गंजे सिरवाला आदमी : सिक्किम की लोक-कथा

Ganje Sirwala Aadmi : Lok-Katha (Sikkim)

यह उस समय की बात है, जब दुनिया बहुत ही बुरे दौर से गुजर रही थी। देश की स्त्रियाँ और पुरुष बहुत ही बीमार रहते थे। उनके ऊपर बुरी शक्ति का साया लगातार मँडराता रहता था। ऐसे ही समय में एक दंपती परिवार एक छोटे से गाँव में रहता था। वे बहुत गरीब अवस्था में जी रहे थे। एक दिन उनके घर भी बुरी आत्मा आई और दोनों दंपतियों को उसने अपने अधीन कर लिया। उनके पास जीवन की सामान्य जरूरतों को निर्वाह करना ही सहज नहीं था, इसलिए अपने लिए पूजा-पाठ करने के लिए किसी बड़े लामा को बुला नहीं सके, ऐसे में उन्होंने उसके स्थान पर एक साधारण आदमी को बुलवाया। वह बुरी आत्मा से मुक्ति के लिए प्रार्थना करता। उस आदमी को पूजा करते हुए बहुत भूख लगने लगी। उनके पास उस कार्य के लिए आए मेहमान की खिदमत के लिए कोई विशेष भोजन नहीं था। जबकि उनके यहाँ परंपरा थी कि पंडित-लामा को जितना संभव हो सके, स्वादिष्ट भोजन दिया जाए। मेहमान के प्रसन्न होने की अवस्था में ही परिवार को उचित फल मिल सकता था, ऐसी धारणा लोगों में थी। जबकि इस दंपती के यहाँ न परोसने के लिए मांस था, न पेय पदार्थ के रूप में छांग और न घी, दूध, दही। उनके पास न घोड़े थे, न याक था, उनके पास था तो केवल एक बकरा।

दोनों दंपती बड़ी दुविधा में थे कि क्या-कैसे भोजन की तैयारी की जाए? ऐसे ही सोचते गृह पुरुष पंडित के करीब पालथी मारकर बैठ गया। वह अपनी आँखों को बंद किए, हाथ जोड़े एकनिष्ठ होकर पंडित के उच्चरित मंत्रों को समझने की चेष्टा करने लगा। तभी उसने सुना, वह ‘ॐ मने पढ्मे हूँ’ का जाप कर रहा है। वह उसे सुनकर स्वयं दुबारा दोहराता रहा।

वह पंडित पूजा करते हुए सोच रहा था, घर के आँगन में बकरा बँधा हुआ है, अगर वह आज खाने को मिल जाए तो मजा आ जाए! जबकि पास बैठे गृह पुरुष को सुनाई पड़ा, पंडित कह रहा है, “भगवान् ने कहा है, गंजे सिरवाले के सिर में अगर बकरे की खाल को रख दिया जाए तो उसे गंजेपन की समस्या से मुक्ति मिल सकती है।” जब गृह पुरुष ने यह सुना, वह तुरंत वहाँ से उठ गया, उसने बकरे को मारकर स्वादिष्ट भोजन तैयार किया। दंपती और पंडित दोनों ने ही काफी समय बाद इतना अच्छा भोजन किया था। भरपेट भोजन कर अपने को तृप्त किया। गृह पुरुष ने खाल को अपने सिर पर ओढ़ लिया। उसे लगातार ओढ़े रहा। लंबे समय तक ओढ़े हुए भी जब उसने किसी भी तरह का अपने में कोई परिवर्तन नहीं पाया तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। उसे भय हुआ, अगर मैं इसे ऐसे ही लगाए रहा तो मेरे सिर की खाल भी खराब हो जाएगी और वह केवल हड्डियों का ढाँचा मात्र रह जाएगा। उसे यह बात समझ आने लगी कि भगवान् के नाम पर उसे धोखा दिया गया है।

उसने पास जाकर उस पंडित से पूछा, “तुमने मुझसे झूठ क्यों कहा?” तब पंडित ने जवाब दिया, “मैंने तुमसे कोई झूठ नहीं कहा है। अगर तुम सही मायने में अपना भला चाहते हो तो अपनी पूजा स्वयं करो, तुम्हारे लिए प्रार्थना तुमसे बेहतर कोई और नहीं कर सकता। वरना ईश्वर के नाम पर वही होगा, जैसे तुम्हारी बकरी के साथ हुआ है। भगवान् के नाम पर ही झूठ फैलता है।”

(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)

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