बारिश हुई मोर बना : असमिया लोक-कथा

Barish Hui Mor Bana : Lok-Katha (Assam)

गेनरु आसाम की गारो जनजाति का मुखिया था। वह सबसे धनी था। जनजाति के लोग उसे बहुत मानते थे। उसकी सलाह से ही काम करते थे। गेनरु के एक ही लड़की थी-जयमाला। जितनी सुंदर, उतनी ही गुणी। नृत्य में तो उससे कोई मुक़ाबला ही नहीं कर सकता था। कई युवक उससे विवाह करना चाहते थे। पर जयमाला ने अपने प्रेमी से ही विवाह किया। दोनों नृत्य के मुक़ाबले में मिले थे, और तभी विवाह करने का निश्चय किया।

गारो जनजाति की रीतिनुसार लड़की ही माता-पिता के परिवार का वारिस होती है, और विवाह के बाद लड़की का पति लड़की के घर आकर उसके परिवार के साथ रहता है।
जयमाला का पति भी जयमाल्रा के घर में आकर रहने लगा।

माता-पिता अब बूढ़े होने लगे थे। एक दिन गेनरु ने जयमाला को बुलाकर अपनी सारी संपत्ति, घर, खेती, धन सब कुछ उसे सौंप दिया।

जयमाला की मां ने बक्से में से एक से एक सुंदर वस्त्र निकालकर जयमाला को दिए। अंत में कुछ मंत्र सा बोलकर एक रेशम और ज़री के तारों से बुनी तथा नीले और हरे जवाहरात से जड़ी उत्तरीय या ओढ़नी निकाली।
"ओ मां! कितनी सुंदर है यह ओढ़नी।" जयमाला उसे ओढ़ने के लिए आगे बढ़ी।

"रुको, हाथ मत लगाना। यह जादू की ओढ़नी है, जो देवी ने मेरी नानी की नानी को दी थी। तब से यह हमारे परिवार में है। इसे संभालकर रखना, और कभी भी मंत्र का उच्चारण किए बिना इसे हाथ मत लगाना, नहीं तो अनर्थ हो जाएगा," और मां ने जयमाला को मंत्र सिखाया। मंत्र सीखकर जयमाला ने ओढ़नी ओढी। जयमाला पहले से भी सुंदर लगने लगी।
कुछ दिन बाद जयमाला के माता-पिता का निधन हो गया।

जयमाला उदास हो गई। उसका पति उसे खुश रखने का प्रयत्न करता। हर समय उसके साथ रहता। दोनों मिलकर हर कार्य करते। वह गांव के मेलों, उत्सवों में जयमाला को लेकर जाता और उसका मन बहलाता।

जयमाला और उसके पति ने खेती-बाड़ी अच्छी तरह से संभाली। जयमाला मां की दी हुई जादू की ओढ़नी बहुत संभालकर रखती। मंत्र पढ़कर उसे केवल ख़ास मौक़ों पर पहनती, और धूप दिखाकर फिर बक्से में रखती।

उस वर्ष सावन और भादों में मूसलाधार वर्षा हुई । कई दिन तक लगातार वर्षा होती रही। एक दिन अच्छी धूप निकली। जयमाला ने घर के कपड़े धूप में सुखाने के लिए डाले। उसमें उसने अपनी बहुमूल्य जादू की ओढ़नी भी धूप में डाली।

"क्यों न आज मछली ले आऊं। बहुत दिन हुए मछली खाए," सोचकर जयमाला टोकरी और जाल लेकर झींगा मछली पकड़ने नदी पर गई।

जाने से पहले उसने पति को बताया, “चाहे कितनी भी गीली हो जाए, ओढ़नी को हाथ मत लगाना।” पर यह बताना भूल गई कि वह ओढ़नी जादू की है। ना ही उसने पति को आवश्यक मंत्र सिखाया। उसने सोचा कड़ी धूप है। वह जल्दी से थोड़ी सी मछलियां लेकर लौट आएगी और ओढ़नी तथा अन्य कपड़े उठा लेगी।

अभी जयमाला ने कुछ ही मछलियां पकड़ी थीं कि देखते-देखते आकाश काले बादलों से ढक गया। बादल की गड़गड़ाहट और बिजली की कड़कड़ाहट में पानी बरसने लगा।

जयमाला के पति ने देखा कपड़े गीले हो रहे हैं। उसने जयमाला को आवाज़ें दीं। पर बादलों और बिजलियों के शोर में जयमाला को कैसे सुनाई देता!

इधर जयमाला जल्दी-जल्दी वापस आ रही थी। परंतु इससे पहले कि वह पहुंचती जयमाला के पति ने सोचा कि इतनी सुंदर ओढ़नी जो जयमाला को बहुत प्यारी है, भीग रही है, खराब हो जाएगी। उसने उसे उठाने के लिए जैसे ही हाथ लगाया, ओढ़नी उसके बदन से चिपक गई। आहिस्ते-आहिस्ते उसका शरीर बदलने लगा। अब उसका शरीर पक्षी के शरीर में बदलने लगा। उसके रंग-बिरंगे पंख निकलने लगे थे।

जयमाला वहां पहुंची । पति के शरीर को पक्षी के शरीर में बदलते देख वह रोने लगी। अपने दुख में वह मंत्र बोलना भूल गई। उसने पति के शरीर से लिपटी ओढ़नी खींचनी चाही। ओढ़नी को हाथ लगाते ही उसका शरीर भी बदलने लगा, पर उसके पक्षी शरीर में पंख कम निकले क्योंकि ओढ़नी का सारा रेशम तथा नीले-हरे जवाहरात पक्षी का शरीर बने पति के पंखों में बदल गए थे। जयमाला के हिस्से में कम या ना के बराबर पंख आए। जो आए वे पति के पंखों जैसे सुंदर और चमकीले नहीं थे।

हरे-नीले चमकीले पंखों वाला उसका पति बना मोर और जयमाला बनी कम पंखों वाली मोरनी। आज भी जब कभी आकाश में काले बादल छा जाते हैं और बारिश की रिमझिम होने लगती है तो मोर नाचते हुए अपनी मोरनी को आने के लिए आवाज़ देता है।

(सुरेखा पाणंदीकर)

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