बंदर (नार्वेजियन कहानी) : अलेक्जेंडर कीलैंड

Bandar (Norwegian Story in Hindi) : Alexander Kielland

वह वास्तव में बंदर ही था जिसने मुझे कानूनी योग्यता परीक्षा में प्रथम श्रेणी का सम्मान दिलवाया। भले ही मैं दूसरी श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था। फिर भी अच्छा ही रहा।

परंतु मेरा वकील मित्र, जिसको प्रतिदिन मेरी परीक्षा के पेपरों की अपूर्ण नकलों को मिश्रित भावनाओं के साथ पढ़ना पड़ता था, ने उन पेपरों से यह विचार बनाया कि कानूनी समस्याओं से निपटने का मेरा ढंग बहुत ही अच्छा है। उसे डर था कि इनसे संभवतः मेरी प्रथम श्रेणी आ जाए। जबानी परीक्षा में मुझे यंत्रणा और असुविधा सहन करते देख उसे आपत्तिजनक लगा क्योंकि वह मेरा मित्र था और मुझे जानता था।

वास्तव में यह बंदर नहीं था बल्कि सिक्वेगार्ड की 'कानूनी समस्याएँ', जिसको अपने मित्र के केकुमिस से उधार लाया था, के पृष्ठ 496 के किनारे पर लगा कॉफी का धब्बा था।

कानूनी परीक्षा में बैठने के अतिरिक्त, आधी सर्दियों के कीचड़ और अँधेरे में कोई अन्य बात इतनी उदास करनेवाली हो सकती है, इसका अनुमान लगाना कठिन था। संभवतः गरमियाँ इससे भी बुरी होती, परंतु मैंने इसकी कोशिश नहीं की, इसलिए कह नहीं सकता।

सर्कस में अप्रसन्न नट से पहले सार्वजनिक अभिनय की तरह, एक व्यक्ति को ग्यारह प्रश्नों से जूझना पड़ता है, जैसे—क्या तेरह भी होते हैं? (निश्चित रूप से यह एक भयानक संख्या है जिसका अनुमान किया जा सकता है।) अपने जीवन को हाथ में और मूर्ख हँसी को होंठों पर लिये वह वहाँ वेग से कूदता है और ग्यारह कागज से ढके पट्टों में से कूदना पड़ता है, जैसे—क्या तेरह भी होते हैं?

कानूनी परीक्षा का उम्मीदवार अपने आपको उसी हालत में पाता है जिसमें कि सर्कस का नट; केवल उसे संगीत की ध्वनि पर या फिर चमकदार, प्रकाशित मकान में कूदना नहीं पड़ता। वह आधे अँधेरे में सख्त कुरसी पर बैठता है और उसका मुँह दीवार की ओर होता है और वह केवल निरीक्षक के जूतों की ही चरचर करती आवाज सुनता है, क्योंकि कानूनी परीक्षा में निरीक्षक के जूतों की-सी चरचरी आवाजें संसार में किसी और जूतों की नहीं होती! __ फिर वह विकट क्षण आता है जब काला गुप्तचर लॉ कॉलेज से प्रश्नों की सूची लाता है। वह दरवाजे में खड़ा होकर अवसर के डरावनेपन को निष्ठुर घृणा की उत्साहहीन उदासीनता से पढ़ता है और जो प्राणनाशक लेख जो वह हाथ में थामे हुए है, भद्दे कागज से ढके पट्टे की तरह है जिसमें से उम्मीदवार को कूदना होता है अथवा विफल होकर उतरना और कदमों को पीछे हटाना पड़ता है।

तुम काठी पर अपने आपको स्थिर करते हो; ऐसा करने में जरा भी सफल नहीं होते और अशांत होकर इधर-उधर डोलते हो।

अप्रसन्न व्यक्ति सरलता से इसे छोड़ देता है और उतर जाता है। ज्यों ही वह दरवाजे की ओर जाता है, तमाम आँखें उसे देखती हैं और बाकी उम्मीदवारों को निःश्वास का आभास होता है। 'तुम आज, मैं कल।' इस बीच कुछ आवाजें आती हैं जिनसे प्रतीत होता है कि कूदना आरंभ हो गया।

कुछ आदमी स्थिरता और सुंदरता से कूदते हैं और प्रथम श्रेणी पाने के विश्वास से दूसरे छोर पर पहुँचते हैं; दूसरे जो पट्टियों में से सीधा कूदना आसान करतब समझते हैं, वे हवा में घूम जाते हैं और पीछे की ओर कूद जाते हैं। यह कहा जाता है कि उनका फुर्तीलापन मध्यस्थ से दिए जानेवाले गुणावगुण ज्ञान को जीत नहीं सकता।

फिर दूसरे पुनः कूदते हैं और पट्टे को चूक जाते हैं; वे इसके नीचे से या एक ओर से कूद जाते हैं। कुछ व्यक्ति अभिनय को आसान समझते हुए ऊपर से कूद जाते हैं और बाद में अपनी उन्मत्त सवारी को असावधान विश्वास के साथ जारी रखते हैं।

परंतु यदि कोई व्यक्ति सवारी की इच्छा नहीं करता या जिसको पट्टी में से कूदने का अनुभव नहीं है, उसपर दया आती है, जब तक वह पृष्ठ 496 पर बंदर को नहीं मिलता!

उन दिनों हमने दिन में पट्टियों में से कूदकर और रात को इसे कैसे करना है सीखकर, अस्वस्थ जीवन गुजारा।

एक रात मैंने सिक्वेगार्ड की ‘कानूनी समस्याएँ', आधी पढ़ी; देर हो चुकी थी। मैंने अग्नि में और लकड़ियाँ डाली जबकि मुझे हवा की जरूरत थी और खिड़की को खोल दिया जब मुझे गरमी चाहिए थी और थोड़ी देर में 'कानूनी समस्याएँ' के मुरझाए पृष्ठों को आँधी की तरह पढ़ गया।

परंतु अंत में आँधी भी थम गई और जब यह मेरे साथ हुआ तो मैं सीधा अकड़कर बैठ गया और ग्यारहवीं बार पढ़ा, इसलिए व्यक्ति को निश्चय ही निर्णय करना चाहिए...व्यक्ति को इसलिए...निश्चय...उपयोगी को अनुकूल से मिलाओ... अपनी कुरसी में पीछे को झुक जाओ...मैं भी पढ़ सकता हूँ...इसलिए...

परंतु गैर-कानूनी तसवीरें पुस्तक में तैरने लगीं, उन्होंने दीपक को घेर लिया और मेरी कानूनी दृष्टि की स्पष्टता को पूरी तरह ढाँकने के लिए धमकाया।

मैं अब धुंधलेपन से सफेद पृष्ठ में भेद कर सकता था; एक...हो सकता है...इसलिए बाकी घने छपे पृष्ठों के काले अक्षरों के समूह में लुप्त हो गए; मेरी आँखों ने थकी निराशा से उनका पीछा किया। फिर मैंने दाईं ओर के पृष्ठ के नीचे देखा! वह बंदर का चेहरा था जो किसी ने पृष्ठ के किनारे पर बनाया था; यह सुंदरता से बनाया गया था—विशेषकर उसका भूरा चेहरा।

मुझे कहते हुए शर्म आती है कि सिक्वेगार्ड की अपेक्षा मेरी रुचि इस कलाकृति में अधिक थी। मैं उठा और अच्छी तरह देखने के लिए आगे को झुका।

परीक्षा के बाद मैंने मालूम किया कि चेहरे का अद्भुत भूरा रंग कॉफी के कारण था और आगे सारा बंदर कॉफी के धब्बे के सिवा कुछ भी नहीं था।

कलाकार ने बस आँखें और कुछ बाल ही जोड़े थे! कल्पनाशक्ति तो उसी की थी जिसने कॉफी को गिराया था।

मैंने तब जाना, क्योंकि मैं जानता था कि ककुमिस एक रेखा भी नहीं खींच सकता था, परंतु वह अपना कानून पूरी तरह जानता था। और फिर मैंने उसके बारे में सोचना शुरू किया, उसकी सफल परीक्षा के बारे में जब उसने प्रथम श्रेणी प्राप्त की तथा उसके विजयी होकर घर लौटने के बारे में विचार किया। इस सबको पूरा करने में उसने कैसा काम किया होगा? इस प्रकार गंभीरतापूर्वक सोचने पर मेरा अंत:करण गतिमान हो गया और अल्प निद्रा से जागा जबकि एकाएक उभरी चमक की तरह मेरी अपनी अज्ञानता अपनी सारी भयानक नग्नता के साथ मेरे सामने आ खड़ी हुई।

मैंने सोचा कि उतरना मेरे लिए कितना लज्जाजनक होगा या उससे भी बुरा होगा, यदि मेरी गणना उन अप्रसन्न व्यक्तियों में की गई जो सदा गुमनाम रहते हैं और जिनके बारे में कहा जाता है—'इसे अतिरस्कृत प्राप्त हुआ!'

कभी-कभी ऐसा होता है कि लोग अधिक पढ़-लिखकर भुलक्कड़ हो जाते हैं। मुझे भी ऐसा ही लगा जब मैंने अपनी अज्ञानता के विस्तार को महसूस किया।

मैं उछल पड़ा और सिर पानी के टब में डाल दिया तथा बालों को सूखने का समय न देते हुए मैंने इस निश्चय से पढ़ना शुरू कर दिया कि प्रत्येक शब्द अमिट रूप से मेरी स्मरण शक्ति पर छप गया।

बाई ओर के पृष्ठ में मैंने जल्दी की, फिर पूरी शक्ति से दाई ओर बंदर के पास पहुँचा, उसको छोड़ दिया और पृष्ठ बदला तथा बहादुरी से पढ़ने लगा।

मैंने ध्यान नहीं दिया कि मेरी शक्ति कम हो रही थी। हालाँकि मैंने नया अध्याय पढ़ा जो सामान्य हालत में उकसाने का काम करता था। मैं, उन कपटी वाक्यों में, जिन्हें मायावी गंभीरता से पढ़ते हैं, फँसे बिना नहीं रह सका!

मैंने मुक्ति के साधनों को टटोला परंतु वे नहीं मिले।

मेरा सिर चकराने लगा। बंदर कहाँ है?...कॉफी का धब्बा...कोई भी दोनों पृष्ठ पर कल्पनाशक्ति नहीं दिखा सकता...जीवन में हर चीज की सही और गलत दिशा होती है...उदाहरणार्थ, विश्वविद्यालय की दीवारघड़ी...क्योंकि मैं तैर नहीं सकता, मुझे बाहर आने दो...मैं सर्कस को जा रहा हूँ! मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तुम मुझपर हँस रहे हो, ककुमिस! परंतु मैं पट्टे में से कूद सकता हूँ, मैं तुम्हें बताता हूँ...और यदि प्राध्यापक, जो मेरे दीपक से निकला है, कानूनी शरीर में ठीक ढंग से ढूँढ़ता तो मैं यहाँ लेटा हुआ न होता...कर्ल जोहनस स्ट्रीट में कमीज पहने...परंतु।

इस घटनाक्रम में मुझे स्वप्नहीन गहरी निद्रा आ गई जो केवल उन्हें ही आती है जो युवावस्था में बुरे अंत:करणवाले होते हैं।

अगली प्रातः मैं शीघ्र ही काठी पर स्थापित हो गया।

मैं नहीं जानता कि उस दिन शैतान ने जूते पहने थे, परंतु कुछ भी हो, उसके निरीक्षकों ने अपने-अपने जूते पहने थे और वे मेरे पास ही, जहाँ मैं अपना चेहरा दीवार की ओर किए दुःखी बैठा था, चर-चर की आवाज करते थे!

पीडित व्यक्तियों को देखता हुआ प्राध्यापक कमरे में घूम रहा था। कभी-कभी उसकी दृष्टि दुःखी चापलूसों में से एक पर जाती जो उसके भाषणों में उपस्थित होते थे। वह सिर हिलाकर मुसकराता, परंतु जब उसकी आँखें मुझपर ठहरती, मुसकराहट लुप्त हो जाती और उसकी बर्फीली दृष्टि मेरे सिर के ऊपर दीवार पर लिखती प्रतीत होती —'ओह, हत-भाग्य! मैं तुम्हें नहीं जानता...!'

एक या दो निरीक्षक चर-चर करते प्रधान के पास गए और चापलूसी करने लगे; मैं उन्हें अपनी कुरसी के पीछे कानाफूसी करते सुन सकता था जबकि मैं मौन गुस्से में दाँत पीस रहा था कि ऐसे पापियों को वेतन दिया जाता है जो मुझे या मेरे अच्छे मित्रों को यातना देकर अपनी आजीविका अर्जित करते हैं।

दरवाजा खुला और पीली रोशनी की किरणें पीले चेहरों पर चमक उठीं; इसने लक्समबर्ग के अजायबघर में 'डर से पीडित लोगों' में एक की याद दिला दी। पुनः अँधेरा हो गया और काला गुप्तचर चमगादड़ की तरह अपने पंजों में प्रसिद्ध सफेद कागज लिये कमरे में धीरे से आया।

उसने पढ़ना शुरू किया।

मैं अपने सारे जीवन में इतना निराश नहीं हुआ जितना उस समय हुआ था; फिर भी पहले ही शब्द ने मुझे उछाल दिया।

"बंदर।"

मैं शब्दों को लेकर लगभग चिल्लाया, क्योंकि इसमें कोई संदेह नहीं था कि यह 'कानूनी समस्याएँ' का पृष्ठ 496 था जहाँ मैंने बंदर को ढूँढ़ा था! जो समस्या वह पढ़ रहा था वह वही थी जिसको एक रात पहले पूरी शक्ति से मैंने पढ़ा था। मैंने लिखना आरंभ कर दिया।

संक्षिप्त भूमिका के बाद मैंने सुरीला वाक्यखंड लिखा-

"इसलिए व्यक्तियों को निश्चय ही निर्णय..." और बाएँ-दाएँ के पृष्ठों को जल्दी से पढ़ गया, फिर पूरी शक्ति से दाएँ हाथवाले को...बंदर के पास पहुँचा, उसे छोड़ दिया, टटोलने लगा...और एकाएक रुक गया।

मैं जानता था कि किस चीज की कमी है, परंतु मैं यह भी जानता था कि यह जानने के लिए कि किसी चीज की कमी है, यत्न करना व्यर्थ था। यदि किसी को किसी चीज का नहीं पता तो नहीं पता, बस यही काफी है। अतः मैंने पूर्ण विराम लगाया और दूसरों की आधी समाप्ति से पहले चला गया।

दुर्भाग्य से मेरे साथियों ने सोचा कि मैं उतर गया था, और पट्टी से हटकर कूदा था क्योंकि समस्या जटिल थी!

"ठीक है, ठीक है, " वकील ने कहा जब उसने मेरा परचा पढ़ा—'यह मेरी आशा से भी अच्छा है! क्यों, यह खालिस सिक्वेगार्ड है! तुमने अंतिम बिंदु छोड़ दिया है, परंतु उसका अधिक महत्त्व नहीं है। तुम देख सकते हो कि विषय में अच्छे हो।"

"मैं कुछ नहीं जानता था।" वह मुसकराया।

"तो क्या रात भर ही में समस्या पर विजय पा ली?"

"हाँ, ऐसा ही था।"

"क्या किसी ने तुम्हारी सहायता की थी?"

"हाँ।"

"यह अध्यापक का भूत होगा जिसने एक रात में इतना कानून तुम्हारे सिर में डाल दिया। क्या मैं जान सकता हूँ कि वह जादूगर कौन था?"

"बंदर।" मैंने उत्तर दिया।