किंग लियर (नाटक कहानी के रूप में) : विलियम शेक्सपियर

King Lear (English Play in Hindi) : William Shakespeare

प्राचीन समय में इंग्लैंड में लियर नामक एक राजा राज्य करता था । उसकी अनेक रानियाँ थीं। ईश्वर की कृपा से उसके पास धन, संपत्ति, नौकर-चाकर, महल इत्यादि सबकुछ था । लेकिन इतना सब होते हुए भी उसके कोई संतान नहीं थी। संतान के बिना उसका वंश कैसे चलेगा? उसके बाद कौन राज्य का कार्यभार सँभालेगा? यही चिंता उसे दिन-रात परेशान करती रहती थी। इसी प्रकार अनेक वर्ष बीत गए ।

आखिरकार ईश्वर ने उसकी पुकार सुन ली और उसके घर तीन पुत्रियों ने जन्म लिया । उसने पहली पुत्री का नाम गोनरिल, दूसरी का नाम रीगन और तीसरी का नाम कॉर्डिलिया रखा। वह अपनी पुत्रियों को पुत्रों के समान समझता था और उसी प्रकार उनका पालन-पोषण कर रहा था । यद्यपि तीनों पुत्रियाँ उसे समान रूप से प्रिय थीं, परंतु वह कॉर्डिलिया को अधिक प्रेम करता था। कॉर्डिलिया भी पिता से अधिक स्नेह करती थी ।

धीरे-धीरे समय बीतता गया और तीनों राजकुमारियों ने यौवन की दहलीज पर कदम रखे। तीनों ही सुंदरता में एक से बढ़कर एक थीं। अब लियर को उनके विवाह की चिंता सताने लगी । वह उनका विवाह श्रेष्ठ राजकुमारों के साथ करना चाहता था, इसलिए उसने योग्य वरों की तलाश आरंभ कर दी ।

शीघ्र ही उसे दो योग्य राजकुमार मिल गए। उसने बड़ी पुत्री गोनरिल का विवाह अलबनी के राजकुमार के साथ कर दिया, जबकि रीगन का विवाह कार्नवाल के राजकुमार के साथ हुआ। इस प्रकार उसकी दो पुत्रियों का विवाह बड़ी धूमधाम के साथ संपन्न हुआ । अब केवल कॉर्डिलिया ही कुँवारी रह गई थी।

कॉर्डिलिया की सुंदरता की चर्चा चारों ओर फैली हुई थी। अनेक राजकुमार उसके साथ विवाह करना चाहते थे। इन राजकुमारों में फ्रांस का राजा और बरगंडी का राजकुमार भी सम्मिलित थे । वे दोनों कॉर्डिलिया के इतने दीवाने थे कि उन्होंने लियर के दरबार में ही डेरा डाल लिया था । वे अनेक महीनों से वहीं रह रहे थे ।

राजा लियर पर वृद्धावस्था अपना प्रभाव दिखाने लगी थी । उसकी शारीरिक क्षमता दिन-प्रतिदिन कम होने लगी। राजकार्यों से उसका मन उकताने लगा । वह अपना शेष जीवन शांति और सुकून के साथ व्यतीत करना चाहता था, अतः उसने अपना राजपाट तीनों पुत्रियों को सौंपने का निश्चय कर लिया।

एक दिन लियर ने पुत्रियों को अपने पास बुलाया और प्रेम भरे स्वर में बोला, "मेरी प्यारी बेटियो ! अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ, इसलिए मैंने निश्चय किया है कि मैं अपना राजपाट तुम तीनों में बाँट दूँ । परंतु इससे पूर्व मैं जानना चाहता हूँ कि तुम मुझसे कितना प्रेम करती हो? इसी के आधार पर मैं अपने राज्य का बँटवारा करूँगा।"

सबसे पहले उसने गोनरिल की ओर देखा । गोनरिल अपने शब्दों में चापलूसी का रस घोलते हुए बोली, "पिताजी, आपके लिए मेरे मन में इतना प्यार है कि मैं आपके लिए सबकुछ छोड़ सकती हूँ । मुझे आपसे अधिक प्रिय कुछ भी नहीं है । "

लियर अत्यंत प्रसन्न हो गया और उसने उसी समय गोनरिल को अपने राज्य का एक हिस्सा सौंप दिया।

अब रीगन की बारी थी। उसने जब देखा कि बड़ी बहन ने केवल दो वाक्य बोलकर ही राज्य का एक हिस्सा प्राप्त कर लिया तो वह भला पीछे कहाँ रहनेवाली थी। उसने भी अपना दाँव खेला, “पिताजी, गोनरिल ने केवल दो वाक्यों में आपके प्रति प्रेम प्रकट कर दिया है। लेकिन मैं अगर सारी जिंदगी भी बोलती रहूँ तो भी आपके प्रति अप प्रेम को प्रकट नहीं कर सकती। मेरे मन में आपके लिए प्रेम का अथाह सागर लहरा है, जिसे शब्दों की सीमा से नहीं बाँधा जा सकता। मैं आपके लिए अपने प्राण भी त्याग सकती हूँ ।"

निस्देह रीगन के शब्द गोनरिल से अधिक प्रभावशाली थे, जिन्होंने लियर को मोहित-सा कर दिया। उसने अपने राज्य का दूसरा हिस्सा रीगन को सौंप दिया।

लोभ के वशीभूत होकर दोनों बड़ी बहनों ने अपना स्वार्थ सिद्ध कर लिया था। लेकिन कॉर्डिलिया उन जैसी नहीं थी। वह न तो झूठ बोल सकती थी और न ही चापलूसी कर सकती थी।

लियर ने जब उससे पूछा तो वह धीमे स्वर में बोली, “पिताजी, मैं आपको केवल उतना प्यार करती हूँ जितना एक पुत्री अपने पिता से कर सकती है। मेरा प्यार न तो इससे अधिक है और न ही इससे कम ।"

लियर आश्चर्यचकित रह गया । जिस पुत्री को वह सबसे अधिक प्रेम करता था, उसके मुख से अपने लिए प्यार की इतनी संक्षिप्त व्याख्या सुनकर वह हतप्रभ था । उसने कॉर्डिलिया से कहा, "पुत्री, लगता है, तुम अपने मनोभावों को शब्दों में ठीक से प्रकट नहीं कर पा रही हो। मैं तुम्हें अपनी अशुद्धि सुधारने का एक और अवसर देता हूँ।”

"नहीं पिताजी, मैंने जैसा महसूस किया, उसे वैसा ही आपके सामने स्पष्ट कर दिया। मेरे मन में आपके लिए केवल इतना ही प्रेम है। अपनी बहनों की तरह मैं आपसे न तो झूठ बोल सकती हूँ और न ही ऐसी बातें कर सकती हूँ, जिसे निभाना मेरे लिए असंभव हो। यह बात सच है कि आप मेरे पिता हैं और मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ । आपने मेरे लिए जो किया है, उसका ऋण कभी चुकाया नहीं जा सकता। लेकिन मैं बड़ी-बड़ी आधारहीन बातें नहीं कर सकती।"

कॉर्डिलिया की बातों ने लियर की क्रोधाग्नि में घी का काम किया। उसका चेहरा तमतमाने लगा, नेत्र अंगारे उगलने लगे। उसने आवेश में आकर अपना शेष राज्य भी दोनों बड़ी पुत्रियों में बाँट दिया। जबकि सत्य बोलनेवाली कॉर्डिलिया पिता की धन-संपत्ति से वंचित हो गई।

इसके बाद लियर ने दोनों बेटियों के सामने शर्त रखी कि जब तक वह जीवित है, तब तक उसके साथ सौ अमीर रहेंगे। दोनों को बारी-बारी से उन सबकी सेवा करनी होगी। वह एक - एक महीना उनके घर रहा करेंगे। लोभ से घिरी दोनों राजकुमारियों ने लियर की शर्त स्वीकार कर ली ।

जब मंत्रियों को लियर के इस निर्णय के बारे में पता चला तो वे उसकी हठधर्मिता और मूर्खता से दुखी हो गए। एक निरपराध और सत्य बोलनेवाली पुत्री के साथ उसका व्यवहार सभी के लिए असहनीय था । परंतु लियर की बात काटने का साहस किसी में नहीं था। सभी चुप रहकर यह अन्याय सहन कर गए। किंतु एक सामंत ऐसा भी था, जो लियर का अत्यंत निकटतम और विश्वासपात्र था। उसका नाम कांत था। लियर उसकी बातों को बड़ा महत्त्व देता था। उसने उसे समझाने का प्रयास किया, परंतु पुत्रियों के प्रेम से अंधे हुए लियर को उसकी बातें आज जहर बुझे तीर की तरह लग रही थीं । उसने क्रोध में भरकर कांत को देश निकाला दे दिया ।

इसके बाद लियर ने उन दोनों राजकुमारों को बुलाया, जो कॉर्डिलिया से विवाह करना चाहते थे । उसने उनसे पूछा, "मैंने कॉर्डिलिया को अपने राज्य और धन-संपत्ति से अलग कर दिया है। इसकी हालत एक भिखारिन के समान है। तुममें से जो इसके साथ विवाह करना चाहता है, वह आगे आए।"

“मैंने एक राजकुमारी से प्रेम किया था, किसी भिखारिन से नहीं । मैं कॉर्डिलिया से विवाह करके अपने परिवार का अपमान नहीं कर सकता । "यह कहकर बरगंडी के राजकुमार ने इनकार कर दिया ।

तब फ्रांस के राजा ने आगे बढ़कर कॉर्डिलिया का हाथ पकड़ लिया और प्रेम भरे स्वर में बोला, “कॉर्डिलिया, मैंने किसी राजकुमारी से नहीं बल्कि तुमसे प्रेम किया है। तुम मुझे हर स्थिति में स्वीकार्य हो। तुम मेरे साथ फ्रांस चलो और वहाँ की सम्राज्ञी बनकर राज करो। "

कॉर्डिलिया भरे मन से पिता की ओर देखते हुए बोली, “पिताजी, आपके अन्यायपूर्ण व्यवहार के बाद भी मेरे मन में आपके लिए कभी द्वेष या घृणा पैदा नहीं होगी। जैसे पहले मैं आपको प्यार करती थी, आगे भी हमेशा प्यार करती रहूँगी।" फिर वह अपनी बहनों से बोली, "बहनो, मैं यहाँ से जा रही हूँ। अब पिताजी की जिम्मेदारी तुम दोनों पर है। इनका सदा खयाल रखना; इन्हें जरा-सा भी कष्ट न होने पाए।"

गोनरिल कटु स्वर में बोली, "कॉर्डिलिया, तुम यह सहानुभूति रहने दो। इस प्रकार का व्यवहार तुम्हें शोभा नहीं देता। तुम अपने पति के साथ यहाँ से चली जाओ और उसका खयाल रखो। पिताजी को सँभालने के लिए हम यहाँ हैं। हमें मत सिखाओ कि हमें क्या करना है। "

बहन की कड़वी बातें सुनकर कॉर्डिलिया की आँखों से आँसू टपक पड़े। उसने सभी से विदा ली और पति के साथ वहाँ से चली गई।

इधर, शर्त के अनुसार लियर अपने एक सौ अमीरों के साथ बड़ी बेटी गोनरिल के पास रहने लगा। लेकिन अभी एक महीना पूरा भी नहीं हुआ था कि गोनरिल के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा। उसे पिता से मिले अनेक दिन बीत जाते । लियर स्वयं उससे मिलने का प्रयास करता तो वह काम का बहाना बनाकर मिलने से इनकार कर देती । जिस पिता से वह सबसे अधिक प्रेम करने का दावा करती थी, अब वही उसे 'बूढ़ा' नजर आने लगा था, एक अनचाहा बोझ महसूस होने लगा था।

कई बार वह नौकर-चाकरों के सामने ही पिता के लिए अपशब्दों का प्रयोग करते हुए बड़बड़ाती रहती, “पता नहीं इस उम्र में बूढ़े को क्या हो गया है, जो एक सौ अमीरों को घर में लाकर बिठा दिया । जरूर इनका दिमाग खराब है, नहीं तो इस प्रकार महल को सराय नहीं बनाते। इन्हें सबकुछ त्यागकर ईश्वर भक्ति में मन लगाना चाहिए। परंतु इनकी इच्छाएँ अभी भी पहले जैसी ही हैं।"

धीरे-धीरे गोनरिल के रूखे व्यवहार को देखकर नौकर-चाकरों के मन में भी लियर के प्रति सम्मान कम होने लगा। वे उसकी आज्ञा की अवहेलना करने लगे, उसकी सेवा से जी चुराने लगे । यद्यपि गोनरिल यह सब देख रही थी, तथापि उसने आँखें मूँद लीं।

पुत्री के इस व्यवहार ने लियर को तोड़कर रख दिया। उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि जिस पुत्री को वह अपना सर्वस्व सौंप रहा है, वह इतनी जल्दी उससे किनारा कर लेगी। वह बेबस पंछी की तरह फड़फड़ाते हुए दिन गुजारने लगे।

लियर का परम हितैषी कांत दुनिया की नजर में देश-निकाले का दंड भोग रहा था, लेकिन सच यह था कि वह गुपचुप तरीके से राजा पर नजर रखे था । वह लियर की दोनों बेटियों की मक्कारी और कुटिलता के बारे में अच्छी तरह से जानता था। उसे पता था कि सबकुछ मिल जाने के बाद वे लियर को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकालकर फेंक देंगी। इसलिए वह किसी भी स्थिति में अपने प्रिय राजा को अकेला नहीं छोड़ सकता था। वह हमेशा उनके साथ रहना चाहता था ।

अतः एक दिन वह नौकर का वेश बनाकर लियर के पास जा पहुँचा । वेश बदले होने के कारण लियर उसे पहचान नहीं सका। वह उससे विनती करते हुए बोला, “महाराज, मैं एक गरीब व्यक्ति हूँ । मुझे काम की तलाश है। आप मुझे अपने पास नौकर रख लें। मैं आपकी हर प्रकार से सेवा किया करूँगा।"

लियर उसका कंधा थपथपाते हुए बोला, "इस समय मैं स्वयं दूसरों पर आश्रित हूँ। मेरी ऐसी स्थिति नहीं है नौकर रख सकूँ। तुम कहीं और जाकर काम की तलाश करो। "

कांत भला कहाँ हार माननेवाला था । वह पुनः बोला, "राजन्, मुझे धन की आवश्यकता नहीं है। मैं बचा हुआ भोजन खाकर आपकी सेवा करता रहूँगा । मुझे अपने से दूर मत कीजिए।"

लियर कुछ आश्वस्त होकर बोला, “ठीक है। लेकिन तुम क्या काम जानते हो?"

कांत विनम्र स्वर में बोला, "मालिक, मैं साफ-सफाई से लेकर मेहमानों की सेवा आदि सबकुछ कर सकता आप जो काम देंगे, मैं खुशी-खुशी कर लूँगा । "

“बातों से तो तुम हर काम में निपुण लगते हो। तुम्हारा नाम क्या है?"

"हुजूर, सब मुझे कायस के नाम से जानते हैं। आप भी मुझे इसी नाम से पुकारा करें।"

उसी दिन से कांत कायस नाम से लियर के पास नौकरी करने लगा। पहले दिन ही उसे अपनी स्वामीभक्ति दिखाने का अवसर मिल गया। एक राजसेवक ने किसी बात को लेकर लियर को कठोर नेत्रों से घूरते हुए भला-बुरा कह दिया। उसका यह दुसाहस कांत के लिए असहनीय था । उसने उसी समय उस राजसेवक को खूब मारा और बाहर नाली में फेंक दिया। ऐसे सेवक को पाकर लियर अत्यंत प्रसन्न हुआ। इसके फलस्वरूप धीरे-धीरे उसका झुकाव कांत की ओर बढ़ने लगा ।

लियर के साथ कुछ स्वामीभक्त नौकर और भी थे, जिन्होंने संकट के समय में भी उसका साथ नहीं छोड़ा था। इन्हीं में हँसोड़ नामक एक सेवक भी था। वह अपनी हास्य कविताओं, तुकबंदियों और उलटी-सीधी बातों से का मनोरंजन किया करता था । अनेक बार वह राजा के भोलेपन और राजकुमारियों की कुटिलता पर तुकबंदियाँ लिख डालता था ।

इस प्रकार हँसोड़ और कायस—दोनों मिलकर लियर को प्रसन्न रखने का प्रयास करते रहते थे। लेकिन गोनरिल उन पर भारी थी। लियर को कष्ट देने के लिए वह अकेली ही बहुत थी।

एक दिन गोनरिल चिढ़ते हुए पिता के पास आई और तीखे स्वर में बोली, "बस, बहुत हो चुका। अब मैं आपकी तथा आपके साथियों की और अधिक सेवा नहीं कर सकती। आप लोगों ने मेरे घर को धर्मशाला बनाकर रख दिया है। मेरे पास इन पर खर्च करने के लिए फिजूल का धन नहीं है। अच्छा यही होगा कि आप सभी यहाँ से चले जाएँ।”

इन शब्दों ने लियर को अपमान की आग में झुलसा डाला। उसने उसी समय बड़ी बेटी को छोड़कर छोटी बेटी रीगन के घर जाने का निश्चय कर लिया । आज्ञा मिलते ही सेवकों ने उसी दिन सब तैयारियाँ कर दीं।

अगले दिन लियर और उसके एक सौ अमीर साथी अपने-अपने रथों पर सवार हुए। चलने से पूर्व लियर ने महल की ओर देखा और करुण स्वर में प्रार्थना करते हुए बोला, "हे ईश्वर ! गोनरिल ने मेरी बेटी होने के बाद भी सदा मेरा अपमान और तिरस्कार किया, मुझे अपशब्द कहे, मुझे मेरे ही महल से चले जाने के लिए विवश कर दिया । प्रभु! मैं शाप देता हूँ कि इस दुष्टा को कभी संतान का सुख नसीब न हो। जिस प्रकार इसने मुझे कष्ट दिए हैं, प्रकार यह भी दुखों की आग में जलती रहे।"

फिर काफिला रीगन के घर की ओर चल पड़ा।

इधर, लियर के जाने के बाद गोनरिल ने रीगन को पत्र लिखा—

'प्रिय बहन !

यह बताते हुए मेरा मन दुख और पीड़ा के बोझ से दबा जा रहा है कि पिताजी मेरा घर छोड़कर अपने साथियो सहित तुम्हारे घर की ओर प्रस्थान कर चुके हैं। लोग यही सोचेंगे कि मेरे सेवा-सत्कार में कोई कमी रह गई, जिसके कारण एक महीना पूरा होने से पहले ही पिताजी यहाँ से चले गए। कहीं तुम किसी व्यर्थ की बात पर विश्वास न कर लो, इसलिए मैं सारी बात स्पष्ट तौर पर बता देना चाहती हूँ।

बहन, शर्त के अनुसार पिताजी अपने एक सौ अमीर साथियों के साथ मेरे पास रह रहे थे। मैं उनकी यथासंभव हर प्रकार की सेवा कर रही थी । मैं ऐसा जीवन भर करती रहती, परंतु उनके साथियों की फिजूलखर्ची और फरमाइशों ने मुझे हिलाकर रख दिया। उनका प्रत्येक साथी स्वयं को राजा के समान समझता था। उनके लिए दिन- रात शराब की नदियाँ बहती रहीं; प्रतिदिन अनेक प्रकार के व्यंजन तैयार होते; नौकर-चाकरों की फौज उनकी आज्ञा मानने के लिए सदा तैयार रहती । खजाना उनकी फरमाइशें पूरी करने के लिए खर्च हो रहा था। इस पर भी उन्हे संतोष नहीं था। वे मुझसे और अधिक उम्मीदें लगाए बैठे थे।

बहन, ऐसे में भला किसके सब्र का प्याला न भरता ! मैं भी एक इनसान हूँ; कब तक इस प्रकार का सर्वनाश सहन करती? वे हमारे पिताजी हैं; उनकी सेवा करना हमारा कर्तव्य है। किंतु इसका अर्थ यह तो नहीं कि हम उनकी अनुचित माँगों को भी पूरा करते रहें। मैंने उन्हें यही बात समझाने की कोशिश की, परंतु सब व्यर्थ। उन्होंने इसे अपना अपमान समझा और मुझसे नाराज होकर यहाँ से चले गए। देखा जाए तो इसमें उनका कोई दोष नहीं है। उनके साथी ही उन्हें इसके लिए बहकाते हैं, जिससे उनके ऐशो-आराम पर कोई असर न पड़े।

बहन, मैंने तुम्हें सारी स्थिति से अवगत करवा दिया है। अब तुम पर निर्भर है कि तुम मेरे अनुभव से लाभ उठाती हो या नहीं। यदि तुम पिताजी की अनुचित माँगों को पूरा करोगी तो निस्देह एक दिन तुम्हें भी कष्ट भोगने पड़ेंगे इसलिए जो उचित है, वही करो। शेष तुम्हारी इच्छा ।

शुभचिंतक

गोनरिल

गोनरिल ने यह पत्र एक संदेशवाहक को दिया और उसे समझाते हुए बोली, “देखो, महाराज के पहुँचने से पूर्व ही यह पत्र रीगन तक पहुँच जाना चाहिए। इस कार्य को शीघ्रतापूर्वक करो । लौटने पर तुम्हारी झोली इनाम से भर दी जाएगी। लेकिन ध्यान रहे, महाराज से पहले तुम्हें रीगन तक पहुँचना है।"

संदेशवाहक ने पत्र को कमर में खोंसा और प्रणाम कर शीघ्रता से बाहर चला गया।

इधर, लियर ने कायस के हाथों अपने आगमन का समाचार रीगन को भेजा। उन्होंने पत्र में लिखा था कि वे उसके महल में आ रहे हैं, इसलिए वह उनके स्वागत के लिए तैयार रहे।

कायस जब रीगन के महल में पहुँचा तो वहाँ गोनरिल का संदेशवाहक भी उपस्थित था । यह वही व्यक्ति था, जिसे कायस ने मार-मारकर नाली में फेंक दिया था । उसे देखकर कायस सारी बात समझ गया । क्रोध से उसकी आँखें लाल हो गईं । उसने आव देखा न ताव और लगा संदेशवाहक की पिटाई करने ।

संदेशवाहक सहायता के लिए चिल्लाने लगा। रीगन को सारी बात पता चली तो उसने सैनिक भेजकर कायस को बंदी बना लिया। इतने में राजा लियर का काफिला द्वार तक आ पहुँचा था ।

मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही उनकी नजर सबसे पहले कायस पर पड़ी, जो जंजीरों से जकड़ा जमीन पर पड़ा था। यह दृश्य देखकर लियर आश्चर्यचकित रह गया । वह तो भव्य स्वागत की उम्मीद लिये आया था, परंतु यहाँ तो सबकुछ बदला हुआ था। द्वार पर एक सेवक तक उपस्थित नहीं था । उसने द्वारपाल से राजकुमारी के बारे में पूछा ।

द्वारपाल बोला, “महाराज, इस समय राजकुमारी आराम कर रही हैं। उनसे मिलने के लिए आपको सुबह तक प्रतीक्षा करनी होगी। इससे पहले उनसे मुलाकात संभव नहीं है।"

“द्वारपाल! जाओ, जाकर राजकुमारी से कहो कि उनके पिता महाराज लियर आए हैं। " लियर क्रोध में भरकर चिंघाड़ा।

“क्षमा कीजिए! इस समय आप महाराज नहीं, एक आश्रित हैं । और फिर राजकुमारी ने ही आदेश दिया है कि कोई भी उनके आराम में विघ्न न डाले। आज वे किसी से भी मिलना नहीं चाहती हैं। "

अभी ये बातें चल ही रही थीं कि तभी लियर को गोनरिल दिखाई दी, जो एक अन्य प्रवेश द्वार से महल में प्रविष्ट हो रही थी। उसके स्वागत के लिए वहाँ रीगन भी थी। यह देखकर लियर दुख और क्रोध से भरकर बोला, “गोनरिल, तुम्हें अपने पिता के सम्मान की कोई चिंता नहीं, जो तुम यहाँ भी मुझे दुख देने के लिए आ गई हो!"

रीगन प्रत्युत्तर देते हुए बोली, “पिताजी, गोनरिल ने ऐसा कोई भी काम नहीं किया है जिससे आपके मान-सम्मान को ठेस पहुँचे। यह मन से आपकी सेवा कर रही थी, परंतु आपने इसका अनुचित लाभ उठाया । मनमाना और हठपूर्ण व्यवहार करके आपने गोनरिल को कई बार अपमानित किया है। इसलिए आप इससे क्षमा माँग लें और भविष्य में इसके कहे अनुसार कार्य करने की प्रतिज्ञा करें। इसी में आपकी भलाई है।"

लियर को जैसे किसी ने शिला के समान बना दिया हो। वह अपने स्थान पर जड़ हो गया। उसके मुख से केवल इतना निकला" और अगर मैं तुम्हारे साथ रहना चाहूँ तो मुझे क्या करना होगा, रीगन ?"

रीगन कठोर स्वर में बोली, "तब आपको मेरी आज्ञा का पालन करना होगा। मैं जैसा कहूँगी वैसा करना होगा । आपके सभी अनुचित खर्चे बंद हो जाएँगे; इन एक सौ अमीर भिखमंगों को यहाँ से जाना होगा।"

इसके बाद रीगन ने कायस को बंधनमुक्त कर दिया।

लियर की आँखों के आगे अँधेरा छा गया। जिन बेटियों को उसने अपने प्राणों से बढ़कर प्यार किया था, जिन बेटियों ने पिता के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर देने की कसमें खाई थीं, आज वही बेटियाँ उसके साथ एक दास की तरह व्यवहार कर रही हैं। लियर लड़खड़ाकर जमीन पर गिर पड़ा। तभी उसे तीसरी पुत्री कॉर्डिलिया का स्मरण हो आया। वह बड़बड़ाते हुए बोला, "बेटी कॉर्डिलिया ! कुटिल लोगों के वाग्जाल में फँसकर मैंने तुम्हारे साथ घोर अन्याय किया है, तुम्हारे मन को कठोर आघात पहुँचाया है। जानता हूँ, इसके लिए तुम मुझे कभी क्षमा नहीं करोगी। हे भगवान्! मैंने यह क्या अनर्थ कर दिया। जो पुत्री मुझे सबसे अधिक प्रेम करती थी, जो मेरी खुशी के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहती थी, जिसकी कोमल और मधुर वाणी मेरे सारे दुखों का हरणकर लेती थी, मैंने उसी को अपने से दूर कर दिया। मुझसे दूर जाते समय उसकी आँखों में कितना दर्द और वेदना थी । और मैं उसके प्रेम को पहचान न सका । प्रभु, उसे दंडित करते समय मैंने जरा भी दया नहीं दिखाई। शायद उसी का फल है कि आज मैं बिलकुल निःसहाय हो गया हूँ; मेरी यह दशा हो गई है। काश, एक बार मैं कॉर्डिलिया से मिल सकता, उसके पैरों में गिरकर अपने अपराधों की क्षमा माँग सकता ।"

अभी लियर विलाप कर रहा था कि सहसा आकाश में घटाएँ घिर आईं, चारों ओर घनघोर अँधेरा छा गया। देखते-ही-देखते बिजली कड़कने लगी, बादल गरजने लगे और मूसलाधार वर्षा होने लगी । गोनरिल को साथ लेकर रीगन महल के अंदर चली गई। आसपास के सैनिक भी इधर-उधर दुबक गए, पशु-पक्षी भी अपने-अपने स्थानों पर जा छिपे। लेकिन लियर खुले आकाश के नीचे खड़ा रहा। तेज वर्षा ने उसे सिर से पैर तक भिगो दिया।

जिस पर छत्र करने के लिए हर कोई उतावला रहता था, वही लियर आज एक भिखारी की तरह खुले आकाश के नीचे खड़ा था। हर किसी ने उसकी ओर से मुँह फेर लिया था। उसकी बेटियाँ, जिन्हें वह सबसे अधिक प्रेम करता था, उससे विमुख हो गई थीं।

कहते हैं, शोक जब अपनी सीमाएँ तोड़ता है तो मनुष्य की विवेक शक्ति नष्ट कर देता है। कुछ ऐसा ही लियर के साथ हुआ। वह पागलों की तरह चिल्लाने लगा, “आओ, आओ आँधियो! आओ तूफान ! सबको अपने आगोश में ले लो। अपनी प्रंड शक्ति से सबकुछ छिन्न-भिन्न कर दो, सबकुछ नष्ट-भष्ट कर दो। ऐसी प्रलय ले आओ कि सारे पाप तुम में समा जाएँ। संपूर्ण सृष्टि का नाश हो जाए!"

इसके बाद लियर चीखते हुए वहाँ से भागा और दूर अँधियारे में जाकर खो गया । उसे सँभालने के लिए कायस और हँसोड़ भी पीछे दौड़े।

लियर को कुछ होश न था; वह पागलों की तरह दौड़ा जा रहा था । भागते-भागते वह घने जंगल में जा पहुँचा । आखिरकार कायस ने उसे पकड़ लिया और पास की एक गुफा में ले आया । लियर लगातार बड़बड़ाता जा रहा था। उसकी यह दशा देखकर कायस और हँसोड़ की आँखें भर आई । वह समझ गया कि पुत्रियों के स्वार्थयुक्त व्यवहार ने लियर को पागल बना दिया है। उसने मन-ही-मन उन्हें सबक सिखाने का निश्चय कर लिया ।

अगले दिन राजा को हँसोड़ के पास छोड़कर वह नगर की ओर चल पड़ा। वहाँ उसने उन लोगों को एकत्रित किया, जो लियर के पुराने वफादार साथी थे । वे उसके लिए अपनी जान देने को तत्पर रहते थे। कायस उन्हें लेकर गुफा में लौट आया।

जंगल में डोबर नामक एक पुराना किला था । कायस ने लियर सहित सभी लोगों को उस किले में पहुँचा दिया। तत्पश्चात् वह कॉर्डिलिया से मिलने फ्रांस चला गया। वहाँ उसने कॉर्डिलिया और उसके पति को राजा लियर के साथ घटी सभी घटनाओं के बारे में विस्तार से बताया। साथ ही उसने गोनरिल और रीगन के दुर्व्यवहार की भी आलोचना की।

पिता की दुर्दशा के बारे में सुनकर कॉर्डिलिया की आँखों में आँसू भर आए। एक राजा की ऐसी दुर्गति होगी, उसने यह कल्पना तक नहीं की थी । जहाँ एक ओर उसके मन में पिता के लिए प्रेम का सागर उमड़ रहा था, वहीं दूसरी ओर बहनों के लिए क्रोध का ज्वालामुखी धधकने लगा। उसने पति की आज्ञा ली और विशाल सेना लेकर चल पड़ी। वह अतिशीघ्र पिता के पास पहुँच जाना चाहती थी।

एक दिन लियर सबकी नजरों से छिपकर किले से बाहर निकल आया और वन में भटकने लगा। कॉर्डिलिया जब डोबर किले के पास पहुँची तो मार्ग में उसे लियर दिखाई दिया। उसने घास का मुकुट सिर पर लगा रखा था और ऊँची आवाज में चीख रहा था, "मैं इस देश का राजा हूँ । मुझसे डरो मत।"

पिता को इस हालत में देखकर कॉर्डिलिया के मन पर तीर चलने लगे। वह दौड़कर पिता के गले लग गई। लेकिन विवेकहीन लियर ने उसे नहीं पहचाना। कॉर्डिलिया ने अपने साथ आए वैद्यों को पिता के उपचार में लगा दिया। दवाओं के असर और कॉर्डिलिया के स्नेह के कारण कुछ ही दिनों में लियर का विवेक लौट आया।

उसने जब उसे सामने देखा तो उसके गले लगकर फूट-फूटकर रो पड़ा। कॉर्डिलिया पिता को सांत्वना देने लगी। पिता-पुत्री के इस भावुक मिलन को देखकर उपस्थित लोगों के मन भर आए ।

इधर, एक नया विवाद खड़ा हो गया था। इंग्लैंड के पड़ोसी देश का राजा एडमंड बड़ा क्रूर, विलासी, कामुक, कुटिल, चालाक और लोभी प्रवृत्ति का था । पिता के देहांत के बाद उसने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी और स्वयं को राजा घोषित कर दिया । वह अत्यंत सुंदर था । गोनरिल और रीगन उसकी सुंदरता के बारे में अनेक बार सुन चुकी थीं।

दोनों बहनों को कॉर्डिलिया के सेना सहित आने की सूचना मिल चुकी थी । अतः उसका सामना करने के लिए उन्होंने ग्लोसेस्टर के नेतृत्व में विशाल सेना डोबर किले की ओर भेज दी। इसी बीच रीगन के पति कार्नवाल का देहांत हो गया। वह पहले से एडमंड पर मोहित थी, इसलिए उसने उसके पास विवाह का प्रस्ताव भेजा ।

गोनरिल को जब इस बात का पता चला तो वह ईर्ष्या से भर उठी । वह स्वयं भी एडमंड से विवाह करना चाहती थी। इसके कारण उसने अपने पति को भी ठुकरा दिया था । परंतु इससे पहले कि वह इस उद्देश्य में सफल हो पाती, उससे पूर्व रीगन ने उसके मार्ग को बाधित कर दिया था । अतः उसने रीगन को हमेशा के लिए समाप्त करने का निश्चय कर लिया।

एक दिन उसने रीगन को भोजन के लिए आमंत्रित किया और विष देकर उसे मार डाला । गोनरिल के पति को जब सारे पत्र के बारे में पता चला तो उसने गोनरिल को बंदी बनाकर कारागार में डलवा दिया। आत्मग्लानि से वह छटपटाने लगी और एक दिन उसने भी फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

इस प्रकार दोनों बहनों को अपने किए की सजा मिल गई। उन्होंने तड़प-तड़पकर प्राण त्यागे ।

उधर, ग्लोसेस्टर का सामना करने के लिए कॉर्डिलिया सेना सहित रणभूमि में आ डटी । दोनों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। कभी ग्लोसेस्टर का पलड़ा भारी होता तो कभी कॉर्डिलिया का पक्ष मजबूत हो जाता।

अंत में ग्लोसेस्टर की मक्कारी और धूर्तता के आगे वह परास्त हो गई। उसने षड़यंत्र रचकर रात को सोते हुए उसे घेर लिया। कॉर्डिलिया ने डटकर मुकाबला किया। लेकिन अंततः ग्लोसेस्टर की तलवार ने उसके प्राण हर लिये ।

लियर को जब कॉर्डिलिया के बलिदान के बारे में पता चला तो उसकी आँखें पथरा गई । उसे गोनरिल और रीगन की मृत्यु का कोई दुख नहीं था । परंतु कॉर्डिलिया की मृत्यु के सदमे ने उसके मन के असंख्य टुकड़े कर दिए। उसने कॉर्डिलिया को पुकारते हुए उसी क्षण प्राण त्याग दिए ।

पिता-पुत्री के इस अनन्य स्नेह को देखते हुए दोनों की अंत्येष्टि एक साथ, एक ही स्थान पर की गई।

(रूपांतर - महेश शर्मा)

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