Vrindavan Lal Verma
वृन्दावनलाल वर्मा

वृन्दावनलाल वर्मा (०९ जनवरी, १८८९ - २३ फरवरी, १९६९) हिन्दी नाटककार तथा उपन्यासकार थे। हिन्दी उपन्यास के विकास में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने एक तरफ प्रेमचंद की सामाजिक परंपरा को आगे बढ़ाया है तो दूसरी तरफ हिन्दी में ऐतिहासिक उपन्यास की धारा को उत्कर्ष तक पहुँचाया है। इतिहास, कला, पुरातत्व, मनोविज्ञान, मूर्तिकला और चित्रकला में भी इनकी विशेष रुचि रही। उनकी मुख्य कृतियाँ हैं : उपन्यास : अहिल्या बाई, भुवन विक्रम, गढ़ कुण्डार, विराटा की पद्मिनी, झांसी की रानी-लक्ष्मीबाई, कचनार, मुसाहिबजू, माधवजी सिंधिया, टूटे कांटे, मृगनयनी, संगम, लगान, कुण्डली चक्र, प्रेम की भेनी, कभी न कभी, आँचल मेरा कोई, राखी की लाज, अमर बेल: नाटक : हंस मयूर, बांस की फांस, पीले हाथ, पूर्व की ओर, केवट, नीलकंठ, मंगल सूत्र, बीरबल, ललित विक्रम: कहानी संग्रह : दबे पाँव, मेंढकी का ब्याह, अम्बपुर के अमर वीर, ऐतिहासिक कहानियाँ, अँगूठी का दान, शरणागत, कलाकार का दण्ड और तोषी ।