हवा और चाँद : तमिल लोक-कथा

Hawa Aur Chand : Lok-Katha (Tamil)

एक समय की बात है। एक गाँव मे दो मित्र एक पहाड़ की गुफा में रहते थे। उसमें से एक शेर था और दूसरा बाघ। वे बचपन के मित्र थे। कभी भी उनमें अपनी वीरता या बलवान होने का घमंड नहीं था। शांतिप्रिय मित्र थे। एक साथ शिकार को जाना। एक साथ खाना। उनमें कभी झगड़ा नहीं होता था। जहाँ वे रहते थे, वह पहाड़ी इलाका भी शांत और सुखद वातावरण से व्याप्त था। क्योंकि उस जगह एक संत रहते थे। शायद इसलिए वातावरण में शांति बनी थी। वह संत माया-मोह त्यागकर वर्षों से वहाँ निवास करते आ रहे थे।

एक दिन शेर और बाघ हमेशा की तरह खेल रहे थे, अचानक दोनों में वाद-विवाद छिड़ गया। शेर ने कहा, 'देखो, वहाँ चाँद कितना सुंदर है।'

'हाँ-हाँ, ठीक है। पर मैं चाँद पसंद नहीं करता हूँ।' बाघ ने कहा।

शेर ने पूछा, 'क्या कहा? दोबारा कहो? सबको मालूम है, आज पूर्णिमा के दिन चाँद पूरा दिखता है। वह भी सुंदर।'

'और सब जगह ठंडक छा जाती है।' बाघ ने पूरा किया वाक्य को। 'इसलिए तो मुझे पसंद नहीं। ठंडी हवा जो बहती है।'

'इसमें नया क्या है ! यह तो सबको मालूम है कि चाँद जिस दिन पूरा दीखता है, उस दिन ठंड बढ़ जाती है।' शेर ने कहा। पर बाघ को पसंद नहीं था। दोनों ने बिना कुछ विशेष कारण के लड़ना शुरू कर दिया। दोनो क्रोधित हुए। इतने वर्षों की मित्रता पर दाग पड़ गया। दोनों ने तय किया कि वे संत से अपनी समस्या का समाधान कराएंगे।

दोनों मित्र उस शांतिप्रिय संत से मिलने निकल पड़े। संत को देखकर दोनों मित्रों ने मर्यादापूर्वक करबद्ध नमन किया।

'क्या बात है, दोनों निराश दिखते हो? तुम दोनों को कभी झगड़ते मैंने नहीं देखा। फिर ऐसा क्या हो गया तुम दोनों को?' संत ने प्यार से पूछा।

'महापुरुष हम लोगों की समस्या को आप ही हल कर सकते हैं।' दोनों मित्रों ने मिलकर कहा।

'पूर्णिमा के दिन ठंड बढ़ जाती है क्या? यही हम दोनों जानना चाहते हैं। कृष्ण पक्ष के दिन या शुक्ल पक्ष के समय, कब ज्यादा ठंड पड़ती है संतजी। हम ठीक कह रहे हैं, पर यह मानता ही नहीं है।' शेर ने कहा। 'नहीं, मैं ठीक कह रहा था, शेर नहीं मानता मेरी बात, आप बताइए। कौन सही है ?' बाघ ने पूछा।

संत ने कहा, 'अरे! तुम दोनों सही हो। दोनों बुद्धिमान हो।' इस पर शेर ने कहा, 'वो तो मालूम है। हम दोनों कभी गलत नहीं हो सकते, संतजी। हमेशा ज्ञानवर्धक प्रश्न ही पूछते भी हैं।'

'बिल्कुल सही कहा शेर तुमने।' संत ने समझाते हुए कहा, 'जब भी पूरा चाँद दिखता है, आसमान पर ठंडक बढ़ जाती है। चाँद कृष्ण पक्ष का समय हो या शुक्ल पक्ष का समय, हमेशा याद रखो, पूरब, पश्चिम और उत्तर दिशाओं से हवा का बहाव तेज होने के कारण, चाँद के आते ही ठंड बढ़ जाती है। अतः तुम दोनों का उत्तर सही है।' 'देखा, मैंने जो कहा, वही सही है।'

बाघ ने गुर्राया। 'मैंने भी सही कहा था।' शेर ने कहा, 'ध्यान में रहे।' शान के साथ शेर ने जब कहा तब बाघ चुप हो गया।

संत ने कहा, 'तुम दोनों हमेशा आदर्श मित्र बनकर रहे हो। बिना कारण आज लड़ाई क्यों? अच्छी तरह समझ लो, जिंदगी में कोई भी समस्या का हल झगड़ने से नहीं होता, अपितु शांतिपूर्वक सोचने से होता है। हमेशा मित्र बनकर रहो। वही अच्छा है।'

(साभार : डॉ. ए. भवानी)

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