माँ की सीख : सिक्किम की लोक-कथा

Maan Ki Seekh : Lok-Katha (Sikkim)

एक किसान के दो बेटे थे—मिंगमा और उर्गेन। मिंगमा सीधा-सरल स्वभाव का था, जबकि उर्गेन बड़ा नटखट और मजाकिया। उर्गेन छोटा था, इसलिए उसके हँसोड़ स्वभाव का सभी लोग आनंद लेते। ऐसे ही समय बीत रहा था। वे बच्चे से बड़े होने लगे। लेकिन उर्गेन के स्वभाव में उम्र बढ़ने से भी कोई अंतर नहीं आया। एक दिन अपना सबकुछ छोड़ उनके पिता स्वर्ग सिधार गए। मिंगमा के ऊपर घर की सारी जिम्मेदारी आ गई। खेतों की जुताई-बुवाई करना, जानवरों की देखभाल, उनके चारे की व्यवस्था करना, गौशाला की सफाई करना, एक साथ कई काम अब उसके कंधों पर आ गए थे, जिसे दिन भर करते-करते वह बहुत थक जाता। बड़े बेटे पर कार्यों का बोझ देखकर माँ परेशान होती। एक दिन उन्होंने उर्गेन को बुलाकर समझाते हुए कहा, “देख बेटा, तुम्हारा बड़ा भाई काम के बोझ में दबा रहता है! इस घर के कार्यों के प्रति तुम्हारा भी कुछ फर्ज बनता है। वह घर और बाहर के कार्यों में इतना व्यस्त रहता है, उसके पास उठने-बैठने तक की फुरसत नहीं है, इसलिए उनके कार्यों में से कुछ की जिम्मेदारी तुम अपने हाथों ले लो। काम न करके यहाँ-वहाँ घूम–घामने से तुम्हारा जीवन कब तक चल पाएगा?”

माँ की बातों को सुनकर उर्गेन ने कहा, “माँ, मुझे यह काम करना ठीक नहीं लगता। भाई इन कार्यों को भलीभाँति कर लेते हैं, इसलिए उन्हें करने दो। फिर तुम तो जानती हो, पिताजी भी तो अकेले इन कार्यों को करते थे। उन्होंने तो कभी इस तरह की कोई शिकायत नहीं की थी?”

माँ को अपने बेटे से बहस करना ठीक नहीं लगा। उन्हें लगा कि एकाध दिन में शायद समझ जाए, इसलिए उन्होंने बात को वहीं छोड़ दिया।

एक दिन घूमकर उर्गेन घर लौटा, बाहर से ही जोर से आवाज लगाते हुए कहने लगा, “माँ, बहुत जोरों की भूख लगी है, भात परोस दो।”

उसके इस व्यवहार से माँ को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने कमरे के भीतर से कहा, “हूँ...तुम्हारी कमाई रखी है यहाँ? पहले कुछ कमाकर दिखाओ, उसके बाद हुक्म चलाना।”

अपनी सरल-सहज माँ के मुँह से ऐसी बात सुनकर उर्गेन को यकीन नहीं आया; क्योंकि आज से पूर्व उसने अपनी माँ को कभी इतना क्रोधित नहीं देखा था। उसकी सारी भूख जाती रही। उसका सारा उत्साह भी जाता रहा। उसे लगा, जैसे माता-पिता का प्रेम भी बच्चों की कमाई पर निर्भर करता है, वरना माँ ऐसी बात क्यों कहती? उसका मन बड़ा उदास हो गया। उसे ध्यान आया, भैया के घर लौटने पर माँ कितना गरम-गरम खाना परोसती है! भाई को गरम-गरम भोजन प्यार-दुलार के साथ और मुझे जली-कटी! अब उसका दिल घर पर रहने का नहीं हुआ। उसने अपने कंधे पर कंबल डाला और घर से निकल पड़ा।

माँ का मन भी दुःखी था कि उसे सख्ती से पेश आना पड़ रहा है, पर उसके पास अन्य उपाय भी नहीं था। उसने सोचा, उर्गेन खेतों की ओर जाएगा। सूर्यास्त के समय जब मिंगमा घर लौटा तो भाई के विषय में पूछा, “आज उर्गेन ने खेतों में क्या किया?”

भाई ने कहा, “वह खेतों की ओर आया ही नहीं, कुछ करने का तो सवाल नहीं उठता।”

मिंगमा के मुख से ऐसा सुनते ही माँ का दिल बहुत ज्यादा घबराने लगा। उसे कुछ अच्छा नहीं लगा। अपने बड़े बेटे को भात परोसकर उसका खाने का मन न हुआ तो वह बाहर निकल पड़ी और यहाँ-वहाँ झाँकने लगी। परेशान माँ इधर-उधर झाँक आई। किसी ने कहा, दोपहर उसे देखा था, पर इस बीच फिर नहीं देखा। अपने बेटे को न पाकर माँ का मन निराश होने लगा। उसे अपने पर ही गुस्सा आने लगा।

उधर उर्गेन पहाड़ी की ओर जा रहा था। रास्ते में उसने संतरेवाले से चार संतरे ले लिए थे। अब तक उसका गुस्सा शांत हो चुका था और भूख बहुत बलवती। उसने चारों संतरों को निकाला और अपने आप से बात करते हुए कहने लगा—‘पहले मैं एक खाऊँगा, अगर पेट न भरा तो दूसरा खाऊँगा, तब भी पेट न भरा तो तीसरा, इसी तरह सभी खा जाऊँगा।’ उसकी बातों को वहीं पहाड़ के नीचे रहनेवाला कोई और भी सुन रहा था। पहाड़ के नीचे बना गुफा में हिम मानव अपनी पत्नी और बच्चे के साथ था। वह मानवों की भाषा जानता था। उसे लगा, ऊपर बैठा मानव उसे और उसके परिवार को खाने की बात कर रहा है। भयभीत होकर उसने अनुनय भरे शब्दों में विनती की—“कृपया मेरे परिवार को किसी तरह की कोई हानि न पहुँचाएँ, मैं इसके बदले में आपको एक जादुई छड़ी दूँगा। यह आपकी केवल भूख नहीं, वरन् आप इससे जो भी मागेंगे, वह सब आपको मिल जाएगा। यह आपको माला-माल कर देगी।” इतना कहकर उसने गुफा से एक छड़ी ऊपर फेंकी और कहा, “इसे घुमाते ही आप जो कहेंगे, वह आपको मिल जाएगा।”

उर्गेन ने छड़ी को पकड़ा और साहस करके कहा, “ज्यादा मेरे साथ चालाकी नहीं करना, वरना ठीक नहीं होगा”, इतना कहकर वह वहाँ से भाग निकला। असल में वह उस अज्ञात प्राणी की आवाज से ही बहुत घबरा गया था, इसलिए वहाँ से तुरंत भाग गया।

शाम ढल चुकी थी, उर्गेन का घर पहुँचना आसान नहीं था, इसलिए बुआ का घर वहाँ से करीब पड़ता था, वह वहीं चला गया। फुफेरे भाई को देखकर उर्गेन ने छड़ी की सारी कहानी कह सुनाई। छड़ी की जादुई ताकत को सुनकर फुफेरे भाई का मन बड़ा ललचा गया। वह उसे पाने की योजना बनाने लगा। रात को थके-हारे उर्गेन ने जैसे ही सिरहाने अपना सिर रखा, तुरंत खर्र-खर्र कर वह खर्राटे भरने लगा। फुफेरे भाई ने इस अवसर का लाभ उठाया और सिरहाने पड़ी उसकी छड़ी को उठा लिया। बाहर आकर जैसे ही उसने छड़ी से अशर्फियों की माँग की, तो अशर्फियों की बरसात होने लगी। अशर्फियों की खनकती आवाज से उर्गेन के जग जाने के भय से उसने तुरंत छड़ी को बंद करने का आदेश दिया। छड़ी पाकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने उस छड़ी के स्थान पर दूसरी छड़ी रख दी।

अगली सुबह अपनी छड़ी को उठाए उर्गेन बहुत तेजी से अपने घर को चला और मन-ही-मन वह कल्पना करने लगा कि माँ छड़ी के चमत्कार देखकर उससे कितना खुश हो जाएगी! स्थिति दुबारा पहले सी सामान्य हो जाएगी। ऐसी कल्पना करते हुए घर के बाहर से ही चिल्लाते हुए माँ को आवाज देने लगा। घबराकर माँ बाहर निकली। रात भर उर्गेन के न लौटने से माँ बहुत चिंतित थी, उसे देख उनकी साँस में साँस आई। उर्गेन को पुनः बचकानी हरकत करते देख माँ बहुत निराश हो गई और जब छड़ी ने भी उसके अनुसार कोई परिणाम नहीं दिखाया तो उर्गेन अपनी माँ की नजरों में और ज्यादा निकम्मा हो गया। वह लौटकर उसी पहाड़ पर गया। उसके आने की आहट से हिम मानव घबरा गया। उर्गेन ने सारी बात कह सुनाई कि यह छड़ी जादुई नहीं है, तुमने मेरे साथ चालाकी की है। हिम मानव बहुत विनीत भाव के साथ कहने लगा कि “मैंने कोई चालाकी नहीं की है। हिम मानव ने उर्गेन से पूछा, “आप छड़ी लेकर सीधे कहाँ गए थे? एक बार वहीं जाकर इस बात की जाँच कीजिए, आज मैं पुनः आपको एक और छड़ी दूँगा, जो आपको तमाशा दिखाएगी।” उर्गेन उस छड़ी को लिये अपनी बुआ के यहाँ गया। आज भी उर्गेन के हाथों एक और छड़ी को देखकर फुफेरे भाई का जी ललचाने लगा।

उर्गेन को देखकर वह बहुत घबरा भी गया था, परंतु उर्गेन का व्यवहार अपने प्रति सामान्य देखकर वह निश्चिंत हो गया और उस नई छड़ी के संबंध में जानने की जिज्ञासा व्यक्त करने लगा। पिछले दिन की भाँति छड़ी को अपने सिरहाने रखकर जब उर्गेन सो गया, तो फुफेरे भाई ने उसे चुपचाप उठा लिया और उसको तमाशा दिखाने का आदेश दिया। आदेश का तुरंत पालन हुआ और वह छड़ी फुफेरे भाई के ऊपर छड़ियों की बरसात करने लगी। उसके दर्द से चिल्लाने पर बुआ और उर्गेन की नींद में खलल पड़ गई। बुआ ने अपने बेटे की हालत देखकर उर्गेन से मदद माँगी। उर्गेन को बात समझते देर नहीं लगी। उसने तुरंत कलवाली छड़ी की माँग की। मार से मुक्त होने के लिए वह तुरंत छड़ी ले आया। उर्गेन अपनी जादुई छड़ी लेकर घर लौटा। अपनी माँ को जब उसका जादू दिखाया तो माँ बहुत खुश हुई। माँ ने कहा, “अगर मैं तुम्हें नहीं डाँटती तो तुम यह सब कैसे प्राप्त करते?” तब माँ ने उर्गेन से कहा, “माता-पिता बच्चों के दुश्मन नहीं, उनके शुभचिंतक होते हैं। उन्हें सही राह दिखाने के लिए कभी-कभी उन्हें कटु होना पड़ता है।” उर्गेन अपनी माँ की बातों को समझ गया था। अब उनके परिवार में किसी चीज की कमी नहीं थी। वे गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करते और सुख से रहने लगे।

(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)

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