज़िंदगी के सबसे बड़े पाप का परायसचित करना था।
मिसिज़ भाटिया: पाप! परायसचित!
चपला: मैं अब सोचती हूँ अगर यहां से मैं उस रोज़ चली जाती तो मेरे मन की मन ही में रह जाती। कोई ज़माना था कि मैं भी आप ही की तरह थी। मेरा पती था जो आपके पति ही की तरह बड़ा शरीफ़ कारोबारी आदमी था। मगर मेरी हसद और बात बात पर शक करने वाली तबीयत का बुरा हो कि मैंने उस को हमेशा परेशान रखा। वो जी ही जी में कुढ़ता था। मैं हर घड़ी उस को जली कटी सुनाती रहती मगर वो चुप रहता। इस को ख़ामोश देखकर मैं समझती। चूँकि ये मुजरम है इस लिए कोई बात उस की ज़बान पर नहीं आती।
मिसिज़ भाटिया: ये तो मेरी ही कहानी है।
चपला: गोपाल जैसा मेरा भी एक बच्चा था और मेरी तरह उस की भी एक उस्तानी थी जिस पर मैं शक करती थी। कई झगड़े हुए मैंने अपने पति और उसतानी दोनों की ज़िंदगी को नरक बना दिया था। और इस का अंजाम ये हुआ कि इस मासूम औरत ने जो मेरे बच्चे को मुझसे ज़्यादा अज़ीज़ समझती थी कुछ खा लिया। और मर गई। इस के बाद भूंचाल आया और बच्चा और उस का बाप दोनों हमेशा के लिए मुझ से जुदा हो गए। लेकिन अब। अब मैं भी उनके पास जा रही हूँ।
मिसिज़ भाटिया: (अशक आलूद आवाज़ में) नहीं नहीं तुम ज़िंदा रहोगी। मैं तुम्हें अपनी बहन बनाके अपने पास रखूँगी। मैं इस वक़्त जब कि मेरी आँखें खुली हैं तुम उनसे ओझल नहीं हो सकती हो।
चपला: मैं बहुत ख़ुश हूँ कि अपनी आत्मा का बोझ हल्का करने के साथ मैंने एक अच्छा काम भी कर दिया । भाटिया साहिब और आप दोनों ख़ुश रहें। आपकी ज़िंदगी परमात्मा करे स्वर्ग बन जाये। लेकिन आप जाईए। ज़्यादा देर यहां ना ठहरीए। ऐसा ना हो।
(आवाज़ डूब जाती है)
मिसिज़ भाटिया: चपला!चपला!
(दर्दनाक सुरों में साज़ बजता है मिसिज़ भाटिया के रोने की आवाज़ आती है।)
(फेड आउट)

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