मजमा (कहानी) : डॉ पद्मा शर्मा

Majma (Hindi Story) : Dr. Padma Sharma

मौत हुई थी इस गाँव में... एक बच्चे की मौत। उस बच्चे को उसका पिता गोपाल और गाँव वाले दफना आये थे। सब अपने-अपने काम में लग गये थे। पर दूसरे दिन गाँव में हलचल मच गयी जब किसी ने आकर ये सूचना दी कि रामू का शव निकाला जायेगा और उसका पोस्टमार्टम होगा।

गोपाल अपने दुःख में डूबा है ऊपर से इस सूचना ने हृदय को और झकझोर दिया है। उसे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि ये सब क्यों हो रहा हैं ? बच्चों का मरना तो यहाँ आम बात है फिर इस बार कौन सी आफत हो गयी ....ये मजमा किसलिये ?

बच्चे की माँ रामरति भी सिकुडी़ सी बैठी है...दुःख में उसका चेहरा डूबा था ...दर्द की चादर समेटे उसकी पनीली आँखें सबको बारी-बारी से देख रही थीं। रामू के मरने का दुःख उसके मातृत्व को भिगो रहा था पर सबके आने से वह अपने गम को भूल गयी। उसके सिर से पल्ला भी कब का हट गया उसे होश ही नहीं। बगल में बैठी महिला ने उसके सिर पर पल्लू सहेजा। उसकी आँखों से आंसू बहकर चेहरे पर सूख गये थे, ऐसा लग रहा था कि हॉर्न बजाती गाड़ियाँ उसके दरवाजे पर आकर रुकीं तो उसका रोना थम गया। जब परिचित या रिश्तेदार आते हैं तब दुःख में अपने आप ही आँसू बहने लगते हैं ..इस समय आँसू भी भला कैसे बहते वो तो अपने ही लोगों को देखकर दर्द बयां करते हैं। सुबह ही कोई आकर खबर दे गया था कि साहब आयेंगे तुम्हारे घर... जरा सलीके से रहना। वे लोग अपना गम भूलकर उन लोगों के आवभगत की तैयारी में लग गये।

अधिकारियों की टीम गाँव के दौरे पर आई...। गाड़ियाँ गाँव में धूल उड़ाती पहुँच गयीं। गाँव में पहले धूल के उड़ते गुबार आसमान में दिखायी देते थे तो गाँववासियों को अहसास हो जाता था कि गौधूलि बेला आ गयी है...चैपाये घर की ओर लौट रहे हैं और उनके खुर से धूल के कण आसमान में उड़कर गुबार पैदा कर रहे हैं। पर अब जिले की गाड़ियाँ धूल उड़ा रही हैं। गाँववालों की धूल तो पहले ही उड़ चुकी है। उनके गाँच का बच्चा खत्म हुआ है ... सब वेदना में हैं।

गाडियाँ उस गाँव में रुकीं। नेता जो पाँच सालों में गाँव का दौरा करने आते थे और वायदे करके भूलना जिनकी फितरत में है, आँखों पर चश्मा चढ़ाये खादी के कुर्ता-पाजामा, जैकेट पहने अपने लाव लश्कर के साथ बड़ी- बड़ी गाड़ियों से उतर रहे हैं। पर उन्हें ये चिन्ता है कि कहीं पैर कीचड़ में न सन जायें और सफेदी में दाग न लग जाये। काले चश्में में वो सिर्फ वही देखना चाहते हैं जो उनके स्वार्थ के लिये काम आता है। जिला मुख्यालय से आये सब लोग मातमी घर में पहुंच गए।

खटिया डाल दी गयी ..। बच्चे के पिता गोपाल को सांत्वना देने का सिलसिला शुरु हो गया। उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे समझाया जा रहा है।
‘‘तुम्हें कब पता लगा कि वो मर गया है ?’’
‘‘साब कल दुफरिया में घरवाली की गोद में ही सर रखकर लेटा था, अचानक... उसने हिलना डुलना बन्द कर दिया तो जनीं को कुछ शक हुआ...
उसने मुझे आवाज दी... मैं दौड़कर उसके पास पहुँचा..’’ कहकर उसने अपनी नम आँखों को अपने कंधे पर पड़े गमछे से पौंछा।
‘‘ वो कब से बीमार था ? ’’ किसी अधिकारी ने पूछा
‘‘ नई साब वो बीमार नहीं था ’’ गोपाल ने प्रतिरोध किया
‘‘अरे कहने का मतलब है वो कितने दिनों से खटिया पर लेटा था...मतलब बाहर आना-जाना बन्द कर दिया था।’’
‘‘कमजोरी की वजै से वो आ जा नहीं पा रहा था’’
‘‘ हाँ-हाँ बात वही है बीमारी मे भी तो कमजोरी आ जाती है’’
अप्रत्यक्ष रूप से यही समझाया जा रहा है कि खाने की कमी (भोजन) से ये मौत नहीं हुयी। वह तो कई दिनों से बीमार चल रहा था।
‘‘आंगनबाड़ी से सामान लेने नहीं जाते तो मरो भूखों ’’ एक कर्मचारी ने डपटकर कहा
वह घिघियाते हुए बोला, ‘‘साब केन्द्र तो कबका बन्द पड़ा है’’

दबी जुबान में अधिकारियों को पता चला कि वो केन्द्र सरपंच की बहू के नाम है जो अमूमन शहर में रहती है और सारा सामान भी वहीं पहुँचता है।मातमी परिवार को आर्थिक सहायता राशि का भी प्रस्ताव दिया गया। गोपाल को लग रहा था कि सब दिखावा हो रहा है, सब जमीनी हकीकत से दूर हैं। सब अधिकारी और नेता अपनी-अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं। सब एक दूसरे पर इसकी जिम्मेदारी थोप रहे हैं।

शोक संतप्त घर में जब बड़ी हस्तियाँ बैठने आती हैं तो अखबारी सुर्खियाँ बन जाती हैं। अधिकारी गोपाल से बात कर रहे हैं...कुछ फ्लैश भी चमकते हैं ... रिकॉर्डिंग हो रही है...पत्रकार टी व्ही के चैनल वाले फोटो खींच रहे है। गोपाल ने देखा कि उसके बहनोई फेरन पंचायती चुनाव में उससे बुराई मानकर बैठे थे, वो भी आज आ गये हैं और न्यूज चैनल वालों को अपने बयान दे रहे हैं। सब लोग जाने लगे तो गोपाल के रिश्तेदार और गाँव वाले टी व्ही पर दिखायी जाने वाली इस न्यूज का समय और तारीख पूछ रहे थे जिसमें वे सब खुद को देख सकें।
गोपाल को लग रहा था मौत पर मेला लगा हुआ है...

गोपाल नौवीं कक्षा तक गाँव के ही स्कूल में पढ़ा था। वह शहर भी गया कि कोई छोटी-मोटी नौकरी मिल जाये। उसमें तो वो कामयाब नहीं हुआ अलबत्ता उसकी बोली बानी और रहन-सहन में जरूर बदलाव आ गया। आखिर उसे वापस गाँव आना पड़ा।

रात में खटिया पर लेटा वह सोच रहा था... गलती तो उसकी भी है.. घरवाली को पेटभर खाना नसीब नहीं हो पाता...जब वो ही नहीं चेत पाती तो बच्चे भी कमजोर ही पैदा होंगे। और फिर उस पर हर साल पैर भारी होना... घर, परिवार और रामरति सब पर बोझ..।

अभी कुछ दिन पहले ही तो शहर से अधिकारी आये थे और कई बातों की खोज बीन करके ले गये थे। हुआ यों था कि ....शहर से एक आदमी और विदेशी आए थे। गाँव में उस बरगद के पेड़ को देखने जो बरसों पुराना है। गाँव के बच्चों के साथ रामू भी खेल रहा था। अचानक उसे चक्कर आया तो उन लोगों का ध्यान इन बच्चों और रामू पर गया। उन लोगों ने रामू व अन्य बच्चों की तस्वीरे खींचीं। ये तो तब पता चला जब इनकी फोटो अखबार में छपी। साथ में एक बड़ी खबर थी जिसके ऊपर लिखा था कवर स्टोरी। उसे वो पूरा पेज याद सा हो गया था क्योंकि इस खबर में उसके बच्चे की फोटो थी और वो खबर उसने गाँव के बुजुर्गों को कई बार पढ़कर सुनायी थी, आखिर वो पढ़ा लिखा था। खबर इस प्रकार थी-

‘‘भारत दुनिया के सुपर पावर क्लब मे अपना स्थान बनाने की हैसियत रखता है दूसरी ओर इसकी गिनती सर्वाधिक भुखमरी और कुपोषणग्रस्त देशों में होती है। हम विश्व की सबसे चमकदार अर्थव्यवस्थाओं में से एक हैं पर यह सबसे बड़ी त्रासदी है कि कुपोषण से हर साल लाखों लोग मरते हैं। संयुक्त राष्ट्र की मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट लगातार यह कह रही है कि भारत में बच्चों और महिलाओं में कुपोषण की स्थिति अनेक निर्धन अफ्रीकी देशों से भी ज्यादा है। यह राष्ट्रीय नहीं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर शर्म की बात है। जब भूख और गरीबी राजनीतिक एजेंडे की प्राथमिकता नहीं होती तो बड़ी तादाद में कुपोषण सतह पर उभरता है। सेव दा चिल्ड्रन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में रोजाना पांच हजार से भी अधिक बच्चे कुपोषण के चलते दम तोड़ देते हैं। ये हालात तब हैं जब देश में पर्याप्त अनाज है पर उचित भंडारण के अभाव में सढ़ रहा है। लोग बड़े-बड़े दावे करते हैं कि कुपोषण की समस्या से निजात मिल गयी है। इस परिदृश्य में शिवपुरी जिले के वलाला गाँव की हालत देखकर सारें आंकड़े झूठे लगते हैं, इस गाँंव में इतने कुपोषित बच्चे मिले हैं कि विश्वास करना मुश्किल है, जहां नजर जाती है वहीं हड्डियों के ढाँचे को ढोता कोई बच्चा गांव की गलियों में दिख जाता है। कुपोषण से निबटने के लिये ठोस रणनीति बनानी होगी।’’

समाज की कोई हलचल या घटना जब मीडिया के पास पहुँचती है तो वो खबर बन जाती है और अगर वह ठीक तरह से छप जाये., तो वो हंगामा खड़ा कर देती है और यही इस रपट के साथ हुआ। खबर चैंकाने वाली थी। रातों रात सबकी नींद हराम हो गयी-राजधानी में बैठे राजनैतिज्ञ, आला हुक्काम... सबकी। निर्देश मिले कि अब जिला स्तर के अधिकारी तुरन्त बलाला गाँव पहुँचें। इतनी रातें आला अधिकारियों ने सोते गुजारी थीं अब उनके जगने की बारी थी।

स्वास्थ्य महकमे और प्रशासन विभाग की ़गाड़ियाँ गाँव में तफसील करने और जानकारी लेने के लिये चल पड़ीं। आगे की सीट पर आला अधिकारी और पीछे उनके मातहम कर्मचारी ...। स्थानीय नेता और विधायक की गाड़ियाँ भी हिचकोले खातीं रास्ता नाप रही हैं। इन सब पर नजर रखे हुए मीडिया की लाठी। उनकी भी गाड़ी घुरघुराती हुई सड़को को पीछे छोड़ती जा रही थी।

पूरे गाँव में हड़कम्प मच गया था। डॉक्टरों की पूरी टीम भी साथ थी। इन लोगों ने रामू व कई बच्चों की जांच की। एक-एक कर उनका वजन तौला गया... उम्र के हिसाब से गाँंव के कई बच्चों का वजन कम निकला।
वहाँ आये सब अफसर अलहकारों ने अपने-अपने तरीके से बच्चों से सवाल किये...
‘‘तुम्हारा वजन कम क्यों है? ’’
‘‘दिन में कितनी बार खाना खाते हो ?’’
‘‘ खाने में क्या लेते हो.. ’’

गोपाल रामू को गोद लिए थरथर कांप रहा था, उसे लग रहा था रामू को चक्कर आ जाने की वजह से कोई भारी बखेड़ा खड़ा हो गया है। उसने सुना डॉक्टर कह रहे थे- ‘‘कुपोषण’’ हो सकता है।’’

इस शब्द को उसने अखबार में भी पढ़ा था और अब सुन भी रहा था। उसने कई लोगों से पूछा था इसका अर्थ, सबने अलग- अलग उत्तर दिया-‘‘बच्चों को उनकी उम्र के हिसाब से उस मात्रा में भोजन न मिलने से शरीर में स्थायी कमजोरी आती है, जो कुपोषण में तब्दील हो जाती है..’’

‘‘पौष्टिक आहार की कमी के कारण शरीर का विकास रुक जाता है जिससे शारीरिक दुर्बलता आती है और शरीर एक ढांचे के रूप में दिखने लगता है, जिसमें केवल हड्डियाँ दिखती हैं यही कुपोषण है।’’
‘‘अच्छी तरह से पोषण न होना ही कुपोषण है, यानी कि कृषकाय होना कुपोषण है।’’
पर गोपाल को संतुष्टि नहीं हुई। उसने गाँव के मास्टर जी से भी पूछा कि ये कौन सी बला है। मास्टरजी ने बताया था-

‘‘दरअसल यह एक अल्पपोषित कारक है जो अपर्याप्त या असंतुलित भोजन के कारण उत्पन्न होता है। जब हमारे शरीर को सही मात्रा में विटामिन्स, मिनरल्स, कार्बोहाइडेट्स, प्रोटीन जैसे अन्य पोषक तत्व नहीं मिल रहे होते हैं, जिनकी हमारे अंगों को जरूरत होती है, तब रक्त एवं ऊतकों, पोषक तत्वों के स्तर में परिवर्तन होता है और व्यक्ति बीमार हो जाता है। वही कुपोषण में तब्दील हो जाती है।’’
मास्टरजी ने कई उदाहरण देकर उसे संतुष्ट कर दिया।

उसके यहाँ ये पहली मौत तो थी नहीं इसके पहले भी वह अपने दो बच्चों को खो चुका था। वह किसके सामने अपना दुखड़ा रोए। दो साल पहले सरपंच के भण्डार में क्विंटलों गेहूँ सड़ गया था पर उसने उसे हम लोगों में बांटा नहीं था।
सोचते-सोचते उसे नींद आ गई।

सुबह दस बजे के लगभग गाँव में पानी के बड़े-बड़े टेंकर आ गए थे। संग आये कर्मचारी साबुन बांट रहे थे और कह रहे थे, ‘‘ तुम सब अच्छी तरह से नहा धो लो। कपड़े बगैरह भी साफ कर लो।’’ साबुन और भोजन के पैकेट बांटते हुए लोगों ने फोटो खिंचवाए। पीछे एक बैनर भी लगा थ, जिस पर किसी संस्था का नाम लिखा था।

दवाइयाँ वितरित की जाने लगीं... कमजोर बच्चों को एन आर सी में भर्ती कराया गया....प्राथमिक स्वास्थ्य खोलने के लिये चबूतरे बनवाये गये। मेले जैसा माहौल था। जहाँ जिन्दगियों की सुध नहीं ली जाती वहाँ मातम पर चहल पहल थी। पीने के पानी को जो लोग मोहताज थे, जिनके चैपाये भी पानी को तरसते थे ... आज उनके नहाने के लिये टेंकर आ रहे थे। दवाइयाँ, दलिया, सोयाबीन और मक्का आदि बांटी जा चुकी थीं। नाइयों की खोज शुरु हो गयी थी...ढूँढ-ढूँढकर बाल काटने बालों को लाया गया...जिन्होंने ये काम छोड़ दिया था, उन्हें भी इस काम में लगा दिया गया। कई लोगों के बाल और नाखून भी काटे गए।... और चोरी छिपे कण्डोम भी बंटे।

गोपाल और गाँववाले आश्चर्य में थे, ये मेहरबानी गाँवबालों पर क्यों हो रही है। वह यह सब मास्टर जी से जानने स्कूल की ओर चल दिया। वहाँ का दृश्य देखकर तो वह और भी हतप्रभ रह गया। गाँव के स्कूल में बने खेल मैदान में पचास फिट के गोल घेरे में तीन फिट गहरा गड्ढा खोद दिया गया है।

वह बदहवास सा मास्टरजी के पास जा पहुंचा और पूछा-‘‘मास्टरजी ये सब क्या हो रहा है ?’’
‘‘हैलीपैड बन रहा है’’
‘‘क्यों ’’
‘‘ राजधानी से बड़े अधिकारी गाँव का दौरा करने आ रहे हैं।’’
‘‘तो ... वो तो बस या ट्रेन से आयेंगे, स्कूल से क्या लेना देना...’’
‘‘ उन्हें वापस भी जाना है, उनके पास समय कम है इसलिए हैलीकॉप्टर से आ रहे हैं। ....हैलीकॉप्टर उतरने के लिए हैलीपैड की आवश्यकता है सो इस काम के लिए सबसे अच्छी जगह इन लोगों को स्कूल के खेल का मैदान लगा। ’’
गोपाल निरीह सा मैदान की ओर देखने लगा।

सबसे नीचे लाल मुरम डाली गई जिसे वजनदार दुर्मट से कूटा गया ...फिर गोल पल्थर डाले गय,े जिन्हे कूटा गया और इसके बाद गिट्टी और मुरम की कई पर्त बिछा कर ऊपर तक लाया गया। जमीन पर रोलर चलवाया जा रहा था और उस जमीन को मजबूत करने के प्रयास हो रहे थे ताकि वो अधिकारियों का बोझ सहने के लिये तैयार हो जाये। बीच मे तीस फिट के घेरे मे सीमेंट की मोटी पर्त का मसाला फैलाया गया और चिकना पलस्तर किया गया, बाहर के साठ फिट के घेरे में गोबर की मोटी लिपाई की गई जिससे कि धूल न उड़े और इस तरह से नब्बै फिट के घेरे मे हैलीपेड बन कर तैयार हुआ।

बारात आनी हो या मंत्रियों का लाव लश्कर तैयारियाँ पहले से कर ली जाती हैं। इतनी सजधज और चकाचैंध पैदा की जाती है कि असलियत अन्दर ही दबकर रह जाती है। गाँव में काफी मजमा लगा रहा। सबके मन में उत्सुकता है कि बड़े साहब राजधानी से आ रहे हैं। बच्चे जिन्होंने रेल को ही अच्छी तरह से नहीं जाना वो हैलीकॉप्टर पास से देखेंगे। गोपाल के मन में आशा की किरण जगने लगी, उसे लगने लगा कि अब जरूर उनकी परेशानियों का अन्त हो जायेगा।
और वो दिन भी आ गया...

आसमान में तेज आवाज करता हेलीकॉप्टर मंड़राने लगा। लोगों की निगाहें आसमान पर थीं। गाँव का चक्कर लगाता हेलीकॉप्टर धूल उड़ाता हुआ हेलीपेड पर उतरा।

हेलीकॉप्टर में से अधेड़ उम्र का प्रदेश के सबसे बड़ा अफसर नीचे उतरा और आँख पर हथेली लगाकर चारों ओर देखता हुआ उस तरफ बढ़ा, जहाँ जिले के कलेक्टर व अन्य अधिकारी खड़े थे। एस पी कलेक्टर ने गुंलदस्ते से अफसर का स्वागत किया और उन्हे अस्थायी रेस्ट की हाउस तरफ ले चले। पानी के दो घूंट गले में डाल कर आला हुक्काम ने गाँव का दौरा करने की इच्छा व्यक्त की । अफसरों ने पटवारी को इशारा किया तो लपक के वह रास्ता दिखाने लगा। अफसरों की भीढ़ गाँव के रास्तों पर चलती रही, बीच में एक दो जगह रुककर आला हुक्काम ने सामने खड़े गाँव वाले से उसकी माली हालत के बारे में जानकारी ली। महिलाएँ अपने कमजोर बच्चों को गोद में लिए खड़ी थीं। मातमी घर में भी वो मिलने गए। गाँव का निरीक्षण किया।

आला हुक्काम ने निर्देश दिये कि बलाला सहित आस पास के गांवों में सामुदायिक पोषण पुनर्वास केन्द्र (एन आर सी)खोले जायेंगे, जिनमें तय समय के हिसाब से पोषक आहार बच्चों को दिया जायेगा। ....साफ-सफाई से न रहने के कारण कुपोषण फैलता है इसलिये इनकी साफ-सफाई पर ध्यान दिया जायेगा, शौचालय भी बनेंगे... इन्हें हाथ धोने के तरीके भी सिखाने होंगे ... स्कूल में भी साफ सफाई का ध्यान रखा जायेगा। ... एक संस्था इन लोगों को फ्री में साबुन देगी। हर तरफ झांकी सी सजी थी।

गोपाल उधेड़बुन में था उसे एक बात समझ नहीं आ रही थी कि.. साबुन से ही कुपोषण का सफाया होगा...और ... हाथ धोने के बाद वो खायेंगे क्या ? और जब खाएंगे ही नहीं तो शौचालय का क्या महत्व ?... आंगनबाड़ी में ही भोजन नहीं मिल रहा तो सामुदायिक केन्द्र में देखभाल कैसे होगी, इन जगहों पर काम करने वाले ईमानदारी से काम नहीं करते। कहीं भूख है तो कहीं खाने की बर्बादी है।

राजधानी का अफसर हैलीकॉप्टर में जा बैठा। हैलीकॉप्टर उड़ते ही कुपोषण को समाप्त करने के लिये अधिकारियों-कर्मचारियों के माथे पर आयीं चिन्ता की लकीरें और पसीने की बूँदें भी साथ में उड़ गयीं। अधिकारी आये और चले भी गये। जितने दिन उनकी तैयारी में लगे उतने घण्टे भी न रुक पाये। जब तक बड़े साहब रुके सारे अधिकारी हाथ बांधे, सांस साधे खड़े रहे।

गोपाल अपने घर की तरफ चल दिया। उसने आला अधिकारियों से जो उम्मीद लगा रखी थी वो धराशायी हो गयी। चिन्ता की लकीरें और पसीने की बूंदे अब उसके माथे पर झलक रही थीं। उसे लगने लगा था कि कोई भी अधिकारी आ जाये इसका कोई अन्त नहीं।