बंदूक्या (मराठी कहानी) : लक्ष्मण गायकवाड़

Bandookya (Marathi Story in Hindi) : Lakshman Gaikwad

महाराष्ट्र के इलाके में पारधी आदिवासियों पर जुल्म होना तो आम बात है। अकसर इन्हें पैदाइशी चोर करार देकर पुलिस या समाज के दबंग लोग इनकी पिटाई करते रहते हैं और इनके घर भी जला देते हैं।

इसको हटाकर उस्मानाबाद के परंडा कस्बे में एक दिन अजीब सी घटना घटी। बंदूक्या पारधी अपने गाँव के बाहर एक झोंपड़ी बनाकर अपने बाल-बच्चों के साथ रहता था। उसकी औरत और बेटा काडतुशा बकरी चराने का काम करते थे और खुद बंदूक्या छोटा-मोटा शिकार करके अपनी रोजी-रोटी चलाता था। एक दिन जमींदार मंगल पाटिल सुबह-सुबह बंदूक्या के घर आया और बंदूक्या से बोला, ‘‘तुम चोर जाति के पारधी लोग हो। तुम लोग हमारे गाँव के पास रहकर भी हमारे गाँव के नहीं हो। अगर तुम चाहो तो मैं अपने गाँव में तुम्हें रखूँगा और काम भी दूँगा।’’

पेट भरने के सारे रास्ते बंद हो जाने के कारण बंदूक्या को यह प्रस्ताव पसंद आया। उसने कहा, ‘‘जी मालिक, हम तैयार हैं। काम क्या करना पड़ेगा?’’ तब मंगल पाटिल बोलने लगा, ‘‘मेरी छोटी शुगर मिल चलती है, मेरे खेत में गन्ना बहुत है। तुम अपने बेटे के साथ मेरे खेत में गन्ना काटने का काम करो, मैं तुझे मजदूरी और एडवांस भी दूँगा।’’ बंदूक्या ने ‘हाँ’ कर दी और वह यह भी सोचने लगा कि संभवतः इसी बहाने गाँव के जमींदार से भी उन लोगों का रिश्ता बन जाए और इस गाँव के लोग उन्हें चोर जाति का कहकर उनपर जुल्म ढाना बंद कर दें।

एक दिन मंगल पाटिल ने बंदूक्या को एक हजार रुपए दिए। बंदूक्या सौ-सौ के दस नोट देखकर बहुत खुश हुआ। अगले दिन वह किराए पर बैलगाड़ी लेकर अपने बेटे और औरत के साथ पाटिल के खेत में जा पहुँचा। जिधर देखता, उधर दूर तक हरे-भरे ईख की खेती ही नजर आती। बंदूक्या हरे रंग की चुनरी का घूँघट ओढ़े नई दुलहन जैसा खेत पहली बार देख रहा था। वह सोच रहा था कि वह यहाँ एक-दो खरगोश का भी शिकार कर सकता है। मंगल पाटिल के खेत से गन्ने बैलगाड़ी में रखकर, ढोकी की चीनी मिल में वजन कराकर और गाड़ी खाली कर जब तक बंदूक्या वापस लौटता, तब तक उसकी औरत और बेटे गन्ने काटते और फिर बैलगाड़ी में भरते। दिन गुजरते गए। एक दिन मंगल पाटिल प्रसन्न होकर बंदूक्या से बोला—

‘‘तू बहुत अच्छा काम कर रहा है। सबसे ज्यादा गन्ना तुम्हारा ही गया है। मैं तुझे काम के लिए और डेढ़ सौ रुपए देता हूँ, लेकिन एक काम में तुझे मेरी मदद करनी होगी।’’ यह सुनकर बंदूक्या ने उत्तर दिया—

‘‘जमींदार साहब, आपकी नहीं तो किसकी मदद करूँगा?’’

एक दिन बंदूक्या अपनी औरत और बेटे के साथ खेत से ही शिकार करके लाए हुए कबूतर को बनाकर खा रहा था कि उसी समय मंगल पाटिल आए और बंदूक्या से कहने लगे—

‘‘मेरा छोटा भाई बीमार है। उसके पास हॉस्पिटल में कोई नहीं है। मैं चाहता हूँ कि तुम उसके पास जाकर रहो। मैं तुम्हें इसके लिए पैसे दूँगा।’’ बंदूकया सीधा-साधा आदमी था। उसने सोचा, आदमी मुश्किलों में काम नहीं आए तो क्या फायदा? और वह उस्मानाबाद के हॉस्पिटल में मंगल पाटिल की गाड़ी में बैठकर चला गया। वहाँ मंगल पाटिल का भाई हॉस्पिटल में पड़ा हुआ था। थोड़ी देर में डॉक्टर उसे ऑपरेशन के लिए ले गए। बंदूक्या बाहर बैठकर बटुवे से तंबाकू निकाल हाथ पर मल रहा था। तब मंगल पाटिल बाहर आया और कहने लगा,

‘‘मेरे भाई को अभी तुरंत एक बोतल खून की जरूरत है।’’ उसने बंदूक्या से एक बोतल खून देने का अनुरोध किया।

बंदूक्या तुरंत तैयार हो गया, ‘‘मेरे शरीर से एक बोतल खून देने से आपका भाई बचता है तो मैं तैयार हूँ।’’

इधर खेत में बंदूक्या की औरत अपने पति के न लौटने से दिन-रात परेशान रही। दूसरे दिन खून की रिपोर्ट आई। बंदूक्या एक खाट पर पड़ा हुआ था। बगलवाले कमरे में डॉक्टर मंगल पाटिल को बता रहा था कि अगर इस आदमी का एक गुर्दा निकालकर उसके भाई को लगा दिया जाए तो वह ठीक से जी सकेगा। ये बातें बंदूक्या को सुनाई पड़ीं तो उसकी समझ में आया कि मंगल पाटिल उसकी इतनी मदद क्यों कर रहा है और क्यों मीठी-मीठी बातों से उसे फुसला रहा है! यह सिर्फ खून ही नहीं, इस बहाने गुर्दा भी लेना चाहता है। बंदूक्या यह सोचकर काँप गया। वह पेशाब के बहाने बाहर आया और तेजी से भाग निकला। बस पकड़कर वह सीधा अपने औरत-बच्चों के पास खेत में पहुँचा और घर के लोगों को उसने सारी बातें बताईं। इसके बाद वे लोग अपनी गठरी बाँधकर सबकुछ जहाँ का तहाँ छोड़कर अपने घर भाग गए।

इस बात से जमींदार बहुत नाराज हुआ कि एक आदिवासी पारधी ने उसकी बात नहीं सुनी और वह बिना बताए घर भाग गया।

इधर बंदूक्या अपनी बीवी-बच्चे के साथ अपने गाँव में आकर रहने लगा था। उसकी बीवी सोच रही थी, ‘जमींदार कितने मतलबी जल्लाद होते हैं! वह मेरे मर्द को मरवाना चाहता था और अपने भाई की जान बचाना चाहता था।’ एक दिन गुस्से से भरा हुआ जमींदार पारधी बस्ती में आया और बंदूक्या के घर पहुँचकर उससे पूछने लगा, ‘‘तुम अस्पताल से भाग क्यों आए?’’

बंदूक्या ने साफ-साफ कहा, ‘‘जमींदार साहब, हम गरीब अनपढ़ हैं। आप खून देने के बहाने मेरे पेट से गुर्दा निकाल अपने भाई को देना चाहते हैं, यह नामुमकिन है।’’

‘‘मैं तुझे और ज्यादा पैसा देनेवाला था। एक गुर्दा देने से आदमी मर नहीं जाता।’’

बंदूक्या ने पलटकर पूछा, ‘‘फिर आप क्यों नहीं दे देते?’’

इस जवाब से जमींदार काफी नाराज हो गया और गुस्से से चिल्लाते हुए अपने साथ आए हुए आदमियों को आदेश दिया, ‘‘यह हरामी आज से अपने गाँव के नजदीक रहने न पाए। इसके घर को जला दो और पीटो सालों को, चोर-उचक्के कहीं के!’’

बीस-पच्चीस लोगों ने मिलकर पूरी बस्ती को आग लगा दी। बाल-बच्चों को लाठियों से पीटा। सब पारधी जान बचाकर जंगल में भाग गए। घरों में आग लगने से बकरियों समेत उन गरीबों की दुनिया ही जल गई। बंदूक्या ने हिम्मत करके यह घटना जाकर जिला मजिस्ट्रेट को बताई, तब जाकर आदिवासी कानून के तहत केस दर्ज हुआ। जमींदार और उसके दो-चार साथी जेल गए, मगर तुरंत ही जमानत पर रिहा हो गए। गाँव के मुखिया जमींदार और उसके साथियों के पक्ष में थे, लेकिन यह केस एक दिन अदालत में पहुँचा। आदिवासी संगठनों ने केस में बंदूक्या की मदद के लिए अच्छा वकील लगवाया। बंदूक्या घर जलाने और मार-पीट करनेवालों से बदला लेना चाहता था। वह नई झोंपड़ी में रहने लगा था और जमींदार को सजा दिलाने के लिए हर तारीख पर कोर्ट जाया करता था। एक दिन जमींदार को बुलाकर उसके वकील ने कहा कि घर जलाने और मारने के इस केस में पारधी कोर्ट में गवाही दे देंगे तो आपको छह साल की सजा हो सकती है। तब जमींदार काफी चिंतित हुआ। उसने सोचा, अभी-अभी तो वह बैंक का चेयरमैन बना है। शुगर मिल का उपाध्यक्ष है। अगले चुनाव में उम्मीदवार के लिए भी खड़ा होनेवाला है वह। अगर उसे सजा हो गई तो उसका सारा खेल ही चौपट हो जाएगा। गाँव लौटकर यह सोचता रहा कि इस केस से बरी कैसे हुआ जाए? जमींदार के दिमाग में एक आइडिया आया कि अगर इन पारधियों को चोरी के केस में उलझा दिया जाए तो उनकी जुबान ही बंद हो जाएगी। ये पहले से ही चोर जाति के बदनाम लोग हैं। इस षड्यंत्र को सफल बनाने के लिए जमींदार ने अपने गुंडों के सहयोग से एक गरीब किसान के घर डाका डलवाया और उसे मरवा डाला। अफवाह यह फैलाई गई कि कोई लुटेरे उस किसान के घर से जेवर, पैसा लूट ले गए और उसे मार डाला। यह किसान मंगल पाटिल का दूर का रिश्तेदार था, मगर गरीब था। जब पोस्टमार्टम के लिए उस किसान की लाश अस्पताल में पहुँची तो वहाँ पहुँचकर मंगल पाटिल दिखावे के तौर पर चिल्लाने लगा, ‘‘चोरी के मकसद से जिसने ये हत्या की है, उसको जिंदा नहीं छोड़ेगे।’’ यह हादसा ऐसे समय में करवाया गया कि अगले ही दिन बंदूक्या के केस का कोर्ट में आखिरी फैसला होनेवाला था। गाँव की वह बस, जो गाँव से दिन में एक ही बार शहर को जाती थी, उस पर सवार होकर बंदूक्या का सारा परिवार उस दिन कोर्ट के लिए निकला। उनको मरे हुए किसान के बारे में तो कुछ मालूम ही नहीं था। वे सीधे बस में बैठकर कोर्ट के लिए उस्मानाबाद जा रहे थे। घात लगाए बैठा मंगल पाटिल सब को जाते देखकर किसान की हत्या से आक्रोशित लोगों से बस की ओर इशारा करके बोला, ‘‘देखो इस बस से वे चोर पारधी लोग, जिन्होंने चोरी के बहाने किसान की हत्या की है, भागे जा रहे हैं।’’ आक्रोशित भीड़ ने धीरज खो दिया और बस को घेर लिया, ‘‘इस बस में कौन-कौन पारधी बैठे हैं, बस से बाहर आओ।’’

किसान की हत्या से आक्रोशित लोगों और जमींदार के गुंडों ने कुत्तों की तरह पारधियों को मारना-पीटना शुरू किया। पुलिस हाथ-पर-हाथ रखकर तमाशा देखती रही। गाँव के सब दबंग लोग तो जमींदार की ही तरफ थे। तीन पारधी लोग वहीं मौके पर मार डाले गए और एक बच्चा हॉस्पिटल जाते-जाते मर गया। कोर्ट में पारधी लोग गवाही के लिए नहीं जा सके और गवाही के अभाव में मंगल पाटिल बरी हो गया। आज भी बरी घूम रहे हैं मंगल पाटिल।

(‘युद्धरत आम आदमी’ पत्रिका से साभार)

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