भला राजा हातम : कश्मीरी लोक-कथा

Bhala Raja Hatim : Lok-Katha (Kashmir)

एक बार की बात है कि एक गरीब गाँव वाला था जो जंगल से लकड़ी काट कर और उसको बाजार में बेच कर अपना और अपने परिवार का गुजारा करता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी और उसकी सात बेटियाँ थीं।

उसने कभी माँस नहीं खाया था और न ही कभी जूता पहना था। बस एक फटा सा कपड़ा उसकी पीठ पर पड़ा रहता था। एक दिन जब उसको कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा था तो वह एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिये लेट गया। उस समय अच्छी किस्मत लाने वाली चिड़िया ह्यूमा उसके आसपास घूम रही थी। उसने देखा कि वहाँ एक आदमी लेटा हुआ है जो बहुत गरीब और बीमार है। यह देख कर उसको उस आदमी पर दया आ गयी। वह उस आदमी के पास से उड़ी और उसने एक सोने का अंडा उसकी लकड़ियों के गट्ठ के पास डाल दिया। कुछ देर बाद जब उस लकड़हारे की आँख खुली तो उसने अपनी लकड़ियों के गट्ठ के पास एक सोने का अंडा पड़ा देखा। वह उसे देख कर बहुत खुश हुआ और उसने उसे उठा कर अपने कमर में बाँधने वाले कपड़े में बाँध लिया।

उसको ले कर वह वौनी के पास गया जो अक्सर उसकी लकड़ियाँ खरीदा करता था। उसने वौनी को वह सोने का अंडा भी बेच दिया। वह सोने का अंडा उसने बहुत थोड़े से पैसे दे कर उससे खरीद लिया। क्योंकि लकड़हारे बेचारे को तो पता ही नहीं था कि वह अंडा कितना कीमती था पर वौनी इस बात को जानता था। उसने लकड़हारे से कहा कि वह उसको वह चिड़िया ला कर दे जिसका यह अंडा था और वह उसको बदले में उसको एक रुपया देगा। लकड़हारे ने उससे उस चिड़िया को लाने का वायदा किया और घर चला गया।

अगले दिन वह सुबह ही जंगल चला गया और रोज की तरह लकड़ी काट कर अपना गट्ठ तैयार किया। उसको ले कर वह घर की तरफ चल पड़ा। लौटते समय वह उसी पेड़ के नीचे बैठ गया जिसके नीचे उसने पहले दिन अंडा पाया था और सोने का बहाना करने लगा।

ह्यूमा चिड़िया वहाँ फिर आयी और यह देखते हुए कि वह आदमी अभी भी उतना ही गरीब था जितना कि कल तो उसको लगा कि शायद उसने उसका दिया हुआ अंडा देखा नहीं होगा तो उसने वहीं एक और अंडा इस तरह से उसके पास दे दिया कि जागने पर वह उसको देखने से किसी भी तरह से न चूक सके। पर लकड़हारे ने उस चिड़िया का देख लिया उसे पकड़ लिया और लकड़ी बेचने वाले के पास ले कर चल दिया।

चिड़िया चिल्लायी — “अरे तुम मेरे साथ क्या करने जा रहे हो। मुझको मारना नहीं और मुझे बन्द भी नहीं करना। मुझे छोड़ दो। तुमको इसका इनाम जरूर मिलेगा।

देखो तुम मेरा एक पंख तोड़ लो और उसको आग के पास ले जाओ तो तुम बहुत जल्दी मेरे देश कोहकाफ़ पहुँच जाओगे जहाँ मेरे माता पिता तुमको इनाम देंगे जिसकी इस दुनियाँ में कोई कीमत भी नहीं लगा सकेगा।”

पर वह लकड़हारा तो सुनने वाला नहीं था। वह तो बस एक रुपये के पीछे पागल था जो कि इस चिड़िया को उसे दे देने पर उसे यकीनन ही मिल जाता। सो उसने वह चिड़िया एक कपड़े में बाँधी और तेज़ी के साथ वौनी के पास भाग चला।

अब क्योंकि वह चिड़िया एक कपड़े में बन्द थी सो वह वौनी के पास पहुँचने से पहले ही दम घुट जाने की वजह से मर गयी। लकड़हारे ने सोचा “अब मैं क्या करूँ? अब तो मुझे वौनी इस मरी हुई चिड़िया का एक रुपया नहीं देगा। हा हा हा। अब मैं इसका एक पंख आग के पास ले जाता हूँ। हो सकता है कि मरी हुई और ज़िन्दा चिड़िया के पंख में कोई खास फर्क न हो।”

उसने ऐसा ही किया। तो लो वह तो तुरन्त ही कोहकाफ़ के पहाड़ पर मौजूद था जहाँ उसने चिड़िया के माता पिता को ढूँढ लिया और उसके साथ जो कुछ भी हुआ वह सब बता दिया। सोचो ज़रा जब उन्होंने मरी हुई चिड़िया को देखा होगा तो उनको कितना अफसोस हुआ होगा। वे सब मिल कर बहुत रोये।

तभी वहाँ से एक अजनबी चिड़िया गुजर रही थी तो उसने इन सबके रोने की आवाज सुनी। वह वहाँ आयी और उनसे पूछा कि क्या बात थी और वे सब क्यों रो रहे थे। यह चिड़िया अपनी चोंच में घास का एक तिनका दबाये लिये चली आ रही थी जिससे वह किसी भी मरे हुए को ज़िन्दा कर सकती थी।

वह बोली — “आप सब क्यों रो रहे हैं?”

वे सब चिड़ियें बोलीं — “क्योंकि हमारा एक सम्बन्धी मर गया है और अब हम उससे फिर कभी बात नहीं कर पायेंगे।”

उस अजनबी चिड़िया ने कहा — “तुम लोग रोओ नहीं। तुम्हारी यह चिड़िया फिर से ज़िन्दा हो जायेगी।” कह कर उसने वह घास का तिनका जो उसकी चोंच में था उसके मुँह में रख दिया और लो वह तो तुरन्त ही ज़िन्दा हो गयी।

जब ह्यूमा चिड़िया ने लकड़हारे को देखा तो उसने उसकी बेवफाई और लापरवाही पर बहुत डाँटा और बोली — “मैं तो तुमको बहुत बड़ा और खुशहाल आदमी बनाना चाहती थी पर अब तुम अपना लकड़ी का यह गट्ठ उठाओ और अपने घर जाओ।” उस चिड़िया के यह कहते ही लकड़हारे ने अपने आपको उसी जंगल में पाया जहाँ वह लकड़ियाँ काटा करता था। उसका लकड़ी का गट्ठ भी वहीं पड़ा था जहाँ वह कोहकाफ़ जाने से पहले उसको छोड़ कर गया था।

उसने अपना वह लकड़ी का गट्ठ बेचा और फिर दुखी मन से अपनी पत्नी और बच्चियों के पास अपने घर चला गया। इस घटना के बाद उसने ह्यूमा चिड़िया को फिर कभी नहीं देखा।

समय बीतता गया। लकड़हारे की बेटियाँ बड़ी होती गयीं। अब उनकी शादी करने का समय आ गया। पर वह लकड़हारा उनकी शादी कैसे करे। वह तो बेचारा मुश्किल से खाने के लिये जुटा पाता था और ऐसे गरीब घर में रिश्ता जोड़ना कोई क्यों चाहेगा।

सो इस मुश्किल की घड़ी में उसने अपने एक दोस्त से सलाह ली तो उसने उससे कहा कि वह राजा हातिम के पास जाये क्योंकि वह एक बहुत ही भला और दयावान राजा था। वह उससे जा कर मिले और उसकी सहायता माँगे।

उन दिनों इत्तफाक कुछ ऐसा हुआ कि राजा हातिम काफी गरीब हो गया था और अब वह अपना गुजारा लोगों का चावल कूट कर करता था।

हालाँकि हालात ने उसको इतना गरीब बना दिया था कि उसके मुकाबले का दूसरा गरीब उसके देश में मिलना मुश्किल था पर फिर भी वह अभी भी बहुत दयावान था और हमेशा ही दूसरों की सहायता करने को इच्छुक रहता था।

जब लकड़हारा राजा हातिम के देश पहुँचा और उससे मिला तो वह उससे बड़े प्रेम से मिला। लकड़हारे को तब तक यह भी नहीं पता था कि वह कौन है और वह किससे मिल रहा है। उसने तो बस उसको अपनी दुखभरी कहानी सुनायी और राजा हातिम से सहायता माँगने की इच्छा से उसका पता पूछा।

गरीब राजा हातिम ने उससे रात को रुकने के लिये और वहाँ से अगले दिन सुबह चले जाने के लिये कहा। लकड़हारा इस बात पर राजी हो गया और उसके साथ उसके घर चला गया।

उस रात राजा हातिम ने खाना नहीं खाया क्योंकि उसने अपना खाना अपने मेहमान को खिला दिया था।

पर सुबह को उसने अपने मेहमान को सच बोला — “दोस्त मैं वही हूँ जिसको तुम ढूँढ रहे हो। पर देखो मैं तो खुद ही तुम्हारी तरह से गरीब हूँ। मुझे बहुत अफसोस कि मैं तुम्हारे लिये कुछ नहीं कर सकता क्योंकि मैं तो तुम्हें दूसरी बार खाना भी नहीं खिला सकता।

पर हाँ अगर तुम मेरी एकलौती बेटी को स्वीकार कर लो तो तुम्हारी बड़ी मेहरबानी होगी। तुम उसको बेच कर कुछ पैसा कमा सकते हो और उस पैसे से अपनी बेटियों की शादी कर सकते हो। जाओ भगवान तुम्हारी सहायता करे।”

लकड़हारा बोला — “हे राजन, तुम्हारी दया से मेरा दिल पिघल गया है। मैं तो तुम्हारी दया के लिये ठीक से धन्यवाद भी नहीं दे सकता। भगवान तुम्हें इसका अच्छा फल दे। ठीक है विदा।”

लकड़हारा राजकुमारी को ले कर वहाँ से चल दिया। रास्ते में वे दोनों एक ऐसी जंगली जगह से गुजरा जहाँ एक राजकुमार शिकार खेल रहा था। इत्तफाक से उस राजकुमार ने लकड़हारे के साथ जाती राजकुमारी को देख लिया तो वह उसके प्रेम में पड़ गया। उसने उससे कहा कि वह उसको अपना दामाद13 बना ले। लकड़हारा तुरन्त ही राजी हो गया और उसने उन दोनों की शादी कर दी। इससे तो लकड़हारे के हाथ में बहुत सारा पैसा आ गया। इस पैसे से उसने सबसे पहले अपने लिये एक मकान बनवाया फिर अपनी सातों लड़कियों की शादी अच्छे घरों में कर दी। इस बीच राजकुमार अपनी पत्नी के साथ आराम से रहता रहा पर एक दिन उसको सच का पता चल ही गया।

एक बार उसने अपनी पत्नी के सामने एक गरीब आदमी को दान दिया तो उसकी पत्नी ने कहा कि उसने एक बहुत ही हातिमी काम किया है।

राजकुमार ने उससे पूछा कि वह हातिम को कैसे जानती है।

इस पर उसने राजकुमार को सब कुछ बता दिया – कैसे लकड़हारा उसके पिता के पास सहायता के लिये आया और फिर कैसे कुछ न होने की वजह से उसके पिता ने उसको उसे एक गुलाम की तरह से दे दिया था।

यह सुन कर राजकुमार ने लकड़हारे को बुलवा भेजा। लकाड़हारे ने उससे भी वही बात कही जो राजकुमारी ने उसे बतायी थी। उसने उसको ह्यूमा के अंडे और कोहकाफ़ जाने की बात भी बतायी।

राजकुमार तो यह सब सुन कर बहुत ही आश्चर्यचकित रह गया। उसने तुरन्त ही राजा हातिम को बुलवा भेजा और उससे प्रार्थना की कि वही उसके राज्य का मालिक बने। क्योंकि वह तो उसके सामने बहुत छोटा था। सो हातिम वहाँ का राजा बन गया। लकड़हारे को ज़िन्दगी भर एक बहुत बड़ी पेन्शन मिलती रही। और वोनी को वह सोने का अंडा राजा को देना पड़ा।

(सुषमा गुप्ता)

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