केटी वुडिनक्लोक : नॉर्वे की लोक-कथा

Katy Wooden Clock : Norway Folktale/Folklore

एक बार नौर्वे देश में एक राजा था जिसकी रानी मर गयी थी। उसकी इस रानी से एक बेटी थी। उसकी यह बेटी इतनी चतुर और प्यारी थी कि उसके जैसा चतुर और प्यारा दुनिया में और कोई नहीं था।
राजा अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता था। वह उसके मरने का काफी दिन तक उसका गम मनाता रहा पर फिर अकेले रहते रहते थक गया और उसने दूसरी शादी कर ली।
उसकी यह नयी रानी एक विधवा थी और इसके भी एक बेटी थी पर इसकी यह बेटी उतनी ही बुरी और बदसूरत थी जितनी राजा की बेटी प्यारी, दयावान और चतुर थी।
सौतेली माँ और उसकी बेटी दोनों राजा की बेटी से बहुत जलती थीं क्योंकि वह बहुत ही प्यारी थी। जब तक राजा घर में रहता था वे दोनों राजा की बेटी को कुछ भी नहीं कह सकती थीं क्योंकि राजा उसको बहुत प्यार करता था।
कुछ समय बाद उस राजा को किसी दूसरे राजा के साथ लड़ाई के लिये जाना पड़ा तो राजकुमारी की सौतेली माँ ने सोचा कि यह मौका अच्छा है अब वह उस लड़की के साथ जैसा चाहे वैसा बरताव कर सकती है।
सो उन दोनों माँ बेटी ने उस लड़की को भूखा रखना और पीटना शुरू कर दिया। वे दोनों जहाँ भी वह जाती सारे घर में उसके पीछे पड़ी रहतीं।

आखिर उसकी सौतेली माँ ने सोचा कि यह सब तो उसके लिये कुछ जरा ज़्यादा ही अच्छा है सो उसने उसे जानवर चराने के लिये भेजना शुरू दिया।
अब वह बेचारी जानवर चराने के लिये जंगल और घास के मैदानों में चली जाती। जहाँ तक खाने का सवाल था कभी उसको कुछ थोड़ा सा खाना मिल जाता और कभी बिल्कुल नहीं। इससे वह बहुत ही दुबली होती चली गयी और हमेशा दुखी रहती और रोती रहती।
उसके जानवरों में कत्थई रंग का एक बैल था जो हमेशा अपने आपको बहुत साफ और सुन्दर रखता था। वह अक्सर ही राजकुमारी के पास आ जाता था और जब राजकुमारी उसको थपथपाती तो वह उसको थपथपाने देता।

एक दिन वह दुखी बैठी हुई थी और सुबक रही थी कि वह बैल उसके पास आया और सीधे सीधे उससे पूछा कि वह इतनी दुखी क्यों थी। लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया और बस रोती ही रही।
बैल एक लम्बी सी साँस ले कर बोला — “आह, हालाँकि तुम मुझे बताओगी नहीं पर मैं सब जानता हूँ। तुम इसी लिये रोती रहती हो न क्योंकि रानी तुमको ठीक से नहीं रखती। वह तुमको भूखा मारना चाहती है।
पर देखो खाने के लिये तुमको कोई चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि मेरे बाँये कान में एक कपड़ा है। जब तुमको खाना खाने की इच्छा हो तो उस कपड़े को मेरे कान में से निकाल लो और घास पर फैला दो। बस तुमको जो खाना चाहिये वही मिल जायेगा। ”
राजकुमारी को उस समय बहुत भूख लगी थी सो उसने उस बैल के बाँये कान में रखा कपड़ा निकाल लिया और उसे घास पर बिछा दिया। उसको उस कपड़े से खाने के लिये फिर बहुत सारी चीज़ें मिल गयीं। उस खाने में शराब भी थी, माँस भी था और केक भी थी।
अब जब भी उसको भूख लगती तो वह बैल के कान में से कपड़ा निकालती उसको घास पर बिछाती और जो उसको खाने की इच्छा होती वह खाती। कुछ ही दिनों में उसके शरीर का माँस और रंगत दोनों वापस आने लगीं।
जल्दी ही वह थोड़ी मोटी और गोरी गुलाबी हो गयी यह देख कर उसकी सौतेली माँ और उसकी बेटी गुस्से से लाल पीली होने लगीं। उस सौतेली माँ की समझ में यही नहीं आया कि उसकी वह सौतेली बेटी जो इतनी बुरी हालत में थी अब ऐसी तन्दुरुस्त कैसे हो गयी।
उसने अपनी एक नौकरानी को बुलाया और उसको राजकुमारी के पीछे पीछे जंगल जाने के लिये कहा और कहा कि वह जा कर वहाँ देखे कि वहाँ सब ठीक चल रहा है या नहीं क्योंकि उसका खयाल था कि घर का कोई नौकर राजकुमारी को खाना दे रहा होगा।
वह नौकरानी राजकुमारी के पीछे पीछे जंगल तक गयी। वहाँ जा कर उसने देखा कि किस तरह से उस सौतेली बेटी ने बैल के कान में से एक कपड़ा निकाला, उसे घास पर बिछाया और फिर किस तरह से उस कपड़े ने उस राजकुमारी को खाना दिया। सौतेली बेटी ने उसे खाया और वह खाना खा कर वह बहुत खुश हुई।
जो कुछ भी उस नौकरानी ने जंगल में देखा वह सब उसने जा कर रानी को बताया।
उधर राजा भी लड़ाई से वापस आ गया था। क्योंकि वह दूसरे राजा को जीत कर आया था इसलिये सारे राज्य में खूब खुशियाँ मनायी जा रही थीं। पर सबसे ज़्यादा खुश थी राजा की अपनी बेटी।
राजा के आते ही रानी ने बीमार पड़ने का बहाना किया और बिस्तर पर जा कर लेट गयी। उसने डाक्टर को यह कहने के लिये बहुत पैसे दिये कि “रानी तब तक ठीक नहीं हो सकती जब तक उसको कत्थई रंग के बैल का माँस खाने को न मिल जाये। ”
राजा और महल के नौकर आदि सबने डाक्टर से पूछा कि रानी की बीमारी की क्या कोई और दवा नहीं थी पर डाक्टर ने कहा “नहीं।” सबने उस कत्थई रंग के बैल की ज़िन्दगी के लिये प्रार्थना की क्योंकि वह बैल सभी को बहुत प्यारा था।
लोगों ने कोई दूसरा कत्थई बैल ढूँढने की कोशिश भी की पर सबने यह भी कहा कि उस बैल के जैसा और कोई बैल नहीं था। उसी बैल को मारा जाना चाहिये और किसी बैल के माँस के बिना रानी ठीक नहीं हो सकती।
जब राजकुमारी ने यह सुना तो वह बहुत दुखी हुई और जानवरों के बाड़े में बैल के पास गयी। वहाँ भी वह बैल अपना सिर लटकाये हुए नीची नजर किये इस तरह दुखी खड़ा था कि राजकुमारी उसके ऊपर अपना सिर रख कर रोने लगी।
बैल ने पूछा — “तुम क्यों रो रही हो राजकुमारी?”
तब राजकुमारी ने उसे बताया कि राजा लड़ाई पर से वापस आ गया था और रानी बहाना बना कर बीमार पड़ गयी है। उसने डाक्टर को यह कहने पर मजबूर कर दिया है कि रानी तब तक ठीक नहीं हो सकती जब तक उसको कत्थई रंग के बैल का माँस खाने को नहीं मिलता। और अब उसको मारा जायेगा।
बैल बोला — “अगर वे लोग पहले मुझे मारेंगे तो जल्दी ही वे तुमको भी मार देंगे। तो अगर तुम मेरी बात मानो तो हम दोनों यहाँ से आज रात को ही भाग चलते हैं। ”
राजकुमारी को यह अच्छा नहीं लगा कि वह अपने पिता को यहाँ अकेली छोड़ कर चली जाये पर रानी के साथ उसी घर में रहना तो उससे भी ज़्यादा खराब था। इसलिये उसने बैल से वायदा किया कि वह वहाँ से भाग जाने के लिये रात को उसके पास आयेगी।
रात को जब सब सोने चले गये तो राजकुमारी जानवरों के बाड़े में आयी। बैल ने उसको अपनी पीठ पर बिठाया और वहाँ से उसको ले कर बहुत तेज़ी से भाग चला।
अगले दिन सुबह सवेरे जब लोग उस बैल को मारने के लिये उठे तो उन्होंने देखा कि बैल तो जा चुका है। जब राजा उठा और उसने अपनी बेटी को बुलाया तो वह भी उसको कहीं नहीं मिली। वह भी जा चुकी थी।
राजा ने चारों तरफ अपने आदमी उन दोनों को ढूँढने के लिये भेजे। उनको उसने चर्च में भी भेजा पर दोनों का कहीं पता नहीं था। किसी ने भी उनको कहीं भी नहीं देखा था।
इस बीच वह बैल राजकुमारी को अपनी पीठ पर बिठाये बहुत सी जगहें पार कर एक ऐसे जंगल में आ पहुँचा था जहाँ हर चीज़ ताँबे की थी – पेड़, शाखाएँ, पत्ते, फूल, हर चीज़।
पर इससे पहले कि वे इस जंगल में घुसते बैल ने राजकुमारी से कहा — “जब हम इस जंगल में घुस जायेंगे तो ध्यान रखना कि तुम इस जंगल की एक पत्ती भी नहीं तोड़ना। नहीं तो यह सब मेरे और तुम्हारे ऊपर भी आ जायेगा।
क्योंकि यहाँ एक ट्रौल रहता है जिसके तीन सिर हैं और वही इस जंगल का मालिक भी है। ”
“नहीं नहीं। भगवान मेरी रक्षा करे। ” उसने कहा कि वह वहाँ से कुछ भी नहीं तोड़ेगी।
वे दोनों उस जँगल में घुसे। राजकुमारी किसी भी चीज़ को छूने तक के लिये बहुत सावधान थी। वह जान गयी थी कि किसी भी शाख को छूने से कैसे बचना था। पर वह बहुत घना जंगल था और उसमें से हो कर जाना बहुत मुश्किल था।
बचते बचते भी उससे उस जंगल के एक पेड़ की एक पत्ती टूट ही गयी और वह उसने अपने हाथ में पकड़ ली।
बैल बोला — “अरे यह तुमने क्या किया। अब तो ज़िन्दगी और मौत के लिये लड़ने के अलावा और कोई चारा नहीं है। पर ध्यान रखना वह पत्ती तुम्हारे हाथ में सुरक्षित रहे उसे फेंकना नहीं। ”
जल्दी ही वे जंगल के आखीर तक पहुँच गये और जैसे ही वे वहाँ पहुँचे कि एक तीन सिर वाला ट्रौल वहाँ आ गया।
उसने पूछा — “किसने मेरा जंगल छुआ?”
बैल बोला — “यह जंगल तो जितना तुम्हारा है उतना ही मेरा भी है। ”
ट्रौल चीखा — “वह तो हम लड़ाई से तय करेंगे। ”
बैल बोला — “जैसा तुम चाहो। ”
सो दोनों एक दूसरे की तरफ दौड़ पड़े और एक दूसरे से गुँथ गये। ट्रौल बैल को खूब मार रहा था पर बैल भी अपनी पूरी ताकत से ट्रौल को मार रहा था।
यह लड़ाई सारा दिन चली। आखीर में बैल जीत गया। पर उसके शरीर पर बहुत सारे घाव थे और वह इतना थक गया था कि उससे तो उसकी एक टाँग भी नहीं उठ पा रही थी सो उन दोनों को वहाँ एक दिन के लिये आराम करने के लिये रुकना पड़ा।
बैल ने राजकुमारी से कहा कि वह ट्रौल की कमर की पेटी से लटका हुआ मरहम का एक सींग ले ले और वह मरहम उसके शरीर पर मल दे। राजकुमारी ने ऐसा ही किया तब कहीं जा कर बैल कुछ ठीक हुआ। तीसरे दिन वे फिर अपनी यात्रा पर चल दिये।
वे फिर कई दिनों तक चलते रहे। कई दिनों की यात्रा के बाद वे एक चाँदी के जंगल में आये। यहाँ हर चीज़ चाँदी की थी – पेड़, शाखाएँ, पत्ते, फूल, हर चीज़।
पर इससे पहले कि वे इस जंगल में घुसते पहले की तरह से बैल ने इस बार भी राजकुमारी से कहा — “जब हम इस जंगल में घुस जायेंगे तो ध्यान रखना कि तुम इस जंगल की एक पत्ती भी नहीं नहीं तोड़ोगी नहीं तो यह सब मेरे और तुम्हारे ऊपर भी आ जायेगा।
क्योंकि यहाँ एक छह सिर वाला ट्रौल रहता है जो इस जंगल का मालिक है और मुझे नहीं लगता कि मैं उसको किसी भी तरह जीत पाऊँगा। ”
राजकुमारी बोली — “नहीं नहीं। मैं ख्याल रखूँगी कि मैं यहाँ से कुछ न तोड़ूँ और तुम भी मेरे लिये यह दुआ करते रहना कि यहाँ से मुझसे कुछ टूट न जाये। ”
पर जब वे उस जंगल में घुसे तो वह इतना ज़्यादा घना था कि वे दोनों उसमें से बड़ी मुश्किल से जा पा रहे थे। राजकुमारी बहुत सावधान थी कि वह वहाँ की कोई भी चीज़ छूने से पहले ही दूसरी तरफ को झुक जाती थी पर हर मिनट पर शाखें उसकी आँखों के सामने आ जातीं।
बचते बचते भी ऐसा हुआ कि उससे एक पेड़ की एक पत्ती टूट ही गयी।
बैल फिर चिल्लाया — “उफ। यह तुमने क्या किया राजकुमारी? अब हम अपनी ज़िन्दगी और मौत के लिये लड़ने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते। पर ध्यान रहे इस पत्ती को भी खोना नहीं। सँभाल कर रखना। ”
जैसे ही वह यह कह कर चुका कि वह छह सिर वाला ट्रौल वहाँ आ गया और उसने पूछा — “वह कौन है जिसने मेरा यह जंगल छुआ?”
बैल ने फिर वही जवाब दिया — “यह जंगल जितना तुम्हारा है उतना ही मेरा भी है। ”
ट्रौल बोला — “यह तो हम लड़ कर देखेंगे। ”
बैल ने फिर वही जवाब दिया — “जैसे तुम्हारी मरजी। ”
कह कर वे दोनों एक दूसरे की तरफ दौड़ पड़े। बैल ने ट्रौल की आँखें निकाल लीं और उसकेे सींग उसके शरीर में घुसा दिये। इससे उसके शरीर में से उसकी आँतें निकल कर बाहर आ गयीं।
पर वह ट्रौल क्योंकि उस बैल के मुकाबले का था सो बैल को उस ट्रौल को मारने में तीन दिन लग गये सो वे तीन दिन तक लड़ते ही रहे।
पर इस ट्रौल को मारने के बाद बैल भी इतना कमजोर हो गया और थक गया कि वह हिल भी नहीं सका। उसके घाव भी ऐसे थे कि उनसे खून की धार बह रही थी।
इस ट्रौल की कमर की पेटी से भी एक मरहम वाला सींग लटक रहा था सो बैल ने राजकुमारी से कहा कि वह उस ट्रौल की कमर से वह सींग निकाल ले और उसका मरहम उसके घावों पर लगा दे।
राजकुमारी ने वैसा ही किया तब जा कर वह कुछ ठीक हुआ। इस बार बैल को ठीक होने में एक हफ्ता लग गया तभी वे आगे बढ़ सके।
आखिर वे आगे चले पर बैल अभी भी बिल्कुल ठीक नहीं था सो वह बहुत धीरे चल रहा था।
राजकुमारी को लगा कि बैल को चलने में समय ज़्यादा लग रहा था सो समय बचाने के लिये उसने बैल से कहा कि क्योंकि वह छोटी थी और उसके अन्दर ज़्यादा ताकत थी वह जल्दी चल सकती थी वह उसको पैदल चलने की इजाज़त दे दे पर बैल ने उसको इस बात की इजाज़त नहीं दी। उसने कहा कि उसको अभी उसकी पीठ पर बैठ कर ही चलना चाहिये।
इस तरह से वे काफी दिनों तक चलते हुए बहुत जगह होते हुए फिर एक जंगल में आ पहुँचे। यह जंगल सारा सोने का था। उस जंगल के हर पेड़, शाख, डंडी, फूल, पत्ते सभी कुछ सोने के थे। इस जंगल में भी वही हुआ जो ताँबे और चाँदी के जंगलों में हुआ था।
बैल ने राजकुमारी से कहा कि वह उस जंगल में से भी कुछ न तोड़े क्योंकि इस जंगल का राजा एक नौ सिर वाला ट्रौल था और यह ट्रौल पिछले दोनों ट्रौल को मिला कर उनसे भी ज़्यादा बड़ा और ताकतवर था। बैल तो इसको जीत ही नहीं सकता था।
बैल जानता था कि राजकुमारी इस बात का पूरा ध्यान रखेगी कि वह उस जंगल की कोई चीज़ न तोड़े पर फिर भी वही हुआ। जब वे जंगल में घुसे तो यह जंगल ताँबे और चाँदी के जंगलों से भी कहीं ज़्यादा घना था।
इसके अलावा वे लोग जितना उस जंगल के अन्दर चलते जाते थे वह जंगल और ज़्यादा घना होता जाता था। आखिर वह इतना ज़्यादा घना हो गया कि राजकुमारी को लगा कि अब वह उस जंगल में से बिना किसी चीज़ को छुए निकल ही नहीं सकती।
उसको पल पल पर यही लग रहा था कि किसी भी समय पर उससे वहाँ कोई भी चीज़ टूट जायेगी।
इस डर से वह कभी बैठ जाती, कभी अपने आपको किसी तरफ झुका लेती, कभी मुड़ जाती पर फिर भी उन पेड़ों की शाखाएँ हर पल उसकी आँखों के सामने आ रही थीं।
इसका नतीजा यह हुआ कि उसको पता ही नहीं चला कि वह उन सोने की शाखाओं, फूलों, पत्तों से बचने के लिये कर क्या रही है। और इससे पहले कि उसको यह पता चलता कि क्या हुआ उसके हाथ में एक सोने का सेब आ गया।
उसको देख कर तो उसको इस बात का इतना ज़्यादा दुख हुआ कि वह बहुत ज़ोर से रो पड़ी और उसको फेंकना चाहती थी कि बैल बीच में ही बोल पड़ा — “अरे इसको फेंकना नहीं। इसे सँभाल कर रख लो और इसका ध्यान रखना। ” पर राजकुमारी का तो रोना ही नहीं रुक रहा था।
बैल ने उसको जितनी भी तसल्ली वह दे सकता था दी पर उसको लग रहा था कि अबकी बार उस बैल को केवल उसकी वजह से बहुत भारी मुश्किल का सामना करना पड़ेगा और उसको यह भी शक था कि यह सब कैसे होगा क्योंकि इस जंगल का मालिक ट्रौल बहुत बड़ा और ताकतवर था।
तभी उस जंगल का मालिक वह नौ सिर वाला ट्रौल वहाँ आ गया। वह इतना बदसूरत था कि राजकुमारी तो उसकी तरफ देखने की भी हिम्मत नहीं कर सकी।
वहाँ आ कर वह गरजा — “यह किसने मेरा जंगल छुआ?”
बैल ने फिर वही जवाब दिया — “यह जंगल जितना तुम्हारा है उतना ही मेरा भी है। ”
ट्रौल बोला — “यह तो हम लड़ कर देखेंगे। ”
बैल ने फिर वही जवाब दिया — “जैसे तुम्हारी मरजी। ”
कह कर वे दोनों एक दूसरे की तरफ दौड़ पड़े। बहुत ही भयानक दृश्य था। राजकुमारी तो उसको देख कर ही बेहोश होते होते बची।
इस बार भी बैल ने ट्रौल की आँखें निकाल लीं और उसके सींग उसके पेट में घुसा दिये जिससे उसकी आँतें उसके पेट से बाहर निकल आयीं। फिर भी ट्रौल बहुत बहादुरी से लड़ता रहा।
जब बैल ने ट्रौल का एक सिर मार दिया तो उसके दूसरे सिरों से उस मरे हुए सिर को ज़िन्दगी मिलने लगी। इस तरह वह लड़ाई एक हफ्ता चली क्योंकि जब भी बैल उस ट्रौल के एक सिर को मारता तो उसके दूसरे सिर उसके मरे हुए सिर को जिला देते थे।
उसके सारे सिरों को मारने में उस बैल को पूरा एक हफ्ता लग गया तभी वह उस ट्रौल को मार सका।
अबकी बार तो बैल इतना घायल हो गया था और इतना थक गया था कि वह अपना पैर भी नहीं हिला सका। वह तो राजकुमारी से इतना भी नहीं कह सका कि वह ट्रौल की कमर की पेटी में लगे मरहम के सींग में से मरहम निकाल कर उसके घावों पर लगा दे।
पर राजकुमारी को तो यह मालूम था सो उसने ट्रौल की कमर की पेटी से मरहम का सींग निकाला और उसमें से मरहम निकाल कर बैल के घावों पर लगा दिया। इससे बैल के घावों को काफी आराम मिला और वह धीरे धीरे ठीक होने लगा।
इस बार बैल को आगे जाने के लिये तीन हफ्ते तक आराम करना पड़ा। इतने आराम के बाद भी बैल घोंघे की चाल से ही चल पा रहा था।
बैल ने राजकुमारी को बताया कि इस बार उनको काफी दूर जाना है। उन्होंने कई ऊँची ऊँची पहाड़ियाँ पार कीं, कई घने जंगल पार किये और फिर एक मैदान में आ निकले।
बैल ने राजकुमारी से पूछा — “क्या तुमको यहाँ कुछ दिखायी दे रहा है?”
राजकुमारी ने जवाब दिया — “नहीं, मुझे तो यहाँ कुछ दिखायी नहीं दे रहा सिवाय आसमान के और जंगली मैदान के। ”
वे कुछ और आगे बढ़े तो वह मैदान कुछ और एकसार हो गया और वे कुछ और आगे का देख पाने के लायक हो गये।
बैल ने फिर पूछा — “क्या तुमको अब कुछ दिखायी दे रहा है?”
राजकुमारी बोली — “हाँ अब मुझे दूर एक छोटा सा किला दिखायी दे रहा है। ”
बैल बोला — “अब वह छोटा किला इतना छोटा भी नहीं है राजकुमारी जी। ”
काफी देर तक चलने के बाद वे एक पत्थरों के ढेर के पास आये जहाँ लोहे का एक खम्भा सड़क के आर पार पड़ा हुआ था।
बैल ने फिर पूछा — “क्या तुमको अब कुछ दिखायी दे रहा है?”
राजकुमारी बोली — “हाँ अब मुझे किला साफ साफ दिखायी दे रहा है और अब वह बहुत बड़ा भी है। ”
बैल बोला — “तुमको वहाँ जाना है और तुमको वहीं रहना है। किले के ठीक नीचे एक जगह है जहाँ सूअर रहते हैं तुम वहाँ चली जाना।
वहाँ पहुँचने पर तुमको लकड़ी का एक क्लोक मिलेगा जो लकड़ी के पतले तख्तों से बना हुआ होगा। तुम उसको पहन लेना।
उस क्लोक को पहन कर तुम उस किले में जाना और अपना नाम केटी वुडिनक्लोक बताना और उनसे अपने रहने के लिये जगह माँगना।
पर इससे पहले कि तुम वहाँ जाओ तुम अपना छोटा वाला चाकू लो और मेरा गला काट दो। फिर मेरी खाल निकाल कर लपेट कर पास की एक चट्टान के नीचे छिपा दो।
उस खाल के नीचे वह ताँबे और चाँदी की दोनों पत्तियाँ और सोने का सेब रख देना। और फिर उस चट्टान के सहारे एक डंडी खड़ी कर देना।
उसके बाद जब भी तुम कोई चीज़ चाहो तो उस चट्टान की दीवार पर वह डंडी मार देना। तुमको वह चीज़ मिल जायेगी। ”
पहले तो राजकुमारी ऐसा कुछ भी करने को तैयार नहीं हुई पर जब बैल ने उससे कहा कि उसने जो कुछ भी राजकुमारी के लिये किया उस सबको करने के लिये धन्यवाद देने का यही एक तरीका था तो राजकुमारी के पास यह करने के अलावा और कोई चारा न रहा।
उसने अपना छोटा वाला चाकू निकाला और उससे उस बैल का गला काट दिया। फिर उसने बैल की खाल निकाल कर लपेट कर पास में पड़ी एक चट्टान के नीचे रख दी।
खाल के नीचे उसने वे ताँबे और चाँदी की दोनों पत्तियाँ और सोने का सेब रख दिया। और उसके बाद में उसने उस चट्टान के सहारे एक डंडी खड़ी कर दी।
वहाँ से वह किले के नीचे सूअरों के रहने की जगह गयी जहाँ उसको वह लकड़ी के पतले तख्तों से बना हुआ क्लोक मिल गया। उसने उस क्लोक को पहना और ऊपर किले में आयी। यह सब करते हुए वह बैल को याद कर करके रोती और सुबकती रही।
फिर वह सीधी शाही रसोईघर में गयी और वहाँ जा कर उसने अपना नाम केटी वुडिनक्लोक बताया और रहने के लिये जगह माँगी।
रसोइया बोला कि हाँ उसको वहाँ रहने की जगह मिल सकती थी। रसोईघर के पीछे वाले छोटे कमरे में वह रह सकती थी और उसके बरतन धो सकती थी क्योंकि उसकी बरतन धोने वाली अभी अभी काम छोड़ कर चली गयी थी।
रसोइया बोला — “पर जैसे ही तुम यहाँ रहते रहते थक जाओगी तो तुम यहाँ से चली जाओगी। ”
राजकुमारी बोली — “नहीं, मैं ऐसा नहीं करूँगी। ”
और वह वहाँ रहने लगी। वह बहुत अच्छे से रहती और बरतन भी बहुत ही आसानी से साफ करती रहती।
रविवार के बाद वहाँ कुछ अजीब से मेहमान आये तो केटी ने रसोइये से पूछा कि क्या वह राजकुमार के नहाने का पानी ऊपर ले जा सकती थी।
यह सुन कर वहाँ खड़े सब लोग हँस पड़े और बोले — “पर तुम वहाँ क्या करोगी? तुम्हें क्या लगता है कि क्या राजकुमार तुम्हारी तरफ देखेगा भी? तुम तो बहुत ही डरावनी दिखायी देती हो। ”
पर उसने अपनी कोशिश नहीं छोड़ी और उनसे पा्रर्थना करती रही और बार बार राजकुमार के लिये नहाने का पानी ले जाने के लिये कहती रही। आखिर उसको वहाँ उसके नहाने का पानी ले जाने की इजाज़त मिल ही गयी।
जब वह ऊपर गयी तो उसके लकड़ी के क्लोक ने आवाज की तो राजकुमार अन्दर से निकल कर आया और उससे पूछा — “तुम कौन हो?”
राजकुमारी बोली — “मैं राजकुमार के लिये नहाने का पानी ले कर आ रही थी। ”
“तुम क्या समझती हो कि इस समय तुम्हारे लाये पानी से मैं कुछ करूँगा?” और यह कर उसने वह पानी राजकुमारी के ऊपर ही फेंक दिया।
वह वहाँ से चली आयी और फिर उसने रसोइये से चर्च जाने की इजाज़त माँगी। चर्च पास में ही था सो उसको वह इजाज़त भी मिल गयी।
पर सबसे पहले वह उस चट्टान के पास गयी और जैसा कि बैल ने उससे कहा था उसने डंडी से चट्टान को मारा। तुरन्त ही उसमें से एक आदमी निकला और उसने पूछा — “तुम्हारी क्या इच्छा है?”
राजकुमारी बोली कि उसने चर्च जाने की और पादरी का भाषण सुनने के लिये छुट्टी ले रखी है पर उसके पास चर्च जाने लायक कपड़े नहीं हैं।
उस आदमी ने एक गाउन निकाला जो ताँबे जैसा चमकदार था। उसने उसको वह दिया और उसके साथ ही उसको एक घोड़ा भी दिया जिस पर उस घोड़े का साज भी सजा था। वह साज भी ताँबे के रंग का था और खूब चमक रहा था।
उसने तुरन्त अपना वह गाउन पहना और घोड़े पर चढ़ कर चर्च चल दी। जब वह चर्च पहुँची तो वह बहुत ही प्यारी और शानदार लग रही थी।
सब लोग उसको देख कर सोच रहे थे कि यह कौन है। उन सबमें से शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने उस दिन पादरी का भाषण सुना होगा क्योंकि वे सब उसी को देखते रहे।
वहाँ राजकुमार भी आया था। वह तो उसके प्यार में बिल्कुल पागल सा ही हो गया था। उसकी तो उस लड़की के ऊपर से आँख ही नहीं हट रही थी।
जैसे ही राजकुमारी चर्च से बाहर निकली तो राजकुमार उसके पीछे भागा। राजकुमारी तो दरवाजे से बाहर चली गयी पर उसका एक दस्ताना दरवाजे में अटक गया। राजकुमार ने उसका वह दस्ताना वहाँ से निकाल लिया।
जब वह घोड़े पर चढ़ गयी तो राजकुमार फिर उसके पास गया और उससे पूछा कि वह कहाँ से आयी थी तो केटी बोली — “मैं बैथ से आयी हूँ। ”
और जब राजकुमार ने उसको देने के लिये उसका दस्ताना निकाला तो वह बोली —
रोशनी आगे और अँधेरा पीछे, बादल आओ हवा पर
ताकि यह राजकुमार कभी न देख सके जहाँ मेरा यह अच्छा घोड़ा मेरे साथ जाये
राजकुमार ने वैसा दस्ताना पहले कभी नहीं देखा था। वह उस शानदार लड़की को ढूँढने के लिये चारों तरफ घूमा जो बिना दस्ताने पहने ही वहाँ से घोड़े पर चढ़ कर चली गयी थी। उसने उसे बताया भी था कि वह बैथ से आयी थी पर वहाँ यह कोई नहीं बता सका कि बैथ कहाँ है।
अगले रविवार को किसी को राजकुमार के लिये उसका तौलिया ले कर जाना था। तो केटी ने फिर कहा — “क्या मैं राजकुमार का तौलिया ले कर जा सकती हूँ?”
दूसरे लोग बोले — “तुम्हारे जाने से क्या होगा। तुमको तो पता ही है कि पिछली बार तुम्हारे साथ क्या हुआ था। ”
फिर भी केटी ने अपनी कोशिश नहीं छोड़ी और उसको राजकुमार का तौलिया ले जाने की इजाज़त मिल गयी। बस वह तौलिया ले कर सीढ़ियों से ऊपर भाग गयी।
इस भागने से उसके लकड़ी के पतले तख्ते का बने क्लोक ने फिर से आवाज की तो राजकुमार फिर से अन्दर से निकल कर आया और जब उसने देखा कि वह तो केटी थी तो उसने उसके हाथ से उस तौलिये को ले कर फाड़ दिया और उसके मुँह पर फेंक दिया।
वह बोला — “तुम यहाँ से चली जाओ ओ बदसूरत ट्रौल। तुम क्या सोचती हो कि मैं वह तौलिया इस्तेमाल करूँगा जिसको तुम्हारी गन्दी उँगलियों ने छू लिया हो?” और उसके बाद वह चर्च चला गया।
जब राजकुमार चर्च चला गया तो केटी ने भी चर्च जाने की छुट्टी माँगी। पर सबने उससे पूछा कि वह चर्च में क्या करने जाना चाहती थी।
उसके पास तो चर्च में पहनने के लिये उस लकड़ी के क्लोक के अलावा और कुछ था ही नहीं। और वह क्लोक भी बहुत ही भद्दा और काला था।
पर केटी बोली कि चर्च का पादरी बहुत ही अच्छा भाषण देता है। और जो कुछ भी उसने पिछले हफ्ते कहा था उसने केटी का काफी भला किया था। इस बात पर उसको चर्च जाने की छुट्टी मिल गयी।
वह फिर से दौड़ी हुई उसी चट्टान के पास गयी और जा कर उसके पास रखी डंडी से उसे मारा। उस चट्टान में से फिर वही आदमी निकला और अबकी बार उसने उसको पिछले गाउन से भी कहीं ज़्यादा अच्छा गाउन दिया।
वह सारा गाउन चाँदी के काम से ढका हुआ था और चाँदी की तरह से ही चमक रहा था। साथ में एक बहुत बढ़िया घोड़ा भी दिया जिसके साज पर चाँदी का काम था। और उसको चाँदी का एक टुकड़ा भी दिया।
उस सबको पहन कर जब वह राजकुमारी चर्च पहुँची तो बहुत सारे लोग चर्च के आँगन में ही खड़े हुए थे। उसको आते देख कर सब फिर सोचने लगे कि यह लड़की कौन हो सकती है।
राजकुमार तो तुरन्त ही वहाँ आ गया कि जब वह उस घोड़े पर से उतरेगी तो वह उसका घोड़ा पकड़ेगा। पर वह तो उस पर से कूद गयी और बोली कि उसका घोड़ा पकड़ने की उसको कोई जरूरत नहीं है क्योंकि उसका घोड़ा बहुत सधा हुआ था।
वह घोड़ा वहीं खड़ा रहा जहाँ वह उसको छोड़ कर गयी थी। जब वह वहाँ वापस आयी और जब उसने उसे बुलाया तो वह उसके पास आ गया।
सब लोग चर्च के अन्दर चले गये पर पिछली बार की तरह से शायद ही कोई आदमी होगा जिसने उस दिन भी उस पादरी का भाषण सुना होगा क्योंकि उस दिन भी वे सब उसी की तरफ देखते रहे।
और राजकुमार तो उससे पहले से भी ज़्यादा प्यार करने लगा था।
जब पादरी का भाषण खत्म हो गया तो वह चर्च से बाहर चली गयी। वह अपने घोड़े पर बैठने ही वाली थी कि राजकुमार फिर वहाँ आया और उससे पूछा कि वह कहाँ से आयी है।
इस बार उसने जवाब दिया — “मैं टौविललैंड से आयी हूँ। ” यह कह कर उसने अपना कोड़ा गिरा दिया। यह देख कर राजकुमार उसको उठाने के लिये झुका तो इस बीच राजकुमारी ने कहा —
रोशनी आगे और अँधेरा पीछे, बादल आओ हवा पर
ताकि यह राजकुमार कभी न देख सके जहाँ मेरा यह अच्छा घोड़ा मेरे साथ जाये
और वह वहाँ से भाग गयी। राजकुमार यह भी न बता सका कि उसका हुआ क्या। वह फिर से यह जानने के लिये चारों तरफ घूमा फिरा कि टौविललैंड कहाँ है पर कोई उसको यह नहीं बता सका कि वह जगह कहाँ है। इसलिये अब राजकुमार को केवल उसी से काम चलाना था जो उसके पास था।
अगले रविवार को किसी को राजकुमार को कंघा देने के लिये जाना था। केटी ने फिर कहा कि क्या वह राजकुमार को कंघा देने जा सकती है। पर दूसरे लोगों ने फिर से उसका मजाक बनाया और कहा कि उसको पिछले दो रविवारों की घटनाएँ तो याद होंगी ही।
और साथ में उसको डाँटा कि वह किस तरह अपने उस भद्दे काले लकड़ी के क्लोक में राजकुमार के सामने जाने की हिम्मत करती है। पर वह फिर उन लोगों के पीछे पड़ी रही जब तक कि उन लोगों ने उसको हाँ नहीं कर दी।
वह फिर से कंघा ले कर ऊपर दौड़ी गयी। उसके लकड़ी के क्लोक की आवाज सुन कर राजकुमार फिर बाहर निकल कर आया और केटी को फिर से वहाँ देख कर उसने उससे कंघा छीन कर उसके मुँह पर मारा और बिना कुछ कहे सुने वहाँ से चर्च चला गया।
जब राजकुमार चर्च चला गया तो केटी ने भी चर्च जाने की इजाज़त माँगी। उन लोगों ने उससे फिर पूछा कि वहाँ उसका काम ही क्या था – उसमें से बदबू आती थी, वह काली थी, उसके पास वहाँ पहनने के लिये ठीक से कपड़े भी नहीं थे। हो सकता है कि राजकुमार या कोई और उसको वहाँ देख ले तो उसकी वहाँ बदनामी होगी।
पर केटी बोली कि लोगों के पास उसकी तरफ देखने की फुरसत ही कहाँ थी उनके पास तो और बहुत सारे काम थे। और वह उनसे चर्च जाने की इजाज़त माँगती ही रही। आखिर उन्होंने उसको वहाँ जाने की इजाज़त फिर से दे दी।
इस बार भी वही हुआ जो दो बार पहले हो चुका था। वह फिर से दौड़ी हुई उसी चट्टान के पास गयी और जा कर उसके पास रखी डंडी से उसे मारा। उस चट्टान में से फिर वही आदमी निकला और अबकी बार उसने उसको पिछले दोनों गाउन से भी ज़्यादा अच्छा गाउन दिया।
इस बार वह सारा गाउन सुनहरी था और उसमें हीरे जड़े हुए थे। साथ में एक बहुत बढ़िया घोड़ा भी दिया जिसके साज पर सोने का काम था। उसने उसको एक सोने का टुकड़ा भी दिया।
जब राजकुमारी चर्च पहुँची तो वहाँ के आँगन में पादरी और चर्च में आये सारे लोग उसके इन्तजार में खड़े थे।
राजकुमार वहाँ भागता हुआ आया और उसने उसका घोड़ा पकड़ना चाहा पर राजकुमारी पहले की तरह ही उस पर से कूद कर उतर गयी और बोली — “मेरे घोड़े को पकड़ने की जरूरत नहीं है। वह बहुत सधा हुआ है जहाँ मैं इसको खड़े होने को कहती हूँ यह वहीं खड़ा रहता है। ”
फिर सब चर्च के अन्दर चले गये। पादरी भी अपनी जगह चला गया। उस दिन भी किसी ने उसके भाषण का एक शब्द भी नहीं सुना क्योंकि पहले की तरह से सभी लोग केवल उसी लड़की को देखते रहे और सोचते रहे कि वह कहाँ से आती है और कहाँ चली जाती है।
और राजकुमार तो उसको पहले से भी ज़्यादा प्यार करने लगा। उसकी तो कोई इन्द्रिय काम ही नहीं कर रही थी वह तो बस उसको घूरे ही जा रहा था।
जब पादरी का भाषण खत्म हुआ तो राजकुमारी चर्च से बाहर निकली। अबकी बार राजकुमार ने चर्च के बाहर कुछ चिपकने वाली चीज़ डाल दी ताकि वह उसको वहाँ से जाने से रोक सके।
पर राजकुमारी ने उसकी कोई चिन्ता नहीं की और उसने अपना पैर उस चिपकने वाली चीज़ के ठीक बीच में रख दिया और उसके उस पार कूद गयी। पर इस कूदने में उसका एक सुनहरी जूता उस जगह पर चिपक गया।
जैसे ही वह अपने घोड़े पर चढ़ी राजकुमार चर्च में से बाहर आ कर उसके पास आया और उससे पूछा कि वह कहाँ से आयी है। इस बार वह बोली मैं कौम्बलैंड[9] से आयी हूँ।
इस पर राजकुमार उसको उसका सुनहरा जूता देना चाहता था कि राजकुमारी बोली —
रोशनी आगे और अँधेरा पीछे, बादल आओ हवा पर
ताकि यह राजकुमार कभी न देख सके जहाँ मेरा यह अच्छा घोड़ा मेरे साथ जाये
और वह तो राजकुमार की आँखों के सामने सामने गायब हो गयी और राजकुमार उसे ढूँढता रहा पर कोई उसको कोई यह न बता सका कि कौम्बलैंड कहाँ है।
फिर उसने दूसरी तरकीब इस्तेमाल की। उसके पास उसका एक सुनहरी जूता रह गया था सो उसने सब जगह यह घोषणा करवा दी कि वह उसी लड़की से शादी करेगा जिसके पैर में यह सुनहरी जूता आ जायेगा।
बहुत सारी लड़कियाँ बहुत सारी जगहों से उस जूते को पहनने के लिये वहाँ आयीं पर किसी का पैर इतना छोटा नहीं था जिसके पैर में वह जूता आ जाता।
काफी दिनों बाद सोचो ज़रा कौन आया? केटी की सौतेली बहिन और सौतेली माँ। आश्चर्य उस लड़की के पैर में वह जूता आ गया। पर वह तो बहुत ही बदसूरत थी।
पर राजकुमार ने अपनी इच्छा के खिलाफ अपनी जबान रखी। उसने शादी की दावत रखी और वह सौतेली बहिन दुलहिन की तरह सज कर चर्च चली तो चर्च के पास वाले एक पेड़ पर बैठी एक चिड़िया ने गाया —
उसकी एड़ी एक टुकड़ा और उसकी उँगलियों का एक टुकड़ा
केटी वुडिनक्लोक का छोटा जूता खून से भरा है, मैं बस इतना जानती हूँ
यह सुन कर उस लड़की का जूता देखा गया तो उनको पता चला कि वह चिड़िया तो सच ही बोल ही रही थी। जूता निकालते ही उसमें से खून की धार निकल पड़ी।
फिर महल में जितनी भी नौकरानियाँ और लड़कियाँ थीं सभी वहाँ जूता पहन कर देखने के लिये आयीं पर वह जूता किसी के पैर में भी नहीं आया।
जब उस जूते को सबने पहन कर देख लिया तो राजकुमार ने पूछा — “पर वह केटी वुडिनक्लोक कहाँ है?” क्योंकि राजकुमार ने चिड़िया के गाने को ठीक से समझ लिया था कि वह क्या गा रही थी।
वहाँ खड़े लोगों ने कहा — “अरे वह? उसका यहाँ आना ठीक नहीं है। ”
“क्यों?”
“उसकी टाँगें तो घोड़े की टाँगों के जैसी हैं। ”
राजकुमार बोला — “आप लोग सच कहते हैं। मुझे मालूम है पर जब सबने यहाँ इस जूते को पहन कर देखा है तो उसको भी इसे पहन कर देखना चाहिये। ”
उसने दरवाजे के बाहर झाँक कर आवाज लगायी — “केटी। ” और केटी धम धम करती हुई ऊपर आयी। उसका लकड़ी का क्लोक ऐसे शोर मचा रहा था जैसे किसी फौज के घुड़सवार चले आ रहे हों।
वहाँ खड़ी दूसरी नौकरानियों ने उससे हँस कर उसका मजाक बनाते हुए कहा — “जाओ जाओ। तुम भी वह जूता पहन कर देखो और तुम भी राजकुमारी बन जाओ। ”
केटी वहाँ गयी और उसने वह जूता ऐसे पहन लिया जैसे कोई खास बात ही न हो और अपना लकड़ी का क्लोक उतार कर फेंक दिया।
लकड़ी का क्लोक उतारते ही वह वहाँ अपने सुनहरे गाउन में खड़ी थी। उसमें से सुनहरी रोशनी ऐसे निकल रही थी जैसे सूरज की किरनें फूट रही हों। और लो, उसके दूसरे पैर में भी वैसा ही सुनहरा जूता आ गया।
अब राजकुमार उसको पहचान गया कि यह तो वही चर्च वाली लड़की थी। वह तो इतना खुश हुआ कि वह उसकी तरफ दौड़ गया और उसके गले में बाँहें डाल दीं।
तब राजकुमारी ने उसको बताया कि वह भी एक राजा की बेटी थी। दोनों की शादी हो गयी और फिर एक बहुत बड़ी शादी की दावत का इन्तजाम हुआ।

(सुषमा गुप्ता)

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