चटपट लोमड़ी और झबरूमल रीछ : यूक्रेन लोक-कथा

Chatpat Lomdi Aur Jhabrumal Reechh : Lok-Katha (Ukraine)

एक बार चटपट लोमड़ी की शहद खाने की इच्छा हुई। वह गोश्त खाते-खाते थक गई थी और कोई मीठी चीज़ खाने की उसकी बड़ी इच्छा हो रही थी।

'चलूं, मधुमक्खियों के छत्ते से थोड़ा-सा शहद लेकर आऊं...' उसने अपने मन में सोचा और बाग में पहुंचकर शहद के छत्ते के बाहर चुपचाप बैठ गई। धीरे-धीरे उसने शहद खुरचने के लिए अपने पंजे छत्ते में डाल दिये। पंजों का छत्ते में डालना था कि मक्खियां भिनभिनाती हुई एकदम छत्ते से बाहर निकल पड़ीं और सब की सब चटपट लोमड़ी से चिपट गईं। अब तो चटपट लोमड़ी सिर पर पांव रखकर भागी और नाक सिकोड़कर बोली-

" शहद तो मीठा है लेकिन मक्खियां कड़वी हैं।"

लोमड़ी अपनी झोंपड़ी में आकर धम्म से पड़ गई। उसकी नाक सूज गई थी और फूलकर कुप्पा हो गई थी। वह बहुत देर तक लेटी लेटी सोचती रही पर शहद की बात अपने दिमाग से न निकाल सकी।

‘चलूं, झबरूमल रीछ से मिलूं। उसने सोचा, 'और उनसे कहूं कि मैं तुम्हारे घर में रहना चाहती हूं। सुना है झबरूमल शहद के बहुत शौकीन हैं। उनके घर मुझे जरूर शहद मिलेगा।'

लोमड़ी झबरूमल रीछ के पास पहुंची।

"राम-राम, झबरूमलजी !" लोमड़ी ने कहा, "कैसे हो?"

"अरे, चटपट, तुम ! बहुत दिनों में दिखाई दीं। क्या कहीं बाहर गई हुई थीं?" झबरूमल ने पूछा ।

“क्या बताऊं, झबरूमलजी ! जब से तुम्हारे भैया मरे हैं, मेरा तो सब सुख-चैन जाता रहा है। अकेला घर फाड़ खाने को आता है।" चटपट ने उदास स्वर में कहा ।

" अरे तो, चटपट, मेरे घर चली आओ न । अकेले रहते-रहते मैं भी ऊब गया हूं। एक से दो भले । जिंदगी मजे से गुजरेगी।”

लोमड़ी तो यह चाहती ही थी। बोली, “हां, सोचती तो मैं भी यही हूं।"

और वे दोनों मिलकर गृहस्थी चलाने लगे। झबरूमल नित्य शिकार के लिए जाता और अपने और चटपट लोमड़ी के लिए काफी मात्रा में गोश्त लेकर लौटता। लेकिन चटपट लोमड़ी की शहद खाने की इच्छा अभी भी वैसी की वैसी ही बनी रही।

एक दिन लोमड़ी ने रीछ से कहा, “झबरूमलजी, किसी दिन मेरे लिए थोड़ा-सा शहद तो लाओ। मुझे मीठी चीज़ खाने की बहुत इच्छा हो रही है।" कहने की देर थी, अगले ही दिन झबरूमल रीछ शहद के पूरे भरे हुए दो छत्ते ले आया और बोला, “एक छत्ता तो जाड़ों के लिए उठाकर रख देता हूं। दूसरा अभी निपटाये देते हैं।"

और उन्होंने जी-भरकर शहद खाया। कुछ दिनों में पहले छत्ते का शहद खत्म हो गया। झबरूमल ने दूसरे छत्ते को ले जाकर छत पर छिपा दिया।

झबरूमल तो संतोषी जीव था । पर चटपट को यही सूझ रही थी कि किसी तरह बचे हुए शहद पर हाथ साफ करे। पर छत पर किस बहाने से जाए? उसे डर था कि कहीं झबरूमल को शक न पड़ जाए और वह यह न पूछ बैठे कि छत पर क्या करने गई थी। वह खाट पर लेट गई और अपनी पूंछ से दीवार पर ठक-ठक करने लगी ।

"यह कैसी खटखट है?" झबरूमल रीछ ने पूछा।

"पड़ोसी के लड़का हुआ है। वे मुझे बुला रहे हैं।” लोमड़ी ने झूठ बोला। वह दौड़ी-दौड़ी छत पर गई और पेट भर शहद खाकर लौट आयी। झबरूमल ने पूछा, “पड़ोसियों ने बच्चे का क्या नाम रखा ?"

"कम-कम- खुरचा।” चटपट लोमड़ी बोली ।

" बड़ा अजीब नाम है !"

"इसमें अजीब की क्या बात है! अपनी-अपनी पसंद है।"

अगले दिन चटपट लोमड़ी फिर खाट पर लेटकर दीवार से पूंछ बजा-बजाकर ठक-ठक करने लगी ।

"यह कौन ठक-ठक कर रहा है?" झबरूमल ने पूछा।

" पड़ोसी मुझे बुला रहे हैं। उनके लड़की हुई है।"

आज भी चटपट लोमड़ी भागी हुई छत पर गई और जी भरकर शहद पर हाथ साफ किया, यहां तक कि छत्ते में कुछ ही शहद बच रहा ।

जब लोमड़ी वापस आयी तो झबरूमल ने पूछा, “क्यों जी, पड़ोसियों ने लड़की का क्या नाम रखा ?"

"कम बचा।" चटपट लोमड़ी ने उत्तर दिया ।

"बड़ा अजीब नाम है !"

“अजीब तो नहीं है। मैं तो समझती हूं बड़ा अच्छा नाम है।”

तीसरे दिन फिर चटपट लोमड़ी ने दीवार से पूंछ बजानी शुरू कर दी।

"आज फिर कोई ठक-ठक कर रहा है।" झबरूमल रीछ ने कहा । “पड़ोसी हैं। उनके एक और लड़की हुई है।"

"वे तुम्हें ही क्यों बुलाते हैं?” झबरूमल ने पूछा ।

"उन्हें मेरा साथ बहुत पसंद है, यही कारण है।" लोमड़ी ने कहा और भागी हुई छत पर पहुंची। उसने सब शहद चाट लिया और छत्ते को फेंककर फिर झोंपड़ी में आकर अपने बिस्तर पर लेट गई।

“क्यों, पड़ोसियों ने इस लड़की का क्या नाम रखा है?" झबरूमल रीछ ने कहा। “सफाचट ।" चटपट लोमड़ी ने उत्तर दिया।

“सफाचट भी कोई नाम है? मैंने तो कभी नहीं सुना।"

"तुम्हें क्या पता ! ऐसा नाम भी जरूर होता होगा नहीं तो उनका क्या सिर फिर रहा था जो लड़की का यह नाम रखा।"

थोड़ी देर बाद झबरूमल रीछ को शहद खाने की इच्छा हुई। उसने छत पर जाकर देखा तो छत्ते का कहीं पता नहीं था ।

"अरे, शहद कहां गया? क्यों री चटपट, तू सारा शहद चट कर गई ।” झबरूमल छत पर से ही चिल्लाया, “ठहर, अब मैं तुझे चट करूंगा !”

और झबरूमल रीछ चटपट लोमड़ी के पीछे भागा। लेकिन चटपट लोमड़ी दौड़कर झाड़ियों में जा छिपी और फिर कभी दिखाई नहीं दी ।

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