एक मुकदमा (कहानी) : मार्क ट्वेन

Ek Mukkadma (English Story in Hindi) : Mark Twain

कप्तान नेड ब्लैक्ले बरसों से सैन सिस्को बंदरगाह से दूर-दराज तक समुद्र में जहाज ले जाया करता था। वह एक हृष्ट-पुष्ट, सहृदय, बाज जैसी तीखी नजरोंवाला अनुभवी नाविक था। लड़कपन से ही नाविक रहा नेड अब लगभग पचास वर्ष का अनुभवी था। वह एक रूखा व ईमानदार प्राणी था—अदम्य साहसी और व्यवहार-कुशल तथा सरलता से भरपूर। तुच्छ औपचारिकताओं से उसे नफरत थी। व्यावहारिकता ही उसके लिए महत्त्वपूर्ण थी। सभी नाविकों की तरह उसे भी कानून की नजाकतों, नफासतों से चिढ़ थी। उसका दृढ़ विश्वास था कि कानून व वकीलों का निश्चित और अंतिम उद्देश्य होता है-न्याय को विफल करना।

एक गुआनो जलपोत की कप्तानी करते हुए वह चिंचा द्वीप समूह की ओर चल पड़ा। उसके पास बहुत अच्छे जहाजी थे। उनमें से भी एक हब्शी उसका खास चहेता था। बरसों से वह उसपर अपनी प्रशंसा लुटाता आया था। कप्तान नेड की चिंचा की यह पहली यात्रा थी। लेकिन उसकी ख्याति उससे पहले वहाँ पहुँच चुकी थी। यही ख्याति कि वह किसी तरह की खुराफात बरदाश्त नहीं करता है और जरा सी देर में ही लड़ने पर आमादा हो सकता है। यह ख्याति उसने परिश्रम से अर्जित की थी। द्वीप समूह में पहुँचने पर उसने पाया कि एक व्यापारी जहाज के सहायक बिल नोक्स के कारनामों की चर्चा बहुत हो रही है। इस धैसिए ने वहाँ एक छोटा-मोटा आतंक का साम्राज्य कायम कर लिया था।

रात के नौ बजे कप्तान नेड तारों की छाँव में अपने जहाज के डेक पर अकेला टहल रहा था, तभी एक आकृति जहाज के किनारे से चढ़कर उसकी ओर बढ़ी। कप्तान ने आवाज लगाई, "वहाँ कौन है?"

"मैं हूँ, बिल नोक्स, इस द्वीप का बेहतरीन आदमी।"

"यहाँ इस जहाज पर तुम्हें किससे मिलना है?"

"मैंने कप्तान नेड ब्लैक्ले के बारे में सुना है। हममें से एक दूसरे से बेहतर है। मैं तट पर जाने से पहले जानना चाहता हूँ कि कौन सा?"

"तुम सही जहाज पर आए हो। मैं ही वह आदमी हूँ, जिसे तुम खोज रहे हो। बिना बुलाए इस जहाज पर आने का सबक मैं तुम्हें सिखाऊँगा।"

उसने नोक्स को दबोच लिया। उसे धकियाते हुए जहाज के मुख्य मस्तूल के सहारे उसकी पीठ टिकाई और फिर दनादन मुक्के मारकर उसके चेहरे का कचूमर निकाल दिया। यह काम पूरा हो जाने पर कप्तान ने उसे उठाकर डेक से समुद्र-तट पर फेंक दिया।

नोक्स की तसल्ली नहीं हुई। वह अगली रात फिर आया। फिर अपने चेहरे का कचूमर करवाया, दोबारा जहाज से तट पर फेंका गया, तब कहीं उसकी तसल्ली हुई।

इसके कोई हफ्ते भर बाद एक दोपहर भीड़ में घिरा नोक्स किसी जहाजी के साथ शराब पीने का मुकाबला कर रहा था। तभी कप्तान नेड का अश्वेत जहाजी वहाँ से गुजरा। नोक्स ने उसके साथ झगड़ा करने की कोशिश की। हब्शी बात को टालकर वहाँ से जाने लगा। नोक्स ने अपनी पिस्तौल से उसपर गोली दाग दी। बेचारा वहीं ढेर हो गया। करीब आधा दर्जन जहाजी कप्तानों ने वह अपने सामने होते देखा। नोक्स दो बदमाश साथियों को लेकर अपने जहाज के पिछवाड़े के एक केबिन में चला गया। उसने ऐलान कर दिया कि किसी ने यहाँ आने की जुर्रत की तो वह अपनी मौत को न्योता देगा। किसी ने बदमाशों का पीछा करने की कोशिश नहीं की। ऐसा करने की किसी की कोई इच्छा भी न थी। असल में, ऐसे मामलों पर कम ही गौर किया जाता था। वहाँ न कोई अदालत थी, न अधिकारी, न ही कोई सरकार थी। वे द्वीप पेरू के थे और पेरू वहाँ से बहुत दूर था। उस भूमि पर उसका कोई अधिकृत प्रतिनिधि न था, न ही किसी अन्य राष्ट्र का।

लेकिन कप्तान नेड इन मामलों में अपना सिर नहीं खपा रहा था। उसे उनसे कुछ लेना-देना न था। वह गुस्से से उबल रहा था और न्याय के लिए बेचैन हो रहा था। रात के नौ बजे उसने अपनी दोनाली बंदूक में कारतूस भरे, हथकड़ी निकाली और उसके बाद अपने क्वाटर मास्टर तथा कुछ अन्य जहाजियों को बुलाया।

"क्या तुम लोग बंदरगाह में खड़े उस जहाज को देख रहे हो?"

"जी, श्रीमान!"

"वह वीनस है।"

"जी, श्रीमान!"

"तुम लोग मुझे जानते हो ना?"

"जी, श्रीमान्!"

"तो फिर सब ठीक है। लालटेन उठा लो। इसे अपनी ठुड्डी के ठीक नीचे पकड़कर चलना, ताकि मैं तुमसे आगे की चीजें इसकी रोशनी में देख सकूँ। मैं नोक्स को पकड़ने जा रहा हूँ, साथ ही दूसरे बदमाशों को भी बंदी बनाऊँगा। अगर तुम जरा भी हिचकिचाए या पीछे हटे तो फिर मुझे जानते हो ना!"

"जी, श्रीमान्!"

वे दबे पाँव चलते हुए नोक्स के ठिकाने तक जा पहुँचे। क्वाटर मास्टर ने धकेलकर दरवाजा खोल दिया। लालटेन की रोशनी में वे तीनों दुःसाहसी फर्श पर बैठे दिखाई दिए।

कप्तान नेड ने कहा, "मैं नेड ब्लैक्ले हूँ। तुम तीनों मेरी बंदूक की जद में हो। तुम में से कोई भी आदेश के बिना हिलेगा नहीं। तुम दोनों उस कोने में अपने मुँह दीवार की तरफ करके झुक जाओ। नोक्स, तुम इधर आकर यह हथकड़ी पहनो। क्वाटर मास्टर, तुम हथकड़ी बंद कर दो। ठीक हो गया। जरा भी हिलना नहीं। क्वाटर मास्टर, चाबी दरवाजे के बाहर की तरफ लगाओ। मैं तुम दोनों को अंदर बंद कर रहा हूँ। अगर तुमने दरवाजा तोड़कर बाहर आने की कोशिश की तो फिर मेरे बारे में तो सुना ही होगा। बिल नोक्स, तुम आगेआगे चलो। सब ठीक है। क्वाटर मास्टर, दरवाजे में ताला लगा दो।"

नोक्स ने रात ब्लैक्ले के जहाज पर सख्त निगरानी में रखे कैदी की तरह गुजारी। सुबह-सवेरे ही कप्तान नेड ने सभी जहाजों के कप्तानों को बंदरगाह में समुद्री औपचारिकता के साथ आमंत्रित किया। उनसे अनुरोध किया कि उसके जहाज पर आकर नौ बजे नोक्स को फाँसी पर लटकाए जाने का नजारा देखें।

"क्या! उस आदमी पर मुकदमा चला है?"

"सही है, पर क्या उसने हब्शी की हत्या नहीं की है?"

"बिलकुल सही, उसने ऐसा किया है। लेकिन तुम बिना मुकदमा चलाए उसे फाँसी देने की तो नहीं सोच रहे?"

"मुकदमा? उसपर मुकदमा चलाने की क्या जरूरत है? जबकि उसने हब्शी की हत्या की है।"

"ओह कप्तान नेड, ऐसे नहीं चलेगा। जरा सोचो, कैसा लगेगा?"

"लगेगा, गया भाड़ में, उसने हब्शी की हत्या नहीं की?"

"निश्चित ही, निश्चित ही, कप्तान नेड; लेकिन... "

"तो फिर मैं उसे फाँसी पर लटकाने जा रहा हूँ, बस। मैं जिससे भी बात करता हूँ, सब तुम्हारी तरह ही बोलते हैं। जबकि सब कहते हैं, उसने हब्शी को मारा। सब जानते हैं कि उसने हब्शी को मारा। लेकिन तुम में से हरेक मोटी अक्लवाला चाहता है कि इसके लिए उसपर मुकदमा चलाया जाए। ऐसी बेवकूफी तो मेरी समझ से बाहर है। मुकदमा? खैर, अगर मुकदमा चलाना है तो मुझे उसमें भी कोई एतराज नहीं, अगर तुम लोगों को इससे तसल्ली होती है। मैं सुनवाई पर आऊँगा और जो मदद होगी, करूँगा। लेकिन इसे दोपहर बाद तक के लिए मुल्तवी कर दो। तब तक मैं उसकी अंतिम क्रिया आदि में व्यस्त रहूँगा ना! उसके बाद ही।"

"क्या? क्या मतलब है तुम्हारा? क्या तुम फाँसी देने के बाद उसपर मुकदमा चलाना चाहते हो?"

"क्या मैंने बताया नहीं, मैं उसे फाँसी पर लटकाने जा रहा हूँ? मैंने तुम जैसे लोग आज तक नहीं देखे। आखिर फर्क क्या पड़ता है? तुमने मुझसे एक अनुरोध किया, मैंने मान लिया। अब भी तुम्हारी तसल्ली नहीं हुई। पहले या बाद में, एक ही बात है। तुम भी जानते हो, सुनवाई में क्या होगा। उसने हब्शी की हत्या की है। अच्छा, अब मैं चलता हूँ। अगर तुम्हारा सहायक भी फाँसी देखने आना चाहे तो उसे साथ लेते आना। मैं उसे पसंद करता हूँ।"

शिविर में हलचल-सी मच गई। सब कप्तान इकट्ठे होकर आए। उन्होंने कप्तान नेड से अनुरोध किया कि ऐसा जल्दबाजीवाला काम न करे। उन्होंने वादा किया कि वे सबसे अधिक चरित्रवान् कप्तानों की अदालत बैठाएँगे। वे एक जूरी का गठन करेंगे। वे मामले की गंभीरता के अनुरूप ही सारी काररवाई करेंगे। वे मुकदमे की निष्पक्ष सुनवाई करेंगे और अभियुक्त को न्याय के अनुसार उचित अवसर देंगे। उन्होंने कहा कि यह हत्या है। इसके लिए अमेरिकी अदालत भी उसे मृत्युदंड ही देती। और उसे तुम्हारे जहाज पर ही फाँसी दी जाएगी। उन्होंने बहुत जोर देकर उसे समझाया।

कप्तान नेड बोला, "सज्जनो, मैं अड़ियल या अनुचित स्वभाववाला नहीं। मैं हमेशा न्यायोचित और जहाँ तक हो सके, सही काम ही करता हूँ। बताइए, इसमें कितना समय लगेगा?"

"संभवत: थोड़ा सा ही समय लगेगा।"

"तो फिर आपकी सुनवाई हो जाने के बाद मैं उसे ले जाकर फाँसी पर लटका सकता हूँ।"

"अगर वह अपराधी सिद्ध हो जाता है तो उसे बिना किसी देरी के फाँसी पर लटकाया जा सकता है।"

"अगर वह अपराधी सिद्ध होता है, हे भगवान्! क्या वह अपराधी नहीं? यह मेरा समय व्यर्थ करनेवाली बात है। क्या आप सब नहीं जानते कि वह अपराधी है?"

आखिरकार उन सबने मिलकर उसे मना लिया कि हम कुछ भी अनुचित नहीं करने जा रहे हैं।

तब वह बोला, "चलो, मान लिया। आप चलकर उसपर मुकदमा चलाओ। मैं जाकर उसकी आत्मा की धुलाई करता हूँ। संसार से विदा होने से पहले उसके लिए यह बहुत जरूरी है। और मैं उसका अच्छा-खासा तमाशा बनाए बिना उसे यहाँ से भेजूंगा नहीं।"

यह एक और अड़चन थी। उन्होंने अंततः उसे समझा लिया कि अदालत में अभियुक्त की मौजूदगी बहुत जरूरी है। फिर बोले कि उसे लाने के लिए हम एक संतरी भेजेंगे।

"नहीं महाशय, मैं उसे स्वयं लेकर आना पसंद करूँगा। वह मेरे हाथों से बचकर नहीं निकल सकता। मैं वैसे भी रस्सी लाने के लिए जहाज पर जाने ही वाला हूँ।"

पूरी औपचारिकता के साथ अदालत बैठी। उन्होंने एक जूरी भी नियत कर दी। तभी कप्तान नेड ने एक हाथ से बंदी को और दूसरे हाथ में रस्सी व 'बाइबिल' लेकर अदालत में प्रवेश किया। वह अपने बंदी के साथ बैठ गया और अदालत से बोला कि अब आप लोग लंगर उठाकर जहाज को समुद्र में तैराना आरंभ करें। इसके बाद उसने जूरी पर एक नजर डाली तो उसमें नोक्स के दो बदमाश साथी भी नजर आए।

वह उठ खड़ा हुआ और बड़े आत्मविश्वास के साथ उनसे बोला, “आप यहाँ मामले में हस्तक्षेप करने आए हैं। ध्यान रहे कि आपको सही वोट देना है। सुना आपने? नहीं तो इसके बाद दोनाली न्यायिक जाँच करेगी और आपके अवशेष टोकरियों में घर जाएँगे।"

यह चेतावनी निष्फल नहीं हुई। जूरी ने एकमत से फैसला सुनाया, "अपराधी।"

कप्तान नेड ने उठकर कहा, "आओ, अब तुम मेरे शिकार हो। सज्जनो, आपने स्वयं को गौरवान्वित किया है। मैं आप सबको आमंत्रित करता हूँ। आकर देखें कि मैं सबकुछ समुचित तरीके से करता हूँ। आप मेरे साथ यहाँ से दंड स्थल तक चलें। वह मील भर की दूरी पर ही है।"

अदालत ने उसे बताया कि मृत्युदंड देने के लिए एक शेरिफ की नियुक्ति की गई है।

इस पर कप्तान नेड के धैर्य का बाँध टूट गया। उसके क्रोध की सीमा न रही। सबने सोचा कि शेरिफ का विचार त्याग देने में ही समझदारी है।

भीड़ के दंड स्थल पर पहुँच जाने पर कप्तान नेड ने एक पेड़ पर चढ़कर रस्सी बाँधी। फिर नीचे आकर अपराधी के गले में फंदा डाला। उसने 'बाइबिल' खोली और अपना हैट एक तरफ रख दिया। उसमें से एक अध्याय निकालकर पूरी गंभीरता और गरिमा के साथ उसे पढ़ा, फिर बोला, "लड़के, तुम ऊपर जा रहे हो। वहाँ तुमने अपने कर्मों का लेखा-जोखा देना है। जहाँ तक पापों का सवाल है, उनका बोझा जितना कम हो उतना अच्छा होता है। इसलिए अपने पाप स्वीकार कर लो। तुमने हब्शी की हत्या की थी?"

चुप्पी। उसकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया।

कप्तान ने समय-समय पर रुकते हुए एक और अध्याय पढ़ा, ताकि उसका अधिक प्रभाव हो। फिर उसने अपराधी को समझाने के लिए एक उपदेश दिया और अंत में अपना प्रश्न दोबारा दोहराया, "तुमने हब्शी की हत्या की?" और कोई जवाब नहीं। सिर्फ एक अनिष्टकारी गुर्राहट-सी सुनाई दी। इसपर कप्तान ने जिनेसिस का पहला और दूसरा अध्याय पूरी संवेदनशीलता के साथ पढ़ा और पुस्तक आदरपूर्वक बंद कर दी।

उसने स्पष्टतः संतोषपूर्वक कहा, "मैंने तुम्हारे लिए जितना प्रयास किया, शायद बिरले ही करते होंगे।" फिर उसने फंदे को कसा और अपराधी को घड़ी देखकर आधे घंटे तक लटकाए रखा। इसके बाद मृत शरीर अदालत के हवाले कर दिया।

कुछ देर बाद जब वह उस निश्चेष्ट शरीर को देख रहा था, कुछ सोचते हुए बोला, "शायद इसे जलाना बेहतर होता; पर मैंने अपनी तरफ से जो बेहतर समझा, किया।"

जब इस सारे मामले का ब्योरा कैलिफोर्निया पहुँचा, वे आरंभिक दिन थे, तो उसपर बहुत चर्चा हुई; लेकिन इससे कप्तान नेड की लोकप्रियता कम नहीं हुई, बल्कि यह इससे बढ़ी ही। उन दिनों की कैलिफोर्निया की जनता वैसी थी, जो सीधे दंड देने की सरल पुरातन शैली में विश्वास रखती थी। इसलिए जब कहीं भी वैसी ही पद्धति का प्रयोग किया जाए तो वे उसकी प्रशंसा करते थे।

(अनुवाद : सुशील कपूर)