कुत्ता और आदमी : गुरबचन सिंह भुल्लर

Kutta Aur Aadmi : Gurbachan Singh Bhullar

सुहावना मौसम था। अस्तर, उसका मालिक तथा उसके मालिक के दोनों दोस्त सैर को जा रहे थे। दिन ढलने से पहले रोजाना इस समय सैर करने जाना उनका नित्यकर्म बन चुका था। एक दोस्त घर से निकलता और रास्ते में दूसरे दोस्त को आवाज देता। फिर वे दोनों मिलकर अस्तर के मालिक के घर की ओर चल देते। अस्तर आमतौर पर मेड़ पर बैठा गली के आखिरी सिरे को देख रहा होता। जैसे ही उसकी निगाह इन पर पड़ती, वह भौंक कर मालिक को सूचना देता। फिर वे दोनों भी उनके साथ ही निकल पड़ते। वहाँ से वे सीधे नहर पर जाते। जिस ओर से पानी बहता था, उन्हें उसी ओर जाना पसंद था। इस पटरी की हरी घनी घास उन्हें दूसरी पटरियों से ज्यादा भाती थी।

पिछले कई सालों में शायद ही कोई दिन ऐसा रहा होगा, जब वे चारों सैर के लिए इकठे न गए हों। किसी का एक-दो दिन के लिए शहर से बाहर जाना, उनकी टोली के नियम को भंग कर देता था, जो कि मजबूरी में ही होता था। ऐसे दिनों में बाकी तीनों का भी दिल नहीं लगता था। सब कुछ उसी प्रकार ही होता, लेकिनउन्हें लगता जैसे आज इस किनारे की घास पहले की तरह हरी न हो, शायद हमेशा की तरह आज पानी कलवल करते न बह रहा हो।

जब अस्तर का अभी जन्म भी नहीं हुआ था, उसके मालिक का और उसके दोनों मित्रों का यह नियम उस वक्त से था, जब वे तीनों स्कूल पढ़ने जाया करते थे। स्कूली दिनों से उन्हें इस पटरी से इश्क था। फिर वे अलग-अलग काम-धंधों में लग गए, लेकिन उनका यह नियम अभी तक निभ रहा था। न उन तीनों की तिकड़ी टूटी और न उन्होंने चौथे आदमी को अपने साथ जुड़ने दिया था।

वे तीनों उस छोटे से शहर के तीन बड़े खानदानों के चिराग थे। तीनों के काम बढ़िया चलते थे। खाना-पीना, सिनेमा और ऐश। इससे ज्यादा गंभीर जीवन-मूल्यों के प्रति उनमें कोई रुचि विकसित नहीं हुई थी। जिंदगी में दुख किसे कहते हैं, उन तीनों में से किसी ने भी नहीं जाना था। उन तीनों के लिए जीवन बेहद रेशमी तथा नरम था।

अस्तर के आने के बाद वे उसे भी अपने साथ ले जाने लगे। उसका नाम अस्तर भी उन तीनों ने आपसी सलाह करके रखा था, क्योंकि वह दो नस्लों का मेल था। उसकी माँ गलियों में घूमने वाली आवारा कुत्ती थी और बाप पक्की हवेली वालों का बाघ जैसा कुत्ता था।

अस्तर के मालिक को पिल्लों की इस नस्ली पृष्ठभूमि के बारे में मालूम था। उनका मन एक पिल्ले को रखने पर आ गया। आखिर एक तंग स्थान पर आवारा कुत्ती ने काफी पिल्लों को जन्म दिया और अस्तर के मालिक ने उनमें से एक को पसंद कर लिया। कई दिनों तक वह रोटी डालकर उसकी माँ को पुचकारता रहा, सहलाता रहा और जब वह उससे घुल-मिल गई, उन पिल्लों में से, जो अभी तक संभले भी नहीं थे, वह अपनी पसंद के पिल्ले को उठा लाया था। तीनों दोस्तों ने दो नस्लों के मिश्रित लहू वाले इस पिल्ले को अस्तर नाम दिया था।

अस्तर ने अभी दौड़ना भी नहीं सीखा था कि वे सैर पर जाते हुए उसे भी साथ ले जाने लगे। थोड़ी दूर तक वह चलता, थोड़ी दूर तक वे उसे घसीटते और फिर उठा लेते। तब से लेकर आज तक वह उन तीनों दोस्तों का चौथा साथी था।

अस्तर का मालिक दोनों दोस्तों के साथ बातें करते हुए चलता। बातें उन लड़कियों की, जिनके ब्याह हो चुके थे, जिनके बच्चे हो गए थे, जिनके रूप-रंग चमकहीन हो गए थे। बातें उन लड़कियों की, जो अभी क्वांरी थीं, जिनमें मटक थी, जिन पर खूबसूरती का रंग चढ़ा हुआ था, जो उन्हें तरसाती थीं। उन लड़कियों की बातें, जिन्होंने अगले दो साल में जवान हो जाना था, जिन्होंने जवानी की अंगडाई ले फूल बन जाना था, चढ़ती जवानी की महक जिनमें से आनी शुरू भी हो गई थी।

और अस्तर चुपचाप चलता जाता। कभी वह दो कदम आगे हो जाता, कभी वह दो कदम पीछे रह जाता। शायद उसे इन बातों का शौक ही नहीं था। शायद उसके साथियों को इन बातों के अलावा कोई और बात आती ही नहीं थी।

सुहावना मौसम था। वे हमेशा की भाँति अपनी मनभाती पटरी पर चुहलबाजी करते हुए जा रहे थे। आज वे थोड़ी जल्दी चल पड़े थे। उनकी चाल धीमी थी। अस्तर उनके कदमों को सूंघते-सूंघते पीछे-पीछे आ रहा था। जब वे दूसरे पुल से गुजरे, उन्होंने देखा, थोड़ी दूरी पर कुछ तैरता हुआ आ रहा था। वे और आगे हुए। पटरी के नजदीक पानी में एक लाश थी, जो अभी ठीक तरह से तैर नहीं रही थी।

वे सारे चौड़ी पटरी से किनारे वाली घास पर आ गए। एक व्यक्ति भागकर दूर पड़ी बोरी उठा लाया। उसने उससे वह लाश ढक दी। लाश चालीस वर्ष के एक कमजोर से आदमी की थी। अस्तर ने थूथनी बूथी आगे कर के लाश को देखा, लाश को सूंघा तथा फिर वह पीछे हटकर खड़ा हो गया। शायद वह देख रहा था कि उसका मालिक तथा उसके दोस्त क्या कर रहे थे।
"धीरे-धीरे तैर रही थी, ठीक तरह से नहीं तैर रही थी," बोरी वाले ने कहा।
उसने लाश को बोरी से खींचकर पटरी के पास कर लिया। लाश घास के साथ अटक कर रुक गई।
"इसे तैरना नहीं आता होगा, डेढ़ हड्डी का है तो जीते-जी यह क्या मिलखा के साथ दौड़ लगाता रहा होगा।" दूसरे ने कहा और सभी हँस दिए।
अस्तर देखता रहा।
“आखिर यह मरा कैसे, क्यों मरा?" अस्तर के मालिक ने पूछा।
"इसके बयान लिखो," एक मित्र ने कहा।
"ऐसे सींकिया पहलवान की बीवी बहुत तगड़ी होगी। बस बेचारा शर्म के मारे डूब मरा होगा।"
"नहीं शर्त लगा कर नहर पार कर रहा होगा।"
"अरे, यह तो कोई आशिक लगता है। किसी ने खीझकर मुक्का मार कर नहर में फेंक दिया होगा।"
"भई कमर तो आशिकों जैसी ही है। देख लो अस्तर की कमर जैसी।" वे सभी फिर खिलखिला दिए। अस्तर अपना नाम सुनकर भौंकने लगा लेकिन
कोई खास बात न जानकर वह एक-दो बार चूं-चूं कर चुप हो गया तथा उन्हें देखने लगा।

पानी धीमी गति से बह रहा था। किनारे की मोटी-मोटी घास पानी से हिलने के कारण लाश भी थोड़ी सी हिलने लगी थी।
“कांपने लग गया यह तो। पता नहीं कितनी देर से नहाता जा रहा है।" एक ने कहा।
"पागल है, पुराने जमाने का। अंगोछा लपेट लिया है। कोई इससे पूछे जरा, भई नहर पर उसे कौन देख रहा है? मजे से फ्रेंच-बॉथ ले।" दूसरे ने उसके
शरीर के निचले हिस्से पर बंधी मैली चादर की ओर, जो उसका एकमात्र कपड़ा था, इशारा करते हुए कहा।
"शायद हमें देखकर बाँध ली हो,” अस्तर के मालिक ने कहा।

“लो यार, इसकी नकल भी उतार देते हैं," बोरी वाले ने कहा। बोरी के मोटे सिरे को चादर से बाँध उसने चादर खोल दी और नंगी पड़ी लाश को एड़ी से परे धकेल दिया। उसकी इस हरकत पर सभी दोस्त फिर से जोर-जोर से हँस दिए और हँसते-हँसते चल दिए।

उनके पीछे-पीछे ही अस्तर भी चल दिया।
वे तीनों इस लाश के बारे में, अन्य लाशों के बारे में बतियाते रहे और हँसते रहे। बातें जो नंगी थीं, बातें जो अधनंगी थीं।
पीछे-पीछे आते अस्तर को जैसे हवा से कोई बू आई। खड़े होकर उसने नथुने उठाए, चारों ओर सूंघा और तीव्र गति से वह उन तीनों से आगे निकल गया। धरती सूंघते-सूंघते वह तेज कदमों से आगे जाकर पटरी से नीचे उतर गया। तीनों दोस्त बातें करते हुए, हँसते-खेलते अपने में मगन थे। उन का ध्यान इस ओर न गया।

अस्तर ने देखा, खेतों में एक कुत्ता मरा पड़ा था। कोई चील, कोई कौआ अभी वहाँ नहीं था। शायद वह अभी-अभी मरा था। अस्तर ने कुत्ते को देखा, अस्तर ने कुत्ते को सूंघा, अस्तर ने कुत्ते का चक्कर काटा और अस्तर का दिल भर्रा आया। उसे चक्कर सा आ गया। वह धरती पर बैठ गया। एक हूक उसके अंदर से उठी, थूथनी उठा उसने हवा में ऊँची की और हूँ..हूँ करके रोने लगा। एक चीख उसने मारी, दूसरी पहले से भी ऊँची मारने ही लगा था कि बराबर आ चुके उसके साथियों में से उसके मालिक ने आवाज दी-“अस्तर!" आवाज में रोब था। अस्तर ने उसकी ओर देखा, लेकिन फिर कुत्ते की ओर निगाह कर ऊपर की ओर मुँह किया; और गले में छोड़ी चीख को निकाल दिया।
“अस्तर!" उसके मालिक ने गुस्से से कहा, "इधर आ।"

अस्तर खड़ा हो गया। उसने मालिक की ओर देखा-उसका मुँह पत्थर की तरह कठोर था। अस्तर सहम गया। उसने कुत्ते की लाश की ओर देखा, उसके मुँह पर हमदर्दी की माँग थी। अस्तर पसीज उठा।

"आता है या नहीं?" उसके मालिक ने पत्थर दिखा कर ललकारा, मारा। वह चलने के लिए मजबूर हो गया, लेकिन उसने देखा, कुत्ते की लाश नंगी पड़ी थी। उसने उसकी ओर पीठ की और पिछले दोनों पैरों के नाखूनों से उस पर मिट्टी डालने लगा।
"अस्तर भाग कर आ जा।” अस्तर के मालिक ने सख्ती से हुक्म दिया।

अस्तर ने आखिरी निगाह लाश पर डाली, निगाह जिसमें हमदर्दी थी, निगाह जिसमें मातृत्व भाव था, निगाह जिसमें कुत्तापन बिल्कुल नहीं था। फिर वह मालिक के हुक्म अनुसार, "भाग कर आ' सुनकर उसके पास जाने लगा तो दौड़ न सका। उसे लगा जैसे पीछे उसका कुछ छूट गया था और वह टाँगें घसीटते हुए नजरें झुका धीरे-धीरे चल पड़ा।