बर्मी लड़की (कहानी) : सआदत हसन मंटो

Burmi Ladki (Hindi Story) : Saadat Hasan Manto

ज्ञान की शूटिंग थी। इस लिए किफ़ायत जल्दी सो गया। फ़्लैट में और कोई नहीं था बीवी बच्चे रावलपिंडी चले गए थे हमसाइयों से उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी। यूं भी बंबई में लोगों को अपने हमसाइयों से कोई सरोकार नहीं होता। किफ़ायत ने अकेले ब्रांडी के चार पैग पीए। खाना खाया। नौकरों को रुख़स्त किया और दरवाज़ा बंद करके सो गया।
रात के पाँच बजे के क़रीब किफ़ायत के ख़ुमारआलूद कानों को धक की आवाज़ सुनाई दी। उस ने आँखें खोलीं। नीचे बाज़ार में एक ट्रेम दनदनाती हुई गुज़री। चंद लमहात के बाद दरवाज़े पर बड़े ज़ोरों की दस्तक हुई। किफ़ायत उठा। पलंग पर उतरा तो इस के नंगे पैर टखनों तक पानी में चले गए उस को सख़्त हैरत हुई कि कमरे में इतना पानी कहाँ से आया और बाहर कोड़ी डोर में इस से भी ज़्यादा पानी था। दरवाज़े पर दस्तक जारी था उस ने पानी के मुतअल्लिक़ सोचना छोड़ा और दरवाज़ा खोला।
ज्ञान ने ज़ोर से कहा “ये क्या है?”
किफ़ायत ने जवाब दिया। “पानी”
“पानी नहीं....... औरत!” ये कह कर ज्ञान नीम अंधेरे कोरी डोर में दाख़िल हुआ उस के पीछे एक छोटे से क़द की लड़की थी।
ज्ञान को फ़र्श पर फैले हुए पानी का कुछ एहसास न हुआ। लड़की ने पायजामा ऊपर उठा लिया और छोटे छोटे क़दम उठाती ज्ञान के पीछे चली गई।
किफ़ायत के ज़हन में पहले पानी था। अब ये लड़की इस में दाख़िल होगई और डुबकियां लगाने लगी सब से पहले उस ने सोचा कि ये कौन है शक्ल सूरत और लिबास के एतबार से बर्मी मालूम होती। लेकिन ज्ञान इसे कहाँ से ले आया?।
ज्ञान अंदर कमरे में जा कर कपड़े तबदील किए बग़ैर पलंग पर लेटा और लेटते ही सो गया। किफ़ायत ने उस से बात करना चाही मगर उस ने सिर्फ़ हूँ हाँ में जवाब दिया और आँखें न खोलीं। किफ़ायत ने उस लड़की की तरफ़ एक नज़र देखा जो सामने वाले पलंग पर बैठी थी और बाहर निकल गया।
बावर्चीख़ाने में जा कर उसे मालूम हुआ कि रबड़ का वो पाइप जो रात को बड़ा ड्रम भरा करता था बाहर निकला हुआ है। तीन बजे जब नल में पानी आया तो उस ने तमाम कमरे सेराब करदिए। तीनों नौकर बाहर गली में सो रहे थे किफ़ायत ने उन को जगह दिया और पानी ख़ारिज करने के काम पर लगा दिया वो ख़ुद भी उन के साथ शरीक था। सब चुल्लुओं से पानी उठाते थे और बाल्टियों में डालते जाते थे इस बर्मी लड़की ने जब उन को ये काम करते देखा तो झटपट। सैंडल उतार कर उन का हाथ बटाने लगी।
इस के छोटे छोटे गोरे हाथ उंगलीयों के नाख़ुन बढ़ाए हुए और सुर्ख़ी लगे नहीं थे छोटे छोटे कटे हुए बाल थे जिन में हल्की हल्की लहरें थीं। मुर्दार मौज़ा का मगर खिला रेशमी पाजामा पहने थी। उस पर स्याह रंग का रेशमी कुरता था जिस में उसकी छोटी छोटी छातियां छिपी हुई थीं।
जब उस ने इन लोगों का हाथ बनाना शुरू किया तो किफ़ायत ने उसे मना किया। “आप तकलीफ़ न कीजीए ये काम हो जाएगा।”
उस ने कोई जवाब न दिया। छोटे छोटे सुर्ख़ी लगे होंटों से मुस्कुराई और काम में लगी रही। आधे घंटे के अंदर अन्दर तीनों कमरों से पानी निकल गया। किफ़ायत ने सोचा चलो ये भी अच्छा हुआ इसी बहाने सारा घर धुल कर साफ़ होगया।
वो बर्मी लड़की हाथ धोने के लिए ग़ुसलख़ाने में चली गई किफ़ायत कमर सीधी करने के लिए बिस्तर पर लेटा नींद पूरी नहीं हुई थी, सो गया।
तक़रीबन नो बजे वो जागा और जागते ही उसे सब से पहले पानी का ख़्याल आया। फिर उस ने बर्मी लड़की के मुतअल्लिक़ सोचा जो ज्ञान के साथ आई थी। कहीं ख़ाब तो नहीं था लेकिन ये सामने ज्ञान सो रहा है और फ़र्श भी धुला हुआ है।
किफ़ायत ने ग़ौर से ज्ञान की तरफ़ देखा। वो पतलून कोट बल्कि जूते समेत औंधा सो रहा था। किफ़ायत ने उस को जगाया इस ने एक आँख खोली और पूछा “क्या है?”
“ये लड़की कौन है?”
ज्ञान एक दम चौंका “लड़की.......कहाँ है” फिर फ़ौरन ही चिट लेट गया।
“ओह....... बकवास ना करो....... ठीक है।”
किफ़ायत ने उसे फिर जगाने की कोशिश की मगर वो ख़ामोश सोया रहा। उसको साढ़े नौ बजे अपने काम पर जाना था उस ने जल्दी जल्दी ग़ुसल किया। शैव भी ग़ुसलख़ाने के अंदर ही कर लिया। बाहर निकल कर ड्राइंगरूम में गया तो उस को मेज़ सजी हुई नज़र आई।
सुबह नाशतादान पर आम तौर पर किफ़ायत के हाँ बहुत सी मुख़्तसर चीज़ें होती थीं। दो उबले हुए अंडे। दो तोस। मक्खन और चार....... मगर आज मेज़ रंगीन थी उसे ग़ौर से देखा छिले हुए अंडे अजीब-ओ-गरीब अंदाज़ में कटे हुए थे कि फूल मालूम होते थे। सलाद था बड़े ख़ूबसूरत तरीक़े से प्लेट में सजा हुआ। तोसों पर भी मीनाकारी की हुई थी। किफ़ायत चकरा गया। बावर्चीख़ाने में गया तो वो बर्मी लड़की चौकी पर बैठी सामने अँगीठी रखे कह रही थी तीनों नौकर इस के इर्दगिर्द थे और हंस हंस कर उस से बातें कररहे थे। किफ़ायत को देख कर वह उठ खड़े हुए। बर्मी लड़की ने आँखें घुमा कर उस की तरफ़ देखा और मुस्कुरा दी।
किफ़ायत ने उस से बात करना चाही लेकिन वो कैसे करता। उस से क्या कहता वो उस को जानता तक नहीं था उस ने अपने एक नौकर से सिर्फ़ इतना पूछा “ये नाश्ता आज किस ने तैय्यार किया है बशीर?”
बशीर ने इस बर्मी लड़की की इशारा किया। “बाई जी ने”
वक़्त बहुत कम था। किफ़ायत ने जल्दी बांका सजीला नाश्ता खाया और कपड़े पहन कर उनपे दफ़्तर रवाना होगया। शाम को वापिस आया तो वो बर्मी लड़की उस के स्लीपिंग सूट का इकलौता पाजामा पहने अपना कुरता इस्त्री कररही थी। किफ़ायत पीछे हट गया, क्योंकि वो सिर्फ़ पाएजामा पहने थी।
“आ जाईए।”
लहजा बड़ा साफ़ सुथरा था। किफ़ायत ने सोचा कि बर्मी लड़की की बजाय शायद कोई और बोला है। जब वो अंदर गया तो उस लड़की ने छोटे छोटे होंटों पर मुस्कुराहट पैदा करके उस को सलाम किया। किफ़ायत की मौजूदगी में उस ने कोई हिजाब महसूस न किया। बड़े सुकून से वो अपना स्याह करता इस्त्री करती रही। किफ़ायत ने देखा उसकी छोटी छोटी गोल छातीयों के दरमयानी हिस्से में इस्त्री की गर्मी के बाइस पसीने की नन्ही नन्ही बूंदें जमा होगई थीं।
किफ़ायत ने ज्ञान के बारे में पूछने के लिए बशीर को आवाज़ देना चाही मगर रुक गया। उस ने मुनासिब ख़्याल न किया क्योंकि वो लड़की आधी नंगी थी उस ने हैट उतार कर एक तरफ़ रखा। थोड़ी देर इस नीयम उर्यानी को देखा मगर कोई हैजान महसूस न किया....... लड़की का बदन बेदाग़ था। जिल्द निहायत ही मुलाइम थी उतनी मुलाइम कि निगाहें फिसल फिसल जाती थीं।
कुरता इस्त्री हो गया तो उस ने सोइच औफ़ किया एक कुरता और भी था सफ़ैद बोसकी का जो तहा क्या हुआ इस्त्री शूदा पाइजामे पर रखा उस ने ये सब कपड़े उठाए और किफ़ायत से मुख़ातब हुई “मैं नहाने चली हूँ।”
ये कह कर वो चली गई। किफ़ायत टोपी उतार कर सर खुजलाने लगा। “कौन है ये?”
उस के दिमाग़ में बड़ी खुदबुद हो रही थी जब वो उस लड़की के मुतअल्लिक़ सोचता सारा वाक़िया उसके सामने आजाता। रात को उस का उठना। पानी ही पानी। इस का दरवाज़ा खोलना और “कहना पानी” और ज्ञान का ये जवाब देना “पानी नहीं औरत” और एक नन्ही सी गुड़िया का छम से अंदर आजाना।
किफ़ायत ने दिल में कहा “हटाओ जी....... ज्ञान आएगा तो सब कुछ मालूम हो जाएगा....... लौंडिया है दिलचस्प....... इतनी छोटी है कि जी चाहता है कि आदमी जेब में रख ले....... चलो ब्रांडी पियें।”
बशीर ने गिलास, ब्रांडी और बर्फ़ वग़ैरा सब कुछ इलाक़ाई कमरे में तिपाई पर रख दिया था। किफ़ायत ने कपड़े बदले और पीना शुरू करदी। पहला पैग ख़त्म किया तो उसे ग़ुसलख़ाने का दरवाज़ा खुला की चूँ सुनाई दी। दूसरा पैग डाल कर वो इंतिज़ार करने लगा कि थोड़ी ही देर में वो बर्मी लड़की ज़रूर इधर आएगी। उस के मुक़र्ररा चार पैग ख़त्म होगए मगर वो न आई। ज्ञान भी न आया। किफ़ायत झुँझला गया। अन्दर बेडरूम में जा कर उस ने देखा वो लड़की स्त्री किए हुए कपड़े पहने अपनी गोल गोल छातीयों पर हाथ रखे बड़े इत्मिनान से सो रही थी....... स्त्री वाली मेज़ पर उस के स्लीपिंग सूट का इकलौता पाएजामा बड़ी अच्छी तरह तहा क्या हुआ रखा था।
किफ़ायत ने वापस जा कर ब्रांडी का एक डबल पैग गिलास में डाला और नैट ही चढ़ा गया....... थोड़ी देर के बाद उस का सर घूमने लगा। उस ने बर्मी लड़की के मुतअल्लिक़ सोचने की कोशिश की मगर उस ने ऐसा महसूस किया कि वो चुल्लुओं में पानी भर भर के उस के दिमाग़ में डाल रही है खाना खाए बग़ैर वो सोफे पर लेट गया और इस बर्मी लड़की के मुतअल्लिक़ कुछ सोचने की कोशिश करते हुए सो गया।
सुबह हुई तो उस ने देखा कि वो सोफे की बजाय अंदर अपने पलंग पर है उस ने हाफ़िज़े पर ज़ोर दिया। “मैं रात कब आया यहां....... किया मैंने खाना खाया था?”
किफ़ायत को कोई जवाब न मिला। सामने वाला पलंग ख़ाली था। उस ने ज़ोर से बशीर को आवाज़ दी। वो भागा अंदर आया। किफ़ायत ने उस से पूछा “ज्ञान साह कहाँ हैं?”
बशीर ने जवाब दिया “रात को नहीं आए”
“क्यों?”
“मालूम नहीं साहब”
“वो बाई जी कहाँ हैं”
“मच्छी तल रही हैं”
किफ़ायत के दिमाग़ में मछलियां तली जाने लगीं उठ कर बावर्चीख़ाने में गया तो वो चौकी पर बैठी सामने अँगीठी रखे मच्छी तल रही थी। किफ़ायत को देख कर उसके होंटों पर एक छोटी सी मुस्कुराहट पैदा हुई। हाथ उठा कर उस ने सलाम किया और अपने काम में मशग़ूल हो गई....... किफ़ायत ने देखा तीनों नौकर बेहद मसरूर थे और बड़ी मुस्तइद्दी से उस लड़की का हाथ बटा रहे थे।
बशीर को कुछ दिनों की छुट्टी पर अपने वतन जाना था कई दिनों से वो बार बार कहता था कि साहब मुझे तनख़्वाह दे दीजीए, मुझे घर से कई ख़त आचुके हैं। वालिदा बीमार है। रात को वो उसे तनख़्वाह देना भूल गया था अब उसे याद आया तो उस ने बशीर से कहा “इधर आओ बशीर। अपनी तनख़्वाह ले लो....... में कल दफ़्तर से रुपय ले आया था।”
बशीर ने तनख़्वाह ले ली। किफ़ायत ने उस से पूछा “नौ बजे गाड़ी जाती है। उस से चले जाओ।”
“अच्छा जी!” ये कह कर बशीर चला गया।
नाश्ता बेहद लज़ीज़ था खासतौर पर मच्छी के टुकड़े। उस ने खाना शुरू करने से पहले बशीर के ज़रीया से इस बर्मी लड़की को बुला भेजा मगर वो न आई। बशीर ने कहा “जी वो कहती हैं कि बाद में करेंगी वो नाश्ता”
किफ़ायत की माली हालत बहुत पतली थी। ज्ञान भी आसूदा हाल नहीं था दोनों इधर उधर से पकड़ कर गुज़ारा कर रहे थे। ब्रांडी का बंद-ओ-बस्त ज्ञान करदेता था बाक़ी खाने पीने का सिलसिला भी किसी न किसी तरह चल ही रहा था। जिस फ़िल्म कंपनी में ज्ञान काम कररहा था उसका दीवाला निकलने के क़रीब था मगर उस को यक़ीन था कि कोई मोजज़ा ज़रूर रौनुमा होगा और उसकी कंपनी सँभल जाएगी। शूटिंग होरही थी ग़ालिबन इसी लिए ज्ञान रात को न आसका था।
नाश्ता करने के बाद किफ़ायत ने झांक कर बावर्चीख़ाने में देखा। लड़की अपने काम में मशग़ूल थी। तीनों मुलाज़िम लड़के उस से हंस हंस कर बातें कर रहे थे। किफ़ायत ने बशीर ने से कहा। “मछली बहुत अच्छी थी।”
लड़की ने मुड़ कर देखा उस के होंटों पर छोटी सी मुस्कुराहट थी।
किफ़ायत दफ़्तर चला गया उस को उम्मीद थी कि कुछ रूपों का बंद-ओ-बस्त हो जाएगा लेकिन ख़ाली जेब वापस आया। बर्मी लड़की अंदर बेडरूम में लेटी तस्वीरों वाला रिसाला देख रही थी। किफ़ायत को देख कर बैठ गई और सलाम किया।
किफ़ायत ने सलाम का जवाब दिया और इस से पूछा “ज्ञान साहब आए थे”
“आए थे दोपहर को....... खाना खा कर चले गए....... फिर शाम को आए चंद मिनटों के लिए” ये कह कर उस ने एक तरफ़ हट कर तकिया उठाया और काग़ज़ में लिपटी हुई बोतल निकाली “ये दे गए थे कि मैं आप को देदूं”
मैंने बोतल पकड़ी। काग़ज़ पर ज्ञान के ये चंद अल्फ़ाज़ थे “कमबख़्त ये चीज़ किसी न किसी तरह मिल जाती है लेकिन पैसा नहीं मिलता....... बहरहाल ऐश करो....... तुम्हारा ज्ञान”
उस ने काग़ज़ खोला। ब्रांडी की बोतल थी। बर्मी लड़की ने किफ़ायत की तरफ़ देखा और मुस्कुराई। किफ़ायत भी मुस्कुरा दिया। “आप पीती हैं?”
लड़की ने ज़ोर से अपना सर हिलाया। “नहीं!”
किफ़ायत ने नज़र भर कर उस को देखा और सोचा “क्या छोटी सी नन्ही मुनही गुड़िया है!”
उस का जी चाहा कि वो उसके साथ बैठ कर बातें करे चुनांचे उस से मुख़ातब हुआ “आईए, इधर दूसरे कमरे में बैठते हैं”
“नहीं....... मैं कपड़े धोऊँगी।”
“इस वक़्त?”
“इस वक़्त अच्छा होता है....... रात धोए, सुबह सूख गए। उठते ही इस्त्री कर लिए।”
किफ़ायत थोड़ी देर खड़ा रहा उसे कोई बात न सूझी तो मुलाक़ाती कमरे में बैठ कर ब्रांडी पीना शुरू करदी। खाने का वक़्त होगया। उस ने बर्मी लड़की को बुलाया मगर उस ने कहा “मैं ज्ञान साहब के साथ खाऊंगी।”
किफ़ायत ने खाना खाया और अपने पलंग पर सो गया। रात के तक़रीबन एक बजे उसकी आँख खुली चांदनी रात थी। हल्की हल्की रोशनी कमरे में फैली हुई थी। हवा भी बड़े मज़े की चल रही थी। करवट बदली तो देखा सामने पलंग पर एक छोटी सी सुडौल गुड़िया ज्ञान के चौड़े बालों भरे सीने के साथ चम्टी हुई है किफ़ायत ने आँखें बंद करलीं। थोड़े वक़फ़े के बाद ज्ञान की आवाज़ आई “जाओ अब मुझे सोने दो....... कपड़े पहन लो।”
स्प्रिंगों वाले पलंग की आवाज़ के साथ साथ रेशम की सराहटें किफ़ायत के कानों में दाख़िल हुईं....... थोड़ी देर के बाद किफ़ायत सो गया। सुबह छः बजे उठा, क्योंकि वो रात को ये सोच कर सोया था कि सुबह जल्दी उठेगा उसे ट्राम का बहुत लंबा सफ़र तय करके एक आदमी के पास जाना था जिस से उसे कुछ मिलने की उम्मीद थी। पलंग पर से उतरा तो उसने देखा कि बर्मी नंगे फ़र्श पर इस के स्लीपिंग सूट का इकलौता पाएजामा पहने अपने छोटे से सुडौल बाज़ू को सर के नीचे रखे बड़े सुकून से सो रही है। किफ़ायत ने उस को जगाया। इस ने अपनी काली काली आँखें खोलीं। किफ़ायत ने इस से कहा “आप यहां क्यों लेटी हैं”
इसके छोटे छोटे होंटों पर नन्ही सी मुस्कुराहट पैदा हुई। उठ कर उस ने जवाब दिया। “ज्ञान को आदत नहीं किसी को अपने साथ सुलाने की।”
किफ़ायत को ज्ञान की इस आदत का इल्म था। उस ने लड़की से कहा “जाईए मेरे पलंग पर लेट जाईए।”
लड़की उठी और किफ़ायत के पलंग पर लेट गई।
किफ़ायत ग़ुसलख़ाने में गया वहां रस्सी पर बर्मी लड़की के कपड़े लटक रहे थे। किफ़ायत साबुन मल कर नहाने लगा तो उस का ख़्याल उस लड़की के मुलाइम जिस्म की तरफ़ चला गया। जिस पर से निगाहें फिसल फिसल जाती थीं।
ग़ुसल से फ़ारिग़ हो कर किफ़ायत ने कपड़े पहने चूँकि जल्दी में था इस लिए ज्ञान को जगा कर उस से कोई बात न कर सका। सुबह का निकला रात के ग्यारह बजे वापस आया। जेबें ख़ाली थीं। बेडरूम में गया तो ज्ञान और बर्मी लड़की दोनों इकट्ठे लेटे हुए थे। किफ़ायत ने मुलाक़ाती कमरे में बैठ कर ब्रांडी पैनी शुरू करदी बहुत थका हुआ था। मायूस वापस आया था। बर्मी लड़की के मुतअल्लिक़ सोचते सोचते वहीं सोफे पर सो गया। सुबह पाँच बजे उठा। तिपाई पर उस का चौथा पैग पानी में पड़ा बासी होरहा था।
किफ़ायत उठा बेडरूम के नंगे फ़र्श पर बर्मी लड़की सो रही थी। ज्ञान अलमारी के आईने के साथ खड़ा टाई बांध रहा था। टाई की गिरह ठीक करके उस ने दोनों हाथों में लड़की को उठाया और अपने पलंग पर लिटा दिया। मुड़ा तो उस ने किफ़ायत को देखा “क्यों भई। कुछ बंद-ओ-बस्त हुआ रूपों का”
किफ़ायत ने बड़ी मायूसी से कहा “नहीं”
“तो मैं जाता हूँ....... देखो शायद कुछ हो जाये।”
पेशतर इस के कि किफ़ायत उसे रोके ज्ञान तेज़ी से बाहर निकल गया। दरवाज़ा खुला तो उसकी आवाज़ई “तुम भी कोशिश करना किफ़ायत”
किफ़ायत ने पलट कर पलंग की तरफ़ देखा। लड़की बड़े सुकून के साथ सो रही थी। उसके नन्हे से सीने पर छोटी छोटी गोल छातियां चमक रही थीं। किफ़ायत कमरे से निकल कर ग़ुसलख़ाने में चला गया। अन्दर रस्सी पर लड़की के धुले हुए कपड़े लटक रहे थे।
ग़ुसलख़ाने से फ़ारिग़ हो कर बाहर निकला तो इस ने देखा कि लड़की नौकरों के साथ नाश्ता तैय्यार करने में मसरूफ़ थी। नाश्ता करके बाहर निकल गया।
चार रोज़ इसी तरह गुज़र गए। किफ़ायत को उस लड़की के मुतअल्लिक़ कुछ मालूम न हो सका। ज्ञान कभी रात को देर से आता था। कभी दिन को बहुत जल्दी निकल जाता था। यही हाल किफ़ायत का था। दोनों परेशान थे। पांचवें रोज़ जब वो सुबह उठा तो बशीर ने किफ़ायत को ज्ञान का रुका दिया। इस में लिखा था “ख़ुदा के लिए किसी न किसी तरह दस रुपय पैदा करके बर्मी लड़की को देदो”
लड़की खड़ी इस्त्री कर रही थी। बुलाओज़ की सिर्फ़ एक आसतीन बाक़ी रह गई थी जिस पर वो बड़े सलीक़े से इस्त्री फेर रही थी। किफ़ायत ने उस की तरफ़ देखा जब उस की निगाहें चार हुईं तो लड़की मुस्कुरा दी। किफ़ायत सोचने लगा कि वो दस रुपय कहाँ से पैदा करे। बशीर पास खड़ा था। उस ने किफ़ायत से “साहब साहब इधर आईए”
किफ़ायत ने पूछा “क्या बात है”
“जी कुछ कहना है”
बशीर ने एक तरफ़ हट कर दस रुपय का नोट निकाला और किफ़ायत को दे दिया। “मैं नहीं गया अभी तक साहब।”
किफ़ायत नोट लेकर सोचने लगा। “नहीं नहीं....... तुम रखो....... लेकिन तुम गए क्यों नहीं अभी तक!”
“साहब चला जाऊंगा कल परसों....... आप रखीए ये रुपय”
किफ़ायत ने नोट जेब में डाल लिया। “अच्छा मैं शाम को लौटा दूंगा तुम्हें”
कपड़े वपड़े पहन कर जब बर्मी लड़की नाश्ता कर चुकी तो किफ़ायत ने उस को दस रुपय का नोट दिया और कहा “ज्ञान साहब ने दिया था कि आप को देदूं”
लड़की ने नोट ले लिया और बशीर को आवाज़ दी। बशीर आया तो उस से कहा “जाओ टैक्सी ले आओ।”
बशीर चला गया तो किफ़ायत ने इस से पूछा। “आप जा रही हैं?”
“जी हाँ!”
ये कह कर वो उठी और बेडरूम में चली गई वो अपना रूमाल स्त्री करना भूल गई थी किफ़ायत ने उस से बातें करने का इरादा किया तो टैक्सी आगई रूमाल हाथ में लेकर वो रवाना होने लगी। किफ़ायत को सलाम किया और कहा “अच्छा जी....... मैं चलती हूँ। ज्ञान को मेरा सलाम बोल देना।”
फिर इस ने तीनों नौकरों से हाथ मिलाया और चली गई। सब के चेहरों पर उदासी छा गई।
पौने घंटे के बाद ज्ञान आया। वो कुछ लेकर आया था। आते ही इस ने किफ़ायत से पूछा “कहाँ है वो बर्मी लड़की?”
“चली गई”
“कैसे? दस रुपय दिए थे तुम ने उसे?”
“हाँ”
“तो ठीक है....... ठीक है!” ज्ञान कुर्सी पर बैठ गया।
किफ़ायत ने पूछा “कौन थी ये लड़की”
“मालूम नहीं”
किफ़ायत सर-ता-पा हैरत बन गया “क्या मतलब?”
ज्ञान ने जवाब दिया “मतलब ये कि मैं नहीं जानता कौन थी”
“झूट!”
“तुम्हारी क़सम सच्च कहता हूँ”
किफ़ायत ने पूछा “कहाँ से मिल गई तुम्हें”
ज्ञान ने टांगें मेज़ पर रख दें और मुस्कुराया “अजीब दास्तान है यार....... पानी का सेलाब आने वाली रात में शंकर के हाँ चला गया। वहां बहुत पी....... अंधेरी स्टेशन से गाड़ी में सवार हुआ तो सो गया। गाड़ी मुझे सीधी चर्चगेट ले गई वहां मुझे चौकीदार ने जगाया कि उठो....... मैंने कहा भई मुझे ग्रांट रोड जाना है। चौकीदार हंसा आप पाँच स्टेशन आगे चले आए हैं। उतरा दूसरा प्लेटफार्म पर अंधेरी जाने वाली आख़िरी गाड़ी खड़ी थी। उस में सवार होगया। गाड़ी चली तो फिर मुझे नींद आगई। सीधी अंधेरी पहुंच गई।”
किफ़ायत ने पूछा “मगर इस से लड़की का क्या तअल्लुक़”
“तुम सुन तो लो, ज्ञान ने सिगरेट सुलगाया अंधेरी पहुंचा यानी जब मेरी आँख खुली तो क्या देखता हूँ मैं एक छोटी सी लौंडिया के साथ चिमटा हूँ। पहले तो में डरा वो जाग रही थी मैंने पूछा, कौन हो तुम?....... वो मुस्कुराई। मैंने फिर पूछा, कौन हो भई तुम....... वो मुस्कुराई और कहने लगी लो इतनी देर से मुझे चूमते और अब पूछते हो, मैं कौन हूँ....... मैंने हैरत से कहा, अच्छा....... वो हँसने लगी मैंने दिमाग़ पर ज़ोर देकर सोचना मुनासिब ख़्याल न किया और उस को अपने साथ भींच लिया....... सुबह तीन बजे तक हम दोनों....... प्लेटफार्म की एक बंच पर सोए रहे साढ़े तीन की पहली गाड़ी आई तो उस में सवार होगए। मेरा इरादा था कि बंद-ओ-बस्त करके उस को कुछ रुपय दूंगा....... यहां पहुंचे तो पानी का तूफ़ान आया हुआ था....... है न दिलचस्प दास्तान।”
किफ़ायत ने कहा “ख़ासी दिलचस्पी है....... मगर वो इतने दिन क्यों रही यहां?”
ज्ञान ने सिगरेट फ़र्श पर फेंका “वो कहाँ रही....... मैंने उसे रखा....... असल में वो यूं रही कि मेरे पास कुछ था ही नहीं जो उसे देता। बस दिन गुज़रते थे....... मैं बेहद शर्मिंदा था कल रात मैंने उस से साफ़ कह दिया कि देखो भई, दिन बढ़ते जा रहे हैं। तुम ऐसा करो मुझे अपना ऐडरैस दे दो, मैं तुम्हारा हक़ वहां पहुंचा दूंगा। आजकल मेरा हाल बहुत पतला है।”
किफ़ायत ने पूछा “ये सुन कर उस ने क्या कहा?”
ज्ञान ने सर को जुंबिश दी “अजीब ही लड़की थी....... कहने लगी, ये क्या कहते हो....... मैंने तुम से कब मांगा है....... लेकिन दस रुपय मुझे देदेना....... मेरा घर यहां से बहुत दूर है टैक्सी में जाऊंगी। मेरे पास एक भी पैसा नहीं”
किफ़ायत ने सवाल क्या “नाम क्या था उस का?”
ज्ञान सोचने लगा।
“भूल गए?”
ज्ञान ने अपनी टांगें मेज़ पर से हटाईं “नहीं यार....... मैंने उस से नाम नहीं पूछा....... हद हो गई....... ये कह कर वो हँसने लगा।”
(10 जून 1950-ई.)

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