फ़ैनिस्ट बाज़ : रूसी लोक-कथा

Fenist Baaz : Russian Folk Tale

यह बहुत दिनों पहले की बात है कि रूस में एक बहुत ही अमीर किसान अपनी तीन बेटियों के साथ रहता था। कूछ दिन बाद उसकी पत्नी मर गयी तो उसकी सबसे छोटी बेटी मारूष्का बोली — “पिता जी आप चिन्ता मत कीजिये घर मैं सँभाल लूँगी।”

और वह एक अच्छी गृहस्थी सँभालने वाली साबित हुई। पर उसकी दोनों बड़ी बहिनें बहुत ही आलसी और कामचोर थीं। उनको कोई भी चीज़ बहुत देर तक खुश नहीं रख सकती थी – न तो कोई पोशाक़ न कोई फ्राक़ न ही कोई काफ्तान।

एक दिन वह किसान बाजार जाने के लिये तैयार हुआ तो उसने अपनी बेटियों से पूछा कि वह उनके लिये वहाँ से क्या ले कर आये।

उसकी बड़ी बेटियाँ तुरन्त बोलीं — ‘पिता जी आप हम दोनों के लिये खूब बढ़िया सिल्क का शाल ले कर आना जिस पर लाल और सुनहरे रंग में फूल बने हों।”

मारूष्का चुप रही तो पिता ने उससे पूछा — “और बेटी तुम्हारे लिये?”

मारूष्का बोली — “पिता जी, मेरे लिये तो बस फ़ैनिस्ट बाज़ का एक पंख लेते आइयेगा।”

यह सुन कर किसान बाजार चला गया अीैर जब वह वहाँ से लौट कर आया तो वह अपनी दोनों बड़ी बेटियों के लिये तो दो शाल ले लाया पर फ़ैनिस्ट बाज़ का पंख उसको सारे बाजार में ढूँढने पर भी नहीं मिला।

कुछ महीने बाद वह फिर बाजार गया तो उसने फिर अपनी बेटियों से पूछा कि वह उनके लिये बाजार से क्या लाये।

उसकी दोनों बड़ी बेटियों ने कहा कि वह उनके लिये चाँदी के जूते लेकर आये पर मारूष्का ने धीरे से कहा — “पिता जी, मेरे लिये तो वही फ़ैनिस्ट बाज़ का एक पंख लेते आइयेगा।”

उस दिन भी वह किसान सारे दिन बाजार में फ़ैनिस्ट बाज़ का पंख ढूँढता रहा। वह अपनी बड़ी बेटियों के लिये चाँदी के जूते तो खरीद लाया पर फ़ैनिस्ट बाज़ का पंख उसे उस दिन भी कहीं नहीं मिला।

और एक बार फिर वह मारूष्का की मँगायी हुई चीज़ नहीं ला सका। एक बार फिर उसकी बेटी ने उसको तसल्ली दी — “पिता जी आप बहुत चिन्ता न करें आपको वह फिर मिल जायेगा।”

कुछ महीने बाद वह किसान एक बार फिर बाजार जाने लगा तो उसने अपनी बेटियों से एक बार फिर पूछा कि वह उनके लिये क्या लेकर आये तो उसकी दोनों बड़ी बेटियों ने उससे कहा कि वह उनके लिये नारंगी रंग के गाउन ले कर आये।

पर जब मारूष्का से पूछा गया तो उसने वही कहा — “पिता जी, मेरे लिये तो वही फ़ैनिस्ट बाज़ का एक पंख लेते आइयेगा।”

पिता बाजार चला गया। उसने अपनी बड़ी बेटियों के लिये नारंगी गाउन तो खरीद लिये पर फैनिस्ट बाज़ का पंख उसको उस दिन भी हर दूकान पर पूछने पर भी कहीं नहीं मिला।

वह बेचारा बड़ा नाउम्मीद हो कर घर लौट रहा था कि रास्ते में उसको एक बहुत ही बूढ़ा मिला। वह बूढ़ा किसान से बोला — “गुड डे भाई। तुम किधर जा रहे हो?”

किसान ने जवाब दिया — “तुमको भी गुड डे भाई । मैं बड़ा दुखी हो कर घर वापस जा रहा हूँ। मेरी सबसे छोटी बेटी ने मुझसे फ़ैनिस्ट बाज़ का एक पंख लाने के लिये कहा था पर मुझे लाख ढूँढने पर भी वह कहीं नहीं मिला।”

वह बूढ़ा आदमी मुस्कुराया। उसने अपनी जेब से बिचके पेड़ की छाल का एक बक्सा निकाला और उस किसान से बोला — “जो तुम्हें चाहिये वह मेरे पास है। मुझे मालूम है कि तुम्हारी बेटी इस पंख के लायक है सो यह पंख उसी का है।”

कह कर उस बूढ़े आदमी ने वह पंख बक्से के साथ उस किसान को दे दिया। वह किसान बहुत खुश हो गया।

हालाँकि किसान को वह पंख किसी दूसरे मामूली पंख जैसा ही लगा पर उसने उस पंख को ले कर उस बूढ़े आदमी को धन्यवाद दिया और अपने घर चला गया।

घर पहुँच कर उसने अपनी तीनों बेटियों की चीज़ें उनको दे दीं। उसकी दोनों बड़ी बेटियों ने अपने अपने गाउन पहन कर देखे और अपनी सबसे छोटी बहिन की हँसी उड़ायी — “इस पंख को तो तुम अपने बालों में लगा लेना और फिर देखना तुम कितनी सुन्दर लगती हो।”

मारूष्का बस ज़रा सा मुस्कुरा दी बोली कुछ नहीं।

उस रात को जब घर में सब लोग सो गये तो मारूष्का ने बक्से में से अपना वह पंख निकाला और नीचे फर्श की तरफ उड़ा दिया। फिर वह फुसफुसायी — “मेरे पास आओ ओ फैनिस्ट, मेरे चमकीली आँखों वाले बाज़।”

और वह पंख तुरन्त ही एक चमकीली आँखों वाले नौजवान में बदल गया। वह नौजवान इतना सुन्दर था जितना कि सुबह का आसमान होता है।

दोनों आपस में तब तक बात करते रहे जब तक सुबह पौ नहीं फट गयी। पर पौ फटते ही वह नौजवान फर्श से टकराया और फिर से बाज़ बन गया। मारूष्का ने अपनी खिड़की खोल दी और वह बाज़ उसमें से हो कर आसमान में उड़ गया।

इस तरह उसने उस नौजवान को तीन रात बुलाया।

लेकिन चौथी रात को उसकी दोनों बड़ी बहिनों ने किसी को अपनी बहिन के कमरे में बातें करते सुन लिया और सुबह को एक बाज़ को उसकी खिड़की से बाहर उड़ते देख लिया।

उस दिन दोनों खुराफाती बहिनों ने अपनी बहिन के कमरे की खिड़की पर एक बहुत ही तेज़ चाकू लगा दिया। जब रात हुई तो जब वह बाज़ वहाँ आया तो उस तेज़ चाकू से टकरा गया। उसके दोनों पंख उसकी धार से कट गये थे।

मारूष्का तो सो रही थी। वह सोती रही उसको कुछ पता ही नहीं चला।

बाज़ एक गहरी साँस ले कर बोला — “अच्छा विदा प्रिये। अगर तुम मुझे सचमुच प्यार करती हो तो तुम मुझे फिर पा लोगी। पर मुझे पाना इतना आसान नहीं होगा।

तुमको धरती के दूसरे छोर तक जाना पड़ेगा। तुमको तीन लोहे के जूते और तीन लोहे के डंडे तोड़ने होंगे और तीन पत्थर की डबल रोटी खानी होंगी।”

रात के अँधेरे में किसी तरह से मारूष्का ने उसके ये शब्द सुन लिये। वह तुरन्त बिस्तर से उठी और अपनी खिड़की की तरफ भागी पर उसको देर हो चुकी थी। वह बाज़ तो जा चुका था। उसकी खिड़की पर तो बस उसके कुछ खून की बूँदें पड़ी थीं। मारूष्का बहुत देर तक रोती रही। वह इतना रोयी कि उसके आँसुओं में वे खून की बूँदें बह गयीं।

अगली सुबह वह अपने पिता के पास गयी और बोली — “पिता जी मुझे आशीर्वाद दीजिये कि मैं अपने प्यार को ढूँढ सकूँ। मैं अपना प्यार ढूँढने जा रही हूँ।”

किसान बेचारा यह सुन कर बहुत दुखी हुआ कि उसकी बेटी इतनी मुश्किल यात्रा पर जा रही है पता नहीं वह फिर उसको कब देख पायेगा। पर उसको मालूम था कि उसको उसे जाने देना ही चाहिये। सो उसके आशीर्वाद से मारूष्का ने तीन लोहे के जूते बनवाये, तीन लोहे के डंडे बनवाये और तीन पत्थर की डबल रोटियाँ बनवायीं। उन सबको ले कर वह धरती के उस छोर की तरफ अपनी लम्बी यात्रा पर निकल पड़ी।

वह खुले हुए मैदानों में चली, वह अँधेरे जंगलों में से हो कर गुजरी, वह उँची ऊँची पहाड़ियों पर चढ़ी।

चिड़ियों ने उसको अपने गीतों से खुश रखा, नदियों ने उसके पैर धोये और अँधेरे जंगलों ने उसका स्वागत किया। किसी जंगली जानवर ने उसको कोई नुकसान नहीं पहुँचाया क्योंकि उन सबको मालूम था कि वह एक वफादार लड़की थी।

वह तब तक चलती रही जब तक उसका एक लोहे का जूता टूटा, एक लोहे का डंडा टूटा और उसने एक पत्थर की डबल रोटी खा ली।

उसी समय वह जंगल में एक खुली जगह में निकल आयी। वहाँ उसको एक छोटी सी झोंपड़ी दिखायी दी। वह झोंपड़ी मुर्गी के पैरों पर खड़ी थी। वह गोल गोल घूम रही थी और उसमें कोई खिड़की नहीं थी।

मारूष्का बोली — “ओ छोटी झोंपड़ी, ओ छोटी झोंपड़ी। तुम अपने पीछे का हिस्सा पेड़ों की तरफ कर लो और अपना मुँह मेरी तरफ कर लो।”

यह सुन कर मुर्गी के पैरों पर खड़ी हुई वह झोंपड़ी घूमती घूमती रुक गयी और मारूष्का उसके खुले दरवाजे के अन्दर बेधड़क चली गयी। उस झोंपड़ी में एक पत्थर की अँगीठी पर बाबा यागा लेटी हुई थी। वह एक पतली सी स्त्री थी जिसकी लम्बी टेढ़ी नाक थी और एक दाँत था जो उसकी ठोड़ी के नीचे तक लटका हुआ था।

मारूष्का उससे डरी नहीं। उसने जादूगरनी को अपने बारे में बताया कि वह क्या करने निकली थी और उससे अपनी सहायता करने की प्रार्थना की।

बाबा यागा बोली — “मेरी प्यारी बच्ची, तुमको तो अभी बहुत दूर जाना है क्योंकि फ़ैनिस्ट तो बहुत दूर रहता है।

उस देश की रानी एक बहुत ही बुरी जादूगरनी है जिसने तुम्हारे फैनिस्ट को एक जादू का रस पिला दिया है। उस रस के जादू के असर से उसने उसको अपने आपसे शादी करने के लिये भी राजी कर लिया है। पर मैं उसको ढूँढने में तुम्हारी सहायता जरूर करूँगी।

लो यह लो चाँदी की तश्तरी और सोने का अंडा और इनको ले कर उसके महल चली जाओ। हो सकता है कि रानी इनको खरीदना चाहे पर तुम इनको उसको तब तक मत बेचना जब तक कि वह तुम को फ़ैनिस्ट बाज़ से न मिलने दे।”

उसके बाद बाबा यागा ने उसको सुनहरे धागे का एक गोला दिया और कहा कि वह उस धागे को जंगल में लुढ़काती चली जाये तो वह उसको उसकी दूसरी बहिन के पास पहुँचा देगा। वह वहाँ से उसको आगे बतायेगी कि उसको क्या करना है।”

बाबा यागा को धन्यवाद दे कर मारूष्का अपने रास्ते पर चल दी। पेड़ों ने उसका रास्ता रोक लिया, जंगल बहुत अँधेरा हो गया और उस अँधेरे में उल्लू भी बोलने लगे।

फिर भी वह चलती गयी चलती गयी जब तक कि उसका दूसरा लोहे का जूता नहीं टूट गया, दूसरा लोहे का डंडा नहीं टूट गया और उसकी पत्थर की दूसरी डबल रोटी भी खत्म नहीं हो गयी।

उसी समय वह जंगल में एक खुली जगह पर आ गयी। वहाँ पर भी उसको एक छोटी सी झोंपड़ी दिखायी दी। वह झोंपड़ी भी मुर्गी के पैरों पर खड़ी थी और वह भी गोल गोल घूम रही थी।

वहाँ जा कर मारूष्का फिर बोली — “ओ छोटी झोंपड़ी, ओ छोटी झोंपड़ी। तुम अपने पीछे का हिस्सा पेड़ों की तरफ कर लो और अपना मुँह मेरी तरफ कर लो।”

यह सुन कर मुर्गी के पैरों पर खड़ी वह घूमती हुई झोंपड़ी भी रुक गयी और उसमें खिड़कियाँ और एक दरवाजा खुल गया। मारूष्का उसके खुले दरवाजे के अन्दर भी बेधड़क चली गयी। उस झोंपड़ी में एक पत्थर की अँगीठी पर एक दूसरी बाबा यागा लेटी हुई थी। यह बाबा यागा अपनी बहिन से भी ज़्यादा बदसूरत और पतली दुबली थी।

मारूष्का ने उसको अपनी कहानी सुनायी और उसको उसकी बहिन के दिये हुए चाँदी की तश्तरी और सोने का अंडा दिखाये।

वह बोली — “बहुत अच्छे मेरी प्यारी बिटिया। मैं तुम्हारी सहायता जरूर करूँगी। यह सोने की सुई और चाँदी का फ्रेम ले जाओ हो सकता है कि वह रानी इनको खरीदना चाहे। पर तुम इनको उसको तब तक मत बेचना जब तक वह तुमको तुम्हारे फैनिस्ट से मिलने न दे।

मगर इससे पहले तुमको मेरी बड़ी बहिन के पास जाना पड़ेगा। इसके आगे वही तुमको बतायेगी कि तुमको क्या करना है।”

मारूष्का ने दूसरी बाबा यागा को धन्यवाद दिया और आगे बढ़ गयी। उसने वह सोने के धागे वाला गोला फिर से आगे लुढ़काया और उसके पीछे पीछे पेड़ों के बीच में से हो कर चली।

इस बार पेड़ों की शाखाओं ने उसके कपड़ों की आस्तीनें फाड़ दीं, उसके चेहरे पर खरोंचें डाल दीं, चिड़ियों ने भी कोई गीत नहीं गाया और जंगली जानवर भी उसकी तरफ रास्ते भर देखते रहे। पर वह पीछे देखे बिना ही आगे बढ़ती रही।

धीरे धीरे उसके तीसरे लोहे के जूते भी फट गये, तीसरा लोहे का डंडा भी टूट गया और तीसरी पत्थर की डबल रोटी भी खत्म हो गयी।

उसी समय वह तीसरी खुली जगह में आ निकली। वहाँ भी उसको पहले जैसी एक झोंपड़ी दिखायी दी। वह झोंपड़ी भी मुर्गी के पैरों पर खड़ी थी और घूम रही थी।

वहाँ जा कर मारूष्का फिर बोली — “ओ छोटी झोंपड़ी, ओ छोटी झोंपड़ी। तुम अपने पीछे का हिस्सा पेड़ों की तरफ कर लो और अपना मुँह मेरी तरफ कर लो।”

मुर्गी के पैरों पर खड़ी हुई घूमती हुई वह झोंपड़ी भी यह सुन कर तुरन्त रुक गयी और मारूष्का उसके खुले दरवाजे के अन्दर बेधड़क चली गयी।

उस झोंपड़ी में एक पत्थर की अँगीठी पर तीसरी बाबा यागा लेटी हुई थी। यह बाबा यागा अपनी दोनों बहिनों से भी ज़्यादा बदसूरत और पतली दुबली थी।

मारूष्का ने उसको भी अपनी कहानी सुनायी। वह बाबा यागा बोली — “फ़ैनिस्ट बाज़ को पाना आसान नहीं है, प्यारी बेटी। तुम को धरती के आखीर तक जाना पड़ेगा। पर तुम चिन्ता न करो मैं तुम्हारी सहायता करूँगी। तुम यह चाँदी की अटेरन लो और यह सोने की तकली लो और इनको ले कर महल चली जाओ। हो सकता है कि रानी तुमसे इनको खरीदना चाहे पर तुम इनको उसको तब तक मत बेचना जब तक कि वह तुमको तुम्हारे फ़ैनिस्ट बाज़ से न मिलने दे।”

मारूष्का ने उसको भी धन्यवाद दिया और अपना सोने के धागे वाला गोला जमीन पर लुढ़का दिया। वह धागा उसको एक बड़े डरावने जंगल में से ले कर चला।

वह अभी बहुत दूर नहीं गयी थी कि उसने किसी के चिंघाड़ने की और पंखों के फड़फड़ाने की आवाज सुनायी दी। बहुत सारे उल्लू वहाँ से उड़े और उसके चारों तरफ घूमने लगे। बहुत सारे चूहे उसके पैरों में इधर उधर घूमने लगे। खरगोश रास्ते पर कूदने लगे। वह डर कर रुक गयी।

तभी एक बड़ा सा भूरा भेड़िया वहाँ आ गया और मारूष्का से बोला — “डरो मत मारूष्का। आओ मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं तुमको महल तक ले चलता हूँ।”

मारूष्का उसकी पीठ पर बैठ गयी और भेड़िया उसको सोने के धागे के गोले के पीछे पीछे हवा की तेज़ी से उड़ा कर ले चला। घास के हरे हरे मैदान पलक झपकते निकल गये। पहाड़ जो आसमान तक ऊँचे ऊँचे थे वे भी आसानी से पार हो गये। आखिर वे एक क्रिस्टल के महल के पास आ पहुँचे। उसका सोने का गुम्बद सूरज की रोशनी में चमक रहा था। रानी उस महल की सफेद मीनार से नीचे झाँक रही थी।

मारूष्का ने भेड़िये को धन्यवाद दिया, अपनी गठरी उठायी और मीनार के नीचे की तरफ चली। वहाँ पहुँच कर वह बहुत ही नम्रता से बोली — “योर मैजेस्टी, क्या आपको किसी ऐसी नौकरानी की जरूरत है जो सूत काते बुनाई और कढ़ाई करे?”

रानी बोली — “ओ लड़की, अगर तुम यह तीनों काम कर सकती हो तो अन्दर आ जाओ और काम करना शुरू कर दो।”

इस तरह मारूष्का उस महल में नौकरानी का काम करने लगी। एक दिन मारूष्का ने सारा दिन बिना रुके काम किया और जब शाम आयी तो उसने अपना सोने का अंडा और चाँदी की तश्तरी ली और रानी को दिखायी।

तुरन्त ही वह अंडा उस तश्तरी में घूमने लगा और घंटिया बजने की आवाज सुनायी देखने लगी। अचानक उस तश्तरी में रूस के सारे बड़े बड़े शहर दिखायी देखने लगे।

यह देख कर तो रानी बड़े आश्चर्य में पड़ गयी। वह बोली — “चाँदी की यह तश्तरी और सोने का यह अंडा तुम मुझे बेच दो।”

मारूष्का बोली — “योर मैजेस्टी, ये बेचने के लिये तो नहीं हैं पर आप इनको ऐसे ही रख सकती हैं अगर आप मुझे चमकीली आँखों वाले फ़ैनिस्ट बाज़ से मिलने दें।”

रानी राजी हो गयी बोली — “ठीक है। आज रात को जब वह सो जायेगा तब तुम उसके कमरे में जा सकती हो।”

जब रात हो गयी तो मारूष्का फ़ैनिस्ट बाज़ के कमरे की तरफ चली। वहाँ जा कर उसने देखा कि फ़ैनिस्ट बाज़ तो गहरी नींद सो रहा है।

उसने उसको जगाने की बहुत कोशिश की पर वह उसको जगा नहीं सकी क्योंकि रानी ने उसकी कमीज में जादू की एक पिन लगा दी थी।

उसने उसको जगाने की बहुत कोशिश की, उसको पुकारा, उसकी गहरी काली भौंहों को चूमा, उसके पीले हाथों को सहलाया पर वह तो सोता ही रहा किसी तरह भी नहीं जागा।

सुबह जब खिड़की से सूरज की किरनें अन्दर आयीं तब तक भी जब वह अपने प्रिय फ़ैनिस्ट को नहीं जगा सकी तो उसको वहाँ से वापस आना पड़ा।

अगले दिन फिर उसने लग कर काम किया और शाम को उसने अपना चाँदी का फ्रेम और सोने की सुई निकाली। सुई ने अपना काम अपने आप करना शुरू कर दिया तो मारूष्का बुड़बुड़ायी — “तू एक ऐसा कपड़ा काढ़ जिससे वह अपनी आँखों की भौंहों को रोज सुबह साफ कर सके।”

इस बार मारूष्का ने रानी को सुई और फ्रेम दिखाया तो रानी उसको भी तुरन्त ही खरीदने के लिये कहने लगी। मारूष्का ने फिर वही जवाब दिया — “योर मैजेस्टी, ये बेचने के लिये तो नहीं हैं पर आप इनको ऐसे ही रख सकती हैं अगर आप मुझे फ़ैनिस्ट को एक बार फिर से देखने दें।”

रानी फिर राजी हो गयी — “ठीक है, तुम उसको आज की रात फिर देख सकती हो।”

जब रात हुई तो मारूष्का एक बार फिर से फ़ैनिस्ट के सोने के कमरे में गयी पर वह तभी भी बहुत ही गहरी नींद सो रहा था। बहुत उठाने पर भी वह नहीं उठा।

वह बोली — “ओह मेरे प्यारे फ़ैनिस्ट, मेरे बहादुर चमकीली आँखों वाले बाज़ जागो और मुझसे बात करो।”

पर वह तो गहरी नीद ही सोता रहा क्योंकि चालाक रानी ने उसके बालों में कंघी करते समय एक जादू की पिन लगा दी थी जिसकी वजह से मारूष्का उसको लाख कोशिश करने पर भी नहीं जगा सकी। सुबह होने पर उसको अपनी कोशिश छोड़ देनी पड़ी और उसको वहाँ से आना पड़ा।

उस दिन भी उसने सारा दिन खूब लग कर काम किया और जब शाम हुई तो उसने अपनी चाँदी की अटेरन और सोने की तकली निकाली और रानी को दिखायी।

पहले की तरह से रानी ने इस बार भी उनको उससे खरीदना चाहा पर मारूष्का ने फिर से वही जवाब दिया — “योर मैजेस्टी, ये चीज़ें बेचने के लिये नहीं हैं पर आप इनको ऐसे ही रख सकती हैं अगर आप मुझे फ़ैनिस्ट को एक बार आखिरी बार फिर से देखने दें।”

रानी यह सोचते हुए फिर राजी हो गयी कि मारूष्का उसको जगाने में कामयाब नहीं हो पायेगी क्योंकि आज उसको वह जादू का रस पिला कर सुला देगी। वह बोली— “ठीक है, तुम उसको आज की रात एक बार और देख सकती हो।”

रात हुई और मारूष्का एक बार फिर आखिरी बार फ़ैनिस्ट के सोने वाले कमरे में घुसी। फ़ैनिस्ट और दिनों की तरह से आज भी गहरी नींद सो रहा था।

मारूष्का फिर बोली — “ओह मेरे प्यारे फ़ैनिस्ट, मेरे बहादुर चमकीली आँखों वाले बाज़ जागो और मुझसे बात करो।”

पर वह नहीं जागा तो वह नाउम्मीद हो कर रो पड़ी। फ़ैनिस्ट सारी रात सोता रहा और हालाँकि मारूष्का ने उसको जगाने की फिर से बहुत कोशिश की पर वह नहीं उठा।

अब सुबह होने वाली थी सो मारूष्का ने अखिरी विदा कहने और बाहर जाने से पहले उसके काले बालों में अपना हाथ फेरा कि उसका एक गर्म आँसू उसके गालों से लुढ़क कर फ़ैनिस्ट के कन्धे पर गिर पड़ा। इससे फ़ैनिस्ट की मुलायम खाल जल गयी। इस जलन को महसूस करके वह हिला और उसने अपनी आँखें खोल दीं। मारूष्का को वहाँ देख कर वह तुरन्त उठ बैठा और बोला — “अरे, क्या यह तुम हो? मेरा खोया हुआ प्यार।” कहते कहते वह रो पड़ा। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।

“इसका मतलब यह है कि तुमने तीन लोहे के जूते और तीन लोहे के डंडे तोड़ दिये और तीन पत्थर की डबल रोटियाँ भी खा लीं। तुम धरती के इस कोने तक यात्रा कर आयीं। अब हमको कोई अलग नहीं कर सकता मारूष्का, कोई नहीं।”

अब फ़ैनिस्ट का जादू टूट चुका था सो वह मारूष्का को शाही दरबार में ले गया। वहाँ दरबार ने फैसला दिया कि रानी को देश निकाला दे दिया जाये और मारूष्का को वहाँ की रानी बना दिया जाये क्योंकि वह बहुत बहादुर थी, अक्लमन्द थी और मजबूत थी। और फिर ऐसा ही हुआ।

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