ब्रैबो और एक विशालकाय आदमी : नीदरलैंड/हॉलैंड की लोक-कथा

Brabo and the Giant : Netherlands/Holland Folktale/Folklore

यह बहुत पुरानी बात है जब विशालकाय आदमी धरती पर बहुत हुआ करते थे। उसी समय की बात है कि वहाँ एक एन्टीगौनस नाम का एक विशालकाय आदमी रहता था।

उसकी माँ तो उसको इस नाम से नहीं पुकारती थी पर किसी ने उसको यह बता दिया था कि यह नाम यूनान के एक बहुत बड़े जनरल का नाम था सो उसने अपना वही नाम रख लिया था।

वह बहुत ही बदतमीज और बेरहम किस्म का आदमी था। उसका किला शैल्ट नदी के किनारे पर था जहाँ आजकल ऐन्टवप शहर बसा हुआ है।

फ्रांस और हौलैंड से बहुत सारे जहाज़ इस शैल्ट नदी के नीचे की तरफ जाया करते थे। उनमें लकड़ी ऊन लोहा चीज़ मछली रोटी कपड़े जो भी उस देश में बनता था लदा होता था। बहुत सारे व्यापारी तो वहाँ केवल इसी व्यापार से अमीर हो गये थे। इसलिये उनके बच्चों के पास खेलने के लिये बहुत सारे खिलौने थे।

यह नदी बहुत ही शानदार गहरी और चौड़ी थी। जहाज़ के कप्तानों को इस नदी में जहाज़ चलाने में बहुत मजा आता था क्योंकि इस नदी में चट्टानों का कोई डर नहीं था और जिन जिन देशों से हो कर यह बहती थी वे सब देश बहुत सुन्दर थे।

इसलिये रोज ही इस नदी में सैंकड़ों की तादाद में सफेद मस्तूल वाले जहाज़ समुद्र की तरफ जाते हुए या फिर समुद्र की तरफ से आते हुए देखने को मिल जाते।

बहुत सारे लड़के लड़कियाँ अपने लकड़ी के जूते पहने अक्सर ही इन जहाज़ों को आते जाते देखने के लिये नदी के किनारे पर आ कर खड़े हो जाते।

जो जहाज़ समुद्र की तरफ से अन्दर की तरफ आ रहे होते थे वे चीनी शराब सन्तरे नीबू औलिव और खाने की और दूसरी बहुत सारी अच्छी चीज़ें और गरम कपड़े बनाने के लिये ऊन ले कर आते थे।

बहुत सारे हाथ का सामान बनाने वाले अपना बनाया समान भी ले कर आते थे और वहाँ सुन्दर और बढ़िया घर, शानदार चर्च और बहुत सारी बिल्डिंग बनाने में सहायता करते थे। इससे बेल्जियन लोग बहुत खुश रहते थे।

लेकिन एक दिन यह नीच विशालकाय आदमी इस देश में जहाज़ों को रोकने के लिये और उनसे पैसे माँगने के लिये आ गया तब से वहाँ के लोग दुखी हो गये।

वहाँ नदी के किनारे उसने एक बहुत बड़ा और मजबूत किला बना लिया जिसके चारों तरफ उसने चार ऊँची ऊँची दीवारें बनवा लीं और जमीन के नीचे अँधेरे तहखाने बनवा लिये। उनमें लोगों को मोमबत्ती जला कर रास्ता ढूँढना पड़ता था।

लोगों को यही आश्चर्य था कि वह सब किस लिये था पर जल्दी ही उन्होंने इस बात का भी पता चला लिया।

इस विशालकाय आदमी के पास एक गाँठों वाला डंडा था जो ओक पेड़ की लकड़ी का बना हुआ था। एक दिन इस डंडे को ले कर वह शहर भर में इधर उधर घूमा और शोर मचा मचा कर सबको बड़े वाले चौराहे पर आने के लिये कहा।

जब सब लोग वहाँ इकठ्ठा हो गये तो उसने उनसे कहा — “आज से मेरी आज्ञा के बिना न कोई जहाज़ यहाँ से जायेगा और न कोई जहाज़ यहाँ आयेगा। हर जहाज़ के कप्तान को मुझे टैक्स देना पड़ेगा चाहे वह नकद दे या सामान के रूप में दे।

और जो भी आदमी टैक्स देने से मना करेगा उसके हाथ कटवा कर उसको नदी में फिंकवा दिया जायेगा। तुम सब सुनो और मेरी आज्ञा का पालन करो।

और जो कोई ऐसे किसी जहाज़ की सहायता करेगा जो बिना टैक्स के जाना चाहेगा चाहे वह दिन में हो रात में, उसके दोनों हाथों के अँगूठे काट दिये जायेंगे और उसको अँधेरे तहखाने में एक महीने के लिये डाल दिया जायेगा।

इसलिये सब मेरी बात ध्यान से सुनो और मेरी आज्ञा का पालन करो।”

ऐसा कह कर उस विशालकाय आदमी ने अपना डंडा ऊपर उठा कर हवा में घुमाया और एक गरीब देहाती आदमी की गाड़ी पर मारा जिससे उसकी गाड़ी टूट फूट गयी। यह उसने अपनी ताकत दिखाने के लिये किया था।

सो उस दिन के बाद से हर जहाज़ आते जाते समय बड़े साइज़ के आदमी के किले से हो कर जाता और भारी टैक्स देता। चाहे कोई अमीर होता या गरीब हर एक को टैक्स देना पड़ता।

अगर कोई कप्तान टैक्स देने से मना करता तो उसको एक पत्थर पर अपने दोनों हाथ, एक के ऊपर एक़ रखने को कहा जाता। फिर वह विशालकाय आदमी अपनी कुल्हाड़ी उठाता और उससे उसके दोनों हाथ काट देता। उसके बाद उसको नदी में फेंक दिया जाता।

अगर किसी जहाज़ का कप्तान टैक्स देखने से हिचकिचाता क्योंकि उसके पास पैसे नहीं होते थे तो उसको तहखाने में डाल दिया जाता। वह वहाँ तब तक रहता जब तक उसका कोई आदमी उसका टैक्स दे कर उसको छुड़ा नहीं लेता।

इस सबसे वह शहर बहुत जल्दी ही बदनाम हो गया। अब फ्रांस के जहाज़ बाहर नहीं जाते थे और स्पेन के जहाज़ अन्दर नहीं आते थे। व्यापारियों का व्यापार डाँवाडोल होने लगा और वे रोज गरीब से और गरीब होने लगे। यह देख कर कुछ लोगों ने तो शहर ही छोड़ दिया और कुछ लोग रात में जहाज़ ले जाने लगे। कुछ लोग चुपचाप से विशालकाय आदमी के किले से गुजरने लगे।

पर विशालकाय आदमी के चौकीदार भी जो किले की मीनारों पर खड़े रहते थे बहुत चौकन्ने थे। वे उल्लुओं की तरह जगे रहते थे और गिद्धों की तरह से लालची थे। जैसे ही वे जहाज़ के कप्तानों को इस तरह से टैक्स बचाता देखते तो वे उन पर झपट पड़ते उनके हाथ काट डालते और उनको नदी में फेंक देते।

अगर वे शहर के लोगों को जहाज़ पर देखते तो उनके दोनों हाथ के अँगूठे काट कर उनको तहखाने में फेंक देते।

इस तरह से शहर की शान नष्ट होती जा रही थी क्योंकि विदेशी व्यापारी इस विशालकाय आदमी के देश में अपने जहाज़ भेजने से डरते थे। शहर की साख भी खत्म होती जा रही थी।

जर्मन लोग इस शहर को “हाथ काटने वाला” या “हाथ फेंकने वाला” और डच लोग इसको ऐन्टवर्प कहने लगे थे। ऐन्टवपका मतलब भी वही होता था।

एक बार ब्रैबैन्ट का ड्यूक इस बड़े साइज़ वाले आदमी से मिलने आया और उससे उसने कहा कि वह यह सब बन्द कर दे। यहाँ तक कि उसने उस विशालकाय आदमी की नाक के नीचे अपना घूँसा भी हिलाया, उसके किले पर हमला करने की और उसको जलाने की धमकी भी दी पर ऐन्टीगौनस ने उसकी तरफ देख कर केवल अपनी उँगलियाँ चटका दीं और हँस दिया।

उसके बाद उसने अपने किले को और ज़्यादा मजबूत करवा लिया और कप्तानों को टैक्स न देने पर हाथ कटवा कर नदी में फेंकने का और या फिर दोनों हाथों के अँगूठे काट कर अपने तहखाने में डालने का काम जारी रखा। नदी की मछलियाँ ऐसे कप्तानों को खा खा कर खूब मोटी होती जा रही थीं।

शहर में एक बहुत ही बहादुर और ताकतवर नौजवान रहता था जिसका नाम था ब्रैबो। वह ब्रैबैन्ट में ही रहता था। उसको अपने देश और उसके लाल काले और पीले झंडे पर बड़ा गर्व था। वह अपने लौर्ड का भी बड़ा वफादार था। उसने अपने लौर्ड की सहायता करने का निश्चय किया।

उसने किले के नक्शे की अच्छी तरह से जाँच पड़ताल की और उसने उसमें एक खिड़की ढूँढ ली जिसमें से वह ऐन्टीगौनस के कमरे में जा सकता था।

फिर वह ड्यूक के पास गया और उससे वायदा करवाया कि उसके सिपाही विशालकाय आदमी के किले के दरवाजे से अन्धाधुन्ध उसके किले में घुस जायेंगे जबकि वह खुद उस बदतमीज से लड़ेगा। जब वे उसके किले का दरवाजा तोड़ रहे होंगे तो वह दीवार के सहारे किले में ऊपर चढ़ जायेगा।

उसने ड्यूक से कहा कि ऐन्टीगौनस कुछ भी नहीं है बस केवल अपनी शान बघारने वाला है। और हमको उसे ऐन्टीगौनस की बजाय उसको शान बघारने वाले के नाम से ही पुकारना चाहिये।

ड्यूक इस हमले के लिये तैयार हो गया सो एक अँधेरी रात को ड्यूक के एक हजार सबसे अच्छे सिपाही अपने सबसे अच्छे हथियार और झंडे ले कर विशालकाय आदमी के किले की तरफ चल दिये।

पर उन्होंने अपने साथ कोई ढोल या भोंपू आदि कुछ नहीं लिया जो शोर मचाता। क्योंकि शोर मचाने से वह विशालकाय आदमी और उसके पहरेदार सब चौकन्ने हो जाते और यही वे चाहते नहीं थे।

जब वे किले के पास वाले एक बड़े से जंगल में पहुँचे तो वहाँ उन्हांने आधी रात होने का इन्तजार किया। शहर और देश के सारे कुत्ते जो पाँच मील के घेरे में थे उनका सबको पकड़ कर बन्द कर दिया गया था ताकि वे भौंक कर बड़े साइज़ वाले आदमी को न जगा दें। इसके अलावा उनको बहुत सारा खाना दे दिया गया था ताकि वे खाना खा कर फिर सो जायें।

जैसे ही उन सिपाहियों को इशारा मिला वे सब जहाज़ के मस्तूल और पेड़ों के तने ले कर उसके किले के दरवाजे तोड़ कर अन्दर घुस गये। मुख्य पहरेदार को काबू कर के उन्होंने मोमबत्तियाँ जलायीं और तहखाने का ताला खोल कर उसमें से आधे भूखे लोगों को बाहर निकाला।

उनमें से कुछ तो बिल्कुल ही पीले पड़े हुए थे और बहुत सारे लोग डंडों की तरह से पतले दुबले हो रहे थे। वे तो खड़े भी मुश्किल से हो पा रहे थे।

उसी समय वह जगह जहाँ कुत्तों को बन्द करके रखा गया था उसे खोल दिया गया। वहाँ से सब कुत्ते, बच्चों से ले कर शिकारी कुत्तों तक़ चिल्लाते भौंकते निकल पड़े हो जैसे वे सभी जानते हों कि वहाँ क्या हो रहा था और बे भी उसका आनन्द लेना चाह रहे हों।

पर वह विशालकाय आदमी कहाँ था? कोई भी कप्तान उसको नहीं ढूँढ पाया। न तो कोई कैदी और न ही कोई मुख्य पहरेदार ही यह बता पाया कि वह कहाँ छिपा हुआ है।

पर ब्रैबो उस बड़े आदमी को जानता था कि वह बिल्कुल भी बहादुर नहीं है बल्कि एक शान बघारने वाला कायर है। इसलिये वह लड़का उससे बिल्कुल भी नहीं डर रहा था।

उसके कुछ साथियों ने दीवार के सहारे एक लम्बी सी सीढ़ी रखने में उसकी सहायता की। उसके बहुत सारे साथी बाहर के दरवाजे की रक्षा के लिये चले गये और वह खुद उस सीढ़ी पर चढ़ गया।

वहाँ से वह एक जगह टूटी हुई दीवार में घुस कर किले में दाखिल हो गया। यह जगह भी खिड़की की तरह कटी हुई थी जो उन लोगों के लिये काटी गयी थी जो तीर कमान चला कर पहरेदारी करते हों।

हाथ में तलवार लिये ब्रैबो बड़े साइज़ वाले आदमी के कमरे की तरफ बढ़ा। उस नौजवान को अपने कमरे में देख कर बड़े साइज़ का आदमी अपना डंडा पकड़ कर उसको मारने के लिये बढ़ा और उस डंडे से ब्रैबो को इतनी जोर से मारा कि वह डंडा ही फर्श में अन्दर तक घुस गया।

उधर ब्रैबो उसका यह वार बचा गया और पल भर में ही उसने अपनी तलवार घुमा कर विशालकाय आदमी का सिर काट कर खिड़की के बाहर फेंक दिया।

जैसे ही वह सिर नीचे गिरा वहाँ बहुत सारे कुत्ते आ गये।

उनमें से सबसे बड़े कुत्तों में से एक ने वह ट्रौफी उठायी और उसको ले कर भाग गया।

पर विशालकाय आदमी के हाथों का क्या हुआ? वे ब्रैबो ने खुद काटे जो उस किले की सबसे ऊँची मीनार पर खड़ा था। यह देख कर नीचे खड़े लोगों ने खूब खुशियाँ मनायीं और खूब तालियाँ बजायीं।

सबसे अच्छी बात तो यह थी कि सब लोगों को पता था कि क्या हो रहा है और वे सब ब्रैबो की बहुत तारीफ कर रहे थे। अगले ही पल ऐन्टवर्प के सारे घरों में मोमबत्तियाँ जल उठीं और सारा शहर जगमगाने लगा।

किले के दरवाजे से कुछ लड़कियाँ आयीं जो सफ़ेद कपड़े पहने हुई थी पर उनकी लीडर पीले लाल और काले रंग के कपड़े पहने थी जो ब्रैबेन्ट के झंडे के रंग थे। वे सब ब्रैबो की बहादुरी के गीत गा रही थीं।

ऐन्टवर्प के एक बड़े आदमी ने कहा — “अब हमको शहर के बदनामी वाले नाम छोड़ देने चाहिये और उसको एक नया नाम देना चाहिये।”

वहाँ के राजा ने कहा — “नहीं नहीं। हमको इसका वही नाम रखना चाहिये और सब शान्ति चाहने वाले जहाज़ों को फिर से बुलाना चाहिये। ऐन्टवर्प की बाँहें किले के ऊपर दो लाल हाथ के रूप में रहनी चाहिये।”

सारे नागरिक चिल्लाये — “ऐसा ही हो।”

ब्रैबैन्ट का ड्यूक भी राजी हो गया और उसने ब्रैबो की बहादुरी के लिये शहर को और भी कई फायदे दे दिये।

इसके बाद तो फिर बहुत सारे देशों के हजारों जहाज़ वहाँ से अपना सामान उतारते चढ़ाते गुजरने लगे और ऐन्टवपका बन्दरगाह और सब बन्दरगाहों से आगे निकल गया और फिर से बहुत अमीर हो गया।

आज भी वहाँ के चौराहे पर ब्रैबो की काँसे की मूर्ति लगी हुई है। बिना सिर का और बिना हाथ का ऐन्टीगोनस भी वहीं पर पड़ा हुआ है। उसके शरीर पर ऐन्टवर्प का किला खड़ा हुआ है। और इस सबके ऊपर बहादुर ब्रैबो खड़ा हुआ है।

ब्रैबो के हाथ में ऐन्टैगोनस की एक बाँह है जिसको वह शैल्ट नदी में फेंकने वाला है।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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