बहुत सारे बच्चों की दादी : कैनेडा की लोक-कथा

Bahut Saare Bachon Ki Dadi : Lok-Katha (Canada)

बहुत पुरानी बात है कि एक दादी अपने बहुत सारे बच्चों के साथ रहती थी। एक दिन दादी को जंगल से लकड़ियाँ इकट्ठा करने जाना था तो उसने अपने बच्चों से कहा कि कोई भी आये तो वे दरवाजा न खोलें।

खास तौर पर उसने उनको एक बडे, भालू के बारे में सावधान किया क्योंकि हालाँकि वह भालू जंगलों में घूमता रहता था फिर भी वह अक्सर घरों तक भी आ जाता था।

सब कुछ समझा कर दादी तो जंगल चली गयी और इधर बच्चों ने अपने घर की सारी खिड़कियाँ बन्द कर लीं और दरवाजा भी बन्द करके वे घर में छिप कर बैठ गये।

एक आलमारी के ऊपर बैठ गया। दूसरा आलमारी के अन्दर बैठ गया। एक बिछौने के ऊपर बैठ गया तो एक बिछौने के नीचे बैठ गया। एक ओवन में छिप गया।

एक चिमनी के ऊपर चला गया तो एक चिमनी के नीचे बैठ गया। परन्तु एक छोटे बच्चे हेशैला69 को छिपने की कोई जगह नहीं मिली तो वह एक बोतल के अन्दर छिप कर बैठ गया।

आखिर वह बड़ा भालू घूमता घामता उधर आ निकला। उसने देखा कि दादी आज लकड़ियाँ लेने जंगल गयी है और आज बच्चे घर में अकेले हैं तो आज उन बच्चों को खाया जाये।

बस वह दादी के घर चल दिया। उसने जा कर दादी के घर का दरवाजा खटखटाया — “बच्चो, दरवाजा खोलो।”

जब कोई भी नहीं बोला तो उसने फिर से आवाज लगायी — “बच्चो, दरवाजा खोलो। मैं तुमको ब्लैक बैरी दूँगा।”

इस पर बच्चे बोले — “नहीं हमें नहीं चाहिये तुम्हारी ब्लैक बैरी, हमारे पास ब्लैक बैरी हैं।”

भालू फिर बोला — “बच्चो बच्चो, दरवाजा खोलो, मैं तुम्हें ब्लू बैरी दूँगा।”

बच्चे बोले — “नहीं हम दरवाजा नहीं खोलेंगे। हमें नहीं चाहिये तुम्हारी ब्लू बैरी। हमारे पास ब्लू बैरी भी हैं।”

यह सुन कर भालू एक लोहार के यहाँ चला गया और अपनी पँूछ में एक लोहे का टुकड़ा लगवा लाया। इस बार वह बच्चों से बोला — “बच्चो बच्चो, अगर तुम दरवाजा नहीं खोलोगे तो मैं दरवाजा तोड़ कर अन्दर आ जाऊँगा।”

बच्चे बोले — “हम तुमसे नहीं डरते ओ भालू। हम अपनी दादी का कहना मानते हैं।”

यह सुन कर भालू ने गुस्से में आ कर अपनी पूँछ दरवाजे पर ज़ोर से मारी तो दरवाजा टूट गया और भालू घर के अन्दर पहुँच गया।

उसने बच्चों को घर के अन्दर चारों ओर खोजा और अपना बड़ा सा मुँह खोल कर सब बच्चों को खा गया।

लेकिन भालू बोतल में छिपे छोटे हेशैला को नहीं देख पाया और छोटा हेशैला सब देखता रहा। इसके बाद भालू जंगल की तरफ चला गया।

जब दादी जंगल से लौटी तो उसने देखा कि उसका घर तो बिल्कुल शान्त पड़ा है। उसने पुकारा — “बच्चों तुम कहाँ हो?” जब उसे कोई जवाब नहीं मिला तो वह फिर बोली — “बच्चों तुम कहाँ हो?”

उसे फिर भी कोई जवाब नहीं मिला तो उसने बच्चों को घर में हर जगह ढूँढा। उसने उनको बरामदे में भी देखा पर वहाँ भी कहीं कोई नहीं था।

उसने उनको ऐटिक में देखा पर वहाँ भी कोई नहीं था। वह बेचारी बार बार पुकारती रही — “बच्चों, मेरे प्यारे बच्चों, तुम कहाँ हो?” पर कहीं से उसको कोई जवाब नहीं मिल रहा था।

इसी समय छोटा हेशैला बोतल से निकल कर दादी की गोद में चला गया और उसने उसको सारी कहानी सुना दी कि कैसे भालू जंगल से आया, कैसे उसने अपनी पूँछ से दरवाजा तोड़ा, फिर कैसे उसने बच्चों का पता लगाया और फिर कैसे वह उन सबको खा गया।

दादी ने जब यह सुना तो उसने एक बड़ा चाकू लिया और लोहार के घर ले जा कर उसे खूब तेज़ करा लिया और उसको अपने कपड़ों में छिपा लिया।

फिर वह जंगल में गयी और उसने जंगल में जा कर आवाज लगायी — “बैरेले, ओ बैरेले, मेरे पास आओ।”

भालू बोला — “मैं नहीं आता।”

दादी बोली — “बैरेले, अगर तुम मेरे पास आओगे तो मैं तुमको बहुत बढ़िया सी पुडिंग दूँगी।”

भालू फिर बोला — “नहीं मैं नहीं आता।”

दादी फिर बोली — “बैरेले आओ न, मैं तुम्हारे कान भी गुदगुदाऊँगी।”

भालू बोला — “ओह, बस यही तो मुझे बहुत अच्छा लगता है दादी।”

भालू जंगल से बाहर आ गया और दादी की गोदी में सिर रख कर लेट गया। दादी ने भालू के कान सहलाने शुरू कर दिये — पहले दाँया कान, फिर बाँया कान। भालू को धीरे धीरे नींद आने लगी।

दादी ने मौका देखा और अपने कपड़ों मे से चाकू निकाल कर भालू का पेट फाड़ दिया। भालू का पेट फटते ही दादी के सारे बच्चे उसमें से निकल पड़े।

दादी अपने सब बच्चों को घर ले गयी। उसने उन सबको मल मल कर नहलाया, साफ कपड़े पहनाये, बाल बनाये, नये जूते और मोजे पहनाये और फिर उन सबको स्कूल भेजा।

इस तरह दादी ने भालू को मार कर अपने बच्चों की जान बचायी।

(अनुवाद : सुषमा गुप्ता)

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