एक लाख रुपये की सलाह : कश्मीरी लोक-कथा

Ek Lakh Rupaye Ki Salah : Lok-Katha (Kashmir)

एक बार की बात है कि काश्मीर में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसके एक बेटा था जिसकी शादी हो गयी थी। वह ब्राह्मण क्योंकि अन्धा था इसलिये अपनी रोटी पानी के लिये अपने बेटे पर ही निर्भर करता था।

रोज सुबह वह नौजवान भीख माँगने के लिये घर से बाहर निकल जाता और जो कुछ भी उसको भीख में मिलता शाम को घर में चारों बाँट कर खा लेते।

कुछ दिन तक तो यह चलता रहा पर फिर वह नौजवान अपनी इस अपमान भरी ज़िन्दगी से तंग आ गया। उसने किसी दूसरे देश में जा कर अपनी किस्मत आजमाने की सोची। उसने अपनी पत्नी को यह बात बतायी और कहा कि वह किसी तरह से कुछ महीने उसकी गैरहाजिरी में घर का काम चला ले भगवान ने चाहा तो फिर सब कुछ ठीक हो जायेगा।

उसने उसको यह भी समझाया कि उसके पीछे उसको मेहनत से काम करना चाहिये ताकि कहीं ऐसा न हो कि उसके माता पिता नाराज हो जायें और उसको शाप दे दें।

ऐसा सोच कर एक दिन गठरी में उसने अपने लिये कुछ खाना बाँधा और घर से चल दिया। वह कई दिन तक चलता रहा जब तक कि वह बराबर वाले देश के एक बड़े शहर में नहीं पहुँच गया। वहाँ जा कर उसने एक दूकान पर जा कर उससे भीख माँगी। दूकानदार ने उससे पूछा — “तुम यहाँ कब आये क्यों आये और तुम्हारी क्या जाति है?”

ब्राह्मण ने जवाब दिया कि वह ब्राह्मण है और अपने माता पिता और पत्नी के लिये खाना ढूँढने के लिये इधर उधर घूम रहा है। दूकानदार को उसकी कहानी सुन कर दया आ गयी सो उसने उसको सलाह दी कि वह उस देश के दयालु राजा से जा कर मिले। वह उसकी कुछ सहायता जरूर कर देगा। यही नहीं वह उसके साथ राजा के दरबार तक जाने के लिये भी तैयार हो गया।

उसी समय इत्तफाक से ऐसा हुआ कि राजा को एक ब्राह्मण की जरूरत थी जो उसके सोने के मन्दिर की देखभाल कर सके। यह सोने का मन्दिर उसने तभी हाल में ही बनवाया था और जब उसने यह सुना कि वह ब्राह्मण भला और ईमानदार था तब तो वह उसको देख कर बहुत ही खुश हुआ।

उसने तुरन्त ही उस ब्राह्मण को अपने उस मन्दिर का मालिक बना दिया और उसके लिये 50 खरवार चावल और 100 रुपये साल के निश्चित कर दिये।

ब्राह्मण के घर छोड़ने के दो महीने के बाद भी जब ब्राह्मण की पत्नी ने उसके बारे में कुछ नहीं सुना तो वह उसकी खोज में निकल पड़ी। खुशकिस्मती से वह भी वहीं पहुँच गयी जहाँ वह ब्राह्मण था। वहाँ जा कर उसने सुना कि रोज सुबह राजा के सोने के मन्दिर में एक अशर्फी उस देश के रहने वाले भिखारी को दी जाती थी जो भी उसको माँगने वहाँ जाता था।

सो अगले दिन वह सुबह सुबह उसको लेने के लिये सोने के मन्दिर गयी तो वहाँ तो उसको उसका पति मिल गया। उसने अपनी पत्नी से पूछा — “तुम यहाँ क्यों आयी हो? तुमने मेरे माता पिता को वहाँ अकेला क्यों छोड़ा? क्या तुमको इस बात की बिल्कुल भी परवाह नहीं है कि वह मुझे शाप दे देंगे और मैं मर जाऊँगा? तुम तुरन्त ही वापस घर चली जाओ और वहीं मेरा इन्तजार करो।”

पत्नी बोली — “नहीं नहीं मैं खुद को और तुम्हारे माता पिता दोनों को भूख से मरने के लिये देखने के लिये वहाँ वापस नहीं जा सकती। घर में चावल का एक दाना भी नहीं है।”

ब्राह्मण बोला — हे भगवान, ठीक है तुम यह लो।” कह कर उसने एक कागज पर कुछ लाइनें लिखीं और वह कागज उसको थमा कर बोला — “इसे ले जा कर राजा को दे देना। हो सकता है कि वह तुमको इसके बदले में एक लाख रुपये दे दे।”

ऐसा कह कर उसने अपनी पत्नी को वहाँ से भेज दिया। उस कागज के टुकड़े पर चार सलाह लिखी हुई थीं-

1 , अगर कोई आदमी यात्रा में हो और रात को किसी अजनबी जगह पहुँच जाये तो उसको वहाँ ठहरने के मामले में सावधान रहना चाहिये कहीं ऐसा न हो कि वे उसे मार दें।

2 , अगर किसी को किसी चीज़ की जरूरत हो तो पहले उसे अपने दोस्त को जाँचना चाहिये पर अगर उसको किसी चीज़ की जरूरत न हो तो उसको अपने दोस्तों को अपने आपको जाँचने नहीं देना चाहिये।

3 , अगर किसी आदमी ने अपनी बहिन की शादी कर दी है और अगर वह उसको मिलने के लिये बड़ी शान शौकत से जाता है तो उसका वह इस तरह से आवभगत करेगी कि जैसे उसको उससे कुछ लेना हो। पर अगर वह गरीब हालत में जाता है तो वह उस पर नाराज होगी और उसको पहचानेगी भी नहीं।

4 , अगर किसी आदमी को कोई काम करना है तो उसको वह अपने आप ही करना चाहिये। अपनी पूरी ताकत से करना चाहिये और बिना किसी डर के करना चाहिये।

उस कागज को ले कर वह ब्राह्मणी अपने घर चली गयी। वहाँ जा कर उसने अपने सास ससुर को अपने पति से मिलने की बात बतायी और बताया कि उसके पति ने उसको कितना कीमती कागज दिया है।

पर राजा के सामने वह खुद नहीं जाना चाहती थी सो उसने अपने एक जानने वाले को भेज दिया। राजा ने वह कागज पढ़ा और उस कागज के लाने वाले को कोड़े से मारने का हुकुम दिया और उसे वहाँ से भगा दिया।

अगली सुबह ब्राह्मणी ने वह कागज लिया और दरबार की तरफ चल दी। जब वह दरबार की तरफ जा रही थी तो वह उसको पढ़ती जा रही थी।

रास्ते में उसको राजा का बेटा मिल गया तो उसने उससे पूछा कि वह क्या पढ़ती जा रही है। उसने कहा कि वह एक ऐसा कागज पढ़ती जा रही थी जिसमें कुछ सलाह लिखी हुई थीं जिसके लिये उसको एक लाख रुपया चाहिये था।

राजकुमार ने उससे वह कागज उसको दिखाने के लिये कहा। ब्राह्मणी ने उसको वह कागज दिखा दिया तो उसको पढ़ कर उसने उसको पैसों के लिये परवाना लिखा और आगे बढ़ गया। बेचारी गरीब ब्राह्मणी ने उसको उसके लिये बहुत धन्यवाद दिया। उस दिन उसने अपने घर के लिये इतना सामान खरीदा जो उनकी ज़िन्दगी भर के लिये काफी था।

शाम को राजकुमार ने पिता से एक स्त्री से अपनी मुलाकात के बारे में और उससे एक कागज खरीदने के बारे में बताया। उसने सोचा कि उसके पिता उसके इस काम से बहुत खुश होंगे पर ऐसा नहीं हुआ। राजा तो यह सुन कर उससे बहुत गुस्सा हो गया और उसको अपने देश से बाहर निकाल दिया।

उफ़, सारा शाही राज घराना कितना दुखी हुआ जब उन सबने राजा का यह बेरहम हुकुम सुना कि उसने राजकुमार को देश निकाला दे दिया। क्योंकि राजकुमार तो सबका प्यारा था साथ में सबको उससे बड़ी बड़ी उम्मीदें थीं। और सबसे बड़ी बात तो यह थी कि वह उस राजगद्दी का वारिस था।

फिर भी राजा का हुकुम तो हुकुम था सो तुरन्त ही बजा लाया गया। राजकुमार ने अपनी माँ को सम्बन्धियों को दोस्तों को सबको विदा कहा और अपने घोड़े पर सवार हो कर घर से निकल पड़ा – कहाँ किधर यह तो उसको भी नहीं पता था।

रात होते होते वह एक जगह आ पहुँचा जहाँ उसको एक आदमी मिला। उसने उसको रात को अपने घर में ठहरने के लिये कहा तो राजकुमार ने उसका बुलावा स्वीकार कर लिया। वह वहाँ गया तो उसका एक राजकुमार की तरह से स्वागत किया गया। उस आदमी ने उसके सोने के लिये एक चटाई बिछा दी उसको बहुत बढ़िया खाना खिलाया और रात को उसकी बेटी ने उसकी सेवा की।

उसने सोचा कि “मुझे उस भले आदमी की चारों सलाहों में से पहली सलाह पर ध्यान देना चहिये क्योंकि पता नहीं यह आदमी रात को मेरे साथ क्या करे। मुझे आज की रात सोना नहीं चाहिये।” मन में ऐसा सोच कर वह लेट तो गया मगर सोया नहीं। बीच रात में उस आदमी की बेटी उठी और अपने हाथ में तलवार ले कर राजकुमार को मारने के इरादे से दौड़ी।

राजकुमार तो सोया नहीं था सो वह उठ कर बैठा हो गया और तलवार का वार बचा गया। फिर उसने तलवार पकड़ ली और बोला — “मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है या फिर मैं तुम्हारा क्या बिगाड़ना चाहता हूँ जो तुम मुझे मारने चली हो? अपनी तलवार सँभाल कर रख लो ताकि तुम्हें उससे बाद में कोई परेशानी न हो जैसे कि उस राजा को हुई थी जिसने गलती से अपने तोते को मार दिया था।”

लड़की बोली — “कौन से राजा ने?”

राजकुमार बोला — “तो लो सुनो यह कहानी। एक बार की बात है कि एक राजा था जिसके पास एक बहुत सुन्दर तोता था। वह उसको बहुत प्यारा था। यह तोता राजा के हरम31 में रहता था और राजा अपनी रानियों से बात करने से भी पहले उससे बात करता था।

एक बार उस तोते ने राजा से एक महीने की छुट्टी माँगी क्यों कि वह अपने बेटे की शादी करने जाना चाहता था। राजा ने उसे छुट्टी दे दी और वह तोता अपने घर चला गया। घर जा कर उसने बड़ी धूमधाम से अपने बेटे की शादी की और शादी के बाद वापस लौटने लगा।

लौटते समय वह दो पेड़ों की टहनियाँ तोड़ता लाया जिसमें से एक पेड़ के फल खाने से कोई भी जवान आदमी बूढ़ा हो जाता था और दूसरे पेड़ के फल खाने से बूढ़ा आदमी जवान हो जाता था। वे दोनों टहनियाँ बागीचे में बो दी गयीं और बढ़ने लगी।

समय आने पर दोनों पेड़ों पर फल लगे। पर जैसे ही वे पकने को थे कि उस देश में एक तूफान आया जिससे वे पेड़ नीचे गिर गये। एक बहुत बड़ा साँप भी तूफान के पानी के साथ साथ वहाँ आ गया उसने अपना जहर उन पेड़ों की शाखों पर बिखेर दिया जिसका किसी को पता नहीं चला।

तूफान के बाद जब पानी उतर गया तो उन पेड़ों को फिर से लगा दिया गया। वे पेड़ फिर से लहलहा उठे और उनमें फिर से फल आ गये।

समय आने पर उन पेड़ों के फल राजा के पास ले जाये गये। राजा ने उनमें से एक पेड़ के कुछ फलों को जाँचने के लिये एक कुत्ते की तरफ फेंके। कुत्ता उनको खाते ही मर गया।

यह देख कर राजा बहुत गुस्सा हुआ और यह सोचते हुए कि तोता उसके साथ मजाक कर रहा था उसने उसको मारने का हुकुम दे दिया। तोते को तुरन्त ही मार दिया गया। अगले साल उन पेड़ों में फिर से फल आये। तब तक उस पेड़ की शाखाओं का सारा जहर निकल चुका था।

एक दिन एक बूढ़ा उधर से गुजर रहा था। उसे भूख लगी थी सो उसने उस पेड़ से एक फल तोड़ कर खा लिया। उसको खाते ही वह तो जवान हो गया।

इस अजीब घटना की खबर उड़ते उड़ते राजा तक पहुँची तो उसने अपने एक नौकर को उस पेड़ के फल लाने का हुकुम दिया। उसमें से उसने कुछ फल अपने बूढ़े वजीर को दिये। वजीर ने उन्हें जैसे ही खाया तो वह भी उनको खा कर वैसा ही जवान और ताकतवर हो गया जैसा लोगों ने उसको 50 साल पहले देखा था। राजा ने जब यह देखा तो वह अपने तोते के लिये बहुत दुखी हुआ और बहुत पछताया कि उसने उसको कितनी बेदर्दी से मरवा दिया था। वह तो उसके लिये कितने अच्छे फल की शाख ले कर आया था।”

कहानी सुना कर राजकुमार बोला — “मुझे यकीन है कि तुम मेरे साथ ऐसा नहीं करोगी।”

लड़की बोली — “नहीं मैं तुम्हारे साथ ऐसा नहीं करूँगी।”

जब तक राजकुमार ने अपनी कहानी खत्म की तब तक सुबह हो चुकी थी और घर के बाकी लोग जाग गये थे। इस तरह उस दिन राजकुमार की जान बच गयी।

इसके तुरन्त बाद ही सुबह को राजकुमार वहाँ से जाने वाला था पर मकान मालिक ने उसको रोक लिया और उसको एक दिन और रुक जाने के लिये कहा कि वह अगले दिन चला जाये। सो उस दिन फिर वह वहीं रुक गया।

पिछले दिन की तरह से उसका उस दिन भी खूब शान शौकत से खातिर की गयी। रात को उसे फिर से उसी कमरे में सोने के लिये भेज दिया गया। उस रात भी मकान मालिक की बेटी उसकी सेवा के लिये वहाँ आयी। उस रात भी राजकुमार नहीं सोया क्योंकि उसको डर था कि मकान मालिक की बेटी उसके साथ पता नहीं क्या करे।

आधी रात को फिर वह लड़की उठी और हाथ में तलवार लिये राजकुमार की तरफ बढ़ी। राजकुमार तो जागा हुआ था। वह तुरन्त उठ बैठा और बोला — “मुझे मत मारो। मुझको मारने से तुमको क्या मिलेगा। अगर तुमने मुझे मार दिया तो तुम उसी तरह से पछताओगी जैसे कि एक आदमी अपने कुत्ते को मार कर पछताया था।”

उसने पूछा — “कैसा आदमी और कैसा कुत्ता?”

राजकुमार बोला — “पहले तुम मुझे अपनी तलवार दो तब मैं तुम्हें उसके बारे में बताता हूँ।”

सो उस लड़की ने अपनी तलवार राजकुमार को दे दी और राजकुमार ने अपनी दूसरी कहानी शुरू की —

“एक बार की बात है कि एक शहर में एक बहुत ही अमीर व्यापारी रहता था। उसके पास एक उसका एक पालतू कुत्ता था। अचानक यह अमीर व्यापारी बहुत ही गरीब हो गया और उसे अपने कुत्ते को छोड़ना पड़ गया। उसने अपने एक साथी व्यापारी से अपने कुत्ते के ऊपर पाँच हजार रुपये का कर्जा लिया और उससे एक नया काम शुरू किया।

कुछ समय बाद उसके साथी व्यापारी की दूकान में चोरी हो गयी और चोर उसका सारा सामान चुरा कर ले गये। मुश्किल से दस बीस रुपये का सामान ही उसकी दूकान में बचा था।

वफादार कुत्ते को पता चल रहा था कि वहाँ सब क्या हो रहा था। वह चोरों के पीछे दौड़ गया। उसने वह जगह देख ली जहाँ उन चोरों ने वह चोरी का सामान छिपाया था और घर वापस आ गया। सुबह को जब व्यापारी सो कर उठा तो अपनी दूकान खाली देख कर रो पड़ा। साथ में उसके घर वाले भी रोने लगे। व्यापारी तो बिल्कुल पागल सा हो गया।

उधर कुत्ता बार बार मालिक की कमीज और पाजामा खींचता हुआ घर के दरवाजे की तरफ भागता रहा जैसे वह उसको घर के बाहर ले जाना चाहता हो। आखिर उसके एक दोस्त ने उसको सलाह दी कि लगता है कि ऐसा लगता है कि कु,त्ता चुरायी हुई चीज़ों के बारे में कुछ जानता है सो उसको उसके पीछे जाना चाहिये। व्यापारी और उसके कुछ दोस्त उस कुत्ते के पीछे पीछे चल दिया।

कुत्ता उनको वहाँ ले गया जहाँ चोरों ने उसका माल छिपा रखा था। उस जगह आ कर कुत्ते ने जमीन खुरचनी शुरू की और भौंकना शुरू किया और यह बताने की कोशिश की कि सामान यहाँ नीचे छिपा हुआ है।

व्यापारी और उसके दोस्तों ने वहाँ जमीन खोदी और अपना सारा सामान पा लिया। उसमें कोई भी चीज़ खोयी हुई नहीं थी। सब सामान ऐसे का ऐसा ही मिल गया।

व्यापारी अपना सब सामान पा कर बहुत खुश हुआ। घर आ कर उसने कुत्ते के कान में कुछ लिख कर एक कागज लपेटा और उसको उसके पुराने मालिक के पास भेजा।

उसने उस कागज में लिखा था कि उसका कुत्ता बहुत वफादार है और इस वफादारी के फलस्वरूप वह उसका पहला पाँच हजार रुपये का कजामाफ करता है और इनाम के तौर पाँच हजार रुपये उसके लिये और भेज रहा है।

जब व्यापारी ने अपने कुत्ते को वापस आते देखा तो उसने सोचा “लगता है मेरा दोस्त अपना पैसा माँग रहा है। मैं कहाँ से दूँ उसको पैसा। अभी तो मैं अपने नुकसान की भरपाई ही नहीं कर पाया हूँ। मैं ऐसा करता हूँ कि जैसे ही यह कुत्ता मेरे घर आता है मैं इसको मार देता हूँ और कह दूँगा कि इसको किसी और ने मार दिया। इससे मेरा कर्जा ही खत्म हो जायेगा। न होगा कुत्ता न रहेगा कर्जा।”

ऐसा सोच कर वह घर के बाहर की तरफ दौड़ा और कुत्ते को मार दिया तभी उसके दाँये कान से एक कागज नीचे गिर पड़ा। व्यापारी ने वह कागज उठाया और पढ़ा तो वह तो बहुत दुखी हो गया।”

राजकुमार बोला — “इसलिये सँभल जाओ कहीं ऐसा न हो कि बाद में तुम्हें मेरी ज़िन्दगी की कीमत अपनी ज़िन्दगी दे कर पछताना पड़े।”

जब राजकुमार ने अपनी कहानी खत्म की तब सुबह होने वाली थी। लड़की बोली — “उफ़ अब मैं क्या करूँ। एक घंटे बाद दिन निकल आयेगा। मेरे पिता ने मुझसे कहा था कि मैं तुमको यकीनन मार दूँ और अगर मैंने तुम्हें नहीं मारा तो वह मुझे मार देंगे। अब मैं क्या करूँ। मेरी ज़िन्दगी अब तुम्हारे हाथ में है।”

राजकुमार बोला — “मुझे अपने इस शापित घर से बाहर निकलने का रास्ता बताओ और मेरे साथ चलो। बाहर हमको कोई न कोई घोड़ा जरूर मिल जायेगा हम उस पर बैठ कर जल्दी ही यहाँ से भाग जायेंगे। आओ चलो मेरे साथ।”

एक घंटे के अन्दर अन्दर जब तक घर के लोग सो कर उठे तब तक तो राजकुमार और उस डाकू की लड़की दोनों घोड़े पर बैठ कर बहुत दूर निकल चुके थे।

वे चलते रहे चलते रहे जब तक कि वे राजकुमार के एक दोस्त के घर आ पहुँचे। उसने उन दोनों का अपने घर में स्वागत किया और उनको आराम से अपने भाई की तरह से छह महीने तक ठहराया। जब राजकुमार ने उससे वहाँ से जाने की इजाज़त माँगी तो उसने उसको जवाहरात पैसे घोड़े और सफर के लिये जरूरी सामान दे कर विदा किया।

यहाँ से चल कर राजकुमार अपने बहनोई के देश पहुँचा। वहाँ पहुँच कर उसने एक जोगी का वेश बनाया और उसके महल के सामने ऐसे जा कर बैठ गया जैसे वह पूजा में लीन हो। उस जोगी और उसकी पूजा की खबर राजा तक पहुँची।

उसमें उसकी रुचि हो आयी क्योंकि उसकी पत्नी की तबियत बहुत खराब थी। उसने उसके इलाज के लिये बहुत सारे हकीम वैद्य बुलाये पर कोई उसको ठीक न कर सका।

उसने सोचा कि शायद यह पवित्र आदमी उसको ठीक कर दे सो उसने अपने कुछ आदमी उसको महल में लाने के लिये भेजे पर राजकुमार ने यह कह कर महल के अन्दर जाने से मना कर दिया कि वह एक जोगी है और उसकी जगह बाहर ही है। अगर राजा उससे मिलना चाहता है तो वह खुद उससे बाहर आ कर मिले और साथ में अपनी पत्नी को भी ले आये। इस पर राजा अपनी पत्नी को साथ ले कर आया और उसे राजकुमार से मिलवाया।

राजकुमार ने उसको अपने सामने लेट कर प्रणाम करने के लिये कहा। जब उसको इस हालत में लेटे हुए तीन घंटे हो गये तो उसने उससे उठने के लिये और जाने के लिये कहा क्योंकि वह अब ठीक हो चुकी थी। रानी चली गयी।

शाम को महल में बड़ा हल्ला गुल्ला मचा क्योंकि रानी की मोती की माला खो गयी थी और किसी को उसका पता नहीं था। काफी देर के बाद कुछ लोग वहाँ गये जहाँ रानी ने जोगी के सामने लेट कर उसको प्रणाम किया। उनको वह माला वहीं पड़ी मिल गयी।

जब राजा ने जब यह सुना तो वह बहुत नाराज हुआ और उसने जोगी को फाँसी की सजा का हुकुम सुना दिया। पर इस शाही हुकुम को मानने से पहले ही राजकुमार ने उसको फाँसी देने वाले आदमियों को पैसे दिये और वह देश छोड़ कर भाग गया। देश से बाहर निकलने के बाद उसने अपने कपड़े पहिन लिये। एक दिन जब वह अपने कपड़े पहिने घूम रहा था तो उसने देखा कि एक कुम्हार अपनी पत्नी और बच्चों के साथ एक बार हँस लेता था और फिर रो लेता था।

उसने उससे पूछा — “अरे यह क्या बात है कि आप एक बार हँसते हैं तो दूसरी बार रोते हैं। अगर आपको हँसना है तो हँसिये और रोना है तो रोइये।”

कुम्हार बोला — “तुम मुझे परेशान मत करो। तुम्हें इस बात से क्या लेना देना कि मैं क्या करता हूँ।”

राजकुमार बोला — “माफ कीजियेगा मैं इसकी वजह जानना चाहता हूँ अगर आपको कोई ऐतराज न हो तो।”

इस पर कुम्हार बोला — “बात यह है कि इस देश के राजा की एक बेटी है जिसकी उसे रोज शादी करनी पड़ती है क्योंकि रोज ही उसका पति उसके साथ रहने पर मर जाता है। इस तरह से करीब करीब सारे जवान लड़के मर गये हैं। अब हमारे बेटे की बारी भी जल्दी ही आने वाली है।

हम इस अजीब सी बात पर हँसते हैं कि एक कुम्हार के बेटे की शादी एक राजकुमारी से होगी और इस शादी के भयानक परिणाम को सोच कर रोते हैं। हमारी समझ में नहीं आ रहा कि हम क्या करें।”

राजकुमार सोचते हुए बोला — “यह तो हँसने रोने की बात है ही पर अब आप रोइये नहीं। आपके बेटे की जगह मैं ले लूँगा। उसकी जगह मेरी शादी उस राजकुमारी से हो जायेगी। बस मुझे उस मौके के लिये ठीक से कपड़े बनवा दीजियेगा और तैयार कर दीजियेगा।”

कुम्हार ने उसको बढ़िया से कपड़े बनवा दिये कुछ गहने बनवा दिये और शादी के लिये महल भेज दिया। रात को उसे राजकुमारी के कमरे में भेज दिया गया।

उसने सोचा “यह तो बड़ी भयानक घड़ी है क्या मैं भी दूसरे नौजवानों की तरह से मारा जाऊँगा।” उसने अपनी तलवार कस कर अपनी मुट्ठी में पकड़ ली और इस इरादे से अपने बिस्तर पर लेट गया कि आज की रात वह सोयेगा नहीं और देखेगा कि क्या होता है।

वह चारों तरफ देखता रहा। बीच रात में उसने देखा कि राजकुमारी के नथुनों से दो साँप निकले और उसकी तरफ उसको मारने के लिये बढ़ने लगे जैसे शायद उन्होंने पहले कुछ नौजवानों को मारा होगा।

पर यह राजकुमार तो तैयार था उसने अपनी तलवार कस कर पकड़ ली। जैसे ही वे उसके बिस्तर पर आये उसने अपनी तलवार से उन दोनों को काट दिया।

सुबह को राजा उसकी खोज खबर लेने के लिये आया तो यह देख कर बड़ा आश्चर्यचकित हुआ कि यह नौजवान तो ज़िन्दा था और उसकी बेटी से बात कर रहा था। उसने सोचा यह जरूर ही मेरी बेटी का पति होगा क्योंकि वही उसके साथ रह सकता है। राजा कमरे में घुसा और उससे पूछा — “तुम कहाँ से आये हो और तुम हो कौन?”

राजकुमार बोला — “मैं फलाँ फलाँ देश के राजा का बेटा हूँ।”

जब राजा ने यह सुना तो वह बहुत खुश हुआ और उसको अपने महल में रख लिया। राजकुमार राजा के पास एक साल से ज़्यादा रहा। फिर उसने अपने देश जाने की इजाज़त माँगी जो राजा ने उसको तुरन्त दे दी। राजा ने उसको उसके पिता के लिये भेंट में हाथी घोड़े जवाहरात और बहुत सारे पैसे दे कर उसे विदा किया। राजकुमार चल दिया।

रास्ते में वह अपने बहनोई के देश से हो कर गुजरा तो उसके देश में आने की खबर राजा को लगी तो वह अपने हाथ रस्सी से बँधे राजकुमार के सामने आया। उसने बहुत ही विनम्रता से उसको अपने महल में ठहरने के लिये कहा और जो कुछ भी खातिरदारी वह उसकी कर सकता था उसको स्वीकार करने के लिये कहा।

जब राजकुमार महल में ठहरा हुआ था तो उसने अपनी बहिन को देखा तो उसने उसको मुस्कुराते हुए नमस्ते की। जब वह वहाँ से चला तो उसने उसको बताया कि जब वह पहले वहाँ आया था तो उसने और उसके पति ने उसके साथ कैसा व्यवहार किया था। फिर वह कैसे वहाँ से बच कर भाग निकला। उसने अपनी बहिन को दो हाथी दो शानदार घोड़े पन्द्रह सिपाही और दस लाख के हीरे जवाहरात दिये।

वहाँ से निकल कर वह अपने पुराने दोस्त के घर गया जिसने उसके साथ बहुत अच्छा बरताव किया था। उसने उसके घर से कुछ दूरी पर अपना कैम्प लगाया और अपने दोस्त को अपने पास बुलाया पर उसका दोस्त उससे मिलने जाये ही नहीं।

पूछने पर कि वह उससे मिलने क्यों नहीं जा रहा वह बोला — “क्योंकि अब उसको मेरी सहायता की जरूरत नहीं है।” यह सुन कर राजकुमार खुद उससे मिलने के लिये उसके महल पहुँचा और उसको अपनी जरूरत के समय सहायता करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद दिया।

इसके बाद वह अपने घर गया और अपने माता पिता को अपने आने की खबर दी। पर अफसोस कि अपने बेटे को बाहर निकाल देने के बाद वे उसकी जुदाई में रोते रोते अन्धे हो गये थे। राजा बोला — “उसको अन्दर ले आओ। वह जब अपना हाथ हमारी आँखों पर रखेगा तब हम फिर देखने लगेंगे।”

राजकुमार अन्दर आया तो बूढ़े माता पिता ने उसका बड़े प्यार से स्वागत किया। उसने अपने दोनों हाथ अपने माता पिता की अन्धी आँखों पर रखे तो उनको फिर से दिखायी देना शुरू हो गया। तब राजकुमार ने राजा को अपनी सारी कहानी सुनायी और बताया कि किस प्रकार वह उस ब्राह्मणी की सलाह मान कर कितनी बार बचा।

राजा ने उसको बाहर निकाल देने पर अपना दुख प्रगट किया और फिर सब खुशी खुशी शान्ति से रहने लगे।

(सुषमा गुप्ता)

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