Beej Banane Ki Raah (Hindi Story) : Ramdhari Singh Dinkar

बीज बनने की राह (कहानी) : रामधारी सिंह 'दिनकर'

दो राही किसी गाँव से होकर जा रहे थे कि अचानक गाँव में आग लग गयी और फूस के बने हुए घर पर घर धायँ-धायँ जलने लगे।
एक राही भागकर गाँव के बाहर एक पेड़ की छाया देखकर बैठ गया और बोला, जला करें ये लोग। आखिर, वे बीड़ी क्यों पीते हैं ? मैं आग बुझाने को नहीं जा सकता। यह मेरा काम नहीं है।’’
मगर, दूसरा बहादुर था। उसने अपनी गठरी दोस्त के पास पटकी और दौड़कर आग में पिल पड़ा। आग बुझाने की कोशिश में उसके हाथ-पाँव जल गये और देह पर कई फफोले भी निकल आये, किन्तु, तब भी उसने एक जान और कुछ असबाब को आग से बचा लिया।
उसके लौटकर आने पर छाया में सुस्तानेवाले राही ने कहा, ‘‘आखिर, जला लिये न अपने हाथ-पाँव ? किसने तुझसे कहा था कि दूसरों के काम के लिए अपनी जान खतरे में डाला कर ?’’
बहादुर राही बोला, ‘‘उसी ने, जिसने यह कहा कि बीज बोते चलो, फसल अच्छी उगेगी।’’
‘‘और अगर आग में जलकर खाक हो जाता तो ?’’
‘‘तब तो मैं स्वयं बीज बन जाता।’’

कहानियाँ और अन्य गद्य कृतियाँ : रामधारी सिंह दिनकर

संपूर्ण काव्य रचनाएँ : रामधारी सिंह दिनकर