जीवन के रंग (कहानी) : डॉ पद्मा शर्मा

Jiwan Ke Rang (Hindi Story) : Dr. Padma Sharma

गाँव की धरती पर कदम रखते ही मिट्टी की सौंधी खुशबू के झोंके ने ज्यों ही चेहरे को छुआ रवीन्द्र की रास्ते भर की थकान और दिमाग में भरा टेंशन गायब हो गया। चारों तरफ फैली पेड़ पौधों की हरियाली मन के कौने-कौने में प्रवेश कर गयी । शहर में कपड़े से ढंके रहने वाले नथुनों में पानी सनी मिट्टी की सौंधी खुशबू ने चित्त तरोताजा कर दिया था। खेत की मेड़ देखकर रवीन्द्र को अपना बचपन दौड़ता दिखाई देने लगा, अमियों से लदे पेड़ों पर उसे एक शैतान बालक चढ़ता नजर आया। बैल गाड़ी के घूमते पहियों के साथ उसका बचपन उमग-उमगकर अठखेलियाँ कर साथ-साथ चल रहा था।

गाँव में कुछ घर पक्की छत वाले बन चुके थे तो कुछ घर अभी भी खपरैल की चादर ओढ़े अपनी गरीबी की दास्तान बयां कर रहे थे।
दरअसल अम्माँ का कुछ दिनों पहले ही फोन आया था कि तुम्हारे पापा के न रहने के बाद पहली होली आने वाली है ... अनरहे की होली मनेगी ... इसलिए होली पर कुछ दिनों की छुट्टी लेकर आ जाना और हाँ बहू और बच्चों को भी साथ ले आना ...पता नहीं फिर कब आना हो पाए।
होली के चार दिन शेष थे और रवि अपनी पत्नी रीना और बच्चों के साथ गाँव के मोटर स्टैंड पर अभी आकर उतरा था। रवीन्द्र देहली में एक प्रायवेट कम्पनी में नौकरी करता है। पूरे साल में दीपावली के समय ही छुट्टी मिलती थी तो अपने पैतृक गाँव कदवाया आ पाता था। अशोकनगर की ईसागढ़ तहसील से करीब पन्द्रह किलोमीटर अन्दर कदवाया गाँव में उनकी खेती की जमीन थी। उसके पिता गिरीश अपने खेतों की देखभाल बच्चों की तरह करते थे। पिताजी की बहुत इच्छा थी कि रवीन्द्र कृषि विज्ञान में ही पोस्ट ग्रेजुएशन करके खेती बाड़ी सम्हाले और नयी तकनीक से खेती करे,पर हर नौजवान की तरह रवीन्द्र की भी इच्छा थी कि वह धूल मिट्टी से दूर सफेदपोश काम काज करे। पिता की मृत्यु के बाद अम्माँ की देख रेख में अधबटिया से खेती की जाने लगी है, यानि जो भी मजदूर खेती की देखभाल करेगा आधा बीज उसका और आधा खेत के मालिक का, सब खर्चे आधे-आधे। उसी तरह से खेती की उपज भी आधी बटाईदार की और आधी मालिक की अर्थात् हर चीज में बँटाई। खेत की जमीन मालिक की और उसकी देखभाल बटाईदार की।

सुजाता खूब खुश थी कि अब रवि के बच्चे कुछ दिन साथ में रहेंगे। वे उसे प्यार से रवि ही कहतीं। हालांकि रीना सशंकित थी क्योंकि अम्मा की साफ-सफाई और अनुशासन से वह परेशान हो जाती थी। वे निर्देश देती रहती थी... नहाकर रसोई में जाना... जूते-चप्पल बाहर ही रखना। उनके कहने पर सुबह गर्म पानी पीने से दिनचर्या की शुरुआत होती और रात को हल्दी वाले दूध से दिन का समापन होता। सप्ताह में एक बार नीम के पत्ती दार झौंरे के पानी से नहाना और उससे ही कपड़े धोना .. ऐसे कई नियम अम्मा के बने हुए थे जिन्हें रवि और रीना पालन कर रहे थे। वे लोग सफर करके आए तो उनका सामान आंगन में एक ओर रख दिया गया और उन को नहाकर ही चाय पानी मिल पाया। अपने क्षेत्र की अम्माँ ही अधिकारिणी थीं। उनके नियम में जरा सी आंच आ जाये तो वे कहती तो कुछ नहीं थीं पर चेहरे पर एक अजीब से भाव लाकर वे अन्दर ही अन्दर परेशान हो जाती थीं।

होली के एक दिन पूर्व रात्रि में होलिका दहन किया जाना था उसी रोज सुबह उनके रिश्ते नातेदारों ने सबसे पहले पिता को याद करती दुःखी अम्मा पर सूखा रंग छिड़का फिर रवीन्द्र और बहू को गुलाल लगाया। सामान्य दिनों में दूसरे रोज यानि धुरेंडी वाले दिन होली खेली जाती है, लेकिन फीकी होली होने से रवि के घर एक दिन पहले होली के रंग की औपचारिक रस्म हो गयी। पहले जुम्मन की ढपली बजती थी और सुर लगाकर वो गाना शुरू करता था-

फागुन के लहर में पकड़ जबराघार में
रगड़ दियो रे, हाँ लगा दियो रंग

मुहल्ले में सबने खूब होली खेली और हुरियारों ने होली के गीत गाये और कमर मटकाकर नाच भी किया- बच्चे आनन्द के साथ यह सब देख रहे थे।

कागा रसिया खेलें होरी
राधा संग गिरधारी लाल
मोहन के संगे हैं ग्वाल
राधा संगे ब्रज की बाल
लाल-लाल हों सबके गाल
भर-भर झोली लये गुलाल
सो पकर-पकर मुख मल रए रोरी
राधा संग गिरधारी लाल

रवीन्द्र दस दिल की छुट्टी लेकर आया था। एक-एक करके दिन निकलते जा रहे थे और रवीन्द्र के वापस जाने के दिन नजदीक आ रहे थे। रवीन्द्र अपने ऑफिस के सहकर्मियों से रोज बात कर लेता था, पता लगा कि दिल्ली के हालात कुछ ठीक नहीं थे। कोरोना वायरस के कारण ऑफिस, स्कूल, कॉलेज सब बन्द कर दिये गये थे। जाने से एक दिन पूर्व टेलीविजन से समाचार मिला कि सब दूर लॉकडाउन यानी आना जाना ,दुकान-बाजार, मिलना-जुलना सब निषेध कर दिया गया है। रीना और रवीन्द्र परेंशान हो गये अब दिल्ली वापस कैसे जा पायेंगे। फिर यह सोचकर मन शांत हो गया कि कम से कम घर पर तो है, बच्चे यहाँ खुली ताजी हवा में ताजी सांस तो ले रहे हैं। घर का ताजा दूध और खेत की ताजी सब्जियाँ मिल रही हैं। दुनिया भर की यही हालत थी कि घर गुलजार हो गये थे, शहर सूने, बस्ती सूनी हो गयी थीं और बस्ती में कैद हर हस्ती हो गई।

लॉकडाउन मतलब जो जहाँ है वहीं रहे। ट्रक, बस, रेल, प्लेन सबके पहिए थम गये थे। लोग यह नजारा पहली बार देख रहे थे। एक अदृश्य शत्रु ने इतना कोहराम मचा दिया कि लोग अपनों से ही दूरी बनाने लगे। किसी के गुजर जाने के बाद शहर बंद होना बहुत बार देखा है लेकिन कोई गुजरे नहीं इसलिये शहरों को बंद होते पहली बार देख रहे थे। दूरदर्शन पर फिर से रामायण और महाभारत सीरियल का प्रसारण आरम्भ हो गया था। खबर लगी कि देश के सारे तीर्थ स्थल और प्रमुख मन्दिर व मजार वगैरह बन्द हो गए थे।

इतने दिनों में रीना ने घर का काम काज अच्छी तरह से सम्हाल लिया था। सुजाता भी बहू के व्यवहार से खुश थी और उन्होंने उसके पहनने ओढ़ने और आड़ पर्दा में ढील देकर उसे सिर पर पल्ला न रखने की छूट दे दी। रोज शाम रवीन्द्र मोबाइल पर आने वाली विभिन्न सूचनाओं और हिदायतों की जानकारी अम्माँ को दे देता।

दो-तीन दिन में ही सबका रोजमर्रा का टाइम टेबल निर्धारित सा हो गया। अम्माँ घर के काम काज रीना के साथ निबटातीं और फिर रामायण, महाभारत देखतीं। दिन में सब बैठकर चियों (पकी इमली के बीज) से अष्टा चंगा का खेल खेलते। बच्चे सुबह शाम खेतों में टहलने जाते और सब्जी तोड़कर लाने का काम भी करते। रवीन्द्र भी उनके साथ सितोलिया और रूमाल झपट आदि ग्रामीण खेल खेलते जो बच्चों के लिये एकदम नये थे। रात में सुजाता कोई कहानी सुनाती और रवीन्द्र बच्चों को गाँव के पुराने मठ,मन्दिर सहित कई हजार साल पहले बने महत्वपूर्ण स्थलों के बारे में जानकारी देता। वह गाँव वालो को बार-बार हाथ धोने और बाहर जाने पर मास्क लगाने की हिदायत देता।

एक शाम रवीन्द्र ने अम्मा से कहा-‘‘ अम्मा रीना इस बार आपकी तारीफ कर रही थी। आप बहुत बदल गयी हैं।’’
‘‘हूँ ..’’ कहकर अम्मा ने लम्बी सांस भरी। शब्दों का भी अपना ‘तापमान’ होता है, ये ‘जला’ भी देते हैं और ‘सुकून’ भी देते हैं।
‘‘पहले तुम लोग मेरे कहने से आते थे सो ये न लगे कि मैं तुम्हें बुलाने के लिए कोई चिरौरी कर रही हूँ।’’
‘‘पर इस बार भी तो हम लोग आपके कहने पर ही तो आये हैं।’’
‘‘हाँ सो तो है। पर बाद में रुकना तुम लोगों की विवशता है। ऐसे समय बहू को ये न लगे कि यहाँ मजबूरी में रह रहे हैं। उसके मन में कोई मलाल न आये इसलिये जैसे वो वहाँ रहती है वैसे रहने के लिये मैंने छूट दे दी है।’’

रवीन्द महसूस कर रहा था कि बच्चे यहाँ आकर मोबाइल लेने की जिद नहीं करते। नहीं तो देहली में रीना अपने मोबाइल को ही तरस जाती थी। शीतला सप्तमी यानी बासौड़े पर एक दिन पूर्व बना खाना खाने में भी बच्चों ने कोई आनाकानी नहीं की। रीना ने इस बीच अम्माँ के मायके सहित की कई रिश्तेदारों से वीडियो कॉल करके आमने सामने शक्ल दिखा के बात करवा दी थी सो अम्माँ का विशेष लाड रीना पर उमड़ने लगा था।
एक दिन बटाईदार ने रवीन्द्र से कहा-‘‘ मालिक गाँव के आखिर में छपरा डालकर रहने वाले मजूर दो दिन से भूखे हैं।’’
‘‘अपने गाँव में कहाँ से आ गये मजदूर ?’’
‘‘मालिक खेत काटने आये थे, लोकडोन हुआ तो यहाँ से जा नहीं पाये’’

एक-एक किलो की तौल का हिसाब रखने वाली अम्मा ने अनाज का कुठारा खोल दिया। रवीन्द्र की आँखों में जिज्ञासा देखकर बोली-
रोटी खाना प्रवृत्ति है
अधिक रोटी खाना विकृति है
रोटी दान देना हमारी संस्कृति है। इसलिए रोटी दान देना चाहिए।
बेटा थकान शाम को अपना घर मांगती है और जिन्दगी रोज नया सफर मांगती है।

गाँव में कोरोना के कहर को सभी लोग इतनी गम्भीरता से नहीं ले रहे थे। शासन के बार-बार आग्रह पर भी बाहर निकलने पर मुँह को नहीं ढंक रहे थे। लोगों से बात करने पर ज्ञात हुआ कि किसी के पास मास्क है ही नहीं।
रीना ने अम्मा से कहा- ‘‘माँ जी आप तो सिलाई करना जानती हो आपके पास तो सिलाई मशीन भी है।’’
अम्मा ने प्रश्नवाचक निगाहों से उसे देखा
‘‘माँ जी मैं आपको एक डिजायन बनाकर दूँगी तो कपड़े से आप मास्क सिल देंगी ?’’

उस दिन के बाद रीना दिन में मास्क सिलने में अम्मा की मदद करती और शाम होते ही बटाईदार की पत्नी के साथ मिलकर खाना बनाती। बच्चे और रवीन्द्र उनके पैकेट बनाकर उन्हें मजदूरों में बांटने जाते। रवीन्द ने आसपास के लोगों को भी अपने कार्य में जोड़ लिया। उसने सबसे यही कहा-‘‘सच्चाई और अच्छाई कहीं भी ढूँढ लो अगर वो खुद में नही तो कहीं भी नहीं। जो इंसान खुद के लिए जीता है उसका एक दिन मरन होगा परन्तु जो इंसान दूसरो के लिए जीता है उसका सदैव स्मरण होगा।’’

सुबह अम्मा जब पूजा करतीं तो बच्चे भी उनका अनुसरण करते। वे भगवान के सामने दीपक जलाकर कहतीं-‘‘हे ईश्वर अगर तेरा कुछ तोड़ने का मन करे तो मेरा गुरूर तोड़ देना अगर तेरा कुछ जलाने का मन करे तो मेरा क्रोध जला देना अगर तेरा कुछ मारने का मन करे तो मेरी इच्छा मार देना। अगर तेरा कुछ बुझाने का मन करे तो मेरी घृणा बुझा देना, और अगर तेरा प्यार करने का मन हो तो मेरी ओर देख लेना मैं शब्द तुम अर्थ तुम बिन मैं व्यर्थ।
घर में बच्चों का राज चल रहा था। अम्मा बच्चों के मन के रोज नए पकवान बनाकर खिला रही थीं।

एक दिन बात करते करते एक मजदूर ने कहा- ‘‘साब यहाँ टमाटर की खेती बहुत होती है, यहाँ सॉस बनने की फैक्टरी लग जाये तो यहाँ का समझो उद्धार हो जायेगा। यहाँ के मजदूर को काम मिल जायेगा और यहाँ के टमाटर यहीं काम आ जायेंगे तो खेत मालिकों को भी फायदा होगा।’’
रवीन्द्र ने रात में टहलते हुए रीना से कहा-‘‘तुम बहुत दिनों से स्टार्ट अप के लिए कह रही थीं।’’
रीना ने प्रश्नवाचक निगाहों से उसे देखा।

अपनी बात आगे बड़ाते हुए रवीन्द्रने कहा- मैं सोच रहा हूँ यहाँ सॉस की फैक्टरी खोल लूँ जिसकी तुम मालिक होगी। पर शुरु में फायनेन्स की परेशानी होगी।

रीना ने बताया पापा का फोन आया था बोल रहे थे तीस मार्च को रिटायरमेंट होने वाला है एक माह के अन्दर रिटायरमेंट का पैसा मिलेगा तो मैं अपनी इकलौती बेटी को भी बेटों के बराबर हिस्सा दूँगा।

लॉकडाउन समाप्त होने के पहले ही उसको आगे बढ़ाने की घोषणा हो गयी। आज फिर जिन्दगी महँगी और दौलत सस्ती हो गई। जो कहते थे मरने तक की फुर्सत नहीं है वो आज मरने के डर से फुर्सत में बैठे हैं। पच्चीस मार्च की रात में सबने दिए जलाए। वातावरण में ही नहीं मन का हर कौना रोशन‘ हो गया। रवीन्द्र बच्चों को बता रहे थे -भा’ का अर्थ है प्रकाश और रत के माने हैं लीन अर्थात् जो राष्ट्र प्रकाशोन्मुख है, प्रकाश में रत है वही भारत है।

रात में सब काम से निबटकर रीना कमरे में पहुँची तो रवीन्द्र किसी से फोन पर बात कर रहा था। चिन्ताएँ सेलफोन से निकलकर उसके मुख पर बिखरने लगीं।
रीना ने पूछा -‘‘क्या बात है चिन्तित नजर आ रहे हो?’’

‘‘सरकार ने घोषणा तो की है कि प्रायवेट जॉब करने वालों के वेतन न काटा जाये पर अभी कलीग बता रहा था कि मालिक फ्री में वेतन देने को तैयार नहीं हैं। फैक्टरी मालिकों ने कोर्ट में अपील भी की है कि काम न होने पर उनकी कम्पनी को वैसे ही घाटा हो गया ऊपर से लोन की किश्त भी भरना होगी। रीना चिंता हो रही है , लगता है नौकरी हाथ से न चली जाए।’’
‘‘फिर तो कोई हल निकालना होगा’’ रीना ने कहा।
‘‘हूँ’’ कहकर रवीन्द्र दोस्त के कहे वाक्यों में ही खे गया। उसने रीना को ये नहीं बताया कि मालिक ने कहा है कि जब तक सूचना न मिले वो अभी वापस न आये। रीना उसके चेहरे पर आए भावों को देखकर सब समझ गयी थी। वह सलाह देते हुए बोली-
‘‘देखो खेतों के अलावा यहाँ जो खाली जमीन पड़ी है, उसमें कोई काम शुरू करने की प्लानिंग कर लो। वैसे इस क्षेत्र में कोल्ड स्टोरेज नहीं दिखे। कोल्ड स्टोरेज बनाओगे तो सरकार की सब्सिडी भी मिलेगी और अपना खुद का काम शुरू हो जायेगा।’’
मायूस हो उसने कहा-‘‘अम्मा से पूछना पड़ेगा’’

अगली सुबह रामचरित मानस के बालकाण्ड का पहला श्लोक सुजाता के कानों में रस घोलता चला गया। सुजाता हड़बड़ाकर उठ बैठी। यह स्वर .... यह स्वर तो रवीन्द्र के पापा का है। जल्दी से वह मंदिर की ओर चल दी। वहाँ देखा तो वह स्तब्ध रह गयी। रवीन्द्र मुख्य गद्दी पर बैठा था, लकड़ी की बनी त्रिकुटी पर रामचरितमानस के पन्ने फड़फड़ा अपने पढ़े जाने का अहसास दे रहे थे। रवीन्द्र सस्वर गा रहा था।
‘‘वर्णानामर्थसंधानां रसानां छन्दसामपि । मंगालानां च कर्तारो वन्दे वाणीविनायकौ।।’’

आज यह अदभुत् दृश्य वर्षों बाद देखने को मिल रहा था। रवीन्द्र जब चैदह साल का था,तब वह और उसके पापा गिरीश सस्वर रामचरित मानस का पाठ करते थे। सुजाता रवीन्द्र में गिरीश का अक्श देख रही थी। बेटियाँ अपने पति में पिता की झलक पाना चाहती हैं तो माँ अपने बेटे में अपने पति की परछायीं देखती हैं।

रामायण पाठ के बाद सभी लोग चाय पी रहे थे। अम्माँ ने रवीन्द्र से कहा ‘‘अपनी कुछ खाली जमीन पड़ी है यदि तुम चाहो तो वहाँ कुछ नया शुरू कर दो या उसे बेच दो। आजकल समय खराब है खाली जमीन पर कोई कब्जा न कर ले।’’

रवीन्द्र आश्चर्य से अम्माँ को देखने लगा। उसे मालूम है पिछले साल उस जमीन को बेचकर देहली में फ्लैट लेने की सोच रहा था तो अम्माँ ने रौद्र रूप धारण कर लिया था। आज अम्माँ उसी जमीन को बेचने की बात कर रही थीं।

अम्माँ समझ रही थीं रवीन्द्र के असमंजस को। वो बताना नहीं चाहती थीं कि जब वे दौनों बात कर रहे थे उन्होंने रात को सब सुन लिया था। वे नहीं चाहती थीं कि बेटे के मन में कोई हीन भाव आये।
‘‘अम्माँ आप ऐसा क्यों कह रही हो’’

अम्माँ ने कहा-‘‘ गहरी बातें समझने के लिए गहरा होना पड़ता है और गहरा होने के लिए गहरी चोटें खानी पड़ती है। इसीलिए जिन्दगी की ठोकरों से घबराया न करो। याद रखना जो गिरने से डरते हैं वो उड़ान नहीं भर सकते।’’ फिर रुककर बोलीं, ‘‘अब मेरा भी बुढापा है। यहीं आकर कुछ काम काज कर लेते तो मुझे तसल्ली होती। तेरे पापा तो हमेशा से चाहते थे कि तू यहीं गाँव में ही रहे। उनकी आत्मा को भी शांति मिलेगी।

रवीन्द्र और रीना खुश होकर एक दूसरे को देख रहे थे। उन्हें लग रहा था कि अम्माँ ने नहीं किसी देवदूत ने उसकी समस्या का समाधान कर दिया हो।

सब चुप होगये। मौन में बहुत हलचल होती है। वातावरण मौन को घूँट-घूँट कर पी रहा था। यह चुप्पी सबको अपने आगोश में लिए अनन्त यात्रा पर निकल गई। इस चुप्पी में सब अपने-अपने विचारों में मग्न भावी जीवन की प्लानिंग कर रहे थे।
जीवन के रंग अलग-अलग भाव से सबको रंग रहे थे।