Mangal Singh Munda मंगल सिंह मुंडा

अभी तक के संभवतः पहले आदिवासी लेखक, जिनका उपन्यास ‘छैला संदु’ (2004) दिल्ली के राजकमल जैसे प्रकाशन से छपा है। लेकिन एक दशक के बीत जाने के बाद भी हिंदी के लिए अपरिचित। छात्र-जीवन से ही लिखना शुरू किया। पहली कहानी राँची की ‘आदिवासी’ पत्रिका में 1982 में छपी। अब तक ‘महुआ के फूल’ (1998) कथा-संग्रह सहित नाटक व लघु कथाओं की पुस्तकें प्रकाशित। हिंदी के साथ-साथ मुंडारी में भी लगातार लेखन।
खूँटी के रंगरोंग गाँव में जनमे मंगल सिंह मुंडा के पिता राम मुंडा कवि और शिक्षक थे। रेलवे में नौकरी के दौरान कलकत्ता रहे और 2005 में सेवानिवृत्ति के बाद पुश्तैनी गाँव तिरला, खूँटी में स्थायी ठिकाना।

मंगल सिंह मुंडा : कहानियाँ हिन्दी में

Mangal Singh Munda : Stories in Hindi